सर्दी की सुबह. घूप सेकने आराम से बरामदे में बैठा हुआ अखबार पलट रहा था गरमागरम चाय की चुस्कियों के साथ.
भाई साहब, जरा अपने स्वास्थय का ध्यान रखिये. इतने मोटे होते जा रहे हैं.ऐसे में किसी दिन अनहोनी न घट जाये, आप मर भी सकते हैं. ये बात हमसे तिवारी जी कह रहे हैं.
भला कैसे बर्दाश्त करें इस बात को. हमने भी पलट वार किया कि भई तिवारी जी, आप दुबले पतले हैं तो क्या अमर हो लिये, कभी मरियेगा नहीं. खबरदार जो इस तरह की उल्टी सीधी बात हमसे की तो और वो भी सुबह सुबह.
मैने उन्हें समझाया कि जब मिलो तो पहले नमस्ते बंदगी किया करो. हाल चाल पूछो, यह क्या नई आदत पाल ली कि मिलते ही मरने की बात कहने लगते हो.
तिवारी जी इतने ढीट कि जरा भी विचलित नहीं हुए. बस मुस्कराते रहे और कुर्सी खींच कर बैठ गये और कहने लगे कि चाय तो पिलवाईये.
खैर, पत्नी उनके लिए चाय लेकर आई. नमस्कार चमत्कार हुआ और पत्नी भी वहीं बैठ गई.
अब तिवारी जी उनसे बातचीत करने लगे कि भाभी जी, आप कोई नौकरी करती हैं क्या?
पत्नी से ना में जबाब पाकर उनकी मुद्रा एकदम चिन्तित बुजुर्ग सी हो गई और वह कह उठे कि भाभी जी, कहना तो नहीं चाहिये मगर यदि कल को भाई साहब को कुछ हो जाये तो आपका क्या होगा? कैसे गुजर बसर होगी?
मेरा तो गुस्सा मानो सातवें आसमान पर कि सुबह सुबह यह क्या मनहूसियत फैला कर बैठ गये तिवारी जी. मगर घर आये मेहमान को कितना कुछ कह सकता है भला कोई और यदि गहराई में उतर कर सोचा जाये तो ऐसा हो भी सकता है किसी के भी साथ, कभी भी.
मौत के नाम पर वैसे भी दार्शनिक विचार मन में आने लगते हैं इसलिए मैने संयत स्वर में कहा कि जो उपर वाले की मरजी होगी सो होगा. उसकी छत्र छाया में दुनिया पल रही है तो इनका क्या है. आपकी पत्नी भी तो नौकरी नहीं करती, कल को आपको ही कुछ हो जाये तो उनका क्या होगा? इस प्रश्न से मैने अपनी कुटिल सोच का परिचय दिया.
तिवारी जी तो मानो इसी बात को सुनना चाह रहे हों. बस एक चमक आ गई उनके चेहरे पर. कहने लगे भाई साहब, हमने पूरा बंदोबस्त कर रखा है. मान लिजिये यदि कल को हमें कुछ हो जाता है तो जिस आर्थिक स्थिति में हमारी पत्नी आज है, उससे बेहतर स्थिति में हो जायेगी. इतनी बेहतरीन बीमा पॉलिसी ली है कि मेरे मरते ही २५ लाख रुपये पत्नी के हाथ में होंगे.
बस, इतना सुनते ही अब तिवारी जी को बोलने की जरुरत न रही और हमारी पत्नी हमारे पीछे पड़ गईं कि आप भी बीमा कराईये अपना और मानो तिवारी जी तो आये ही उसी लिये थे. तुरंत झोले से फार्म निकाल कर भरने लग गये. दोनों की तत्परता और अधीरता देख जरा घबराहट भी होने लगी कि कहीं शाम तक निपट ही न जाने वाले हों और इन दोनों को मालूम चल गया हो इसलिए हड़बड़ी मचाये हैं.
सारी कार्यवाही पूरी करके चैक आदि लेकर जब चलने को हुए तो तिवारी जी ने पहली बार कायदे की बात की कि ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे. काश, ऐसी नौबत न आये कि भाभी जी को बीमा का भुगतान लेना पड़े.
