नियमित प्रक्रिया के तहत सुबह सुबह ६.३० बजे ट्रेन पकड़ी दफ्तर जाने के लिए.
आज जरा जगह बदल गई. वजह, देर से पहुँचना. सामने की कुर्सी पर दो सहेलियाँ, सुकन्यायें. चलो, देर से पहुँचें मगर कोई गम नहीं और कोई नुकसान नहीं.
एक ने पहना था पीला टॉप, तो कान में पीले बूंदे और साथ ब्लैक जिन्स-टाईट फिट. गले में एक महिला कलर का स्कार्फ.
’महिला कलर’- अचरज न करें यह शब्द सुन कर. जैसे ’कहूँगी’ ’मरुँगी’ ’हट्ट’ ’आप बड़े वो हैं’ आदि स्त्रीलिंग हैं अर्थात सिर्फ वो ही बोलती और समझती हैं वैसे ही कई रंग भी होते हैं जो मेरी नजर में पुरुषों की समझ और पहचान से परे हैं. जैसे हम नहीं पहचान पाते कि मर्जेन्टा, बेज़, बरगंडी, धानी, मस्टर्ड आदि रंग कौन से होते हैं. हम इसे महिला वर्ग के लिए रिजर्व मान इस ओर मेहनत तक नहीं करते. उन्हीं में से किसी रंग का स्कार्फ था. पुरुष का काम पांच मुख्य रंगों में चल जाता है.
मुझे इन सब से क्या. वो तो नजर पड़ गई सो बता दिया. मुझे तो अपनी किताब पढ़ना है परसाई जी की ’माटी कहे कुम्हार से’ निकाली बैग से. अपना आई पॉड भी निकाल कर कान में फिट कर लिया मगर ऑन नहीं किया वरना दो सहेलियों की बात कैसे सुनता?? बताओ, कहलाया न होशियार. वो समझें कि हम गीत सुन रहे हैं और हम चुप्पे किताब में आँख गड़ाये उनकी बात सुन रहे हैं.
ईश्वर की विशिष्ट कृपा उस कन्या पर. सुन्दर काया..गोरा रंग और मानक अनुपात शरीर का. मानो ईश्वर के शो रुम का डिसप्ले आईटम हो. हर तरह से फिट और परफेक्ट.
सुना कि जल्दी में निकली तो ब्रेक फास्ट न कर पाई बेचारी. अतः साथ लाई है.
बैग खुला. पहले लिपिस्टिक निकली, वो लगी लगे पर. फिर मसखारा और फिर फेस फाऊन्डेशन, पाऊडर, रुज...मेकअप पूरा हुआ और उसने अपना ब्रेक फास्ट निकाला.
एक बिस्किट, फ्रूट्स में चार अंगूर, फ्रूट ज्यूस...एक ३० मिलि की बोतल. बिस्किट उसने बारह बार में चबा चबा कर खत्म किया..खाया तो क्या, कुतरा. हमारे तो एक कौर के बराबर था. चार अंगूर खाने में कांख गई. चार अंगूर जो हम एक मुट्ठी में फांक जायें. ज्यूस इतना सा कि मानो वाईन टेस्टिंग कर रहे हों.
उस पर से सब खत्म करके हल्की सी डकार भी ली...’एस्क्यूज मी’ न बोलती तो मालूम भी न पड़ता कि डकार ली, मौन की भी आवाज होती है सिद्ध करते हुए. अरे खाया ही क्या है जो डकार रही हो.
हमें तो गुस्सा सा आ गया. उस पर से वो ही गुस्सा सातवें आसमान पर पहूँच गया जब सुना कि इतने हेवी ब्रेक फास्ट के बाद लंच में सिर्फ सलाद खायेगी और उसका डिब्बा दिखाया सहेली को. मानो सिगरेट की साईज के डिब्बे में पूरा सलाद जो लंच में खाया जाना है. साथ में एक उतना बड़ा ही ज्यूस जो अभी खत्म किया है.
