बुधवार, मई 19, 2010

बहता दरिया है शब्दों का!!

जबलपुर प्रवास में शायद ही कोई ऐसा सप्ताह गुजरता हो जब हमारी और बवाल की अकेले महफिल न जमें. फिर लगभग हर दूसरे तीसरे दिन कहीं न कहीं महफिल जमीं रहती, कभी लोक गीतों की, कभी गज़लो की तो कभी कव्वालियों की तो कभी कविताओं की, उसमें तो खैर बवाल और संजय तिवारी ’संजू’ साथ होते ही.

लाल-बवाल बैठक हो और कोई नई गज़ल, नया गीत न उपजे हमारी कलम से और उसमें बवाल का पुट और फिर गीतों को सुर ताल में ढालना न हो बवाल के द्वारा तो फिर कैसी महफिल.

इसीलिए जब भी भारत जाता हूँ और जबलपुर कितने भी दिन रह जाऊँ, कम ही लगता है. अगर कोई दीगर जरुरी काम न हो और रात घिरे तो यह मान ही लिजिये कि कहीं महफिल जमी है.

उन्हीं महफिलों के दौर में यह गीत उपजा था. बवाल ने इसे अपने स्वर में गाया भी बहुत जबरदस्त था लेकिन वो आलसी इतना कि आज तक रिकार्डिंग ही नहीं मुहैया करा पाया.

शुरु से साथ रहा, छोटा है तो मूँह लगा होना तो स्वभाविक है, इसलिए कुछ कह भी नहीं पाते सिवाय आलस्य त्यागने के लिए लताड़ने के सिवाय. जब लताड़ो, उनका क्या: हँस दिये और कहने लगे, जय हो, महाराज!!

आज सोचा कि अब कब तक गायन का इन्तजार किया जाये, जब आयेगा तब फिर से. रीठेल पर कोई रोक तो है नहीं, फिर लगा देंगे. रोक तो किसी बात पर नहीं है, अभी कोई उठ खड़ा हो और इसकी पैरोडी गाने लगे, तब भी कैसी रोक.

आज टहलते हुए राह में..

बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो!!

टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया!
कोई बहरों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया!!

परिहासों की उस बस्ती का,
संजीदा हुक्म बजा लाया!!!
उसने सीखा खाकर ठोकर,
तुम सीख यहाँ यूँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!

ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं!
और सहन-शक्तियाँ भी अब तो,
दुनिया भर से मुँह मोड़ रहीं!!

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
आदर्शों और बलिदानों की,
उसको तो रस्म निभानी है!
हाँ मातृ-मूमि पर न्यौछावर,
होने की वही जवानी है!!

हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!
दिन रोकर काटो या हँसकर,
जो चाहो रीत, यहीं ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!


(इस गीत को जब मैने लिखा था, तभी चार जगह तो बवाल नें कैची चला ही दी थी गाते गाते..अब जब सच में गा कर रिकार्ड करेगा तो जाने क्या निकल कर आये. :))

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106 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!


वाह क्या रचना प्रस्तुत की आपने..सुंदर भावपूर्ण और लयबद्ध भी आपको और बवाल जी दोनो जनों को बधाई ..

M VERMA ने कहा…

ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं!
शायद मज़हब के अब मायने बदल गये हैं. मज़हबों की नींव जहाँ मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिये रखी गयी, अब वही बिलकुल विपरीत सन्दर्भों के लिये इस्तेमाल की जाने लगी हैं.
सुन्दर रचना

Unknown ने कहा…

वाह! सर,
क्या लिखा है अपने.........
शब्द-शब्द कुक्क कहते हैं

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

उनके लेखन शैली से ही आभास मिलता है कि मस्त मौला इंसान है बबाल जी !उम्दा रचना !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो!

बहुत लाजवाब, जबलपुर फ़िर से इन महफ़िलों का इंतजार कर रहा है.

