एक दिन अजय , हमारे एक मित्र मिले. फुटबाल का मैच देखने आये थे. एक आँख दबा कर मुस्कराते हुए अजय ने खुलासा किया कि पत्नी से छिपा कर आया है. पत्नी से कह दिया है कि दफ्तर का काम है. यह बात अजय ने पूरे मैच के दौरान अलग अलग विषयों पर छिड़ी बातचीत के दौरान तीन बार बताई.
वहाँ हम सब मिलाकर करीब पाँच मित्र थे और हमारे एक मित्र विकास पत्नी से अनुमति न मिल पाने के कारण नहीं आये थे. अजय ने विकास को शिद्दत से अव्वल दर्जे का बेवकूफ ठहराया और कहा कि उसे अकल ही नहीं है कि पत्नी को कैसे चकमा देना है. हालांकि यह अकल तो हममे भी नहीं है किन्तु चूँकि हम वहाँ मौजूद थे, अतः इस इल्जाम से बच गये.
अगले दिन विकास मिला तो हमने उसे अजय के बारे में भी बताया कि कैसे वो पत्नी को चकमा देकर आया था, तुम भी क्यूँ नहीं कुछ तरीके सीखते कि ऐसे मौको पर निकल सको? वरना तो सीधे सरल तरीके से कौन सी पत्नी अकेले किसी को दोस्तों के साथ मौज मनाने जाने देगी. विकास बोला कि जब तुम लोग मैच देखने गये थे तो अजय की वाईफ तो हमारे घर आई थी और मेरी पत्नी से उसने पूछा भी कि भाई साहब मैच देखने नहीं गये अजय के साथ?
पता नहीं कौन किसको चकमा दे रहा है मगर अजय यह सोचते रहे कि उन्होंने पत्नी को चकमा दे दिया और उधर पत्नी जानबूझ कर चकमित रही.
वैसे इस बात के लिए महिला शक्ति को नमन करता हूँ (यूँ तो हर बात के लिए करता हूँ) कि भगवान और भारतीय पुलिस के बाद यदि कोई है जो जब तक खुद न चाह ले, आप उससे छिपा कर कुछ नहीं कर सकते, तो वो सिर्फ माँ और पत्नी ही है. अकसर हम प्रफुल्लित होते हैं, शादी के पहले माँ को बेवकूफ बना कर और शादी के बाद पत्नी को किन्तु यकीन जानिये वो सिर्फ आपका आत्मविश्वास और सम्मान बरकरार रखने के लिए बेवकूफ बनती है वरना वो पूरी बात तब ही जान चुकी होती है जिस वक्त चकमा देने के विचारमात्र आपके दिमाग में जनम लेता है.
वही हाल तो भारतीय पुलिस का है. चोरी और अपराध तो बहुत बाद में होते हैं मगर उसकी पूरी खबर इनको पहले से होती है. अगर ये ठान लें तो अपराध हो ही नहीं सकते.
भारतीय पुलिस कानून की मर्यादा एवं संविधान का सम्मान एवं उन सबके उपर अपनी उपरी कमाई बनाये रखने के लिए मेरी बात से जरुर इन्कार करेगी और वो ही हाल माँ और पत्नियों का होगा जो एक पुरुष की मर्यादा का सम्मान एवं उसका अह्म भाव बरकरार रखने के लिए इस बात को शायद न मानें, मगर है तो ऐसा ही.
तो अगली बार जब माँ या पत्नी को चकमा देने का ख्याल मन में आये तो याद रखना और एक बार सोच कर देखना कि कौन किसको चकमा दे रहा है और किसने किसको बेवकूफ बनाया.
अब ये देखो बेचारे ने कैसे आँसूं बहाते हुए प्रीत की पाती लिखी है.
