आज सुबह किसी कार्यवश ओकविल (मेरे घर से करीब १०० किमी) जाना हुआ. जिस दफ्तर में काम था, उसके समने ही मेन रोड थी, जिस पर साईड वाक बनने का कार्य जोर शोर से चल रहा था. पूरी मिट्टी के जो ढेर लगाये गये थे, उन्हें बड़ी बड़ी मशीनों से लेवल किया जा रहा था.
दफ्तर से जब काम पूरा करके निकला, तो उस दफ्तर का मालिक भी साथ था. यूँ ही चर्चा में मैने जानना चाहा कि जब यह वाक वे पूरा बन रहा है, तो यह पहाड़ जैसी मिट्टी बीच में क्यूँ छोड़कर दोनों तरफ का काम चालू है, एक लाईन से क्यूँ नहीं करते यह लोग. बेवजह बीच में काम छोड़ कर, गाड़ी दूसरी तरफ ले जाते हैं बार बार, और आगे काम जारी रखते हैं.
तब उसने मुझे थोड़ा पास ले जाकर वो मिट्टी का ढेर दिखाया, जो बीच में लगभग १०० मीटर की जगह घेरा हुआ था. उस पर एक "गूस" महारानी बड़े ठसके से विराजमान थी. बताया गया कि एक रात उसने वहाँ अंड़े दे दिये हैं तो अब जब तक बच्चे नहीं हो जाते, सरकार उतना हिस्सा नहीं छुएगी और बच्चा हो जाने के बाद जब वो चली जायेगी, तब ही उस हिस्से को बनाया जायेगा.
अभी मेन रोड़ की तरफ एक प्लास्टिक की जाली भी लगा दी गई है कि भूल से वो सड़क पर न चली जाये और किसी तेज रफ्तार गाड़ी की चपेट में आ जाये. निर्माण कर्मचारी भी उसे रोज खाने के लिए पॉपकार्न और चिप्स डाल देते हैं ताकि भोजन की तलाश में उसे भटकना न पड़े.
क्या हम कभी ऐसी कल्पना सरकार की तरफ से अपने देश में कर पायेंगे या फिर सिर्फ कागज पर गिनती लगाते रहेंगे कि अब १४११ बाघ बचें हैं?
नीचे चित्र में ये दो गीस (goose (plural: geese)) कल मेरे घर के सामने घास में टहलने आये. पड़ोस में एक छोटा सा तालाब हैं, वहीं रहते हैं. सोचा, आपसे भी मिलवा दूँ.
खैर, यह है मेरी ४०० वीं पोस्ट. बहुत रोचक और दिलचस्प सफर रहा इन ४०० पोस्टों का. टिप्पणी के माध्यम से अब तक लगभग ३५०० लोगों का, अवागमन में लगभग १६४००० लोगों ने और फीडस स्बासक्राईब करने में लगभग ५७० लोगों नें अपना स्नेह और प्रोत्साहन दर्ज किया.
उम्मीद करता हूँ कि आप सबका स्नेह यूँ ही मिलता रहेगा और यह सफर यूँ ही खुशनुमा बना रहेगा.
पिछली बार जो गज़ल साधना की आवाज में आपको सुनवाई थी, उसमें जैसा मैने कहा था तीन शेर किसी और के थे और तीन मेरे. अब फिर से वही गज़ल मगर इस बार इसमें सारे शेर मेरे ही हैं और आवाज साधना की. इस चौथे शतक के मौके पर लुत्फ उठाईये.
जाने क्या बात है जो तुमसे बदल जाती है
जिन्दगी मौत के साये से निकल जाती है
नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है
देख तो आज के मौसम का नजारा क्या है
ये तबियत भी हमारी तो मचल जाती है
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है.
जब भी होता है दीदार तेरा साहिल पर
डूबी कश्ति मेरी किस्मत की संभल जाती है.
बात करने का सलीका जो सिखाया हमको
बात ही बात में नई बात निकल जाती है.
दास्तां प्यार की तुमको ही सुनाई है ’समीर’
दर्द के देश में यह बन के गज़ल जाती है.
-समीर लाल ’समीर’
यहाँ क्लिक करके सुनिये:
136 टिप्पणियां:
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई , शुभकामनाएँ :)
400 पोस्ट का सफर -- बधाई
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
शानदार गजल
देख तो आज के मौसम का नजारा क्या है
ये तबियत भी हमारी तो मचल जाती है
waah, ji waah, Upar se narm-narm haatho se mithaai kaa swaad bhee, aji lakh-lakh badhaaiyaan !
badhaai
Badhaiiiiiiiiiiiiiii... gazal bhi khoobsoorat aur Ma'am ne gaya bhi sundar hai.. geese ghar ke saamne?? ye bhi kamaal.. :)
समीर जी, 400 वीं पोस्ट के ऊपर हमारी मुबारकबाद कबूल कीजिये
ये सफर, 4 हजारवीं पोस्ट, बल्कि 4 लाख वीं पोस्ट तक यूही चलता रहे
और हम भी आपके सफर में हमसफर बने रहें
अभी तक तो आप डॉन थे ( मुझको पह्चान लो) अब चार शतक लगाकर डॉन ब्रैडमैन बन गए. गद्य मासूमियत की इंतिहाँ है और पद्य उत्कृष्टता की... मुबारक़ !!
आप ब्लॉगजगत के सचीन तेंदुलकर बनते जा रहे हैं, उम्मीद है शतकों का दौर जारी रहेगा:)
गीज़ वाली बात दिल को छू लेने वाली है। आपने बहुत अच्छे ढ्ंग से इसे प्रेरक बनाया है।
कविता तो अद्भूत बन पड़ा है-
जब भी होता है दीदार तेरा साहिल पर
डूबी कश्ति मेरी किस्मत की संभल जाती है.
