अपनी लम्बी यॉर्क, यू के की यात्रा को दौरान जब अपनी नई उपन्यास पर काम कर रहा था तो अक्सर ही घर के सामने बालकनी में कभी चाय का आनन्द लेने तो कभी देर शाम स्कॉच के कुछ घूँट भरने आ बैठता और साथ ही मैं घर के सामने वाले मकान की बालकनी में रोज बैठा देखता था उस बुजुर्ग को.
उसके चेहरे पर उभर आई झुर्रियाँ उसकी ८० पार की उम्र का अंदाजा बखूबी देती. कुर्सी के बाजू में उसे चलने को सहारा देने पूर्ण सजगता से तैनात तीन पाँव वाली छड़ी मगर उसे इन्तजार रहता दो पाँव से चल कर दूर हो चुके उस सहारे का जिसे उसने अपने बुढ़ापे का सहारा जान बड़े जतन से पाल पोस कर बड़ा किया था. जैसे ही वह इस काबिल हुआ कि उसके दो पैर उसका संपूर्ण भार वहन कर सकें, तब से वो ऐसा निकला कि इस बुजुर्ग के हिस्से में बच रहा बस एक इन्तजार. शायद कभी न खत्म होने वाला इन्तजार.
बालकनी में बैठे उसकी नजर हर वक्त उसके घर की तरफ आती सड़क पर ही होती. साथ उसकी पत्नी, शायद उसी की उम्र की, भी रहती है उसी घर में. वो ही सारा कुछ काम संभालते दिखती. कुछ कुछ घंटों में चाय बना कर ले आती, कभी सैण्डविच तो कभी कुछ और. दोनों आजू बाजू में बैठकर चाय पीते, खाना खाते लेकिन आपस मे बात बहुत थोड़ी सी ही करते. शायद दोनों को ही चुप रहने की आदत हो गई थी या इतने साल के साथ के बाद अकेले में एक दूसरे से कहने सुनने के लिए कुछ बचा ही न हो. कुछ नया तो होता नहीं था. वही सुबह उठना, दिन भर बालकनी में बिताना और ज्यादा से ज्यादा फोन पर ग्रासरी वाले को सामान पहुँचाने के लिए कह देना. पत्नी बीच बीच में उठकर गमलों में पानी डाल देती. उनमें भी जिसमें अब कोई पौधा नहीं बचा था. जाने क्या सोच कर वो उसमें पानी डालती थी. शायद वैसे ही, जैसे जानते हुए भी कि अब बेटा अपनी दुनिया में मगन है, वो कभी नहीं आयेगा- फिर भी निगाह घर की ओर आने वाली सड़क पर उसकी राह तकती.
उनके घर से थोड़ा दूर सड़क पार उसकी पत्नी की कोई सहेली भी रहती थी. नितांत अकेली. कई महिनों में दो या तीन बार इसको उसके यहाँ जाते देखा और शायद एक बार उसे इनके घर आते. जिस रोज वो उसके यहाँ जाती या वो इनके यहाँ आती, उस शाम पति पत्नी आपस में काफी बात करते दिखते. शायद कुछ नया कहने को होता.
अक्सर मेरी नजर अपनी बालकनी से उस बुजुर्ग से टकरा जाती. बस, एक दूसरे को देख हाथ हिला देते. शायद उसने मेरे बारे में अपनी पत्नी को बता दिया था. अब वो भी जब बालकनी में होती तो हाथ हिला देती. हमारे बीच एक नजरों का रिश्ता सा स्थापित हो गया था. बिना शब्दों के कहे सुने एक जान पहचान. मैं अक्सर ही उन दोनों के बारे में सोचा करता. सोचता कि ये बालकनी में बैठे क्या सोचते होंगे? क्या सोच कर रात सोने जाते होंगे और क्या सोच कर नया दिन शुरु करते होंगे?