रामराम.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

इतनी खूबसूरत रचना को इतने वक्त तक छुपा कर रखा आपने, मुझे लगता है यह पाठकों और रचना दोनों के साथ अन्याय था।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

sach much, ye dariya kya samndar hai. jo chahemoti chun le. narayan narayan

अजय कुमार ने कहा…

बहुत संजीदा और सार्थक रचना , आभार ।

दिलीप ने कहा…

आदर्शों और बलिदानों की,
उसको तो रस्म निभानी है!
हाँ मातृ-मूमि पर न्यौछावर,
होने की वही जवानी है!! waah sir bahut hi sunda rsandesh mila aapki is kavita se....

Amitraghat ने कहा…

"आत्मीयता से भरी पोस्ट खासतौर पर छोटों के लिये और सुन्दर शब्द रचना...."

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मित्रों की महफिलों में रसात्मकता के अतिरिक्त कुछ निकलता ही नहीं । बड़ी रसीली कविता निकाल कर लाये हैं । यदि बवाल दी अधिक देर करें तो आप ही गा दीजिये या Expression of Interest छपवा दीजिये । इतने सुन्दर शब्द संयोजन को कौन न गायेगा भला ।

Smart Indian ने कहा…

जल्दी सुनाइये. हमने तो बस एक बार उनकी आवाज़ में "रोको इसे ये कौन है सच बोल रहा है..." सूना था और मुरीद हो गए.

गनेश जी बागी ने कहा…

आदरणीय समीर सर,
प्रणाम,
मैने पहली बार आपकी यहाँ पोस्ट की हुई सारी कविताओ को पढ़ा , वाकई बेहतरीन है, बातो बातो मे आपकी कविताये बहुत कुछ कह देती है और पढ़ने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती है, सरल भाषा मे आपकी लिपि कविता को जन मानस तक ले जाते है,बहुत ही सुंदर और ससक्त अभिव्यक्ति है आपकी,एक निवेदन है, यदि आप चाहे तो अपनी कविताओ को मेरे द्वारा संचालित किये जा रहे वेबसाइट www.openbooksonline.com पर भी पोस्ट कर दे ताकि आप की इस बेसकिमती कविताओ और रचनाओ को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य भी पढ़ सके और लाभ उठा सके,
आपका अपना ही
गनेश जी "बागी"
सदस्य प्रबंधन
ओपन बुक्स ऑनलाइन

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत । तालमय लगता है । बवाल ने अच्छा ही गया होगा ।

कडुवासच ने कहा…

... बहुत सुन्दर !!!

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण -अब ऐसे साहित्यकार हैं जिन्हें पन्त और प्रसाद का फर्क पता नहीं और अभिभूत को अविभूत लिखते हैं कहेगें कि यह मराठी रचना है ....हे ईश्वर तूने ऐसी दुनिया बनायी काहे को ?

seema gupta ने कहा…

ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं!
और सहन-शक्तियाँ भी अब तो,
दुनिया भर से मुँह मोड़ रहीं!!
" बहुत कुछ कहते हैं ये शब्द.....इन्तजार रहेगा बवाल जी की आवाज में सुनने का"
regards

राजकुमार ग्वालानी ने कहा…

छत्तीसगढ़ आने का वादा आपने नहीं निभाया
यहां के ब्लागरों को आपने खूब तरसाया

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव,
बवाल जी का ये आलस्य नहीं, उनके अंदर छिपे नवाब का परिचायक है...वो नवाब जो महफिल में जाता है तो वाह-वाह तालियां बजाने के लिए खादिम साथ ले जाता है...ऐसे ही एक बार खुद को खाना खिलाने के लिए भी एक खिदमतग़ार रख लिया...खिदमतग़ार ने पहली बार खाना लाकर रखा और हुज़़ूर की शान में गुस्ताखी न हो, इसलिए रोटी का कौल तोड़कर मुंह में भी डालना शुरू किया...अब खिदमतगार इंतज़ार करने लगा कि कब बवाल जी उस कौल को चबा कर पेट के अंदर करें...जिससे दूसरा कौल खिलाया जा सके...लेकिन ये क्या खिदमतग़ार के गाल पर बवाल जी का करारा झापड़ रसीद हो गया...साथ ही बोले...सा.....कामचोर, खाने के लिए मेरा जबाड़ा तेरा बाप चलाएगा...