४०० वी पोस्ट के लिए ढेरों बधाइयां साथ ही इस उम्दा रचना के लिए भी धन्यवाद /
समीर जी, 400 वीं पोस्ट के ऊपर हमारी मुबारकबाद कबूल कीजिये
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें ...
यहाँ रोड के नाम पर हरे भरे पेड़ों का सफाया हो जाता है
कितने हजार घोसले उजड़ जाते हैं ,चिड़िया चुनमुन बेघर हो मर बिला जाते हैं .
गूस महारानी चलाती ही हैं ठसक के साथ ....
अच्छी गजल तरन्नुम में ....
जब भी होता है दीदार तेरा साहिल पर
डूबी कश्ति मेरी किस्मत की संभल जाती है....
किस्मत की कश्तियाँ यूँ ही संभलती रहे ...
400वी पोस्ट की हार्दिक बधाई ...और 4000वी की अग्रिम शुभकामनायें !!
४००वी पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई समीरजी ! आपका यश दिग्दिगंत में इसी तरह विस्तीर्ण होता रहे यही शुभकामना है ! गज़ल बहुत सुन्दर है ! साधनाजी की मधुर आवाज़ ने उसमें चार चाँद और लगा दिए हैं ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
बहुत बहुत बधाई!
जब भी होता है दीदार तेरा साहिल पर
डूबी कश्ति मेरी किस्मत की संभल जाती है.
...bahut sundar sher/gajal ... badhaai va shubhakaamanaayen
कथनी और करनी में फर्क है।
चौथे शतक की बधाई।
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई,
हमारे लिए मिठाई फ़ैक्स से ही भेज दें भाई
शुगर फ़्री चाहिए।
जय हिंद
जितेंद्र भगत ने कहा...आप ब्लॉगजगत के सचिन तेंदुलकर बनते जा रहे हैं, उम्मीद है शतकों का दौर जारी रहेगा:)
मैं कहता हूं...सचिन तेंदुलकर क्रिकेट जगत के समीर लाल समीर बनते जा रहे हैं...
समीर जी की गज़ल, साधना भाभी की आवाज़, क्या बढ़िया आगाज़ है आज की सुबह का...
गुरुदेव टिप्पणियों के आंकड़े में मुझे एक शून्य छूट गया लगता है...
जय हिंद...
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है.
बहुत प्यारी पंक्तियाँ हैं समीर भाई। बधाई एवं शुभकामनाएं।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
समीर जी हमारे देशवासियों को दोषारोपण करने की ऐसी आदत पड़ गई है कि दूसरे देशों की अच्छाई दिखाई नही देती अगर दिखाई देती होती तो शायद जंगल के राजाओं की संख्या इतनी कम नही होती.. ..बढ़िया वैचारिक प्रसंग..
दूसरी बात बहुत ही खुशी का पल है आपकी ४०० पोस्ट आज पूरी हुई हमारे ओर से आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ कि निरंतर आप ऐसे ही ब्लॉगजगत में प्रगति के पथ पर अग्रसर होते जाए और अपने सुंदर विचारों और भावों से लोगो को लाभान्वित करें और मातृभाषा हिन्दी के प्रचार और प्रसार में और योगदान दे.
आपकी लिखी ग़ज़लें हमेशा से मेरी पसंद रही है..यह भी बेहतरीन....
बात करने का सलीका जो सिखाया हमको
बात ही बात में नई बात निकल जाती है.
बढ़िया ग़ज़ल के लिए भी बधाई!!!
.'गूज ' और उसके अण्डों के लिए इतना सम्वेदनशील होना और उसकी सुरक्षा के लिए इतना सब कुछ करना अपने आप में एक बेमिसाल मिसाल है.बेहद सुखद लग रहा है मुझे ये सब पढ़ कर
हमारे देश में????
इंसान के बच्चों को सड़कों और कचरे के ढेरों पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, तो फिर एक पक्षी के लिए??????
चिड़िया घरों में तक उनकी केअर नही होती ,सड़क पर घायल एक पक्षी के लिए ??????
बहुत पीड़ा होती है.
स्कूल जाते हुए रस्ते में मुझे एक घायल मैना मिली मैंने स्कूटी रोक कर उसे उठाया पास के घर से कोटन ले के उसके जख्म को पोंछा ,दवा लगाई .......
तब तक लेट हो गई.संयोग से अधिकारी स्कूल पहुँच चुके थे 'मेडम! आप लेट?'
मैंने मैना को अपनी झोली में से निकाला और कहा -'इसे डाटीए,घायल मिली.चाहे तो सी.एल. लगा दीजिए ,इसे छोड़ कर कैसे आ जाती?अपने बच्चों को पढाती हूँ 'दया करने,मदद करने का पाठ और...??????'
मेरे अपने बच्चे और स्टुडेंट्स जीवों पर दया करना सीख चुके हैं.
यकीन मानेंगे एक दिन एक घायल बड़ा सा 'उल्लू ' उड़ता हुआ सीधा मेरी टेबल पर आ कर बैठ गया ,उस समय में ऑफिस में बैठी कुछ रिटन-वर्क' कर रही थी.उल्लू की साइज़ देख कर एक बार तो डर गई ,सब टीचर्स चिल्लाने लगे इसके हाथ मत लगाइए नोच लेगा,पर.........
