मैने तो क्रिकेट को टीवी और रेडियो के माध्यम से ही ज्यादा जाना और यदा कदा मोहल्ले की टीम के साथ. यह भी देखा कि जैसे जैसे खिलाड़ी शतक की तरफ बढ़ रहा होता है, उस पर मानसिक दबाव बढ़ता जाता है और प्रशंसको की तालियों की संख्या उसी अनुपात में बढ़ती जाती है. कैसा लगता होगा, उस खिलाडी को, बस मन में सोचा करता था.
बहुत सी घटनायें गुजरी, बहुत सी बातों के बारे में ऐसा ही सोचा कि कैसे लगता होगा. समय के साथ साथ कविता के क्षेत्र में कदम रखा. सोचा करता था कैसा लगता होगा कवि को अपनी रचना मंच से सुना कर और लोगों की तालियाँ सुनकर. कविता के क्षेत्र में कदम रखते ही बहुत जल्द इस अहसास को जीवंत करने का मौका भी आ गया और अच्छा भी लगा. अब वो कुतूहल नहीं है मगर अभी तो शुरुवात है, अभी और अनेकों जिज्ञासायें शांत करना है और अनेकों अहसास हैं जिन्हें जीवंत करना है. फिर चिट्ठाजगत में कदम रखा, लोगों को अच्छा लिखते देखा, ढ़ेरों टिप्पणियां मिलते देखा, उनका जिक्र दूसरों की पोस्टों पर देखा. फिर वही प्रश्न, कैसा लगता होगा. यह सब एहसास भी जल्द ही जीवंत होते देखे, अच्छा लगा. मित्र चिठ्ठाकारों ने खुब टिपियाया, खुब लिखा गया, जगह जगह खुब लपेटा गया. कुतूहल कुछ कम हुआ. मगर जब लोगों को देखता था कि मेरी १०० वीं पोस्ट-बस वही, बाप रे, १०० पोस्ट. कैसा लगता होगा १०० वीं पोस्ट लिखते समय. और अभी जब मैं यह सब लिख रहा हूँ उसी एहसास को जीवंत जी रहा हूँ. वाकई, बड़ा अच्छा लगता है शतकीय पारी पूरी करने में. सुना है क्रिकेट में १०० रन बना लेने के बाद खिलाडी खुल कर खेलने लगता है. अब देखिये, यहाँ क्या होता है, खेलेंगे तो खुल कर, ऐसा लगता है.
खैर, १०० वीं पोस्ट तक के आँकडे:
कुल पोस्ट : १००
कुल हिन्दी चिट्ठे: १
लेखन दिवस उपलब्ध (छुट्टियाँ काट कर-भारत यात्रा में दुकान पर ताला टंगा था): २४४ दिवस
कुल टिप्पणियों की आवाजाही:
आवा : ९१२
जाही : २१४८
टिप्पणियों की आवाजाही का अनुपात : १ : २.३६
(उपरोक्त में चिट्ठाचर्चा, तरकश इत्यादि के आलेख और टिप्पणियाँ शामिल नहीं हैं, क्योंकि वो साझा प्रयास हैं और हिस्सा बांट की नौबत अभी नहीं आई है)
अब जब बात उखड़ ही गई है तो अगले एक बरस का बजट/ टारगेट भी लिजिये ( ३१ दिसम्बर, २००७ तक):
कुल पोस्ट : १०० ( हर तीन दिन में एक-छुट्टी काट के)
कुल हिन्दी चिट्ठे: १
लेखन दिवस उपलब्ध : ३०० अनुमानित (छुट्टी काट के)
कुल टिप्पणियों की आवाजाही:
आवा : भगवान भरोसे (आप सब भगवान हैं)
जाही : २५०० +
टिप्पणियों की आवाजाही का अनुपात (मानक) : १:२ ( ज्ञात रहे वर्तमान में हम मानक से काफी उपर चल रहे हैं)
(उपरोक्त बजट में चिट्ठाचर्चा, तरकश इत्यादि के आलेख और टिप्पणियाँ शामिल नहीं हैं, क्योंकि वो साझा प्रयास हैं और हिस्सा बांट की नौबत आने की कोई संभावना नजर नहीं आती)
अगर पढ़ा बहुत भारी लग रहा हो, तो फोटो में ग्राफ देखें (जिस उम्मीद से कभी ग्राफ का अविष्कार किया गया होगा):
बीती सौ पोस्ट का चिट्ठाजीवन:
१०० पोस्टों में न जाने कितने अलंकरण मिले, जैसे, अगर पीछे से शुरु करें तो, तरकश सम्मान जो अभी मिला, गुरुदेव, कुंडली किंग, लाला जी, द्रोंणाचार्य, स्वामी समीरानन्द (स्वयंभू), महाराज, प्रभु और भी बहुत सारे...बाकी तो और भी अलंकरण हैं जो इस वक्त गैरजरुरी से हो गये हैं- सभी ने स्नेहवश कुछ न कुछ तो दे ही डाला..अच्छा या बुरा, वो तराजू मेरे पास नहीं है, एक ही पलड़ा है, अच्छा :) .
