याद है जबलपुर से दिल्ली जाया करता था. यदि कोई साथ में नहीं है तो मैं टी सी से निवेदन करके अपनी एसी में अन्दर की बर्थ, जिसके लिए हर साईड बर्थ वाला इच्छुक होता है, साईड बर्थ वाले से बदल कर पर्दा खींच कर बैठ जाया करता था.
पूरे सत्रह घंटे का सफर ५ से ६ घंटे सोने के सिवाय या तो किताब पढ़ते या खिड़की से बाहर झांकते बिना एक भी शब्द बोले गुजार दिया करता था.
लोग मुझे हरदम बातूनी ही समझते रहे हैं आज भी. लेकिन मेरी पसंद चुप रहना ही है. मुझे कितने भी लम्बे समय तक चुप रहने, अकेले बैठे रहने में बोरियत का अहसास नहीं होता.
शायद सभी के साथ ऐसा हो कि जैसे वो जाने जाते हैं, या जैसे वो माने जाते हैं या जैसे वो दिखते हैं या जैसे वो व्यवहार करते हैं दरअसल वो और उनकी पसंद उससे जुदा होती है.
वैसे भी मेरा मानना है कि चुप रहकर या मौन रहकर बहुत सी समस्याओं को हल अपने आप ही स्वतः हो जाता है. बात तो तब बढ़ती है, जब दोनों पक्ष बोलते हैं. एक यदि चुप ही रह जाये या बहुत कम बोले तो बात बढ़ने की गुजांईश जरा कम ही होती है. मौन की भी अपनी आवाज होती है जो बोलने वाले तक आपके भाव पहुँचा देती है.
अक्सर चुप रह जाने वाले व्यक्ति को कायर भी समझ लिया जाता है लेकिन उससे फर्क क्या पड़ता है. ऐसा समझना भी एक ललकार जैसा ही है. हाँ, अगर ऐसा लगे कि बिना बोले शायद आप की चुप्पी की फायदा उठाकर बात समाप्त होने के बजाय बढ़ाई जा रही है और मौन घातक सिद्ध हो सकता है, तो फिर जुबान तो साथ है ही, जरुर बोल देना पसंद करता हूँ लेकिन उतना ही, जितना जरुरी है.
वैसे अक्सर ही मैने अपने आसपास मेरी खामोशी से परेशान होते लोगों को देखा है. खीझ भी उठते हैं लोग मुझ पर कि कुछ तो बोलो.
मूड स्विंग हर मानव के साथ होता है. कभी खुश तो कभी दुखी. कभी प्रफुल्लित तो कभी उदास. कारण कुछ खास नहीं होते-बस यूँ ही.
कभी बेवजह बोल देने का मन भी हो आता है, कभी मजाक करने का भी, कभी ठिठोली भी. कोशिश होती है कि किसी का अपमान न हो. जब मजाक करता हूँ तो मजाक सहने का माददा भी रखता हूँ. लेकिन वो जो बेसिक नेचर है, वो नहीं बदलता और लौट लौट कर उसी पर आ जाता हूँ.
क्या आपके साथ भी ऐसा ही होता है?
एक गज़ल कहने का मन हो आया है:
मरने वाले से पूछो तुम जहर की खामोशी
कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी
खुद ही देख लेना तुम क्या ये गुल खिलाती है
कह रही बहुत कुछ है ये लहर की खामोशी
कहना भी तर्रनुम में जो ग़जल लिख चले हो
जान लोगे तुम खुद ही इस बहर की खामोशी
हादसा हुआ और हम हो गये हैं गूंगे से
पर जुबान खोलेगी अब शहर की खामोशी
दी है ये खबर किसने लोग लड़ रहे हैं सब
यूं न बदज़ुबां होगी उस कहर की खा़मोशी
-समीर लाल ’समीर’
जरुरी नोट:
दो दिनों के लिए एक ऐसे स्थान पर आ गया हूँ, जहाँ इन्टरनेट की डायल अप की सुविधा अपनी गति से चल रही है. अधिकतर तो बैठी ही है मौन. पुराने समय का भारत याद आ रहा है जब १९९९ में छोड़ा था. उस वक्त डायल अप लगा कर हर पन्ने के खुलने के लिए वैसे ही इन्तजार करना पड़ता था जैसा नेताओं के चुनाव घोषणा पत्र में किये गये वायदा वाले पन्नों के खुलने का इन्तजार करना होता है. खुल गये तो वाह वाह, नहीं खुले तो हमें तो मालूम ही था.