चलो, इसी बात पर गज़ल के नाम पर एक चकमा :) बताना जरुर कि चकमा दे पाया कि नहीं वरना फिर उपर भारतीय पुलिस, माँ और पत्नी के साथ हिन्दी ब्लॉगर भी शामिल किया जाये:
मंत्र कुछ सिद्ध जाप लें तो चलें
तिलक माथे पे थाप लें तो चलें
सुनते हैं बस्ती फिर जली है कोई
चलो हम आग ताप लें तो चलें
मिली है पांच साल को कुर्सी
नोट दिन-रात छाप लें तो चलें
जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें
आम लोगों में अब रहें क्यूँ ’समीर’
पाल आस्तीं में सांप लें तो चलें
-समीर लाल ’समीर’
96 टिप्पणियां:
सही बात है, जब आपसी भरोसे में कहीं कुछ न कुछ कमी रह गई हो तो चकमे के अलावा किया भी क्या जा सकता है :)
चकमा दे कर पकड़े जाने से अच्छा है कि समझा बुझा कर अनुमति ले लें। साथ चलने को कह दीजिये तो अकेले जाने की अनुमति मिलनी ही है।
मज़े मज़े में बहुत कुछ कह जाते हैं आप... :-)
मज़े मज़े में बहुत कुछ कह जाते हैं आप... :-)
जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें
शेर बहुत खूब
आपकी रचना ने तो चकमित कर दिया, बधाई
" चोरी और अपराध तो बहुत बाद में होते हैं मगर उसकी पूरी खबर इनको पहले से होती है. अगर ये ठान लें तो अपराध हो ही नहीं सकते"
बराबर लिखा है जी, देखा जाये तो असली जिम्मेदार भी यही हैं अपराध होने के, ठानते ही नहीं हैं।
दो सर्वकालिक प्रश्न हर स्त्री के है, जब भी उसका पति घर से बाहर निकलने लगे -
१. कहाँ जा रहे हो?
२. कब तक लौटोगे?
ये नारको टेस्ट से भी खतरनाक टेस्ट होता है जी।
और आप चकमा दे गये जी।
आभार।
सर जी, आप तो बस आप है , आपका जबाव नहीं |
हमेशा की तरह लाजबाब !
धन्यबाद !
ऐसा काम ही कोई क्यों करे कि छुपाना पड़े ....
सर जी, आप तो बस आप है , आपका जबाव नहीं |
हमेशा की तरह लाजबाब !
धन्यबाद !
मजेदार और नसीहत भी । अच्छी प्रस्तुति ।
माँ का तो जनता हूँ की चकमा नहीं दे सकता ...पत्नी को चकमा दिया जा सकता है या नहीं इस अनुभव को पाने के लिए हमें अभी थोडा समय लगेगा :-)......सुन्दर गजल है भाईसाहब
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सुनते हैं बस्ती फिर जली है कोई
चलो हम आग ताप लें तो चलें
चकमा न दे पाए हुज़ूर। दिल की ही बात निकली है जो सीधे दिल तक ही पहुंची है।
हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
बहुत ही बढ़िया ....
शौहर मुगालते में बने रहें ! ये बीबियां भी खूब होती हैं चकमित होने के अभिनय पर इन्हें आस्कर दिए जा सकते हैं :)
जो जो सोचा था कहना दूसरों ने कह डाला. ठीक है, हम भी चकमित भये.
अजी चकमा देना तो दूर, चकमा देने की सोच भी नहीं सकते| और पुलिसे की बात तो उन्हें चकमा खाने में अब मज़ा आता है| ग़ज़ल बेहतरीन है| बेहतरीन पोस्ट|
यह बात तो सही है कि कहीं ना कहीं भरोसे में कोई ना कोई कमी ज़रूर रह गई है.... तभी तो चकमा देने की ज़रूरत पड़ गई है...
ग़ज़ल की यह लास्ट पंक्ति तो बहुत ही अच्छी लगी....
आम लोगों में अब रहें क्यूँ ’समीर’
पाल आस्तीं में सांप लें तो चलें
बहुत सही...
bilkul sahi
खुश रहने के लिए चकमा देने का ख्याल अच्छा है। पता नहीं लोग पत्नियों से इतना डरते क्यों हैं?
ताजुब्ब है फुटबाल का मैच देखने के लिए भी बीबी से अनुमति लेनी पड़ती है या कि चकमा देना पड़ता है। सोच रहा हूं बाकी कामों के लिए क्या करना पड़ता होगा।
बस दोनों एक-दुसरे को चकमा देने की कोशिश करते है और खुद ही चकमका जाते हैं.... :-)
sir is post se to hum bhi chakme mein hain :))))))
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! बढ़िया, मज़ेदार और शानदार प्रस्तुती!