बचाने का बहुत प्रयास किया.वो नही बचा,तीन चार दिन जिन्दा रहा वहीं एक ताक में चुपचाप बैठा रहता था .मेरे आते ही पास आ जाता था,बच्चे कीड़े मकोड़े पकड़ लाते उसे खिलाते .
किसी चूजे की तरह वो शांत, प्यारा सा रहा.
............................................
मन में शांति थी कि मैंने बचाने का प्रयास किया. वेटनरी डॉक्टर्स से पूछा कि '-क्या करूं ,कैसे करूं?' तो उनका जवाब था' उल्लू के बारे में नही मालूम मेडम '
नेट पर सर्च किया और उसी के अनुसार पूरे स्कूल के स्टाफ और बच्चों ने उसकी सेवा की .
जिसे मालूम पड़ा उसने इसे मेरी 'मूर्खता' बताया .
दादा! हमारी असंवेदनशीलता का ही परिणाम है कि आज गिद्ध,कौए ,तितलियाँ देखने को नही मिलते और एक दिन ये किताबों के पन्नों में ही सिमटकर रह जायेंगे .
हम स्वयम इनके लिए सम्वेदनशील बने और बच्चों को भी बनाएँ तब शायद कुछ हो सकता है.
हर काम 'सरकार' के भरोसे तो नही छोड़ा जा सकता न ?
क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नही?
हम धर्म को पढना पढाना सिखाते हैं जीना नही,जिस दिन वो कर लेंगे 'गीज़' ही नही 'इंसानों' के बच्चे भी नालियों में पड़े हुए नही पाए जायेंगे.
आपने विचलित कर दिया आज सुबह सुबह .
सलाम ऐसे देश को ,सलाम ऐसे लोगों को और उसे जो आप में अभी भी जिन्दा है.आप अच्छे कवि हैं ,प्रसिद्ध ब्लोगर हैं उससे ज्यादा मैं आपके 'इस' रूप को पसंद करती हूँ और उसे सम्मान देती हूँ.
ओह ! गज़ल तो मैंने ना पढ़ी ना सुनी .
स्कूल जा कर आ जाऊं फिर आराम से,फुर्सत से सुनूंगी.बिना पढे सुने तो कैसे कह दूँ 'दिल को छू गई'
हा हा हा
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई , शुभकामनाएँ!
नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है
sabse pahle chauthe shatak ki badhai. is baar ka kissa bahut jama. bharat sarkar ko bheje jane ki zarurat hai. par jahaan insaan ki zindgi ka koi mol nahi wahaan ek goos ke liye itna kaun kare....
४०० वीं पोस्ट की बधाई!
४०० वीं पोस्ट के लिये बधाई आपको,
पर मन में अब यही आ रहा है पता नहीं आप कौन से परी देस में रहते हैं जहाँ सरकार इतनी संवेदनशील है, अपन यहाँ भारत में होता तो कब का अलग करके सड़क का काम शुरु कर दिया होता। और आप सोच रहे हैं कि वापिस भारत में आकर सेवानिवृत्त जिंदगी गुजारने की। मेरे ख्याल से तो बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि जब आप जिंदगी के बहुत अच्छे दिन देख चुके होते हैं तो वापिस घर आना सुखद जरुर होता है पर वह सुख कुछ ही दिनों का रह जाता है, फ़िर रोज केवल इस प्रकार के छोटे बड़े दर्द देखते हुए जीवनकाल बीत जाता है।
अच्छा तो खूब मज़ा किया जा रहा है मिठाई-शिठाई खा कर ...
फैक्स कोरियर से भी भेजा जा रहा है...हम ईहाँ बैठे हैं...कोई पूछ नहीं रहा है...
ठीक है ...हमरा भी दिन आवेगा....
हाँ नहीं तो...!!
शानदार गजल...
साधनाजी की मधुर आवाज़ ने उसमें चार चाँद और लगा दिए हैं !
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है.
badhiyaa
aapko bahut bahut badhai
aap se bahut kuchh seekhna hai mujhe
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
.
.
.
आदरणीय समीर जी,
पोस्टों के चौथे शतक के लिये बधाई!
क्या बात है! वैसे आपके यहाँ के कृष्णहंस आजकल हमारे यहाँ भी डेरा डाले हुए हैं. कभी पूरा परिवार एक कतार बनाकर सड़क पार करता है तो दोनों और का ट्रैफिक रुक जाता है.
400 वीं पोस्ट के लिए बधाई!
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है
" बेहद खुबसूरत ग़ज़ल, ४०० वी पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई , और गीस से मिलकर भी बहुत अच्छा लगा , इनके अन्डो की सुरक्षा के लिए जो सरकार ने किया वो सराहनीय है....."
regards
गूस और ग़ज़ल दोनों ही मस्त हैं ! :-)
चतुर्शतक की शुभकामनायें ।
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है ।
आपकी पर यथावत बनी रहे । ब्लॉगार्थ व सुखार्थ ।
समीर सर,
पोस्ट के लिये डबल बधाई।
४००वीं पोस्ट की बधाई बाद में, उससे पहले इतने विविध रंग समेटे खूबसूरत पोस्ट की तारीफ़ करने का मन करता है(कर चुके हैं मन ही मन - आप समझ ही जायेंगे, ऊपर से नीचे का सब दिखाई दे जाता है न)।
शायद संयोग ही है कि दो दिन पहले अनुराग शर्मा जी अपने अनुभव शेयर कर रहे थे, और सेंटीमेंट्स लगभग एक जैसे थे\हैं आप दोनों के। बाहर के देशों में अनुकरणीय भी बहुत कुछ है, लेकिन हम इधर के लोग इन बातों के अलावा बाकी सब कुछ सीख जाते हैं। अब कोफ़्त होने लगी है, अपने देश की व्यवस्था से, लेकिन हमारे पास कोई ऑप्शन नहीं है यहां रहने के अलावा। हां, दिल बहलाने के लिये ही सही, हालात सुधरने की आशा नहीं छोड़ सकते। हम नहीं देख पायेंगे तो न सही, लेकिन कभी न कभी सुधार आयेगा जरूर।
ऐसे उदाहरणों से एक बेंचमार्क तो बनता ही है।
बहुत बहुत आभार स्वीकार करें।
bahut badhayi sir...bhavishya ke liye shubhkamnayein.....gazal bahut hi achchi hai...
