गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008

अथ श्री बंदर कथा!!!

monkey

एक बार की बात है-एक गांव में एक व्यापारी आया और उसने घोषणा की कि वो बंदर खरीदना चाहता है. हर बंदर के वो १० रुपये देगा.

गांव और उसके आस पास के जंगल में बहुत बंदर थे. गांव वाले बंदर पकड़ पकड़ कर लाने लगे और व्यापारी उन्हें हर बंदर के १० रुपये देता गया. सैकड़ों बन्दर वो खरीदता गया और एक बहुत बड़े पिंजड़ेनुमा बाड़े में रखता चला गया.

धीरे धीरे बन्दर गांव में और आसपास के जंगलों में मिलना बन्द हो गये तो लोगों ने मेहनत करना बंद कर दिया.

फिर व्यापारी ने घोषणा की कि अब वो २० रुपये में बन्दर खरीदेगा. गांव वाले फिर से मेहनत करने लगे और दूर दूर से बंदर पकड़ कर लाने लगे. धीरे धीरे दूर से भी बन्दर मिलना बन्द हो गये. सप्लाई खत्म, सब फिर बैठ गये.

फिर उसने २५ रुपये की बात की. सप्लाई तो खत्म हो चुकी थी. बन्दर पकड़ना तो दूर, दिखना ही बन्द हो गये. अब उसने दाम बढ़ा कर ५० कर दिये. फिर उसे किसी कार्य से शहर जाना था, तो उसने अपने साहयक को अधिकार सौंप दिया और खुद शहर चला गया.

व्यापारी के शहर जाते ही, उसके सहायक ने गांव वालों से कहा कि ये पुरानी खरीद का माल तो शहर में ३५ रुपये में बेचना ही है. अगर तुम लोगों को खरीदना हो तो तुम लोग ले लो और व्यापारी जब वापस आयेगा, तो उसे ५० रुपये में बेच देना. सारे गांव वालों ने अपनी जमा पूंजी लगाकर उससे बन्दर खरीद लिए.

उसके बाद गांव वालों ने न कभी उस व्यापारी को देखा और न ही उसके सहायक को. दिखे तो बस सब तरफ बन्दर ही बन्दर.

अब तो आपको समझ आ ही गया होगा कि शेयर बाजार कैसे चलता है.

(यह कथा एक ईमेल फारवर्ड पर आधारित है)

अब चलते चलते दो कवितानुमा कुछ विचार!!

शतरंज.....

शतरंज के खेल में
घोड़ा हमेशा ढाई घर
चलता है
और
ऊँट तिरछा.

चलाते तुम हो
चाहो तो
घोड़ा
एक घर चला दो
या
ऊँट को
सीधा.

लेकिन तुम
ऐसा नहीं करते!!

हर चीज के अपने
कायदे होते हैं!!!

-0-

कहीं तुम मुझे......!!!

मैं दौड़ रहा हूँ
मुझे धावक न समझना!
मैं तैर रहा हूँ
मुझे तैराक न समझना!!

सब मजबूरियाँ हैं....

मैं हँसता भी हूँ
कहीं तुम मुझे
खुश तो नहीं समझते!!

यूँ तो मैं
सांस भी लेता हूँ,
कहीं तुम मुझे......!!!

--समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

94 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

aapne to shear bazar ka sach bta dia .agar hum hi gadhye ban rahe hai to sarkar kya kare

कामोद Kaamod ने कहा…

कहानी से बहुत कुछ कहाँ दिया आपने. अभी दुनियां के सभी शेयर धारक गाँव वालों की तरह परेशान हैं. प्रेरक प्रसंग.

बेनामी ने कहा…

सही है। शेयर बाजार के हाल और कविता!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

दोनो ही कविताएं बहुत खूबसूरत
मजा आ गया भाई जान
और बंदरों वाला खेल जनता की समझ में आ जाय तो कितना अच्छा हो
खैर
आपको बधाई

बेनामी ने कहा…

Bilkul samajh aa gaya ji ye bazar kaise chalta hai. isliye Ab kuch madari log ye koshish kar rahe hain ki in bandaro ko kaise kaabu me laaya jay.