मुझे यह सब अपनी समझ के परे लगता. कभी सहम भी जाता, जब ख्याल आता कि यदि इस महिला को इस बुजुर्ग के पहले दुनिया से जाना पड़ा तो इस बुजुर्ग का क्या होगा? मैने तो उसे सिर्फ छड़ी टेककर बाथरुम जाते और रात को अपने बिस्तर तक जाने के सिवाय कुछ भी करते नहीं देखा. यहाँ तक की ग्रासरी लाने का फोन भी वही महिला करती. तरह तरह के ख्याल आते. मैं सहमता, घबराता और फिर कुछ पलों में भूल कर सहज हो जाता हूँ.
मैं भरी दुपहरी अपने बंद अँधेरे कमरे में ए सी को अपनी पूरी क्षमता पर चलाये चार्ल्स डी ब्रोवर की पुस्तक ’फिफ्टी ईयर्स बिलो ज़ीरो’ को पढ़ता आर्कटिक अलास्का की ठंड की ठिठुरन अहसासता भूल ही जाता हूँ कि बाहर सूरज अपनी तपिश के तांडव से न जाने कितने राहगीरों को हालाकान किये हुए है. कितना छोटा आसमान बना लिया है हमने अपना. कितनी क्षणभंगुर हो चली है हमारी संवेदनशीलता भी. बहुत ठहरी तो एक आँसूं के ढुलकने तक.
समय के पंख ऐसे कि कतरना भी अपने बस में नहीं तो उड़ चला. कनाडा वापसी को दो तीन दिन बचे. उस शाम बहाना भी अच्छा था कि अब तो वापस जाना है और कुछ मौसम भी ऐसा कि वहीं बालकनी में बैठे बैठे नियमित से एक ज्यादा ही पैग हो गया स्कॉच का. शराब पीकर यूँ भी आदमी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है और उस पर से एक्स्ट्रा पी कर तो अल्ट्रा संवेदनशील. कुछ शराब का असर और कुछ कवि होने की वजह से परमानेन्ट भावुकता का कैरियर मैं एकाएक उन बुजुर्गों की हालत पर अपने दिल को भर बैठा याने दिल भर आया उनके हालातों पर. सोचा, आज जा कर मिल ही लूँ और इसी बहाने बता भी आऊँगा कि दो दिन में वापस कनाडा जा रहा हूँ. एक बार को थोड़ा सा अनजान घर जाते असहजता महसूस हुई किन्तु शराब ने मदद की और मैं अपनी सीढ़ी से उतर कर उनकी सीढ़ी चढ़ते हुए उनकी बालकनी में जा पहुँचा.
वो मुझे देखकर जर्मन में हैलो बोले. जर्मन मुझे आती नहीं, मैने अंग्रेजी में हैलो कहा. हिन्दी में भी कहता तो शायद उनके लिए वही बात होती क्यूँकि अंग्रेजी उस बुजुर्ग को आती नहीं थी. इशारे से वो समझे और इशारे से ही मैं समझा. फिर उनका इशारा पा कर उनके बाजू वाली कुर्सी पर मैं बैठ गया. उनकी गहरी ऑखों में झांका. एकदम सुनसान, वीरान. मैने उनके हाथ पर अपना हाथ रखा. भावों ने भावों से बात की. शायद एक लम्बे अन्तराल के बाद किसी तीसरे व्यक्ति का स्पर्श पा दबे भावों का सब्र का बॉध टूटने की कागर पर आ गया हो. उनकी आँखें नम हो आईं. मैं तो यूँ भी अल्ट्रा संवेदनशील अवस्था में था. अति संवेदनशीलता में शराब आँख से आँसू बनकर टप टप टपकने लगी. बुजुर्ग भी रो दिये और मेरा जब पूरा एक्स्ट्रा पैग टपक गया, तो मैं उठा. उन्हें हाथ पर थपकी दे ढाढस बँधाई और उन्हें नमस्ते कर बिना उनकी तरफ देखे सीढ़ी उतर कर लौट आया.
सुबह उठकर जब उनकी बालकनी पर नजर पड़ी तो वह बुजुर्ग हाथ हिलाते नजर आये. एक बार फिर मेरी आँख नम हुई यह सोचकर कि कल से यह मेरा भी इन्तजार करेंगे हाथ हिलाने को. आँख में आई नमी ने अहसास करा दिया कि कल जो बहा था वो शराब नहीं थी. दिल की किसी कोने से कोई टीस उठी थी उस एकाकीपन और नीरसता को देख, जो आज न जाने उस जैसे कितने बुजुर्गों की साथी है....