मेरी शुभकामनाएँ है आपकी पोस्ट यूँ ही अविराम चलता रहे | बधाई खुबसूरत ,हृदयस्पर्शी ग़जल के लिए |
400वीं पोस्ट के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
पोस्ट के साथ-साथ कविता पढ़ और सुन कर बहुत आनन्द आ गया!
हिन्दुस्तान में ऐसी जगह पर कोई ‘महारानी’ अण्डे देती ही नहीं।
बात करने का सलीका जो सिखाया हमको
बात ही बात में नई बात निकल जाती है.
दास्तां प्यार की तुमको ही सुनाई है ’समीर’
दर्द के देश में यह बन के गज़ल जाती है.
बहुत सुन्दर..400 वीं पोस्ट की हार्दिक बधाइयाँ. आप यूँ ही ब्लॉग जगत में उन्नति के पथ पर अग्रसर हों.
400 वीं पोस्ट लिख डाली सबसे अच्छे वाले अंकल जी ने..अब तो मिठाई खिलानी ही पड़ेगी !!
मान गए समीर जी आपको..अब तो आप ब्लॉग जगत के बड़के गुरु बन गए हैं. अब 400 के बाद सीधा 4000 का इंतजार रहेगा. फर्क तो सिर्फ एक शून्य का ही है, पर फासला काफी बड़ा है. आपकी इस सफलता पर आपको सपरिवार शुभकामनायें !
400........बधाई हो। आप यूँ ही लिखते रहें। शुभकामनाएं।
ब्लॉग-जीवन का एक लम्बा सफ़र अपने पूरा किया. आपको इस अवसर पर ढेरों शुभकामनायें. ग़ज़ल के तो क्या कहने..बहुत खूब.
_________________
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com
लोग चौका लगाते हैं अपने तो पूरे 400 मार दिए. डाकिया बाबू की तरफ से बधाई ही बधाई.
अजी लीजिये बधाई
और खिलाइए मिठाई.
आपकी यह यात्रा यूँ ही अविरल सुखद रूप में चलती रहे. शानदार ग़ज़ल की बधाई और 400 का आंकड़ा छूने पर हार्दिक बधाई.
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई , शुभकामनाएँ
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है.
अच्छी गजल..........
1. 400वीं पोस्ट पर आपके रचनाकर्म को सादर प्रणाम.
2. मानवीय संवेदनाएं बहुत सुदर व महत्वपूर्ण हैं यदि इन्हें प्रफुल्लित होने दिया जाए.
3. आपकी यह ग़ज़ल भी अत्यंत प्रभावशाली है, बांटने के लिए धन्यवाद.
400 पोस्ट का सफर -- बहुत बहुत बधाई !!
बड़ा आत्मीय पोस्ट है, दोनों ही सरकार(सरकार और श्रीमती) को बधाई! उस 570 फीड में एक मेरा भी है. आज बता दिए आपको.
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
दास्तां प्यार की तुमको ही सुनाई है ’समीर’
दर्द के देश में यह बन के गज़ल जाती है
बहुत ख़ूब बड्डे। क्या पढ़ा है भाई। अहा !
गीस के बारे में जानकर सुखद लगा।
४०० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई हो।
100वीं पोस्ट के लिए बधाई समीर जी।
...और हाँ, वो मिठाई-शिटाई वाली लाइन में अपन भी है न। भुलिएगा नहीं।
Aankhen kholne wala aalekh!Koyi Dr. Saalim Ali jaisa phir paida ho jaye to shayad sarkarko jhakjhor sake..
400 vi post ki tahe dilse badhayi!
Gazal ke bareme kya likhun?Maryadit alfaaz dhokha de jate hain..
Badhai 400 post ki,
chala rahe yah safar yun hi...
भारत में तो कब के हटा कर फेंक दिये गये होते .. यहीं ढोंग पता चलता है हम झूठे लोगों का.. भारत के कथित नैतिक लोगों का..
गीसों से मिलवाया , नीक लगा !
४००-वीं पोस्ट पर आपने परफार्मेंस का जो नजारा
प्रस्तुत किया है की लगता है कि आप ब्लॉग जगत की
अक्षौहिणी सेना के मालिक हैं ----- :)
इस दुर्जेय उपलब्धि पर मेरी तरफ से ढ़ेर सारी शुभकामनाएं !
@ कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है.
------- कवि महराज ! कुछ कंसिस्टेंट भी रहिये ! इतना भी क्या !
--------------- आभार !
