इसी कड़ी में एक स्टेशन पर उतरे. बाहर निकलते ही मन प्रसन्न हो गया. एकदम उत्सव का सा माहौल. स्त्री, पुरुष सभी नाच रहे थे रंग बिरंगी पोशाक में.जोरों से मस्त संगीत बज रहा था. संगीत की तो भाषा होती नहीं वो तो अहसास करने वाले चीज है. इतना बेहतरीन संगीत कि खुद ब खुद आप थिरकने लगें.
खूब बीयर वगैरह पी जा रही थी. जगह जगह रंग बिरंगे गुब्बारे, झंडे और बैनर. क्या पता क्या लिखा था उन पर जर्मन में. शायद ’होली मुबारक’ टाईप उनके त्यौहार का नाम हो.
एक बात जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ कि महिलाऐं एक अलग समूह बना कर नाच रही थीं और पुरुष अलग. न रामलीला जैसे रस्से से बंधा अलग एरिया केवल महिलाओं के लिए और न कोई एनाऊन्समेन्ट कि माताओं, बहनों की अलग व्यवस्था बाईं ओर वाले हिस्से में है, कृप्या कोई पुरुष वहाँ न जाये और न कोई रोकने टोकने वाला. बस, सब स्वतः.
सोचने लगा कि कितने सभ्य और सुसंस्कृत लोग हैं दुनिया के इस हिस्से में भी. महिलाओं के नाचने और उत्सव मनाने की अलग से व्यवस्था. इतनी बीयर चल रही है फिर भी मजाल कि कोई दूसरे पाले में चला जाये नाचते हुए. पत्नी महिलाओं की तरफ जा कर एक तरफ बैन्च पर बैठ गई और हमने बीयर का गिलास उठाया और लगे पुरुष भीड़ के साथ झूम झूम कर नाचने.
अम्मा बताती थी मैं बचपन में भी मोहल्ले की किसी भी बरात में जाकर नाच देता था. बड़े होकर नाचने का सिलसिला तो आज भी जारी है. वो ही शौक कुलांचे मार रहा होगा.
चारों तरफ नजर दौड़ाई नाचते नाचते तो देखा ढ़ेरों टीवी चैनल वाले, अखबार वाले अपना अपना बैनर कैमरा और संवाददाताओं के साथ इस उत्सव की कवरेज कर रहे थे. लगता है, जर्मनी के होली टाईप किसी उत्सव में आ गये हैं. टीवी वालों को देख उत्साह दुगना हो गया. कमर मटकाने की और झूमने की गति खुद ब खुद बढ गई. झनझना कर लगे नाचने.
दो एक गिलास बीयर और सटक गये. वहीं बीयर स्टॉल के पास एक झंडा भी मिल गया जो बहुत लोग लिए थे. हमने भी उसे उठा लिया..
फिर तो क्या था, झंडा लेकर नाचे. इतनी भीड़ में अकेला भारतीय. प्रेस वाले नजदीक चले आये. टीवी वालों ने पास से कवर किया. प्रेस वालों ने तो नाम भी पूछा और हमने भी असल बात दबा कर बता दिया कि इसी उत्सव के लिए भारत से चले आ रहे हैं और सभी को शुभकामनाऐं दीं.
खूब फोटो खिंची. मजा ही आ गया. खूब रंग बरसाये गये, कईयों ने हमारे गाल पर गुलाबी, हरा रंग भी लगाया, गुब्बरे उडाये गये, फुव्वारे छोड़े गये और हम भीग भीग कर नाचे. कुल मिला कर पूरी तल्लिनता से नाचे और उत्सव मनाये.
भीड़ बढ़ती जा रही थी मगर व्यवस्था में कोई गड़बड़ी नहीं. स्त्रियाँ अलग और पुरुष अलग. कभी गल्ती से नजर टकरा भी जाये तो तुरंत नीचे. कितने ऊँचे संस्कार हैं. मन श्रृद्धा से भर भर आये. पूरा सम्मान, स्त्री की नजर में पुरुष का और पुरुष की नजर में स्त्री का. एकदम धार्मिक माहौल. जैसे कोई धार्मिक उत्सव हो. शायद वही होगा.
थोड़ी ही देर में भीड़ अच्छी खासी हो गई. प्रेस, प्रशासन सब मुस्दैद. जबकि कोई जरुरत नहीं थी पुलिस की क्यूँकि लोग तो यूँ ही इतने संस्कारी हैं, मगर फिर भी.
अपने यहाँ तो छेड़े जाने की गारंटी रहती है, फिर भी पुलिस वाला ऐन मौके पर गुटका खाने निकल लेता है. मगर यहाँ एकदम मुस्तैद!!
धीरे धीरे भीड़ ने जलूस की शक्ल ले ली. मगर महिलाऐं अलग, पुरुष अलग. वाह!!! निकल पड़ा मूँह से और सब निकल पड़े. पता चला कि अब यह जलूस शहर के सारे मुख्य मार्गों पर घूमेगा. जगह जगह ड्रिंक्स और खाना सर्व होगा. मजा ही आ जायेगा. हम भी इसी बहाने नाचते गाते शहर घूम लेंगे. खाना पीना बोनस और प्रेस कवरेज के क्या कहने. पूरे विश्व में दिखाये जायेंगे.
कई नये लोग जुड़ गये. नये नये बैनर झंडे निकल आये. अबकी अंग्रेजी वाले भी लग लिए. हम भी एक वही पुराना वाला जर्मन झंडा उठाये थे तो सोचा किसी अंग्रेजी से बदल लें. इसलिए पहुँच लिए झंडा बंटने वाली जगह. अंग्रेजी झंडा मिल गया. लेकर लगे नाचने. फिर सोचा कि पढ लें तो कम से कम कोई प्रेस वाला पूछे तो बता तो पायेंगे.