Vivek Gupta ने कहा…

सुंदर रचना

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत सरल शब्दों में अर्थ शास्त्र का ज्ञान दे दिया आपने .
मौत से नाहक परीशां हैं हम,हैं जिंदा कहाँ जो मर जायेंगें !

बेनामी ने कहा…

अथ श्री बंदर कथा
वाह मनी पर पहले
पा चुकी है खूब विस्‍तार
पर खत्‍म नहीं हो सकता
शेयर बाजार का बंटाढार
उड़ते रहो उड़ाते रहो
उड़नतश्‍तरी सर्र सर्राते रहो।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

पूँजी बाजार में अपना कोई शेयर नहीं। कथा और कविताएं सुंदर हैं।

युग-विमर्श ने कहा…

कथा भी पैनी और प्रासंगिक है और कवितायेँ भी सार्थक.

ALOK PURANIK ने कहा…

क्या केने क्या केने

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत अच्छे से आपकी बात समझ में आ गई :)

हर चीज के अपने
कायदे होते हैं!!!

बढ़िया रहा यह

युग-विमर्श ने कहा…

कथा भी पैनी और प्रासंगिक है और कवितायेँ भी सार्थक.

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत बढ़िया...दिलचस्प भी ज्ञानवर्धक भी...
आलोक पुराणिक जी की टिप्पणी इस पर आती ही होगी...

बेनामी ने कहा…

आप समझाएँ और समझ में ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता, बिलकुल समझ गए हैं, पूरी तरह से समझ गए हैं शेयर बाज़ार कैसे चलता है! :)

परन्तु ये बताएँ गुरुदेव कि बंदर का भाव इतना सस्ता कैसे लगाया और गाँव वाले मान कैसे गए इतने सस्ते में बेचने के लिए? क्या बहुत पहले की घटना है ये? :)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

चलाते तुम हो
चाहो तो
घोड़ा
एक घर चला दो
या
ऊँट को
सीधा.

लेकिन तुम
ऐसा नहीं करते!!

हर चीज के अपने
कायदे होते हैं!!!
लाजबाव और सटीक लिखा आपने ! इस दुनिया में कुछ अपने २ कायदे और नियम होते हैं ! चाहे या ना चाहे उनका समाज के हिसाब से पालन तो करना ही पङता है ! ना करने पर बागी कहलाये जाते हैं ! धन्यवाद !

संगीता पुरी ने कहा…

तीनो अंशो का भाव अच्छा ….अभिव्यक्ति का ढंग भी अच्छा ….पर बंदर वाली कथा कहीं सुन या पढ़ चुकी हूं…..कल ही मेरे घर पर भी इसकी चर्चा हो रही थी , अब कहां पढ़ा है… यह बिल्कुल याद नहीं। खैर, कुल मिलाकर बहुत ही अच्छा।

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

सटोरिये पूँजीवाद की कार्यप्रणाली इतनी सरलीकृत करके समझा दी है आपने। इसे तो 'समीर लाल का पंचतँत्र' की पहली कथा कहना चाहिये। इतना गंभीर विषय और इतनी सरल शैली! भई वाह! आप साधुवाद के ही नहीं धन्यवाद के भी अधिकारी हैं।

Smart Indian ने कहा…

सत्य वचन! आम जनता भी उन गाँव वालों की तरह ही है.

संजय बेंगाणी ने कहा…

पन्ना खुलते ही अपनी तस्वीर देख कर चौंक गया :(

कथा पहले एक ब्लॉग पर सम्भवतः कमलजी के ब्लॉग पर पढ़ी हुई थी, मगर ज्ञान की बात जितनी बार भी पढ़ो कम है. पूनः प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद.

Anil Pusadkar ने कहा…

यूं तो मैं, सांस भी लेता हूं……………………………………………………………ज़माने का सच कगज़ पर उतार दियां। दण्डवत करता हूं आपको।

विवेक सिंह ने कहा…

सत्य वचन !