अरे, ऐसा भी क्या!!! क्या दुश्मनी है इतनी सुन्दर काया से. मन में तो आया कि गा गा कर अपनी वो जीरो साईज वाली कविता सुनाऊँ उसको. फिर सोचा, जाने दो-क्या बात का बतंगड़ बनाना.
मैं तो उसे अत्याचारी की कटेगरी में ही रखना पसंद करुँगा. नाजायज परेशान कर रही है अपने ही शरीर को.
शाम को डिनर के लिए भी योगर्ट (दही) और प्रोटीन बार रखा हुआ है.
हम सोचने लगे-अरे, हमें तो इसकी दस परसेंट भी रुप रंग और/ या काया मिलती तो आत्म मुग्ध हो रोज सुबह सुबह प्रसाद में खुद को ही एक किलो लड्डू प्रसाद में चढ़ा कर खाते हुए जाते दफ्तर वरना फायदा ही क्या ऐसी काया का कि भूखा मरना पड़े.
हद है फीगर कॉन्सेसनेस की.
स्वास्थय अपनी जगह है और फीगर के प्रति दीवानगी का पागलपन ...वो सिद्ध सा नहीं लगता, न जाने क्यूँ!!
वो अपना मेकअप फिर से कर रही है. समझ नहीं आता कि नाश्ते ने मेकअप का क्या बिगाड़ डाला. और अगर बिगाड़ा भी होता, तो नाश्ते के पहले काहे मेकअप किया था.
हम तो एक बार की क्रीम लगाये अगले नहान के बाद ही लगाते हैं, तब पर भी चेहरा चमकता रहता है. सरासर वेस्टेज करती हैं यह लड़कियाँ भी. कितना मंहगा तो आता है इनका मेकअप का सामान. कुछ तो कद्र करो.
चलो, जो देखा है सो बताया है. अब हम तो अपनी माटी क्या कह रही कुम्हार से, वो पढ़ते हैं.
बुधवार, अक्तूबर 29, 2008
ये अत्याचारी लड़कियाँ..
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97 टिप्पणियां:
इत्ती तो हसीन काया पाये हो फ़िर भी ये हुड़कन! ज्यादा लालच ठीक नहीं होता जी! परसाई जी की आड़ में क्या-क्या हो रहा है!
डकार लेने के बाद ऐक्सक्यूज मी कहने वालों से भारत मे बवाल हो सकता है श्रीमान.....लोग कह बैठेंगे.....साला चिढा रहा है....जताना चाहता है कि ज्यादा खाया है :) और कुछ लोग तो खाने के बाद डकार इस डर से नहीं लेते की कहीं इन्कम टैक्स वालों को पता चल जाय डकार ली है तो अगले ही दिन छापा पड जाय......ईतनी इन्कम :D अच्छी पोस्ट।
मज़ा आया। समीर तो ये करते हैं आप सबवे में...ह्म्म्म...
क्या क्या न सहे हमने सितम आपके खातिर,
भुखे भी रहे, प्यासे भी रहे.. फि़गर के खा्तिर..
पर समिर भाई गलत बात.. चुपके से बातें सुनना...
पर सुनते नहीं तो सुनाते कैसे.. :)
kya baat karte ho,subaha subah kalyan ho bhagat
narayan narayan
वह काया तो तपश्चर्या से ही टिकी हुयी है -आपमें और हमारी में वह तपश्चर्या की हिम्मत आ जाय तो कया सुधरने में कितनी देर लगेगी ?
" हमें तो इसकी दस परसेंट भी रुप रंग और/ या काया मिलती तो आत्म मुग्ध हो रोज सुबह सुबह प्रसाद में खुद को ही एक किलो लड्डू प्रसाद में चढ़ा कर खाते हुए जाते दफ्तर वरना फायदा ही क्या ऐसी काया का कि भूखा मरना पड़े."
गुरुदेव अकेले २ सारे एक किलो लड्डू चटका जायेंगे क्या ? ये तो ज्यादती होगी ! इसमे से आधे तो शिष्य के लिए छोडिये ! :)
बहुत शानदार ! शुरू से अंत तक एक साँस में पढ़ने वाली पोस्ट ! बहुत शुभकामनाएं !
