आज वो दिन आ ही गया जब आप सबके सामने में बरसों से छिपाया राज खोल दूँ.
राज की खूबी ही यही होती है कि उसे एक न एक दिन खुल ही जाना होता है. खुला खुलाया कभी राज नहीं हो सकता. राज को राज होने के लिए राज को कुछ समय बंद रहना भी उतना ही आवश्यक है जितना की राज को राज होने के लिए उसका खुलना.
यह बात तो सर्वविदित है कि सभी प्राणियों के हृदय में ईश्वर का वास होता है. करोड़ों भगवान हैं. किसी के हृदय में राम रहते होंगे, किसी में श्री कृष्ण. जो राज मैं खोलने जा रहा हूँ वो यह है कि मेरे हृदय में भगवान श्री पद्मनाभम रहते हैं.
जब मनुष्य एक विशिष्ट अवस्था को प्राप्त कर लेता है तो सर झुका कर अपने ही हृदय में ईश्वर के दर्शन कर सकता है और उससे वार्तालाप करने हेतु सक्षम हो जाता है. फिर वह उसी के बताये मार्ग का अनुसरण करता है जैसा कि मैं पिछले दो हफ्ते से भगवान पद्मनाभम के बताये मार्ग पर चल निकला हूँ.
तो हे ऑडनेरी प्राणियों (क्यूँकि मैं जानता हूँ आपको मेरी बात मजाक लग रही होगी...मात्र इस वजह से क्यूँकि आपने अभी उस अवस्था को न तो प्राप्त किया है और न ही इस विषय में आपको कोई ज्ञान है- मुझ जैसे बिरले ही हैं जो मृत्यु पूर्व इस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं वरना तो..आप जैसे सांस के आने जाने को जीवन मान लेने वालों से दुनिया पटी पड़ी है..आप अपवाद नहीं हैं, दरअसल अपवाद मैं हूँ) कल जब पुनः मैं ध्यान की गहराई में उतरा तो मेरी भगवान पद्मनाभम से मेरी चर्चा हुई. काफी चिन्तित थे. कहने लगे कि विदेशों से पैसा वापस लाने के मामले में मैं रामदेव के साथ हूँ. इस बात पर उन्होंने तीन बार जोर दिया कि भारत का पैसा वापस भारत में आना ही चाहिये.
मैं उनके विचार सुन, देश भक्ति देख भावविभोर हुआ जा रहा था कि एकाएक वो मेरी तरफ मुखातिब हुए और कहने लगे कि तुम तो अब कनाडा में आकर बस गये हो. यहाँ की नागरिकता भी ले ली है. घर द्वार भी बना लिया है. तुम्हारे हृदय में मेरा निवास है, अतः मैं भी अब कैनेडियन नागरिक कहलाया और भारत मेरे लिए विदेश हुआ. अतः हे मेरे प्रिय मकान मालिक, मैं आपको पॉवर ऑफ अटार्नी देता हूँ कि विदेश में रखा मेरा धन आप यहाँ ले आईये और आज जिस विषय को लेकर पूरा भारत चिन्तित है, उस विषय में प्रथम कदम आप उठाकर एक मानक स्थापित कर दिजिये ताकि भारत के नेताओं की भी आँख खुले और वो भी अपना धन विदेशों से वापस लेते आवें. किसी का धन हो, विदेश में शोभा नहीं देता. और तुम तो जानते हो कि मैं भगवान हूँ. सबके लिए एक सरीखे नियम बनाता हूँ. वो तो इन्सान तोड़ मरोड़ कर अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें अपना लेते हैं-सुवर्णों के लिए अलग, दलितों के लिए अलग, रईस के लिए कुछ और, गरीब के लिए ठेंगा. यहाँ तक कि जेल तक अपराधी अपराधी में फरक-तिहाड़ के भीतर तक राजा के लिए कुछ और, प्रजा के लिए कुछ और, कलमाड़ी के लिए कुछ और, कलमूंही के लिए कुछ और. हद दर्जे का मैन्युपुलेशन है भई इन्सानों की नगरी में.