पंकज सुबीर ने कहा…

हा हा हा पहले तो हमने समझा कि .... खैर अच्‍छी कहानी है । और शेयर बाज़ार को लेकर भी बहुत अच्‍छा काम किया है । वैसे मुझे पिछले वर्ष किसी भी ब्‍लाग की कोई भी एक सर्वश्रेष्‍ठ पोस्‍ट निकालने को कहा जाये तो आपकी वो ट्रेन में सो जाने वाली पोस्‍ट निकालूंगा वो अद्भुत हैं

seema gupta ने कहा…

" baap re bap, gandhee jee kee to teen hee bandar thye, yhan to bandar he bandar.... hr aayene mey chehra taira, sach kha shair mkt ke sach ko bhut impressive manner mey present kiy hai aapne.."

Regards

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

यूँ तो मैं
सांस भी लेता हूँ,
कहीं तुम मुझे......!!!

jya baat hai..kahin padha tha jo baat adhuri kah kar chhod di jaye us ka doguna asar hota hai... yaha.n chauguna hua

Unknown ने कहा…

हाथी घोड़ा पालकी
जय कन्हैया लाल की..

तोरे चरखे का टूटे ना तार..चरखवा चालू रहै..

-पंकज

PREETI BARTHWAL ने कहा…

समीर जी समझाने का अच्छा तरिका है। कथा और रचना बहुत बढ़िया है। धन्यवाद।

कुश ने कहा…

हर चीज के अपने
कायदे होते हैं!!!


bahut khoob... aaj ki post bahut vicharniya rahi...

Gyan Darpan ने कहा…

छोटी सी कहानी से बहुत बड़ी बात समझा दी | आभार

डॉ .अनुराग ने कहा…

हम समझ गये आपकी मजबूरी .....ओर हमारी भी !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

शेयर बाज़ार का असली रूप......और एक सच-
चलाते तुम हो
चाहो तो
घोड़ा
एक घर चला दो
या
ऊँट को
सीधा.

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

श्रीमान जी अच्छी कथा सुनाई आपने .
क्या करें अपनी ही चीज़ों को बाहर के लोग आकर महंगे दामों मैं बेच रहे हैं . फिर भी हम है की समझ नही रहे हैं . धन्यवाद .

Abhishek Ojha ने कहा…

शेयर बाजार की नब्ज़ पकड़ ली आपने :-)

और कवितायें तो लाजवाब.

भूतनाथ ने कहा…

सब मजबूरियाँ हैं....
कहीं न कहीं अत्यन्त ही प्रासंगिक पोस्ट है ! बहुत धन्यवाद !

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

पॉन्जी स्कीम की बहुत कथायें हैं और यह बन्दर वाली मस्त हिन्दी कथा है!

RADHIKA ने कहा…

बन्दर कथा बहुत ही अच्छी रही.ग्रेट

RADHIKA ने कहा…

बन्दर कथा बहुत ही अच्छी रही.ग्रेट

Suneel R. Karmele ने कहा…

वाह समीर जी, आपने खुश कर दि‍या। कहानी अच्‍छी लगी और कवि‍ता तो बेहतरीन है, सरल शब्‍दों में ठोस बात।

सुनील आर.करमेले, इन्‍दौर
वैसे हम भी जब्‍बलपुर के पास के ही हैं, लेकि‍न जबलपुरि‍ये नहीं हैं।

Rachna Singh ने कहा…

good one

रंजना ने कहा…

एकदम सत्य और अनुपम है यह वानर/शेयर कथा.आशा है लोग कुछ सीख लेंगे इस से . कविता भी लाजवाब है.

makrand ने कहा…

bahut sahi ankalan
regards

Vinay ने कहा…

हँसूँ या मन को संजीदा ही रहने दूँ? कुछ समझ नहीं आ रहा। हँसी-हँसी में बहुत गहरी बात कह दी आपने।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

