विद्युत मंडल नित नियम से ७ बजे बिजली उड़ा देता है. हम इन्वर्टर पर रहम रखते हैं क्योंकि वक्त जरुरत वो अपना काम मुस्तैदी से करता है. ऐसी चीजों के लिए हमारे दिल में खास जगह है. अत: गैर जरुरी इस्तेमाल, जो टाला जा सकता है, उसे टाल देते है और कम्प्यूटर बंद कर देते हैं.
यह वह समय है जब हम दालान में आकर झूले में बैठे हरियाली के बीच अखबार पढते हैं. पहले हिन्दी और फिर अंग्रेजी. भाषा से कोई छूआछूत या विरोध नहीं, जब तक संदेश मिल रहे हैं और हम उसे उसी रुप में ग्रहण कर पा रहे हैं.फिर भाषा तो मात्र एक माध्यम है अभिव्यक्ति का, उससे कैसी बैर. इस बीच दूध वाला आकर दूध के पैकेट नियत स्थान पर रख जाता है. बरतन धोने वाली बरतन धो कर चली जाती है. झाडू, पोछे, कपड़े वाली आ चुकी होती है. खाना बनाने वाली हमारी चाय बनवाकर हम तक भिजवा चुकी होती है और हम चाय के साथ साथ अखबार खत्म कर रहे होते हैं.
पूरे १.३० घंटे निकल जाते है इस मशक्कत में. साथ ही दोनों अखबारों के सुडुको भी हल कर मन ही मन अपने आप को बुद्धिमान मान कर पीठ भी ठोंक चुके होते हैं.
अब लगभग ८.३० या ९.०० के बीच का समय होना चाहता है और हाजिर हो जाता है हमारा मालिशिया, ’रामजस’ मानो अपने साथ बिजली लाता हो. बिजली भी ९ बजे वापस आ जाती है. फिर एक घंटा तख्त पर लूँगी पहने मालिश-खालिस सरसों के तेल से और उसके बाद आधे घंटे वैसे ही उंघाड़े बदन औंधे पड़े रहते हैं गुनगुनी धूप में. फोटो शरम में नहीं लगा रहे हैं हालांकि है हमारे पास. कहते हैं शरीर को तरोताजा रखने के लिये अच्छा होता है धूप में तेल मालिश करा कर लेटे रहना. एन्जिला जोली भी केलिफोर्निया में बीच पर हमारे जितने कपड़ों से भी कम में पड़ी फोटो खिंचवा कर बिना शर्म छपवा देती है, मगर हम न कर पायेंगे ऐसा. ठेठ हिन्दुस्तानी देहाती जो ठहरे.
१०.३० बज गया, अभी तक नहाये नहीं..पानी गरम है गीज़र में. नित नियम से लगभग इसी समय रोज यह आवाज आती है. सही पहचाना, हमारी पत्नी की. यानि वो उठकर स्नान ध्यान कर चुकी है. ११ से ११.१५ के बीच नहाने गये तो ११.३० तो आमूमन बज ही जाता है फुरसत होते. फिर तैयार होकर १२ बजे दिन में हल्का सा नाश्ता और कार में सवार चल दिये मित्र मंड्ली के बीच.
दुनिया जहान की गप्पे, किसे प्रधान मंत्री बनाना है इस बार से लेकर ऑस्कर किसे दिला दिया जाये. सब वहीं डिसाईड हो जाता है और एक दिन नहीं, नित नियम से यह कार्य संपादित किया जाता है.