पढ़ा!!!!!!!!!!!!!!
अब तो काटो तो खून नहीं. तुरंत मूँह छिपा कर भागे. पत्नी को साथ लिया और ट्रेन से वापस एअरपोर्ट. मगर अब क्या होना था टीवी और अखबार ने तो अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर कवर कर ही लिया.
दरअसल, अंग्रजी के जो बैनर और झंडॆ पढे तो पता चला कि अंतर्राष्ट्रिय समलैंगिक महोत्सव मनाया जा रहा था जिसे वो रेनबो परेड कहते हैं और वो झंडा हमारे हाथ में था, कह रहा था कि मुझे समलैंगिक होने का गर्व है. क्या बताये, कैसा कैसा लगने लगा.
कनाडा के जहाज में बैठ कर बस ईश्वर से यही प्रार्थना करते रहे कि कोई पहचान वाला इस कवरेज को न देखे या पढ़े.
सोचिये, ऐसा भी होता है कि सी एन एन और बी बी सी टाईप चैनल आपको कवर करे और आप मनायें कि कोई पहचान वाला आपको देखे न.
जबकि जरा सा अखबार में नाम आ जाये या टीवी पर दर्शक दीर्घा में भी हों तो एक पोस्ट लिख कर, ईमेल करके, फोन पर सब पहचान वालों को लिंक, स्कैन कॉपी और प्रोग्राम टाईम बताते नहीं थकते.
सब मौके मौके की बात है. टीवी पर तो तुम बम धमाके करके भी आ सकते हो मगर चाहोगे क्या कि कोई अपना तुम्हें देखे.
वैसे अब सोचता हूँ तो लगता है कि इस परेड का अर्थ क्या है? जलूस निकालने और नाचने जैसी आखिर बात क्या है? किस बात की प्रदर्शनी कर रहे हो, क्या बताना चाहते हो?
एक साधारण स्त्री पुरुष तो झंडा उठा उठा कर नाच नाच कर यह नहीं बताते कि हम प्रकृति द्वारा निर्धारित आम प्रवृति के लोग हैं फिर तुम ही क्यूँ यह सब करते हो पूरे विश्व में??
कहीं कुछ कुंठा या हीन भावना तो नहीं?
बताओ न!!!
नोट: इस तरह के संबंधों के प्रति श्रृद्धा रखने वालों की यह कतई खिलाफत न समझी जाये. बस, अपने मन के भाव कहे हैं. अतः वह आहत न हों.
113 टिप्पणियां:
जान बची तो लाखो पाए ,लौट के समीर अंकल घर आये . मजेदार बाकया आप भी कहाँ कहाँ हो आते हो
aisa hota hai bade bade deshon me ,narayan narayan
कुछ इसी समलैंगिकता विषय पर मैने भी एक पोस्ट समलैंगिकता और पंडित केवडा प्रसाद लिखी थी - जब हलवाई को शंका हुई कि दो समलैंगिकों के शादी में मिठाई बनाने का आर्डर तो मिल गया, लेकिन पहले जो किसी बच्चे - ओच्चे के जन्म होने पर नामकरण वाला आर्डर मिलता था वो तो अब मिलने से रहा :)
वहीं एक मास्टर की चिंता थी - अरे कल मैंने कक्षा में दिनेश को हरिलाल के पास बैठने को कहा तो उसने बैठने से इन्कार कर दिया, कहता है हरिलाल उसे छेडता है। बताओ भला, अब किसको कहां बिठाउं कुछ समझ ही नहीं आ रहा है :)
यह पोस्ट हांलाकि बहू के तन कर चलने से ही शुरू होती है, पर आप कहां तन कर चल पडे।
ऐसी-वैसी जगहों पर जाने लगे हो गुरूवर, त्राहिमाम...त्राहिमाम।
काफी मजेदार पोस्ट रही।
समीर जी, आप की पोस्ट पढ़ कर मज़ा आ गया। जिस क्रम से मज़ा आया वही लिखता हूं। सब से पहले तो मुझे पता चला कि आप भी मेरे जैसे एडवैंचर करने के शौकीन हैं कि हर स्टेशन पर उतरा जाये--बाहर जा कर घूमा-फिरा जाये, लोगों से बात की जाये---मुझे भी ऐसा करने का बहुत शौक है। आगे चल कर यह तो मन झूम उठा कि आप उस समूह के साथ झूमने लगे....बहुत अच्छे। आप के लिखने का ढँग भी इतना सरल-सहज है कि पाठकों ने भी लगभग आप की यादों के साथ झूम ही लिया होगा।
अपने यहाँ तो छेड़े जाने की गारंटी रहती है, फिर भी पुलिस वाला ऐन मौके पर गुटका खाने निकल लेता है यह पढ़ कर तो हंसी के फव्वारे छूट पड़े।
और हां, वो बचपन में बेगानी शादियों में नाचने का जुनून ---साहब,आप इस में अकेले नहीं है, यह काम करने की इच्छा मेरी भी खूब रही है और शायद कभी कभी इस जश्न में कूद भी पड़ा हूंगा। और अकसर यह सोचना कि हमारे परिवार में कब कोई ऐसा मौका होगा जहां हम ऐसा हुड़दंग मचा पायेंगे।
और जब आपने इंगलिश में लिखे बैनर की बात की तो झटका सा लगा --- सोच रहा हूं अगर हम लोगों को ही झटका लगा है, तो आप का क्या हाल हुआ होगा और क्या किसी परिचित ने इस कवरेज को देख कर आप को फोन-वोन किया।
बहुत ही बढ़िया पोस्ट ।
इसे कहते हैं'बेगानी शादी में अबदुल्ला दीवाना':)
आप भले ही रेनबो परेड में नाच आए हों , पर पढ़ कर हमारी तो तबियत इन्द्रधनुषीय रंगों में सराबोर हो गई !