आपकी रचना पर टिप्पणी करने के लिए अभी मैं बहुत ही छोटा हूँ.. परन्तु आपके भावो को बखूबी समझने में सक्षम रहा.. आपकी टिप्पणी के बहुत ही आभार.. आशा है आगे भी मुझे मार्गदर्शन मिलता रहेगा.. धन्यवाद्..
Kanhaiya
http://karizmatic-kanu.blogspot.com/
वाह बढ़िया है, तुम डाल-डाल हम पात-पात
بہت بھیا لکھ ہیں بھی جا--سلام
ਚੰਗੀ ਪੋਸਟ ਲਾਈ ਹੈਗੀ ਤੁਸ੍ਸੀ.
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
समीर जी,
गज़ल बहुत अच्छी है.
बात बिलकुल सही कही है. पत्नी से कुछ भी छुपाना आसान नहीं है..
इस लेख और प्रत्येक प्रशंसनीय शेर वाली इस गजल से चकमा तो नहीं मिला हाँ चमत्कृत जरूर हुए.
पढकर बहुत अच्छा लगा।
जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें
यकीन जानिये वो सिर्फ आपका आत्मविश्वास और सम्मान बरकरार रखने के लिए बेवकूफ बनती है वरना वो पूरी बात तब ही जान चुकी होती है जिस वक्त चकमा देने के विचारमात्र आपके दिमाग में जनम लेता है. .... bahut had tak sahi kaha par puri tarah nahi.... kabhi kabhi puri umr gujar jaane ke baad kuchh aise raaj khulte hain ki ve chakit hue bina nahi rahti.
पोस्ट पढना ही काफी नहीं है,
टिप्पणी एक छाप ले तो चले ||
रचना और पोस्ट दोनों ही बढ़िया है!
--
आत्म मंथन कर रहा हूँ!
आम लोगों में अब रहें क्यूँ ’समीर’
पाल आस्तीं में सांप लें तो चलें
आप एक ईमानदार कवि है। सामाजिक और निजी जीवन को अलग अलग रखने का छटा आपकी कविता के मिजाज में कहीं नहीं। इसलिए चकमा दे पाने में सफ़ल नहीं हुए।
बहुत कुछ पता है..आपलोगों को..हम्म..
वो क्या है...स्त्रियों को दूसरों को खुश देखना अच्छा लगता है....आपलोग खुश हो जाते हैं ये सोच, चकमा दे दिया...तो खुश हो लीजिये...:)
ग़ज़ल बहुत शानदार है
समीर जी से ऐसे ही चकमे की उम्मीद थी ! जय हो !
सुनते हैं बस्ती फिर जली है कोई
चलो हम आग ताप लें तो चलें
समीर भाई ऐसा काम तो कोई लीडर ही कर सकता है अपने देश का ....
बहुत करारा व्यंग मारा है ...
are ... मालिक भूल गये ... कनाडा की वो रात ..... क्या उसके बारे में भी जान गयी भाभी ....
पोस्ट-----उफ़ !!!!
ग़ज़ल - आह !!!!
सुनते हैं बस्ती फिर जली है कोई
चलो हम आग ताप लें तो चलें
मिली है पांच साल को कुर्सी
नोट दिन-रात छाप लें तो चलें
barik bhawnayon ka pakdna ek bahut badi khoobi hai..jo bahut kam logon mein hoti hai... iss lekh se pata chalta hai..aap sirf ek achche lekhak nahi...ek achche insaan bhi hain...
बहुत ही बारीक नज़र पायी है कोई चूक हो ही नही सकती………………गज़ल बेहद खूबसूरत्।
लाजबाब प्रस्तुति,
यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम
Satya`s Blog
हमारे एक जानने वाले को नेतागिरी का शौक चढा .लेकिन उनकी पत्नी ने हिन्सातम्क रुप मे मना किया . थोडे दिनो बाद वह बहुत खुश नज़र आये मालूम किया तो बताया उन्होने अपनी पत्नी को भी पद दिला दिया है और अब दोनो मिल कर नेतागिरी कर रहे है .
