रविवार, अगस्त 18, 2013

पूर्ण विराम: एक कहानी

सुनिये मेरी कहानी- मेरी आवाज़!!

मेरी कहानी: मेरी आवाज़!!

मुझे नहीं, वो मेरी लेखनी पसंद करती है.

मुझसे तो वो कभी मिली भी नहीं और न ही कोई वजह है कभी मिलने की? मगर एक अजब सा रिश्ता कायम हो गया है आसमानी सा.

जानता हूँ, कुछ रिश्ते उस ओस की बूँद से होते हैं जो हकीकत की तपती धरती को छूते ही अपना वज़ूद खो देते हैं. बस, मैं इन अहसासों के रिश्ते को जिन्दा रखना है तो उन्हें आसमानी ही रहना होगा.

जितना भी मुझे वो जानती है, वो मेरे लेखन से.

हाँ, कुछ पत्रों के माध्यम से हुई बातचीत भी जरिया बनी -एक दूसरे के बारे में कुछ और जान लेने का.

मगर जाने क्यूँ- उसे लगता है कि वो मुझे जानती है सदियों से. एक अधिकार से अपनी बात कहती है.

मेरी लेखनी से गुजर कर पूछती कि तुम कौन से स्कूल से पढ़े हो, जहाँ पूर्ण विराम लगाना नहीं सिखाया जाता? तुम्हारे किसी भी वाक्य का अंत पूर्ण विराम से क्यूँ नहीं होता ’।’ ..

हमेशा कुछ बिन्दियों की लड़ी लगा कर वाक्य समाप्त करते हो. वाक्य पूरा जाने के बावजूद भी इन्हीं बिन्दियों की वजह से लगता है कि जैसे अभी बहुत कुछ... और भी कहना चाहते थे मगर कह नहीं पाये.. बिल्कुल उन अनेकों जिन्दगियों की तरह जो अपने आप में पूरी होकर भी.. न जाने क्यूँ अधूरी अधूरी सी लगती हैं.

खैर, यह बात तो उसने... शायद मेरी गलती की तरफ... मेरा ध्यान आकर्षित करने के लिए कही होगी.

मगर ऐसा नहीं है कि मैं पूर्ण विराम लगाना जानता नहीं, लेकिन न जाने क्यूँ ...मुझे पूर्ण विराम लगाना पसंद नहीं. न तो अपनी जिन्दगी की किसी बात में और न ही अपनी जिन्दगी के प्रतिबिम्ब - अपने लेखन के किसी वाक्य में.

मुझे लगता है- सब कुछ निरंतर जारी है. पूर्ण विराम अभी आया नहीं है और शायद मेरी जैसी सोच वालों के लिए.. पूर्ण विराम कभी आता भी नहीं..कम से कम खुद से लगाने के लिए तो नहीं. जब लगेगा तब मैं कहाँ रहूँगा उसे जानने के लिए.

कहाँ कुछ रुकता है? कहाँ कुछ खत्म होता है?

जब हमें लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया, तब भी कुछ तो बाकी रहता ही है.

कोई न कोई एक रास्ता..बस, जरुरत होती है उसको खोज निकालने के लिए..एक सच्ची चाहत की, एक जिन्दा उम्मीद की... और एक इमानदार कोशिश की.

कभी कहा था मैने:

इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है

अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है

अजब इन्सान का चेहरा है हमेशा यूँ ही दिखता है

अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

मैं उसे बताता अपनी सोच और फिर मजाक करता कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा हूँ, इसलिए पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई की जगह बिन्दी लगा देता हूँ..बिन्दी ही क्यूँ...बिन्दियों की लड़ी .....लगता कि वो खिलखिला कर हँस पड़ होगी मेरी बात सुन कर. उसे तो मैं पहले ही बता चुका था कि हिन्दी स्कूल से पढ़ा हूँ.

वो खोजती मेरी वर्तनी की त्रुटियाँ, वाक्य विन्यास की गलतियाँ और लाल रंग से उन्हें सुधार कर भेजा करती.

मैं उसे मास्टरनी बुलाता ...तब वो सहम कर पूछती कि क्या लाल रंग से सुधारना अच्छा नहीं लगता आपको?

