गुरुवार, अगस्त 04, 2011

दूरियाँ जो नापी गईं घंटो में....पिछले दिनों...

यॉर्क यू के की यात्रा के दौरान ऐतिहासिक नगरी एडनबर्ग, स्कॉटलैंड जाने का मन हो आया. जब बेटे से इच्छा जाहिर की तो सबसे पहले यह बताया गया कि इस शहर को लिखते एडनबर्ग हैं मगर कहते एडनबरा है. मान गये और सीख लिया एडनबरा बोलना, ठीक वैसे ही जैसे बचपन से स्कूल में मास्साब सिखाते रहे कि कनाडा की राजधानी ओटावा और कनाडा पहुँच कर पता चला कि उसे आटवा बुलाते हैं. अच्छा है कि हमारा नाम लिखते भी समीर लाल हैं और बुलाते भी समीर लाल है, नहीं तो एक समझाईश का काम और सर पर आ टपकता. बताया गया कि यॉर्क से ४ घंटे दूर है.

दंग हूँ इस नये फैशन पर जिसमें दूरियाँ घंटों में नापी जाने लगी हैं. कोई आश्चर्य की न होगा अगर अपने इसी जीवन में कभी सुन जाऊँ कि जबलपुर से भोपाल ६०० लीटर दूर है या भोपाल से इन्दौर की दूरी २० टन है. पूरा अमेरीका, कनाडा आज घंटो में दूरियाँ बताते नहीं थक रहा. टोरंटो से मान्ट्रियाल ५.३० घंटे की ड्राईव, टोरंटो से आटवा ४ घंटे की ड्राईव, वेन्कूअर ५ घंटे की फ्लाईट. हद है भई, सोचो जरा, ट्रेफिक मिल जाये, गाड़ी खराब हो जाये- तब? जरा हमारे जबलपुर में कह कर तो देखो कि जबलपुर से कटनी १ घंटे की ड्राईव है क्यूँकि ९० किमी है..तो लोग हंसते हंसते पागल हो जायेंगे..और बतायेंगे आपको पागल.अरे एक घंटे तो ड्राईवर को चाय पान पी कर चलने की तैयारी के लिए लग जायें आखिर बाहर गाँव जाना है, कोई मजाक तो नहीं है. फिर पेट्रोल डलाना...गाड़ी पे कपड़ा मारना..सारा काम निपटाते, गढ्ढे कुदाते, साईकिल और गाय बचाते, रिक्शे से टकराते जबलपुर शहर भी अगर दो घंटे में पार कर लें तो उपलब्धि ही जानिये. जबलपुर से भोपाल मात्र ३१२ किमी और आज तक मैं कभी भी ड्राईव करके ९ घंटे से कम में नहीं पहुँच पाया और वो भी इतना थका हुआ कि ८ घंटे जब तक सो न लूँ, किसी से एक लाईन बात कर सकने की हालत में नहीं आ सकता.

समयकाल, जगह, गाड़ी की रफ्तार, भीड़, सड़कों की हालत, ट्रेफिक..इन सब को परे रखते हुए इतने विश्वास के साथ ये लोग २ घंटे/४ घंटे बोलते हैं कि दाँतो तले ऊँगली दबा लेने को जी चाहता है. ये निराले, इनके काम निराले, इनके व्यक्तव्य निराले.

कोई इनको समझाये कि आज जब ४५ पार के ८०% लोग मधुमेह से जूझ रहे हैं, तब आपकी गाड़ी में ५ सवारों में से, जिसमें माँ बाप भी शामिल हों, कम से कम एक की तो मधुमेह की बनती ही है- जस्ट फॉर बेलेन्स बनाये रखने के लिए. अब कोई मधुमेह पीड़ित आपकी गाड़ी में हो तो हर एक घंटे बाद वाशरुम खोजिये. भारत तो है नहीं कि हाई वे पर सड़क के किनारे रोकी और ठंडी हवा में निवृत हो लिए. एक बार वाशरुम मतलब १५ मिनट तो मान ही लो क्यूँकि यह ऐसी छूत की बीमारी है कि जिसे जाना है वो तो जायेगा ही, उसको देखा देखी बाकी लोग भी लगे हाथ हो ही लेते हैं. गणित अगर ठीक ठाक हो तो ४ घंटे में चार बार तो यहीं कार्यक्रम होता रहे मतलब ५ घंटे की ड्राईव तो अपने आप हो गई.

