मंगलवार, सितंबर 20, 2022

नीले पानी का पुल

पानी भी पुल बन जाता है
उस नदी के इस पाट पर
जहाँ मिलते हैं दो किनारे
उस नीले पानी के सहारे-
पानी भी पुल बन जाता है
गर तुम्हारी गहरी सोच को
तैराकी में महारत हासिल हो!!
वरना कई पानी पर चलते देवता
उसी नदी में समाधिस्त बैठे हैं।
नदी का तो बस काम है बहना
नदी आज भी अविरल बहती है!!
मगर हर नदी की गहरी तलहटी में
एक ठहरा हुआ अडिग तटस्थ थल है!!
वो कहीं नहीं जाता नदी के साथ
थमा हुआ साक्षी है असंख्य जलधाराओं का -
कोई उस नदी को माता पुकारे तो क्या?
कोई उस नदी को जलधारा पुकारे तो क्या?
-समीर लाल ‘समीर’
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3 टिप्‍पणियां:

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत गहराई लिए लिखी कविता।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह .... अद्भुत । नदी की तलहटी में स्थिर तठस्थ तल । गहन अभव्यक्ति।

Ramesh ने कहा…

Aati sunder https://thesahitya.com/