अमरीका/कनाडा में रहना अलग बात है और भारत में रहना अलग. इससे भला कौन न सहमत होगा. जो न होगा वो मूर्ख कहलायेगा और मूर्ख कहलाना किसी भी भारतीय को मंजूर नहीं- वो बिना अपनी इच्छा के भी सहमत हो जायेगा मगर मूर्ख नहीं कहलवायेगा खुद को. तो कोई अमरीकी या कनेडीयन ही होगा कम से कम इस मामले में तो जो मूर्ख नवाज़ा जायेगा.
अमरीका, कनाडा जैसे देशों में रहना एक विज्ञान है, यहाँ रहने के अपने घोषित और स्थापित तरीके है, जो सीखे जा सकते हैं ठीक उसी तरह जैसे कि विज्ञान की कोई सी भी अन्य बातें- किताबों से या ज्ञानियों से जानकर. कैसे उठना है, कैसे बैठना है, कैसे सोना है, कैसे बिजली का स्विच उल्टा ऑन करना है, कब क्या करना है, सड़क पर किस तरफ चलना है- सब तय है.
मगर भारत में रहना- ओह!! यह एक कला है. इस हेतु आपका कलाकार होना आवश्यक है. और कलाकार बनते नहीं, पैदा होते हैं.
भारत में रह पाना, वो भी हर हाल में खुशी खुशी- यह एक जन्म जात गुण है, ईश्वर की कृपा है आप पर- कृपा ही नहीं- अतिशय कृपा है- इस कला को कोई सिखा नहीं सकता- इसे कोई सीख नहीं सकता. यह जन्मजात गुण है- वरदान है.
बिजली अगर चली जाये तो- दुनिया के किसी भी देश के वाशिंदे बिजली के दफ्तर में फोन करके पता करते हैं कि क्या समस्या है?.... और भारत एक ऐसा देश है जहाँ..घर से निकल कर ये देखते हैं कि पड़ोसी के घर भी गई है या नहीं? अगर पड़ोसी की भी गई है तो सब सही- जब उनकी आयेगी तो अपनी भी आ जायेगी..इसमें चिन्ता क्या करना!! फोन तो पड़ोसी करेगा ही बिजली के दफ्तर में.
ऐसी मानसिकता पैदा नहीं की जा सकती सिखा कर- यह पैदाईशी ही हो सकती है.....जन्मजात!! हिन्दू धर्म के समान- आप हिन्दू बस पैदा हो सकते हैं., बन नहीं सकते! पैदा हो जाओ- फिर भले ही गोश्त खाओ या मल्लिछ हो जाओ- रहोगे हिन्दू ही....
कलाकार भी ऐसे कि उन्हें नर्तक की श्रेणी के निपुण कलाकार से कम तो आप आंक ही नहीं सकते. नर्तक - कोई कत्थक नाच रहा है, कोई नागालैण्ड का नृत्य करने में मगन है, कोई भांगडा, तो कोई डिस्को, कोई बीच सड़क में बैण्ड बाजे के साथ नागिन नाच में मूँह में रुमाल दबाये झूमे जा रहा है- मगर हैं सब नर्तक - एक कलाकार. अपने स्वयं की दुश्वारियों को धुँए में उड़ा बेगानी शादी में दीवाने कलाकार- सब एक से बढ़कर एक. कोई किसी से कम नहीं. कर के दिखा दो किसी को कम साबित तो मानें की- हम किसी से कम नहीं की तर्ज पर नाचते.
अभ्यास से कला को मात्र तराशा जा सकता है. गुरु अभ्यास करा सकता है मगर कला का बीज यदि आपके भीतर जन्मजात नहीं है तो गुरु लाख सर पटक ले, कुछ नहीं हासिल होगा. यूँ भी सभी अपने आप में गुरु हैं तो कोई दूसरा गुरु कौन और क्या सिखायेगा?
कैसा भी विषय हो- विषय की स्पेलिंग न लिख पायेंगे मगर बोलेंगे जरुर कि हमसे पूछा होता तो हम बता देते या हमसे पूछते तो सही मगर तुम अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं तो क्या मदद करें तुम्हारी?
खैर, गुरुओं की कोशिश से शायद मुझ जैसा गायक तैयार हो भी जाये तो उसे भला कौन कभी गायक मानेगा. कविता गाने लायक गुजर भी नहीं है बरसों के अभ्यास के बाद भी. जन्मजात वो गायन का बीज ही नहीं है, तो भला कौन से गायन का पेड़ लहलहायेगा.