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई , शुभकामनाएँ , वैसे जो सवाल आपने अपनी ४०० वी पोस्ट में उठाया है वो गौर के लायक है , वैसे गुज को हिन्दी में क्या कहते है ? क्या वो इंडिया में भी मिलते है ? अगर मिलते है तो कहाँ ?
http://madhavrai.blogspot.com/
इंसान के लिए नहीं करते सब इतना
पक्षियों के लिए किया जा रहा जितना
इसे मुहिम को आगे बढ़ना चाहिए
दिल में इसका कानूना बनना चाहिए
जितने आंकड़े दिए हैं आपने
उन्हें और लुभावना बनाइये
उन सबके हिन्दी में ब्लॉग
नहीं हैं जिनके ब्लॉग,खुलवाइये
समीर जी, सबसे पहले तो 400 वी पोस्ट के लिए मेरी बधाई स्वीकार करे. उसके पश्चात साधना जी की मधुर आवाज में जबरदस्त कविता सुनने को मिली एक पल के लिए लगा की दिल गार्डन-गार्डन हो गया. बहुत-बहुत धन्यवाद. समय मिले तो मेरी गुफ्तगू में शामिल होते रहा करो. आपका मार्गदर्शन आपेक्षित है.
www.gooftgu.blogspot.com
मानवीयता एक स्वाभाविक गुण हैं जो मानव के अन्दर जोर मारता हैं पर सांसारिक बंधन उसका प्रवाह रोक देते हैं, बहुत अच्छा लगता हैं जब मानवीयता के दर्शन होते हैं तो......
खैर समीर अंकल.....आप तो ब्रायन लारा सरीखे हो गये अब......४०० पोस्ट बना कर.....बहुत बहुत बधाई.......और साधना आंटी की आवाज में गज़ल सुनवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.......दो शेर बहुत अच्छे लगे
"400 सी वी पोस्ट के लिये बधाई । आप सब से पहले आते हर ब्लोग पर आपका शुक्रिया। हम भी आपके लिये कुछ करना चाहते हैं..पर फिलहाल आपको बधाई अपना आशीर्वाद बनाए रखें सभी ब्लोगों पर..."
वाकई सोचने वाली बात है, यहाँ तो इंसान भी मर रहा हो तो उसको भी हटा दिया जाता है,
दास्तां प्यार की तुमको ही सुनाई है ’समीर’
दर्द के देश में यह बन के गज़ल जाती है.
ग़ज़ल बहुत सुन्दर लगी!
४०० वी पोस्ट के लिए बधाई और ढेर सारी शुभकामना!
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई ,हार्दिक शुभकामनाएँ!
"बात करने का सलीका जो सिखाया हमको,
बात ही बात में नई बात निकल जाती है|"
क्या बात है बहुत खूब !!
सब से पहले तो आप को ४०० वी पोस्ट के लिये बधाई, बाकी मजा आ गया बाघ की फ़िक्र को देख कर. धन्यवाद
बधाई समीर जी। इतने सुंदर विषय के साथ आपने 400 वीं पोस्ट लिखी। किसी ने सही लिखा है कि आप डान से डानब्रेडमेन होगए हैं। शायद मेरी भी यह आपकी इस पोस्ट पर 50 वीं टिप्पणी हो।
400 पोस्ट का सफर -- बधाई
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
कमाल का शेर है ....
सच कहा आपने समीर जी हमारे यहाँ बातें सिर्फ कागजों पर होती हैं ...
अपने दिल के हस्ती तो आपके लिखे को पढ़ कर के ही बहल जाती है | इस ४०० के अंक के ओर बिंदिया लगती जाए और आप मुबारकबाद कबूल करते जाए | यही कामना है |
400 वीं पोस्ट के लिए बधाई....
यहाँ सरकार से इंसान के बच्चों को संरक्षण नहीं है आप परिंदों की बात करते हैं....
ग़ज़ल लाजवाब है...और स्वर बहुत खूब....
यहां ऐसे किसी पक्षी ने अण्डे दिये होते तो किसी कर्मचारी का ही ब्रेकफास्ट बन गये होते।
400वीं पोस्ट के लिये शुभकामनायें
प्रणाम स्वीकार करें
बधाइयाँ। 400 की और ग़ज़ल की।
बहुत डाइकॉटमी (dichotomy) है पश्चिम में। जाने कितने जीव मार डाले जाते हैं मानव की क्षुधा के लिये। और एक बतख की कहानी बन जाती है।
ऐसी डाइकॉटमी भारत में भी बढ़ती जा रही है। लोग क्रूरता को ऐसी मानवीय कथाओं से ढंकने लगे हैं उत्तरोत्तर!
आपको बधाई चार शतक की।
बताया गया कि एक रात उसने वहाँ अंड़े दे दिये हैं तो अब जब तक बच्चे नहीं हो जाते, सरकार उतना हिस्सा नहीं छुएगी और बच्चा हो जाने के बाद जब वो चली जायेगी, तब ही उस हिस्से को बनाया जायेगा.
............और यहां इन्सानों की बस्तियां भी रौंद दी जाती हैं.....
४०० वीं पोस्ट पर अनेक शुभकामनायें. आपकी पोस्टों का सफ़र यूं ही हमें लाभान्वित करता रहे.
कौन बनेगा करोड़(टिप्पणी)पति का अगला प्रश्न ये रहा सभी पाठकों की Computer screen पर :
१०) Which one is the toughest and most remarkable century of the following....
a) 100 : 20-20 WC: Raina
b) 200 : Oneday : Sachin tendulkar
c) 300 : Test : Sahwag
d) 400 : Blogjagat : Sameerlal ji
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई ..विश्वास है की ये सफर यूँ ही जारी रहेगा ...वैसे ३५०० टिप्पणी और लाखों आवागमन के साथ कुछ गिनती हम जैसे लोगों की भी है जो गूगल रीडर लिस्ट से सबको पढते रहते हैं पर किसी को नज़र नहीं आते ....