सुबह जागते
चलती सांसो का सिलसिला
दिलाता है याद मुझे..
फिर एक दिन
फिर एक शाम
और
फिर एक रात
बाकी है अभी...
-समीर लाल ’समीर’
<<इस बीच यू के यात्रा की व्यस्तता में पोस्ट डालने का क्रम कम होकर भी जारी तो रहा ही किन्तु मुझे याद ही न रहा कि कब मेरी ५०० पोस्ट पूरी भी हो गईं और आज यह पोस्ट ५०५ वीं है>>
103 टिप्पणियां:
भावुक लेकिन बहुत बढ़िया
अति संवेदनशील पोस्ट निशब्द ...........
पांच सौवी पोस्ट की बधाई
ye rachna sahaj hi batati hai ki samaj mein samvedna kahin khokar rah gayi hai. Waise bhi insaano ke liye samvedna ke do bol to kya, do bhaav hi kafi hai. insaano ke liye samvedna ke do bol to kya, do bhaav hi kafi hai.
आदरणीय समीर लाल जी
नमस्कार !
बहुत सुन्दर.....संवेदनशील पोस्ट ....आभार
पांच सौवी पोस्ट की बहुत बहुत ......बधाई
अरे हां! पांच सैकड़ा पूरा कर लिया - बधाई।
अरे हां! पांच सैकड़ा पूरा कर लिया - बधाई।
सुबह जागते
चलती सांसो का सिलसिला
दिलाता है याद मुझे..
फिर एक दिन
फिर एक शाम
और
फिर एक रात
बाकी है अभी...
..............मन एकांत में होता है तो सपने बुनने लगता है
दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति.....!
aapki bhavukta ne to hame bhi rula diya.. bahut sundar shabdo me ukera hai aapne unke ekakei jeevan ko. post padhte hue mai yahi sochti rahi ki ishvar un dono ki mrityu ek saath hi ho. kyonki kam se kam ve ek doosre ke saath apni khamoshiyan to baant rahe hain. bahut achhee.
समीर सुपुत्र
आशीर्वाद
सांसो का सिलसिला बहुत ही मन को छू लेन वाला ( क्षमा करना आगे नहीं लिखा जाता
आधुनिक जीवन का यह भी एक हिस्सा है।
पाँच सैंकड़ा की बधाई!
उम्र के इस पड़ाव में हाथ पर रखा स्पर्श का दबाव अभिभूत कर जाता है, यह संवाद स्थापित रहे।
बहुत बढ़िया, 500वीं पोस्ट के लिये भी बहुत बहुत बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
पीने और उतरने के दोनों अवसरों पर आप संवेदनशील बने रहे यह आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का कमाल है ! शायद यही फ़र्क है हममे और उनमें...ये बात और है कि ये फासला कम हो चला है आजकल !
बुजुर्गों के लिये हालात सभी जगह एक जैसे ही हैं..
संवेदनाओं के बेहद समीप। सुन्दर।
मन को भावुक कर देने वाला अच्छा संस्मरण प्रकाशित किया है आपने!
उम्र और पोस्अ की बढ़ती गिनती के अंकगणित में समाया सारा बीजगणित.
आँखें तो अपनी भी नम हो गयी। 505वीं पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई अब 5000वीं का इन्तजार। शुभकामनायें।
पढ़ते पढ़ते आँखों के आगे एक खालीपन पसर गया...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति .... ५०५ वीं पोस्ट पर बधाई और अनेकानेक शुभकामनाएं .... आभार
पांच सौवी पोस्ट की बहुत बहुत ......बधाई
itni bhawbhinee.....nazuk post, dil tak gayee....
मगर उसे इन्तजार रहता दो पाँव से चल कर दूर हो चुके उस सहारे का जिसे उसने अपने बुढ़ापे का सहारा जान बड़े जतन से पाल पोस कर बड़ा किया था.
बहुत संवेदनशीलता से लिखा है ..
