इस बार
देश में ऐसी भीषण गर्मी पड़ी कि अच्छे अच्छों की गरमी उतार कर रख दी.चुनाव की गरमी
उतरी और बस, सूरज महाराज ने कमान थाम ली. मीडिया से कहने लगे कि अब हमें कवरेज दो.
टीआरपी का मजा तुम लूटो और जबरदस्त कवरेज के कारण सेलीब्रेटी होने का मजा हम
लूटेंगे.
बस, फिर
क्या था मीडिया कवरेज देता चला गया सूरज महाराज के कहर को और उसी से उल्लासित सूरज
महाराज अपने कहर बेइंतिहा बरपाते चले गये. किसी को न बक्शा. गरीब को तो वैसे भी कौन
बक्शता है, सो सूरज महाराज ने भी उसको चौबीसों घंटे ऐसा परेशान किया कि खाना पीना,
घर से निकलना, दिहाड़ी कमा कर लाना सब बन्द हो गया. भूखे प्यासे न जाने कितने गरीब
लू की चपेट में आकर मर गये.
गरीब
पिटता है तो मध्यम वर्गीय और अमीर खुश होते हैं. मगर सूरज को अपने सेलीब्रेटी हो
जाने का ऐसा गुरुर चढ़ा कि जब जब मौका लगा, उनको भी नहीं बक्शा. बिजली चली जाये.
इन्वरटर बैठ जाये. कार से उतर कर मॉल में घुसने के बीच, जब जब भी पकड़ पाये, तबीयत
से भूना. गरीब को तो वैसे भी आदत होती है मार खाने की मगर जब मध्यम वर्गीय और अमीर
इस मार की चपेट में आता है, तो ऐसी चीख निकलती है कि सही मायने में लगता है कोई
पिटा. ऐसे में ही पिटाई की तरफ नजर भी जाती है.
फटाफट
जागृति आ जाती है. पेड़ लगाओ, धरा बचाओ. गरीब मरते रहे तब कोई न चेता. किसी ने नारे
नहीं लगाये कि पानी पिलाओ, खाना खिलाओ, गरीब बचाओ. मगर जैसे ही मध्यम वर्गीय और
अमीर समेटे में आये, सब जाग गये. मंदिरों में प्रसाद में पेड़ बटने लगे.पर्यावरण का
ख्याल तो रखना ही चाहिये मगर इतनी भीषण गरमी में, सभी पेड़ बांटने, लगाने और सेल्फी
निकलवाने और फेसबुक पर चढ़ाने में व्यस्य्त हो लिए. पेड़ लगाकर भर भर बाल्टी पानी डाला जाने लगा, ताकि आज से २० साल बाद हर
तरफ हरियाली होगी. हरित क्रांति हो जायेगी. झरने, नदियाँ, कुएँ, तालाब सब लबालब हो
जायेंगे. कहीं पानी की कोई किल्लत न होगी. यह जागृति सालों साल रहने की जरुरत है.
इतनी भीषण गरमी में पानी और खाने के आभाव में मर रहे लोगों पर ध्यान देने की तुरंत
जरुरत है. पेड़ दस दिन बाद बारिश आ जाने पर भी लग सकते हैं. सारी हरियाली इसके चलते
२० साल की जगह २० साल एक माह बाद आ जायेगी. क्या फरक पड़ेगा. आजतक तो हम इन्हें
काटने में ही व्यस्त थे.
कल
बारिश आ जायेगी. हम फिर भूल जायेंगे कि पाँच दिन पहले जो सूरज महाराज सेलीब्रेटी
थे, आज बादलों के पीछे मूँह छिपाये बैठे हैं. प्रसाद में पेड़ के बदले फिर से पेड़ा
बंटने लगेगा. एक दो संस्थायें जो नियमित इस प्रयास में लगन से जुटी हैं, उनको
छोड़कर बाकी सब कोई और फोटोऑप की गुजांईश तलाशने लगेंगे. कभी बाढ़ में फंसें लोगों
को खाने बांटते तो कभी सर्दी से ठिठुरते लोगों को कम्बल बांटते. सेल्फी खेंचूं
फेसबुकिया समाजसेवियों के लिए एक नहीं, हजार फोटोऑप हैं. ये बात वो अच्छी तरह
जानते हैं.
खैर,
सेलीब्रेटी होने में एक ही खराब बात होती है कि इसकी शेल्फ लाईफ भी बहुत थोड़ी सी
होती है, अपवाद तो खैर होते ही हैं. हर कोई तो अमिताभ नहीं हो जाता. सेलीब्रेटी
होने के साथ साथ कुछ परेशानियाँ भी आ जुड़ती हैं.
पहले जब
कोई सेलीब्रेटी अपनी स्टेटस के अनुरुप खरा नहीं उतरता था जैसे कि एक नामी पहलवान
जब अखाड़े में हार जाता था तो उसके चाहने वाले जबरदस्त हूट करते थे. उसे सिक्यूरिटी
बचा कर निकाल कर ले जाती थी और लोग घर आकर बताया करते थे कि फलनवा को दौड़ा लिहिस
जनता. आजकल उसी तरह सेलीब्रेटी को दौड़ा लिहिस का सोशल मीडिया वर्जन है ट्रोल कर
देना. इसे सेलीब्रेटी ऐसा मानने लगे हैं कि उनकी स्टेटस में चार चाँद लग गये हैं.
बदनाम हुए तो भी नाम तो हो लिया.
नीरज जी
होते तो इनकी हालत देखकर कहते:
सेलीब्रेटी
होना भाग्य है, ट्रोल हो जाना सौभाग्य ..
इसी
तर्ज पर न जाने सूरज के तांडव पर कितने कार्टून और चुटकुले बना बनाकर सूरज महाराज
को ट्रोल किया गया और वो इसे तारीफ मानकर कहर पर कहर बरसाते रहे.
सबके
अपने अपने दिन होते हैं. इस साल के लिए सूरज की सेलीब्रेटी स्टेटस की शेल्फ लाईफ
पूरी हुई.
अब समय
शुरु होता है बारिश का. उम्मीद यही करते हैं कि अच्छी बारिश हो और कम से कम बादलों
को सेलीब्रेटी बनने का चस्का न लग जाये. वरना फिर उसे भी ट्रोल किया जायेगा.
-समीर
लाल ’समीर’
चित्र साभार: गुगल
भोपाल से
प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून ९, २०१९ में:
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1 टिप्पणी:
Excellent narration og killing summer and depiction of plight of poor ved luxury of middle and upper class engaged in publicity of plantation in hostile conditions, which they may never look back as to whether the plants are able to sustain and grow. Excellent non-political satire!!!!
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