उस पर अगर हमारे जैसे भारतीय रथ यात्रा पर निकले हों तो क्या कहने. हर थोड़ी दूर पर कभी नदी के किनारे, कभी स्कॉटलैण्ड आपका स्वागत करता है, के बोर्ड से सट कर, फिर उसकी तरफ ऊँगली से ईशारा करते हुए, फिर पत्नी के साथ वही दोनों पोज़, फिर पत्नी का अकेले में उसमें से एक पोज़, कभी पीले सरसों के खेत के सामने, कि यहीं डी डी एल जे की शूटिंग की होगी तो कभी किन्हीं गोरों को कहीं फोटो खिंचवाता देखकर, कि जरुर कोई इम्पोर्टेन्ट जगह होगी, चूक न जाये, तो खुद भी खड़े हो कर फोटो खिंचवाते ऐसे चलेंगे जैसे एक एक फोटो भारत जाकर मित्रों को चमकाने के लिए खिंचवा रहे हों. माना कि भारतीय होने के कारण रेस्त्रां जाकर खाने का समय बचा लोगे और घर से लाई पूड़ी और आलू की सब्जी पूंगी बना बना कर कार चलाते हुए ही खा लोगे मगर कितना?  गारंटी से ४ घंटे की बताई यात्रा को ७ घंटे की यात्रा तो मान ही लो.

वैसे भी जल्दी किस बात की है...कल के काम के लिए आज निकल पड़ना तो बचपन से करते आये हैं, भले ही ट्रेन से जाना हो. क्या पता कल लेट हो जाये तब..और यूँ भी आज यहाँ खाली ही तो हैं, निकल पड़ो. भारतीय रेल का रिकार्ड तो ज्ञात है ही.

drive

इस दौरान ऐसे ही बदलाव तो देश में भी देख रहा हूँ फिर भी न जाने क्यूँ दंग हुआ जाता हूँ. आजकल देश में भ्रष्ट्राचार के नापने के मानक किस तरह बदल लिये हैं..फलाने ने कितना काला धन कमा लिया- कम से कम एक बटा दस कलमाड़ी तो दबा ही लिया होगा. उसके यहाँ छापा पड़ा- २ प्रतिशत पवार निकला. वो राजा के ३ परसेन्ट से कम नहीं है किसी भी हालत में...जब ऐसी बातें होने लगे तो इस घंटे की दूरी को स्वीकार करने में भी क्या बुराई है.

आश्चर्य में मत पड़ना यदि कभी कोई आपको मेरा वज़न लीटर में बताये या कहे कि फलानी जगह तक पहुँचने में ४ दर्जन पेट्रोल लगेगा. भारत में दो नम्बरी बाजार में तो रुपयों के मानक को बदलते आप देख ही चुके हैं- १००० रुपये याने १ गाँधी, १ लाख रुपये याने एक पेटी और १ करोड़ याने १ खोखा.

हाँ, इसके चलते मन मान गया मगर यात्रा में एक और बात कौंधी कि हम भारतीय जब देश के बाहर हो तो एक बात के लिए यह खासियत और दिखा जाते हैं कि जब किसी दूसरे देश के शहर में जायेंगे, तो खाने के लिए सबसे पहले भारतीय रेस्त्रां तलाशने लगते हैं. भले ही भारत में इटालियन पिज़्ज़ा, बर्गर, चाईनीज़, ग्रीक खाने के पीछे भागें और मित्रों के बीच अपना स्टेन्डर्ड जमाये जायें मगर देश के बाहर निकलते ही भारतीय रेस्त्रां की तलाश शुरु. सो हमने भी एडनबरा में खोज लिया ’ताजमहल रेस्त्रां’. आर्डर में पीली दाल तड़का और नानवेज में कड़ाही चिकन का ऑर्डर कर दिया वरना काहे के भारतीय... भारतीय खाना खाकर लौट आये गेस्ट हाऊस.

सुबह ११ बजे चैक आऊट करके वापस यॉर्क के लिए जिस दिन निकलना था तो चूँकि ब्रेकफास्ट कमरे के किराये में शामिल था, इसलिये पहले दिन की ही तरह इतना सारा खा लिया कि लंच की जरुरत ही न पड़े और चले आये यॉर्क तक मुस्कराते बिना भूख लगे. भारतीय होना काम ही आता है आड़े वक्त पर वरना रास्ते में कहाँ खोजते भारतीय रेस्त्रां और मिल भी जाता तो बेवजह खरचा तो था ही.