कितनी क्षणभंगुर हो चली है हमारी संवेदनशीलता भी. बहुत ठहरी तो एक आँसूं के ढुलकने तक.
सच आज कहाँ कोई किसी से ज्यादा मतलब रखता है
भावनाओं का अच्छा प्रवाह है इस पोस्ट में
डूबती साँसे ...धीरे धीरे सबको एक दिन इसी मोड़ पर ला कर भावुक कर देती है ..अंत तो यही है ...भाषा ,से अलग स्पर्श की अपनी बाते होती है ..सच कहती एक भावुक पोस्ट ....आप यूँ ही लिखते रहे ...बधाई ..
भावुक ...संवेदनशील पोस्ट ....
ओह, ऐसे में भाषा का कोई खास रोल नहीं होता। अच्छा था कि आप दोनो को एक दूसरे की भाषा नहीं आती थी!
आज तो एक बहाव में बहुत बढ़िया लिखा है . बढ़िया तो हमेशा होता है लेकिन आज आपने सब के कल की जो तस्वीर दिखाई है , वह बहुत डरावनी है . फिर भी जब तक पति पत्नी का साथ होता है , जिंदगी चलती तो रहती है . अति संवेदनशील लेखन .
उन बुजुर्गों का दर्द क्या कभी अपने को नहीं झकझोर जाता है. इस मार्मिक कथा ने सोचने पर मजबूर कर दिया है की अब इस अकेलेपण का अंत क्या होगा? अगर इनमें से एक पहले चला गया जोकि जाना ही होगा फिर दूसरा क्या करेगा? कैसे रहेगा अकेला? ये सवाल उठते हर एक के लिए.
bhut sundar...laazwab
अति संवेदनशील पोस्ट !
"कल जो बहा था वो शराब नहीं थी. दिल की किसी कोने से कोई टीस उठी थी उस एकाकीपन और नीरसता को देख, जो आज न जाने उस जैसे कितने बुजुर्गों की साथी है...."
अत्यंत संवेदनशील,मार्मिक एवं सार्थक प्रस्तुति
५०० सौ + पोस्ट्स के लिए हार्दिक बधाई
बहुत बार बिना कुछ कहे ही संवाद इतना लंबा हो जाता है की समेटने में बरसों लग जाते हैं ...
वैसे ये जरूरी नहीं की संवाद के लिए भाषा का माध्यम होना जरूरी है ... अच्छी पोस्ट है समीर भाई ... ५०० पोस्टों पर बधाई ...
क्या कहूँ...बड़ा भयावह सच है...बुढ़ापा और अकेलापन...हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें कितनी भी संपदा जमा कर लें लेकिन इन दो अवस्थाओं से बच नहीं सकते...जीवन की संध्या में मौत के इंतज़ार की घड़ियों को गिनने से बदतर और कुछ नहीं है...आपने इस सच के अपनी कलम से क्या खूब उकेरा है...वाह.
नीरज
क्या सोच कर रात सोने जाते होंगे और क्या सोच कर नया दिन शुरु करते होंगे?
Soch ke bhee dar lagta hai...
505 vi post kee bahut,bahut badhayee!
SAMEER JI , BAHUT KHOOB ! AAPKA
SANVEDNA YUKT LEKH PADH KAR PHIR
SAHIR LUDHIANVI KAA SHER YAAD AA
GAYAA HAI -
TUJHSE MILNAA KHUSHEE KEE BAAT SAHI
TUJH SE MIL KAR UDAAS RAHTAA HOON
अद्भुत पोस्ट पढ़ने में मज़ा आया आपको बहुत बहुत बधाई |
अद्भुत पोस्ट पढ़ने में मज़ा आया आपको बहुत बहुत बधाई |
कुछ वर्ष ऐसे ही बुजुर्गों के बीच बीता था. अब वे दिन ही बीत गये.. वे न रहे लेकिन उनकी बातें रह रह कर याद आ जाती है.
समीर भाई !
दिल भर आया इस मार्मिक पोस्ट को पढ़ कर ....
ब्लॉग जगत में लिखी जाती हजारों पोस्ट में से लेख उसी को मानता हूँ जो संवेदनशील दिल को छू सके , निस्संदेह यह पोस्ट उन्हीं में से एक है जिन्हें कालजयी कहा जाता है !
