हजारों विचार. सीमित शब्दकोष फिर भी भरपूर उबाल. तो शुरु हुई रचना प्रक्रिया लेखन की. ढली एक गज़लनुमा कविता. अगर पूरी बहर में निकले तो गज़ल वरना गीत तो है ही. आदतानुसार मँहगे शब्दों से भयवश दूरी अतः हल्के फुल्के शब्द, गहरे भाव. .
From समीर अपनी बात कहते |
वो देखो कौन बैठा, किस्मतों को बांचता है
उसे कैसे बतायें, उसका घर भी कांच का है.
नहीं यूँ देखकर मचलो, चमक ये चांद तारों सी
जरा सा तुम संभलना, शोला इक ये आंच का है.
वो मेरा रहनुमा था, उसको मैने अपना जाना था,
बचा दी शह तो बेशक, शक मगर अब मात का है.
पता है ऐब कितने हैं, हमारी ही सियासत में
मगर कब कौन अपना ही गिरेबां झांकता है.
यूँ सहमा सा खड़ा था, कौन डरके सामने मेरे
जरा सा गौर से देखा, तो चेहरा आपका है.
चलो कुछ फैसला लेलें, अमन की फिर बहाली का
वो मेरे साथ न आये, जो डर से कांपता है.
थमाई डोर जिसको थी, अमन की और हिफाजत की
उसी को देखिये, वो देश को यूँ बांटता है.
दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
-समीर लाल ’समीर’
जब यह सब टाइप करने बैठे तो साथ ही पीछे से अपने मित्र बवाल लगे अपनी आदतानुसार ताका झांकी करने. हमने पूछा भी कि भई ,क्या बात है, कुछ बात जंची भी या नहीं. जाने किस किस मूड में तो रहता है वो भी. लगता है उस समय अमीर खुसरो या मीर तकी ’मीर’ मोड में रहा होगा और उर्दु का जानकार तो है ही एक बेहतरीन गायक और गज़लकार होने के साथ साथ. कैसे पचा ले इतनी सरलता से. इसीलिये मैं उन महिलाओं से हमेशा कहता हूँ जिनके पतियों को खाना बनाना नहीं आता कि तनिक भी दुखी न हो बल्कि तुम तो बड़ी सुखी हो. कम से कम पतिदेव ये तो नहीं कहते कि फलाना मसाला कम है या ठीक से भूना नहीं. जो परोस दो वो ही बेहतरीन.
बस, बवाल ने भी निकाली अपनी उर्दु की तरकश, गज़ल ज्ञान का तलवार और लगे गाते हुए नये नये अंदाज में पैंतरें आजमाने और जुट गये विकास कार्य में. तब जो गज़ल निकल कर आई और उन्होंने गाई, भाई वाह. आप भी पढ़ें और बतायें कि क्या विचार बनता है इस पर:
From बवाल की बात |
वो जो बेदार बैठा, क़िस्मतों को बाँचता हैगा
उसे टुक ये बता दे, उसका घर भी काँच का हैगा
मचलना मत, चमक ये देखकर के, चाँद तारों की
सम्भलना पर, सम्भलना शो'ला ठंडी आँच का हैगा
फ़ित्नापरवर हैं सब रहबर, हमारी इस सियासत के
मगर अब कौन ख़ुद का भी गरेबाँ, झाँकता हैगा
वो मेरा रहनुमा था, उसको मैंने अपना जाना था
बचा दी शह तो बेशक, शक मगर अब मात का हैगा
थमाई डोर जिसको थी अमन की, और हिफ़ाज़त की
उसी को देखिये, वो मुल्क को यूँ काटता हैगा
दीखे है आसमाँ यकसा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो मेरी सरहद, नापता हैगा
वो दरकारे-जनाज़ा थी, जो चिलमन आपकी सरकी
वगरना आपका हमसे ही कितना, वास्ता हैगा ?