शनिवार को घर से स्थितियाँ यथावत हो जायेंगी. पोस्ट तो शेड्यूल्ड है तो हो ही जायेगी. कमेंट भी टॆलिफोन से एप्रूव हो जायेंगे समय बे समय. दूसरे चिट्ठे पढ़ने की कोशिश करता हूँ. देखें, कितना सफल हो पाते हैं.
117 टिप्पणियां:
कुल मिला कर कला और कलाकार की जय!
आप खामोश रह कर बोलना सिखाने की क्लास ले रहे हैं?
हर बार की तरह आपकी लेखनी गुदगुदा गई...धन्यवाद..
इस समय मैं कैलीफोर्नियां में हूं इधर आना हो तो संपर्क करियेगा..शेष आपकी सीख मौन की साधना कर रही हूँ :)
डा.रमा द्विवेदी
समीर जी मैं तो यही समझता था की आप बातूनी होंगे, पर मेरा guess गलत निकला | चलिए अब तो सच पता चल गया |
विपरीत परिस्थितियों मैं खामोस रह जाना आसान नहीं होता..... वैसे खामोस रहना भी एक कला के सामान है |
में तो मौन को सबसे बड़ा हथियार मानता हूँ याद कीजिए अपने पूर्व प्रधानमंत्री नर सिम्ह्वा राव को , मौन रहकर पुरे पांच साल भारत की सरकार चला गए |
गुस्से के पाले में कबड्डी खेलने पर भी ऐसा होता है:बड़बोला मौन हो जाता है, मितभाषी बड़बोला हो जाता है। धीमे बोलने वाला चिल्लाने लगता है। चिल्लाने वाला चिंघाड़ने लगता है। चिंघाड़ते रहने वाला हकलाने लगता है। हकलाते रहने वाले के मुंह में ताला पड़ जाता है।
होता होगा कोई कायर हम आप तो शायर हो लिये।
हम तो भगवतीचरण वर्मा की कहानी दो बांके के देहाती को याद कर रहे हैं: ”मुला स्वांग खूब भरयो।”
समीर जी,
पसंद आई गज़ल और आपकी खामोशी
कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी
अश’आर दिल कोछूते हुये बहुत कूछ कह जाते हैं खामोशी से।
मैं भी अंतर्मुखी तो नही पर मौन का साधक जरूर हूँ, घंटों बिना कुछ बोले अपने में ही गुम रहना पसंद आता है।
बहुत ही अच्छी पोस्ट!!!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कौन कहता है आप बातूनी नही है. मौन का बातूनीपन शायद सबसे सघन होता है
I can hear the sounds
With your singing dart.
Silence is the best speaker
Hear the sound by heart.
गज़ल ने तो दिल को छू लिया.
मूड स्विंग हर मानव के साथ होता है. कभी खुश तो कभी दुखी. कभी प्रफुल्लित तो कभी उदास. कारण कुछ खास नहीं होते-बस यूँ ही.
यह तो बहुत ही सटीक बात कही आपने.
मूड स्विंग हर मानव के साथ होता है. कभी खुश तो कभी दुखी. कभी प्रफुल्लित तो कभी उदास. कारण कुछ खास नहीं होते-बस यूँ ही.
यह तो बहुत ही सटीक बात कही आपने.
bahut sundar dhang se aapane maun ko abhivyakt kiya. dhanyavad.
पहली बार आया हूं आपके ब्लाग पर. आपने मौन के फ़ैलाव को अच्छी अभिव्यक्ति दी है. बहुत सुंदर.
पहली बार आया हूं आपके ब्लाग पर. आपने मौन के फ़ैलाव को अच्छी अभिव्यक्ति दी है. बहुत सुंदर.
वाह लाजवाब गजल और मौन की परिभाषा तो बडी मस्त है।
हैप्पी ब्लागिंग।
मौन परमात्मा है. आज आपके साथ बहुत बडी उप्लब्धि जुडने की प्रबल संभावना है. यह ताऊ देवैज्ञ की भविष्यवाणी है.
अब हमने भी ज्योतिष की भविष्यवाणियां करना शुरु कर दिया है.
रामराम.
दो दिनों के लिए एक ऐसे स्थान पर आ गया हूँ, जहाँ इन्टरनेट की डायल अप की सुविधा अपनी गति से चल रही है. अधिकतर तो बैठी ही है मौन. पुराने समय का भारत याद आ रहा है जब १९९९ में छोड़ा था.