घर से दूर
जब निकल
जाता हूँ मैं...
न जाने क्यूँ
कितना सारा
तब बदल
जाता हूँ मैं..

-समीर लाल ’समीर’

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78 टिप्‍पणियां:

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

भारत तो है नहीं :) बहुत खूब
क्षणिका भी जबर्दस्त है समीर भाई

Archana Chaoji ने कहा…

दूरियाँ...किसी भी तरह नापी जाए उन्हें कम करना जरूरी होता है ....

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

@@आजकल देश में भ्रष्ट्राचार के नापने के मानक किस तरह बदल लिये हैं..फलाने ने कितना काला धन कमा लिया- कम से कम एक बटा दस कलमाड़ी तो दबा ही लिया होगा. उसके यहाँ छापा पड़ा- २ प्रतिशत पवार निकला. वो राजा के ३ परसेन्ट से कम नहीं है किसी भी हालत में...जब ऐसी बातें होने लगे तो इस घंटे की दूरी को स्वीकार करने में भी क्या बुराई है.
सही कह रहे हैं.

Vaanbhatt ने कहा…

कलाम साहब का एक मेल किसी ने फोरवर्ड किया था...कि सिंगापुर उतरते ही भारतीय जैसा बिहेव करते हैं...वैसा इण्डिया में करने लगे...तो इण्डिया सिंगापुर बन जाएगा...ख़ुशी है कि आपने अपनी जड़ों को अभी छोड़ा नहीं है...वर्ना ज़िन्दगी का लुफ्त भी जाता रहेगा...घंटों में जीना भी कोई जीना है...लल्लू...हम लोग ज़िन्दगी जीते हैं...आज नहीं तो कल तो कर ही लेंगे...जब जीना है बरसों...

Gaurav Srivastava ने कहा…

जरा हमारे जबलपुर में कह कर तो देखो कि जबलपुर से कटनी १ घंटे की ड्राईव है क्यूँकि ९० किमी है..तो लोग हंसते हंसते पागल हो जायेंगे :-) :-)

वैसे यंहा आने पर ही मै भी जान पाया की नाम , लिखने और बुलाने में , अलग अलग भी हो सकता है .
हमारे एक सेनिओर हैं , वो बेचारे हर जगह अपने नाम का सही उच्चारण ही बताते रहते हैं

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aapki kalam minton me kamaal karti hai....

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

४ घंटे दूर है. दंग हूँ इस नये फैशन पर जिसमें दूरियाँ घंटों में नापी जाने लगी हैं
साफ़ है सब की एक ही गति है नये ज़माने में
"दुर्गति"
दुर..+ गति
ओह

Rahul Singh ने कहा…

'भले ही भारत में इटालियन...' खूब सूझी है. कहा जाता है सभ्‍य होने की अच्‍छी तरह परख, यात्रा के दौरान किए गए हमारे व्‍यवहार से होती है.

विभूति" ने कहा…

सार्थक पोस्ट...

Shah Nawaz ने कहा…

यह तो आपने देख लूँ तो चलूँ के स्टाइल की पोस्ट लिख डाली... बहुत ही दिलचस्ब किताब लिखी है आपने... मैं भी ऑफिस के रस्ते में धीरे-धीरे मज़े लेकर पढ़ रहा हूँ.... वैसे ख़त्म होने ही वाली है...

Khushdeep Sehgal ने कहा…

वजन लीटर में क्यों गैलन में क्यों नहीं...

पोस्ट चार मिनट की क्यों, राजीव तनेजा जितनी घंटों में क्यों नहीं...

दुनिया वालों चाहे जितना ज़ोर लगा लो, सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी....(बाहर जाकर पैसा बचाने में)

जय हिंद...

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया लिखा है आपने .. वैसे दूरी को घंटे में मापने का प्रयोग कभी कभी होता है .. 1988 में ही विवाह के वक्‍त ससुराल आते वक्‍त हमारी गाडी खराब हो गयी थी और मात्र 30 कि मी की दूरी हमने आठ घंटे में तय की थी .. उस वक्‍त जब भी लोग मुझसे मायके की दूरी पूछते मैं बताती .. वैसे तो किसी भी हालत में एक घंटे से अधिक नहीं लगनी चाहिए .. यह बात अलग है कि हमें आठ घंटे लग गए !!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

हर पंक्ति पर दाद देने का मन हो रहा है, बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

बहुत कुछ कह गईं ,आखिरी पंक्तियाँ....घर से दूर जब होता हूँ मैं....' भावनात्मक सन्देश !
आप इस समय लगातार भ्रमण पर हैं...असली जीवन यही है !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर...बधाई

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपके यात्रा वॄतांत के साथ साथ हम भी घूम रहे हैं, और आनंद भी ले रहे हैं.