सोचता हूँ धंधा जो न करवाये सो कम. बीमा एजेन्ट अगर मौत का डर न दिखाये तो भला फिर खाये क्या?
एक रचना, उन्हीं के नाम समर्पित: (एक बीमा कम्पनी के लिए लिखी थी मगर पैसे नहीं मिले :)- किसी और बीमा कम्पनी को चाहिये, तो कृपया संपर्क करें, कविता बिकाऊ है- स्पेशल ऑफर-कविता के साथ मुण्डली फ्री :))
बीमा महात्म!!
सुख की नींद सुलाता बीमा
घर घर राहत लाता बीमा.
कच्चा घर जब टूट चला हो
बनता गजब सहारा बीमा.
बीच भंवर जब नैया डूबे
बनकर नाविक आता बीमा.
खुदा करे सब ठीक रहे तो,
वापस किश्त दिलाता बीमा.
घबराने की बात नहीं है,
किश्तों में हो जाता बीमा.
-समीर लाल ’समीर’
एक मुण्डली:
बीमा का एजेन्ट है कि तोते का अवतार
प्रतिपल वो तो रट रहा, बीमा बीमा यार.
बीमा बीमा यार कि किश्तों मे ये भरता है
बुरे वक्त मे बहुत मदद, ये ही तो करता है.
कहे समीर कविराय, खुशी से हो जो जीना
आप आज ही करवा लो, अपना भी बीमा.
-समीर लाल ’समीर’
86 टिप्पणियां:
hamare yahan to tapman 45 degree hai janab. narayan narayan
सर्दी की सुबह और...........
कहे समीर कविराय, खुशी से हो जो जीना
आप आज ही करवा लो, अपना भी बीमा.
मौसमी वैविध्य
और ताजगी
साथ-साथ।
वर्ना बीमा जैसे शुष्क विषय को रचनाबद्ध करना सबके वश की बात नहीं।
बीमा का व्यवसाय शुरू कर दिया है क्या?
किस्त न भरने पर क्या लाभ मिलता है बतलायें.
क्या बीमा आर्थिक के साथ सामाजिक संरक्षण भी देता है?
आखिर यह बीमा(री)हम क्यों करवायें, कृपया विस्तार से बताएँ
बड़े भाई!
हम तो पहले ही भारतीय जीवन बीमा के वकील हैं। क्या कहें? रचनाएँ अच्छी हैं, बिना स्पॉन्सरिंग के भी।
बीमा एजेंटों से भगवान् बचाए ...
डरा डरा कर बीमा करवाए ...
मुंडली(?) अच्छी रही ...
हा हा..
सर! गंदा है पर धंधा है ये.. और आजकल सब धंधा ही कर रहे है...
.... देखो समीर भाई, ...तिवारी जी जैसे लोग दूर ही रहें तो अच्छा है ... धंधा गया ऎसी-तैसी कराने ... मनहूस और मनहूसियत कतई बरदास्त नहीं करना चाहिये ... ऎसे लोगों को तत्काल ही "उठा पप्पू-पटक पप्पू डाट काम" में सिफ़्ट कर देना ही उचित है !!!!
इतनी बढिया कविता पढ़ कर तो मन कर रहा है बीमा कम्पनी ही खोल ली जाये ! ग्राहकों को लुभाने के लिये आपकी रचना बड़े काम आयेगी ! वैसे तिवारी जी जैसे निष्ठावान और जीवट वाले एजेंट्स के रहते ग्राहकों की कमी उस कम्पनी को भी नहीं होगी जिसके लिये वे काम करते हैं बिना आपकी कविता के भी ! हा हा हा ! सुबह खुशनुमां कर दी आपने ! धन्यवाद !