२.३० बजे दो चार कप चाय, दो एक पान आदि के सेवन समाप्ति पर मित्र सभा समाप्त. सब अपने अपने घर चले खाना खाने. हम पागल तो हैं नहीं कि वहीं बैठे रहें सो चले आते हैं घर खाना खाने. भूख हो न हो, २.३० बजे घर लौट ही आते है खाना खाने जैसे यहाँ अक्सर देखता हूँ ठंड हो न हो-नवम्बर शुरु तो हॉफ स्वेटर, दिसम्बर शुरु तो फुल, दिसम्बर के अंत आते तक मफलर और कनटोपा भी और साथ में लैदर जैकेट...आदि. याने मौसम के मिजाज से नहीं महिने से कपड़े डिसाईड हो रहे हैं. मैं पूछ बैठता हूँ अपने मित्र से कि भाई, ठंड तो है नहीं, फिर काहे स्वेटर पहने हो? उनका सीधा सा जबाब होता है कि दिसम्बर में नहीं स्वेटर पहनेंगे तो आखिर कब पहनेंगे गोया कि साल में कभी न कभी स्वेटर पहनना अनिवार्य है.
३.३० बजे तक खाना खा कर चुकते हुए थकान से शरीर भर चुका होता है. नींद भी आ रही होती है आखिर ४ बजे सुबह के उठे हैं और इतनी देर दोस्तों के साथ गप्प सटाका-एनर्जी तो जाया होती ही है तो स्वभाविक है थकान हो जाये अतः २ घंटे के लिए सो जाता हूँ.
५.३० बजे उठकर छत पर से मोहल्ले का नजारा लेते हुए चाय पीने की आदत सी हो गई है. पत्नी भी इस समय साथ ही छत पर होती है-अडो़सी पड़ोसी से गपियाति. आज मन किया तो बहुत समय बाद नौकर से लट्टू (भौंरा) मँगवाया और पूरी शातिरी से चलाते हुए पत्नी से लोहा मनवाया. वो तो न भी लट्टू नाचता तो पत्नी की नजर में लट्टू ही की कुछ खराबी होती. यही तो फायदा है पत्नी के सामने कला प्रदर्शन करने में. अति आत्मविश्वास आ लेता है और यह आत्म विश्वास देने की और हौसला बढ़ाने की कला हर पत्नी को ईश्वरीय देन है जिसमें हम पति प्राणी शून्य है. हमसे तो बस हर बात में-अगर उससे नहीं बना तो अरे, तुमसे तो कुछ हो ही नहीं सकता और बन गया तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, कहना आता है. कल ऐसे ही पतंग उडा़ई थी. फोटो आज के लट्टू नचाई का है जिसमें कल की पतंग और चकरी भी दृष्टवत है.
६.३० से ७ के बीच फिर नीचे घर में और तैयार होकर ये चले मित्रों के साथ पार्टी में या किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर दावत पर. आखिर विदेश से आये हैं भारतीय दोस्त इतना तो करबे करेंगे. अब तो ११ के पहले क्या लौटेंगे. दिन खत्म. आकर तो सोना ही है. कुत्ता तो भौंक कर रहेगा ४ बजे और हम चोर चैक करेंगे ही ४ बजे तो जितनी जल्दी हो, सो लो. वैसे भी दावत के बाद अक्सर ज्यादा देर तक जागे रहने की स्थिति बची नहीं रहती. ज्यादा जो हो जाती है.. :) अधिकतर लोग हमारी तरह ही सुबह उठना है इसलिये सो जाते हैं मानो काल को जीत आये हों.
क्या आराम है यार!!! ये आदमी कमाता कब होगा, काम पर जाने का तो रुटिन में समय ही नहीं है इसके पास? यही सोच रहे हैं न!!
तो सुन लो...अभी छुट्टी चल रही है. एक महिना और बचा है. ऐश कर लेने दो भाई. फिर तो गदहा मजदूरी में लगना ही है.