मैं मुस्करा कर चुप रह जाता...

बातों ही बातों में अहसासता कि वो जिन्दगी को बहुत थाम कर जीती है, बिना किसी हलचल के और मैं नदी की रफ्तार सा बहता...

मुझे एक कंकड़ फेंक उस थमे तलाब में हलचल पैदा करने का क्या हक, जबकि वो कभी मेरा बहाव नहीं रोकती.

अकसर जेब में सहेज कर रखी कुछ पुरानी यादों की ढेरी से... एक कंकड़ हाथ में ले लेता..उसे उसी तालाब में फेंकने को... फिर जाने क्या सोच कर रुक जाता फेंकने से..और रम जाता..मैं अपने बहाव में.

सब को हक है अपनी तरह से जीने का...

लेकिन पूर्ण विराम...वो मुझे पसंद नहीं फिर भी...

थमे ताल के पानी में

एक कंकड़ उछाल

हलचल देख

मुस्कराता हूँ मैं...

ठहरे पानी में

यह भला कहाँ मुमकिन...

फिर भी

बहा जाता हूँ मैं!!

-समीर लाल ’समीर’

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36 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (19-08-2013) बहन की गुज़ारिश : चर्चामंच1342 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अनुपमा पाठक ने कहा…

पूर्णविराम लगना भी नहीं चाहिए कभी इतनी सुन्दर यात्रा में… इतने हृदयस्पर्शी सृजन में !
बहुत सुन्दर!!!

Regards,

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत सुन्दर मनोभाव का चित्रण है... फुल स्टाप वाक्य का तो हो सकता है लेकिन मनुष्य की सोच का कभी नहीं.

poonam ने कहा…

पूर्णविराम नहीं लगाता...क्योंकि शायद रुकता नहीं विचारों का तांता ...शायद मन मे इतना कुछ उमड़ - घुमड़ रहा होता है कि लगता है कि विराम की आवश्यकता नहीं ..... अक्सर मैं भी विराम नहीं लगाती ......... :)

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

हमें तो किसी और द्रव का प्रभाव लग रहा है, पानी का नहीं :)
लिखते रहिये ...

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

सत्य वचन !

लिखते रहिये ..

Satish Saxena ने कहा…

..
कैसे बिना तुम्हारे, घर में
रचना का श्रंगार कर सकूं
रोली,अक्षत हाथ में लेकर
छंदों का सत्कार कर सकूं
कल्याणी स्वागत करने को,ढफली लेकर आये गीत !
सिर्फ तुम्हारे ही हाथों में,प्यार से सौंपे,अपने गीत !

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

ज़िन्दगी ऐसी ही है-अबूझ,अविराम.पूर्ण विराम के लिए बिन्दु मुझे भी अच्छा ऑप्शन लगता है!

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

बह गये हम भी ठहरे पानी में ,
बीती बातों की इस कहानी में,
'पूर्ण' करना नही 'विराम' अभी,
कि मज़ा आ रहा रवानी मे.…

http://mansooralihashmi.blogspot.com

दीपक बाबा ने कहा…

यहाँ सुनी जा सकती है...

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत बढिया.. समीर जी..

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बेहतरीन कहानी, और पाडकास्ट का प्रयोग भी अनूठा लगा.

रामराम.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत खूब

मुझे भी ऐसा ही लगता है कि जिंदगी का पूर्ण-विराम अभी नहीं आया

चलना होगा यूँ ही निरंतर ....नदी के दो किनारों की तरह ...चुप-चाप...शांत सा

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुती, आभार।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

जब गूगल ट्रांसलिट्रेसन पर टाइप करते थे, तो हम तो तब यह पूर्ण विराम इधर उधर से कट पेस्ट करके लगाते थे, वरना संबोधन चिन्ह (!) से ही काम चलना पड़ता था :)

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है

अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है

lori ने कहा…

aafreen! aafreen!!

lori ने कहा…

aap ne suna hoga:
"thahre hue paani me, kankar na maar..." kitna khubsoorat likhte ho!

Ankur Jain ने कहा…

लाजबाव...

