भावों और विचारों का क्या है? वक्त बेवक्त किसी भी रुप में चले आते हैं. कभी दर्ज कर लिया, कभी छूट गये.
दर्ज कर लिया तो एक दस्तावेज के रुप में सहेजने का दिल हो आता है. कुछ छोटी छोटी पंक्तियाँ अपनी ही तस्वीरों पर दर्ज कर के कभी ऑर्कुट पर, कभी फेस बुक पर मित्रों की मंडली में सांझा करता रहा हूँ. कुछ इस ब्लॉग पर भी.
कल दिल हो आया कि जब सब कुछ लेखनी का दर्ज करके इस ब्लॉग पर रखा हुआ है, तो फिर वो भाव यहाँ वहाँ क्यूँ बिखरे पड़े रहें.
बस, उसी प्रयास में, यहाँ वहाँ बिखरी पंक्तियाँ. इत्मिनान से पढ़िये, शायद पसंद आयें:
कभी मौसम, कभी झील में डूबे चाँद -शायद कोई कविता रच रहा है कहीं. | एक तारों भरा आकाश है.. |
जहाँ से कुछ इस तरह गुजर जाना | डूबती शाम, |
वो डायरी मे गज़ल लिखते हैं, | यूँ तन्हा, गुमसुम बैठा सोचता हूँ मैं.. |
यह धूप मुझे कभी नहीं भाती है.. | रात भर चाँद छत पर, कराहता रहा.. |
बगिया बगिया घूम के देखा | भूगोल की बात जबसे, इतिहास हो गई |
हालात मेरे देख कर -कितना सच कहता था | किसी से कोई शिकायत नहीं |
बाकी, फिर कभी भाग २ में. आज के लिए इतना ही.
93 टिप्पणियां:
bahut sunder moti piroye hain is mala men. bahut khoob. prastuti ka bhi jawab nahin.
ये मुखड़े भी सुन्दर रहे!
लाजवाब
तुम्हारे प्यार ने दुनिया मेरी बदल डाली
रात के चाँद में दिखती है सुबह की लाली.
इसी बात पर दे ताली
सुबह कुछ जल्दी हो गयी।
बहुत सुंदर--आभार
उस मकां से ग्रामोफोन की आवाज़ आती है
कहते हैं वो लोग कुछ पुराने ख़्यालात के हैं..
रात भर चाँदनी सिसकती रही, छत पर उनकी
वो समझते हैं कि दिन अब भी बरसात के हैं.
क्या खूबसूरती हैं.....
सुन्दर,भावमय,अर्थपूर्ण प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .....आखिरी के पंक्तियों में
लहरों की तरह यादें,
दिल से टकराती हैं,
तूफान उठाती हैं,
लहरों की तरह यादें,
किस्मत में है घोर अंधेरे,
रातें सुलगतीं ढूंढती सवेरे,
लहरों की तरह यादें,
बरसों से दिल पे बोझ उठाए.
ढूंढ रहा हूं प्यार के साये,
लहरों की तरह यादें...
जय हिंद
किसी से कोई शिकायत नहीं
और किसी से कोई गिला नहीं,
मेरी हस्ति को जो मिटा सके,
ऐसा अब तक कोई मिला नहीं.
बहूत खूब श्री मान जी
वाह बहुत सुंदर.
भावों से दो-चार तो सभी होते हैं पर हर कोई उन्हें यूं सहेज कहां सकता है.
ati sunder!
इन्हें पूरा कर लीजिये सर बेहतरीन गजलें बनेंगी
जबरदस्त ! बिखरे मोती जितना ही सहेज लिए जायं!
रात भर चाँदनी सिसकती रही, छत पर उनकी
वो समझते हैं कि दिन अब भी बरसात के हैं.
वाह, बहुत ही नायाब. शुभकामनाएं.
रामराम.
एक एक मोती को चुनकर आपने जो माला बनायीं वो अत्यधिक खूबसूरत है........दिल को छु जाने वाली. प्रस्तुतीकरण भी उम्दा है...आभार
दीपावली की सफाई करते समय जब ढेर सारे पेपर- पेड कुछ भरे कुछ अनभरे निकल आते हैं तब उन्हें टटोलिए, कितना कुछ मिल जाता है लेकिन कभी वो संवर जाता है और कभी बिखर जाता है। कभी तो लगता भी नहीं है कि यह हमने ही लिखा था। बस उन्हें टटोलते समय मन बड़ा ही रूमानी हो जाता है। अच्छी पोस्ट है, हम भी ऐसी ही यादों में खो गए।
"बगिया बगिया घूम के देखा
फूल तोड़ना सख्त मना है..
कांटो की रक्षा की खातिर
कभी न कोई नियम बना है"
इतने बढ़िया विषय लिए बैठे हो महाराज , इस शीर्षक को चुरा रहा हूँ .....