महिला कलर को आपने सही पहचाना, पर सुना है नाश्ते पानी पर नजर रखना ठीक नहीं होता,खाना लगता नहीं है, मुझे तो डर है कहीं वे जीरो साइज से माइनस में न चली जाएं:)
आपके हास-परिहास का अंदाज खूब लगा, हरिशंकर परसाई जी का आपपर बुरी तरह असर पड़ रहा है:)
“‘महिला कलर’- अचरज न करें यह शब्द सुन कर. जैसे ’कहूँगी’ ’मरुँगी’ ’हट्ट’ ’आप बड़े वो हैं’ आदि स्त्रीलिंग हैं अर्थात सिर्फ वो ही बोलती और समझती हैं वैसे ही कई रंग भी होते हैं जो मेरी नजर में पुरुषों की समझ और पहचान से परे हैं....”
वाह! आपने यह बताकर मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया। बिलकुल यही अनाड़ीपन मेरे भीतर भी भरा हुआ है। लेकिन इसको इतनी खूबसूरती से कह पाने के लिए शब्द नहीं मिल पाते थे। बधाई।
मन ही मन में वो भी कह रही होंगी
'नीची नज़रों से देखने वाले,
हमसे नज़रें ज़रा मिला तो सही.'
अच्छा मंच पे बोलते हुए आप भौत हसीन लगते हैं। ये बात हम किसी कन्या की नजर से नहीं कौह रहे हैं। मतलब ऐसे ही कौह रहे हैं। अनूपजी आपकी हसीन काया पर दृष्टि डाल चुके हैं। आप तो एक बोर्ड लगाकर घूमना शुरु कर दो जी-बुरी नजर वाले तेरी रकम सेनसेक्स में।
क्या बात है.....!!! यदि उल्टा कहें कि " खोने के लिए कुछ पाना पड़ता है " तो शायद यह हम पर लागू हो जाये...यदि आप इजाज़त दें तो इसे जीरो साइज़ का सिक्वेल या दूसरी कड़ी मान कर तीसरी कड़ी का बेसब्री इंतजार करें. गुदगुदाने वाली पोस्ट.
ईश्वर की विशिष्ट कृपा उस कन्या पर. सुन्दर काया..गोरा रंग और मानक अनुपात शरीर का. मानो ईश्वर के शो रुम का डिसप्ले आईटम हो. हर तरह से फिट और परफेक्ट.
व्हाट एन ओब्जेर्वेशोन सर जी
अन आइडिया कें अगेन चेंज यौर लाइफ ...............?
छा गए गुरु
इस वे में लौट के
यहाँ तक आ गए गुरु
"बेहतरीन पोस्ट के लिए शुभ कामनाएं "
माटी तो मूल तत्व है, कुम्हार उसे आकार देता है। आकार नष्ट होने पर वह फिर से माटी हो जाता है। आकार मिथ्या, और माटी सत्य है, काश! यह जान जाते लोग।
पहले तो हँसी आई वो भी खूब और वो भी सुबह
सुबह।
सुना कि जल्दी में निकली तो ब्रेक फास्ट न कर पाई बेचारी. अतः साथ लाई है.
बैग खुला. पहले लिपिस्टिक निकली, वो लगी लगे पर. फिर मसखारा और फिर फेस फाऊन्डेशन, पाऊडर, रुज...मेकअप पूरा हुआ और उसने अपना ब्रेक फास्ट निकाला.
आपकी पारखी नज़र को सलाम
हवा पानी पर जिन्दा रहने वाले बहुत विलक्षण योगी-योगिनियां हैं, हिमालय की कन्दराओं में। उनके दर्शन को बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं।
आपने तो अपने पूर्व-जन्म मे पुण्य से योगिनियों के ट्रेन में दर्शन कर लिये। :)
अब तो आप समीरानन्दाश्रम खोल लें। लोगों को हवा-पानी-जूस पर रहना सिखायें।
आज "ईश्वर के शोरूम का डिस्प्ले आइटम" लुभा रहा है तो आपको याद दिलाना हमारा फर्ज बनता है कि ईश्वर की ही एक सम्पूर्ण रचना से आप कुछ वर्ष हुए गठबंधन कर चुके हैं. भाभीजी शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ हों ताकि आपकी ठीक से ख़बर ले सकें.