अब आपके सवाल के जवाब में मुझे तो ये कुंठा या हीन भावना ही लगती है ! क्योंकि अभी इस बात की सामाजिक मान्यता नही है ! खुदा ना करे , भविष्य में कभी ये मंजूर हुए तो फ़िर इसकी जरुरत नही रह जायेगी !
आज का लेख बिल्कुल असाधारण प्रस्तुती रही ! जैसे आपको नही मालुम था की आप कौन से महोत्सव में नाच रहे हैं और अनजाने में इंटरव्यू , दे दिया की भारत से बिल्कुल इसी के लिए आए हैं वैसे ही आपने पाठको को यह पता अंत तक नही पड़ने दिया ! हम तो अंत तक समझ रहे थे की उस कवरेज़ का कोई यु-ट्यूब का विडियो आगे देखने को मिलेगा ! ये आपकी लेखन कला है ! प्रणाम आपको !
हास्य-व्यंग्य के साथ रोचकता का जबरदस्त तड़का था, इतना कि अंत में हँसी नहीं थमी। ऑंख से ऑंसू आ गए और पेट में बल पड़ गए। आपका थिरकना सुनकर मैं तो हीनता बोध से ग्रसित भी हो गया।
मसालेदार लेखन, बस मजा आ गया।
वाह समीरजी, मज़ा आ गया!
हम शुरु में ही भाँप गये थे कि यह उत्सव का रहस्य रोचक होगा और अंत में ही पता चलेगा।
गनीमत है कि केवल समलैंगिकों की जुलूस थी।
यदी हिजड़ों की होती तो?
"अम्मा बताती थी मैं बचपन में भी मोहल्ले की किसी भी बरात में जाकर नाच देता था. बड़े होकर नाचने का सिलसिला तो आज भी जारी है. वो ही शौक कुलांचे मार रहा होगा."
मैं और मेरा दोस्त नाचते ही नहीं थे बल्कि बारातियों पर लुटाये गये पैसे (१-१ रूपये के नोट) भी २-३ बार लूट आये थे । घर पर ऐसी सेवा हुयी दोनों की कि सब भूल गये :-)
वैसे बधाई हो नये लाईफ़स्टाईल की :-)
वाह समीर भाई ! कहाँ फंस गए यार और भाभी जी को भी परेशान कर दिया ! आपको गालियाँ खूब पड़ीं होंगी बाद में :-))
समीर भाई,
आपकी पोस्ट हमेशा की तरह
सहजता से ,
ज़िँदादील अँदाज मेँ लिखी गई है!
समलैँगिकता का मुद्दा आजकल यहाँ खूब चर्चा मेँ है -
उनके इस तरह के प्रदर्शनोँ के पीछे
अपने हक्कोँ के लिये लडने की , सँजीदा कोशिश है ताकि,
दूसरी तरह के ( हम जैसे लोग )
उनके बारे मेँ समझ सकेँ --
मैँ ,
अभी तक
पूरी तरह
समझ नहीँ पाई हूँ :-(
बहोत सुन्दर लिखा है आपने और आपके लेखन में सबसे बढ़िया बात ये है के आप बोलचाल की भाषा में लिखते है जो सहज और सरल होता है बहोत ही बढ़िया उकेरा अपने आपको ढेरो बधाई ....
चलिए मजा तो लिया।
"उनके" दिल की वो जाने....हम अपने दिल की जाने.....हम तो आपके साथ ही...... जब तक भेद नहीं खुला था..खूब जम कर झूमे-नाचे..और बीच में थोडी सी व्यवस्था की सोच-सोच कर ईर्ष्यालु होते रहे. नीयत तब तो ठीक थी ही आपकी आज और साफ़ है तभी तो जो प्रेस वालों ने बताया-चेताया नहीं, उसे आज आपने दिल खोल कर रख दिया. वैसे आपका वजन हमें यह दिलासा देता है कि और भी मजेदार "बहुत कुछ' छुपा रखा है आपने किस्सा-ये-जिगर में.
दावत उडाने गये छ्ट्ठी की,खाना निकला तेरहीं का। मज़ा आ गया।
बहुत खूब हम एक रो में ही पढ़ गए।
"अपने यहाँ तो छेड़े जाने की गारंटी रहती है, फिर भी पुलिस वाला ऐन मौके पर गुटका खाने निकल लेता है "
बहुत अच्छे।
और साथ में मैं तो यही सोच रहा था कि आपका नाचता हुआ फोटू मिलेगा।
बी बी सी पे वो प्रोग्राम मैने देखा था.. आपकी कमर केमरे में पूरी आ नही रही थी.. फिर भी आपके ठुमको को देखकर सोफे से खड़े होकर सीटिया बजाई थी..
ये पढ़कर तो मन और आनंदित हो गया
"जबकि जरा सा अखबार में नाम आ जाये या टीवी पर दर्शक दीर्घा में भी हों तो एक पोस्ट लिख कर, ईमेल करके, फोन पर सब पहचान वालों को लिंक, स्कैन कॉपी और प्रोग्राम टाईम बताते नहीं थकते."
आगे भी आपने सही लिखा..
"वैसे अब सोचता हूँ तो लगता है कि इस परेड का अर्थ क्या है? जलूस निकालने और नाचने जैसी आखिर बात क्या है? किस बात की प्रदर्शनी कर रहे हो, क्या बताना चाहते हो?"
कुल मिलाके स्टाइल बढ़िया रहा... आपकी पोस्ट पढ़के मेरा मन ठुमके लगाने को कर रहा है..
मतलब की बात:-
भारत में सभ्यता आ सकती है, नारी वर्ग से छेड़खानी और दुर्व्यवहार समाप्त हो सकता है, सिपाही फुरसत से खैनी खा सकता है।
बस भारत समलैंगिक बन जाये तो! :)
बहुत मज़ा आया पढ़कर...आप की गलती नहीं है समीर भाई, एडवेंचर क्या न कराये.