फिर भगवान श्री पद्मनाभम ने अपनी सुरीली आवाज को आदेशात्मक पुट देते हुए आगे कहा कि इस मामले में कोई ना-नुकुर नहीं सुनना चाहता हूँ. ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रही या अभी हाई सीज़न में टिकट मँहगी पड़ रही है आदि बहाने मेरे सामने लाने की जरुरत नहीं है. आप तुरंत सामान पैक करिये. भारत जाईये और जितने कन्टेनर लोड बने, पूरा एक बार में लाईये. जैसे पांच सुरंगे खुलीं वैसे ही छठवी भी खुलवा कर लोड करवा लिजिये.
मैने चेताया कि भगवन, वहाँ छठवें चैंबर के दरवाजे पर साँप बना है और राजवंश वाले बता रहे हैं कि उसे खोलना अपशकुन होगा.
भगवान मुस्कराये और बोले, दरवाजे पर जो सांप बना है, उसकी चिन्ता मत करो. वो अपशकुन नहीं है. वो मेरी १५० साल पहले की दूरदृष्टि है. मैने उसी वक्त जान लिया था कि जब इस मुखौटे के लोग देश पर राज करने लगेंगे, तब जरुरत हो आयेगी कि सारा धन वहाँ से हटा लिया जाये. बस, इसीलिए मैने उनकी आकृति आखिरी सुरंग पर काढ़ दी थी ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये. तुम तो जानते ही हो कि मुझे चित्रकारी का शुरु से शौक रहा है. अपने मंदिरों में भी खूब नक्काशी कराया करता था.
अब तक मैं उनकी बात सुनता रहा किन्तु मन में बस एक ही प्रश्न था कि कहीं भारत सरकार तो इसे कनाडा लाने में अडंगा नहीं डालेगी. मैने अपनी जिज्ञासा भगवान श्री पद्मनाभम के श्री चरणों में रखी याने कि अपने हृदय के निचले हिस्से में.
वे मुस्कराये और कहने लगे कि ये रामदेव किस दिन काम आयेंगे. उनको फिर बैठाल देंगे रामलीला मैदान में. अबकी बार नये नारे के साथ: विदेश में रखा देश का धन वापस लाओ और देश में रखा विदेश का धन वापस भेजो. इस बार मंच भी डबल साईज का बनवा देंगे क्यूँकि मुद्दा भी डबल साईज़ का है. सरकार समझाने से तो समझती नहीं है मगर कन्फ्यूज कर दो तो तुरंत मान जाती है. लोकपाल बिल के लिए कन्फ्यूजन में मान ही लिया था. वो तो बाद में समझ आया कि जिस डाली पर बैठे हैं, उसी पर कुल्हाड़ी के वार करने का वादा कर बैठे तो अब इधर उधर भाग रहे हैं.
तो मित्रों, मैं भगवान पद्मनाभम जी आदेश कैसे टालूँ? आना ही पड़ेगा उनकी संपदा लेने. कुछ बांटना भी पड़ा तो भगवान की तो आदत ही है प्रसाद देते रहने की. प्रसाद समझ कर बांट देंगे (मैक्स ३०% तक की तो परमिशन भी ले ली है भगवान जी से- वो भी समझते हैं कि इसके बिना कहाँ गुजारा..). लेकिन भगवान के आदेश का पालन करने के लिए जी जान लड़ा देंगे.
देशवासियों, मेरा साथ दो. एक नई क्रांति का बिगुल बजाओ: विदेश का धन वापस भेजो!!!!
मुझे यह भी जानकारी है कि अभी बहुत से लोग आपको गुमराह करने आयेंगे. कुछ व्यंग्यकार कहेंगे कि असल हकदार वो हैं, फिर नेता तो लगभग सभी फिराक में रहेंगे कि असली हकदार वो हैं मगर मित्रों, आप सत्य का साथ दिजिये. मेरे साथ आईये और नारा बुलंद करिये: विदेश का धन वापस भेजो!!!!
कनाडा आ बसा
मन करता
तुम्हारी तरह
छ्त पर लेट
निहारुँ चाँद तारों को
रचूँ उन पर कोई कविता....
मकानों की बनावट ऐसी
न छत पर चढ़ना नसीब
न लेट चाँद तारों को निहारना..
समझा लेता हूँ खुद को
यह कह कर कि
मन का क्या है
वो तो भारत जाकर भी मचलता है
नेताओं की ईमानदारी पर
कोई कविता रच डालने को.....
-मन कितना पागल होता है!!!!