कृपया मेरा प्रणाम स्वीकार करें ...
जारी ....
.....आज के इस निष्ठुर समय में, वृद्धावस्था के समय हम लोगों की उपेक्षा, सबसे अधिक हम मानव ही करते हैं ! यह समय ऐसा होता है जब अकेलेपन का अहसास काटने को दौड़ता है और हमसे बात करने वाला तक कोई नहीं होता ! सारे जीवन लोगों से घिरे रहने वाला परम पुरुष, इस अवस्था में, अपने आपको इस कदर असहाय पाता है जिसकी वह अपनी जवानी के दिनों में कल्पना तक नहीं कर सकता !
मुझे लगता है अगर हम अपने इन दिनों( बुरे ) की कल्पना, मजबूत रहते कर सकते तो शायद अपने मज़बूत दिनों में किसी वृद्ध को सहारा अवश्य देते ! जो काम हम खुद न कर सकें उसके लिए दूसरों से अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए !
....जारी
यह त्रासदी बुढापे में शायद हर किसी को सहनी ही है :(
....यह सच है कि अक्सर हम अपनी संवेदनाओं को छुपाने की कोशिश करते हैं मगर वह आंसू जो उस दिन शराब के असर से बहे थे , वे समीर लाल के एक खूबसूरत दिल के प्रतीक तो थे ही !
भला हो शराब के उस एक्स्ट्रा पैग का जिसके कारण आपके पैर, आपको उनके सामने ले गए और एक मानव ने दूसरे मानव को, बिना बोले ही संवेदना का अहसास दिला दिया !
शायद आपकी वह मूक मुलाकात, वे कभी नहीं भुला पायेंगे !
ईश्वर आपको ऐसे क्षणों से बचा कर रखे ....यही कामना करता हूँ....
.......फिर एक रात
बाकी है अभी...,
क्या कहनें हैं ,डूबकर वाह.
यथार्थ और ऊपर से कलेजा चीर देने वाली आपकी लेखनी...
वो अल्ट्रा-संवेदनशीलता वाली नमी अब हर पढ़ने वाले की आंखों में है...
दिल और रात के हाथों में नापी,
नापी एक उमरिया,
सांस की डोरी छोटी पड़ गई,
लंबी आस डगरिया,
भोर के मंज़िल वाले,
उठ कर भोर से पहले चलते,
ये जीवन के रस्ते,
जीवन से लंबे हैं बंधु,
ये जीवन के रस्ते...
जय हिंद...
अति संवेदनशील लेख, ५०५वी पोस्ट के लिए भी मेरी हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत ही संवेनशील रचना, आपकी यही तो अपनी पहचान है बॉस, पर एकाकी जीवन का यह यथार्थ डरा भी गया। हाय रे जीवन।
500वी पोस्ट की ढेर सारी शुभकामनाऐं....
मेरी ऊपर वाली टिप्पणी में करेक्शन...
दिल और रात के हाथों नापी...की जगह
दिन और रात के हाथों नापी...पढ़ा जाए...
गुरुदेव, जब रचनाकर्म में इतनी गहराई से डूबे हों तो आंकड़ों की क्या बिसात जो आपको तंग करते...505 का आंकड़ा वैसे भी सटीक लगता है...सिगरेट के 555 ब्रैंड की याद कराता...लेकिन आप तो विल्स के शौकीन रहे हैं...
जय हिंद...
सुबह जागते
चलती सांसो का सिलसिला
दिलाता है याद मुझे..
फिर एक दिन
फिर एक शाम
और
फिर एक रात
बाकी है अभी..
बहुत सुंदर पोस्ट और बहुत ही सुंदर अंत.... शब्दों से खेलने वाले बाज़ीगर का नि:शब्द रिश्ता जिसे आँखों के पानी ने बांधा...
बहुत बहुत बढ़ाई ५०५ पोस्ट की ..यह एक शिखर है मगर स्वर्ग नहीं -आपकी ब्लागिंग स्वर्णिम इतिहास की और अग्रसर हो यही कामना है !