रामराम.

स्वाति ने कहा…

जरा हमारे जबलपुर में कह कर तो देखो कि जबलपुर से कटनी १ घंटे की ड्राईव है क्यूँकि ९० किमी है..तो लोग हंसते हंसते पागल हो जायेंगे..और बतायेंगे आपको पागल.अरे एक घंटे तो ड्राईवर को चाय पान पी कर चलने की तैयारी के लिए लग जायें आखिर बाहर गाँव जाना है, कोई मजाक तो नहीं है. फिर पेट्रोल डलाना...गाड़ी पे कपड़ा मारना..सारा काम निपटाते, गढ्ढे कुदाते, साईकिल और गाय बचाते, रिक्शे से टकराते जबलपुर शहर भी अगर दो घंटे में पार कर लें तो उपलब्धि ही जानिये.
ha ha ha....bahut majedar....

मीनाक्षी ने कहा…

रशिमजी की तर्ज पर...यकीनन आपका क़लम कमाल करती है...लेख सजीव हो उठता है..

शिक्षामित्र ने कहा…

तेज़ रफ्तार इस दुनिया में,थोड़े आराम के लिए भी वक्त निकालें हम।

रंजू भाटिया ने कहा…

’ताजमहल रेस्त्रां’. ..भारत तो हर जगह बसता है ...े. भारतीय होना काम ही आता है आड़े वक्त पर वरना रास्ते में कहाँ खोजते भारतीय रेस्त्रां और मिल भी जाता तो बेवजह खरचा तो था ही. घर से दूर ....सच्चे भारतीय होने की निशानी ...:) हम तो सोचे थे की हम ही ऐसा करते हैं :)

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

आपके ब्लाग पर सुकून का एहसास हो रहा है
.......

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर....

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

अच्छा है कि हमारा नाम लिखते भी समीर लाल हैं और बुलाते भी समीर लाल है, नहीं तो एक समझाईश का काम और सर पर आ टपकता...

bahut acha kaha aapne... main to pareshan hun hi koi mera name bhawna leta hi nahi ya yun kaho ki liya nahi jaata..bhawna ki jagha mavna ho jata hai bh to bol nahi pate or yadi main kunwar bole ko bulun to bas kanvar ho jaata hai han dr kahin padh len to khush hokar dr bolna pasnd karte han...
bahut acha sansmarn ...khub gudgudaya ...puri ki pungi bhi pasnd aayi...kshnikaa bhi bahut p[asnd aayi..

rashmi ravija ने कहा…

दूरियाँ घंटो में नापे जाने का चलन तो मुंबई में भी हैं...अब इतनी आदत पड़ गयी है कि जब रिश्तेदार आते हैं तो उन्हें बताने में उलझन होती है...कि कैसे बताएँ...
बाहर जाकर भले ही बदल जाएँ...पर अगर वापस आकर वैसे ही रहें तो फिर कोई फर्क नहीं पड़ता...

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत क्षणिकाएं लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दूरियां घंटों में नापी जाती हैं ... वो तो यहाँ भी नापते हैं ..पर बाकी सब कामों का हिसाब भी जोड़ कर ... अच्छा कटाक्ष है ..यहाँ पर विदेशी खाना खाते हैं और विदेश जा कर भारतीय रेस्तरां ढूँढते हैं ..

रोचक पोस्ट

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

इस यात्रा ने दिमाग़ को कितनी मौलिक उद्बावनाओं से संपन्न कर दिया .आपके साथ -साथ हमलोग भी लाभान्वित हुये.हर चीज़ का हर जगह का नपना(नाप-तोल का पैमाना) बदलता जा रहा है-दुनिया कितनी तेज़ी से भाग रही है .
लेकिन अपने देश से दूर होना इतना आसान कहाँ ?बाहर जाने पर वह भीतर से घेरना शुरू कर देता है.लगता है यही हो रहा है आपके साथ!