-समीर लाल ’समीर’
69 टिप्पणियां:
सस्पेंस अधूरा रह गया,
आखिरी दरवाजा जो नहीं खोला?
भगवान श्री पद्मनाभम के साथ लक्ष्मी जी का वास और अब वे न जाने कितने दिलों पर राज करने लगे हैं.
मन का क्या है .... कहाँ चाँद की बात और कहाँ नेताओं पर कविता रचने की बात ... अच्छी व्यंग है
मन कितना पागल होता है!!!!... sirf pagal hi hota hai, vishay alag hote hain
धन धना धन धन। इतना धन सुनकर धनी भले ही न हो पाये पर आत्मविश्वास बढ़ गया। अब कोई भारतीयों को गरीब कह कर देखे।
हम भी लाइन में हैं प्रभो ....
गुरुदेव,
कल ट्रावणकोर के पूर्व महाराजाधिराज की आत्मा भाई अविनाश वाचस्पति जी के भीतर आकर इस पांच लाख करोड़ के खजाने पर अपनी दावेदारी जता चुकी है...इसलिए कोई कदम उठाने से पहले नुक्कड़ पर जाकर महाराजाधिराज की अनुमति भी ले लीजिए...
जय हिंद...
व्यंग्यात्मक रूप में मर्म पर सार्थक चोट...बधाई.
_______________
शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'
आजकल भगवान् की कौन सुनता है ,,,, आप भी मत सुनिए ................ हाँ पर अपने मन की जरूर सुनिए शायद उसमें बैठा भगवान् भारत आने को तरसता है ..............
क्या बात है ,भगवन को भी पकड़ लिया आपने
चलो कम से कम कंही तो प्रथम स्थान मिला
वैसे तो ये बात सही है की लोग इसी को जीवन मान लेते है परन्तु सच तो कुछ और ही है सबसे बड़ी विडबना तो ये है की अगर आप किसी को ये बताओ की इंसान का जन्म क्यों होता है की वो अपने ईष्ट भगवन के चरणों में जा सके नाकि वो सिर्फ इसी जीवन मरण में रहे अगर किसी को ये बात बातायेंगे तो ............
ये खूब कही आपने की विदेश का धन वापस भेजो!!!! पर समझ नहीं आता की मैं क्या कर सकता हो :)
वाह ...मान गए आपके भगवान पद्मनाभम ...और आपकी सोच को क्या खूब लिखा है आपने....आज भी आप अपने देश की यादे अपने दिल में साथ लिए इस से जुड़े है ....आपकी लेखनी को सलाम
मेरा भारत महान जय हिंद
:):) सपना तो हमें भी आया था.कि कुछ अंश हमारा भी है उसमें .
राज़ तब तक राज़ रहता है जब तक राज़दार के पेट में मरोड न हो। पद्मनाभ मंदिर की इस अपार दौलत को देखकर आखिर पेट में मरोड़ हो ही गया ना :)
:) बहुत खूब
TAN , MAN AUR DHAN
YE HAIN TO HAI JEEWAN
AAPKAA VYANGYA ACHCHHA LAGAA .
हाहा.. आइये गुरुदेव.. आइये तो सही.. हम और आप साथ चलेंगे और उस सम्पति के करोड़ों दावेदारों में अपना नाम भी जोड़ लेंगे.. कौन नयी बात? हाँ? :)
परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
आभार
आप केनेडा वासी हो कर भी भारत के बारे में इतना सोचते हैं जबकि यहाँ भारत में भारत वासी भी इतना नहीं सोचते...आप जिस मिट्टी के बने हैं वो शायद इश्वर के पास कम रही होगी..तभी आप जैसे इंसान बहुतायत में नहीं बनाये उसने...
नीरज
Is tarah ka jab padhtee hun to lagta hai,ki,khushnaeeb hun jo Bharat me hee hun!
मन तो सच में पागल है ...
पट इस सांप का राज़ अच्छा बताया ...
वैसे मेरा मानना है अब नेता कोग इस धन को जनता के इस्तेमाल को कहेंगे ... क्योंकि तभी तो उनको मिल पायेगा ...
भगवान के धन पर नज़र क्यों ? यह काम तो नेताओं का है .
आजकल तो कवि ही लेट सकते हैं छत पर . वरना इस गर्मी के मौसम में तारे भी गर्मी ही देते हैं .
