कल कलेक्टर साहब शाम को ही बोतल खोल कर बैठ गये.
कहने लगे कि आज जल्दी सोना है. सुबह ५ बजे से अंबेडकर मैदान में योगा डे की ड्यूटी
लगी है. वैसे भी जल्दी सोना और जल्दी जागना स्वास्थय के लिए बहुत लाभदायक है. ये
खासियत है हमारे देश की. अगर बिजली चली जाये तो हम अँधेरे के फायदे गिनाने लगते
हैं. २ पैग लगाये और फिर तो ऐसी ज्ञान वर्षा की कि मैं तो सुनते सुनते ही फिट
महसूस करने लगा.
कहने लगे कि मैं तो आज की शिक्षा प्रणाली से
सहमत नहीं हूँ. हमारे वक्त में स्कूल में हमें हफ्ते में जहाँ दो दिन पीटी कराई
जाती थी, वहीं हर दिन पीटा भी जाता था. उससे मांस पेशियाँ मजबूत होती थी. कम से कम
तीन दिन ३० -३० मिनट मुर्गा बनने से खून का प्रवाह ठीक रहता था. हाल ही में एक
अमेरीकन वैज्ञानिक ने शोध करके बताया कि कान पकड़ कर उठक बैठक करने से न सिर्फ
दिमाग तेज होता है वरन अल्ज़ाईमर जैसी बीमारियों से भी बचाव होता है. हम तो हर रोज
किसी न किसी पीरियड में ५० -५० उठक बैठक लगाते पाये जाते थे. कितनी बार स्कूल के
पूरे मैदान के १० चक्कर लगाने के लिए मास्साब भेजा करते थे.
सुनते सुनते मूँह से निकल गया कि सर!! इसका
मतलब तो यह लग रहा है कि आप स्कूल के जमाने में बहुत बदमाश रहे होंगे?
कहने लगे- अरे नहीं, वह तो सब बाल सुलभ
नादानियाँ थीं. तब जरुर लगता था कि बेवजह छोटी छोटी बातों पर मास्साब सजा दे रहे
हैं मगर अब जाकर पता चला कि वह तो हमें स्वास्थय दे रहे थे. हमसे योगा करवा रहे थे
ताकि हमारी उर्जा सही दिशा में प्रवाहित की जा सके. धन्य थे वो शिक्षक. इतना कहते
कहते कलेक्टर साहब भावुक हो गये और उनका गला रुँध आया. शायद यह तीसरे पैग का असर
था कि उनकी आँखें नम थी और वह अपने पाठशाला के मास्साब को याद कर रहे थे. याद करते
हुए उन्होंने अपनी तोंद पर याद फिराया और कहने लगे कि उनके बाद किसी ने मेरे
स्वास्थय की परवाह न की. स्कूल क्या छूटा जैसे स्वास्थय वहीं छूट गया हो.
मैने उनको याद दिलाया कि सर, कल ५ बजे आपको
अंबेडकर मैदान पहुँचना है. मगर वो अब मूड में आ चुके थे. मेरी मर्जी मैं जब
पहुँचू, कोई मेरा क्या कर लेगा? वो ४ था पैग बना कर शुरु हो गये अंबेडकर जी गुणगान
करने. इनके कारण आज मैं कलेक्टर हूँ. बहुत सम्मान है इनके प्रति मेरे दिल में.
इन्होंने ही हम दलितों को समाज में सही स्थान दिलाया. यह मेरा सौभाग्य है कि कल
मैं अंबेडकर मैदान में योगा डे में सम्मलित हूँगा. तब जाकर समझ आया कि स्कूल के
दिनों का इतना बदमाश बालक आज कलेक्टर कैसे बना.