चलो, देर से पहुँचें मगर कोई गम नहीं और कोई नुकसान नहीं.
फायदा ही हुआ , यह नहीं कहा। सफर भी आनंददायक और एक पोस्ट के लिए सामग्री भी मिली।
पोस्ट पढकर अच्छा लगा। महिला कलर के बारे में भी जानकारी मिली, देखा नहीं आजकल स्कूटी भी कितने रंगों में आने लगी है ।
धन्यवाद ।
खिड़की से देखना अच्छी बात नहीं ........
wah ustaad wah
गुरु जी! एसा है,कि छोटा मुँह और बडी बात पर क्या करें मुँह भी जबलईपुर का,तो बोलई देते है,कि जे रंगो वाली बात बेजा है,किलकिल हो गई,हमने श्रीमतिजी को सुना दई,परसाईजी जो किताब में बैठे रहें हुईंये,आशीर्वाद दें रहें हुउये।अपने नाटको के मंचन में व्यस्त हूँ,आपका ब्लाग बस पढ पा रहा हूँ।
'पढ़ते हैं?' अरे ये भी बता देते की बीच के ही स्टेशन पे उतर गई तो अब हम पढ़ते हैं :-) ट्रेन में तो आप पहले भी टाक झाँक करते रहे हैं, एक बार मुंबई की लोकल महिला बोगी में भी हो आइये :-)
अब हम कैसे कहें की ये अत्याचार है... कोई अपने पर अत्याचार करके किसी की आँखों को शुकून दे रहा है तो हमें क्या? अब अनुपात मानक है या नहीं हम तो इसी से खुश हो लेंगे !
किसी पे किया गया अत्याचार किसी न किसी की खुशी के लिए ही होता है मुझे तो ये फील हो रहा है :P
khoobsurat sa safar...
shukriya humse bantne ke liye...
अपन तो हेडिंग से एकदमिच्च सहमत हैं गुरुदेव ;)
bahut achcha likha hai.. in ladkiyon ke ye nahi pata ki jinke liye ye sajti hain wo inhe sirf ghumane layak hi samajhte hain.... koi ladki puche to ladakiyon ko se ki shaadi ke liye kaisi ladki chahiye..... filhaal hum to is baat ko likhkar dakiyanoos hi lagenge....par sach hai jo kadwa hai.... ladkiyan women empowerment ka matlab hi nahi jaanti..unke liye paisa aur manchaaha faishon karna hi empowerment hai.. kuch aankh senkne wale aadmiyon ne bhi apne matlab ke liye modern, empowerment ka galat matlab samjhakar khud ko inka welwisher saabit kiya hai..par sach to ladkiyon ko 40 ki age ke baad hi pata lagega....
मजा आ गया पढ़कर।
हल्की सी डकार भी ली...’एस्क्यूज मी’ न बोलती तो मालूम भी न पड़ता कि डकार ली, मौन की भी आवाज होती है सिद्ध करते हुए..
बहोत ही सटीक टिपण्णी मारी है आपने आजकल के परिवेश की लड़किओं पे बहोत सुंदर ...
आपको ढेरो बधाई. दीवाली की शुभकामना के साथ..
अर्श
अब वह बेचारी क्या करें , काया का सवाल है कुछ को भारी काया सही लगती है और कुछ को सुकुडी :)
हम तो एक बार की क्रीम लगाये अगले नहान के बाद ही लगाते हैं, तब पर भी चेहरा चमकता रहता है. सरासर वेस्टेज करती हैं यह लड़कियाँ भी. कितना मंहगा तो आता है इनका मेकअप का सामान. कुछ तो कद्र करो.
" ha ha ha h haha ha ha sir jee acchee analysis report hai..."
Regards
kya aap yahi sab dekhne jate hai!"ladkiyan bura man jayegi" bahut sundar,
ha ha ha ha maza aa gaya samir ji, lekin aap un masoom kanchan kayaon ki tulna apne aap se kyaon kar rahe hai? ek taraf aap aur doosari taraf un jaisi paanch fir bhi aap hil na sako,
bhoot khoob aapka presentation realy adbhut hota hai. BADHAI.....