" उसे अकल ही नहीं है कि पत्नी को कैसे चकमा देना है"
बडा चकमित लेख .... पर चकमा कौन खाया, यह तो अभी पहेली ही है :)
अपना तो कोई फोन भी आ जाये तो पत्नी पूछती है --किसका था ।
लेकिन हमने भी आज तक नहीं बताया ।
अब पत्नी जी हमारी पुलिस से ज्यादा तेज़ तो नहीं हो सकती कि उन्हें पहले से ही मालूम हो ।
बढ़िया व्यंग रहा यह भी समीर जी ।
मिली है पांच साल को कुर्सी
नोट दिन-रात छाप लें तो चलें
....हा..हा..हा..अंकल जी, नेता हो गए हो आप.
____________________
'पाखी की दुनिया' में अब सी-प्लेन में घूमने की तैयारी...
क्या बात है ! समीर जी,
ये तो आपने ठीक कहा बीबी को चकमा देना आसान काम नहीं है,
भई आजतक न तो माँ को दे पाए न ही बीबी को .
आपके कविता को शीर्षक मिला क्या , हम भी जानने को उत्सुक है ..
कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
(क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
http://oshotheone.blogspot.com
यह बात तो आपने बिलकुल सही कही कि ---
किन्तु यकीन जानिये वो सिर्फ आपका आत्मविश्वास और सम्मान बरकरार रखने के लिए बेवकूफ बनती है वरना वो पूरी बात तब ही जान चुकी होती है जिस वक्त चकमा देने के विचारमात्र आपके दिमाग में जनम लेता है.
और गज़ल लाजवाब है ..हर शेर कटाक्ष कर रहा है ...
बस्ती फिर जली है कोई
चलो हम आग ताप लें तो चलें
जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें
बहुत खूबसूरत गज़ल है ..
.
' chakmit wife '
wow !
what an expression !
beautiful !
you have said everything. Hats off !
.
इस पोस्ट से लगता है अभी kaafi-kuchh समझना बाकी है.. :P
@आप उससे छिपा कर कुछ नहीं कर सकते, तो वो सिर्फ माँ और पत्नी ही है.
सत प्रतिशत सही
@वो सिर्फ आपका आत्मविश्वास और सम्मान बरकरार रखने के लिए बेवकूफ बनती है
बिल्कूल सही पर काफी बेचारिया ऐसी भी है की पति की बात सुन कर जानबूझ कर बेवकूफ बनती है क्योकि उनके पास इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं है |
कई बार पत्निया ये सोच कर खुश हो लेती है और जान बुझ कर बेवकूफ बन जाती है कि पति चाहता तो पति वाली हेकड़ी दिखा कर मेरे पसंद को नजर अंदाज कर सीधे बोल सकता था पर वो मेरे नापंदगी को ध्यान में रख कर झूठ बोल रहा है तो जो मेरे पसंद ना पसंद का इतना ख्याल रख रहा है उसे इतनी छुट तो दे देनी चाहिए |
काफी..........असरदार..............गजल भी बेहतरीन..........
महिलाएं ऐसा काम नहीं करती .. जो उन्हें पति से छुपाना पडे .. तो फिर पुरूषों को ऐसा काम करने की जरूरत ही क्यूं .. जो उन्हें पत्नी से छुपानी पडे !!
मंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें
क्या बात है समीर जी?
भगवान और भारतीय पुलिस के बाद यदि कोई है जो जब तक खुद न चाह ले, आप उससे छिपा कर कुछ नहीं कर सकते, तो वो सिर्फ माँ और पत्नी ही है.waah kya baat kahi ,ye chhoti chhoti baate jindagi ko naya mukaam deti hai tatha khushiyon ke rang bharti hai ,kai baate padte huye hansi bhi aa gayi .dono ati uttam .
आप हमेशा hee पठनीय लिखते hain..bahut badhya !
समय हो तो पढ़ें
क्या हिंदुत्ववाद की अवधारणा ही आतंकी है !
