शनिवार, फ़रवरी 02, 2019

महापुरुष कर्मों से बनते हैं, षणयंत्रों से नहीं




पहले के जमाने में एक बार आप महापुरुष घोषित हो लिए तो फिर सर्वमान्य एवं सर्वकालिक महापुरुष होते थे. मरणोपरांत महापुरुष के नाम पर सड़क का नाम रखा जाता था और उनकी मूर्ति चौराहे पर लगा दी जाती थी. हालांकि महापुरुषों की चौराहे पर लगी मूर्ति पर तब कबूतर आकर बैठते और बीट किया करते थे. मगर परिंदे नादान होते हैं अतः उन्हें माफ कर देने की प्रथा रही है. कबूतरों की बीट से सने महापुरुषों की मूर्तियों को आमजन उतने ही श्रद्धा से नमन करते थे, जितना कि वह उन महापुरुषों के जन्म दिवस और पुण्य तिथि पर नहला धुला कर साफ सुथरी की गई मूर्ति के माल्यर्पण के दौरान करते. वो दौर सेल्फी का नहीं था मगर ऐसे विशिष्ट महापुरुषों के कर्म और उनकी मूर्तियों की छबी हर दिलों दिमाग में अंकित रहती.
लोग उनकी प्रतिमा को देख और उनके सदकर्मों के बारे में पढ़कर उनसे प्रेरणा प्राप्त करते और दिल में एक चाह रहती कि मैं भी उनके पदचिन्हों पर चल कर एक दिन महापुरुष बनूँ.
परीक्षा में जब महापुरुष पर निबंध लिखने को आता तो तय रहता था कि ९०% बच्चे तो महात्मा गाँधी पर लिखेंगे ही. बाकी स्वामी विवेका नन्द, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्र शेखर आजाद, भगत सिंह, रविन्द्र नाथ टैगोर, अंबेडकर, नेहरु, सरदार पटेल, सावरकर आदि आदि. अनेक महापुरुष होते थे. उनको महापुरुष मानना है, या नहीं मानना है, ऐसा कोई विवाद न था. सबका सम्मान करना सभी अपना धर्म समझते थे. निबंधों की पुस्तक में सभी पर निबंध होते.
एकाएक देखते देखते जाने क्या हुआ कि नये महापुरुष बनना ही बंद हो गये. पिछले कितने सारे दशकों में कोई नया महापुरुष आया ही नहीं एक दो अपवाद छोड़ दें तो. कलाम साहब, अटल जी वैसे ही अपवाद कहलायेंगे.
महापुरुष न तो पैदा होते हैं, न ही किसी फेक्टरी में बनाये जाते हैं. वे तो अपने समाज के प्रति संपूर्ण समर्पणभाव से बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के त्याग भावना के साथ कुछ ऐसा कर गुजरते हैं कि उन्हें जन जन महापुरुष मान लेता है.  
तिवारी जी से घंसू जानना चाह रहा है कि आजकल महापुरुष बन क्यूँ नहीं रहे हैं?
तिवारी जी ने स्वच्छता अभियान को धता बताते सड़क पर पान की पीक मारी और कहने लगे कि बन काहे नहीं रहे हैं? हम तो खुद ही महापुरुष मटेरियल हैं. हमने समाज को कितना ज्ञान दिया है. कितनी समस्यायें बिना किसी लाभ के यहीं पान की दुकान पर बैठे सुलझाई हैं. आज ये मोहल्ला जो भी है वो हमारे कारण ही हैं. दरअसल महापुरुष तो बन रहे हैं, उनको पहचनाने वाले बनना बंद हो गये हैं.
इसी पहचानने वालों के अकाल ने ही तो मजबूर कर दिया है कुछ लोगों को कि महापुरुष कहलवाना है तो कोई और रास्ता एख्तियार करो. खुद ही कोशिश कर स्वयंभू महापुरुष बनो.
नये जमाने के महापुरुष बनने के अभिलाषी जान गये हैं अपनी सीमायें. अब उन्हें पता है कि वो एक खिंची हुई लाईन से बड़ी लाईन खींचने की क्षमता नहीं रखते हैं अतः उनके पास बड़ा होने के लिए मात्र एक विकल्प है. पहले से खिंची हुई लाईन को मिटा कर छोटा करना ताकि वह उससे बड़े नज़र आने लगें और लोग भ्रमित होकर उन्हें महापुरुष मान लें. भ्रम का मकड़जाल फैलाने की महारत तो हासिल है ही.
इसी कवायद में पुराने महापुरुषों को गलत ठहराने का अभियान चलाने की परम्परा चल निकली है, ताकि उनको महापुरुषों की सूची से अलग किया जा सके. उनकी मूर्तियाँ तोड़ी जा रही हैं. उनकी तारीखें इतिहास और पाठयक्रम में बदली जा रही हैं.
कोई इनको कैसे समझाये कि किसी महापुरुष को महापुरुषों की सूची से निकाल कर आप महापुरुष नहीं बन सकते. महापुरुषों की सूची कोई संसद की सीटें नहीं कि सीमित हों. एक को अलग करो तब ही दूसरा आयेगा.
महापुरुष कर्मों से बनते हैं, षणयंत्रों से नहीं.
सेल्फी और डॉक्टर्ड विडियो से अगर महापुरुष बनते होते तो अब तक लाखों फेसबुकिया महापुरुष का दर्जा पा गये होते. हालांकि वो सोचते तो यही हैं कि वे महापुरुष हो गये हैं और इस चक्कर में वो पुरुष भी नही रह गये हैं.
पाउट काढ़ कर भला कोई पुरुष सेल्फी खिंचवाता है क्या?
-समीर लाल समीर
 
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में सोमवार फरवरी ३, २०१९ को:
http://epaper.subahsavere.news/c/36363231



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4 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Beautifully brought out changing modes of MAHAPURUSH and that it is neither a product nor a result of a conspiracy. It is rightly said that they are the making in real life, beyond self, lived by one.

Awaiting next article

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-02-2019) को चलते रहो (चर्चा अंक-3237) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

जब सब रेडीमेड मिलने लगा है ,हर जगह शार्टकट हैं तो तो महापुरुष बनने की प्रक्रिया में ,कर्म करें(पता नहीं कोई संज्ञान ले या नहीं)तो आखिर कब तक ?लोगों के समझने-समझाने में सारी उम्र बीत जायेगी .तो फिर शार्टकट अपनना क्या गलत ?