जनकवि वृंद की पंक्ति:
होनहार बिरवान के, होत चीकने पात...
कितनी सटीक बैठती है हम कलाकारों पर..भारत में रहने की कला हर वहाँ पैदा होने वाले बच्चे के चेहरे पर देखी जा सकती है – बिल्कुल चीकने पात सा चेहरा. पैदा होते ही फिट- धूल, मिट्टी, गरमी, पसीना, मच्छर, बारिश, कीचड़, हार्न भौंपूं की आवाजें, भीड़ भड्ड़क्का, डाक्टर के यहाँ मारा मारी और इन सबके बीच चल निकलती है जीवन की गाड़ी मुस्कराते हुए. हँसते खेलते हर विषमताओं के बीच प्रसन्न, मस्त मना- एक भारतीय.
फिर तो मारा मारियों की फेहरिस्त है एक के बाद एक – एक पूरा सिलसिला- नित प्रति दिन- प्रति पल- स्कूल के एडमीशन से लेकर कालेज में रिजर्वेशन तक, नौकरी में रिकमन्डेशन से लेकर विभागीय प्रमोशन तक, अपनी सुलझे किसी तरह तो उसी ट्रेक में फिर अगली पुश्त खड़ी नजर आये और फिर उसे उसी तरह सुलझाओ जैसे कभी आपके माँ बाप ने आपके लिए सुलझाया था- जन्मजात गुण पाकर... चैन मिनट भर को नहीं और उसमें भी प्रसन्न. हँसते मुस्कराते, चाय पीते, समोसा- पान खाते, सामने वाले की खिल्ली उड़ाते हम. ऐसे कलाकार कि भगवान भी भारतीयों को देखकर सोचता होगा- अरे, ये मैने क्या किया? ये क्या बना दिया?
और हर भारतीय गली गली नुक्कड़ नुक्कड़ मंदिर पर शीश नंवाये उसकी खिल्ली उड़ाता नजर आ जायेगा- आज बहुत खुश होगे तुम? (अमिताभ स्टाईल ऑफ दीवार)
लो- और खुश हो लो- १०१ रुपये के लड्डू खाओ!!
और भगवान- सॉरी मोड में- बगलें झांकते- यंत्रवत प्रसाद खाये चले जा रहे हैं. जब अति हो जाती है तो दूध भी पीने लगते हैं. सारा देश उमड़ पड़ता है ये देखने कि भगवान दूध पी रहे हैं और कलाकारी के वरदान की तरह- यह कृपा भी भगवान मात्र भारतीयों पर करते हैं कि बाल्टी पर बाल्टी दूध पिये चले जाते हैं मात्र भक्तों की खातिर -सिर्फ इसलिए कि भक्त कलाकार हैं.. मीडिया याने कि देश (हाथी के दांत की तरह वाला देश- दिखाने वाला) - बस, हो लेता है दूधमय!! लो, भगवान ने दूध पी लिया- हम तर गये. कल से जिन्दगी आसान- तो मुस्करा दो. सो तो यूँ भी मुस्करा रहे थे.
मीडिया जानती है कि कब मुस्करवाना है और कब रुलवाना. टी आर पी का खेल आमदनी का नुस्ख़ा है. कोई जिये या मरे- टी आर पी बढ़नी चाहिये..यह मीडिया में कलाकारी का मंत्र है.
याद है न इस मीडिया का खेल- आज आपके गुण दिखा कर टी आर पी बटोरेगा. कल आपके ही दुर्गुण दिखा कर टी आर पी बटोरेगा. बस, लक्ष्मी की कृपा आती रहे- रुके न!! फिर भले इमली की चटनी डाल कर समोसे खाने का उपाय हो या गरीबों में फल बांट देने का... अन्य कलाकारों की तरह भारतीय मीडिया भी सब करेगा- और हम सब कलाकार देखकर तली पीटेंगे. हंसेंगे- मुस्करायेंगे और मस्ती में खा पी कर सो जायेंगे.
यूँ भी कलाकारों की अपनी एक अलग सी दुनिया होती है. भारत में जब पूछो किसी से भी कि क्या हाल है? कैसा चल रहा है? बस एक जबाब- हमारी छोड़ो, अपनी सुनाओ? सामने वाले ने अगर अपना दुख बखान कर दिया, तो अपना दुख तो यूँ भी इतना छोटा हो चलेगा कि सुख सा नजर आयेगा. और सामने वाले यदि सुख बखाना तो मन ही मन मान लेंगे कि जलाने के लिए झूठ बखान रहा है. बेवकूफ समझता है सामने वाले को. फिर अगले की मुस्कराते हुए कि पूछा जाये ’क्या हाल हैं?’