जय हिंद...

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

सहेज कर रखने योग्य रचना . वाह वाह वाह

राम त्यागी ने कहा…

लाल - बबाल की रचना ने समा बाँध दिया ...और क्या क्या छुपा रखा है ???
जय मध्यप्रदेश :-)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो!!

टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया!
कोई बहरों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया!!


वाह---!
बहुत ही सुन्दर!
पोस्ट के साथ-साथ रचना बहुत ही बेहतरीन है!

Girish Kumar Billore ने कहा…

जी
जे गुप मीटिंग तो बवाल बताये नहीं गुरु
१.बवाल तो पुराना कैंची बाज़ है
२.गीत ज़बरदस्त है
३.अगले बार गुप्त बैठक मेरे बिना नही होगी
४.बवाल,का एलबम पहली शर्त है, बवाल की ढिलाई अमान्य है
५.कब आ रहे हैं...?
जै राम जी की

kunwarji's ने कहा…

वाह!

यही मार्गदर्शन तो चाहिए आज!

जो चाहेगा वो पायेगा यहाँ से,

किसी के लिए सीख किसी के लिए कहानी होंगे!

आप रचते रहो गीत यूँ ही,

कभी तो लोगो कि जुबानी होंगे,

कुंवर जी,

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही सुन्दर व उम्दा सर जी ।

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

आपका यह जबलपुरिया बबाल तो नायाब है आपकी कविता सरीखा...
एक जबलपुरिया बबाल तो मेरी ज़िन्दगी ही बदल गया...ओशो नाम है, उसका!

anoop joshi ने कहा…

सब्दो का दरिया को अब, नाला बना दिया है.

पहले की मुधुसाला को, अब गोशाला बना दिया है.

अब तो बस समय और वाह-वाही के लिए लिखता है इंसान.

पहले के पात्र को, को अब प्याला बना दिया है.

anoop joshi ने कहा…

sar ab to:-
सब्दो का दरिया को अब, नाला बना दिया है.

पहले की मुधुसाला को, अब गोशाला बना दिया है.

अब तो बस समय और वाह-वाही के लिए लिखता है इंसान.

पहले के पात्र को, को अब प्याला बना दिया है.

Deepak Shukla ने कहा…

समीर भाई...

आपकी कविता ने तो मंत्रमुग्ध कर दिया...


धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो...
वाह...वाह...



दीपक शुक्ल...

www.deepakjyoti.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो!


ये पंक्तियाँ पढते ही लगा कि सच में दरिया बह रहा है....

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो

बेहतरीन पंक्तियाँ है....नफरत दाम चुका कर...कितनी सही बात कही है..

बहुत अच्छी रचना है

माधव( Madhav) ने कहा…

बहुत लाजवाब

दिनेश शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

Awadhesh Pandey ने कहा…

आदर्शों और बलिदानों की,
उसको तो रस्म निभानी है!
हाँ मातृ-मूमि पर न्यौछावर,
होने की वही जवानी है!!

=====
प्रेरणाप्रद. जवाब नहीं आपका.

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

waaah......sur phoot rahe hain isse...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

" धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो! "

बहुत खूब समीर भाई !!

rashmi ravija ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो!

बहुत ही सुन्दर और लयबद्ध रचना...बहुत ही पसंद आई

राजकुमार सोनी ने कहा…

लैसे ग्वालानी जी ठीक ही फरमा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के चरौदा क्षेत्र में तो आपका बचपन बीता ही है। आपको एक बार तो आना ही होगा, यह निवेदन है।
रचना अच्छी है।

SANJEEV RANA ने कहा…

शानदार |
आभार |

Himanshu Pandey ने कहा…

ऐसी लय-तुक वाली कविताएं पढ़ कर खुश होता हूँ यहाँ !
क्या खूब लिखा है आपने-
"हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!.."
आभार ।

shikha varshney ने कहा…

waah waah or waah ..is geet ko to gungunane ka dil karta hai ..
bahut sundar.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रवाहमय गीत. बधाई.