एक बात तो मैं जान गया हूं कि कंटेनर मंे लदा का धन विदेश जरूर जाएगा। अजी यह भारत है यहां इतने घन की जरूरत क्या है वह शुक्र मनाईऐ की भगवान को नेताओं वाला दिमाग नहीं मिला वरना यह भी स्वीस बैंक में। पर हां,, वहां कनाडा में कोई बैंक है कि नहीं जो राज का राज रखे।
दूसरी बात यह कि चांद को देखने के लिए छत की क्या जरूरत। अजी सर जी। वहीं घास पर लेट जाइऐ। पर लोगों की नजर से बचते हुए कहीं वे आपको असभ्य न समझ ले।
आप अंर्तयामी है यह आज समझ गया?
वाह,अपरंपार है मन की दुनिया ,और इस समय आप हो रहे हैं मनोजगत के प्राणी .ऐसी मनोहर चर्चाओं में लपेट कर मन की बात कह जाइये !
धन्य है !
भगवान पद्मनाभ जी के साथ कोई फोटो भी होती तो ....
राज का पटाक्षेप बहुत ढंग से किया है आपने!
अन्त में रचना भी बहुत उम्दा है!
राज का पटाक्षेप बहुत ढंग से किया है आपने!
अन्त में रचना भी बहुत उम्दा है!
इस सरकार ने भगवान का खजान तो खोल दिया... कभी यह दुसरे धर्म वालो के खजाने को खोल कर तो दिखाये ? वैसे सारा खजाना धीरे धीरे इटली पहुच ही जायेगा...... ओर हम सब सिर्फ़ देखते रह जायेगे
समीर लाल का कहना है:
July 09,2011 at 07:53 PM IST
मन मेरा मंदिर है पद्मनाभ का, तो वहां के धन का असली हकदार भी तो मैं ही हुआ न।...जी, बिल्कुल आपका ही हुआ....आपके सुख दुख में तो मैं हमेशा आधा साथी रहा ही हूँ...तो इस वक्त इसे फिर से याद दिलाने की भी जरुरत मैं तो नहीं मानता.....
जवाब दें
जवाब देखिए : डील पूरी तरह फाईनल हो गई थी। फिर यह गड़बड़ घोटाला क्यों, विदेश जाकर भी मन तो देश का ही रहता है। इस पर आपका भी बस नहीं चला।
(समीर लाल को जवाब )- अविनाश वाचस्पति का कहना है:
July 10,2011 at 12:14 AM IST
समीर भाई आप बिल्कुल याद मत दिलाएं, जरूरत ही नहीं है, जो मन है उसके मुख्यद्वार पर आपके नाम का बोर्ड ही लगा हुआ है, कभी भी झांककर जांच लीजिएगा !
इतने आश्वासन मिलने के बावजूद भी।
अब मामला ब्लॉगर पाठकों की अदालत में है और पोस्ट का लिंक यह है
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/avinashvachaspati/entry/%E0%A4%AA%E0%A4%A6_%E0%A4%AE%E0%A4%A8_%E0%A4%AD_%E0%A4%AE_%E0%A4%A6_%E0%A4%B0_%E0%A4%AE_%E0%A4%AE_%E0%A4%B2_%E0%A4%A7%E0%A4%A8_%E0%A4%95_%E0%A4%85%E0%A4%B8%E0%A4%B2_%E0%A4%B5_%E0%A4%B0_%E0%A4%B8_%E0%A4%B9_%E0%A4%AE
बेबाक राय देने में कंजूसी मत कीजिएगा।
सही बात...मन कितना पागल होता है...
बढ़िया व्यंग्य
धन्य हो प्रभू :) हम तो सिर्फ़ आपके लाये हुये धन पर 20% कट की बात करेगें :)
ले जायेगें ले जायेगें... कनाडा वाले खजाना ले जायेगें...
वैसे और भी सपने देख लो..बार बार हिन्दुस्तान से कंटेनर भेजने का लफडा कौन करेगा..
और बाबा वैसे ही बड़ा कमजोर है... आपके चक्कर में और तकलीफ हो जायेगी...