बहुत ही मार्मिक ,विचारणीय संस्मरण , गहन चिंतन को आमंत्रण देता ,सोचने को उद्वेलित करता आखिर हमारा भी पड़ाव है ....... बधाई जी /
505 वीं पोस्ट पर खूब बधाई अंकल जी. अब तो मिठाई भी मिलनी चाहिए.
बहुत सुन्दर, कोमल, नाज़ुक, भावुक और संवेदनशील पोस्ट! शानदार लगा!
५०० वी पोस्ट पूरे होने पर आपको हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें!
dil bhar aaya padhate huye,bhavuk bana diya har shabd ne,500 post ke upar ka aakada par karne ki bahut badhai.
पांच सौवी पोस्ट की बधाई ...
kal jo wah tah wo sharb nahi thi..wo sharab hoti to har padhne wale ki aankehin nam na hotin...baat ka jab dene se bat ki tibrata khatam ho jaati hai...comment karne ki sthti mein nahi hoon..maphi chahata hoon..main wakai mein sirf ise mahsoos karna chahata hoon..apne do pairo pe chalkar main bhi meelon door baitha hoon..kuch bhdhi ankhein mera bhi intazaar karti hain..per mujhe dua dein wo intzaar kabhi khatm hone wala na ho...dil ki anant gehraiyon se aapko aur apki is rachna ko mera pranam
500 past kee badhayi ,
ek kadwaa sach ,maarmik post .
जैसे ही वह इस काबिल हुआ कि उसके दो पैर उसका संपूर्ण भार वहन कर सकें, तब से वो ऐसा निकला कि इस बुजुर्ग के हिस्से में बच रहा बस एक इन्तजार. शायद कभी न खत्म होने वाला इन्तजार...
sach n jaane kitne hi bujurgon MAA-BAAP ko umra ke is padwa mein yun hi apno ka kabhi n khtm hone wala intzaar jaari rahta hai!
bahut hi samvendasheel prastuti ke liye aabhar!
tujhe ham vali samajhte jo na badakhwar hota .....ghalib
आने वाले कल की तस्वीर दिखा दी…………बेहद संवेदनशील
पांच सौवी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई ।
अति भावुक लेकिन बहुत बढ़िया..... 500वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई.....
कितना छोटा आसमान बना लिया है हमने अपना. कितनी क्षणभंगुर हो चली है हमारी संवेदनशीलता भी. बहुत ठहरी तो एक आँसूं के ढुलकने तक.
aapki ye panktiyaan hradya ko cheerti hui kaahin andar tak chali jaati hain..!
bahut hi khoobsurat lekh hai aapka..qayal hogye aapke
आप को फ़िल्मों की कहानियाँ लिखनी चाहिएं। जरा आखें नम होने को आई तो पूरा पैग आखों से टपका कर आप ने हमारी सारी संवेदनाओं को उड़नछू कर दिया…माहौल गमगीन होते होते अचानक बदल गया।
वैसे किस नये उपन्यास पर काम हो रहा है?
जहां तक उन बुजुर्ग की बात है, हम तो यही कहेगें दिवाने क्युं डराता है? वो बुजुर्ग जी को थोड़ी ब्लोगिंग सिखा दीजिए फ़िर देखिए उनकी आखें भी चमक उठेंगी
505 पोस्ट की बधाई।
"बिना उन की तरफ देखे"
ये पाँच शब्द पूरे आलेख का केंद्र बिन्दु लगे मुझे| इन के इर्द गिर्द बहुत कुछ है| बहुत सारी सकारात्मक बातों के बीच कुछ नकारात्मक बातें भी हो सकती हैं - यदा कदा| शास्वत सत्य यही है कि - हम नहीं मिला पाते आँखें| कहीं यह आत्म बोध की शुरुआत तो नहीं?
आप और प्रवीण भाई ने मुझे गद्य पढ़ने पर मज़बूर कर दिया है :))))))))))|
घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द
आंखे नम हुयी और दिल भी भर आया
उस व्रद्धात्मा के लिए दिल मे एक भाव उमड़ आया
आपको 500वी पोस्ट के लिए बधाई
बहुत सुन्दर.....संवेदनशील पोस्ट ........