वे मृत्यु का भय बेचते हैं
बीमा की मार्केटिंग का सबसे भावुक और महत्वपूर्ण क्षण है, आपको शरीर की नश्वरता व परिवार को आपकी आवश्यकता का बोध कराना । यह क्षण पार हो जाये तो सब सरल हो जाता है उसके लिये । किसी और का उदाहरण भी दिया जा सकता था आपको उद्वेलित करने के लिये ।
ग़लत बात, बेचारे ने आपका इतना बड़ा उपकार किया और आप उसके बारे में ऐसा-ऐसा लिख रहे हैं. बीमा एजेंट से ज्यादा परोपकारी तो कोई होता ही नहीं. बेचारा गली-गली शहर-शहर घूमकर लोगों पर उपकार करता है. इसी बहाने उसे थोड़े बहुत पैसे भी मिल जाते हैं, पर मुख्य काम तो उसका परोपकार ही होता है.
वैसे सच है, इतने शुष्क विषय पर इतना रोचक लेख, कविता और मुंडली लिखना पृथ्वीवासियों के बस की बात नहीं यह तो आप जैसा कोई उड़नतश्तरी-सवार इतर-ग्रहवासी ही कर सकता है.
बीमा की जानकारी हम दे रहे थे और बीमा आपको तिवारीजी एजेन्ट बेच गये वाह वाह ।
बीमा का एजेन्ट है कि तोते का अवतार
प्रतिपल वो तो रट रहा, बीमा बीमा यार.
बीमा बीमा यार कि किश्तों मे ये भरता है
बुरे वक्त मे बहुत मदद, ये ही तो करता है.
कहे समीर कविराय, खुशी से हो जो जीना
आप आज ही करवा लो, अपना भी बीमा.
हा हा हा हा हा हा हा बेहद रोचक
regards
बीच भंवर जब नैया डूबे
बनकर नाविक आता बीमा.
खुदा करे सब ठीक रहे तो,
वापस किश्त दिलाता बीमा.
बहुत बढ़िया कविता लिखा है आपने! अब तो लगता है बिमा कंपनी खोलनी ही पड़ेगी! वाह समीर जी बहुत शानदार लगा आपका ये पोस्ट! उम्दा प्रस्तुती!
सुबह सुबह काहे को डरा रहे हैं? हमारे यहां इसीलिये कहावत बनी है कि "लेने के बाट और एवम देने के बाट और" यानि बीमा करने के पहले मरने का डर दिखाओ और करवाले तो लंबी उम्र का आशीष दो ताकि सारी उम्र पेट काट काट कर किश्ते भरता रहे.:)
बहुते सटीक व्यंग.
रामराम
अरे!...आपकी बात से याद आया कि इस साल अपनी कार का बीमा तो मैंने करवाया ही नहीं....
अब जब कार का करवाना भूल गया तो अपना करवाना कैसे याद रहेगा?...
अभी आता हूँ और लौट के मिलता हूँ...
हाँ!...वैसे कविता बहुत बढ़िया थी
हा हा हा .....गज़ब ! ऐसे लोग हमारे मुहल्ले मे भी हैं .
बीमा की महिमा का सही व्याख्यान ।
और कुंडली
मेरा मेरा मतलब मुंडली भी मजेदार:)
"सोचता हूँ धंधा जो न करवाये सो कम. बीमा एजेन्ट अगर मौत का डर न दिखाये तो भला फिर खाये क्या?"
बिल्कुल दुरुस्त! घोड़ा कभी घास दोस्ती कर ही नहीं सकता।
गुरुदेव,
मक्खन ने एक जिन्न को सिद्ध कर रखा था...एक बार जिन्न एक महीने तक बोतल से नहीं निकला...फिर एक दिन निकला भी तो बड़ी बदहवासी की हालत में...मक्खन ने पूछा....क्या हुआ जिन्न भाई, कहां फंसे रहे इतने दिन और तुम्हारे चेहरे से ये हवाईयां क्यों उड़ रही हैं...जिन्न बोला...क्या बताऊं मेरे आका, इस बार मुझसे भी बड़ा जिन्न मेरे से ही चिमट गया था...बड़ी मुश्किल से दो बीमा पॉलिसी लेकर पीछा छुड़वा कर आ रहा हूं...
जय हिंद..