उसके बाद उन्होंने योगा के फायदे गिनाये. कई
आसान हाथ से पोज बनाकर समझाये. चौथा पैग भी खात्मे की तरफ ही था. अतः उनकी जुबान
भी कई बार योगा पोज बना कर लचक कर लड़खड़ा जा रही थी. टेबल से गिलास उठाने और रखने
में ऐसा लगता कि ऐसा पोज तो रामदेव भी न लगा पायें. फिर उन्होंने यह ज्ञान भी दिया
कि योगा करने के लिए कहीं जाने की या कुछ करने की जरुरत नहीं है.
योगा जीवन शैली है. आप कुर्सी पर बैठे हो,
बिस्तर पर सोये हो, नहा रहे हो, खाना खा रहे हो, टीवी देख रहे हो. बस ऑपर्च्युनिटी
खोजो. अगर आप ध्यान से सजगता के साथ मौका तलाशोगे तो हजारों पोज बनाने के मौके हाथ
लगेंगे. बस हो गया योगा. इतनी गर्मी पड़ रही है. ऑपर्च्युनिटी है इसमें भी. फटाफट
हॉट योगा कर लो. इसे कोसो मत. विदेशों में लोग हीटर लगा कर इतनी गर्मी पैदा करते
हैं हॉट योगा करने के लिए. वाटर योगा, स्लीपिंग योगा, ईटिंग योगा, टॉकिंग योगा,
वाचिंग योगा, लॉफिंग योगा. अवसर ही अवसर चौतरफा फैले पड़े हैं. बस जरुरत है आपको
आँख खुली रखने की और मौके पर पोज़ बनाकर सेल्फी उतारने की. बिना सेल्फी के सभी योगा
बेकार हैं, यह बात गांठ बांधने योग्य है.
यह बताते बताते साहब की आँख धीरे धीरे मुँदती
जा रही थी. वो स्लीपिंग योगा मोड में जा रहे थे शनैः शनैः. अंतिम कुछ वाक्य जो लड़खड़ाती
जुबान से ठीक ठीक सुनाई नहीं दिये वो शायद रोजगार के अवसर, इनोवेशन और आर्टिफिशियल
इन्टेलिजेन्स जैसे मसलों को योगा के जोड़कर सोचने पर गंभीर बयान थे. सुबह तक तो
उनको याद भी न रहेगा वरना पूछ कर क्लियर कर लेते.
उन्होंने
किसी तरह ईटिंग योगा के तहत मुर्गा मटन दबाकर खाया और गेस्ट हाऊस में कमरे में सोने
निकल लिए.
सुबह सुबह अंबेडकर मैदान जावेंगे. खादी की मैट
पर एडीडास का योगा ऑउटफिट पहन कर जमीन पर बैठ पाने की अवस्था उनकी है नहीं. तोंद
आड़े आ जाती है. अतः उन्होंने पार्किग व्यवस्था का जिम्मा अपने सर ले लिया है. शाम
को उन्हें मुख्य मंत्री के कर कमलों से विश्व योगा दिवस पर सम्मलित होने हेतु एक
प्रमाण पत्र दिया जायेगा एवं योग के प्रचार प्रसार में उनके योगदान हेतु उन्हें
सम्मानित किया जायेगा. इस अवसर पर मुख्यमंत्री के साथ उनकी तस्वीर खींची जायेगी जो
कि कलेक्टर साहब अपने दफ्तर में ले जाकर टागेंगे. इससे उनके मातहत और शहर की जनता
योग हेतु प्ररित होगी.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के
रविवार जून २३, २०१९ में
चित्र साभार: गुगल
3 टिप्पणियां:
An excellent presentation of a naughty child growing into collector through socio-economic equalization policy, yet unable get out of old habits. But,, choosing a way out to get appreciation......
सेल्फी योगा का ज़माना है, सेल्फी बिना जीवन ही बेकार है। जान चली जाए पर सेल्फी ज़रूर खींची जाए😊. बढ़िया, जबरदस्त, शानदार लेखन
सेल्फी योगा का ज़माना है, सेल्फी बिना जीवन ही बेकार है। जान चली जाए पर सेल्फी ज़रूर खींची जाए😊. बढ़िया, जबरदस्त, शानदार लेखन
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