कफ़न हैं आँसुओं के और मज़ारें, हैं शहीदों की
बचेंगे फूल कितने बाग़बाँ ये, भाँपता हैगा
जो गै़रत की वजह से, चश्मे-पुरनम सामने आया
ज़रा सा गौ़र फ़रमाया तो चेहरा, आपका हैगा
हाँ डटकर फैसला करलें अमन की, ख़ुश बहाली का
वो मेरे साथ न आए जो डर से, काँपता हैगा
बवाल इस बात पर है के ये क़ीमत, 'लाल' की कम है
तो तय करके बता दें, वो हमें क्या, आँकता हैगा
शब्दार्थ :-
बेदार= सचेत, हैगा= है, फ़ित्नापरवर= षड्यंत्रकारी,
दरकारे-जनाज़ा = शवयात्रा में शामिल हो जाने की चाह
चिलमन = परदा, गै़रत = स्वाभिमान
लाल = रत्न
109 टिप्पणियां:
वैसे तो सभी एक से बढ़ कर एक हैं मुझे तो यह खासकर अच्छा लगा -
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
बेहतरीन ग़ज़ल . क्या बात है . आपको बधाई बुजुर्गो की श्रेणी मे जाने को
today!!!
only badhaai!!!
गणेश जी से प्रार्थना है !!!!!!!
चिरंजीव (पुत्र) और होने वाली पुत्र वधु को अग्रिम में शादी की अनन्त शुभकामनाएं !!!!!!!!!!!!
उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय और मंगल मय हो यही प्रभु से प्रार्थना !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
आपकी और बवाल जी की जुगलबंदी तो वाकई बवाल की है। अब जब इस बवाल जुगलबंदी से कोई गजल बनेगी तो वह होश उड़ानेवाली तो होगी ही।
बेटे की शादी की अग्रिम बधाई।
बहुत अच्छा लगा, आतंकवाद ने इस देश को तबाह कर रखा है,दर्द निकलना स्वाभाविक है।
आप दोनों की जोडी ये कमाल की हैगी .
अच्छी गज़लें समीर-ओ- बवाल की हैगी ..
अच्छा लगा ट्रांसलेशन !
बवाल भाई की जैजै। आप की यह पोस्ट तो पूरा एक पाठ है कि एक गजल कैसे पालिश होती है।
दोनों गज़ल बेहतरीन!
पुत्र के विवाह की शुभकामनाएँ!!
काली घोड़ी लाल लगाम कैसी जोड़ी बनाई मोरे राम .. आभार.
पुत्र के विवाह पर बधाइयाँ, शुभकामनाएँ, आशीष.
badhai
हाँ डटकर फैसला करलें अमन की, ख़ुश बहाली का
वो मेरे साथ न आए जो डर से, काँपता हैगा
" ग़ज़ल बेमिसाल ....लाल जी की ताल और बवाल जी का कमाल....लाजवाब अभिव्यक्ति.. ये शेर बहुत अच्छा और जानदार संदेश देता है ग़ज़ल मे.."
Regards
मस्त.. दोनों ही बहुत बढ़िया..
भाईसाहब(आपके पुत्र) को शादी की ढ़ेर सारी शुभकामनायें.. :)
दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
ग़ज़ल सामयिक है और मुम्बई में हुई दुखद घटनाओं पर आप का रोष साफ़ दिखाती है.
बवाल साहब ने अपनी जबरदस्त उर्दू में एक तरह से इस हिन्दी ग़ज़ल का अनुवाद कर दिया है.
बहुत उम्दा!बधाई .
मिले लाल और बवाल,
किया खूब धमाल,
जिससे हुआ कमाल,
हुआ खत्म मलाल।
(पोस्टों के कम आने का)
बेहतरीन गजलें . धन्यवाद.
मेरी तरफ़ से भी पुत्र के विवाह की शुभकामनाएं .
दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
कुछ ऐसे ही भाव भरी दो पंक्तियां मैंने भी कभी लिखी थी। सुंदर रचना।
चमक ये देखकर के, चाँद तारों की... सचमुच उन्होने चमका (हड़बड़ा) दिया.
क्या कह दिया आपने :)
जैसी दृष्टी, वैसी सृष्टी. क्षमा करें दोष हमारी नजरों का है.
जोरदार गीत-ओ-गज़ल
बधाई।
ये जुगलबंदी तो वाकई कमाल की है। बहुत खूब।
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
behtareen..magar jo bavaal ji ne gaayi..vo aapney yahan kyu na sunvaayii??
समीर जी
नमस्कार
आपकी रचना पढ़ने में जो समय लगा
वह मेरे जीवन के अच्छे पलों में रहा
आपको फुर्सत मिल गयी , सुना काफी व्यस्त हैं आप....मुझे तो आपकी सीधी सादी बातें ही अच्छी लगती हैं.....आपकी और बवाल जी की ये गंभीर बातें मेरी समझ से परे है। पुत्र के विवाह की बहुत बहुत अग्रिम शुभकामनाएं!!!!!
दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
बहुत बढ़िया लगा यह ...बधाई आपको
ऐसी बनी ग़ज़ल की सबके होश उड़ गए
उम्दा...सच...बवाल से
कम नहीं है ये पेशकश.
===================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
पता है ऐब कितने हैं, हमारी ही सियासत में
मगर कब कौन अपना ही गिरेबां झांकता है.
बेहतरीन रचना .
श्रीमान बधाई .
दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
.........bahut sundar
मेरे दिल के छालों को कोई शायरी कहे, परवाह नहीं
तकलीफ तो तब होती है जब कोई वाह वाह करता है..
आपकी ग़ज़ल बेहतरीन है. बधाई आपको...
वाह ! वाह ! वाह !
दोनों स्टाइल ही दमदार,कोई किसी से कम नही.
शून्यता वाली बात एकदम सही कही आपने......शायद जब बहुत जोर का झटका लगता है तो एकसाथ इतना सारा कुछ मनोमस्तिष्क में आकर घुमड़ने लगता है कि शब्दों को कुंठित कर देता है.
काव्य अपनी समझ से परे है । मेरी तरफ़ से पुत्र के विवाह की शुभकामनाएं। कुछ काम काज मे हाथ बंटवाने के लिये आंऊ क्या?
फ़ित्नापरवर हैं सब रहबर, हमारी इस सियासत के
मगर अब कौन ख़ुद का भी गरेबाँ, झाँकता हैगा
बहुत कमाल का लिखते हैं बवाल भाई तो ! उनको बहुत शुभकामनाए और आपको बधाई !
राम राम !
गीत नहीं यह तो बहुत उम्दा ग़ज़ल है...
खैर आपने अपनी ग़ज़ल पहले डाली है, तो पहले वही पढ़ी और वही अच्छी लगी...
बहुत सुंदर शब्द, और भाव... पहली ही लाइन से घायल कर दिया है...
---मीत
यह घटना अनेक प्रकार से हमें व्यथित करती रही है और बहुधा उससे की बोर्ड पर बहुत सुन्दर शब्द उतरे हैं। आपकी कविता उनमें से एक है।
दोनों गजलें अच्छी हैं, बवाल साहब की गजल पढवाने का शुक्रिया।
samajh nahi paa rahi hu.n ki prashansha kis ki karu.n BAVAL ki ya LAL ki
bahut khoob...!
वाह जी अच्छा ट्रांसलेशन बेहतरीन गजलों के लिए बारम्बार बधाई
मेरे पोस्ट पर प्यारे से कमेंट का शुक्रिया। ये ’हैगा’ पढ़ कर हँसी आ गई। पर एक से बढ़ कर एक शेर आपके भी, बवाल साहब के भी।
बाद में ईमेल करती हूँ, बेटे की शादी पर भी बधाई।
जुगल बंदी अच्छी लगी।दोनों मॆ अपना-अपना रस है जी।पहली गजल के बोल हवा मे तैरते हैं दूसरी के समुंदर में।
मुझे तो यह खासकर अच्छा लगा -
पता है ऐब कितने हैं, हमारी ही सियासत में
मगर कब कौन अपना ही गिरेबां झांकता है.