आप भी न.......... बड़े 'वो' हैं
Majaa aa gaya bhai, aisa hua ya nahin, mujhe nahin pata, par jais aapne sunaya aur bataya usme jo baat thi ki kya batayen kya baat thi
आप दोबारा जवान होने की कोशिश मे हैं :)
:) आफ तो बहुत चालाक नीकले
कान मे आईपाड और वो भी बंद।
पहले तो डर ही गया की लो ये क्या लीख दीये अप तो "अत्याचारी लड़कियो" का आन्दोलन होगा
पर पढने के बाद लगा की थोडा कम होना चाहीये :)
ham kuch aur rangon ke baare me seekh rahe hain magar ye prakrutik hai
patjhad
saavan
basant
bahaar
aur naino me pyaar
happy diwaali
कहते हैं - "तू तू करता तू भया....", इसलिए चिन्तित हूँ कि कहीं आप भी अधिक खर्चीलेपन के इन ऐबों से अपनी मिट्टी की चीख पुकार तो न भूल जाएँगे!
itni sahjta aur vyangya ka katila kataksh ,bahut khoob
-dr.jaya
KUCH KAHAA NAA JAAY....
वाह-वाह! गजब की नजर और होशियारी पाई है आपने।
:-)
लड़कियों ने जहाँ अपनी पूरी पवित्रता यानि अपनी असलियत दिखा व सुना दी, वहीँ आपने भी अपनी चोरी स्वीकार कर ली और बता भी दी. इसी तरह मिलता है अनुभव. इस तरह का अनुभव पढाने के लिए धन्यवाद.
khub hansaya..badhai ...yun hi likhte rahiye...
" चार अंगूर खाने में कांख गई. चार अंगूर जो हम एक मुट्ठी में फांक जायें. ज्यूस इतना सा कि मानो वाईन टेस्टिंग कर रहे हों."
बहुत शानदार पोस्ट ! मुझे तो यूनिटी डार्लिंग की याद आ गई ! वो भी आती जाती रहती है कहीं उसीको तो नही देख लिया आपने ?
बहुत सटीक लिखा है . आधुनिक कन्याये फैशन के चक्कर में कुछ ज्यादा नखरे दिखाती है उनकी अदायें बस देखते ही बनती है . इनके खाने पीने की अदायें नखरे बोलने की अदाये अरे ये वो हाय आदि कभी कभी हद की सीमाए पार कर जाती है जबकि देखने वाला २१ वी सदी का युवक भी समझता है कि ये पोजर है और कुछ नही है . अपने समीर जी ट्रेन की बोगी के अन्दर के परिद्र्श्य को असल यथार्थ को सुन्दरता के साथ पोस्ट में उकेरा है आप साधुवाद के पात्र है . लगता है समीर जी अपनी पीढी के जनों को यह सब देखना सुनना बड़ा है गर बुरा न माने तो ............अच्छा बंद करता हूँ कही आप माइक्रो टीप की बात न छेड़ दे. हा हा हा
प्लीज नोटेड सर
अपने पोस्ट में क्रीम के बारे में क्या लिख दिया है कि सभी अपने अपने बारे में जानकारी देने लगे है . आप समीर जी आप क्रीम कितनी बार लगाते है . मै तो नही लगाता हूँ कडुआ तेल से काम चल जाता है .
hi hi hi
हाय !हम न हुए कनाडा में !आपको कुछ आह सुनाई दी या नही ....वैसे मर्दों के लिए रंगों का दर्द आपने खूब पकड़ा है..गिने चुने रंग है जिनमे बस कुछ हेर फेर करके पहन लेते है....बस सलमान खान ही है जो लाल रंग की पेंट पहना सकते है....
बहुत ही खुश किस्मत हैं आप. यहाँ तो हंड्रेड पर्सेंट नकाब पॉश बनी रहती हैं. मज़ा आ गया. आभार.