जान कर तसल्ली हुई कि आप ऊ टाइप नहीं है, वरना जब से आपकी बेनर थामे हुए की तस्वीर देखी तभी से मन कैसा-कैसा हो रखा था.
जब आदमी भय ग्रस्त होता है, वह ज्यादा जोर से बोलने गाने लगता है. इन के साथ भी वैसा ही है शायद.
वाकई मज़ा आ गया, पूर्वाभास हो चला था कि समीर जी फँसने वाले हैं. मुद्दे की बात यह रही कि आप को भी बहुत मज़ा आया था बस अँग्रेज़ी झंडे ने किरकिरी कर दी. आभार.
हा हा समीर भाई,
आप जो छुपाना चाहते थे...छपास की प्यास के कारण विस्तार से बता दिया...
कोई बात नहीं वियर और डांस तो फ़्री ही का था न...
होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है
ईश्क कीजे फ़िर समझीये आशकी क्या चीज है
इतना मजेदार वाकया पढ़ कर हँस हँस के पेट दर्द हो गया ..और आपकी नाचने के बाद की शक्ल याद करने की कोशिश जब जाना होगा आपने कि अब्दुलाह जी क्यों हुए दीवाने ..बढ़िया याद रखने लायक वाकया है यह ..अब आप आगे से फूंक फूंक के नाचने के लिए कदम उठाएंगे इस मजेदार डांस के बाद शायद :)
ये तो बहुत गजब हुआ ! इसके अंत का सस्पेंस अंत तक बना कर आपने इसे बेहतरीन सस्पेंस कथा बनादी ! बहुत मजा आया पढने में ! धन्यवाद !
" baap re baap .... pr hum chup hee rhenge..."
Regards
बहुत गजब भाई साहब ! गनीमत है हिजडो का जुलुस नही निकला ! सूना है आप अभी स्वदेश आ रहे हैं कहीं फ़िर रास्ते में समय पास करने के बहाने उल्टे सीधे जुलुस में मत शामिल हो जाईयेगा ! और ये जर्मन बाला ( टी शर्ट वाली) वहीं मिली थी क्या ! :) तिवारी साहब का सलाम !
Sammaan bachi toh lakho paye...Waise aajkal samlaingik hona bhi sharm ki baat nahi rahi...
from- saffaar.blogspot.com
ha ha ha saadhu saadhu
बहुत ही बढ़िया
अच्छा अनुभव है, मुबारक आपको। मुबारक इसलिए भी कि चार भाइयों से अपनी बात कह कर मन लहका कर लिया, अपराध बोध से मुक्त हो गए। भविष्य में भी ऐसे अनुभ बाटते रहना। धन्यवाद
चलो जो हुआ सो हुआ, पर वाक़या याद रह जायेगा!
बीयर कहाँ समलैंगिक होती है......चलिए पार्टी के मजे तो लूट लिये.... आइन्दा से पहले पोस्टर पढ़ ले ....आपका लिखने का अंदाज खूब धासू है ...
हा हा हा.......खूब हँसे पढ़कर . आनंद आ गया.चलिए आपके लिए यह अविस्मरनीय दुर्-घटना होगी....और हम भी याद करके हंस लिया करेंगे.....
वो झंडा हमारे हाथ में था, कह रहा था कि मुझे समलैंगिक होने का गर्व है. क्या बताये, कैसा कैसा लगने लगा.
haste haste lotpot ho gaye hum to sameer ji.. bahut khoob bahut mazedaar wakya hai... :-) :-) bas intezaar kar rahe ahi ki kabhi wo video AAj tak ya Indian TV ke hath lag jaye to hum bhi aapko Tv pe dekh lege :-)
"कहीं कुछ कुंठा या हीन भावना तो नहीं? बताओ न!!!"
अरे भाई हमसे काहे पूछते हैं, हमको कौनो आईडिया नहीं है. झंडा उठा के तो आप नाच रहे थे और पूछ हमसे रहे हैं :-)
--
वैसे इतना तो नहीं पर थोड़ा सा तो हम भी फंसे थे... आपको तो पता ही है. टी-शर्ट वाला:
http://ojha-uwaach.blogspot.com/2008/08/blog-post_29.html
बहुत घूमते हैं, कम घूमते तो एसी कहानी नही बनती।
ये उतसव मेरा है :)
bade bahiya..sahi salamat laut kar aa gaye yahi bahut hai..jyaada age chale jate to pata nahi kya hota ;-)
Agar TV par kahi dekhe to jaroor aapko itla kar dunga :-)
सही जगह पे फंसे थे समीर जी हमारे यहां कहावत है कि सयाना कव्वा हमेशा ::: पर ही बैठता है । अच्छा खुद अकेले हो आते तो कोई बात नहीं थी पर आदरणीय भाभीजी को भी घुमा लाये । बचपन में एक कामिक्स पढ़ी थी नाम तो याद नहीं पर उसमें ये होता था कि एक पात्र हमेशा ही आप ही की तरह फंस जाता था । वैसे आप तो उस भीड़ में अलग ही नजर आ रहे होगे अपनी इकहरी काया के कारण । क्योंकि वहां तो छरहरे टाइप के लोग होंगें जिनके बीच में एक आप भरभरे टाइप के अलग ही दीख रहे होगे । मुझे लगता है कि आपने कहानी को बहुत ज्यादा एडिट करके लगाया है आपने जुलूस के दौरान हुई बहुत सारी घटनाओं पर सेंसर की तरह कैंची चला दी है । अगर भारत होता तो टीवी चैनल का रिपोर्टर होने के नाते आपसे पूछता तो सही 'समीर जी बताइये आपको कैसा लग रहा है इस जुलूस में शामिल होकर ' । आपने कौन चैनल बताया था उसके संवाददाता को जुगाड़ता हूं कि आपके फुटैज भेजे ताकि ब्रेकिंग न्यूज चला सकूं ' कल तक न्यूज चैनल का खुलासा, मशूहर ब्लागर और कवि समीर लाल की हकीकत जनता के सामने, देखते रहिये कल तक '' खैर अच्छी पोस्ट है । इसी विष्य पर एक कहानी मेरी कथक्रम में प्रकाशित हुई है जो http://kathakram.in/ यहां पर है उसको लेकर काफी लोगों की आलोचना झेल चुका हूं ।
अरे वाह! ये तो ब्रेकिंग न्यूज बन गयी।
हिन्दी ब्लॉगिंग के (शारीरिक रुप से) अदनान सामी, टिप्पणी किंग समीर लाल कनाडे वाले, जर्मनी मे समलैंगिकों के जलूस मे शिरकत करते देखे गए। सभी पाठकों को इस बात का मलाल है कि समीर लाल ने अपनी दिल की खुलासा, अपने देश/कर्मदेश मे ना बताकर, समलैंगिको के मक्का जर्मनी मे जा किया। भाई सॉरी (भाई से कफ़्यूजन होता है ना) सिर्फ़ समीर लाल जी को नए जीवन पर बहुत सारी शुभकामनाएं। समीर जी, भारत के समलैंगिको की एसोशिएशन बनाने के बारे मे आपका क्या विचार है?