अरे हाँ, कहीं ये तो नहीं सोच रहे कि मैं ये सब आपको लिख बता क्यूँ रहा हूँ? अगर ऐसा सोच रहे हैं तो हिन्दी ब्लॉगजगत आपके लिए मुफीद जगह नहीं है. यहाँ अधिकतर पोस्ट पर यही सोचना पड़ता है. स्तरीय लेखन नहीं न होता है यहाँ. :)
83 टिप्पणियां:
धांसू-फांसू-हांसू पोस्ट है। ये भारत है, यहां कुत्ता भी नियम से कुकुआता है :) लेकिन यहां इंसान नियम का पालन नहीं कर सकता, कर ले तो वो इंसान न रह कर कुकुर न हो जाये :)
अच्छी मजेदार पोस्ट।
अच्छा लगा पढ़कर। आखिर रोज तो वही गंभीर विषय पढ़ रहे हैं जिनसे तनाव बढ़ा ही है। बहुत मनोरंजक रहा पूरे दिन का विवरण।
क्या खूब लिखा आपने. पूरी दिन चर्या अलसुबह से आधी रात . लट्टू ,पतंग ,और न जाने क्या क्या . आपको आराम के कुछ दिन मुबारक हो
ऐइ ग़ज़ब! एलार्म लगाने की न ज़रूरत और न झंझट और ठाठ पूरे सामंती दौर के!
अवकाश शानदार गुजर रहा है। हम भी सोचते हैं कभी हमारा अवकाश भी ऐसे ही बीते।
असमाचार में समाचार तलाश लेना और सामान्य दिनचर्या में असाधारणता उपस्थित कर देना किसी चमत्कार से कम नहीं और यह चमत्कार आपके बांये हाथ का खेल है।
सहजता को सहजता से जीना सहज नहीं। उसके लिए भी 'साधारण बने रहने की असाधारणता' चाहिए, यह आपकी यह पोस्ट पढकर समझ पडता है।
'महान् बनने के नुस्खे' यहीं पाए जाते हैं।
जय हो आपकी समीरजी।
गंभीरता से परे पतंग उड़ाते हैं आप, कभी हो जाये एक-एक पेंच फिर देखें, क्या मज़ा पतंग बाज़ी का! ख़ैर आपकी लेखनी का फिर आनन्द उठाया!
वाह क्या धांसू दिनचर्या है, छुट्टियों में जितने मजे लेने है ले लीजिये ये हिन्दुस्तानी मजे कनाडा में नही मिलने वाले !
आपने तो हमें हमारा लखनऊ याद दिला दिया। मोहल्ले के नज़ारे, छत पर पतंगे, पड़ोसियों से गपियाना, यह सब इन महानगरों की भाग दौड़ में कहीं भूल से गए थे। हम भी अपने सुखद अतीत में सैर कर आए। सुबह खुशनुमा हो गयी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
समीर भाई का रोजनामचा -चश्मे बद्दूर ! और आज तो अपने लूलिन को भी निहारा या इसी बहाने...
भाई, ये स्तरीय क्या होता है... अच्छा तो है...लोग यहाँ साहित्य के नोबेल पुरूस्कार विजेताओं को ढूंढते हुए आते हैं क्या .. :).. पढ़ कर अच्छा लगा.
छुट्टीयों का मजा तो भरपूर ले रहें है आप, लेकिन ये
महीनों तक छुट्टी कैसे लें ये भी लिखीये!
पूरे दो साल होने को आये है जबलइपुर गये हुए, और ना जाने कितना समय लगेगा देस जाने को...
जिससे कुछ लेना देना नहीं, उसे भी नापे हुए हैं बेमतलब मगर मेरी ऐसी आदत नहीं.
हा हा हा हा हा हो हो हो हो हो हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हो हो हो हो हो हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हो हो हो हो हो हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हो हो हो हो हो हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हो हो हो हो हो हा हा हा हा हा ....
असल में यह बात समझ में नहीं आई। :)
वैसे यह लट्टू चलाने के तकनीकी पक्ष के बारे में भी जानकारी दी जा सकती थी। मुझे यह चलाना कभी आया नहीं।
hava kis traf kee hai, agar hamari or hai to chhat par khade ho jate hain. patang lutane ke liye. vaise to kati patang ke bhag me lutna or fatna hee likha hai,narayan narayan
तो सुन लो...अभी छुट्टी चल रही है. एक महिना और बचा है. ऐश कर लेने दो भाई. फिर तो गदहा मजदूरी में लगना ही है.
