एक अंगारा उठाया था कर्तव्यों का
जलती हुई जिन्दगी की आग से,
हथेली में रख फोड़ा उसे
फिर बिखेर दिया जमीन पर...
अपनी ही राह में, जिस पर चलना था मुझे
टुकड़े टुकड़े दहकती साँसों के साथ और
जल उठी पूरी धरा इन पैरों के तले...
चलता रहा मैं जुनूनी आवाज़ लगाता
या हुसैन या अली की!!!
ज्यूँ कि उठाया हो ताजिया मर्यादाओं का
पीटता मैं अपनी छाती मगर
तलवे अहसासते उस जलन में गुदगुदी
तेरी नियामतों की,
आँख मुस्कराने के लिए बहा देती
दो बूँद आँसूं..
ले लो तुम उन्हें
चरणामृत समझ
अँजुरी में अपनी
और उतार लो कंठ से
कह उठूँ मैं तुम्हें
हे नीलकंठ मेरे!!
-सोच है इस बार
कि अब ये प्रीत अमर हो जाये मेरी!!
-समीर लाल ’समीर’
44 टिप्पणियां:
तथास्तु...
बिल्कुल अमर होगी.. प्रीत अजर अमर ही है ।
जूनूनी चीज़ों से तो हमें परहेज़ है.
लिखते रहिये
अपने कर्म पर विश्वास ...अपनी लगन पर यकीन ...
बहुत सुन्दर रचना ...!!
वाह क्या कहने
एक अनोखी बात
एक अंगारा उठाया था कर्तव्यों का जलती हुई जिन्दगी की आग से,
वाह वाह क्या बात है
Preet agar man me hai to Amar hi hogi ....Neelkanth bhi muskura hi rahe honge ... do bund charanamrt dekar...
बहुत बढ़ियाँ कविता ।वैसे तो अब नीलकण्ठ दिखाई नहीं पर आपकी कविता नै याद ताजा कर दिया ।
एक अंगारा उठाया था कर्तव्यों का
जलती हुई जिन्दगी की आग से,
हथेली में रख फोड़ा उसे
फिर बिखेर दिया जमीन पर...
हौंसला बना रहे.
रामराम
आपकी इस मनोकामना के साथ हम बस ''आमीन'' ही कहेंगे
बहुत खूब ... प्रीत अमर हो जाए यही तो चाहत है जीवन की .. नम्जिल है जीवन की ...
BEHTREEN !
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
सुन्दर सोच।
३ मई को कवि सम्मेलन में गए कि नहीं !
जलन की गुदगुदी, आसुओं का चरणामृत, वाह क्या बात है. ये प्रीत जरूर अमर होगी. बेहतरीन भावनाओं का संगम यह कविता.
उद्वेलित करती कविता!
दो बूँद आँसूं..
ले लो तुम उन्हें
चरणामृत समझ
अँजुरी में अपनी
और उतार लो कंठ से
कह उठूँ मैं तुम्हें
हे नीलकंठ मेरे!!
-सोच है इस बार
कि अब ये प्रीत अमर हो जाये मेरी!!
ऐसा ही हो आपकी मन की मुराद पूरी
काश, सबके लिये ऐसा हो जाये.
तेरी नियामतों की आँख मुस्कराने के लिए बहा देती दो बूंद आसूं बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति!!
तेरी नियामतों की आँख मुस्कराने के लिएबहा देती दो बूंद आसूं बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति!!
तेरी नियामतों की आँख मुस्कराने के लिएबहा देती दो बूंद आसूं बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति!!
बहुत खूब ,आशा से आकाश टिका है,टिका रहे
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
bahot achcha likhe hain......
------- मेरा गीत अमर कर दो --आमीन
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर अभिव्यक्ति
मनोकामना जरूर पूर्ण होगी .
कौन,यहां शिव बन पाया है
और,कैसे बन पायेगा
इंसानी जर्जर कांधों पर
बे-डौल हुई,मर्यादाओं को
कैसे,कोई ढो पाएगा--
मन छूती हुई कृति
बहुत सुन्दर कृति ..
बहुत सुन्दर कृति ..
अच्छी रचना
बहुत सुंदर
bahut sundar kavita
दर्द के रिश्ते से अच्छा और मीठा रिश्ता शायद ही कोई और हो।
ज़रूर अमर होगी. बहुत सुन्दर.
अति सुन्दर ..
अपने नियमों के ढाँचों में, हम रोज रोज सज जाते हैं..
स्वयं पर पहले प्रश्न उठाने वालों की पंक्ति में आगे।
नीलकंठ ने गरल पी लिया था...दुनिया में जितना भी गरल है...कर्तव्यों का वहन करने वालों ने अपने सीने में जज्ब कर लिया है...वर्ना ये धरती शायद जीने लायज न बचती...
Bahut Khub...
Sadar.
bahut sundar...
सच्चे दिल से किया गया हर कर्म... सच्चा और अच्छा फल पाता है...!
आपकी मेहनत कभी ज़ाया नहीं जाएगी!
~सादर!!!
सच्चे दिल से किया गया हर कर्म... सच्चा और अच्छा फल पाता है...!
आपकी मेहनत कभी ज़ाया नहीं जाएगी!
~सादर!!!
hello sir...aap to rasta bhool gaye hai shayad:)...chaliye koi baat nahi...yahan aap se mulakaat ho jati hai...hamesha ki tarah ..kamaal likha hai:)
जय हो .... मंगलमय हो .... बेहतरीन
एक टिप्पणी भेजें