aapko likhne ke liye honsle ki kahan zarurat hai jab humein aapke blog ko padhke aage bhi padhte rehna ka mann karta hai. although one of my colleagues passed the link of this post to me and i read it for the first time but it is so hilarious that i nearly fell down off my chair with laughter. One advice to never raise a flag before reading it first. hahaha :)
जान बची तो लाखो पाए , महोदय बेहद ही रोचक संस्मरण है . मजा आ गया . धन्यवाद.
bachke rhna re baba bachke rhna reeeeeee
मेरी हँसी नही रुक रही थी यह सोंच कर की नाचते वक्त आप कैसे दिख रहे होंगे.पर जैसे ही आगे पढ़ा हँसी स्वतः रुक गई ..और यह भी समझ आ गया की क्यों छेड़छाड़ नही हो रही थी ..जय हो आपकी लेखनी की
जबरदस्त!
क्या लिखा है , क्या इश्टाइल से लिखा है।
मान गए.
पन जे लोचे आपई के साथ क्यों होते है ;)
are baap re aapne ye kya kiya sameer bhai phir to ghar aakar kaafi daant padi hogi bhabhi ji se khair jo huya so huya aage se agar kahin jaao to puri information ke saath hi jaana chahe kahin par raamlila hi kyun na ho pahale pata jarur kar lena ab hame bhi aapki chinta hone lagi hai bhai thanx god BACHA liya warna khyati ke chakkar me...
बड़ा सस्पेन्स बाँधा है। मान गए हम। बधाई।
कोई भी कहानी गढ़ लें समीर जी अब शक के दायरे में तो अब आप आ ही गए हैं - और भूरि भूरि प्रशनसा कीजिये दूसरे देश की संस्कृति की -अब यह दाग जल्दी धुलने वाला नहीं -अभी आपका भारत दौरा भी आसन्न है -कोए हिडेन एजेंडा तो नही -इधर भारत में भी यह मुद्दा बनता जा रहा है -पता लगाता हूँ कि कोई अन्तरास्त्रीय समारोह तो यहाँ आयोजित नही होने वाला है ?
has has ke bal pad gaye....yhi apeksha bhi thi.......bahut hi achha
क्या बात है समीर जी वाह... आप नाच भी लिए और पता लगने पर भाग भी लिए। पढ़कर हंसी रुक ही नहीं रही। लिखते लिखते हंसी भी आ रही है रुक ही नहीं रही।
अभिलेखागारों में जाकर न्यूज ढूँढ़नी होगी अब तो
कैसे नहीं देख पाये हम जिसे आपने दोहराया है
भाषा से अनभिज्ञ भीड़ में कैसे हिस्सा बन जाते हैं
ऐसा ही भारत की रैली में अक्सर होता आया है
क्या सोचा था, क्या हो गया -बस भाषा का चमत्कार था जिस से सारी गड़बड़ हो गया। एक लाभ हो गया कि बिना किसी परेशानी के रेनबो परेड का आनंद उठा लिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टी.वी. पर आने केलिए लोग न जाने कितने जतन करते हैं और टी.वी. वाले स्वंय आपके पीछे पड़ रहे थे। कुआं खुद प्यासे के पास आरहा है। जिस ने कैमरे के साथ आप से बात-चीत की थी अगर वह भी समलैंगिक हुआ तो आपकी फोटो के ऐसे ऐंगल्स से लिए होंगे कि चार चांद लग जाएंगे।
घबराने की बात नहीं है बदनाम होगे तो 'नाम' भी होगा। नाम के लिए लोग जाने कितने कितने कुकर्म करते हैं, जब कहीं जा के नाम कमा पाते हैं।
ज़बर्दस्त प्रस्तुति है, शुरू से आखिर तक इतनी
रोचकता बनी रही कि बस मज़ा ही मज़ा! भई, वैसे हम महसूस करते हैं कि आपके दिल में क्या ग़ुज़री होगी पर क्या करें इतना रोचक प्रसंग था कि हंसने हंसाने में सारी आर्द्रता विलीन हो गई।
आपबीती में तो सबने मजा लिया। मैं तो आप दोनों के post reactions का अंदाज लगा-लगा कर परेशान हूं।
समीर जी
धन्यवाद जर्मनी के बारे में एक अच्छे रिवाज और वहां के लोगो के संस्कारों के बारे में अच्छी जानकारी देने के लिए....काश एसा हमारे देश में भी होता. . सर एक बात आपके भारी भरकम नृत्य को देखकर सभी दंग रह गए होंगे ....सर हमारे देश में अब पप्पू कांट डांस का चलन शुरू हो गया है . जब आप यहाँ आएंगे तो आपको नया पप्पू कांट डांस डांस देखने मिलेगा. हा हा हा . आज की पोस्ट बेहद रोचक और जानकारी से लबरेज है बधाई.