" वाह सर जी आज तो आपकी दिनचर्या पढ़ कर मजा आ गया , सही है जब तक छुट्टी है तब तक ये मस्ती की जा सकती है.......उसके बाद वही कंप्यूटर जैसी जिन्दगी......लकिन क्या आपको नही लगता की ये बेफिक्री.....ये मस्ती आपका बचपन वापस ले आया हो...है ना....हल्का फुल्का सा आवारा सा दिन....आता है और यूँही मस्ती में बचपने में बीत जाता है.......मुझे तो पढ़ कर बहुत अच्छा लगा....अब सोच रही हूँ.......काश मुझे भी काम से कुछ छुट्टी मिल ही जाए हा हा हा हा हा "
Regards
हा हा हा समीर लाल जी के क्या कहने ... सही कहा है आपने काश ऐसा ही सरे दिन होते ...वाकई आपके छुतियों के दिनचर्या पढ़ के तो सही में कोई बही कहेगा एक अरे ये काम वाम करता है के नही आदमी... आनद आगया पढ़के ,... जहाँ तक स्तरीय लेखन की बात है तो उसके क्या कहने आपके लिए ...
ढेरो बधाई कुबूल करें और ऐसे ही लगे रहे मजे लुटने में ..
अर्श
जब तक यहाँ हैं मौज कर लीजिए। आगे तो चकरघिन्नी काटनी ही है।
लिखते तो आप मजेदार ही हैं। सो इसकी नई किश्त के लिए पुनः बधाई।
जमाये रहियेजी। मौज में रहिये,आगे की क्यों सोचते हैं जी।
आत्म विश्वास देने की और हौसला बढ़ाने की कला हर पत्नी को ईश्वरीय देन है जिसमें हम पति प्राणी शून्य है. बहुत सही लिखा है आपने पत्नी भी प्रेरणाश्रोत/मार्गदर्शक होती है . मनोरंजन के लिए लट्टू पतंगबाजी की फोटो भी बहुत जमी और अच्छी लगी . मनोरंजन के लिए बढ़ती उम्र भी आडे नही आ सकती है . जीवन में खुशी बनाए रखने के लिए मनोरंजन भी आवश्यक है . बेहतरीन पोस्ट . आभार.
तीन चार महीने से हर दिन ऐसा हो रहा है....अभी एक महीना और चलनेवाला है....फिर भी कह रहे हैं कि काश हर दिन ऐसा हो.....इंडिया आकर खूब मौज कर रहे हैं न।
aare waah chutiyaan bade maze se gujar rahi hai,kash hum bhi chuti pe hote,sirji bhabhiji ko hamara pranam keh dewe,
ह्म्म! सही है। पूरे दिन की डायरी लिख दी। एक बात समझ मे नही आयी कि
आजकल हिन्दुस्तान मे मुर्गे आलसी हो गये है क्या? जो कुत्ते भौंक कर बांग दे रहे है?
बकिया ये ज्वलनशील लेख (अब हम जैसे गदहा मजूरी वाले पढेंगे तो जलेंगे ही ना) बहुत सही लिखा जान पड़ता, पूरी फुरसत से लिखा गया है, हर चीज पर बारीकी से नज़र घुमाई गयी है।
मालिश पर थोड़ी तवज्जो कम दी गयी है, कम से कम,आपकी बॉडी को ध्यान मे रखते हुए, एक दो पैराग्राफ तो बनते ही थे। फिर भी शरीर आपका, ब्लॉग आपका, मालिशवाला आपका, हमारी बात थोड़े ही चलेगी।
लड्डू पर वीडियो कब दिखाया जाएगा, बताया जाए।
मज़ा आ गया. शुरू में तो हम भी सोच रहे थे कि रिटायर हो गये हैं क्या, ऑफिस जाने के बारे में लिखना भूल गये हैं शायद. आख़िर में आके पत्ता खोला है..चलो भाई आप भी मज़े करो... हम आपकी पोस्ट को पढ़कर ही आराम महसूस कर लेंगे.