एक बार फिर से ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ .... शोभित जैन
४०० वी पोस्ट के लिए ढेरों बधाइयां
ग़ज़ल बहुत ही सुमधुर स्वर में है...और रचना तो है ही उम्दा...शुभकामनाएं
aap to harfanmaulaa hai bhai. achchhe-achchhe sher bhi kahate hai. isee tarah udate rahe. badhai.
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
bahut achha likha hai. 400 vi post ki dher sari badhaiyan.
४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई और शुभकामनाएँ।
नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है
अब क्या कहूँ इसके बारे में…………………।दिल में उतरती चली गयी।
बात करने का सलीका जो सिखाया हमको
बात ही बात में नई बात निकल जाती है.
दास्तां प्यार की तुमको ही सुनाई है ’समीर’
दर्द के देश में यह बन के गज़ल जाती है
bahut hi khoobsurat gazal ,dil ko chhoo gayi badhai .
सरस.............
बधाई !
४०० वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई - ग़ज़ल तो क्या कहने
"कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है."
आपने पशु पक्षियों के लिए जो बात कही वह बहुत जरुरी है ....काश हमारी सरकार इतनी सवेदनशील होती , ......
'नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है'
.........बहुत वजनी शेर .....आपको 400 पोस्ट पूरा होने की बहुत बहुत बधाई ।
४०० वी पोस्ट के लिए हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें ! इस तरह आपका शानदार पोस्ट हम पढ़ते रहें और जल्द ही ५०० पोस्ट पूरा हो !
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब!
सबसे पहले ४०० वीं पोस्ट के लिये बधाईयां!!
दूसारी अहम बात ये कि साधनाजी का नज़्म पढना, वह भी तरन्नुम में दिली सुकूं दे गया.
एक तो बढियां गज़ल, उसपर उम्दा धुन, और उस पर सुरीला गायन, वाह वाह!
कभी ज़रूरत हो तो इसके पीछे थोडा सा तानपुरा या वाएब्रोफ़ोन लगाया जा सकता है.
अगली बार सही!
सबसे पहले तो ४०० वीं पोस्ट के लिए ढेरों बधाइयाँ !
फिर आते हैं आपके "गुस" वाले वाकया पर ... ये सच है कि भारत में ऐसी बात तो हम सोच भी नहीं सकते हैं ... ये बातें सीखने लायक है !
आपकी ग़ज़ल तो सचमें कमाल है ...
नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है
वाह क्या कहने ...!
dil ko chhu gayi aapki gazel..aur badhayi 400v post par.
४०० वीं पोस्ट की बहुत बधाई. गजल बहुत अच्छी लगी.
आपको चौथे शतक के लिए बधाई. साधना जी का गायन सुन्दर लगा.
आप थकते नहीं हैं का...कमाल का स्टामिना है...भगवान आपका जोस अऊर जुनून बनाए रखे!! बधाई हो बधाई!!!
4०० पोस्ट्स का लम्बा सफ़र तय करने पर हार्दिक बधाई।
गूज --ओह यहाँ तो ऐसा तभी होता है जब कोई सड़क पर मंदिर बना लेता है । फिर किस की मजाल जो हटा दे।
ग़ज़ल का एक एक शेर लाज़वाब ।
साधना जी ने भी बड़ी खूबसूरती से गाया है ।
आदरणीय समीर जी,
यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी.... चार सौवीं पोस्ट की आपको बहुत बधाई ..... अच्छा! यह कैसे पता चलता है कि कितने लोग आये.... और कितनों ने सबस्क्राइब किया? ग़ज़ल के तो क्या कहने.....अंतिम शे'र ने तो दिल छू लिया....
आज एक बहुत बड़ी गलती हो गई है.... पता नहीं कैसे... अनजाने में....
सादर
आपका
महफूज़...
गुरुदेव... बधाई हो.
क्या बात है...
हमारी सरकारें...पंछियों के बच्चे बड़े होने तक तो क्या..इंसानों के बच्चे बड़े होने तक नहीं रुक सकती। वो बात अलग है कि एक छोटी सी रोड़ को बनने में सालों लग जाते हैं...वो रोड़ तक पूरी होती है..जब उसका बजट तय कीए बजट से दस बीस गुना ज्यादा न हो जाए।
हमारी सरकारें...पंछियों के बच्चे बड़े होने तक तो क्या..इंसानों के बच्चे बड़े होने तक नहीं रुक सकती। वो बात अलग है कि एक छोटी सी रोड़ को बनने में सालों लग जाते हैं...वो रोड़ तक पूरी होती है..जब उसका बजट तय कीए बजट से दस बीस गुना ज्यादा न हो जाए।
बधाई बधाई ....बहुत बहुत बधाई ..तहेदिल से
आप हिंदी ब्लॉग्गिंग के स्तम्भ हो और इसी तरह निरपेक्ष भाव से लगे रहिये ..बजबजाते रहो..ब्लोग्गते रहो. हम जैसे लोगो को प्रोत्साहित करते रहो :)
गजल और गूज दोनों ही फिट होती है ४०० वें सस्मरण में ... टोरंटो आ सकता हूँ जून में ...अगर आया तो जरूर धमकुंगा आपके दर पर.
बहुते ही खूबसूरत गजल लिखे हो समीर बाबु...
पञ्च सौवी पोस्ट पे बधाई...
चच्चा, बधाई हो. पार्टी कब हो रही है?
सफर के इस पड़ाव तक पहुंचने के लिये शुभकामनाएं.... प्यारी सी गजल के लिये धन्यवाद
भारत की सरकार का सीमें कोई दोष नहीं है
बात है आदमी की मानसिकता की जो भी काम किया गया वो उन मजदूरों ने किया या इंजिनियर ने निर्णय लिया कि काम को कुछ दिन के लिए टाल दिया जाए
भारत में क्या होता है ये मुझे बताने की कोई जरूरत नहीं ...