500 पोस्ट पूरी करने की बधाई।
.......
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
बहुत ठहरी तो एक आँसू के ढुलकने तक ..... बहुत भावुक का पोस्ट.....
ऐसे ही लिखते रहें ,
मेरी ढेरों शुभकामनाएं ...
खूबसूरत प्रस्तुति.. 500 प्रविष्ठी पूरे होने की उपलब्धि पर हार्दिक बधाई.
@फिर एक रात
बाकी है अभी...
हाँ रात अभी बाकी है....
जब सफर लंबा हो तो ५००-५०५ किलोमीटर कहाँ ध्यान रहते हैं..
साधुवाद - सुंदर पोस्ट के लिए.
बाकी है अभी.
nice post
Bahut buri trha rula dala aapki post ne dil men tufan macha gayi..bahut hiiiiiiiiiiiiiii savedna se bhari...aapki post...itni lambi sankhya ke lioye badhai...
मुझे सुबह उठते ही चिड़ियों पे गुस्सा आता है...उनका शोर जिंदा होने का एहसास दिला देता है...आप दीवारों पे लिखीं इबारतें पढ़ने में माहिर हैं...वर्ना दूसरों के दर्द से किसे सरोकार है...
सर्वप्रथम तो ५०० पोस्ट पूरी होने कि बधाई आपको...अब इसके आगे और क्या कहूँ..जो कुछ समझ आ रहा है उसमे केवल इतना ही लिख सकता हूँ कि ..संवेदनशील दोनों हैं..आप और आपकी कलम...
मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद... मर्मस्पर्शी संस्मरण...आभार...
५०५वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई!!
सादर,
डोरोथी.
आपके जन्म दिवस पर शत शत बधाईयाँ और शुभ कामनाएं.
५०५ वीं पोस्ट के लिए भी बहुत बहुत बधाई.
आपका लेखन रोचक,भावुक और संदेशपरक होता है.
आपके हृदय की कोमलता और पवित्रता मन को मोहती है.शराब को आँसू बना कर आँखों से टप टप बहा देते हो.
सुन्दर लेखन यूँ ही सदा सदा चलता रहे.आपको यह याद ही न रहे कि ५००० वीं पोस्ट भी कब लिखी गई.
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...
बधाई जन्म दिन की, हज़ारों शुभकामनायें आपको समीर भाई !
संवेदना से भरा हुआ प्याला खाली करने के बाद स्निशब्द होने का अहसास पड़ा दुखदायी है । खूबसूरती से उकेरा है आपने
चलते चलते आपको जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें!
happy birthday to you samir ji
जन्म-दिवस पर मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएँ!
जन्म-दिवस पर मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएँ!
फूलो ने बोला खुशबू से
खुशबू ने बोला बादल से
बादल ने बोला लहरो से
लहरो ने बोला साहिल से
वोही हम कहते हें दिल से
जन्मदिन कि शुभ कामना
उस दिन खुदा ने भी जश्न मनाया होगा,
जिस दिन आपको अपने हाथो से बनाया होगा,
उसने भी बहाए होंगे आँसू,
जिस दिन आपको यहाँ भेज कर, खुद को अकेला पाया होगा
ज़ानम्दिन मुबारक हो
Emotional post
Bahut-kuch : बहुत कुछ: ऑनलाइन सुने विविध भारती
जन्म-दिवस पर मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपको जन्म-दिवस पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
jo kuchh bhi likha sab shabd dar shabd chalchitr ki tarah man ki aankho ke saamne chalta raha aur kuchh aansu man ke aangan par gir pade...aap dono ki ankho ki nami dekh kar. bas is se jyada kuchh nahi kah sakti.
आपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .
समीर जी आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।
जन्म दिन की शुभकामनाओं के लिए आप सब का बहुत आभार!!! स्नेह बनाये रखें.
