ठीक ठीक तो याद नहीं किन्तु शायद दूसरी या तीसरी कक्षा में रहा हूँगा. सरकारी कॉलोनी का माहोल. सब अड़ोस पड़ोस के घर एक दूसरे के जानने वाले.
हमारे एकदम पड़ोस के घर में एक मेरी ही हमउम्र लड़की रहती थी. नाम था डॉली. सभी दोस्त दिन भर साथ खेलते, वो भी हमारे साथ खेलती थी. एकदम गोरी थी और सुन्दर भी. मुझे डॉली बहुत भाती थी. मैं उसके साथ अकेले में भी बहुत बात करता और खेलता.
उसकी तरफ मेरा खास रुझान और आकर्षण देख कर सब बड़े भी मेरा खूब मजाक बनाते.
सब बड़े पूछते कि तुम बड़े होकर किससे शादी करोगे और मैं नन्हा बालक सहज ही कहता कि डॉली से.
बड़ो का क्या है- बिना बालमन पर हो रहे आघात को विचारे वो कहते कि डॉली तो इतनी गोरी है, वो क्यूँ तुझ जैसे कल्लू राम से शादी करेगी?
मुझे बड़ा बुरा लगता और मैं परेशान हो उठता कि मेरा रंग काला क्यूँ हुआ. बच्चों की सोच ही कितनी होती है आखिर. दिन दिन भर इसी उधेड़ बून में रहता.
इसी सोच और परेशानी में एक दिन मैने डॉली से पूछ ही लिया कि वो आखिर इतनी गोरी कैसे है? क्या करती है अपने आपको इतना गोरा बनाने के लिए?
डॉली के घर का माहौल थोड़ा हाई स्टेन्डर्ड का था. उस जमाने में भी उसके घर में लोग चम्मच से चावल दाल खाते थे. वो खुद भी अंग्रेजी माध्यम में पढ़ती थी और घर में भी अंग्रेजों का सा माहौल था. उसके घर में जब सब सोने जाते थे तो एक दूसरे को गुड नाईट कहते थे और सुबह उठकर गुड मार्निंग. अपनी मम्मी से बाय करके डॉली स्कूल निकलती थी. यह सब बातें उस जमाने के मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए एक अजूबा सी थी.
मेरे प्रश्न पर उसने बताया कि वो रोज क्रीम खाती है, इसलिए गोरी है.
हम सरकारी स्कूल के हिन्दी माध्यम से पढ़ने वाले नादान बालक. अपनी बुद्धि भर का समझ कर अपने घर लौट आये और शाम को ड्रेसिंग टेबल से उठाकर एक चम्मच अफगान स्नो क्रीम (उस जमाने में चेहरे पर लगाने के लिए यही क्रीम चला करती थी) गोरा होने की फिराक में खा गये. फिर तो बेहिसाब उल्टियाँ हुई. दीदी ने पूछा कि क्या हुआ? कैसे हुआ? तो उसको पूरा किस्सा बताया.
वो हँस हँस कर पागल हो गई और उसने घर भर में सबको बता दिया. इधर हम उल्टी पर उल्टी किये जा रहे थे और घर वाले सब हँसते रहे. गरम दूध वगैरह पिलाया गया, तो तबीयत संभली और फिर दीदी ने बताया कि डॉली क्रीम खाती है का मतलब मलाई खाती है, ऐसा कहा होगा उसने और तुम अफगान स्नो खा गये.
किसी बडे के द्वारा अनजाने में भी की गई मजाक कोमल मन पर कितना गहरा असर कर सकती है और आहत बालमन अपने भोलेपन में क्या से क्या कर बैठता है. बच्चों से बात करते समय बड़े और समझदार इतना सा ख्याल रखें....काश!!!
खैर, बचपन बीता, कौन जाने वो कहाँ गई? पिता जी की ट्रांसफर वाली नौकरी थी. शहर बदलते गये, दोस्त बदलते गये.
मगर मेरे बहुत बड़े हो जाने तक याने यहाँ तक कि मेरी शादी हो गई, उसके बाद तक भी गाहे बगाहे यह बात निकाल कर कि ये गोरा होने के लिए एक बार अफगान स्नो खा गया था, खूब हँसी उड़ाई जाती रही और हम अपना सा मूँह लिये आजतक उसी रंग के हैं, जिससे भला कौन डॉली शादी करती.
बालमन कहाँ जानता था कि पूछ सीरत की होती है, सूरत की नहीं. बीबी तो हमको भी गोरी ही मिली और सुन्दर भी.
डॉली की रीसेन्ट तस्वीर तो है नहीं सो अपनी सांट दे रहे हैं. यू के में हैं और तस्वीर भी यॉर्क मे ही कल खींची - अपनी पत्नी के साथ.
88 टिप्पणियां:
डाली ज्यादा गोरी थी या पत्नी ज्यादा गोरी है?