समीर जी
आप तो सच में वो आनंद ले रहे हो जिसे लेने के लिए देवता एक टांग पर खड़े हो कर वर्षों तपस्या करते हैं लेकिन फ़िर भी नहीं मिलता....सुबह की चाय, अखबार, मालिश,गरम पानी से स्नान, नाश्ता, मित्र मंडली,भोजन,दोपहर की निद्रा , पतंग बाज़ी, लट्टू घुमाना , गप शप, सुरा, फ़िर गप्पें , भोजन और फ़िर निद्रा...वाह वा वा...
कुत्ते के भोंकने से दुबारा कुत्ते के भौकने तक की कथा बहुत रोचक लगी....इश्वर ऐसा नसीब सबको दे...
नीरज
बहुत ही रोचक दिनचर्या है आपकी ....सही है अभी तो छुट्टियाँ है फ़िर तो काम ही काम :)
वो तो न भी लट्टू नाचता तो पत्नी की नजर में लट्टू ही की कुछ खराबी होती.
गुरुजी हम तो जेलिसिया रहे हैं आपसे. और आपका उपरोक्त वाक्य तो साबित करता है कि आप निहायत ही भाग्यशाली हैं वर्ना तो हमे तो लठ्ठ ही दिखे अगर सूबह पहले कहीं लट्टू नचाने लगे तो.:)
रामराम.
आपकी यही अदा तो हमे पसंद है.. आप बात बात में पते की बात कह जाते है.. खैर लट टू और पतंग दोनो का ही सुख भोगने का सौभाग्य हमे बचपन में प्राप्त नही हुआ.. और जवानी में हमने मो ही त्याग दिया..
वैसे एंजेलिना जॉली वाली स्टाइल में आपकी फोटो मिल जाती तो बढ़िया रहता..
पढ़ कर आनन्द आया. बाजू में कार्टून बहुत सुन्दर चिपकाया है. अखबार हम भी अंग्रेजी वाला पढ़ते है, गुजराती वाले के बाद. क्या है उसमें कंटेंट अच्छा रहता है. यह सच्चाई है और मुझ जैसे के लिए दूखी होने की वजह भी.
छूट्टियों का अनन्द लें.
दुनिया जहान की गप्पे,मोहल्ले का नजारा लेते ,लट्टू नचाई ...वाह आप तो छुट्टियों के पूरे मजे ले रहे हैं.
अभी तो भारत में मौसम भी अच्छा है..होली बाद जो गरमी शुरू होगी फिर कहाँ छत पर पतंग उडाने को मिलेगी!
और आप के टिप्पणी ख़जाने में '१० हजार 'रन 'पूरे हो जाने पर बहुत बहुत बधाई.ज्ञान जी ने यह ज्ञान अपनी पोस्ट में दिया tha.बधाई देने आज पहुंचे हैं तो देख रहे हैं ६६ और जुड़ गए..
ईश्वर आप के ब्लॉग को असीमित टिप्पणियों से ऐसे ही नवाजता रहे.और आप भी ब्लॉग जगत में अपनी टिप्पणियां बिखेरते रहें..आमीन!
पढकर आनंद आ गया। यह आपकी लेखनी का असर होता है। आप दिनचर्या में से भी रस निकाल लाते है। सच बहुत उम्दा।
खुद जाग बैठे सबको जगाते चले गये,
'लालू' की तरह सबको हंसाते चले गये,
लट्टु की तरह घूम लिए साथ-साथ हम,
'जोली' को "बीच' ला के जलाते चले गये.
म. हाशमी
खुब मजे ले रहे है छुट्टियों के... ये नहीं बताया कमेंट कब लिखते है.. और मोडरेट कब करते है..:)
क्या आराम है यार!!! ये आदमी कमाता कब होगा, काम पर जाने का तो रुटिन में समय ही नहीं है इसके पास? बिल्कुल हम यही सोच रहे थे...
बहरहाल आपकी छुट्टियाँ अच्छी बीतें, यही दुआ है...
उत्तम लेख पढ़वाने के लिए आभार...