वाह समीर जी बहुत हंसाए हैं आप !
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
मज़ा आ गे
अर्र्रर्र्रे गे नही गया
ही ही ही
i decided to comment in english this time....and i am speechless
कमाल है। आपने जो किया सो किया, लेकिन जो लिखा, वो भी कमाल है।
ha ha ha ha ha ha ha
majedaar!!!!!
ab to aap media ke chahete ho gaye ????
hamko to aaj maloom chala!!!!!
ha ha...is kahani se ye shiksha milti hai ki bina bhasha samjhe koi jhanda hath mein nahi lena chaahiye.
शुरू से आखिर तक यही सोचते रहे कि यह कौनसा जर्मन तौहार है जो होली से मिलता जुलता है पर आKfर में जो हँसी छूटी तो पोतियाँ दौड कर पूछने लगी, "Aaji what happened" अब उन्हे क्या बताते ।
jai ho..
jai ho...
again
jai hooooooooooooooooooooooo
बिना विचारे जो करे वो पाछे पछताय...ये बात आपने फ़िर साबित कर दी है...धन्य हो जनाब.
नीरज
समीर जी मै तो पहले ही समझ गया था, जब आप ने लिखा की मर्द अलग ओर ओरते अलग अलग बेठी थी, चलिये मजा आ गया, कभी आप को जर्मन टीवी पर देखा तो उसे जरुर रिकार्ड करुगां , ओर केमरे वाले भी हेरान होगे कि इस भारतीया को यह शोक कब से हो गया....
चलिये सही वक्त पर आप चेत गये.... वरना इज्जत ..... पता नही क्या क्या हो जाता.
धन्यवाद
Subah uthte hee sabse pahle aapka
lekh"ye kaesa utsav hai bhai"dekha.
Garma-garm tea kee chuskion ke saath padhna shuru kia.Bada aanand
aayaa.Sach maaniye,aapke lekh kee
speed Udan Tashtree se kahin ziada
niklee.Kis pen kaa istemaal karte
hain aap?Naam likh bhejiye.Aap
apna pen to udhar mein denge nahin.
Khair,aapka lekh khoob hai.Ek ati
pathniy aur rochak lekh ke liye
aapko badhaaee
बहुत अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
Shut-up shut-up shut-up. Is type se hanvakar kya peth pharvaaoge lal saheb. ha ha ha bahut behtareen maza aa gaya aur aapke raghunaath ho jaane men bhee jo style thee uska to kya kahna ! vaah.
वो वीडियो आपके पास तो होगा ही ..
हमें भी दिखाइए देखें जरा झंडा कैसा है .. पहचान लें नहीं तो हो सकता है हम भी धोखे से कहीं फहरा दें :)
जब पोस्ट पढ़नी शुरु की तो मैं भी यही सोच रहा था कि कहीं अंत में ये समलैंगिक परेड न निकल आए और अंत में वही हुआ, ही ही ही!! :)
एक साधारण स्त्री पुरुष तो झंडा उठा उठा कर नाच नाच कर यह नहीं बताते कि हम प्रकृति द्वारा निर्धारित आम प्रवृति के लोग हैं फिर तुम ही क्यूँ यह सब करते हो पूरे विश्व में??
कहीं कुछ कुंठा या हीन भावना तो नहीं?
इसका कारण वही है जिस कारण से आपको स्त्री उत्थान संस्थाएँ और स्त्रीवादी नज़र आती हैं!! क्या कभी पुरुष उत्थान संस्था देखी है?
सब टाइमपास की चीज़े हैं जी, हीन भावना भी हो सकती है, अपने को शोषित भी समझ सकते हैं, कुछ भी हो सकता है! :)
'होइ है वही जो राम रचि राखा', आप-हम सब तो 'उसकी' कठपुतलियां हैं । 'वह' कभी भी बुरा नहीं करता । आप तो खुश ही बने रहिए कि 'उसकी' इच्छा के परिपालन में इतना आनन्द ले बैठे । अन्त भला तो सब भला । इस कीमत में यह सबक मंहगा नहीं है ।
बढ़िया
नमस्कार
आपके द्बारा लिखा यात्रा संमरण "ये कैसा उत्सव रे भाई!!!" बेहद रोचक और पठनीय लगा.
आपकी लेखन शैली पाठक को आदि से अंत कब ले गई पता ही नहीं चला. माहौल कैसा भी हो, पर्व कैसा ही हो. आपने एक संस्मरण सुनाया और सार्थक भी, पाठक यही चाहते है . कि पढ़ कर मन प्रसन्न हो.
और ये काम आप बखूबी कर रहे हैं
बधाई
आपका
विजय तिवारी 'किसलय "
जबलपुर
सुंदर
Wah
स्कूल में एक कहानी पढ़ी थी अखबार में नाम !
जिसका मुख्य पात्र एक बच्चा जिंदगी भर इसी सपने के साथ जीता है कि कब उसका नाम अखबार में छपे और जब वो सपना साकार होता है तो इस रूप में कि वो समाज में मुँह दिखाने के काबिल ना रहे।
आपकी व्यथा सुनकर वही कहानी याद आ गई।
पर खूबी से आप इस घटना के climax तक ले गए :)
बंधुबर आपको सर्वप्रथम बधाई की आप एक महोत्सव में शामिल हुए साथ ही यह लिंक भेज रहा हू उसमे आपके ब्लॉग के विषय में लिखा गया उसके लिए पुन बधाई
http://www.amarujala.com/today/default.asp
ओफ्फो मजा आ गया पढ्कर और हंसने की तो बात ही मत पूछो बंधू लिखता जा रहा हूं और हंसता जा रहा हूं.