Ye sachme bikhare moti hain...
संग्रह करने योग्य....गागर में सागर की अनुभूति......
नगमे हैं, किस्से है, वादे हैं, बातें हैं...
बातें भूल जातीं हैं यादें, याद आतीं हैं..
बस सहेजते जाइए क्योंकि
ये यादें किसी दिल-ओ-जनम के चले जाने के बाद आती हैं....
यादें यादें यादें.....और फिर सहेजते सहेजते उम्र कब बीत जाती है पता ही नहीं चलता....
जिन्दगी से इतने करीब से मिला हूँ मैं
कि अब किसी भी बात पर चौंकता नहीं.
...बहुत ही खूबसूरत और मनभावन..साधुवाद आपको.
________________
''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगी
खूब समेटा !
सिमटे मोती!
वो डायरी मे गज़ल लिखते हैं,
पन्ना पन्ना गुलाब न हो जाये.
बहुत अच्छे समीर जी..हमेशा की तरह..
यह धूप मुझे कभी नहीं भाती है..
बड़ी अजीब सी परछाई बनाती है..
mujhe bhee ....... aapako to yaad rah jaatee hai chnd laine . mai to bhool jaata hoon
ज्ञान चक्षु खोलती पोस्ट! कोई न कोई नशा चाहिये बुद्ध बनने को!
और यह भी समझ आया कि क्यों रह जाते हैं बुद्धू, बुद्ध बनने की राह में। :(
बहुत खूब...वाकई में मोती ही हैं
जबरदस्त ! बिखरे मोती जितना ही सहेज लिए जायं!
रात भर चाँद छत पर, कराहता रहा..
जाने क्यूँ, तू मुझे याद आता रहा.....per sawaal hai, kya bhulun kya yaad karun !sabhi bolte hain
"जिन्दगी से इतने करीब से मिला हूँ मैं
कि अब किसी भी बात पर चौंकता नहीं."
duniya ki hakikat ko is se saral bhasha me samjhaya nahi ja sakta... bahut umda !
जिन्दगी से इतने करीब से मिला हूँ मैं
कि अब किसी भी बात पर चौंकता नहीं.
...........वाह !!!! अति सुंदर.....
कविता मे भाव ही प्रधान होता है, बाकी सब से सिर्फ़ कविता की सजावट होती है ।
भाव सुन्दर बन पड़े हैं ।
एक एक पंक्ति दिल छू जाती है...ऑरकुट पढ़ी हैं ..फिर से पढ़कर और आनंद आया
एक से बढ़कर एक.
सच में भावों का ही तो संकलन है ये.
वाह वाह जी बस नाईस ही नाईस है
तुम्हारे प्यार ने दुनिया मेरी बदल डाली
रात के चाँद में दिखती है सुबह की लाली.
जबाब नही जी.
धन्यवाद
sabse pahle to comment ke liye thanks....kya khuub likha h aapne....
सोचा कि सलाम करता चलूँ
बड़ा आनंद आया!
ब्लॉग पर गूगल बज़ बटन लगायें, सबसे दोस्ती बढ़ायें
<> बहुत सुन्दर समीर जी, भावों की ज़बरदस्त प्रस्तुति| शब्दों का बेमिसाल संयोजन...
"राम कृष्ण गौतम"
यह धूप मुझे कभी नहीं भाती है..
बड़ी अजीब सी परछाई बनाती है..
सारी की सारी पंक्तियाँ.बहुत ही ख़ूबसूरत हैं..सचमुच बिखरे मोतियों की तरह...
किसी से कोई शिकायत नहीं
और किसी से कोई गिला नहीं,
मेरी हस्ति को जो मिटा सके,
ऐसा अब तक कोई मिला नहीं.
...Tabhi to ap sabse achhe uncle HO !!
डूबती शाम,
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं..
डर जाता हूँ मैं..
......baht sundar...vaise to sab bahut achchhe hain ...lekin mujhe ye sabse zyada pasand aaee....
फूल तोड़ना सख्त मना है..
कांटो की रक्षा की खातिर
कभी न कोई नियम बना है.
तुम्हारे प्यार ने दुनिया मेरी बदल डाली
रात के चाँद में दिखती है सुबह की लाली.
बहुत खूब , एक से बढ़कर एक।
्बहुत सुंदर भाव।
जिन्दगी से इतने करीब से मिला हूँ मैं
कि अब किसी भी बात पर चौंकता नहीं.
बहुत बढ़िया भाव . कमाल की रचना जान पड़ी . जोड़तोड़ कर पढ़ने पर (दोनों बक्सों) को मिलाकर या अलग अलग करने में एक नई रचना दिखाई देती है .
आभार .
"Purani jeans aur guitar !