बहुत बेहतरीन सफर रहा, हरियाली लिये हुये सुंदर बागीचा, यह हिन्दी छिट्ठाजगत, यूँ ही लहराता रहे और अमर रहे. हम अपने हिस्से से ज्यादा इसे सिंचते रहेंगे यह वादा रहा.
खैर हमने शतक लगा दिया है और उस पर बज रही तालियों का क्या एहसास होता है, उसे जीवंत करने का इंतजार है. हर पल यही सोच कर लिख रहे हैं:
"जिंदगी मानिंद चिडिया शाख की,
दो पल बैठी, चहचहायी, और उठ चली."
किसने लिखा है क्या पता मगर लिखा बेहतरीन है हमारे लिये. धन्यवाद अनजान जी.
-समीर लाल 'समीर'
30 टिप्पणियां:
हे शतकवीर,
आगे बढो, मंजिले तो अभी और भी हैं
और रूकना जिसकी नियती नहीं,
वो, हर मंजिल पर पहुँच कर,
वहीं से शुरू करेगा सफर,
क्योंकि न तो इस जमीं का छोर है,
ना ही विचारों का,
हजारों हमसफर खडे हैं राह में,
राही बस बढता जा।
लालाजी, आप तो अभी शतक के वर्ल्ड रिकोर्ड बनाओगे... आमीन।
खुब हिसाब-किताब रखा है आपने. सचमुच लालाजी कहलवाने के हकदार है.
टिप्पणीयों की आवक तो ठीक जावक का हिसाब कैसे रख लिया?
तालियाँ बजाता हूँ, आप शतकमार खिलाडी हो गए हैं. बधाई. अभी कई रिकार्ड तोड़ने है. लिखते रहें.
बधाई हो भाई साहब
आपका शतक तो लग गया है हमारा भी नजदीक ही है (९६ हो चुकी है)
आपने अगले साल का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उससे हम सहमत नहीं ( १०० पोस्ट का) इतनी छुट्टियाँ भी अस्वीकृत (३००!!!!) करते हैं हम। अगले साल के अंतिम दिन तक पोस्ट का अंक ५०० होना चाहिये यह हाई कमाण्ड का आदेश है।
संजय भाई
आपको भी लाला जी का प्रणाम.
वैसे आप भी बहुत गहराई नापते हो, जावक का हिसाब बीच मैदान में मांग रहे हैं?
चलो, मांगा है तो इसके दो तरीके हैं, एक तो गणितीय, अब मैं तो गणित में थोड़ा हाथ तंग शुरु से रहा तो उस राह गया नहीं. दूसरा, एक २ रुपये वाली छोटी डायरी खरीद कर अपने कम्प्यूटर के की बोर्ड वाले तार से पेंसिल के साथ बांध लें. जब भी टिप्पणी करें, एक सही का निशान बना दें, साल के आखिर में सारे सही इत्मिनान से दो बार गिंनें और दोनो बार अगर वही संख्या आती है तो वो जाही टिप्पणियों की संख्या कहलाई अन्यथा तीसरी, चौथी, पांचवीं बार गिन लें और बहुमत का आदर करें.
थोड़ा मेहनत तो जरुर लगेगी और की बोर्ड से लटकती डायरी देख लोग आश्चर्य से हंस भी सकते हैं, मगर वो नादान हैं, उनकी परवाह बिल्कुल उसी तरह न करें, जैसा हम लोग चिट्ठालेखन के लिये उनको नजर अंदाज करते हैं. हंसते तो वो इस पर भी हैं.
बधाई के लिये धन्यवाद.
सागर भाई
धन्यवाद के साथ साथ आपकी शतकीय पारी का इंतजार है.
मालिक, इतना जुर्म न करें. यह तो बहुते ज्यादा है. कुछ रियायतें दी जायें और छुट्टी पूरी कैंसिल?? थोडी तो दो, रुल के मुताबिक. अब पापी पेट का सवाल है, हाई कमाण्ड का आदेश तो मानेंगे ही, बस गुहार मानवीय आधार पर मानव को मानव बनें रहने की थी.