ऐसी जगह आप कहीं मौन धारण करने की वजह से जानबूझकर तो नही चले गये हैं?
रामराम.
आपके मौन में भी शेर की दहाड़ है. बड़े बड़े बतकहिंयां शांत हो जाते हैं आपके मौन को देखकर.
शायद चुप रहने वाले में बहुत आत्मविश्वास होता है। शायद अधिक बोलने वाला अपने आप से डरता है। मैं तो चुप नहीं रह सकती। कोई न मिले तो स्वयं से बोल लेती हूँ। बिना आवाज के भी बात हो सकती है।
घुघूती बासूती
आपका लेख पढ़कर महाभारत के -विदुर- याद आ गये।
आपका लेख पढ़कर महाभारत के -विदुर- याद आ गये।
मौन रहकर बहुत सी समस्याओं को हल अपने आप ही स्वतः हो जाता है...
kya kahoon bus maun hoon...
:)
aur ye ghazal 'original' aapki hai...
ya 'lamaskaar' branded ?
jo bhi hai 'Awesome' Ghazal...
खामोशी के क्षणों में ही हम स्वयं से बातचीत कर पाते हैं। ऐसे कितने ही अनसुलझे राजों से पर्दा उठता है जिन्हें हम बोलते हुए नहीं सुलझा पा रहे थे। सफर में बेमतलब की बातों से खामोशी ही भली लगती है। नए विषय की वार्ता के लिए बधाई।
मौन एक व्रत है और व्रत से लाभ ही होता है।
क्या हो गया अब -मौन अचानक ही मुखर हो उठा !
चुप्पी तो बहुत मुश्किल कला है.. आपने साध ली बधाई..
बहुत सुंदर पोस्ट.
कहना भी तर्रनुम में जो ग़जल लिख चले हो
जान लोगे तुम खुद ही इस बहर की खामोशी
हादसा हुआ और हम हो गये हैं गूंगे से
पर जुबान खोलेगी अब शहर की खामोशी
ye sher bahut pasand aaye. khamshi ke saaz bhi kabhi tarannum se lehrane dene chahiye.sahi hai kuch masle aise hi haal ho jaate hai tab.
एक खामोश पसंद व्यक्ति इतनी बड़ी बड़ी सोचनीय और स्मरणीय और अनुकरणीय बातें कह जाता है सच में बहुत बड़ी बात है..जिसे शब्द सुनना कम पसंद हो उसके पास शब्दों के सागर हो...मुझे लगता नही पर जब आप कह रहे हैं तो मानना ही पड़ेगा.वैसे मेरे हिसाब से मौन रहने वाला व्यक्ति भी बातुनी हो सकता है..क्योंकि चुप रह कर भी बातें ख़तम थोड़े ही होती है..वो तो मस्तिष्क और मन में निरंतर चलती रहती है..
ग़ज़ल अच्छी लगी..जैसा हमेशा लगती है......बधाई..
खामोश रहना | सिर्फ जुबान का होता है विचार अनवरत चलते रहते हैं जब खामोश होते है हैं तो मन के अन्दर बहुत कुछ चल रहा होता है | खामोशी सागर मंथन जैसी है | विचार सागर मंथन और उसमे बहुत से अमूल्य रत्न प्राप्त होते हैं |
मेरी माँ भी येही कहेती हैं,"एक चुप सौ को हराता है |"
बहुत बढ़िया आलेख | आभार |
कम बोलने वालों से लोग डरते हैं क्योंकि मालूम रहता है की वह गूंगा कतई नहीं है. आपकी रचना बहुत अच्छी लगी.
मैं जहां तक आपको जानती हुं आप हर रंग में रंग जानेवाले इन्सान हैं। आदमी का मेनेजर जब उदास या ख़ामोश होता है जब दर्द हो। ये दर्द कोइ सा भी हो सकता है। अपना नहिं पराया भी हो सकता है।
जैसे कि अगर हमारा कहीं मेले में या भीड में चले गये वहां कभी चाट,या कुछ खाते हुए अगर कोइ ग़रीब बच्चा हमें अपनी ओर तकता हुआ दिखाइ दे तो भी दर्द होता है।
मेरा मानना यही है कि फ़िलहाल आप किसी दर्द से गुज़र रहे हैं। हैं ना?