पोस्ट तो रोचक और जोरदार है किन्तु मुझे तो आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी। पोस्ट में कल्पना है और कविता में आप खुद।
मन तो पागल है जी । सही कहा । नेताओं पर कविता रचने को और क्या कहेंगे । वैसे भगवान पद्मनाभम् के क्या हाल हैं ?
मन तो पागल है जी । सही कहा । नेताओं पर कविता रचने को और क्या कहेंगे । वैसे भगवान पद्मनाभम् के क्या हाल हैं ?
-मन कितना पागल होता है!!!!
संवेदनशील भावों के साथ सटीक बात....
धन किसी का भी हो विदेशों में शोभा नहीं देता.................... करारा कटाक्ष
मैं भी छत पर लेट कर निहारूँ तारों को...................... समीर भाई शायद आप भी जानते ही हैं अब ये हिंदुस्तान में भी कम लोगों को ही नसीब है|
कुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे
नवभारत टाइम्स के रीडर्स ब्लॉग पर पहुंचकर अपनी टिप्पणी स्वयं मॉडरेट करें, आपको तो गहरा अनुभव है। फिर क्या अंबार लगने का इंतजार कर रहे हैं समीर भाई।
आने की तारीख बता दीजिएगा, देखें अपना भगवान क्या कहता है?
प्रसाद लेने वालों की लाइन में हम भी खड़े हैं, भूलियेगा नहीं……
मस्त मस्त्…:)
सही बात.....विदेश का धन वापस भेजो
मकानमालिक बन कर पावर ऑफ अटार्नी प्राप्त करने वाले प्रभो साहित्यिक ज्ञान के साथ साथ आप तो आध्यात्मिक ज्ञान से भी परिपूर्ण है,
"नीरज गोस्वामी जी" ने क्या खूब कहा है कि आप कनाडा वासी हो कर भी भारत के लिए कितना सोंचते हो, आपका व्यंग तो लाजवाब है...
वाचस्पति जी और आप।
जिसके पास भी जाए, हम ब्लागरों का ख्याल रखना बस.....
शुभकामनाएं......
तीखा कटाक्ष.....अंत में लिखी कविता ने मुग्ध कर दिया..छत न सही...रेगिस्तान के रेतीले बिछौने पर बैठ कर आसमान के तारे निहारना सबसे खूबसूरत...
सस्पेंस तो आपने लगभग खोल दिया है. जो आप छिपा गए हैं सो पब्लिक जानती है. भारत की चायपत्ती भारतीयों को पीने को मिले इसका प्रबंध बनाए रखियेगा :))
भगवान श्री पद्मनाभम से वार्ता का सौभाग्य मिला आपको...बधाई.
मन का क्या है
वो तो भारत जाकर भी मचलता है
नेताओं की ईमानदारी पर
कोई कविता रच डालने को..... -मन कितना पागल होता
बहुत खूब....
भगवान का प्रसाद पाने के लिए हम लाइन में है | हमें तो भगवान के भोग का एक छोटा भाग भी मिल जाये तो हम धन्य होंगे बाकि भले आप ले जाये !!!अभी पांच खुले है तो एक लाख करोड़ पहुँच गया है एक और खुलेगा तो संख्या कहा तक पहुँच जाएगी |
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 14-07- 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा -
मन कितना पागल होता है!!!!
haan......ekdam theek kahe aap.
पोस्ट तो मजेदार है ही कविता भी खूबसूरत लगी....
वाह! क्या कहना.
भगवान के दर्शन के बाद भी धन दौलत दुनियादारी की बातें.यह खजाना तो बहुत मामूली है समीर जी.
धन्य हैं खजाने के ट्रस्टीज जिन्होंने एक पैसा भी इधर से उधर नहीं किया,वर्ना तो यह खजाना देखने को भी नसीब नहीं होता.
हमें गर्व है अपने भारत पर जहाँ अध्यात्म का अनमोल खजाना अभी भी मौजूद है जिसे जितना आप विदेश ले जाएँ कभी कम न होगा.बस कमी है तो अच्छे जौहरियों की.आप तो अच्छे जौहरी हैं
आप तुरंत ही आ जाईये समीरजी.आपका हार्दिक स्वागत है.