समीर जी,
शतरंज के खेल से एक बात याद आयी। जब प्यादा सामने के अंतिम छोर पर पहुंच जाता है तो वह वजीर बन जाता है। उसकी तुलना ओछी मानसिकता वाले इंसान से की गयी है। 'प्यादे से फर्जी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाय।'
सुंदर गद्य और सीख देते पद्य के लिए साधूवाद।

डा० अमर कुमार ने कहा…

हाँ ऎसा ही एक मेल मुझे भी मिला था,
याहूग्रुप से !
मुझे तो ख़्याल भी न आया,
कि इस पर पोस्ट भी बन सकती है ।
शायद इसीलिये तो आप उ्ड़नतश्तरी पर सवार हो, और ..
मैं ज़मीन पर ही बमुश्किल रेंग पा रहा हूँ !
एक अच्छी प्रस्तुति के लिये आभार !

वर्षा ने कहा…

कथा..खूब, कविता...बहुत खूब

mehek ने कहा…

kahani aur shatranj wali kavita bahut pasand aayi,bahut sikha gayi dono,tajurbe ki baatein.bahut khub

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

चलाते तुम हो
चाहो तो
-----------------------
चाहें तो हैं किन्तु सुनिश्चित् कभी एक भी न हो पाई
चाहा हर इक पग माफ़िक हो, सीधा हो या घर हौं ढाई
अपने पर संशय जब होता, मन को देते एक दिलासा
दोष हमारा इसमें क्या है, सबहिं नचावत राम गुंसाई

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

चलाते तुम हो
चाहो तो
-----------------------
चाहें तो हैं किन्तु सुनिश्चित् कभी एक भी न हो पाई
चाहा हर इक पग माफ़िक हो, सीधा हो या घर हौं ढाई
अपने पर संशय जब होता, मन को देते एक दिलासा
दोष हमारा इसमें क्या है, सबहिं नचावत राम गुंसाई

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

बन्दर की कहाने शतरंज की कविता वाह वाह समीर जी आपके मेरे ब्लॉग पर आगमन के लिए धन्यबाद कृपया चुनावी दंगल पढने पुन: पधारे
प्रदीप मनोरिया

Puja Upadhyay ने कहा…

बन्दर कथा कमल की लगी. और दूसरी वाली कविता भी बहुत अच्छी लगी खास तौर से आखरी पंक्तियाँ...
मैं साँस भी लेता हूँ
कहीं तुम मुझे...

वीनस केसरी ने कहा…

समीर जी
सत्य का ज्ञान कराती अच्छी कहानी है

वीनस केसरी

राज भाटिय़ा ने कहा…

समीर जी हम तो बुजुर्गो का कहना मान कर चलते है,जुआ खेलना बुरी बात है, तो हम ने तो आज तक लाटरी का टिकट नही खरीदा इस डर से कि अगर लाटरी निकल आई तो इतने पेसो का क्या करुगां , मेरी जरुरते तो मेरी तन्खा से पुरी हो जाती है, लेकिन बन्दर बाली कहानी बिलकुल सही है, उस पर आप की कविताये सोने पर सुहागा है,
धन्यवाद

कुन्नू सिंह ने कहा…

आपका भी जवाब नही। क्या कहानी लीखें हैं। कहानी तो बहुत काम का है :)

कहानी और कवीता दोनो बहुत सच्चाई को दर्सा रहे हैं।

सेयर बाजार तो अब जमीन पर आ गया है।

दीपक ने कहा…

समझ गये उडनतश्तरी जी कि बंदर हमारे पुर्वज थे और वो भी सांस लेते थे हम भी सांस लेते है !

सुशील छौक्कर ने कहा…

वाह बहुत खूब। कैसे समझा दिया शेयर बाजार के गणित को।

G Vishwanath ने कहा…

समीरजी,

यही बन्दर वाली कहानी ज्ञानदत्तजी के Oct 12 के पोस्ट "जी.एफ.टी. समझने का यत्न!" पर टिप्पणी करते समय मैंने लिखी थी।
http://halchal.gyandutt.com/2008/10/blog-post_12.html#comment-form

देखिए न हमारे विचार कैसे मिलने लगे!
अब face to face meeting कब होगा?
आपसे मिलने को बहुत उत्सुक हूँ
शुभकामनाएं

बेनामी ने कहा…

चंद लफ्जों में कही गई ये कथा सागर से भी गहरी है।

जितेन्द़ भगत ने कहा…

दि‍ल को छू गया आपका यहॉ मौन रहना-
यूँ तो मैं
सांस भी लेता हूँ,
कहीं तुम मुझे......!!!