समीर भाई बुरी बात अजी लडकियो को देखना ही है तो अच्छी नजर से देखो, वो मना थोडे करेगी, लेकिन उन के अंगुरो पर ध्यान मत दो भाई दो खाये या चार, हजामा भी तो होना चाहिये, हमारी तरह थोडे की एक किलो खा कर भी डकार नही मारा, वेसे पता तो उन्हे भी होगा कि यह भाई बाते तो हमारी ही सुन रहा है, फ़िर बगुला बगत क्यो बना बेठा है???
धन्यवाद
लेकिन एक बात बुरी एक तो उन की बाते सुनी ऊपर से उन्हे आत्याचारी कहां
mazedaar :)
बहुत ही जानदार। हास्य भी है और संदेश भी। ख़ास कर रंगोवाली बात के तो क्या कहने? मैं भी ठीक आप ही की तरह कुछ रंगों के मामलों में कलर ब्लाइंड हूं। लेकिन सच बताऊं, अब भी महिला कलर्स को पहचानने की कोशिश करता हूं। पर अब आपकी पोस्ट से आंखें खुल गई हैं। अब शायद लेडीज़ कलर्स को पहचानने के झमेले में ना पड़ूं और कलर ब्लाइंड के तमगे के साथ ही बाकी की ज़िंदगी गुज़ार दूं। बहुत ख़ूब।
आजकल की कन्याओँ को आपने खूब देखा और पहचाना है :)
रँगोँ की पहचान आपको भी है ..
सारे नाम याद करवा दिये !!
स स्नेह्,
- लावण्या
हाँ रुकिये जी.. भेज रहा हूँ टिप्पणी
□ ☼ » अरे समीर भाई, बड़ी पारखी नज़र के मालिक हो आप तो... चार दाना अंगूर का देखा
और, समझ गये कि अंगूर खट्टे हैं !
यदि एक ठईं मीठी नज़रिया पा जाते, तो यहाँ पर
इस पोस्ट के बज़ाय एक सिसकती हुई कविता आहें
भर रही होती !
और हाँ, अब से ज़ेन्ट्स में बैठना...
लेडीस लोगों में बईठ के बस कुढ़ती पोस्ट
ही लिखोगे...
श्रीमान
वैसे तो आपका यह अनुभव अच्छा है और लिखा भी अच्छा है |
परन्तु यह सब नियमित प्रक्रिया के तहत हो रहा है , यह और भी अच्छा है |
समीरजी,
बहुत अच्छा िलखा है आपने । िजतनी सुंदर कन्याएं थीं, उससे अिधक प्रभावशाली है आपका सौंदयॆबोध और उससे अिभव्यक्त करने की शािब्दक मेधा ।
हमें तो इसकी दस परसेंट भी रुप रंग और/ या काया मिलती तो आत्म मुग्ध-पंिक्तयों के संदभॆ में कहना चाहूंगा िक उन लडिकयों को तो नहीं देखा लेिकन आपको िचत्र में जरूर देखा है, सुंदरता में आप उनसे बीस ही बैठेंगे ।
समीर जी, अपने खानपान का वो ठीक से ख्याल करती तो उसकी काया भी हम लोगों जैसे हो जाती!! फिर आप कैसे कह पाते कि मानो जैसे खुदा ने शोरूम में डिस्प्ले के लिए बनाई है!! ;) :D
मँहगाई तो सर चढ़ के बोल रही है, अपने भारत में और ऊपर से यह विदेशी फ़ैशन का इतना झमेला, उफ़! आपके लिए एक उड़नतश्तरी भेज रहा हूँ पसंद आये तो ब्लॉग पर लगा लें! यह मेरा दीवाली तोहफ़ा समझें!
http://vinayprajapati.wordpress.com/files/2008/10/ufo1.gif
हम तो एक बार की क्रीम लगाये अगले नहान के बाद ही लगाते हैं, तब पर भी चेहरा चमकता रहता है.
अरे वाह, यह बात पसंद आई. हम भी होली के होली ही क्रीम लगाते हैं (नहाने के बाद)!