मीत
मतलब यह कि पूरी तन्यमयता से छुट्टियां मनाई जा रही है, सही है गुरु जी सही है।
tussi gr8 ho bhai.........
सचमुच आनंद ही आनंद है , बार-बार आए यह दिन , मगर संभव नही , फ़िर भी मेरी शुभकामनाएं !
"क्या आराम है यार!!! ये आदमी कमाता कब होगा, काम पर जाने का तो रुटिन में समय ही नहीं है इसके पास? यही सोच रहे हैं न!!"
हम क्यों ऎसा सोचेंगे जी। हमारी तो यही इच्छा रहेगी कि हर एक जीवन में हों ऎसे छ्ण।
हम भी यही सोच रहे है एक दो साल विदेश बिता आए .फ़िर मालिश ओर पतंगबाजी करते हुए पडोसियों को छत से ताकेगे...एक आध रुपियो की बोरी इधर मेरठ में लुढ़का देते तो भार भी कम हो जाता ......
कुत्ते का शुक्रिया हम अदा कर देते हैं.मनोरंजक पोस्ट. आभार.
समीर जी, दिनचर्या का लेखा जोखा तो सही है लेकिन एक बात सोचने को मजबूर कर रही है कि ढाई घंटे मे आप इतनी टिप्पणीयां कैसे कर लेते हैं ? इस का राज भी बता देते तो हम भी लाभ उठा लेते। वैसे इस पोस्ट को पढ कर मन हल्का हो गया।आभार।
cilye subah se shaam tak ki vyastaa ke bavjood subah kutte se shuru hui,
hadkaaya bhagaaya subah savere
to di bhar taajgi dikhi patang uda sake
krupaya shukriyaa kar denaa mohalle ke awaaraa ko
बढिया दिनचर्या लिये लेख है... अपुन तो लम्बी तान के सोते है छुट्टी के दिन
मोहल्ले का कुकुर अलार्म क्लॉक बना लिया है! इतनी भी किफायत ठीक नहीं! :)
समीर जी,आपकी आरामदायक पोस्ट पढी,बडे आराम से शाम की चाय का कप हाथ मे लेकर और एक गाना याद आ गया----
वो सुबह कभी तो आयेगी,जब गली मे कुत्ते भौंकेंगे,
जिसकी आहट से हम भी कभी,आपकी तरह से चौंकेंगे।
sahi hai shreeman ji ....aish kar lijiye abhi to
Bhai sameer ji,
sahi maine mein aap chhuttiyon mein jeevan ka sachmuch anand le rahe hain. aap ko aisi masti roj mile manaane ko.jindgi ki jang isi enjoyment ke liye hi to ladi jaati hai. aap ka lekh aapki sarlta ko darshata hain.badhaai ho.
आपने ये नहीं लिखा कि कितनी पतंगे कटवाईं आपने। पढ़कर लट्टू की याद आई। जब मैं आगरा में था तो लोग लट्टू को भौरा (भंवरा) बोला करते थे।
लगता है आप ने कुत्ते को आलर्म घडी दी है, जो सुबह पुरे चार आप को चोर समझ कर भोंकने लगता है, फ़िर आप कुत्ते को चेक करने जाते है, अजी उसे बेचारे को तो भूख लगी होती है, क्यो नही दस बार रोटी उसे भी डाल दिया करो.
वेसे आप को छुट्टियो की मोज है जब हमे १०, १५ दिन की भी छुट्टी लेनी हो तो हमारे बांस की जान निकल जाती है, ओर हमारा फ़ोन ना०, मोबाईल न० तक लिखबा लेता है
चलिये अब आप घुम आये हमारी राम राम
अरे हाँ, कहीं ये तो नहीं सोच रहे कि मैं ये सब आपको लिख बता क्यूँ रहा हूँ? अगर ऐसा सोच रहे हैं तो हिन्दी ब्लॉगजगत आपके लिए मुफीद जगह नहीं है. यहाँ अधिकतर पोस्ट पर यही सोचना पड़ता है. स्तरीय लेखन नहीं न होता है यहाँ. :)
......परन्तु आपका लेखन तो स्तरीय है.