कभी-कभी सोचती हूँ इतने संवेदनशील क्यूँ है हम? या तो पूरा पत्थर बना देना चाहिए सबको या नहीं तो सबको मोम बना दो.....दुःख इस बात की होती है कि जग में दुःख उतना भी अथाह नहीं है जितना हम बना देते है. पोस्ट पढ़ कर एक वितृष्णा सी भर गई है, गुस्सा भी कि ऐसा क्यूँ होता है? क्यूँ कहीं मानवीय संवेदना सुन्न-सी होने लगती है? और क्यूँ फिर यकायक अश्रु झरने लग जाते है?
बाकी है अभी सांसों का सिलसिला । बधाई 500 पोस्ट पूरा करने की ।
संवेदना ही सबसे अच्छी भाषा होती है। आपने अच्छा महसूस करवाया है।
आज फ़िर खेली है हमने लिंक्स के साथ छुपमछुपाई आपकी पुरानी पोस्ट..चर्चा में आज नई पुरानी हलचल
समीर जी में अक्सर लम्बी पोस्ट पढने से कतराता रहता हूँ , मुझे बोरियेत सी होने लगती है |
मगर आपकी पोस्ट "चलती सांसो का सिलसिला.... " जब मेने पड़ना स्टार्ट किया तो
पता ही नहीं चला की मेने उसे पढ़ा था या महसूस किया था , लगा जैसे ये सब मेरे
सामने ही घटित हो रहा है | "कितना छोटा आसमान बना लिया है हमने अपना. कितनी
क्षणभंगुर हो चली है हमारी संवेदनशीलता भी. बहुत ठहरी तो एक आँसूं के ढुलकने तक."
बहुत सवेदनशील है. धन्यवाद |
500वीं पोस्ट की बधाई....
मन को उद्वेलित करने वाला संस्मरण....
और...यह कविता...
चलती सांसो का सिलसिला
दिलाता है याद मुझे..
फिर एक दिन
फिर एक शाम
और
फिर एक रात
बाकी है अभी...
बहुत ही संवेदनशील रचना.
बहुत सुंदर और संवेदनशील..!!
हार्दिक बधाई..!!
adhbhut post...
बहुत खूब......सवेंदनशील रचना
मन को विचलित कर गई यह पोस्ट.इसीलिये हमारे यहाँ वार्धक्य में वानप्रस्थ का विधान हुआ होगा .पांडवों का हिमालय-आरोहण भी इसी का क्रम रहा होगा -बिना शिकायत किये महा-प्रस्थान कर जाने का !
पाँच सौ से भी ऊपर पोस्ट देने के हेतु बहुत-बहुत बधाई !
आप जो भी लिखते है .. बस मन में ही रह जाता है , और बहुत दिनों तक उसकी गूँज सुनाई देती रहती है .. अभी आपकी पिछली पोस्ट से बाहर आ भी नहीं पाया था , कि ये पढ़ा . अब चुप हूँ, आँखे नम है .. और शब्द कहीं गम चुके है .. सोचता हूँ कि सारी जिंदगी मार्केटिंग के करियर को जीने के बाद, ब्लॉग्गिंग, फसबूक, ऑरकुट इत्यादि के साथ जीने के बाद , जब कुछ साल बाद बुडापा आयेंगा तो क्या मैं अकेला ही रह जाऊँगा ...मुझे इस सवाल से डर लग रहा है समीर जी /......
और कुछ क्या कहूँ , बस यूँ ही लिखते रहे हमेशा , हमें तो अकेला फील न होने दे.. कभी भी .. चाहे फिर आपको ५००० पोस्ट क्यों न लिखना पढ़े ..
सपाट और सीधे शब्दो मे कहु या शब्दो को सजा कर ...सजा कर कहु तो - अच्छे विचार ,अच्छी रचना , आभार , साभार जाने क्या क्या ।
सीधे शब्दो मे तो कहु तो आपने बहुत अच्छा लिखा है व्रद्ध के एकांत जीवन के बारे मे यह कहना पति पत्नी आपस मे अब क्या बात करे शायद इतनी उम्र के बाद बाते खत्म हो जाती है या शायद काफी कुछ बिना कहे समझा जा सकता है इस उम्र तक आते आते ... काफी कुछ महसूस किया पढ़ कर , और हा आपका बार बार बीयर पीना अच्छी फिल्म के बीच एड आने जैसा लगा :)
एक टिप्पणी भेजें