Kuchh yadein hain...Yadein hain...Yadein reh jaati hain...
Kuchh batein hain...Batein hain...Baatein reh jaati hain....
Divya
कभी मौसम, कभी झील में डूबे चाँद
और फिर तुमको, चुपके से देखता हूँ..
...शायद कोई कविता रच रहा है कहीं.
बिखरे भावों को कितने खूबसूरत अंदाज़ में समेटा है आपने.....
वो डायरी में गज़ल लिखते हैं,
पन्ना पन्ना गुलाब न हो जाये.
कमाल का भाव है.
सभी शब्द-चित्र बहुत सुन्दर लगे, लेकिन
यह धूप मुझे कभी नहीं भाती है..
बड़ी अजीब सी परछाई बनाती है..
इसे तो कई बार पढा- बार बार पढा. अद्भुत.
बगिया बगिया घूम के देखा
फूल तोड़ना सख्त मना है..
कांटो की रक्षा की खातिर
कभी न कोई नियम बना है.
मुझे तो यह सबसे अच्छी लगी .. विचारों को सुंदर अभिव्यक्ति दे पाते हैं आप !!
@ समीर जी , हौसला बढ़ाने के लिए आभार
अपने लिखा .......... लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
तो आगे से और ज्यादा कोशिश रहेगी प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करने की एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की भी ...........आपको भी अनेक शुभकामनाएँ!
Respected samirji
maree Hasti ko jo meeta saky aisa ab tak koi mila nahi wah kya bat hai moti kee mala mai sumaru kee tarh.
वाह!क्या गजब शब्द चित्र हैँ!एक एक चित्र सम्पूर्ण बिम्ब उकेरता है।इसे कहते हैँ अभिव्यक्ति ।आपके चिँतन,भाषा एवं प्रस्तुति को नमन।
*मेरे ब्लाग पर भी पधारिए-स्वागत है।
omkagad.blogspot.com
हम्मैं ऊ अज्ञानी का पता पठाय दे,
जे तुमका इत्ता ज्ञान घोर के पियावत रहा !
अउर ई समेट वमेट काहे रहे हो, भाई..
कहूँ केर तैयारी है का ?
रात भर चाँद छत पर, कराहता रहा..
जाने क्यूँ, तू मुझे याद आता रहा.
वाह क्या बात है !!!!!!!!!!!!!!!!
किसी से कोई शिकायत नहीं
और किसी से कोई गिला नहीं,
मेरी हस्ति को जो मिटा सके,
ऐसा अब तक कोई मिला नहीं
आपकी खुद्दारी को सलाम...अपनी बिखरी रचनाओं को समेटने और हम तक पहुँचाने का शुक्रिया.
नीरज
इन्हें बिखरे भाव की जगह अनमोल मोतियों का खजाना कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा |
बहुत खूबसूरत भाव...मन आनंदित हो गया सब पढ़ कर....बधाई सुन्दर प्रस्तुति के लिए.
bahut bahut sundar likha hai...
aur aapne jo sandesh mujhe diya hai,sir aankhon par hai sir ji :)
भूगोल की बात जबसे, इतिहास हो गई
रिश्तों के बीच मानिये, मिठास खो गई
वादा निभाने को वो न लौटे समीर
हर शाम जिंदगी बस उदास हो गई.
समीर जी यह हुयी कोई बात.......बहुत सुन्दर रंग बिखेरे हैं आपने इस पोस्ट में......मज़ा आ गया.
वाह...
वाह समीर भाई ... बिखरी यादों और बिखरे हुवे शब्दों को समेत कर बुना ये जाल लाजवाब है ...
हर बात जुदा है.. हर अंदाज़ जुदा है ... जीवन के पन्नों पर रचा इतिहास है .... बहुत खूब ...
apane apane khoobsurat bhavo ko khoobsurati ke saath samete huye bikhera hai saari hi rach anaayen bahut hi achhi lagi .hardik aabhar .
poonam
bahut achhi prstuti.
जिन्दगी से इतने करीब से मिला हूँ मैं
कि अब किसी भी बात पर चौंकता नहीं.
bahut khoob
gahe bagahey nikal aata hun un galiyon mei jahan abhivyakti vyakti ka intzaar karti hai..bhavna milti hai, kalpna rukti hai..aankhon ke koney se moti ke boond chalak aatey hai,,,fir aaunga, kab aunga maloom nahin musafir hun..
एक तारों भरा आकाश है..
मुझे रोशनी की तलाश है.
यह धूप मुझे कभी नहीं भाती है..
बड़ी अजीब सी परछाई बनाती है..
तुम्हारे प्यार ने दुनिया मेरी बदल डाली
रात के चाँद में दिखती है सुबह की लाली.
कुछ है जो छू गया मन को ..........