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आभार...मन प्रसन्न हो गया.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
समीर भाई
आप तो बहुत बिजी हो इंडिया में, बहुत काम कर रहे हो, कभी पतंग, कभी लट्टू, क्या बात है, पूरा आनंद छुट्टियों का,
साथ साथ इतनी जोरदार पोस्ट भी लिख दी की मज़ा आ गया पढ़ कर. रोज़ रोज़ की मारधाड़ में सहज ही लिखा हुवा लेख, पढ़ कर मज़ा आ गया.
इसे आपकी लेखनी का चमत्कार ही कह सकते हैं कि किस प्रकार दैनिक जीवन के क्रियाकलापों से भी हास्य रस निकाल लेते हैं.
बहुत ही उम्दा...........
आपकी मौज ,हमारे मजे का सबब बन गई.......आनंद आ गया पढ़कर.....ठीक उतना ही जितना आपको लिखकर आया.....
अच्छा ही है कुछ भरपूर सांसें भर लीजिये फेफडों में.....फ़िर तो आगे खटने को इन्ही सांसों का आसरा रहेगा.......
आपके सुखद पलों की शुभकामना है..
छुट्टीयों का मजा तो भरपूर ले रहें है आप, ये हिन्दुस्तानी मजे कनाडा में नही मिलने वाले! लिखते तो आप मजेदार हैं जमाये रहियेजी।
वाह समीर जी वाह अच्छी बतायी
सच कहें तो हम तो जेलसिया रहे हैं । आप लट्टू चला रहे हैं यहां हम जिन्दगी की जंग में खुद लट्टू के जैसे चक्कर घिन्नी खा रहे हैं । …।:)
बड़िया प्रस्तुति
स्तरीय लेखन भले न होता हो लेकिन ’अस्तरीय’ लेखन जरूर होता है। पक्की सिलाई वाला! बढ़िया!
आ हा.. मजा आ गया, अपकी दिनचर्या बहूत ही बढीया है। और पतंग भी उडा लेते हैं :)
पर पता नही चला की यह फोटो टोरंटो का है क्या?
चाय तो मेरा फेवरेट है
आपकी पोस्ट मजेदार लगी और रही बात इसके स्तरीय होने की तो आपने दिल से लिखा और हमें दिल से अच्छा लगा,इससे अधिक स्तरीय कुछ हो ही नहीं सकता .अपनी सीधी-सरल भाषा में लिखीं बातें ही दिल को छू सकती है पंडिताऊ भाषा नहीं .
अपने आराम के जलवे दिखा रहे हैं या हमारा जी जला रहे हैं! चलिए कर लीजिये कुछ दिन और ऐश! हमारे भी ऐसे दिन आयेंगे :-)
ही ही ही बढ़िया है
डेनी बॉयल (डायरेक्ट्रर स्लमडॉग करोडपति) को आपकि दिनचर्या पर फिल्म बनाने का मैने सुझाव भेजा है।
भारत माता कि गोद मे चेन कि श्वास लेते लालाजी, सुकुन कि छुटिया मनाते लालाजी, सरसु का तेल और, न.......... भु......... लालालजी।
मजेदार पोस्ट।
हॉ समीऱभाई फोटु से लगता है इण्डिया मे आने के बाद आपका रग गोरा हो गया है। विश्वास नही हो तो भाभीजी से पुछ लो ।
धणी खमा........... .....धणी क्षमा॥॥
कौन कहता है कि हिंदी ब्लागिंग बेकार है। यहाँ तो पत्नी को लट्टू बनाने के गुर भी सिखाए जाते हैं:))
manine bhar ki chhutti hai....masti kijiye,aur hame bhi batate rahiye...aapke bahaane ham bhi mast ho jaya karenge.