गजब का क्लाइमेक्स कर दिखाया आपने .एक तरफ चना और दूसरी तरफ उल्टॆ पैर भागना .चलिए सही सलामत लौट आए तसल्ली हुई.
यह भी तो बताएं की अगली बार कब जा रहे हैं इस उत्सव में
वह भाई वाह.
हास्य बोध का पैना होना उतना ज़रूरी नहीं जितना अंदाज़े बयां.
दस में सेव दस
चश्मे बद्दूर...
अपने पर हँसना बड़ी हिम्मत का काम है।
आनन्द आ गया ऐसा संस्मरण पढ़कर।
khair utsav chahe kisi ka bhi ho,paav thirkane ki udan ji ki echha uri huyi:):)bahut badhiya,vaise wo coverage kisi news chanel par dikha bhi ya nahi:):)
khair utsav chahe kisi ka bhi ho,paav thirkane ki udan ji ki echha uri huyi:):)bahut badhiya,vaise wo coverage kisi news chanel par dikha bhi ya nahi:):)
समीर भाई
जबर्दस्त लिखा है
व्यंग की ऐसी धार, कटे भी और पता न चले
ये विषय आजकल हिन्दी फिल्मों मैं भी काफी चर्चित है
फैशन, दोस्ताना, गोलमाल रिटर्न, तीन पिक्चरों मैं छाया हुवा है
lekh padhna shuru kiya to..laga wakayee bada sambhrant group hai...lekin---jhndey par likhey ka matlab samjha aap ne aur aap ki kya halat hui hogi-soch kar hansi aa gayee--
ghabrayeeye nahin abhi tak UAE ke channels par aisee koi khabar nahin dikhayee gayii...na hi aap ka wah interview kisi channel par dikha---
ghanimat hai aap samay rahtey wahan se nikal gaye!
[aisey ut-patang utsav sirf western country mein hi hotey hain.:)]
काफी मजेदार बाकया,पढ़ कर मज़ा आ गया।आपकी लेखन कला को प्रणाम !
मजा आ गया.
कुंठा या हीन भावना? मुझे तो दोनों ही लगती हैं.
ब्लाग मे अब नीचे नोट देना जरुरी होता जा रहा है यहा आपने कुछ कहा और वहा उसने उसका कुछ अलत-गलत मतलब निकाला और टिपीयाया !!
prevention is better then cure !!
समीर जी कभी सर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र से उड़ते हुए अर्धसत्य पर आ जाइयेगा या समलैंगिकों पर ही इतनी बड़ी पोस्ट लिख कर मजे करने हैं,कभी हम हिजड़ॊं पर भी कुछ भला-बुरा अपनी लेखनी से लिखिये;प्रतीक्षा रहेगी।
maine pahle aapko apne vichar likhe the aapne une swekar kyo nahi kiya kripaya batane ka kast kare
मित्र अतुल गौर
इसके पहले आपके यह विचार मिले थे जो कि प्रकाशित हैं:
बंधुबर आपको सर्वप्रथम बधाई की आप एक महोत्सव में शामिल हुए साथ ही यह लिंक भेज रहा हू उसमे आपके ब्लॉग के विषय में लिखा गया उसके लिए पुन बधाई
-इसके अलावा भी कुछ भेजा हो तो मुझे मिला नहीं..आप कह रहे हैं तो भेजा ही होगा.. मैं क्षमापार्थी हूँ कि मुझे मिला नहीं.
आगे चेक करवाता हूँ कि ऐसी गल्ती न हो..न जाने कौन सी गलती है..मुझे दिख ही नही रही.
नई जगहों पे हो जाती है इस तरह की बातें, वैसे बदनाम भी हुए तो क्या, नाम तो हुआ जनाब :) अपने ऊपर इस तरह से व्यंग लिखना आसान नहीं होता, आपने सहज बना दिया..
आप की बेबाकी प्रेरनादायी है .अच्छा लगा संस्मरण
kar maja aa gaya
yahin baithe baithe apne hume bhi jaise us utsav mein shreek kar liya
:) :) :) ;) :) :)एक कमी है आपने अपनी फोटो नहीं लगाई... आप तो बुरे फंसे :) चलो कोई बात नहीं सबक मिला... क्यों? लाज़वाब लिखा ...आपकी शैली... क्या कहने... आगे से ध्यान रखियेगा... खैर नाचे तो खूब! और क्या चाहिये!!
जिसे आप कुंठा कह रहे हैं उसे दूसरे शब्दों में अभिव्यक्ति की अतिरेकता भी कह सकते हैं.
बात ये नही है की ऐसा क्यों हो रहा है.. बात शायद ये ज्यादा महत्वपूर्ण है की अगर हो ही रहा है तो उसके सामाजिक, नैतिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य क्या हैं... पर जो भी हो, आपका अनुभव पढ़कर सच्महुच दिल रोमांचित हो उठा. बस आप को टीवी पर देख लेते तो दिल और भी प्रसन्न हो जाता.
Anubhavon ke sambandh me kafi dhani hain aap. Is naye 'anubhav' par 'badhai'.Ha ha ha
guptasandhya.blogspot.com
वैसे साहब,
मैं तो आपतो बीबीसी पर देख चुका हूँ, किसी महाशय के साथ ठुमके लगाते हुए....
vaah .....
abhi kal ki baat hai ... bhojan ban rahaa thaa... aur saamne baitha ek durjan paper padh rahaa thaa.....