आप घर मैं सो रहे होंगे तो भी आपका धन बढता जा रहा होगा....आदी आदि.....खैर थोङा बहुत करवा लेना ठीक होता है....
lajawab sameer ji... aapki sooch bahut door tak jaati hai
"बस, इतना सुनते ही अब तिवारी जी को बोलने की जरुरत न रही और हमारी पत्नी हमारे पीछे पड़ गईं कि आप भी बीमा कराईये अपना और मानो तिवारी जी तो आये ही उसी लिये थे. तुरंत झोले से फार्म निकाल कर भरने लग गये."
आप खामखा शक करते है , देखिये न भाभी जी कितना प्यार करती है आपको :)
उफ़ इन बीमा कंपनियों ने तो जीवन का मज़ा लूटने पर प्रतिबन्ध सा लगा डाला है......तेवारी जी जैसे दोस्तों से भगवान बचाए.....!
आखिर फंस ही गए बड़े भाई...
आगे सतर्क रहें।
नीरस को सरस करना कोइ आपसे सीखे |
आपकी कविता और मुण्डली दोनों ही बहुत बढ़िया....और भई बीमा एजेंट का तो धंधा है ना...
दोनों की तत्परता और अधीरता देख जरा घबराहट भी होने लगी कि कहीं शाम तक निपट ही न जाने वाले हों और इन दोनों को मालूम चल गया हो इसलिए हड़बड़ी मचाये हैं ....
इन पंक्तियों ने बहुत गुदगुदाया , हँसाया | मामूली सी बात को भी कैसा भुनाया है ...वाह ।
हा हा हा ! समीर जी ये तो वही बात हो गई । जो बुरे कर्म करेगा , एक दिन मरेगा ज़रूर। और जो अच्छे कर्म करेगा वो क्या ---?
बीमा वाले भी यही फंडा अपनाते हैं। पहले डराते हैं फिर आशीष देते हैं की जुग जुग जियो जिससे की कुछ देना ही न पड़े ।
वैसे एक निश्चित राशी का बीमा लेना समझदारी है।
waah.....bahut badhiyaa
समीर लाल जी, आदाब
देखा, तिवारी जी अपने मकसद में कामयाब होकर ही लौटे.
आपकी कविता और मुफ़्त मिली मुंडली का जवाब नहीं.
पंहुचे हुये सन्त से मिलवा दिया। धन्य हुये। जय तिवारी जी की।
यह तो हम ही नादान हैं कि आईसीआई प्रुडेंशियल से कन्या बार बार फोन करती है और हम गुर्रा कर फोन काट देते हैं! :)
विष्णु बैरागी जी प्रसन्न भये.
वाह और आह भी ,,
मुला यी बताईये समीर जी जब राऊर न रहियें ई दुनिया में तो का होगा इससे राउर का का फर्क पडी ?
हमको भी बहुत डराते हैं लोग -और मोटे भी हो लिए हैं ...
हमें भी इस मुद्दे पर गम्भीरता सोचना पड़ेगा!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_12.html
ये तिवारी है कि बीमारी :)
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आपकी पोस्ट पर कुछ याद करके
हंसी आ गयी :
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एक बार दो मित्र आपस में बात कर रहे थे ! एक ने कहा -'यार क्या करूँ ... बहुत परेशान हूँ ... कुछ समझ में नहीं आ रहा, नौकरी चली गयी, अब क्या करूँ ?"
मित्र ने समाधान प्रस्तुत किया -"यार कोई छोटा मोटा होटल खोल ले ... आज कल खाने-पीने वाला धंधा ही खूब चलता है !'
उदास मित्र ने इन्कार करते हुए कहा -'नहीं यार ...होटल के काम में कब खुद जूठे बर्तन धोने पड़ जाएँ ...भरोसा नहीं ...और तुम तो जानते हो मैं पंडित हूँ !"
मित्र ने हुंकार भरते हुए कहा -'हम्म्म्म तुम ऐसा करो मेरी तरह बीमा एजेंट बन जाओ !"
उदास मित्र बोला -'यार तेरी बात तो सही है लेकिन बीमा एजेंट के काम में बेइज्जती बहुत सहन करनी पड़ती है !'