समीरभाई को तो सदा बोलते ही रहना चाहिये वरना हमारा ब्लोगर "ख़ामोश: हो जायेंगे।
अरे आप के साथ भीईई ऐसा होता है????
सचमुच मैं भी ऐसा ही हूं
प्रणाम स्वीकार करें
एक चुप्प हजार सुक्ख ।
खामोशी पर बढिया गज़ल ।
सुनते आये हैं, की एक चुप सौ को हरावे.
लेकिन कभी कभी खामोशी भी एक अपराध बोध का अहसास देती है.
वैसे यदि मौन रहकर ही काम चलता रहे, तो बेकार में बड़ बड़ क्यों करना है.
आखिर ब्लोगिंग भी तो विचारों की मौन अभिव्यक्ति ही है.
हमेशा की तरह ग़ज़ल कमाल की और सामायिक होते हुए तर्कसंगत है.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, हर पंक्ति अपने आप में लाजवाब, आभार
सुखी विवाहित जीवन का मन्त्र एक मनोरोग विशेष्य्ग से सीखें.
जब एक बोले तो दूसरा चुप रहे.
यदि दोनों बोले तो मुसीबत, यदि दोनों चुप तो भी मुसीबत.
हार्दिक बधाई..यह आपके ब्लाग पर 14999 वीं टिप्पणी है. शुभकामनाएं.
और ये बना इतिहास.....हार्दिक बधाई..यह आपके ब्लाग पर 15000 वीं टिप्पणी है. शुभकामनाएं.
:। मौन टिप्पणी...
भविष्य के लिये शुभकामनाएं... अग्रिम हार्दिक बधाई २५००० के लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करने के ये.....यह आपके ब्लाग पर 15001 वीं टिप्पणी है. शुभकामनाएं.
हादसा हुआ और हम हो गये हैं गूंगे से
पर जुबान खोलेगी अब शहर की खामोशी
बहुत बढ़िया.... खामोश रह कर बात करना भी एक कला है और यह हर किसी के बस की बात नहीं ..कई बार जी दिखता है वह सच नहीं होता है
gahara pani mon hi rahata hai .aap to samudra nikale .
if ur silent it means ur creating something .congratulations.
खामोश :)
"क्या आपके साथ भी ऐसा ही होता है?"
हां जी,.........मैं चुप हूँ:)
समीर जी....अरे बाबा बिन बोले केसे गुजारा होता है...
समीरजी अब मैं समझी की इतना अच्छा आप कैसे लिख लेतें है. मौन रह कर बहुत कुछ सोच लेतें है और उसको शब्दों में परिवर्तित कर लेते है.
मौन तो गंभीर होने का परिचायक है. आपकी पोस्ट पढ़ते-पढ़ते लोग आपको मजाकिया समझने लगे हैं :)
Mujhe to post ka TITLE hi sabse zyada pasand aa gaya...
bahut hi sahi kaha....
ek baat kahani thi....is topic se thodi hat kar hai
Aap ko dekh kar "Saurabh Shukla ji" (are wahi Satya film wale Kallu Mama) yaad aa jate hain...kya aapse kaha hai kisi ne???? reference ke liye:http://en.wikipedia.org/wiki/Saurabh_Shukla
post to jandar hai hi :)
ख़ामोशी की भी जुबान होती है । और आपकी और मेरी ये आदत तो मिलती है । दिल्ली से भोपाल लौटते समय पूरा आठ घंटे का सफर खिड़की से बाहर देखने में ही बिताता हूं । सहयात्री से बात करना भी नहीं भाता । ग़ज़ल तो पहचानी हुई दिख रही है शायद तरही वाली है । लगभग डेढ़ माह तक नेट की दुनिया से दूर रह कर वापस आया हूं । आशा है आपका योग और भ्रमण चल रहा होगा ।
उडनतशतरी ...मौन .....यानि..साईलेंसर मोड पर.....कमाल की गज़ल है.....क्या ये भी साईलेंसर मोड में है...जो भी हो गुरू देव ...मौन मौन में ..ही रिकार्ड बना दिया आपने....मुबारक हो......
"पूरे सत्रह घंटे का सफर ५ से ६ घंटे सोने के सिवाय या तो किताब पढ़ते या खिड़की से बाहर झांकते बिना एक भी शब्द बोले गुजार दिया करता था."
कुछ ऐसे ही नखरे हम भी कभी कभी दिखा लेते हैं ।
safal hi safal hain aap to, badhia likhte hain.