४००वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई
गजल भी पसंद आई
और आपकी गजल तो हमें वैसे भी पसंद आती है
नई हो या पुरानी
जैसे आपकी ये पुरानी गजल मुझे बहुत पसंद है
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शब्द मोती से पिरोकर, गीत गढ़ता रह गया.
पी मिलन की आस में, लेकिन बिछुड़ता रह गया.
शेर उसने जो लिखे, दिल को थामें हाथ में
काम सारे छोड़ कर, मैं उनको पढ़ता रह गया.
धर्म का ले नाम चलती है यहाँ पर जो हवा
पेड़ उसमें एक मैं, जड़ से उखड़ता रह गया.
फैल करके सो सकूँ मैं, वो जगह हासिल नहीं
ठंड का बस नाम लेकर, मैं सिकुड़ता रह गया.
घूमता फिरता फिरा पर कुछ हुआ हासिल नहीं
प्यार पाने को समीरा, बस तड़पता रह गया.
- वीनस
४०० वीं पोस्ट के लिए बहुत बधाई .
मै पहली बार यहाँ आया हूँ, आकर बहुत अच्छा लगा, गज़ल बहुत ही खूबसूरत है और सादगी के साथ बहुत अच्छे अल्फाज़ो मे दिल को छूती है.
बधाई स्वीकारें 400 वीं पोस्ट की , लारा के रिकार्ड की बराबरी कर ली आपने । गजल के लिए शुक्रिया ।
बधाई ! बाकी गूस पर क्या कहें अभी एक ब्लॉग पर बम स्क्वाड की फोटू देख कर आ रहे हैं. अमेरिका बनाम भारत.
नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है
badhai sir ji.
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है.
behad sunder sher,400 vi post ke bahut bahut badhai.ye safar ,ye karwan yuhi chalta rahe ye dua.
क्या बात है समीर जी , बधाई । आपसे मुझे प्रेरणा और ऊर्जा मिलती है लिखते रहने की। शानदार गजल ।
जाने क्या बात है जो तुमसे बदल जाती है
जिन्दगी मौत के साये से निकल जाती है
waah! waah! waah!
behad khubsurat ghazal!
har sher baut achcha laga.
Sadhna ji ki awaaz men ise sunNa bhi bahut pasand aaya.
Bahut bahut badhaayeeyan!
aur shubhkamanyen jaldi 500 post bhi poori hon!
चार सौ वीं पोस्ट की बधाई। मिठाई खाते हुये आपकी मुंदी आँखें देखकर आपकी प्रसन्नता और आनन्द का आभास हो रहा है।
गजल बेहतरीन है।
बड़ा गजब का जूनून है समीर जी...दुआ करता हूँ कम से कम चार सौ प्रतिक्रियाओं के लिए...आपके इस पोस्ट पे. आपके इस पोस्ट को देख के सोंचा अपना गिनुं तो पता चला कि दो सौ अडतीस तो जनाब के भी हो चुके हैं...तो दे दी अपनी पीठ पे भी थाप...फिर कैलकुलेट किया कि किस रेट से पोस्ट डाली जाए तो अपन ५०० वीं पोस्ट साथ में लिख सकते हैं...फिर कैलकुलेट नहीं हो पाया क्यूंकि एक हीं इक्वेशन में दो वरिएबल है तो वैल्यू कैसे निकलेगा, माने कि आप किस रेट पे लिखोगे, ये भी तो पता होना चाहिए...
फिर दिमाग में कुछ ज्यादा उथल पुथल हो गयी तो दिमाग ने झल्ला के कहा...छड्ड यार !
नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
क्या बात है भाई .... कमाल के शेर कहे हैं ... और हाँ .... बधाई हो ४०० वीं पोस्ट पर !
वाह समीर भाई .... पूरा चिट्ठा लिख दिया .... बहुत बहुत बधाई ...
और ग़ज़ल की तो क्या कहने ... साधना भाभी की आवाज़ भी ग़ज़ब ढा रही है .... इतनी अच्छी आवाज़ .. अनिता पास बैठी है और कह रही है छुपा क्यों रखा था अब तक ...
समीर जी, ४०० वी पोस्ट की हार्दिक शुभकामनाएँ..!
दास्तां प्यार की तुमको ही सुनाई है ’समीर’
दर्द के देश में यह बन के गज़ल जाती है.
Sunder .
Aapki post aur gajal dono hee pasand aaye.
400 wi post par bahut badhaee.
४००वीं पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयां।
sameer ji ....bahut bahut badhai...aap smast blog jagat ke liye prerna hain.....ek baar fir badhai..
हमारे यहाँ की सरकारी व्यवस्था कभी इतनी संवेदनशील हो सकेगी, इसका तो अभी सपना ही देख सकते हैं।
सृजनशील संवेदनाओं से ओतप्रोत आपकी ब्लॉग महायात्रा इसी तरह निरंतर ऊर्जा के साथ आगे बढ़ती रहे, हार्दिक शुभकामनाएँ !
"कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है।"
- ये पंक्तियां खास तौर पर पसंद आईं।
400 पोस्ट का सफर -- बधाईऐसे में हम आपको हिंदी ब्लॉग जगत का भीष्म पितामह कह दें तो गलत न होगा......
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
शानदार गजल
बहुत बहुत बधाइयाँ समीर जी !