मित्र ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा -'क्या बात करते हो यार ...मैं 8 साल से यही काम कर रहा हूँ... लोगों ने मुझे गालियाँ दीं.....मुझको देखकर मुंह फेर लिए...लोगों ने देखते ही दरवाजे बंद कर लिए ...यहाँ तक कि धक्के देकर घर से निकाल दिया ... लेकिन दोस्त बेइज्जती आज तक किसी ने नहीं की !'
bahut khoob sir....waise bhi beema wale advertisement aajkal dil ko choo lene wale banne lage hain...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
sameer ji , khoob fanse aap to ... lekin kya kare sir , hum sabke sath aisa hi kuch hota hai ..chalo theek bhi hai ...kuch der shaanti to aa hi jaati hai .......
waise aapne bima ki kavita khoob likhi .. sir india kab aa rahe hai ..jab bhi aaye to ek kadam hyderabad me avashay rakhiyenga ...
aabhar aapka
vijay
अरे बीमा वाले तो अब ये भी कहते हैं, एक बीमा करा लो हमारा भी कुछ उपकार हो जाएगा. अब डायरेक्ट मार्केटिंग होती है. और बीमा कराने वालों से ज्यादा तो एजेंट ही हो गए हैं :)
बीमा महात्म्य और मुंडली...दोनों ही बहुत मजेदार थे और आलेख तो हमेशा की तरह...रोचक..अब उनके भी पेट का सवाल है क्या करें बेचारे बीमा एजेंट
बीमा एजेंट को भईया बिन बात सब धिक्कारें हैं
कहीं असमय कूच करो घर वालों के वारे न्यारे हैं
बीमा का काम भी बढ़िया है....कौनो और लोग का दरकार होवे तो बतावल जाए...
हमहूँ तैयार है...सर मुंडने खातिर...:)
सही बात है जी, बीमा एजेन्ट नहीं आपको डर दिखाएगा तो कौन दिखावेगा? :)
समीर भाई .. बीमे के चक्कर में आप भी आ गये ...
पर ये कविताएँ अच्छी कहीं ... अबकी बार एजेंट को सुना देना ...
ha ha hah kya karun hasi rukti hi nahi badhiya.
shri maan ji!
namaste!
aapki mundali padi.kintu mere vichaar se ise mundali nahin kundali kahte hai.
बेहतरीन। लाजवाब।
बात मेरे बचपन की है मेरे एक जानने वाले बीमित व्यक्ति की मौत हो गई . बीमा की रकम मिली जो अच्छी खासी थी . उनकी पत्नी ने उस रकम मे से पहली जो चीज खरीदी वह डबल बेड था . उस समय मै सम्झ नही पाया यह क्यु खरीदा . उसके बाद उसी रकम के कारण उन्होने एक नया जीवन साथी तलाश लिया . बीमा का यह फ़ायदा भी है
@ सुमित भाई
आभार!!
आपके सुझाव से प्रभावित हूँ.
कुण्डली के अपने नियम होते है जैसे कि प्रथम दो पंक्तियाँ एक दोहा होती है और अंतिम चार रोला.
रोले का प्रथम चरण दोहे का अंतिम चरण होता है और रोले का अंतिम शब्द दोहे का प्रथम शब्द.
फिर मात्रायें. दोहे में १३,११ और १३,११ फिर रोले की हर पंक्ति में २४ आदि. दोहे के लिए जगण/मगण का ख्याल और अंत में लघु मात्रा का ध्यान.
नियम जटिल है और इनसे मुक्त होने हेतु सन २००६ से मैने अपने कुण्डलीनुमा प्रयासों को मुण्डली कहना शुरु किया जैसे काका हाथरसी फुलझड़ियाँ कहा करते थे.
मुण्डली कहने से मैं नियम मुक्त हो जाता हूँ. बस, यही मंशा है.
आशा है आप मेरा आशय समझ गये होंगे. मार्गदर्शन बनाये रखिये.
सादर
समीर लाल
बीमा एजेंटों पर अच्छा निशाना साधा है। पोस्ट बहुत अच्छी है। काफी चाव से पढ़ा।
हा हा ..हा..:-)
आप जलूल आना.....चोनू!!