आप खुद सोच कर देखें कि कला और कलाकारी की चरमावस्था- जो मेहनत कर पढ़ लिख कर तैयार होते हैं वो सरकारी नौकरी करते हैं और जो बिना पढे लिखे किसी काबिल नहीं वो उन पर राज करते हैं. यही पढ़े लिखे लोग उन्हें चुन चुन का अपना नेता बनाते हैं और बात बात में उनसे मुँह की खाते हैं फिर भी हे हे कर मुस्कराते हुए उनकी ही जी हुजूरी बजाते हैं. कलाकारी का इससे बेहतर नमूना तो और भला क्या पेश करुँ- आप तो खुद कलाकार हो, समझते हो सारी बातें. मैने तो बस ख्याल आया- तो दर्ज कर दिया है- हम कलाकारों के लिए. विज्ञान आधारित और तर्क संगत मानसिकता तो यही कहेगी कि राज और मार्गदर्शन तो पढ़े लिखे, जानकार को करना चाहिये मगर कला जो न करवा दे, कम है.
इस कलाकारी को मानने मनवाने के चक्कर में विज्ञान तो न जाने कहाँ रह गया बातचीत में. तभी शायद कहा गया होगा कि एक कलाकार तो वैज्ञानिक बनाया जा सकता है, पढ़ा लिखा कर, सिखा कर- बनाया क्या जा सकते है, बनाया जा ही रहा है हर दिन- भर भर हवाई जहाज भारत से आकर अमरीका/ कनाडा में सफलतापूर्वक बस ही रहे हैं. मगर एक वैज्ञानिक को जिसमें कला के बीज जन्मजात न हो, कलाकार नहीं बनाया जा सकता. कहाँ दिखता है अमरीका/कनाडा का जन्मा गोरा बन्दा या बन्दी, भारत जाकर बसते.
चलते चलते- मेरी आने वाली गज़ल के मुखड़े से एक त्रिवेणीनुमा चित्र इस आलेख को पूरा करता:
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
इंसान के भीतर भी एक इंसान होना चाहिये.
-इंसानी खाल में छिपे कुछ भेड़िये देखें हैं मैने!!
-समीर लाल 'समीर'
49 टिप्पणियां:
भारत जैसा देश ब्रह्माण्ड में नहीं।
ब्रह्माण्ड भाग्य शाली है कि...........
हम भी इस कला और विज्ञान में निपुण हैं, जानकर घोर प्रसन्नता हुई, पर आजकल सब कुछ उल्टा चल रहा है, बिल्कुल कनाडा जैसा तो असहज महसूस कर रहे हैं, नियम पालना जो अपने संस्कार में नहीं है :)
भारत हमें जीना सिखा देता है... विषमताएं जितनी हैं नहीं उससे अधिक हमने खुद गढ़ी हैं और गढ़ते जा रहे हैं। ताकि आने वाली पीढि़यां इतनी सशक्त हों कि न तो नाले का पानी पीने से उन्हें उल्टी दस्त हों न ट्रक के साइलेंसर में नाक घुसेड़ने पर दम घुटने जैसा आभास हो पाए।
तभी भविष्य में अमरीका या कनाडा का राष्ट्रपति कह सकेगा, जल्दी खुद को सशक्त बनाओ वरना दुनिया भारतीयों के कब्जे में जा रही है... ;)
भारत के लोगों के पास ही यह कला है कि कैसे अपने देश को और माता-पिता को लात मारकर दूसरे देश को अपनाया जाता है। आप सच कह रहे हैं कि दूसरे देशों में यह गुण नहीं है इसलिए गोरे भारत में बसते हुए दिखायी नहीं देते।
हमें नाज़ है की हमें अप जैसा एक कलाकार मिला. अति सुन्दर.
ऐसा कलापूर्ण लेखन भी एक भारतीय ही कर सकता है :-)
:-)
मेरा भारत महान.....सच्चे अर्थों में...
सादर
अनु
प्रच्छन्न वाग्बाण तीखी नोकवाले हैं.
आपकी कलाकारी भी बढ़िया है !
आप के विचारों से सहमत होना अच्छा लगता है ...
शुभकामनाएँ!
कहां से कहां पहुँच के आखिर में त्रिवेणी तक ... क्या बात है ... कलाकार तो आपभी कम नहीं समीर भई ...
कलाकार बनाये नहीं जाते,जन्मजात होते हैं जैसे साहित्यकार !
bharat hai hi mahaan.....