थोड़ा कान दिये जायें.
बधाई,
आप चिट्ठाजगत के सचिन बनें :)
अभी तो मंजिलें बहुत हैं समीर जी।
पंकज
अब तो पूरे कवि हो गये हो, कविता का एक ब्लाग बना डालो.
शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद.
जगदीश भाई
शुभकामनाओं के लिये बहुत शुक्रिया.
आता नहीं गणित, तब ही तो शून्य इधर का उधर लगाया
इसी तरह संख्या को शायद एक शतक तक है पहुंचाया
चलो आपकी राह चलें हम, इसे हजारा कह देते हैं
अब तुमको पूरा करना है, जिस संख्या को गया बताया
लालाजी,
१०० चिट्टे होने पर हार्दिक बधाई !!
रीतेश गुप्ता
बधाई हे शतकवीर, उम्मीद है कि सबसे ज्यादा शतकों का रिकार्ड आप ही बनाएंगे। सबसे ज्यादा टिप्पणियों का संजय भाई का रिकार्ड तो खतरे में है ही।
"स्वामी समीरानन्द (स्वयंभू)"
कोई चक्कर ना जी, आजकल तो य़ू ए तरीका सै। कोई होर नीं देंदा टाइटल तो आपै दे द्यो आपणै आप नै। यो ए काम 'कविराज' नै कर्या सै अर यो ए 'पंडित' जी नै।
राकेश भाई
अभी तो सागर भाई के आदेश ३०० के लिये ही गुहार लगा कर बैठा हूँ और आप ला रहे हैं १००० का आदेश यानि रोज की तीन, बिना छुट्टी काटे, रहम महाप्रभु. ऐसी भी क्या गलती कर दी.
शुभकामनाओं के लिये बहुत शुक्रिया.
रीतेश भाई
आपको भी लालाजी का बहुत बहुत शुक्रिया.
श्रीश भाई
बस रिवाज के हिसाब से ही चल रहा हूँ.आप तो मास्साब हो, आपका मार्गदर्शन तो मिलता ही रहेगा. :)
शुभकामनाओं के लिये बहुत शुक्रिया.
तरसा करते लोग एक को और आपने सौ लिख डालीं
हम जैसे तैसे लिखते हैं इक होली पर एक दिवाली
इस अवसर पर यही प्रार्थना है करबद्ध मात शारद से
कभी कलम की अनुभूति का घट न होने देना खाली
तरसा करते लोग एक को और आपने सौ लिख डालीं
हम जैसे तैसे लिखते हैं इक होली पर एक दिवाली
इस अवसर पर यही प्रार्थना है करबद्ध मात शारद से
कभी कलम की अनुभूति का घट न होने देना खाली
राकेश भाई
आपका तो कोई जवाब ही नहीं. आप अगर लिखने पर आ जयें, तो हर बात ही एक काव्य है.
हम तो बस उसी में से कुछ उधार की आस लिये बैठे रहते हैं. :)
हौसला बढ़ाने का बहुत शुक्रिया.
बधाई। ईश्वर के आप शतक पर शतक ठोंके।
उन्मुक्त जी
बधाई के लिये, धन्यवाद. आपने मेरी पोस्ट को ईश्वर का दर्जा दिया (ईश्वर के आप शतक पर शतक ठोंके। ), बहुत ही ज्यादा आभारी हूँ, मैं नतमस्तक हुआ जाता हूँ आपकी परख के आगे, साधुवाद इस दिव्य दृष्टि के लिये. ऐसा ही स्नेह बनायें रखें. :) :)
शतकीय पारी पूरी करने पर बधाई!
नितिन भाई
बहुत बहुत शुक्रिया.
बधाई ! एक ही कामना है हमारी बस आप युं ही लिखते रहें हम युं ही पढते रहेंगे !
समीर जी शतक पूरा करने पर बधाई!!और भी बहुत शतकों का इन्तजार है!शुभकामनाएँ!
जगदीशजी की मत सुनना लालाजी ... ना....
सचीन मत बन जाना.. सही उम्र आने पर ससम्मान रिटायर हो जाना आप तो.. नहीं तो आपकी सठिया गई बातें झेलनी पडेगी हमको।
पोते पोती खिलाने की उमर में कविता करके जवान जरूर बने रहिएगा पर ब्लोग मत लिखिएगा...
यह क्या... अन्यथा ले रहे हैं... धत... :)
फटिचर कविता सुनाऊँ क्या?