कुमार राधारमण ने कहा…

प्रेम न बाड़ी उपजे,प्रेम न हाट बिकाय। जितनी दुर्लभ उतनी ही सुलभ भी। फ़र्क़ सिर्फ़ देखने का।

Gautam RK ने कहा…

Very True!!




"RAM"

Alpana Verma ने कहा…

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!

भावपूर्ण कविता.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर व सामयिक रचना है...

हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!
दिन रोकर काटो या हँसकर,
जो चाहो रीत, यहीं ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का.... समीर जी वाकई कमाल कर दिया आपने इस रचना में। बहुत बहुत बधाई।
--------
क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।

nilesh mathur ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
वाह! कमाल की पंक्तियाँ है!

pallavi trivedi ने कहा…

टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया!
कोई बहरों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया!!

bahut umda...

Parul kanani ने कहा…

sir ...aap kaise likh lete hai itna sundar........kaise??????????

Unknown ने कहा…

वाह वाह

बहुत खूब !

वाणी गीत ने कहा…

टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया!
कोई बहरों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया.....
टूटे शब्दों और बहर के बिना भी ग़ज़ल ... सजा लेते है लोग

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं...!
यही हो रहा है ...ग़ज़ल पुरानी है मगर आज भी ...फिट है...हिट है

राज भाटिय़ा ने कहा…

बवाल जी से एक दो बार फ़ोन पर बात हुयी ओर दिल खुश हो गया,उन की टिपण्णियां भी कभी कभी पढी.. ओर उन से मिलने को दिल भी करता है, पता नही कुछ लोग क्यो अपने से लगते है,
बाकी आप की रचना बहुत सुंदर लगी.... सच है यह धर्म ओर महजब की बाते हम सब को दुर दुर कर रही है.िस लिये इन पर ज्यादा गोर नही करना चाहिये
धन्यवाद

रंजना ने कहा…

वाह....बहुत ही बेजोड़ रचना...सचमुच इसे सुनना अतिसुखदायी होगा...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया!
कोई बहरों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया ..

समीर भाई ... सच में लाजवाब छन्द हैं पूरी रचना में .... गीत की तरह जब गाएँगे तो सुन कर मज़ा आ जाएगा ... आप और बवाल की जुगलबंदी तो विसे भी मशहूर है .......

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो!!...
लाजवाब मुखड़ा है सर जी,मुझे तो बहुत ही सुंदर लगा,ऐसी लालित्य में डूबी रचनाएँ अब कम ही दिखती है.

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!
दिन रोकर काटो या हँसकर,
जो चाहो रीत, यहीं ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!

वाह सर, कमाल रच दिया है।

आभार।

Gyan Darpan ने कहा…

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो

वाह सुंदर भावपूर्ण रचना

Nitish Raj ने कहा…

समीर जी, वैसे अब तो कई साल हो गए जबलपुर गए हुए। कटनी भी जाना नहीं होता।

हमेशा से ही आपकी लेखनी का कायल रहा हूं....आज फिर दोनों का मिलन एक जगह पर पढ़ कर अच्छा लगा। काफी दिन बाद वापसी की है पर कोई नहीं बदला तो वो रही आपकी स्टाइल।

उसने सीखा खाकर ठोकर,
तुम सीख यहाँ यूँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं!
और सहन-शक्तियाँ भी अब तो,
दुनिया भर से मुँह मोड़ रहीं!!
धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!