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.html
चकमा ? किस लिये ओर क्यो ? अगर कभी कभार आप लोग जाते है दोस्तो मै तो कोई भी महिला अपने पति को रोकेगी नही बल्कि खुशी खुशी से राजी हो जायेगी, ओर अगर हम बीबी को एक बार झुठ बोलेगे तो वो समझ जाये गी, ओर फ़िर हमेशा का विशवास भी जाता रहे गा,इस लिये विशवास कभी मत तोडो,मैने आज तक(शादी के बाद) जो किया सब बीबी को मालूम है किस से ओर क्यो छिपाना????
चकमित शब्द से अचंभित हूँ...
..अकसर हम प्रफुल्लित होते हैं, शादी के पहले माँ को बेवकूफ बना कर और शादी के बाद पत्नी को किन्तु यकीन जानिये वो सिर्फ आपका आत्मविश्वास और सम्मान बरकरार रखने के लिए बेवकूफ बनती है..
..गज़ब का अनुभव और जीवन की सच्चाई बताती इन पंक्तियों को पढ़कर यह विचार आ रहा है कि इसका प्रयोग पत्नी को चकमा देने के लिए किया जा सकता है!
समीर भाई , आप से पूर्णतया सहमत हूं । कभी भी पत्नी से ओवर स्मार्ट बनने कोशिश न करिये , ज्यादा सुखी रहेंगे ।
माँ और पत्नी भी चकमित होने में ख़ुशी महसूस करती है तो क्यों न उन्हें भी खुश कर दे ?
jbhi induji aapko dhundh rhi thi bhaiji ....hahaha
हा हा हा अच्छा लेख और उससे भी अच्छी है आपकी कविता...पर एक बात समझ से परे लगी वो ये कि आप आस्तिन में भला सांप क्यों पालने लगे सांप पाले आपके दुश्मन सर जी
फिर चलेंगे कहाँ, इसी चक्कर में फंसे ही रह जायेंगे :) ये ऐसी आग है जिसे तापने से मन ही नहीं भरता.
अब इन छोटी मोटी बातों के लिए जीवन संगिनी को क्या चकमाना? व्हाट्स बिग डील ?
आप तो बस आप हैं,
आपका जबाव नहीं...!
I am boss of the house and I have my wife's permission to say so.
रोने का अंदाज अलग है
वही हाल तो भारतीय पुलिस का है. चोरी और अपराध तो बहुत बाद में होते हैं मगर उसकी पूरी खबर इनको पहले से होती है. अगर ये ठान लें तो अपराध हो ही नहीं सकते.साब आपका कहना १००% सही है मगर फिर हफ्ता कहाँ से वसूल होगा जिसके लिए मंत्री से संतरी सभी रोज देवता मनाते हैं .बेचारे प्राइवेट लोकेर्स का क्या होगा जो करप्ट पैसे से अटे पड़े है(आप की ग़ज़ल का तीसरा शेर खुद हाल बयां करता है ) .खेर अ़ब बात आपकी ग़ज़ल की बहुत खूब लिखी है
कुछ सिद्ध जाप लें तो चलें
तिलक माथे पे थाप लें तो चलें सुनते हैं बस्ती फिर जली है कोई
चलो हम आग ताप लें तो चलें मिली है पांच साल को कुर्सी
नोट दिन-रात छाप लें तो चलें जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें आम लोगों में अब रहें क्यूँ ’समीर’
पाल आस्तीं में सांप लें तो चलें - सभी शेर सुंदर हैं
अगली बार जब माँ या पत्नी को चकमा देने का ख्याल मन में आये तो याद रखना और एक बार सोच कर देखना कि कौन किसको चकमा दे रहा है और किसने किसको बेवकूफ बनाया.... आपकी ये पंक्तियाँ सोचने पर मजबूर करती हैं...उत्तम प्रस्तुति..बधाई.
___________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
आज तो दिल खुश कर दिया आपने ..बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आई तो आसपास काफी कुछ अशोभनीय पढने को मिला उसके बीच आपकी ये पोस्ट सुकून सा दे गई आभार.
badi sahi baat kahi Samir sir aapne........:)
waise chakma dene ka kaam dono aur se chalta rahta hai......:)
aap se complain hai, aap mere blog pe barabar tashreef nahi rakhte..:D
पढ़कर चकमित हो गया ... "शादी के पहले माँ को बेवकूफ बना कर और शादी के बाद पत्नी को किन्तु यकीन जानिये वो सिर्फ आपका आत्मविश्वास और सम्मान बरकरार रखने के लिए बेवकूफ बनती है वरना वो पूरी बात तब ही जान चुकी होती है" ... बहुत सटीक बात... बेहतरीन ग़ज़ल ...आभार
... sundar post !!!