वो कहावत "जंगल में मोर नाचा किसने देखा ". अमरीकी भारतीयों के लिए ही लिखी गयी होगी.
पराई पत्तल का भात भी सिर्फ हम भारतीयों को ही अच्छा लगता है :).
समीर जी,
व्यंग था,या थी तारीफ़,पर जो भी था,मुस्कुराहटें दे कर चला गया.
धन्यवाद.
हर हालात में जीने की कला भारतीयों की जन्मजात विशेषता है...
बिजली की शिकायत से याद आया हमारे यहाँ फोन पर शिकायत दर्ज करने पर काल सेंटर वाले दो सवाल और पूछते हैं ." बिजली सिर्फ आपके यहाँ गई है या पड़ोस में भी ? "( अब रात को दो बजे आप किसके यहाँ झाँकने जायेंगे ?) और दूसरा सवाल " आपके यहाँ जिस ट्रंसफॉर्मर से बिजली आती है वह कहाँ हैं ?" ( जैसे हम सबका लेखा जोखा रखते हैं )
comment posT nahee ho rahaa ise posT kar deM
और भारत एक ऐसा देश है जहाँ..घर से निकल कर ये देखते हैं कि पड़ोसी के घर भी गई है या नहीं? अगर पड़ोसी की भी गई है तो सब सही- जब उनकी आयेगी तो अपनी भी आ जायेगी..इसमें चिन्ता क्या करना!! फोन तो पड़ोसी करेगा ही बिजली के दफ्तर में.
हा हा हा पढ कर हंसी नही थम रही थी आज कल तो भारत मे हर गली मोहल्ले की कहानी है। हाँ ऐसी ही एक गज़ल मेरी भी है\dhanyavaad pooree yaad nahee bahut der pahale posT kee thee|
इक छोटी सी मुस्कान चाहिये
साँसें चंद आसान चाहिये
लोगों की इस भीड मे
कोई तो इन्सान चाहिये
लगता है आप भारत को बहुत मिस कर रहे हैं....एक एक बात याद करके लिख रहे हैं...कितनी याद आती है ना यहाँ की कलाकारी..:)
यही भारत की विशेषता है ,भैया जी
यहाँ का बच्चा बचा कलाकार है .... क्या करें ये कलाएं जन्मजात न हों तो ज़िंदा कैसे रहें .... धार दार व्यंग्य ....
सच है यहाँ जीना सीखा नहीं जा सकता .... सीखी तो वो बात जाती है जिसके कुछ तयशुदा नियम हों और वो सभी के लिए समान ..
Bahut achchhi or sachhi post rahi aajki...sach kaha eakdam sach... जो मेहनत कर पढ़ लिख कर तैयार होते हैं वो सरकारी नौकरी करते हैं और जो बिना पढे लिखे किसी काबिल नहीं वो उन पर राज करते हैं. यही पढ़े लिखे लोग उन्हें चुन चुन का अपना नेता बनाते हैं और बात बात में उनसे मुँह की खाते हैं फिर भी हे हे कर मुस्कराते हुए उनकी ही जी हुजूरी बजाते हैं.
जय हो महाप्रभु .... आज तो दिल खुश कर दिया ....लेकिन एक बात तो है .. जो मज़ा भारत में है वो कहीं और नहीं...ये देश आपको जीवन जीने की कला को बेहतर करने में मदद करता है ...पर आपके लेख ने बहुत खुश किया आज : मोगाम्बो खुश हुआ :
अपने आसपास की कितनी सारी बातों से हम बेखबर बने हुए हैं, यही बताती है आपकी यह पोस्ट।
जोरदार और मजेदार तो है ही, दमदार भी है।
वाह। वाह।
वाह, अत्यन्त रोचक आलेख,
तभी बाहर कर्मशील जन होते हैं, भारत में कलाकार जन..
अनुभव से परिपूर्ण सुन्दर लेख. अपने देश और अमेरिका/कनाडा में जीवल शैली के अंतर के विवेचना रोचक लगी.
लेख की आखिरी दो पंक्तियाँ बहुत कुछ बयां करती है.
शुभकामनाएं.
प्रभु हम भारतियों के गुण अवगुण आपने क्या खूब बयां किये हैं...मज़ा आ गया...हम लोग हैं ही ऐसे...मैंने भी पूरी दुनिया देखी है एक नहीं दसियों बार लेकिन जो आनंद अपने देश में मिलता है वो कहीं नहीं मिलता... यहाँ हर परिस्थिति में इंसान जीना जानता है...हाय हाय भी करता है और जीता चला जाता है...अभावों में जीना शायद हम भारतियों की फितरत में है...स्थितियां अब धीरे धीरे बदल रही हैं...आने वाले सौ दो सौ साल में हम भी अमेरिका के समक्ष हो जायेंगे...वहां भी सब कुछ मुलम्मा चढ़ा हुआ है जब कहीं वो उखाड़ता है तो उनका असली चेहरा नज़र आ जाता है जो भारतियों से कम नहीं...रोचक पोस्ट.