आपके सफ़र के इस मुकाम तक पहुचने की |
इसी तरह नयी नयी अच्छी और प्रेरक बातें बताते रहें | मुझ जैसे लोग आपसे बहुत कुछ सीखते रहते हैं |
यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें और जल्द ही सैकड़े से हजारों की छलांगे लगायें ! शुभकामनाएं !
सुन्दर रचना के लिए बधाई । पक्षियों के फोटो भी बहुत सुन्दर हैं । गज़ल का आडियो खूब एंजोय किया । धन्यवाद ।
पहले तो आपको ४००वी पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई..
रही बात कि क्या हम कभी ऐसी कल्पना सरकार की तरफ से अपने देश में कर पायेंगे
तो अपने देश मे कभी ऎसी कल्पना का कोई वजूद ही नही जब तक हम खुद जागरूक हो न हो
जब तक हम खुद जागरूक हो कर पशु हिसां के खिलाफ एक मत नही होगे तब तक ये सभंव नही.
दराल जी ने कहा "यहाँ तो ऐसा तभी होता है जब कोई सड़क पर मंदिर बना लेता है । फिर किस की मजाल जो हटा दे।"
ऎसा इसलिये कि मंदिर मस्जिद के नाम पर सब एक मत हो जाते हे..
गजल के तो क्या कहने दिल को छू गई
आपको ४०० वी पोस्ट पर बहुत बहुत बधाई । ये लेख भी हर बार की तरह अच्छा था । गज़ल क हर एक शेर लाज़वाब । यूँही लिखते रहिये । बहुत बहुत शुभकामनायें ।
सर बहुत-बहुत बधाई हो आपको..
धत्त तेरे कि....अब हम किस बात की बधाई दें.......इतनी अच्छी ग़ज़ल की या चारसौवीं पोस्ट की.....हम इस पर दिमाग बिलकुल भी नहीं लगायेंगे.....आपको जो समझ आये सो समझ लेना....हाँ नहीं तो.......!!!!
congratulations !!!!!!!!!!!!!
मदर्स डे के शुभ अवसर पर ...... टाइम मशीन से यात्रा करने के लिए.... इस लिंक पर जाएँ :
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
चार साल लगे हमे १०० पोस्ट पूरे करने मे और आप तो महाराज... लेकिन बज़ वाला रिकार्ड हमारे नाम है और आपने उसकी बराबरी की है :P
kidding..
बधाईया बोरे भर के.. :)
आपको चार सौवीं पोस्ट पर बधाई. इस अवसर पर मैं अपने मन की बात कहता हूँ - आपका ब्लॉग चिठ्ठाजगत की कौन सी रैंक में है,आपने कितनी पोस्ट लिखी हैं या आपको कितनी टिप्पणियाँ मिली हैं या कौन कौन से पुरूस्कार मिले हैं, इन बातों से मैं चमत्कृत नहीं हूँ. लेकिन आपने क्या लिखा है-इससे अवश्य चमत्कृत हूँ.मैं यदा कदा समय निकाल कर लम्बे समय से ब्लॉग जगत में टिके लोगों की पुरानी पोस्ट भी पढने का यत्न करता हूँ.मुझे आपकी अनेक पोस्ट उत्कृष्ट लेखन की श्रेणी में लगे, शायद अपनी किसी टिपण्णी में मैंने इसका उल्लेख भी किया है.
आज की पोस्ट में एक संवेदनशील समाज और सरकार की झलक दिखती है. .
बधाई समीर जी ,गजल अच्छी है किसने आवाज दी है उन्हे भी बधाई।
४०० वीं पोस्ट पर बधाई और ढेरो शुभकामनाये ....रचना बेहतरीन लगी ...आभार.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! गूज के अंडे वाली बात पढ़कर मन खुश हो गया.
४०० वीं पोस्ट की जितनी भी बधाई दी जाए, कम होगी. इतने दिनों तक न सिर्फ लिखते रहना बल्कि न जाने कितने लोगों को प्रेरित करना, एक उपलब्धि है. मुझे लगता है हर ब्लॉगर को प्रेरणा मिलती रहेगी. हम सब आपसे कुछ सीखते रहे, यही कामना है.
४०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई और गजल तो बहुत लाजवाब है. गूज के लिये इतना बडा बलिदान वहीं हो सकता है हमारे यहां तो क्या होता है या हो सकता है यह सब जानते हैं.
रामराम.
sabse pahle to 400 posts ki bahut bahut badhaayee ho... aaj hi mauka mila blogs padhne ka. yahi nahi sadhnaji ki madhur aavaz kaa bhi lutf liya...
४०० पोस्ट की बहुत बधाई गजल बहुत पसंद आई खासकर यह शेर मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
बहुत सुन्दर !
जिनको खुद पे हो भरोसा मुसलसल कायम
ज़िंदगी यार सुनो उनकी ही सफल जाती है
४०० वीं पोस्ट की बधाई.
४०० हो गए...............!! अब कम् से कम् मिठाई तो खिला दीजिये.... पिछले वर्ष से आप मेरी मिठाई दबा कर बैठे हैं.... प्रेम से देंगे कि जबरदस्ती लेनी पड़ेगी... ???
जाने क्या बात हैं जो आपसे बदल जाती हैं ....
.....और मेरी मिठाई आप निगल जाते हैं....
शब्दों और सुरों का यह संगम चिरस्थायी हो यह शुभकामना ।
bahut badhiya gazal hai sir, ab niymit roop se padhana chahungaa aapaka Blog.. Nirmanadheen sadak ki story ki jankare bahut informative aur inspirational lagee. Sadhuwaad :))
Aap Blog ke Brian Lara ban gaye Not out 400..
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