बेहद उम्दा ग़ज़ल...
समीर भाई
सुन्दर आलेक एवं सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने.
'यकीन जानिये वो सिर्फ आपका आत्मविश्वास और सम्मान बरकरार रखने के लिए बेवकूफ बनती है वरना वो पूरी बात तब ही जान चुकी होती है जिस वक्त चकमा देने के विचारमात्र आपके दिमाग में जनम लेता है.'
- विजय
आप माँ और पत्नी को चकमा नही दे सकते आप खुद ही चकमित ( ये नया शब्द पसंद आया कुछ समय बाद शायद शब्दों के सफर पर दिखाई दे । ) होते रहते हैं । बहर हाल गज़ल बहुत पसंद आई ।
ye to bus pyar aur sammaan hai jo chakma khaane ko majboor karta hai...
chingari dikha ke basti ko
haath sekne valo sunlo
rakh tumhe bhi hona hai
kab kisi ka hua hai vo
jo tumhari tijori me sona hai
bahut achi kavita hai aapki sameer ji..fan to aapka pahle se tha ab AC ho gaya hu :)
वो ही बात है जी, साड़ी बिच नारी है कि नारी बिच साड़ी है, साड़ी ही की नारी है या नारी ही की साड़ी है........ऐसा ही कुछ था ना जी।
चलो समय पर बता दिया ...नहीं तो किसी दिन पकडे जाए हम भी :)
ग़ज़ल और पोस्ट दोनों चकमित करने वाली प्रस्तुति.......
पति-पत्नी दोनों को अपनी चारित्रिक शुचिता बनाए ऱखते हुए एक दूसरे की वैयक्तिकता का सम्मान करना सीखना चाहिए।
मुझे तो सब कुछ सहज मालूम पड़ता है। यह लुकाछिपी का खेल ही है जो पति-पत्नी को ऊर्जावान बनाए रखता है,वरना तो सब.......
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें आम लोगों में अब रहें क्यूँ ’समीर’
पाल आस्तीं में सांप लें तो चलें -समीर लाल ’समीर’
vaah bahut khuub
भगवान और भारतीय पुलिस के बाद यदि कोई है जो जब तक खुद न चाह ले, आप उससे छिपा कर कुछ नहीं कर सकते, तो वो सिर्फ माँ और पत्नी ही है...
हाँ ...माँ और पत्नी की नजर होती तो है तेज ..वैसे हर स्त्री की ही होती है ..:):)
very good.
darao mat sameer jee
naye ladke man ko to vaise bhi kuch nahin samjhte...shaadi se bhi bhag jayengen
khair gazal me ek baar fir adbhut kar dikhaya hai aapne
bahut bahut aabhar
हमेशा की तरह लाजबाब !
धन्यबाद !
अच्छी प्रस्तुति
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई
बहुत ही बढ़िया. हमेशा की तरह लाजबाब !
जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं
कफन ख़ुद अपना नाप लें तो चलें
ज़बरदस्त...
मिली है पांच साल को कुर्सी
नोट दिन-रात छाप लें तो चलें |
अति सुन्दर......... अभिव्यक्ति ।
बड़े जतन से जिसे आपने सवांरा है।
वो रचना नहीं संस्कारों का पिटारा है।
बधाई स्वीकार कीजिए।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
मिली है पांच साल को कुर्सी
नोट दिन-रात छाप लें तो चलें
hahhahah....sahi farmaya!!!
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सचमुच बहुत अच्छा विश्लेषण किया गया है!
--
मैं आपकी बातों से सौ प्रतिशत सहमत हूँ!
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बाऊ जी, नमस्ते!
बजा फ़रमाया है आपने!
अशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
बहुत सूक्ष्म निरीक्षण है आपका.लगता है कुछ भी निगाहों से बचता नहीं !
बहुत सूक्ष्म निरीक्षण है आपका.लगता है कुछ भी निगाहों से बचता नहीं !
mast likhe ho maalik.....
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