मौन परमात्मा है. आज आपके साथ बहुत बडी उप्लब्धि जुडने की प्रबल संभावना है. यह ताऊ देवैज्ञ की भविष्यवाणी है.
अब हमने भी ज्योतिष की भविष्यवाणियां करना शुरु कर दिया है.
@ ताऊ जी !
आप ताऊ है कुछ भी कर सकते है तो ज्योतिष की भविष्यवाणियां क्यों नहीं ! आपकी भविष्य वाणी ताऊ .इन पर पढ़ आये है |
मौनम् सर्वार्थ साधनम् ....
कविता के बारेमे ...मरनेवाला तो मर गया , जीने वालों से पूछो उसने क्यों ज़हर लिया ?
आपके लेखन पे कमेन्ट करनेकी काबिलियत नही रखती...फिरभी कर दिया...कुछ गलती / गुस्ताकी हो तो क्षमा करें !
अब मै क्या बोलू हमेशा की तरह पढ़ कर चुप चाप चला जा रहा हु .
15 हजारवीं टिप्पणी तो हम करने मे कामयाब रहे पर १५०००१ वीं टिपणी का श्रेय श्री संजय बेंगानी जी के हाथ आया. बहुत बधाई संजय बेंगानी जी को.
पुन: आपको भी बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
रामराम.
मौन रह के भी बहुत कुछ बोल देते है आप तो !
अब देखिये न की आप ऐसी जगह पर है जहा इन्टरनेट डाउन लोदिंग भी दिक्कत कर रही है, फिर भी आपने इतना कुछ कह डाला,
बहुत सुन्दर !!
हम बोलेगी तो बोलेंगे की बोलती है....इसलिए हम कुछ नहीं बोलेगी....:-)
हमसे क्या कहते हैं ....हम तो मौन रहकर ही शिक्षण कार्य किया करते हैं
.
.
.
खामोश रहना मुझे भी पसंद है...
पर यह पोस्ट नहीं रहने देती...
सोचने को भी बहुत कुछ मिला आज...
बहुत अच्छी पोस्ट!
पंद्रह हजार से ऊपर टिप्पणी प्राप्त हिंदी चिट्ठाकार होने की बधाई!
सच कहा आपने, खामोशी बहुत खूबसूरत होती है पर विरले ही नसीब होती है.
Who knows, What lies within !
लोग समझेंगे कि मैं इन्ट्रोवर्ट और स्नाब हूँ, सो
मैं जल्द ब जल्द किसी से घुल-मिल न पाता रहा ।
अब तक यह स्वीकार करने में मुझे झिझक होती रही ।
आज यह पोस्ट देख कर मेरा भी कुछ हौसला बढ़ा, सहमत हूँ ।
मौन रह कर बेलगाम ख़्यालों को भटकाना और भटकते रहने देना सुख देता है ।
आइये, हम मिल कर एक नया गुट बनायें.. क्या आप इस गुट में शामिल होना चाहेंगे ?
अक्सर मौन भी बहुत कुछ कह जाता है.....
दी है ये खबर किसने लोग लड़ रहे हैं सब
यूं न बदज़ुबां होगी उस कहर की खा़मोशी
खामोशी के पीछे बहुत से रहस्य छुपे रहते है .बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति . क्या कहने ..... आभार
गुरुदेव, लखनऊ में मन बेहद उदास है...नेट पर एक बेहद ज़रूरी काम था...उसे ही निपटा रहा था...आपकी पोस्ट पर नज़र पढ़ गई...मौन पर जो आपने लिखा...वही मैंने लखनऊ में महसूस किया कि मौन बिना बोले कितना कुछ बोल जाता है...अब ये संयोग ही है कि जो आपने लिखा, ठीक वैसा ही मैंने अपनी पोस्ट में भी लिखा...शायद टेलीपेथी इसे ही कहते हैं...आपने हज़ारों मील दूर होते हुए भी मेरी व्यथा बिना कहे सुन ली...कहीं कोई कमेंट देने का मन नहीं था, लेकिन यहां खुद को रोक नहीं पाया...
टिप्पणी आपकी इस पोस्ट पर देना चाहता था, बहुत सुन्दर लिखी है कविता और पोस्ट दोनों ही...
लेकिन क्या करूँ...
अभी अभी डायरेक्ट ऑनलाइन से मालूम चला है की आप पंद्रह हजार पार पहुँच गए हैं...