फ़ित्नापरवर हैं सब रहबर, हमारी इस सियासत के
मगर अब कौन ख़ुद का भी गरेबाँ, झाँकता हैगा
बहुत उम्दा
लाल और बबाल ने मिलकर कर दिया कमाल
आतंकवाद के ख़िलाफ़ मिलकर निकाला गुबार.
बधाई लाल और बबाल जी को . भाई बबाल जी को उर्दू का अच्छा ज्ञान है . परसों उनसे टेलीफोन पर मेरी चर्चा भी हुई थी और मैंने उन्हें उर्दू के सम्बन्ध में बधाई भी संप्रेषित की . एक हिन्दी भाई को उर्दू का ज्ञान होना भी काबिले तारीफ है .
महेंद्र मिश्रा जबलपुर. एम.पी
यूँ सहमा सा खड़ा था, कौन डरके सामने मेरे
जरा सा गौर से देखा, तो चेहरा आपका है.
बहुत खूब......बवाल जी खैर एक अच्छे गजलगो है ही....लगता है अब आप भी उन्हें तगडी प्रतिस्पर्धा देने लगे है......
समीर भाई की बल्ले बल्ले
विस्तरित टिप्पणी कल दूंगा आज मन थोड़ा अशांत है लेकिन आपकी ग़ज़लें तो पढ ही डाली मज़ा आ गया
आप दोनों की बात ही काफी अलग है। दोनों की अभिव्यक्ति समझ में आ ही गई। ताल आप की कमाल बवाल जी का। बहुत खूब।
नहीं यूँ देखकर मचलो, चमक ये चांद तारों सी
जरा सा तुम संभलना, शोला इक ये आंच का है.
मुझे ये बहुत ही बढ़िया लगा समीर जी।
साथ ही बवाल जी की शैली बहुत दमदार लगी। कई जगह है और हैगा कम हो सकते थे। मैं थोड़ा कन्फ्यूज हो गया हैगा और है में। वैसे उनकी स्टाइल पसंद आई।
समीर जी सुना है कि आप शादी कर रहे हैं...मतलब कि बेटे की। तो बहुत बहुत बधाई कबूल हो हमारी तरफ से।
बहुत ख़ूब रही ताज़ा परिस्थितियों पर लिखी गयी ग़ज़ल!
भाई समीरलालजी, आप ही ने कह दिया है-‘हल्के-फुल्के शब्द, गहरे भाव...’ तो अब क्या कहें!?
जबरदस्त समीर भाई...जबरदस्त
और बवाल के संग मिल कर तो दोनों गज़लों ने सचमुच बवाल कर दिया है
ढ़ेरों शुभकामनायें शुभ बेला के लिये
बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .ओर बबाल साह्ब की कविता भी बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद
आपको पुत्र के विवाह की शुभकामनाएँ!!बधाई !!ओर बच्चो का दाम्पत्य जीवन सुखमय और मंगल मय हो यही प्रभु से प्रार्थना
chalo kuch faisla le len aman ki phir bahali ka, wo mere saath na aaye jo dar se kanpta hai. apki gazlon men sanzidagi aur saadgi donon ka adbhut samagam hai. wah khoob! apni baat kahne ka aapka sahas aur salika dono prabhawsit karta hai/haiga.
बवाल जी का तो कमाल है लेकिन आप निराश न
हो, ग़ज़ल की इमारत तो आपने ही खड़ी की थी। बवाल जी ने अपने इल्म, हुनर और फ़न से महल में तबदील कर दिया- और फिर उस पर आपकी कमेंट्री - सोने पर सुहागा!