खूब, बहुत खूब।

बेनामी ने कहा…

bahut khub sir....
kavita to bahut hi behtareen hai....
kaash main bhi itna achha likh paane mein samarth hota....
phir bhi meri ek chhoti si koshish...
mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/

Girish Kumar Billore ने कहा…

@सम्वेदना के स्वर=>भई जे बवाल रोज़ घुमाता है मुझे कोई ओशो वोशो नहीं एक दम झटके बाज़ आज़ टिप्पणी देख के वादा तो कर दिया कि गुरु जल्द ही रिकार्डिंग कराएगा समीर भाई को बता देना.... सो बता रिया हूं अब लफ़ड़ा किया तो समीर भाई देखना कल्लू ढोलची से ढोल बजवाऊंगा इन बवाल जी के शो में फ़िर देखिये कौन सुन पाता है इनको लोग कल्लू का धमाल ही सुनेंगे और सुनना पड़ेगा हा हा हा

Mahfooz Ali ने कहा…

आदरणीय समीर जी....

सादर नमस्कार...

बवाल जी कि बात ही अलग है... हम लोग भी बरगी डैम पर .... उनकी बहुत शायरी सुनी .... और सब एक से एक.... जीप में तो वो पूरे रस्ते गाते हुए ही नैपियर टाउन तक आये....आपका यह गीत बहत अच्छा लगा.... परसों आपको बहुत कॉल किया .... लेकिन कॉल नहीं उठी..... अब बवाल जी का गाने का इंतज़ार है.....

बवाल ने कहा…

हमारे प्यारे लाल साहब, आपको तो मालूम है कि बवाल के बिना लाल का मन भले ही लग जावे मगर लाल के बिना बवाल कहाँ ? जिसे आलस कह रहे हैं वो अन्यमनस्क भाव है जो आपसे मिल न पाने की वजह से न जाने कैसे घर कर गया है दिल में। नहीं लगता जी यार अकेले अकेले ब्लॉग पर। ये हिन्दू-मुस्लिम के दंगे और बात बेबात के विवादों ने चित्त उचाट कर दिया। पिछले सप्ताह की घटनाओं ने आपकी बहुत बहुत याद दिलाई। न जाने कब लाल-और-बवाल पर वो शेर दर हो गया, "हमक़लम के हर्फ़े-आख़िर"।
आज तो यह पोस्ट पढ़कर बयाँ से बाहर छटपटाहट हो रही है। आपने कह दिया न बस अब देखिए आपकी बात जल्द-अस-जल्द पूरी की जाएगी, गिरीश जी के ब्लॉग पॉड्कास्ट पर इसे रिकॉर्ड करके रिले करते हैं ठीक। मुआफ़ कर देना अब देर न होगी। बवाल ने अपने प्यारे लालाजी की बात कभी टाली है? आँखें नम हो रही हैं सो टाइप करते ही नहीं बन रहा है। आप यूँही समझ जाइए ना।
आपके गीत और हमारी प्रीत की जुगलबंदी सदा ऎसी ही बनी रहे इसी दुआ के साथ।
आपकी इस पोस्ट पर टिप्पणियों के रूप में हम पर जिन्होंने स्नेह बरसाया है उनका बहुत बहुत आभार।

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

नाम ही जब बवाल है
कमाल ही कमाल है

गौतम राजऋषि ने कहा…

"हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं"


..वाह क्या बात है। बवाल भाई तो अपने सचमुच बवाल के ही हैं। और तिस पर आपदोनों की संगत...जो कभी संग बैठ पाऊँ

दीपक 'मशाल' ने कहा…

मस्त गीत.. लेकिन गलत बात रेकॉर्डिंग भी लानी थी सर.. बवाल साब को माफ़ नहीं किया जा सकता.

Girish Kumar Billore ने कहा…

@बवाल तुम्हारी वज़ह से पूरे चार महीने से हलाकान हूं. अपना कौल पूरा करना वरना कयामत के दिन गवाही दूंगा तुम्हारे खिलाफ़ की इस फ़नकार ने चच्चा के इल्म को सीने की तिज़ोरी ज़प्त रखा......
@महफ़ूज़ मियां इधर दिखे हम रोज़ इन्तज़ार...?