सर जी, आपकी आज की पोस्ट पढ़कर पुरानी पोस्ट भी याद आ गई। वैसे बीमा एजेंट की तो नहीं कहते पर बीमा कंपनियां जरूर बीमित व्यक्तियों की सलामती की दुआ मांगती होंगी ताकि मुनाफ़े में सेंध न लग जाये।
और ये तिवारी जी को बाहर से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया करें, एजेंट अच्छे हैं पर आदमी ठीक नहीं लगते।
मजा आ गया।
आभार।
आपने तो बीमा एजेंट का पूरा चिठ्ठा खोल दिया, बहुत मजा आया1 वो भी क्या करें पापी पेट का सवाल है
bima jindagi ko khud deemak ki tarah chat raha hai sir :)
कौन टाइप के महान महान लेख लिखने लगे हो यार महारज आजकल। हाँ नहीं तो।
आपकी पोस्ट पढ़ कर आज पहली बार अपना बीमा हुए होने पर खुश हुए
अभी शादी भी नहीं हुई है, टेंशन मुक्त :)
बवाल जी काहे बवाल कर रहे हैं
आप भी 'हाँ नहीं तो' इस्तेमाल कर रहे हैं.......
जुलुम करना है कीजिये ...
हाँ नहीं तो...!!!
:)
:)
बीच भंवर जब नैया डूबे
बनकर नाविक आता बीमा.
खुदा करे सब ठीक रहे तो,
वापस किश्त दिलाता बीमा.
घबराने की बात नहीं है,
किश्तों में हो जाता बीमा.
बीमा पर सुंदर रचना .. अच्छी पोस्ट!!
अच्छी लगी आपकी बीमा की दुकान... और दह्शत का करोबार... बिकाऊ कविता और ज़बर्दस्त मुंडली...
मजाक में ही सही पर अधिकांश टिप्पणियों में तिवारीजी से बचने को कहा गया है। वैसे तिवारीजी ने तत्वज्ञान की बात की है। भारतीय सामाजिक परिस्थितियों में पति का बीमा ही पत्नी का संबल रहा है। कटु सत्य है यह। हालाँकि आज भारत में महिलाएँ भी करियर को गंभीरता से लेने लगी हैं परंतु यह प्रतिशत बहुत कम है। इसलिए परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए जितना जेब गवाही दे उतने का बीमा अवश्य करवा लेना चाहिए। केवल सरकारी या बहुत ही ठोंक बजाकर निजी कंपनी का बीमा लेना उचित है।
डिस्केमर: हम बीमा एजेंट नहीं हैं। :-)
अच्छा दृष्टांत ...सुंदर कविता...उम्दा कुंडली
देखा जाए तो बीमा काफी उपयोगी होता है..पर हम इतने ढीठ हैं कि जबतक इनकमटैक्स भरने की नौबत न आए या कोई डरा के न कराए तो हम बीमा नहीं कराते....मजेदार बात ये कि भारत में कई लोग बीमा एजेंट की पहले तीन साल की कमिशन खा जाते हैं..यानि अगर हमने किस्त नहीं भरी तौ बेचारे की कमाई तो गई भाड़ में उसकी जेब का पैसा भी निकाल लेते हैं..
मान गए.
बीमा पर कविता और वो भी इतनी सुंदर. लाजवाब.
बिल्कुल दुरुस्त! घोड़ा कभी घास दोस्ती कर ही नहीं सकता।
अच्छी लगी आपकी बीमा की दुकान..
बीमा करने वालों को भी नमस्ते जी.
पहले तो आप ये बताओ कि ये धांसू सा फोटो कैसे खिंचवाया जाये जो आपकी तरह रोबदार लगे...
बीमा कभी कभी तो वाकई बड़ा लाभदायक होता है, लेकिन अभी तो एजेन्टों के लिये है चालीस-पचास प्रतिशत...
हुजूर हमारे भी कई यार-रिश्तेदार बीमे वाले हैं... कभी कभी फंस ही जाते हैं....
दोस्ताना निभाना है आखिर लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आता...