पुत्र के विवाह पर बधाईयां।
MAAN LETE HAIN JANAAB KI GAZAL BANAA KAR AAPKE HOSH UDE HONGE.
GAZAL PADH KAR HAMAARE HOSH BHEE
KUCHH KAM NAHIN UDE HAIN.
वो देखो कौन बैठा, किस्मतों को बांचता है
उसे कैसे बतायें, उसका घर भी कांच का है.
चलो कुछ फैसला लेलें, अमन की फिर बहाली का
वो मेरे साथ न आये, जो डर से कांपता है.
थमाई डोर जिसको थी, अमन की और हिफाजत की
उसी को देखिये, वो देश को यूँ बांटता है.
दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
वाह समीर भाई आस्मां कैसे अपनी सरहद हो नापता है। आप तो हरफन मौला है ऊपर जो शेर लिखे हैं सभी बेहतर मेरी शुभकामनाएं
आप को शुभकामनाएँ --
मार्मिक हालात पर
उम्दा गज़लेँ सुनवाईँ
दोनोँ ही -
अब बहुरानी को
आशिष देने का अवसर भी दीजियेगा :)
आपके परिवार को इस खुशी के शुभ अवसर पर ढेरोँ बधाएयाँ व स्नेह
- लावण्या व परिवार की ओर से
बहुत बवाल दार गजलें हैं। बहुत आंसू हैं। लग रहा है समधी की पीड़ा महसूस करी जा रही है।
बहुत खूब! पुत्र विवाह पर समस्त परिवार को अग्रिम बधाई
taau ke blog par pata chala aap apne chiranjivi ki shaadi ke liye bharat aaye huye hain. bahut bahut badhai aapko.
जनाब लाल,आपने भी क्या कमाल किया !
के मुझ जनूब को पल भर में ही शुमाल किया !!
शब्दार्थ :-
जनूब = दक्षिण
शुमाल = उत्तर
भावार्थ :-
जो अभी पनपने की स्थिति में हो उसे यकायक बुलन्दगी का अहसास करा दिया.
achche hain donon roop..
यूँ सहमा सा खड़ा था, कौन डरके सामने मेरे
जरा सा गौर से देखा, तो चेहरा आपका है.
दोनों ही ग़ज़लें एक सी हैं, महत्व तो भावः का है
दर्द तो भावः से ही बनता है
पुत्र के विवाह पर बधाइयाँ, चुपके चुपके मिठाई खा रहे हो, हमारा भी ध्यान रखना समीर भाई
bahut badiya.apki lekhan shaili ka mai kayal ho gaya.pl keep on
anil shrivastava
indore
अच्छा लगा यह जान कर कि इतनी व्यस्तता के साथ साथ कलम ने उंगलियों का साथ नहीं छोड़ा.
मैं राकेश जी की बात का समर्थन करता हूँ...ब्लॉग की बीमारी आसानी से नहीं जाती...हर हाल में चिपकी रहती है...शादी का काम बाँट दो भाई और खूब ग़ज़लें लिखिए...
नीरज
हमेशा की तरह हलकी-फुलकी शैली में गंभीर कथ्य।
बधाई।
'दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.' - गूढ़ार्थ लिए पंक्तियों हेतु साधुवाद.
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
....पुत्र के विवाह पर बधाइयाँ,शुभकामनाए!
एक तो बेदार बैठा ,और ऊपर से फित्नापरवर, रहनुमा,
आंसुओं औ मजारों में चिलमन हटा वो झांकता होगा
क्या कहने क्या कहने..
दोनों गज़ल बेहतरीन,बधाई !
आपकी ग़ज़ल ऐसी लगी कि होश उड़ गए ! अच्छी है आपकी ग़ज़ल , बधाई !
लाल और बवाल की शायरी वाकई बेमिसाल है.
