सोमवार, जनवरी 08, 2007

वो इक पागल सी..

इधर वर्षांत में दफ्तर का काम भी कुछ बढ़ गया था और फिर चिट्ठाजगत की हलचल और नव वर्ष के स्वागत में आयोजित पार्टियां. इन सब व्यस्तताओं के बीच भी दिल को किसी कोने में किसी वजह एक गीत गुँजता रहा. मैने अक्सर पाया है कि अति व्यस्तताओं के दौर में भी दिल व्यस्त नहीं होता, भले ही दिमाग और शरीर व्यस्त रहें- दिल फिर फिर उड़ कर जाता है अपनों के पास.


वो इक पागल सी चिड़िया

घने घनघोर जंगल में, बहारें खिलखिलाती हैं
लहर की देख चंचलता, नदी भी मुस्कराती है
वहीं कुछ दूर पेड़ों की पनाहों में सिमट करके
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.

कभी वो डाल पर बैठे, कभी वो उड़ भी जाती है
जुटा लाई है कुछ तिनके, उन्हीं से घर बनाती है
शाम ढलने को आई है, जरा आराम भी कर ले
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.

अभी कुछ रोज बीते हैं, मिला इक और साथी है
नीड़ में अब बहारें हैं, चहकती बात आती है
लाई है चोंच में भरके, उन्हें अब कुछ खिलाने को
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.

बड़े नाजों से पाला है, उन्हें उड़ना सिखाती है
बचाना खुद को कैसे है, यही वो गुर बताती है
उड़े आकाश में प्यारे, अकेली आज फिर बैठी
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.

--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

16 टिप्‍पणियां:

How do we know ने कहा…

agar aap buraa na maanein to main aapki likhi kuchh cheezein hindi mein kitaab banaa kar dena chaahti hoon - yahin National Association for the Blind mein.. unhone mujh se Hindi ki ruchikar kitaabeing maangi hain aur mujher net par kaheen miti nahi.

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

तुम्हारे गीत चिड़िया क्या हवा भी गुनगुनाती है
सहमते पांव से चलती वो जब जब पास आती है
थिरकती शाख पर पत्ती, जमीं पर दूब हँसती है
घटा जब वादियों को गीत की भाषा सुनाती है

Udan Tashtari ने कहा…

How do we know

जरुर, यह मेरा सौभाग्य होगा. आप को जो भी रुचिकर लगता हो, बिल्कुल ले लें.पधारने के लिये शुक्रिया.

राकेश भाई

हमेशा की तरह बहुत बेहतरीन और बहुत बहुत धन्यवाद.

अनुराग श्रीवास्तव ने कहा…

आपकी रचना में मुझे ऐना दिखाई पड़ती है. पढ़ कर महसूस होता है कि ऐना से आप बहुत गहराई तक जुड़े थे. आपके मन, विचारों और रचनाओं में फुदकती हुयी साफ दिखाई दे रही है.

बहुत अच्छी रचना है.

Udan Tashtari ने कहा…

अनुराग भाई

आपसे मुझे पूरी तसल्ली थी कि आप मेरे मनोभाव में छिपी बात समझ जायेंगे और आपने सिद्ध कर दिया. आभारी हूँ. स्नेह बनाये रखें.
बहुत शुक्रिया...

बेनामी ने कहा…

मुझे भी अनुराग भाई की तरह ये चिडिया आपकी एना ही लग रही है. बहुत पसन्द आई कविता!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत धन्यवाद, रचना जी. कविता पसंद करने के लिये और मनोभाव समझने के लिये. आभारी हूँ.

पंकज बेंगाणी ने कहा…

फिर तेरी कहानी याद आई।


पँख फैलाए यादों के,

विचरण करता मेरा मन,

छुट गया जो कुछ पीछे,

वो अपना घर, मेरा आँगन।

होठों पर हँसी, और मन में रूलाई,

फिर तेरी कहानी याद आई!

- ऐना के लिए


(कई लोग सोचने लगे अब कि आपकी कविताओं की पुस्तक छपवाई जाए.. पर जो भी हो पहली प्रति तो मेरी ही रहेगी!) :)

बेनामी ने कहा…

सुन्दर.
चिड़ीया-सी सरल व सहज.
प्यारी एना के नाम.

Prabhakar Pandey ने कहा…

बहुत ही अच्छी रचना ।

Divine India ने कहा…

chidiya ke maadhayam se jo aapne atynt sharal manobhavnao ki udan ko vayakt kiya hai yahi to sundar vaykti ki pehachan hai.

Udan Tashtari ने कहा…

पंकज

आजकल कविता बढ़िया रचने लगे हो. बधाई. आदेशानुसार पहली कॉपी सुरक्षित रखने का नोट बना लिया गया है.

संजय भाई

धन्यवाद, संजय भाई.

प्रभाकर जी

हौसला बढ़ाने और कविता पसंद करने का धन्यवाद.

दिव्याभ जी

बहुत आभारी हूँ आपके बड़प्पन के लिये. बहुत धन्यवाद और आभार, आपने कविता पसंद की.

Udan Tashtari ने कहा…

महावीर जी

आभार आपका. आपने कविता पसंद की.

रंजू भाटिया ने कहा…

बड़े नाजों से पाला है, उन्हें उड़ना सिखाती है
बचाना खुद को कैसे है, यही वो गुर बताती है
उड़े आकाश में प्यारे, अकेली आज फिर बैठी
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है

बहुत ही सुंदर भाव है ..आपका लिखा पढ़ना हमेशा एक सुखद एहसास देता है !!

रंजू

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

समीर जी बहुत ही सुन्दर और दिल को छू लेने वाली रचना है आँखो के सामने सभी दृश्य प्रस्तुत हो रहे हैं।

Manish Kumar ने कहा…

उड़े आकाश में प्यारे, अकेली आज फिर बैठी
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.

सुंदर....बेहद प्यारी सी कविता है।
मैंने शायद आपकी ये पोस्ट 'मिस' कर दी थी। लिंक देने का शुक्रिया