उत्कृष्ट ब्लाग पढने को मिला । आनन्द प्राप्त हुआ ।
खूब रही ये तो...उम्दा !!
hahahhaa waqayi ye agent
dara dara kar hamse paise ainth lete hain
magar ant bhala to sab bhala
aapko baad mein lambi aayu ki dua bhi to mili na
he he
Main pichhle kuch dino busy rahi ....
2 week bharat ka trip raha uske baad ghar mein Maid bhaag gayi to bas school se lout kar ghar ke kaam ....... aata daal mein sab blog gazal shayri gayab ho gayi thi
ab mushkil se ek maid pakad laayi hun 2 din pahle ....... uske aate hi main bhi blog par dikh rahi hun
haahah
वाह...क्या कविता लिख मारी है आपने...कसम से कोई भी बीमा कंपनी वाला खरीद लेगा...हो सकता है बीमा कंपनी वाले इसे अपने बीमा गान घोषित करदें... जैसे अपना राष्ट्र गान है वैसे...आपका नाम इतिहास में दर्ज हो गया समझो...
नीरज
सच्चाई तो यही है हमारी भी और बीमा एजेंटों की भी , बिल्कुल स्टीक
देर से आया पछता रहा हूँ -बेहतरीन पोस्ट.
भला कैसे बर्दाश्त करें इस बात को. हमने भी पलट वार किया कि भई तिवारी जी, आप दुबले पतले हैं तो क्या अमर हो लिये, कभी मरियेगा नहीं. खबरदार जो इस तरह की उल्टी सीधी बात हमसे की तो और वो भी सुबह सुबह.
jawab khoob rahi ,ise kahte hai nahle par dahla .dono rachna behtar hai .sundar .
कहे समीर कविराय, हा हा हा
अच्छा व्यंग लिखा है आपने।
मुझे लगता है,तिवारी जी ने जो फारम आपसे भरवाया ,वह बीमा वाला नहीं बल्कि आपको बीमा एजेंट बनाने वाला भरवाया है...तभी तो इतने कन्विंसिंग तरीके से आप बीमा का गुणगान कर रहे हैं....
हा हा हा हा...जस्ट जोकिंग...
गुदगुदाता हुआ मजेदार पोस्ट...
Bhai bade khatarnaak dhang se samjhaya aapne to beema ki mahatta ko.. dil dahal sa gaya. ek form bhijwana to........ lekin ek aakhiri sawaal!!! ye beema futkar(chillad) kishton me nahin ho sakta kya?? mane 6 mahine ki saanson ka beema kahin aur aur aglee 6 ka kisi aur company se is tarah saari companies ka beema le liya jaaye bhai. kyonki aajkal agar kisi ek se beema karate hain to doosra agent dushman banke peechhe gunde lagwa deta hai. kya karen har doosre ghar me to beema agent hain na. mere khud ke ghar me 3 hain, saamne wale ghar me bhai sahab ne 50,000 salana kisht ka beema kiya to ek dost aur uska chhota bhai jo doosri company me agent hain wo bhi peechhe pad gaye. ab beema agents se protection ka beema kahin hota ho to avgat karayen dev. :)
'मुण्डली' bahut hi badhiya lagi.
'बीमा महात्म' बीमा कंपनी खरीद भी ले आपका आलेख क्यों खरीदेगा! अच्छी खबर ली है आपने बीमा एजेन्ट की -
तिवारी जी ने पहली बार कायदे की बात की कि ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे.
-ये लोग बीमा कराने के बाद ही लम्बी उम्र की दुआ देते हैं.. पहले इतना भय दिखाते हैं कि कमजोर दिल वाला मर ही न जाय।
-अच्छी पोस्ट।
Bahut badhiya likha aap ne.
Bahut badhiya likha aap ne.
sahi hai beema to karwa hi lena chahiye kal ka kya bharosa bahut khoob likha aapne dhanyavad.
बीमा कम्पनी वालों की नज़र इन पंक्तियों पर पड़ी या नहीं भाई साहब ? वे इसका एड बना लेंगे ।
बीमा एजेंट अद्भुत निकला। एकदम हकीकत लिख डाली।
Jay ho BIMA Dev ki
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