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
बड़ा खूब लिखा है पडोसियों का कारनामा... लेकिन क्या करे कमबख्त अपने गिरेबां को देखकर भी सोचना पड़ता है.. कि किसको कोसे... उनको जो हमरी बर्बादी में जश्न मनाता है.. या फिर उनको.. जो उनके जश्न के बाद हमारे घर में मातम का नाटक खेलने लगता है..
ha ha..mujhe to dono hi jabardast lagi..
urdu jyada janta nahin hoon to urdu thoda jyada damdaar lagti hai :P
lekin bas maza aa gaya..soncha na tha ki ek hi ghazal ko do tarikon se aur itne achhe tarikon se likha ja sakta hai..
ग़ज़ल बहुत अच्छी हैं ,पहली वाली भारतीय स्वर संयोजन करके गाई जा सकती हैं,दूसरी वाली को गाने के लिए लोक संगीत की धुन लगनी पड़ेगी इतना ही फर्क हैं .बाकि दोनों गज़ले अच्छी लगी,
Sir ji,original maal,aur make up maal,dono mein apni apni khoobsoorati thi :)
bade sahi jazbaat they...badi aasani se bahut kuch mahsoos kara diyaa
aise hi vishay pe nacheez ne ek chhoti si koshish ki hai...uska maargdarshan kare...aur ho sake to apne mitr se bhi karwaaye :)
http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_23.html
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है, .................
मैं आपकी बात से सहमत हूँ |
मैं तो सिर्फ़ यही कहूँगा...
दिल के हर अहसास को, हम काश कह पाते |
उमड़े हुए हर भाव को , कागज पर लिख पाते ||
बहुत कुछ दिल मे है मेरे, जो ऐसे कह नही सकता |
बड़ी मुस्किल है बिन बोले भी मैं, अब रह नही सकता ||
मगर कुछ बंदीसे ऐसी है, जो मुझे भी रोकती है |
अगर अपनी पर आजाए, तो सरहद चीज़ क्या है ||
बहुत सुंदर भाव
sameer bhai vakai hosh udaau hai
sabhi door ghuma diyaa ji
Respected Sameer ji,
Vaise apka blog padh to kafee samaya se raha hoon.par kament karne kee himmat aj kar paya...Apkee gazal to bahut hee achchhee hai .kam shabdon men kafee kuchh kah gaye hain ap.Hardik badhai.Kabhee mauka lage to mere blog par bhee darshan den.achchha lagega.
Shubhkamnaon ke sath.
Hemant Kumar
हाँ डटकर फैसला करलें अमन की, ख़ुश बहाली का
वो मेरे साथ न आए जो डर से, काँपता हैगा
kya baat kahe di hai bhaut hi achhi gazal jazbaat se bhari hui
कविता तो अच्छी हैगा पर उसके भाव उससे कहीं अधिक अच्छा हैगा.
आओ मिलकर लड़े आतंकवाद से,
जो बन गया है देश के लिए बवाल हैगा.
छीन न ले ये हमसे अपने किसी को,
एक सवाल ये अपनी अस्मत का हैगा
bahut umda ghazal hai..maza aa gaya.. bete ki shaadi ki badhai hamari taraf se bhi sweekaren!!
नया वर्ष मंगलमय हो !
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "
regards
...नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है. आप सभी को सपरिवार नव-वर्ष पर हार्दिक शुभकामनायें !!
www.kkyadav.blogspot.com पर नव-वर्ष के स्वागत में कुछ भावाभिव्यक्तियाँ हैं, आप भी शरीक हों तो ख़ुशी होगी. नमस्कार !!
बाप रे बाप...
इतने सारे कमेंट्स...इसीलिए लिखने से पहले सोचती हूं...आप पढ़ते भी होंगे....
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं...
नववर्ष की आपको व आपके परिजनों को हार्दिक ढेरो शुभकामना . नया साल ढेरो खुशियाँ लेकर आये .
नववर्ष की आप सभी को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाऐं.
Bahut badiya. naye saal ki hardik subkamnayein.
