याद करो वो रात..
वो आखिरी मुलाकात..
जब थामते हुए मेरा हाथ
हाथों में अपने
कहा था तुमने...
लिख देती हूँ
मैं अपना नाम
हथेली पर तुम्हारी
सांसों से अपनी ...
फिर ...
कर दी थी तुमने..
अपनी हथेली सामने मेरे ..
कि लिख दूँ मैं भी
अपना नाम उस पर
सांसों से अपनी.....
कहा था तुमने...
सांसों से लिखी इबारत..
कभी मिटती नहीं..
कभी धुलती नहीं..
चाहें आसूँओं का सैलाब भी
उतर आये उन पर..
वो दर्ज रहती हैं
खुशबू बनी हरदम.. हर लम्हा...
साथ में हमारे.....
आज बरसों बाद जब...
बांचने को कल अपना...
खोल दी है मैने.... मुट्ठी अपनी.....
तब...हथेली से उठी...
उसी खुशबू के आगोश में...
ए जिन्दगी!!..
एक बार फिर .....अपने बहुत करीब....
अहसासा है तुम्हें!!....
“मैं ज़िन्दगी की किताब में, यूँ अपना पसंदीदा कलाम लिखता हूँ..
लिख देता हूँ तुम्हारा नाम, और फिर तुमको सलाम लिखता हूँ......”
-समीर लाल ’समीर’
सुनें इसे मेरी आवाज़ में:
40 टिप्पणियां:
बहुत खूब ...
ह्रदयस्पर्शी!
आपने लिखा....
हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 07/08/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
जरूर लिखो सलाम
कलाम पर पहले खिलाओ
फीके वाले मीठे आम।
आहा, क्या खूबसूरत सलाम करते हैं आप।
कौन न लट्टू हो जाए।
एक सुहानी सुबह का आनन्दमयी उपहार आपकी यह कविता।
हृदयभेदी
लिख कर तेरा नाम ज़मीं पर,
उसको सजदे करता है,
लैला-लैला करता है...
जय हिंद...
अपने क़लाम में सलाम लिक्खा-
अच्छा किया उसी के नाम लिक्खा!
अहा.............
बहुत सुन्दर!!!
सादर
अनु
bahut touching hai aapki ye rachna bahut 2 badhai..
आपकी यह रचना कल बुधवार (07
-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 78 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
बहुत खूब समीर भई ... ये खुशबू यूं ही बसी रहे ...आमीन ...
Wah! Hameshaki tarah beinteha khoobsoorat rachana!
bahut sundar , padha aur suna donon .
dhanya hue ham.
लाज़वाब अहसास....
'सलाम' अब कहां है सर
बहुत खूबसूरत अहसास।
बेहतरीन प्रयोग .... अच्छा लगा सुनना ..
bahut sundar sir ji... :)
वाह वाह, लाजवाब.
रामराम.
काव्य पाठ भी बहुत सुंदर, शुभकामनाएं.
रामराम.
खूब भालो !
लिख देती हूँ
मैं अपना नाम
हथेली पर तुम्हारी
सांसों से अपनी ...
हे भगवान, आप कवि लोग इतना महीन कैसे सोच लेते हो , मुझे तो ईष्या होने लगती है
हृदयस्पर्शी कविता और भावप्रबल कविता पाठ ...!!
ए जिन्दगी!!..
एक बार फिर .....अपने बहुत करीब....
अहसासा है तुम्हें!!....
“मैं ज़िन्दगी की किताब में, यूँ अपना पसंदीदा कलाम लिखता हूँ..
लिख देता हूँ तुम्हारा नाम, और फिर तुमको सलाम लिखता हूँ.....
अभिभूत हूँ आपके प्रेम से अद्भुत
बहुत बढ़िया बात कही !
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
latest post,नेताजी कहीन है।
बहुत सुन्दर भावभरी रचना है !
आपकी आवाज में पहली बार सुन रही हूँ
बहुत अच्छी लगी … आभार !
वाह बहुत खुबसूरत अहसास..मेरे बलांग पर आकर हौसला बढ़ाने के लिए आप का बहुत बहुत आभार समीर जी..
अपना हाथ किसी ने थामा नहीं..कहा नहीं लिख दो अपना नाम...पर अहसास रहा है आखिर तक रहेगा..कि काश तुम ...काश...
बेहतरीन अहसास ..सलाम आपको
“मैं ज़िन्दगी की किताब में, यूँ अपना पसंदीदा कलाम लिखता हूँ..
लिख देता हूँ तुम्हारा नाम, और फिर तुमको सलाम लिखता हूँ......”
बहुत खूब अहसास.
तब...हथेली से उठी... उसी खुशबू के आगोश में... ए जिन्दगी!!.. एक बार फिर .....अपने बहुत करीब.... अहसासा है तुम्हें!
तब...हथेली से उठी... उसी खुशबू के आगोश में... ए जिन्दगी!!.. एक बार फिर .....अपने बहुत करीब.... अहसासा है तुम्हें!
Bahut sunder.
dil ko chhuti hui, pyari si rachna..:)
वन्दे मातरम् !!
khoobsurat!
khyaal ki tazagi, aur ehsaasson ki taraawat ke saath, shabdon me anokha pryog bhi hai yah nazm. Lafz 'ehsaasaa' kafi khubsoorat ban pada hai.....
apki awaz 'Masha'Allah"
bahtu hi pyaraa
-Lori
अब कुछ कहने के लिए शब्द ही नहीं है जी ...
दो बार तो पढ़ ही लिया है ..
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
मीठे अहसास से भरी कविता
आपकी ये बेहतरीन कविता "संकलन" में साभार !
बहुत खुबसूरत अहसास..मेरे बलांग पर आकर हौसला बढ़ाने के लिए आप का बहुत बहुत आभार समीर जी..
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