"blog ka kona" ke antargat aapki ye mahaan krriti chhapi padi thi...
vo padha aur hansaa...aur mujhase kahaa ki dekho ek aadami ne ye bhi kiyaa....
hame to shak tha ki aisa aap hi kar sakte hain..
aap hi nikale...
:)
Amar ujala me lekh chhapaa thaa....
सबसे पहले तो आपको मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद। आपका की यह कृति पढ़ कर ऐसा लगा मानों मैं कोई कॉमेडी मूवी देख रहा हूं..वैसे सवाल की जहां तक बात है, साहब मीडिया और गैलैमर जो मिल रहा है...अब ऐसे प्राणी अपनी चर्चा सुनेंगे तो कोशिश अधिक चर्चा बटोरने की करेंगे ही..
समीर भाई,
वर्णन में रोचकता बनाई रक्खी जाय, इस शैली में लगता है , आपको महारत हासिल है.
शानदार प्रस्तुति के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
बकौल नीरज जी -
" बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछताय " समारोह में तो बिना बिचार किए सम्ल्लित हुए उसका नतीजा .........."
किंतु लगता है इस संस्मरण को ब्लॉग पर आप ने बिना विचारे तो नही ही उडेला होगा. तभी तो हर तरह की टिप्पणी के दर्शन हो गए.
चन्द्र मोहन गुप्त
जर्मनी के 'अर्लांगन' में मै भी दो महीने रहकर आई हूं।... जैसा कि आपने बताया, वैसा ही माहौल देखने को मिला था।... आपने बहुत अच्छी विस्तृत जानकारी दी है, धन्यवाद।
समीर जी, आप की पोस्ट पढ़ कर मज़ा आ गया। bahut badhiyaa
हा हा हा सचमुच मज़ा आ गया पढ़ कर हम बयां नही कर सकते...सोच रहे हैं आप भागते हुए कैसे लग रहे होंगे गुरुजी जैसे कि कोई फ़ुट्बॉल लुड़क रही हो...:)
सेंचुरी पुरी होने के बाद आया हूँ. बधाई. बड़े- बड़े देशों में छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं. वाकई यह अपने भिन्न अस्तित्व को लेकर कुंठा की ही अभिव्यक्ति है. इस बार उड़न तस्तरी ले मेरे ब्लॉग की ओर आ जाइएगा.
समीर जी बढि़या पोस्ट उससे पहले बढि़या नाच गान और बढि़या जुलूस। वाकई मजेदार किस्सा....।
रेनबो परेड का वाकया आपके रोचक अंदाज से और भी रोचक हो गया/पर समझ नही आता समाज मे इतनी विकृति क्यो आ गई है?मजेदार बात तो ये है,कि कोई भी खुल के इसका विरोध नही कर सकता?
बंधुवर मेने एक लिंक भेजा था जिसमे आपके ब्लॉग के विषय में प्रकाशन हुआ था क्या आपको मिला यदि नही मिला है तो अमर उजाला.कॉम पर जाकर देखे
sir interesting tha
95% Indian men have atleast one expriance for "GAY SEX"
आपकी इस पोस्ट के अंत में पूछे गए प्रश्न का यहाँ किसी ने उत्तर नहीं दिया. मैं आपके इस प्रश्न का उत्तर देना चाहता हूँ. आपने पूछा है की समलैंगिक व्यक्तियों को इस प्रकार का प्रदर्शन करने की आवश्यकता क्या है. दुनिया के कई देशों और विभिन्न धर्मों में समलैंगिकता को नीची नज़रों से देखा जाता है. अनेक समलैंगिक युवक एवं युवतियां यह सोच सोच कर निराश और हताश हो जाते हैं की उनमें कोई खराबी या दोष है, जिसे वे ठीक नहीं कर पा रहे हैं. इसी कारण कई बार ऐसे लोग depression में पड़ जाते हैं या फिर आत्महत्या कर लेते हैं. Gay Pride Parades इसी तनाव से गुजरने वाले लोगों को सहारा देने का, उन्हें यह बताने का कि उन जैसे और भी लोग हैं और इसमें कोई गलती या दोष नहीं है, एक जरिया है. हालांकि इसके लिए नग्नावस्था में सड़कों पर घूमना आवश्यक नहीं है, परन्तु यह दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका है. जिन TV cameras की आप बात कर रहे हैं, वे इन आयोजनों को इतना महत्त्व इसलिए देते हैं क्यूंकि कुछ विचित्र नज़र आता है तो दुनिया देखती है.
एक और कारण है. दुनिया भर में कई जगहों पर समलैंगिक व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है. यहाँ तक कि उनको समाज के सामने लज्जित करके उन्हें क्रूर तरीकों से जान से भी मार दिया जाता है. रोज़ाना की ज़िन्दगी में होती बदसलूकी अलग. ऐसे आयोजन समलैंगिक communities में एकता और विश्वास जगाने का प्रयत्न होते हैं, और दुर्व्यवहार करने वालों के लिए सन्देश कि अब और सहन नहीं किया जायेगा.
साधारण व्यक्तियों को अपने straight होने का प्रदर्शन नहीं करना पड़ता, क्यूंकि उनके साथ सामाजिक अन्याय नहीं किया जाता. Being straight is the accepted norm. आशा है आपके प्रश्न का उत्तर आप को मिल गया. यदि आप इसपर और चर्चा करना चाहते हैं, तो आपका स्वागत है.
Hi, Neat post. There is a problem with your site in internet explorer, would test this… IE still is the market leader and a big portion of people will miss your wonderful writing because of this problem.
ये पोस्ट इतनी मजेदार है दद्दा कि जितनी भी बार पढो उतना ही आनंद आता है |
आज का आनन्द
सादर नमन
"कहीं कुछ कुंठा या हीन भावना तो नहीं?"
धारदार व्यंग के साथ गंभीर प्रश्न ,सादर नमस्कार सर
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