Reetesh Gupta ने कहा…

बहुत सुंदर लालाजी...कहानी और कवितायें दोनो अच्छी लगी....बधाई

खबरी! ने कहा…

ब्लाग की दुनिया में हम नए हैं लेकिन इतने दिनों में ये तो पता चल ही गया है कि इस दुनिया के आप गुरु नहीं गुरुघंटाल हैं।विदेश में रहकर भी आपने न सिर्फ हिन्दी का अलख जगा रखा है बल्कि ब्लाग की दुनिया में गजब का सिक्का जमा रखा है....हमें भी स्वीकार कर लीजिए गुरुदेव..

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

यूं तो मै साँस भी लेता हूँ
तुम कहीं मुझे जड़ता न समझना .
उडती हुयी सुनी थी देखा उड़ते हुए आज ही

pallavi trivedi ने कहा…

समझ गए ..समझ गए शेयर मार्केट को. जो चीज़ इंसान नहीं समझा सके.....बंदरों ने सिखा दी! और इस कथा के बाद ये कविता...चौंका दिया आपने.

यूँ तो मैं
सांस भी लेता हूँ,
कहीं तुम मुझे......!!!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया जानकारी और ज्ञान पाया है इस पोस्ट से।
कविताएं बहुत अच्छी लगी।बधाई।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

कविता दोनोँ बहुत अच्छी लगीँ :)
- लावण्या

बेनामी ने कहा…

बढ़िया ! है बन्दरों की खरीद फरोख्त …

अगर कोई और खरीदार मिले तो बोलिये एक और खुला घूम रहा है … और खुलेआम टिप्पणिया भी कर रहा है …

बहुत अच्छा शतरंज का खेल था … आज खेल कर देखते हैं :) :)

बेनामी ने कहा…

बढ़िया ! है बन्दरों की खरीद फरोख्त …

अगर कोई और खरीदार मिले तो बोलिये एक और खुला घूम रहा है … और खुलेआम टिप्पणिया भी कर रहा है …

बहुत अच्छा शतरंज का खेल था … आज खेल कर देखते हैं :) :)

BrijmohanShrivastava ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

सब बन्दर हैं कि भेड़ ये तो पता नहीं मगर सब कुछ एक भेदियाधासान में परिणत होता जा रहा है ...ज्यादा पूंजी समूचे विश्व को एक जुएघर में तब्दील कर रही है...यह मुझमें कोफ्त पैदा कर रही है !!

sarita argarey ने कहा…

शेयर बाज़ार बेहाल है ।
लोग हुए कंगाल हैं ।
मगर प्रतिक्रियाओं के
मामले में आप हुए
मालामाल हैं ।
लंबे समय से हैं
नदारद
कहिए क्या
हालचाल हैं ?

"अर्श" ने कहा…

sameer ji bandar ki katha jordar hai aur santh me kavitayen wakai kya chhoti se kavita me aapne kayde sikha diye.... bahot khub umda...


regards
Arsh

सतीश पंचम ने कहा…

वैसे एक बात है, कि जो लोगों का पैसा बाजार मे नहीं लगा है या लगाने के लिये पैसे नहीं हैं, वही ज्यादा इतरा रहे हैं....आपकी कविता पर वाहवाही भी खूबकर रहे हैं.....मन ही मन कह भी रहे होंगे - अच्छा हुआ मैं बंदर पकडने गया ही नहीं....अपनी बंदरिया के साथ ही मस्त रहा :)
बहूत खूब रही ये - अथ श्री बंदरबांट कथा:)

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut-Bahut bdhai aapki bat bahut achi or sachhi ha ..padhkar bahut hi acha laga..likhte rahiye...