ये कमेंट आदरणीय भाभीजी के लिये है कृपया इसको उनको पढाया जाये । ये कि श्रीमान समीर लाल जी के साथ ट्रेन में एक जासूस को भी भेजा जाये जो इनकी आसमाजिक हरकतों पर नजर रख सके । अत्यंत शर्म की बात है कि श्रीमान जी अब ससुर बनने जा रहे हैं फिर भी इनकी नजरें अभी भी तिरछी बांकी हो रही हैं । केवल और केवल महिलायें ही सफर करती हैं क्या कनाडा की रेलों में । क्या उसमें पुरूष सफर नहीं करते जो कि हमेशा ही पोस्ट में महिलाओं का ही जिक्र आता है । कभी भी कोई पोस्ट पुरूष पर लिखी गई हो ऐसा देखने में नहीं आया है । इसके क्या मायने समझें । ये एक गंभीर आचरण है जिस पर आदरणीय भाभीश्री को नजर रखनी चाहिये । कम लिखी ज्यादा समझना आपका ही एक शुभ चिंतक
१)"महिला कलर" वाह! इस में वो "मेरा वाला क्रीम" भी शामिल होना चाहिए। (पुराना Asian Paints का टीवी ऍड की बात कर रहा हूँ). हम जिसे लाल कहते हैं पत्नि "मरून" कहती है।
२)बिना ऑन किए कान में Ipod फ़िट कर लिया आपने ताकि उनकी बातों को सुन सके। अगली बार आपके ट्रेडमार्क काले चश्मे भी पहन लीजिए ताकि उन लोगों को तिरछी नज़र से घूर सकने में सहूलियत हो।
३) एक आखरी सवाल। ट्रेन में आपके सामने ये "ईश्वर के शो रुम का डिसप्ले आईटम" के रहते रहते , परसाई की किताब के कितने पन्ने पढ़ पाए?
लिखते रहिए। मज़ा आ गया।
हा हा हा ! परसाई जी को साथ लेके चलोगे पिरभू, तो ऐसे ही दृश्य उपस्थित होंगे ना.
लाल तुसी ग्रेट हो !!
क्या खूब लिखा आपने । लिखा आपने, देखा हमने ।
गूंगे ने गुड खाया, स्वाद कैसेट बताए ।
अपने मन से जानीये,
मेरे हिय की बात ।
क्या बात है आपको सारे रंगों का नाम याद है, जब याद है तो सही भी होगा. अभी से अगले जनम की तैयारी तो नही हो रही है?
समीर जी अपने देश यानी भारत में नेता पता नहीं क्या क्या चट कर जाते हैं और डकार तो उनकी सात पीढि़यां तक नहीं लेती...वो तो कभी कभी मीडिया में चमक जाने या कहीं हिस्सा न पहुंच जाने से ही पता चल पाता है कि इस देश के सेवक ने क्या क्या चट कर लिया। आप परेशान न हो....लड़कियों को अपनी कमनीय काया को संवारने दो...भाभीजी को पता चला कि आप परसाई जी का सहारा लेकर क्या क्या देखते हैं तो गड़बड़ हो जाएगी।
"अपना आई पॉड भी निकाल कर कान में फिट कर लिया मगर ऑन नहीं किया वरना दो सहेलियों की बात कैसे सुनता??"
यह ्लाइन पढकर लगा कि आप आज भी पक्के भारतीय ही है या कहे कि फ़िर आपका भारतीय होना काम आया !!
हर बार की तरह लाज़बाब
ha ha ha .....bahut achhe....
भाई समीर जी कन्या की काया थी ही ऐसी की आप देखने और फ़िर पोस्ट लिखने को बाध्य हो गए...बताईये कभी किसी कन्या ने आप को देख कर कोई पोस्ट लिखी हो तो? बताईये बताईये...शर्माईये नहीं....
नीरज
चलिए इसी बहाने पता चल ही गया कि आपका दिमाग कहां कहां घूमा करता है।
वैसे असली बात तो तब होती, जब आपने इस घटना से कुछ सीख ली होती।
ह-ह-हा।
सबसे पहले तो इस ७१ वें कॉमेंट्स के लिए आपको बधाई,पोस्ट पढ़कर दिल और दिमाग को ताजगी महसूस एक बात बताये वो कौन से रंग हैं जिनसे पुरुषों का काम चल जाता है
तो सर जी, अब पता चल गया ऑफिस में आप काम कम, वाम ज्यादा करते हैं. वो भी परसाई जी की ओट से.
