मंत्री बनने के बाद ’सामाजिक व्यवस्था एवं उसके प्रभाव’ विषय पर संगोष्ठी में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने कनाडा का
दौरा किया.
आख्यान सुन कर पता चला कि
समाज में कोई अपराध भावना से न ग्रसित हो इस हेतु कुछ बरस पहले सरकार ने
राजमार्गों पर स्पीड लिमिट को १०० से बढ़ाकर १२० किमी प्रति घंटा करने का प्रस्ताव
रखा. सरकार ने अपने सर्वेक्षण
से जाना था कि ९० प्रतिशत लोग १२० पर गाड़ी चलाते हैं और पुलिस भी उस सीमा तक उनको
नजर अंदाज कर जुर्माना नहीं लगाती. आम जन के बीच जब यह
प्रस्ताव आया तो आमजन ने इसे नहीं स्वीकारा. उनका मानना था कि
अगर स्पीड लिमिट बढ़ा कर १२० कर दी गई तो लोग १४० पर गाड़ी चलाने लगेंगे और यह पूरे
समाज के लिए घातक सिद्ध होगा. सरकार ने समझा और स्पीड
लिमिट यथावत १०० किमी प्रति घंटा जारी रखी.
दूसरे आख्यान में बताया कि
लोग पार्क और पब्लिक प्लेस में बीयर पीते हैं जो कि गैर कानूनी है मगर लोग कोक की
बोतल, चाय के गिलास आदि में फिर
भी पीते ही हैं. पिकनिक मनाने निकले हैं अतः
थोड़ा बहुत एन्जॉय करेंगे ही. सरकार ने अहसासा कि लोग
आखिर पी रहे ही हैं मगर अपराध भाव से ग्रसित छिप छिपा कर अतः तय हुआ कि एक सीमा रेखा
तक इसे कानूनी कर दिया जाये. लोग भी तैयार हो गये और अब
तैयारी है पार्कों में सरकारी ट्रक से एक सीमित मात्रा में बीयर खरीद कर पीने को
कानूनी मान्यता देने की.
ऐसे ही आख्यान सुनते सुनाते
मंत्री जी ज्ञान चक्षु खुल गये. कनाडा आने का हेतु भी यही
था.
भारत लौट कर उनके दिमाग में
एक नुस्खा घूम रहा था कि एक बहुत बड़ा वर्ग जिसमें नेता से लेकर सरकारी अधिकारी सभी
शामिल हैं, उन्हें घूसखोरी और
भ्रष्टाचार जैसे अपराधबोध से कैसे मुक्त कराया जाये? भ्रष्टाचार से मुक्ति हो नहीं पा रही तो अपराध बोध से ही
मुक्ति का कोई मार्ग खोजा जाये.
विदेश से सीखी सीख विशेष
मायने रखती है. कमेटी बना दी गई है कि कैसे
घूस शब्द को ही शब्दकोश से अलग कर दान में परिणत किया जाये एवं कार्यों एवं सेवा
के आधार पर पाँच परसेन्ट दान सुनिश्चित किया जाये ताकि उतना दान लेना कानूनी रुप
से मान्य कहलाये.
देने वाला भी दान दे कर
धन्य और पाने वाला तो यूँ भी खुद को भगवान माने बैठा ही था मगर अब इत्मिनान से दान
स्वीकार कर अपना आशीष प्रदान करेगा.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह
सवेरे के शुक्रवार २२ सितम्बर, २०१७ में:
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
3 टिप्पणियां:
बढ़िया.. हा हा... मंत्री जी ने कुछ तो सीखा....
साधू साधू
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-09-2017) को "अहसासों की शैतानियाँ" (चर्चा अंक 2736) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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