नदीम अख़्तर ने कहा…

स‌ाधुवाद इस पोस्ट के लिए, मुझे लगा कि मैं शेयर मार्केट को स‌मझ चुका हूं...

sandeep sharma ने कहा…

खुबसूरत

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

कविता और कथा और सामायिक चर्चा का विषय शेअर बढ़िया प्रस्तुति.

बेनामी ने कहा…

Bhai Sameer jee,Aapke ek bandar se
hee dar lag raha hai.Iske daant
hain ki khanzar?Aapne isko yahan
laa kar bithaa diyaa.Lakhon ko kata
hai isne aur lakhon ko katega.
kavitaayen saamyik hain.
Dheron badhaaeean.

सचिन मिश्रा ने कहा…

Bahut badiya. seyar bazar ki hakikat ka kulasa karne ke liye aabhar.

समीर यादव ने कहा…

समीर जी, ऐसा लगता है, शेयर मार्केट के शतरंजी बिसात पर 128 खाने होते है और प्यादों की पैदल सेना की जगह पर भीड़ ऊँट, घोड़ा नहीं, नहीं ....... गधों की होती है. बढ़िया.

abhivyakti ने कहा…

SHARE KI BHASHA APNE SAMJHA DI AUR DONO KAVITAON KE LIYE BAS EK HI SHABD HAI 'LAJAWAB'
-DR. JAYA

Unknown ने कहा…

जितनी तारीफ़ की जाय कम है.

बवाल ने कहा…

बिल्कुल ठीक उदाहरण दिया. शेयर बाज़ार ऐसा ही है.

बवाल ने कहा…

बिल्कुल ठीक उदाहरण दिया. शेयर बाज़ार ऐसा ही है.

Astrologer Sidharth ने कहा…

http://allastrology.blogspot.com/2008/01/blog-post.html


mere blog par kai maheeno pehele daali thi

isse pehle wahmoney ke liye kamal ji ko dee thi


ab aapke blog par dekh raha hoon

kai din se typhoid se jakda hua tha so aapke blog par aa nahin paaya

ab dekha hai so bata diya.

shuru main link diya hai wahaan poori kahani hai.

story reproduce karne ke liye shukriya.

शेरघाटी ने कहा…

bhai sahab aap kisi vishay ko hamlogon k liye bhi chhodenge


ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html
अपनी राय भी दें.

Udan Tashtari ने कहा…

सिद्धार्थ भाई

नमस्कार

आपकी टिप्पणी और सूचना के लिए आभार.

आप इस कथा को छाप चुके हैं, इसका मुझे कतई आभास न था.

मुझे तो यह अंग्रेजी में मिली थी ईमेल के द्वारा, जो कि मैने आलेख के अंत में लिखा भी है और आज आपके लिंक के बाद अभी मैने अपने उस मित्र से बात की, जिसने यह मेल मुझे भेजी थी.

उन्होंने मुझे cnbc का लिंक दिया, जहाँ उन्होंने इसे पढ़ा था.. http://www.cnbc.com/id/24935112 इस लिंक पर इसके ऑथर का नाम एक बड़े बिजनेस गुरु श्री श्रीनिवास बी एस को बताया गया है. क्या पता क्या सच है, मगर उनकी इस विषय पर पूरी किताब है, जिसका यह एक अंश है The Monkey Business by Srinivas BS of Bangaluru. शायद एमेजॉन पर उपलब्ध भी है. कृप्या मेरी जानकारी के लिए बताईयेगा क्योंकि आपके ब्लॉग को पढ़कर तो मुझे लगता है कि यह आपकी मौलिक रचना हैं क्योंकि वहाँ ऐसा कोई जिक्र नहीं है.

वैसे एक या दो ईमेल फारवर्ड ने ही मुझे आजतक इतना प्रभावित किया कि उन्हें हिन्दी में लिखकर पोस्ट करुँ किन्तु मैं यह अवश्य लिख देता हूँ कि मुझे ईमेल फारवर्ड से मिली अर्थात इसे मेरी मूल रचना न समझा जाये.