Darshan Lal Baweja ने कहा…

वहां की नैतिकता का पैमाना
माँ एक पिता पांच
शादी हुई नहीं
बच्चे सात
हा हा

कुमार राधारमण ने कहा…

हम तो विदेशियों को भी यहां के हिचकोले खिलाना चाहते हैं। आज ही पढ़ा कि ब्रिटेन में कर्मचारियों से कहा गया है कि नौकरी बचानी हो तो मुंबई जाओ। नौकरी बचेगी,तभी कोई उड़ान संभव- एडनबरा जाएं कि जबलपुर।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया रहा!
पोस्ट के नीचे लिखी पंक्तियाँ भी बहुत उम्दा हैं!

सतीश पंचम ने कहा…

एकदम राप्चिक :)

आकर्षण गिरि ने कहा…

हंसते खेलते इतने करारे व्यंग्य आपने लिख डाले... गजब की रचना है... बधाई

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम अपने देश में बसते हैं, और देश तो सड़कों पर आ चुका है तभी यात्राओं में समय लगता है।

रचना दीक्षित ने कहा…

भारतीय होना काम ही आता है आड़े वक्त पर.

बाहर रहने पर घर कि याद कुछ ज्यादा ही सताती है.

दूरियों को नजदीकियों में तबदील करने में ही जिंदगी का सफर कट जाता है.

बहुत अच्छा लगा समीर जी.

palash ने कहा…

काश की जो दूरियाम अक्सर दिलों के बीच बन जाती है और उन्हे पार करने में हम उम्र लगा देते है , वो भी घंटों मे ही नप जाती ..
आपको पढना हमेशा ही एक अलग सा अनुभव देता है

mridula pradhan ने कहा…

घर से दूर
जब निकल
जाता हूँ मैं...
न जाने क्यूँ
कितना सारा
तब बदल
जाता हूँ मैं..
bahut achchi lagi......

डॉ टी एस दराल ने कहा…

समीर जी , जहाँ रिश्ते ही घंटों के हिसाब से बनते हों , वहां दूरियां भी घंटों में ही नापी जाएँगी ।
वैसे खाली पड़ी सड़क और १२० की रफ़्तार से दौड़ती गाड़ी का मज़ा लेने में भी क्या हर्ज़ है ।

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर औरसटीक लेख...आभार..

PRAN SHARMA ने कहा…

AAPKEE LEKHNEE KE JAADOO KA KAAYAL

HOON . KAVITA AESEE LAGEE HAI KI

JAESE AAPNE GAGAR MEIN SAGAR BHAR

DIYAA HAI .

Arvind Mishra ने कहा…

संस्मरण विधा के माहिर हो चले हैं आप:)

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

किसी भी विषय को रोचक बनाना कोई आपसे सीखे.

'संख्या' अभिव्यक्ति की पहचान बन गयी,
'रिश्तो' की 'नाप-तौल' की 'पैमान' बन गयी,
यूरोप के फार्मूले पे नापा जो देश को,
अपनी तो 'उड़न-तश्तरी' पैदल निकल गयी.

http://aatm-manthan.com

अजय कुमार ने कहा…

यह देशी अंदाज अच्छा लगा , और ये माप तौल का अंदाज तो बदल ही रहा है ।

मनोज कुमार ने कहा…

बड़ी आत्मीयता से लिखी पोस्ट जिसमें हर क्षण एक ठेट भारतीय के दर्शन होते रहे ..!

Dr Varsha Singh ने कहा…

रोचक संस्मरण...

Manish ने कहा…

घूमते घूमते आप माहिर हो गये हैं.. यहाँ तो घर से निकलने में दस किस्म की समस्यायें हैं.. :)

Asha Lata Saxena ने कहा…

संक्षेप में बहुत कुछ कह दिया आपने |बधाई |
आशा

नीरज गोस्वामी ने कहा…

व्यंग लेखन में आपका कोई सानी नहीं...अपने आस पास के परिवेश पर आपकी पैनी नज़र हमेशा रहती है, कहीं वहां आप चूकते नहीं...भारतीय परम्पराओं और आदतों से इस कदर वाकिफ हैं के हैरानी होती है...रहते आप चाहें केनेडा में हों लेकिन हैं ठेठ भारतीय...विदेश जाना अक्सर होता ही रहता है और आपकी भारतीय भोजन तलाशने वाली बात अक्षरशः सही है...दरअसल इटली में वैसा पित्ज़ा नहीं मिलता जैसा हम यहाँ भारत में खाने के आदि हैं, चीन में चाऊ मीं खाना जोखिम का काम है इन विदेशी रेस्तरां में वो स्वाद नहीं मिलता जिसके हम आदि हैं, हम हर विदेशी पकवान को अपने हिसाब से पकाते हैं और मस्त रहते हैं...
बहुत रोचक पोस्ट है आपकी.(आपकी ही तरह)