नीरज
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
*****************************************************************
उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ जीवन के रंग संग कुछ तूफ़ां, बेचैन हवाएं ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
***********************************************
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
*****************************************************************
उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ जीवन के रंग संग कुछ तूफ़ां, बेचैन हवाएं ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
***********************************************
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
हम किसी से कम नहीं
............जो भी हो
जीना यहाँ,मरना यहाँ, इसके सिवा अब जाना कहाँ ..
आभार उपरोक्त बेहतरीन प्रस्तुति हेतु ...
( पी.एस. भाकुनी )
ये नियम वियम क्या होता है. हमे तो नियम अगर हैं भी तो उन्हें तोड़ने में ही मज़ा आता है. यह सब देखकर आपकी बात ठीक ही लगती कि यहाँ जीवन कला है.
गज़ल का इन्तेज़ार रहेगा.
AAP KAVI V KAHANIKAAR HEE NAHIN ,EK
ACHCHHE VICHAARAK BHEE HAIN . AAPKE
VIICHARON SE MAIN BILKUL SAHMAT HUN .
प्रत्येक स्थिति के अनुकूल ढाल लेने वाली, ढल जाने वाली भारतीय मेधा.
हर बार की तरह एक सुन्दर और बेहतर आलेख।
साधुवाद!
बेहतर आलेख,मजेदार तो है ही, दमदार भी है
मगर भारत में रहना- ओह!! यह एक कला है. इस हेतु आपका कलाकार होना आवश्यक है. और कलाकार बनते नहीं, पैदा होते हैं.
भारत में रह पाना, वो भी हर हाल में खुशी खुशी- यह एक जन्म जात गुण है, ईश्वर की कृपा है आप पर- कृपा ही नहीं- अतिशय कृपा है- इस कला को कोई सिखा नहीं सकता- इसे कोई सीख नहीं सकता. यह जन्मजात गुण है- वरदान है................
आपने सच ही कहा भारत में रहना एक कला हैं .....और हम सबको इस कला पर गर्व हैं ....कि हम भारतीय हैं ...और गर्व से कहते हैं की भारत में रह कर दिखाओ तो जाने आपको ..भारत जैसा कोई और देश ना हुआ हैं और ना कभी होगा ...
ham bharatwasi .... khush hue:)
अपने भारतीय होने पर आज अधिक गौरव महसूस हो रहा है।
proud to be an Indian :)
सही कह रहे/रही हैं आप पर एक बात और यहाँ बिजलीघर पर फोन उठाता ही कौन है . .बहुत सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .आभार. अपराध तो अपराध है और कुछ नहीं ...
सही कह रहे/रही हैं आप पर एक बात और यहाँ बिजलीघर पर फोन उठाता ही कौन है . .बहुत सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .आभार. अपराध तो अपराध है और कुछ नहीं ...
बहुत सही वर्णन किया है आपने हमारे देश का .....
यहाँ के लोग परिस्थितियों में ढलना जानते हैं .....
ऐसे लोग कहाँ मिलेंगे
हम अभाव में भी खुश रहना जानते हैं
सुंदर लेख ....
अंतिम पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
इंसान के भीतर भी एक इंसान होना चाहिये.
sahi kaha aapne ham aese hi hai isi kala me lage
rachana
क़माल का व्यंग्य है समीर साहब! आपके सहयोग के लिये शुक्रिया। संभव है मैं इस लेख की कुछ पंक्तियों का लाफ़ इंडिया लाफ़ में प्रयोग करूंगा। बहुत ताज़गी है इन टिप्पणियों में!
लेख की आखिरी दो पंक्तियाँ
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये
इंसान के भीतर भी एक इंसान होना चाहिये.
इंसानी खाल में छिपे कुछ भेड़िये देखें हैं मैने!!
...बहुत कुछ बयां करती है.
प्रस्तुति के लिए आभार!
-इंसानी खाल में छिपे कुछ भेड़िये देखें हैं मैने!!
.
समीर जी यहाँ मैं आप से सहमत नहीं | भेद और भेड़िये का फर्क करना आज के युग में इतना भी आसान नहीं |
एक टिप्पणी भेजें