डा. अमर कुमार ने कहा…


यह पोस्ट मेरे ई-मेल सदस्यता में क्यों नहीं आयी ?
रही बात शब्दों का दरिया की,
तो इसे प्रमाणपत्र प्रदान करने की हैसियत नहीं,
कि कहूँ ’ उत्तम रचना ! ’
अलबत्ता कुछ लाइनें मुझे भी सूझ रहीं..

वह शब्द ही हैं जो युद्ध छिड़वाते
स्वयँ शब्द ही फिर सँधि करवाते
दरिया कह लो, समझो सैलाब इसे याकि तूफ़ान है
मृत्यु भी परिभाषित इससे औ’ शब्द ही तो प्राण है

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो!

जय हो महाराज! :-)
रिकार्डिंग हो जाए तो बताईयेगा...बवाल जी की आवाज में इस रचना को हम भी सुनना चाहेंगें....

संजय तिवारी ने कहा…

इतने इन से मैं चुप था, आज यह पढ़ते ही आपकी याद में आँख भर आई. कब आ रहे हो चाचा? आपके बिना बहुत सूना लगता हैं. जल्दी आओ.

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

आपके शब्दों के दरिया में उतर कर तन मन भीग गया
बहुत सुन्दर

शेफाली पाण्डे ने कहा…

bahut sundar rachna...

KK Yadav ने कहा…

टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया!
कोई बहरों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया!!

....बहुत सुन्दर समीर जी. बहरों की जगह बहारों कर लें तो और भी उम्दा...
___________
'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!

Akanksha Yadav ने कहा…

बड़ी विलक्षण रचना प्रस्तुत की अपने..बधाई.
____________________________
'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत मजा आया गीत को गुनगुनाकर...

रंजू भाटिया ने कहा…

हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!
दिन रोकर काटो या हँसकर,
जो चाहो रीत, यहीं ले लो

वाह बहुत खूब ....बहुत पसंद आई यह पंक्तियाँ

Unknown ने कहा…

nice

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

मान गए अंकल जी..आप तो खूब लिखते हो. एक कविता मेरे लिए भी आप लिखना, उसे मैं अपने ब्लॉग पर डालूंगी. ठीक है ना...

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

सब का सब सच है समीर भाई का और टिपण्णी में बवाल जी का .
अब तो गीत संगीत और लाल-बवाल की जुगलबंदी का इंतज़ार रहेगा .
- विजय

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, लाजवाब और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बढ़िया लगा!

पंकज मिश्रा ने कहा…

kya kahne. waah. mubarak

पंकज मिश्रा ने कहा…

waah

Manish ने कहा…

पिछले दिनों भी आया था..... लेकिन बड़े माननीयों के बीच लफडा देखकर निकल लिया..... उम्र कितनी भी हो जाए...बचपना थेड़े ही जाता हैं... दूसरे के हाथ में थमा लेमनचूस सब लपकना चाहते हैं......
खैर,
आज आये..... कृष्ण जी को देखे..... कुछ देर महफिल में बैठे..... कैंची तो थी नहीं.....इसलिए मुंह चला रहे हैं..... कि कैंची की क्या जरूरत थी.....इतना अच्छा गीत हैं... :)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi badhiyaa

vijay kumar sappatti ने कहा…

sameer ji , deri se aane ke liye maaafi ... geet ki kya tareef karu main ..is kavita ki sabse badi khaashiyat ye hai ki is kavita me sabkuch hai ... deshbhakti ..prem..zindagi ka nazriya..........dosti ..aur bhi bahut kuch ..kavita ka emotional effect bahut door tak le jaata hai ... aap to ustaad ho , aapki main kya taareef kar sakta hoon .....bas mera pranaam sweekar kariyenga ...
haan.. pichle dino , main ek do din ke liye jabalpur gaya tha .. waha 18th april ke newspapaer me aapke baare me chapa tha ... aapko bahut badhaayi ho ...

aapka
vijay

Amit Sharma ने कहा…

टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया!
कोई बहरों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया!!