नीरज

Dr. Pande B. B. Lal ने कहा…

प्रिय समीर
आप की रचना बेहद सुंदर लगी I बहुत पहले इन्स्तेइन ने यह समझाया था की
समय भी एक आयाम (Dimension ) है I तब मुझे यह बात बेढंगी लगी थी I
पर आप की लेखनी ने बारे ही सुंदर ढंग से समय को रैखिक आयाम से जोड़ दिया I
काश! इन्स्तेइन के पास यह प्रतिभा होती I
पिछले सप्ताह बॉम्बे जिसे अब मुंबई कहा जाता है, गया था I मेरे पुत्र बहु ने समझाया की
उन का आवास रेलवे स्टेशन से दो घंटे की दूरी पर ईस्तिथ है I मुझे यह बात अटपटी लगी,
मैंने उससे दूरी को किलोमीटर में बताने को कहा क्योंकि कार में पेट्रोल की खपत किलोमीटर
के हिसाब से होगी I पर उसने यह समझाया की अब भारत में भी समय का मूल्य बढ़ते हुए
पेट्रोल के मूल्यसे अधिक है I ट्राफिक जैम, टूटे मार्ग से दूरी का मापन आब यहाँ की नियति है I
समय और दूरी के बीच का विभाजन आपने समाप्त कर अछा कृतित्व लिखा हैं I ईश्वर आपकी लेखनी को
नए आयाम प्रदान करे I शुभकामनाये I
डॉ. पान्डे बी बी लाल

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

घर से दूर
जब निकल
जाता हूँ मैं...
न जाने क्यूँ
कितना सारा
तब बदल
जाता हूँ मैं..

kya baat hai, sir!

mère saath bhi esa hota hai… papa kehte the 'when in Rome, do as the Romans do' but then they say, 'one can take an Indian out of India, but one can't take India out of an Indian'… shaayad isiliye hum badal kar bhi badal nahi paate… very nice post!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

भारत में दूरी घंटों में बताने का चांस कौन ले, पता नहीं ट्रैफ़िक जाम का क्या हाल निकले या सड़क पर गड्ढे ही हो गए हों... वैसे मेरे घर से मेरे दफ़्तर की दूरी 35 मिनट से 90 मिनट के बीच है बाक़ी कुछ नहीं कहा जा सकता :)

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

गागर में सागर से भी ज्‍यादा भर लाई है आपकी कविता।

------
कम्‍प्‍यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्‍या है....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

दादा, भारत में मुझे नीरज जाट जी का पैमाना पसंद आया।
"धर्मशाला से मैक्लॉडगंज 5 रुपए की दुरी पर है।" :)

विष्णु बैरागी ने कहा…

रचनाओं के वर्गीकरण में, हिन्‍दी में एक वर्ग आता है - रम्‍य रचना। बडे दिनो बाद कोई रम्‍स रचना पढने को मिली।

बहुत-बहुत मजेदार। यात्रा के आनन्‍द से अधिक आनन्‍ददायी।

anju ने कहा…

:))))))))))

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

aapke likhne ka andaj hi nirala hai,,sukshm dristi,sangidgi se likha hui kshdika prarabh se ant tak baandhe rakhne ki adbhut kshmata rakhti hai,,,,aap to udan tastari per sawar rahein aur hame aise hi pyare pyare lekh padhne ko milte rahein

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया सर ।

----------------
आपकी एक पोस्ट की हलचल आज यहाँ भी है

Rajesh Kumari ने कहा…

aapke blog par pahli baar aai hoon bahut manoranjan hua bahut achcha likhte hain aap.vivran poora padhkar hi ruki.yahi to khasiyat hoti hai achchi lekhni ki.aapke lekh me sachchai aur vyang dono ka maja liya.apne blog se bhi aapko jodna chahungi.