फिर भगवान का भी तो यही आदेश है आपको
' इस मामले में कोई ना-नुकुर नहीं सुनना चाहता हूँ. ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रही या अभी हाई सीज़न में टिकट मँहगी पड़ रही है आदि बहाने मेरे सामने लाने की जरुरत नहीं है. आप तुरंत सामान पैक करिये. भारत जाईये और जितने कन्टेनर लोड बने, पूरा एक बार में लाईये.'
अब देरी किस बात की समीर भाई.सोचिये मत,बस चले आईये.
सुन्दर,रोचक,मन को प्रफुल्लित करती अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मैं जो कहना कहता वो राज भाटिय़ा जी ने पहले ही कह दिया है ...
वाह, धन तो अभी भी कानों में खनक रहा है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अच्छा व्यंग सर....लकिन हमारा तो गोरा धन मैक्सिको में गायब हो गया था....हुआ यूं कि जब हम यहां आए तो हमारा पर्स मैक्सिको एयरपोर्ट पर गलती से गुम हो गया.... जिसमें क्रैडिट कार्ड्स थे....और हमें इसकी भनक दूसरे दिन लगी...जब हमने बैलेंस चैक किया तो पूरे पैसे निकल चुके थे....अनजान देश में हमारी उस वक्त क्या हालत हुई इसे तो हम ही जानते हैं....
सार्थक व्यंग ,सटीक रचना...आभार..
बहुत सुन्दर आलेख सुन्दर कविता के साथ भ्रष्टाचारियों को सबक देता हुआ
हम भी कह रहे है विदेश का धन वापस भेजो.
धन के पीछे सारी सृष्टि पड़ी है,मगर ईश्वर इसीलिए 'ईश्वर' हैं कि उन्हें धन से लगाव नहीं है ! फिर क्यों मंदिरों में 'धन-धना-धन' ?
सरकार समझाने से तो समझती नहीं है मगर कन्फ्यूज कर दो तो तुरंत मान जाती है... :-) bahut mazedaar magar sath hi sath sachchai se bhara lekh!
-मन कितना पागल होता है!!!!
मन के पागलपन को काबू कर लिया जाये तो कितना अच्छा रहे? ये मन ही भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों को उकसाता है. पर इन पर चोट करने वाला भी तो मन ही होता है. बहुत सुंदर.
रामराम.
इस राज का खुलासा करने का आभार. निश्चित रूप से आपको भारतीयों का समर्थन मिलेगा. :-)
ज़बरदस्त है सर.
सादर
प्रसाद लेने वालों की लाइन में जरा ध्यान से देखियेगा ऐसा न हो कि हम जैसे छूट जायें ..... वैसे विदेश से सिर्फ़ काला धन ही नहीं अपनी मेधा भी हम वापस चाहते हैं ,तो आप ही वापस आ जाइये धन ले जाने के कष्ट से भी बच जायेंगे :)
रोचक पोस्ट। देख नहीं पाया था पहले।
कुछ खोने और कुछ पाने का अहसास।
बहुत सटीक व्यंग्य है ... आभार
bhai ji,aapki kitab mil bhi gayee ,ek baar mey hi padh bhi dali.Its not a fiction or story,its a part of yr auto biography I think.I liked it and enjoyed alot.It was very entertaing and knowlegeable experience.
I hope for many more.my best wishes.I am writing a novel on Indian education system.if the theme is required at this time i can send it but if complete manuscript is needed ,it will take time.With best wishes ,regards and thanks,
yours only,
dr.bhoopendra
rewa
mp
आपकी इस तिरछी नजर ने बहुत सही चोट की है पर जिन्हें चोट लगनी चाहिए, उन्हें लगे तब तो!
मेरी तो आँखों में ही वह खजाना बसा है :) अच्छा लिखा है आपने व्यंग ...
भाई समीरलाल जी
अरे...भगवान पद्मनाभ स्वामी ने तो मुझे भी ऐसा ही आदेश दिया है. वे झारखंड में बसना चाहते हैं. मैंने तो उनका धन सुरक्षित रखने के लिए एक गोदाम भी किराये पर देख रखा है. उसकी पहरेदारी के लिए कुछ सांप भी जुटा रखे हैं. वैसे झारखंड में सांपों की कमी नहीं. पूरी सरकार उन्हीं की बदौलत है...बहरहाल...
हमको मालूम है ज़न्नत की हकीकत लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है.
३०% तो व्यारे नारे हो जायेंगे. अति सुन्दर.
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