माफ़ इस लिए कर रहे है कि पोस्ट आपने अच्छी लिखी है.
वाह महाराज
आपका-हमारा वेट ही नहीं समझने का ढंग भी काफी मिलता है
मिलता-जुलता कार्यक्रम इदर बी खूब चलता है
लड़कियां पता नहीं कब समझेंगीं
खैर
माटी की आवाज़ इन नित्यानुधुनिक कुम्हारिनियों को अब सुनाई नहीं देती.
समीरजी,,आप तो गज़ब की नज़र रखते हैं..होशियारी भी कमाल की...आइपॉड कान में लेकिन बन्द... :)
वाह समीर भाई, जवाब नहीं आपका। हर बात को चाशनी में लपेट कर कहने की अदा के क्या कहने। पढ़ना शुरू करने पर ख़तम किए बिना चैन कहां? बहुत अच्छा लिखा है हमेशा की तरह। अब आपके ब्लॉग पर अक्सर आया करेंगे। अब तक चूक रहे थे। धन्यवाद।
सब काया की माया है....
thnx sir,
aapki guidance mein main yeh prayas satat zari rakhna chahunga.
tarun sharma, ni:shabd...shabdo ke jahan mein.
thanx sir,
aapki guidance mein main yeh prayas satat zari rakhna chahunga.
tarun, ni:shabd...shabdon ke jahan mein.
लगता है की अब निशाने में आने का मन है आपका !
भगवान् बचाए आपको!
आई-पोड और काला चश्मा , सुनो भी और देखो भी. बदनाम हो रहे हैं परसाई जी.
फिगर बनाने के चक्कर में कुपोषण का शिकार भी हो रहीं हैं बालाएं।...लेकिन आप इस चक्कर में मत पडि़एगा। खाते-पीते!
हम हमेशा पछुआ जाता हूँ सरकार जी.क्या जबर्दस्त लिक्खे हो हमेशा की तरह
ये आपकी ट्रेन-यात्रा हमेशा इतनी मजेदार कैसे रहती है.जलन हो रही है आपसे
sachchi baat aur chutila andaaj!
guptasandhya.blogspot.com
एक आप ही तो नियमित हौसला बढाते हो
कमेन्ट लिख कर नियमित लिखने को उकसाते हो
ऐसा लिख मारा है अपना तो होश उड़ा
मैं तो ऐसा ही लिखने की ओर मुड़ा .
वायदा नहीं, कोशिश करूंगा.
Thanks for a completely different post.
:) सुधर जाइए ..बहुत तांका झांकी करत हो बबुआ तुम :)
achcha hai na sir....bhojan bachakar ann sankat se nipatne me sahayak ban rahi hain ye 0 size balayen...kya bura hai.
ha ha bwchari hasina,agar unhe hindipadhna aata aur ye sab padh leti deviji,to dieting sab bhul jati,bahut maza aaya padhkar.
ultimate !!
:D --interesting!
ह........ म्म तो ये सब करते हैं आप लोकल ट्रेन में, बेचारी अनजान लडकियाँ ।
Chaliye aapne ye to sabit kar diya ki ladke jahan bhi hon wo ladkiyon per jarrur nazar rakhte hein... :)
रात थक कर सो जाये तो फिर क्या होगा.
तो फिर उस रात की सुबह नही होगी !
मेरी एक टिप्पणी ग़लत पोस्ट पर गयी जो आअज के पोस्ट पर है कृपा कर ठीक कर दीजियेगा !
आप भी कोई कम थोड़े न हो समीर जी.
कभी सोचा है की वो आपके बारे में क्या सोचती होंगी?
आप तो तश्तिरी भाई ऐसी-ऐसी विषय-वास्तु ढूँढ लाते हो कि दिल लोट-पोत हो जाता है.....टिप्पणी तो क्या करें.....
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