विवेक रस्तोगी ने कहा…

समय से दूरी नापना शायद टाईम मैनेजमेंट में मदद करता होगा, जैसे कि मुंबई में आप कहीं का भी पूछें तो जबाब मिलेगा कि १० मिनिट वाकिंग है, और वाकई अगर मुंबईया चाल से चलेंगे तो १० मिनिट में पहुँच जायेंगे, परंतु अगर अपने गाँव वाली चाल में चलेंगे तो हो सकता है कि १५ मिनिट चलने के बाद भी ना पहुँच पायें।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

समीर जी,
आपको पढना सदैव अच्छा लगता है. सहज यात्रा वृत्तांत को सुनाने की शैली बहुत रोचक लगी. सोचती हूँ कि मानक इकाई जब बदल हीं रही है तो आपकी रचना को १०० फीसदी या १६ आना सही और मज़ेदार न कह कर या तो २४ घंटा सही कहूँ या फिर एक बड़ा फॅमिली पिज्जा या फिर होटल ताजमहल का शाही खाना या फिर...हा हा हा हा
मित्रता दिवस की बधाई.

संजय भास्‍कर ने कहा…

रोचक संस्मरण..अब तो हर काम में माहिर हो गए है गुरदेव

बेनामी ने कहा…

आपका स्वागत है यहाँ !
----------------------------
हम रोज़ एक मुद्दा उठाएंगे !

Shabad shabad ने कहा…

बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।
आभार !

रवि रतलामी ने कहा…

पूरे 32 हजार 223 वर्गफुट चौड़ी, मजेदार व्यंग्य रचना. खालिस इंडियन. :)

दीपक जैन ने कहा…

बहुत खूब

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

शानदार!

बवाल ने कहा…

लेख के इस टुकड़े ने बहुत प्रभावित किया लाल साहब-
"हाँ, इसके चलते मन मान गया मगर यात्रा में एक और बात कौंधी कि हम भारतीय जब देश के बाहर हो तो एक बात के लिए यह खासियत और दिखा जाते हैं कि जब किसी दूसरे देश के शहर में जायेंगे, तो खाने के लिए सबसे पहले भारतीय रेस्त्रां तलाशने लगते हैं. भले ही भारत में इटालियन पिज़्ज़ा, बर्गर, चाईनीज़, ग्रीक खाने के पीछे भागें और मित्रों के बीच अपना स्टेन्डर्ड जमाये जायें मगर देश के बाहर निकलते ही भारतीय रेस्त्रां की तलाश शुरु."
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत।
काश हम भी वहाँ साथ होते। हमें बताया होता कि एडिनबर्ग जा रहे हो तो भोपाल वाले मौसी-मौसियाजी जो अभी वहीं गए हैं अपने चिरंजीव कने, उनसे भी मुलाक़ात करवा दिए होते। ख़ैर कोई बात नहीं। फिर कभी सही।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

जब हम नार्थ केरोलिना के चारलोटे गए तो बेटॆ ने बताया लिखते है चारलोटे पर कहते है शार्लेट :)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

जब हम नार्थ केरोलीना में चारलोटे गए तो बेटॆ ने बताया कि लिखते हैं चारलोटे पर कहते हैं शार्लेट :)

Vivek Jain ने कहा…

बहुत खूब लिखा है समीर जी,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Pratik Maheshwari ने कहा…

बड़ा गर्व सा होता है भारतीय महसूस करने में! :)

जय हिंद..

Vidhan Chandra ने कहा…

थोड़ी व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग नहीं लिख पा रहा हूँ, मेरी मजबूरी समझ कर मुझे माफ़ करेंगे ऐसी उम्मीद है.आप हमेश की तरह छोटों और नए लेखकों का उत्साहवर्धन करते हैं,आप की यही खूबी आप का फैन बना देती है और हाँ आपके ब्लॉग पर आते रहेंगे !!

गप्पी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
गप्पी ने कहा…
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Amit ने कहा…

समीर जी शायद आपके दिमाग में लिखते समय व्यंग्य चल रहा होगा पर बात बहुत गंभीर है. शायद पहली बार पढते समय हंसी नहीं आयी उल्टा थोड़ा सा दुःख हुआ कि हम लोग क्या होते जा रहे हैं.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

स्कोटलैंड ... सुना है सपनों की नगरी हियो ... बहुत ही खूबसूरत और आप दूरियां नापते रहे ... ये भी तो अंजाद है समीर भाई का ..

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुंदर विवरण!
सादर!