आशा है आपकी तबीयत में जल्द सुधार आयेगा और आप पुनः पूरे जोश खरोश के साथ लौटेंगे.

सादर शुभकामनाओं के साथ

समीर लाल

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

क्‍या बात है मजा आ गया आपकी दोनों कविताएं पढकर और डरा भी दिया जैसे ही पोस्‍ट खोली तो दोस्‍त की फोटो देखकर डर भी गया अच्‍छी रचना और दोस्‍त का फोटो के लिए आपको बारंबार बधाई

नीरज गोस्वामी ने कहा…

समीर जी....देख रहा था की ब्लॉग जगत में कौन ऐसा है जिसने इस पोस्ट पर टिपण्णी नहीं की है...पता चला की चिराग तले ही अँधेरा है याने मेरा ही नाम सूची में नहीं था जब की मैंने सबसे पहले इस पोस्ट पर टिपियाया था...कभी कभी ऐसा भी होता है...बन्दर लगता है माइक्रोसोफ्ट कम्पनी में भी हैं जो एक जगह की टिपण्णी दूसरी जगह जा लगते हैं...खैर...हमेशा की तरह लाजवाब पोस्ट...बधाई.
नीरज

betuki@bloger.com ने कहा…

कथा प्रासंगिक लगी। शेयर बाजार को पुराने समय में बुजुर्ग इसी लिये जुआ कहते थे। जुए में तो जीतने वाला भी दांव लगाता है और हारने वाला भी। हर किसी को अगली बाजी अपनी होती ही दिखती है। यही हाल शेयर धारकों का है। पूंजी बाजार में हर शेयर के बढ़ने की उम्मीद लगाये बैठना उसकी आदत हो गयी है।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपके बन्दर ने मजा दिला दिया और हमारे बन्दर (शेयर) धडाम हो गए.

बेनामी ने कहा…

While on 'Shatranj', I read something interesting sometime ago in one of the online forums. Might interest you:

quote:
है वक्त भी शातिर खिलाड़ी खेल पक्के खेलता है ।
शतरंज पे मौहरें बिछा कर, आगे-पीछे ठेलता है ।
हो कहीं भी प्यादा, घर बस एक ही चल पायेगा
घोडा बिदक ढाई चले, और ऊंट टेढ़ा जाएगा ।
रानियाँ हर देश में राजा पे खुद को वारतीं
परदेस में रह कर भी घर की सभ्यता नहीं हारतीं ।
unquote.

अवाम ने कहा…

सर आपका कोई जवाब नहीं है. बहुत ही अच्छी तरह से आपने एक साधारण कहानी से अमेरिका से आई वैश्विक मंदी को समझाया. कवितायों का तो कोई जवाब ही नहीं है. मैं भी अब कविता लिखने की कोशिश कर रहा हूँ. एकदिन मैंने दो कविताएँ लिखी. किसी दिन ब्लॉग पे लिखूंगा. फ़िर मिलते है..

adil farsi ने कहा…

समीर लाल जी सलाह देने के लिये घनयवाद...अथ श्री बन्दर कथा..व कविताऐ दोनो ही रोचक हैं बधाई

सुप्रतिम बनर्जी ने कहा…

आप उन लोगों में हैं, जिन्होंने मेरे ब्लॉग शुरू करने के शुरुआती दिनों में मेरी हौसला अफ़ज़ायी की थी। यकीन मानिए, तब मैं ना तो आपको जानता था और ना ही आपकी लेखनी को। लेकिन जैसे-जैसे आपका लिखा हुआ पढ़ रहा हूं, मेरी मुरीदी बढ़ती जा रही है। अब तो आपके ब्लॉग के पुराने पोस्टों पर मेरी नज़र है। नयों का इंतज़ार तो रहता ही है।

बेनामी ने कहा…

क्या सभी के लिए हो रहा है , इस वेबसाइट पर मौजूदा सामग्री वास्तव में लोगों के ज्ञान के लिए कमाल कर रहे हैं , ठीक है, अच्छा काम साथियों रखने .