बहुत संजीदा और सार्थक रचना , आभार ।

sheetal ने कहा…

Namaskaar
pehli baar aapke blog par aayi hun.
Behta dariyaa hain sabdho ka, tum chando ki kashti lelo.mera dil abhi tak in sabdho ke dariyaa main dol raha.

Neeraj Kumar ने कहा…

जानता हूँ... आप नाराज़ रहा करते हैं की मैं टिप्पणी कर उपस्थिति नहीं दर्ज करता हूँ... लेकिन मैं आप लोगो की रचना पर टिपण्णी करके "छोटा मुंह, बड़ी बात" नहीं करना चाहता...
अब इसी रचना पर मैं क्या कहूँ... वाह कहूँ या आह कहूँ- मुझे तो हिम्मत ही नहीं हो रही... नि:शब्द हूँ, हाँ आपका पाठक हूँ अदना सा ---सम्मोहित हूँ और कुछ कहने से लाचार हूँ...

Rohit Singh ने कहा…

आप के कहे शब्दों में जान न हो..ऐसा हो ही नहीं सकता..अभी आठवें सुर में गाने की कोशिश की....फिर लगा कि सप्तम सुर के गीत को आठवें सुर में गाना उसको अपमानित करना है. सो प्रयास छोड़ दिया...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है, इसे तरन्नुम में सुनने का इंतज़ार रहेगा ...

अवनीश उनियाल 'शाकिर' ने कहा…

धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं!!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
behtareen panktiyan ....

समय चक्र ने कहा…

बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो

सार्थक रचना... आभार

dipayan ने कहा…

"बहता दरिया है शब्दों का.." ने तो मन मोह लिया ।
"या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो! "

बहुत सुन्दर रचना ।
slip disc के कारण, काफी दिनो तक bed rest पर था, इसलिये देर से आया । अब आप सबके आशिर्वाद से बेहतर हूँ ।
हाँ, आपकी इससे पहली रचना भी हर बार की तरह, बहुत खूबसूरत और प्रेणनादायक है।

विजय प्रकाश सिंह ने कहा…

अति सुन्दर रचना , रिकॉर्डिंग का इन्तज़ार रहेगा ।

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

अच्छी रचना.... साधुवाद...

साधवी ने कहा…

हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!

कितनी सुन्दर पंक्क्तियां हैं.

राजेश स्वार्थी ने कहा…

bahut hi sunder geet.

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

बडी लाजवाब रचना है, बहुत धन्यवाद

makrand ने कहा…

सुनने कि बेसब्री से प्रतिक्षा कर रहे हैं, जल्दी सुनवाईये.

आशीष खंडेलवाल ने कहा…

ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं!
और सहन-शक्तियाँ भी अब तो,
दुनिया भर से मुँह मोड़ रहीं!!

बेहद सुंदर शब्द.

हैपी ब्लागिंग

ढपो्रशंख ने कहा…

bahut sundar kavita hai

हर्षिता ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

दिलीप ने कहा…

sir bahut din hue aapke blog par kuch naya padhe intzaar me hain....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यह रचना चर्चा मंच पर ली गयी है ..

http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

itne acchhe rev.milne k bad mujhe nahi lagta ki mere rev.dene ki ya kuchh kahne ki...bas isi bhaav se chali aati hu ki apko apni haziri de saku...aapki lekhni ki prashansa karna to suraj ko diya dikhane wali baat hai. is se aage kya kahu.

Avinash Chandra ने कहा…

daam chuka ke nafrat lelo........waah waah, kamaal likha hai

Kulwant Happy ने कहा…

बवाल जी अब तो गा दो... समीर जी ने प्रचार शुरू कर दिया है, अलबम आते संगीत रिलीज समारोह रखेंगे।