वाह, हाथ में पतंग की डोर हो तो फिर क्या कहना।
सबको ऐसी ही फुरसत मिले. मुझे तो आपके फोटो ज्यादा अच्छे लगते हैं (और ज्यादा),
Priy Sameer ji
yahi to jindgi hai jiski sabko talaash hai. bahut khoob.
aapka profile dekhkar pata chala aap jabalpur sa hain, aapka lekh padhkar ghar ki yad ho aayi main swayam bhi madhya pradesh se hoon lekh padhkar to yakeen mane behad maza aaya, main blogger jagat men aapke samne sagar me boond ki tarah hoon margdarshan ki apeksha rakhti hoon.
बढिया चल रहा है आपका पतँग खेल समीर भाई !! भारत मेँ खूब मौज हो रही लगता है !! ..
बेहद प्रसन्नाता का विषय है ....
स स्नेह,
- लावण्या
अथ श्री उड़न-तश्तरी कथा....कथा है मजेदार-सी,ये लट्टु की,मौजा की....ले पतंग को हाथ में छुट्टी मनाते ’लाल’ की
बढिया है...खूब मज़े कीजिए
छुट्टियाँ अभी भी मन रहीं हैं । तभी तो पूरी दिनचर्या लिख डाली । अच्छी लगी ।
उफ़फ़्फ़्फ़्फ़ वाकई मशक्कत भरी दिनचर्या है जी… हम भी ऐसी ही मशक्कत करना चाहते हैं… लेकिन…
"stariya lekhan" ee ka baa ? hum ta aisane kuch bhi likhte baani , kaa kari aadat se majboor bani .vaise rauva neman likhatani. :)
काश !!!! हमारा भी हर दिन ऐसा ही होता... लेकिन आपकी दिनचर्या पढकर ही खुश हो रहे है अभी तो.. :)
वाह वाह क्या लिखा है आपने ,टिप्पणिया भी बहुत मिल गई है ,अद्भुत,असाधारण,अविश्वसनीय,काश मैं भी ऐसा लिख पाता . कभी मेरे ब्लॉग पर आ कर बताएं की पठनीयता बढेगी कैसे ?. मुझको भी सिखा दो बाबा
माफ़ कीजिये एड्रेस लिखना भूल गया
http://sarparast.blogspot.com/
कमाल है आपकी लेखनी में. आपने लिख दिया कि छुट्टियां हैं, वर्ना ईर्ष्या होने लगी थी आपसे.
मेरा भी मन कर रहा है कि मै अपनी निजी उड़न तश्तरी मे बैठ कर आपके पास आ पहूँचू और आपके साथ झूला झूलूँ.
मजेदार.
कमाल का लिखते हैं आप. आपको पढ़कर लगता है कि किसी भी विषय पर लिखकर लोगों को पढने के लिए मजबूर किया जा सकता है. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
दैनिक समय सारिणी तो बहुत बढिया है (माने कि, ऐश्वर्यपूर्ण) हर किसी को इर्ष्या होगी ही।
यहाँ पर जितेन्दर जी की टिप्पणी पर आपकी तरफ हूँ - जितेन्दर जी, यह मानिये कि मालिश के विवरण की व्यख्या शरीर के आकार की व्युत्क्रमानुपाती होती है। देखिये इसका प्रमाण - समीर भाई ने मालिश के विवरण के साथ ही एंजिला जोली के बाबत्त कितना विस्तार से बताया है।
तीन साल पूरे करने की हार्दिक मंगलकामनाएं ..
आपका ब्लाग जिए हजारों साल एक साल में दिन हों 500000
पृथ्वी, नई दिल्ली
Yogendra ji
sorry for late arrival , i was on tour.
aaj aapka likha ye lekh padhkar man ko bada sakun mila, is aapa dhapi ki zindagi me ,apne aap ke liye samay nikal lena aur wo bhi sirf apni marzi se jeene ke liye ..
aap guru ho sir ji ..
main bhi kuch likha hai , jarur padhiyenga pls : www.poemsofvijay.blogspot.com
अरे वाह ! आप तो पतंगबाजी भी खूब करते हैं बहुत ऐश हो रही है भारत में क्या बात है वापस आने का मन नहीं है क्या वहाँ ही लट्टू नचाते रहेंगे क्या?
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