ऊपर वाली लाइन को रद्द समझा जाये और केवल नीचे वाली लाइनों पर ध्यान दें...
श्री समीर लाल जी उड़न तश्तरी वाले,
अभी अभी किसी ने सुचना दी है की आप पंद्रह हजार के पार चले गए हैं... (टिप्पणियों के मामले में)
हमारी बधाई स्वीकार करें... भगवान आपको दिन दूना और रात चौगुना करे (यहाँ भी टिप्पनिया पढ़ी जाएँ... )
किरान्गचुलेसन....
yeh baat to sahi chuppi mein bahut taaqat hai........ SILENCE IS THE BIGGEST LOUD.......
मौन बैठने से शरीर और दिमाग की बैट्री रीचार्ज होती है ऐसा मेरा अभी तक अनुभव रहा है। यार-दोस्तों आदि में मैं कितना ही बोल लूँ और लोग मुझे बातूनी कहें लेकिन घर में मैं अधिकतर मौन ही रहता हूँ! इसलिए यदि दोस्तों के बीच चुप बैठा रहूँ तो उनको लगता है कि कदाचित् मेरी तबीयत खराब है जो मैं चुप बैठा हूँ, ही ही ही!! :D
बहुत बढ़िया लगा यह लेख हमेशा की तरह।
समीर लाल जी!
आज बहुत व्यस्तता रही इसलिए देर से आया हूँ!
बस इतना ही कहना चाहता हूँ-
आपको सम करते हैं प्यार,
इसीलिए तो हो गई हैं-
टिप्पणियाँ पन्द्रह हार के पार!!
भइया चुप रहने में ही भलाई है।
हुन्गामा के हंगामें से
अपने राम को क्या लेना-देना।
सही रास्ता चुना है,
दूर-दूर रह कर ही मजा लेना!!
baahar jo dekhate hai,
vo samjhenge kis tarah,
itane gamon kee bheed hai,
is aadamee ke saath....
सुंदर अभिव्यक्ति है ।
मौन को भी व्यक्त करने के लिए बोलना ही पड़ता है । एकांत व मौन की साधना से जहां एक ओर स्वयं का अवलोकन करने का अवसर मिलता है; वहीं दूसरी ओर स्वयं के सान्निध्य का आनंद भी मिलता है ।
मौन के भी अपने स्वर होते हैं
मौन की भी शक्ति होती है
मौन हमें अपने आप से मिलाता है
मौन हमें प्रकृति से जोड़ता है
मौन की अनुगूंज ही परमपिता तक पहुंचती है !
भाई समीर जी आपके अंतर्मन की बात भी
अच्छी लगी और ग़ज़ल भी !
ख़ास तौर पर ये शेर :
हादसा हुआ और हम हो गये हैं गूंगे से
पर जुबान खोलेगी अब शहर की खामोशी
[समीर जी नेट की स्पीड का तो जिक्र ही क्या करना ? जब तक यहाँ गूगल इमेज का एक पेज पूरा खुलता है तब तक आप जैसे महारथी झंडा गाड़ चुके होते हैं :) ]
चलते-चलते एक बात और -
बाहर भाई लोग 15000 टिप्पणी पाने पर मुबारकबाद दे रहे हैं ...... अब इन्हें कौन समझाए की कितने घाटे का सौदा है, कम्बख्त जितना इनवेस्टमेंट किया उसका 10% भी रिटर्न नहीं है !
आजकल परदेस मे नोस्टाल्जिया का मौसम चल रहा है क्या सर जी..वैसे नये पक्ष भी पता चले आपके व्यक्तित्व के चुप रहना और टी सी से सलट लेना ;-)
पोस्ट की खामोशी गहरे तक खामोश कर गयी.
आपके पहलू में भी आकर है रुकी देख लिया
हम तो समझे थे यहीं पर ठहरती खामोशी
hazoor je ittee saareetippaniyaa kya karoge kuchh idhar bhee bhej do benami hee sahee
सबको पता है कि आप चिट्ठे पढ़ने में भी सफल हो ही जाएंगे।
आप खामोशी से खामोश रहकर
चुप्पी तोड़ गए,
हुजूर, आप चुप रहकर भी
बहुत कुछ बोल गए।
बहुत बढ़िया लगा फिर वो ही पुराना अंदाज। आपने जो ये चलन चलाया है बहुत ही बेहतरीन बन पड़ा है। गद्य-पद्य साथ-साथ। बहुत ही उम्दा लगा कला के महारथी का ये नजराना।
15000 टिप्पणीयों के कीर्तिमान पर आपको बहुत-बहुत बधाई समीर जी।
मौन रहकर बहुत सी समस्याओं को हल अपने आप ही स्वतः हो जाता है...