हर भाव खूबसूरत, दिल को छू लेने वाली । लाज़वाब । और पढ़ने की तमन्ना है । दिल के भावो को शब्दो का रूप देते रहिये ।
आपकी टिप्पणी मिली ! आभार! पोस्ट ग़लती से प्रकाशित हो गई थी! चलों इस बहाने आपने आशिर्वाद दिया मैं प्रोत्साहित हुआ! आपका ब्लोग नियमित देखता हूं!
समीर जी, नमस्कार,
बिखरे हुए भावों को और पंक्तियों को जिस अंदाज में आपने पेश किया है, काबिले तारीफ़ है, पढ़ कर महसूस हुआ कि जिन रचनाओं को हम शुरू तो करते हैं लेकिन पूरा नहीं कर पाते वो भी कितना महत्व रखती है, सचमुच आप से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
अरे वाह.. बहुत बढ़िया मुखड़े हैं.. अच्छे हैं खूबसूरत हैं...
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
aaphee ke shavdo ka prayog kar rahee hoo.........
यह धूप मुझे कभी नहीं भाती है..
बड़ी अजीब सी परछाई बनाती है..
रात भर चाँद छत पर, कराहता रहा..
जाने क्यूँ, तू मुझे याद आता रहा..
अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! शुरू से लेकर अंत तक आपने बहुत ही ख़ूबसूरत अंदाज़ के साथ प्रस्तुत किया है जो बेहद पसंद आया! बधाई!
bhavuk man ki baate bhavuk man hi samajh paata hai...aur vo bhavuk man aap jo shabdo ka bhi sahi chunaav kar sake aap se behtar kon hoga...
achhe ehsas.
"पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर
बहुत बढ़िया लिखा अंकल जी. कैसे हैं आप. वहां राम-नवमी मनाया की नहीं.
" बढ़िया है ....रामनवमी की शुभकामनाएँ...."
amitraghat.blogspot.com
डूबती शाम,
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं..
डर जाता हूँ मैं..
आदरणीय समीर जी, आपकी इन बिखरी पंक्तियों में जीवन दर्शन ----साहित्य---रचनात्मकता---- शिल्प सभी कुछ तो समाहित है। शुभकामनायें।
भूगोल की बात जबसे, इतिहास हो गई
रिश्तों के बीच मानिये, मिठास खो गई
वादा निभाने को वो न लौटे समीर
हर शाम जिंदगी बस उदास हो गई.
बहुत खूब
वाह यह भी बिलकुल सही है, मोतियों को चुन चुनकर बाद में माला बना लेंगे|
एक से बढ़कर एक मोती !!!
badiya hain SAMEER ji..wah..
Ramnavmiki anek shubhkamnayen!
sir ji, aap to 'udantashtari' ki tarah chha gye ho......badhaai.
kuchh maine bhi likha h, aapke housle ki jarurat h.....ek baar dekhiyega zaroor.
चचा स्पीचलेस हूं, आपकी तारीफ करुं तो यह छोटा मुंह बड़ी बात होगी..क्या बात है नाराज़ चल रहे हैं क्या आजकल हमारी ब्लॉग बगिया में नहीं पधारते? सादर, गुस्ताख़
अच्छा लगा बहुत - सा अच्छा देख!
bahut sundar hai sameer bhaiya....
समेटना बिखरे भावो का,जो एकत्रित हो जाये तो असंभव भी संभव हो जाए,शुभकामनाओ के साथ...
राम नवमी पर हम देश की खुशहाली के लिए दुआ करते हुए ये ' क्जमकते सुन्दर रंगबिरंगी मोती
से शेर एक शानदार पुस्तक रूपी माला में दूंथ जाएँ ये कामना है - सभी शेर पसंद आये समीर भाई
स्नेह,
- लावण्या
जिस दिन कुछ शब्द उँगलियों से उतरते है
वो दिन क्यों सांझ ढले भी चढा लगता है
ऐसा ही ख्याल आया इन्हें पढ़ कर..
एक बड़ी प्यारी प्रस्तुति |बधाई
आशा
वाह ....ये अनमोल खजाना तो हमसे छूट ही गया ........लाजवाब ....दिल छू गया ......!!
एक तारों भरा आकाश है..
मुझे रोशनी की तलाश है.
----------
बहुत सुन्दर।
यह मुझे भी लगता है। रोशनी की तलाश बहुधा गलत कोण से और गलत जगह करता हूं!
बिखरे मोती है यह तो हर मोती अपने अंदाज़ में खूबसूरती बिखेरता हुआ ..शुक्रिया इनसे रूबरू करवाने के लिए
एक बेहतरीन खयाल आया है कि कवि समीर लाल की इन पंक्तियों के एस एम एस बनाकर मित्रों को भेजे जायें
एक टिप्पणी भेजें