हमारी भी शुभकामनायें कि आप शतक के शतक बनायें और हर शतक पर ऐसे ही बल्ला लहरायें!सागरजी की बात पर गौर फरमायें, जरा अपना टारगेट थोड़ा और बढ़ायें!
बधाई हो समीर! मेरे ख्याल से बिना पोस्ट लिखे ब्लॉगर कहलाये जाने का मुकुट मेरे सर होना चाहिये ;) आपकी प्रविष्टि पर पहली बार एक्सेल का प्रयोग देखा लगता है आप अपने बारे में सब कुछ बताते नहीं वरना एक्सेल पॉवर प्रयोक्ता से कुछ तकनीकी पोस्ट की भी अपेक्षा रहती है :) शुभकामनायें!
शतक की बधाई, सबसे अच्छी बात तो यह है कि आपका शतक काफ़ी शानदार रहा आपने जितने भी स्ट्रोक्स लगाये सब बाउंड्री लाइन के बाहर सीधा दर्शकों (पाठको) के पास पंहुचे। आपके स्ट्रोक्स पर विशेष टिप्पणी के लिये लाला अमरनाथ को बाद में बुलाया जायेगा।
आपकी बैटिंग की शैली को देखते हुये यह तो पक्का हुआ कि भारतीय क्रिकेट टीम की तरह आप का कोच आस्ट्रेलियाई नहीं हो सकता।
बहुत बहुत बधाई!
sameer ji ko haardik badhaai..
:)
गुरूदेव शतक पूरा करने पर हार्दिक बधाई.
देरी के लिए क्षमा करें।
जब आप यहाँ शतक लगा दे रहे हैं तो क्रिकेट खेलने की क्या जरूरत है, वहाँ जाके क्रिकेट खेलने पे आप भी और क्रिकेटरस की तरह जीरो बनाके आओगे। इसलिये यहीं बने रहिये और दोहरे शतक की तरफ बढिये, शतक की बधाई :)
आशीष भाई
बहुत धन्यवाद. कामना में अर्तनिहित आदेश का पालन होगा.
रचना जी
धन्यवाद, घोर इंतजार और शुभकामनाओं के लिये भी आभार.
पंकज
जगदीश भाई की सुनना मत, ब्लाग लिखना मत, कविता कह कर सुनाना मत, तो करुँ क्या. हरिद्वार चले जाऊँ, सन्यास ले लूँ, क्यूँ?
अरे भईये, रिटायरमेन्ट की उम्र आने में अभी समय है, तब तो और खुल कर दिन भर लिखेंगे. अभी तो ऑफिस का भी टंटा रहता है. स्माईली आपके लिये.
अनूप भाई
आपकी शुभकामनाओं के लिये बहुत धन्यवाद. आदेशानुसार हर शतक पर बल्ला लहरा जायेगा. विचार में लगा हूँ सागर जी की बात पर मगर साथ ही उनसे रहम की गुहार भी की गई है. आप भी थोड़ा अपने जुगाड़ का इस्तेमाल कर कुछ तो रहम करवायें.
देबाशीष भाई
आपने तो ब्लागजगत के लिये इतना कुछ किया है कि यह मुकुट तो हमेशा बरकरार रहेगा. आपका बहुत धन्यवाद. वैसे एक्सेल के टिप्स एंड ट्रीक्स पर मैं अपना अंग्रेजी ब्लाग लिखता हूँ. प्रयास करता हूँ कि हिन्दी में इस विष्य पर लिखा जाए. आदेश का पालन होगा.
अनुराग भाई
बधाई के लिये धन्यवाद. सब आप लोगों का स्नेह और बड़प्पन है. वैसे तो कोच अपने उत्तर भारतीय हैं, इसलिये आस्ट्रेलिया वाला पंगा फसने का विवाद नहीं है. लाला अमरनाथ का इंतजार लगवा दिये हो तो सुनवाओ भी!!
पुनः धन्यवाद.
नितिन भाई
आपका बहुत धन्यवाद और आभार.
गिरिराज जी
आपकी आज की देरी और आने वाले भविष्य में होने वाली देरी को अपका स्नेह देखते हुये क्षमा किया जा रहा है और आपका बहुत धन्यवाद किया जा रहा है, बधाई के लिये.
तरुण भाई
बहुत धन्यवाद. अब तो चाहें भी, तो शरीर ही नहीं खेलने देगा क्रिकेट, इसलिये विचार त्याग दिया है और आपकी सलाह से प्राप्त संबल से आत्म ग्लानी भी जाती रही. अब यहीं अगला शतक लगाया जायेगा.
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