Khushdeep Sehgal ने कहा…

इन उम्र से लंबी सड़कों को,
मंजिल पे पहुंचते देखा नहीं...
बस दौड़ती फिरती रहती हैं,
हमने तो ठहरते देखा नहीं ...

जय हिंद...

PRAN SHARMA ने कहा…

Bhai Sameer ji , aapkee lekhni
jaadoo bikher rahee hai .

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

आदरणीय समीर जी! आपकी लेखनी ही नहीं, आपकी आवाज भी सुरीली बासूरी के साथ जादू बिखेर रही है.. लेखनी की यात्रा चलती रहे ... और बिंदुओं का प्रक्रम चलता रहे... सादर

Ramakant Singh ने कहा…

थमे ताल के पानी में

एक कंकड़ उछाल

हलचल देख

मुस्कराता हूँ मैं...

ठहरे पानी में

यह भला कहाँ मुमकिन...

फिर भी

बहा जाता हूँ मैं!!

आँखें भर आई बेहतरीन किन्तु दरद को समेटे कहाँ से सहेजे बैठे हो कट तलक

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut hatkar thi aapki ye kahnai kafi alag si thami jheel men kankar fenkar lahron se javab ka intjaar karti si...bahut 2 badhai gahara sochte rahiye..

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut hatkar thi aapki ye kahnai kafi alag si thami jheel men kankar fenkar lahron se javab ka intjaar karti si...bahut 2 badhai gahara sochte rahiye..

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut hatkar thi aapki ye kahnai kafi alag si thami jheel men kankar fenkar lahron se javab ka intjaar karti si...bahut 2 badhai gahara sochte rahiye..

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut hatkar thi aapki ye kahnai kafi alag si thami jheel men kankar fenkar lahron se javab ka intjaar karti si...bahut 2 badhai gahara sochte rahiye..

vijay kumar sappatti ने कहा…

भगवन् , इतना अच्छा अच्छा लिखोगे तो हम बच्चो का क्या होंगा सोचो तो ..

दिल से बधाई स्वीकार करे.

विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, बड़ा ही रोचक संवाद। पूर्णविराम लगा देने से शब्द दूसरे वाक्यों में नहीं पहुँच पाते हैं, डर रहता है कहीं एक दूसरे से असंबद्धता का भेद न खोल दें। आपका प्रवाह अनवरत रहता है, बिन्दी को लाँघ कर शब्द इधर उधर पहुँच भी गये तो क्या हानि।

ashok andrey ने कहा…

bahut hee gehri tatha sundar prastuti,jo man ko chhuti chali gaee.

ashok andrey ने कहा…

bahut hee gehri tatha sundar prastuti,jo man ko chhuti chali gaee.

sourabh sharma ने कहा…

आप हिंदी के सबसे अच्छे ब्लॉगरों में से एक हैं।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…



पूर्ण विराम...
वो मुझे पसंद नहीं
फिर भी...
थमे ताल के पानी में एक कंकड़ उछाल हलचल देख मुस्कराता हूं मैं...
ठहरे पानी में यह भला कहां मुमकिन...
फिर भी बहा जाता हूं मैं !!

वाऽहऽऽ…!

प्रियवर ’समीर’जी
आपकी लेखनी हमेशा ज़ादू बिखेरती ही मिली है...
संगीत के साथ आपका कहानी-वाचन सुना , लेकिन अभी पुनः सुनूंगा , क्योंकि नेट स्पीड के कारण बाधा आ रही है...

निरंतर श्रेष्ठ सृजन हेतु साधुवाद !

हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार

I-Vedam ने कहा…

bahut gehri, bhaavyukt kahani hai.

Archana Chaoji ने कहा…

एक यादगार कहानी ....

Unknown ने कहा…

विश्वास और अन्धविश्वास के बारे में प्रायोगिक अनुभव बांटने के लिए लिखा गया ब्लॉग (हिंदी में ), पढते रहिये -
१- मेरे विचार : renikbafna.blogspot.com
२- इन सर्च ऑफ़ ट्रुथ / सत्य की खोज में - renikjain.blogspot.com
द्वारा - रेणिक बाफना , रायपुर (छ .ग .), भारत