बहुत अच्छी पोस्ट!!!
कहीं ये खामोशी कान के पर्दे न फाड़ दे।
छेदती है यह।
प्रणाम के साथ शुभकामनायें स्वीकार करें !
क्या आपके साथ भी ऐसा ही होता है?
अक्सर होता है।
तभी तो संगीता जी को, आपकी पोस्ट के पहले ही, बिन माँगी सलाह दे आए थे कि मौन भी बहुत कुछ कहता है, मैंने जाना है।
... और 15000 टिप्पणियोंनुमा मील के पत्थर की बधाईयाँ आपको
मैं तो जानता हूं - मौन ज्यादा सोचता और सटीक बोलता है।
और अपने के बारे में जानता हूं कि जितना मौन होता हूं, उतना शृजन करता हूं!
पहली ही टिप्पणी में दिनेश जी ने सारा सारांश कह दिया है ।
मौन कई बार एक अनिवार चेतना या विचार का अभिव्यक्तन भी है । मौन गहरा हो तो अभिव्यक्ति के कई आयाम यूँ ही खुलने लगते हैं ।
आपकी गजल ने बहुत लुभाया । आभार ।
यह पोस्ट पढ़ने के बाद एक बार फिर से कोशिश करुँगी कम बोलने की। मै अगर चुप हो जाती हूँ तो लोग मुझे बीमार समझने लगते है।
"मुझे कितने भी लम्बे समय तक चुप रहने, अकेले बैठे रहने में बोरियत का अहसास नहीं होता."
ऐसा लगा जैसे आपने मेरे मन की बात लिख दी...अब इस पर क्या कहूँ..??अंग्रेजी में जो कहते हैं कह दूं...? "वाईज मैन थिंक अलाईक " ...:))
आप को वाईज कह दिया आपने बुरा तो नहीं माना ? :)) :)) :))
ग़ज़ल बहुत अच्छी है...बहुत माने बहुत ही अच्छी...
नीरज
बधाई हो । अब आप की टिप्पणियां सचिन की रन संख्या को जल्द ही पार करे और साथ ही हर पोस्ट पर शतक पर शतक लगे ।
एक बात आप की पोस्ट के संबंध में--
"सौ वक्ता को एक चुप्पा आसानी से बिना प्रयास के ही हरा देता है ।"
आभार..!
आपकी लिखी गज़ल पसंद आई
bilkul mujhe bhi aisa rahna achchha lagta hai...
baki to maine apna safarnama likh hi diya hai bahut pahle hi..:) :) :) :)
aapka blog save kar ghar le ja rahaa hoon...vahin fursat se padhunga...
kyonki idhar bhi dial-up seva hai..:) :)
aapko aur bhabhi ji ko navratri ki dheron shubhkamnaayen...
"खामोश रहना मुझे पसंद है" सही है क्योंकि आंटी जी बोलती होंगी.
समीर भाई ........... किसी काम से आजकल टैक्सस में हूँ ........आपकी ग़ज़ल का आनंद ले रहा हूँ ....... अकेले में छुट्टी का दिन .... ब्लोगेर्स की रचनाओं का आनंद ......... चाय की प्याली हाथ में ........... पुरानी यादों की खुली किताब ................ और सब कैसे हैं .......... भाभी को और आपको और घर में सभी को ......... नवदुर्गा पूजन और दशहरे की शुभकाननाएं
मुझे तो लगता है आप बोल कर हमे चुप करवाने की कोशिश कर रहे हैं गज़ल बहुत अच्छी है । लगता है इस बार 100 पर पोस्ट का टार्गेट है ? शुभकामनायें
आपकी चुप्पी से तो डर लगता है.
बहुत खूबसूरत मौन की जुबान रही. गजल बहुत अच्छी लगी.
khamoshi asar kar gai
हादसा हुआ और हम हो गये हैं गूंगे से
पर जुबान खोलेगी अब शहर की खामोशी
दी है ये खबर किसने लोग लड़ रहे हैं सब
यूं न बदज़ुबां होगी उस कहर की खा़मोशी
पहली कोटा से...सौवीं रावतभाटा से...