आदरणीय समीरजी, नववर्ष की आपको बहुत-बहुत बधाई। ये पंक्तियां मेरी नहीं हैं लेकिन मुझे काफी अच्छी लगती हैं।
नया वर्ष जीवन, संघर्ष और सृजन के नाम
नया वर्ष नयी यात्रा के लिए उठे पहले कदम के नाम, सृजन की नयी परियोजनाओं के नाम, बीजों और अंकुरों के नाम, कोंपलों और फुनगियों के नाम
उड़ने को आतुर शिशु पंखों के नाम
नया वर्ष तूफानों का आह्वान करते नौजवान दिलों के नाम जो भूले नहीं हैं प्यार करना उनके नाम जो भूले नहीं हैं सपने देखना,
संकल्पों के नाम जीवन, संघर्ष और सृजन के नाम!!!
आपको परिजनों और इष्ट मित्र जनों सहित नये साल की घणी रामराम!
उम्मीदों-उमंगों के दीप जलते रहें
सपनों के थाल सजते रहें
नव वर्ष की नव ताल पर
खुशियों के कदम थिरकते रहें।
नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं।
आपको तथा आपके पूरे परिवार को आने वाले वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
आप और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं. नव वर्ष आपके जीवन में सुख और शान्ति लाये.
एक एक शब्द, एक एक पंक्ति... अर्थपूर्ण है।... गजल का असल लुफ्त मैने यही उठाया।.... धन्यवाद समीरजी।.... मेरी तरफ से नूतन वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं।
नववर्ष की आपको व आपके परिजनों को हार्दिक शुभकामनायें
आपकी ग़ज़ल पढ़कर हमें भी कुछ-कुछ हुआ हैगा
अरे भाई ये आपको ये क्या रोग लग गया हैगा !!
आपकी घुमक्कडी को देख-देख हम रम रहे थे
आपकी शायरी में कोई नया फूल पनप रहा हैगा !!
टिप्पणियाँ तो आपने कई सारी पढ़ लई होंगी
इस ग़ज़लनुमा टिप्पणी का रंग और ही हुआ हैगा !!
गजल को कुछ नाज़ुक से हर्फों में बांधना अय समीर
वरना इसका बदन बदमजा,मज़ा भी कसैला हुआ हैगा !!
खूब दिनों बाद आज हम आपके ब्लॉग पर आए
सच जानिए"गाफिल"आज मन चंगा हो गया हैगा !!
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "
regards
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "
regards
"As the New Year is flowing in,
I Wish ~ All your Dreams come True.
You Achieve what you Aspire,
I wish you Good Health, Prosperity, Happiness & Success
& for us Much More Opportunities to Worktogether"
दिलो में जीने देने की आस
नव निर्माण का हो अथक प्रयास
नव कृति की नींव धरे
नव वर्ष का आह्वान हो
नव वर्ष है नव हर्ष हो
मंगलमय आपका ये वर्ष हो.....
आपके एवं आपके प्रियजनों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत-बहुत बधाई समीर भाई को।
नया साल आपके पूरे परिवार को खुशियां दे और आप इसी तरह लिखते रहें। आपकी ग़ज़ल के तो क्या कहने।
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
वाह वाह हर शेर लाजवाब
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !!
आदरणीय समीर भाई एवं बवाल जी
दोनों को नमस्कार
भाई बहुत अच्छी लगी आप दोनों की जुगल बंदी,
और अच्छी लगीं रचनाएँ
आपका
विजय
jab bawal itni achchi gazal ka roop le sakta hai to phir gahri soch ki kya baat hogi !
naye varh ki hardik shubhkamna.
-jaya
उम्मीदों-उमंगों के दीप जलते रहें
सपनों के थाल सजते रहें
नव वर्ष की नव ताल पर
खुशियों के कदम थिरकते रहें।
नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं।
aapke baare main kaafi dosto se suna hai, padha bhi hai.
kafi sadha hua lekhan hai aapka.
shubkamnayen
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