पूरी सदी का फेरा लिया है...आपको घेर लिया है..
कहना भी तर्रनुम में जो ग़जल लिख चले हो
जान लोगे तुम खुद ही इस बहर की खामोशी
बहर खूब ख़ामोशी बयां कर रही है....
ए ल्लो ...
खामोशियाँ,
ग़ज़ल बन कर
गुनगुनानें लगीं ..
समीर भाई ,
आप के स्वभाव के हर पहलू के
दर्शन हो रहे हैं
और
सभी पसंद आ रहे हैं ..:)
- लावण्या
मरने वाले से पूछो तुम जहर की खामोशी
कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी
कुल मिलाकर हम जैसी ही हैं आपकी भी आदतें। हम भी घंटों बिना बोले रह लेते हैं। यूं कहें कि जबर्दस्ती बोलते हैं। पर लोग हमें बातूनी समझते हैं।
आपकी ज़िन्दगी की खुली किताब का यह पन्ना मुझे अपनी रेल यात्राओं की याद दिला गया जब सफर मे चुपचाप रहकर मै कवितायें लिखा करता था वे कविताएँ मेरे संग्रह में " लोहे का घर " शीर्षक से संकलित हैं कभी पढ़वाउंगा आपको ।
हाँ होता है जी मेरे सांथ भी एसा जैसा ही कुछ कुछ
---------------
एक बात पूछूं बुरा तो नहीं मानेंगे?
आपके भी कहीं कमप्यूटर चिप तो नहीं लगी है कहीं?
कैसे इतना कुछ कर लेते हैं?
मैं भी बिलकुल आपके जैसी ही हूँ
साइड बर्थ लेकर पर्दा खींच कर सफ़र करने वाली
लोग हंसते हैं कि तुम साइड बर्थ क्यों चुन रही हो
कितनी छोटी है
और मजे की बात यही है की मैं भी बातूनी जानी जाती हूँ
हंसमुख चंचल और हर बात हवा में उडाने वाली
मेरे पति भी यही कहते हैं कि तुम बात कभी गंभीरता से नहीं लेती
मगर शयद मैं हर बात गंभीरता से लेती हूँ
आप सच कहते हैं लोग शायद जुदा ही जाने जाते हैं
बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी , ज्ञान प्राप्त करने के लिए
मौन तपस्या का ही सहारा लेते हैं
Khamoshi ka bhi apna maja hai..Apni bat kahkar ap khamosh hain aur log us par tippani dene ke liye betab hain...lajwab !!
deepti nawal ki pusatk mein ek nazm hai...jab bahut kuch kehne ko ji chahta hai...tab kuch bhi kehne ko ji nahin chahta.
khamoshi ek jubaan hai aur hum iske kayal..
कहना भी तर्रनुम में जो ग़जल लिख चले हो
जान लोगे तुम खुद ही इस बहर की खामोशी
बहुत ग़ज़ब की बात कह डाली महाराज। दिल जीत लिया और पोस्ट पढ़कर आपको याद करके आज ख़ूब रोए भी।
आप खामोश रह कर
इतना अच्छा लिख रहें हैं
तो आप खामोश ही
सही हैं
ऐसी खामोशी बहुत अच्छी हैं
aapki khamoshi bahut kuchh kehti hain.....umeed hain ki aap aisi khamoshi se hamesha kuchh naa kuchh kehte rahenge
khoobsoorat lagi ghazal ..
badhaai ho
वाह ...आपके मन की पढ़कर " सेम पिंच " करने को मन हो आया...बिलकुल यही हाल अपना भी है...
गजल तो लाजवाब है ही......
ज्यादातर लोग कम ही बोलते हैं . बहुत दिनों बाद कुछ घंटो के लिए ट्रेन के स्लीपर क्लास में यात्रा करनी पड़ी तो लगा आजकल एसी में लोग ज्यादा बात करते हैं. सही बात कही आपने मौन की दुनिया ही अलग है . अलग है उसका संवाद अलग है उसका संगीत .
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.
Aaaap ka blog behad acgha laga or subhkamnaon ke liye sukariya or aap ko sapariwar deepawali ki subhkman..
or abhaar
समीर लाल के ब्लाग पे जाऐँ
रचनाओँ से दिल बहलाऐँ
है यह ब्लाग बहुत ही सुंदर
क्योँ न इसे हम सब अपनाऐँ
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी
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