गोरा होने के लिए एक बार अफगान स्नो खा गया था|
खूब जोरदार है मामा जी |
गोरा होने के लिए एक बार अफगान स्नो खा गया था|
खूब जोरदार है मामा जी |
राधा क्यूं गोरी ,मैं क्यूं काला ?
बहुत खूब
चलिए जी एक बात तो समझ में आ गई की गोरे होने के लिए
आपने क्या क्या किया पर एक बात नहीं समझा कि आखिर इतने इंटेलीजेंट होने के लिए क्या खाया था? क्या वह भी डौली ने ही बताई थी?
बचपन की यादें दिल को छू जाती है और आपके लिखने का अंदाज तो मासा अल्लाह...
सही कहा - बचपन में कई बार लोग ऐसा कुछ कह देते हैं कि गहरे असर कर जाता है .... अफगान स्नो , हाहाहा
बाल मन जो न करवाये!
आपका संस्मरण बहुत रोचक रहा समीर जी!
अफगान स्नो चाहिए तो बताना , यहाँ से भिजवा दूंगा ! आप भाभी जी की तरह गोरे हो जाएँ उसके लिए कुछ भी करेगा !
शुभकामनायें !!
bahut mazedar aur saarthak post
sach hai ham bade mazaq karte waqt ye nahin soch pate ki bal man kore kaghaz jaisa hota hai us par jo ankit ho gaya wo samay ke sath dhundhla to sakta hai mit nahin sakta .
shubhkamnaen !!!
आपने तो हमारे बचपन की यादें भी ताज़ा करा दीं. भुलाये नहीं भूलता वो जमाना. वो साथी...वो खेल..वो चालाकियां...वो बेवकूफियां...जाने कहां किस हाल में होंगे वो दोस्त..वो अहबाब...पता नहीं उस ज़माने को याद करते होंगे या भूल चुके होंगे...
मन प्रसन्न हो गया पढ़कर। बाल मन बड़ा सरल होता है, ज्यों चाह लगती है, त्यों राह दिखती है। यदि आप यह सब न किये होते तो समय से पहले ही बड़े हो गये होते। आनन्द उठाईये और ठहाका मार कर हँसिये।
भला हुआ जो गोरी पत्नी मिली नहीं तो दिल की तमन्ना दिल ही में रह जाती !
बहुत मजेदार किस्सा रहा। हमारे यहाँ कहावत है कि गोरे को काली और काले को गोरी बीबी मिलती है। कहावत एकदम सही साबित हो रही है। आप तो हमेशा गाते रहिए कि काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं।
हा हा हा चलिए अरमान पूरे हुए।
उस जमाने में अफ़गान स्नो ही गोरे बनाने की एक मात्र क्रीम थी।
वैसे क्रीम खाकर गोरे होने का आईडिया कोई बुरा नहीं है।:)
यशोमति मैया से पूछे नंदलाला,
राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला...
बड़े होने पर आख़िर कहां चली जाती हैं ये डॉलियां...फेसबुक, गूगल, ऑरकुट कहीं भी ढ़ूढ़ों मिलती क्यों नहीं...आदमी दुआ-सलाम को ही तरस जाता है...
जय हिंद...
bahut sundar
chhotawritersblogspot.com
मैं तो समझा कि आप क्रीम खाने की बात से, आप अपनी तंदुरस्ती का राज बता रहे हैं :-)
आपकी बालमन की पोस्ट नें हम सब के बचपन को भी जिन्दा कर दिया .
सही है कि --@आहत बालमन अपने भोलेपन में क्या से क्या कर बैठता है.
बहुत सुंदर पोस्ट,
डाली जी की खोज जारी रहनी चाहिए......
बाल मन पर आपकी संवेदनाएं छलक रही हैं ...
वाह वाह पढ़कर बहुत मजा आया ...साधनजी किसी डॉली से कम नहीं है....,बल्कि बीस ही है ....बचपन और बाल मन को बहुत अच्छे से अभिव्यक्त किया है आपने ॥
समीर जी बहुत बहुत मुबारक दादा बनने पर! बहुत सुन्दर लगी सारी तस्वीरें!
आपका पोस्ट पढ़कर मैं अपने बचपन के दिनों को याद करने लगी! बहुत बढ़िया लगा आपका ये शानदार पोस्ट!
बहुत मजा आया ...
हा हा हा...गोरा होने की ये रेसिपी पहली बार पढ़ी..:))
बालमन की यह सहज मना बालसुलभ बातें प्रस्तुति को रोचक बना गई ...।
बचपन याद है तो ये शोखी है..इसे यूँ ही बरक़रार रखिए..वैसे एक बात बताए..बचपन से ही लड़के बुद्धू ही होते हैं...5-6 साल की उम्र में छोटे भाई ने दीदी की ताकत को गोली चबा ली और नाचता हुआ सबको कहता जाए..अब मेरा भी बेबी होगा.. :) शुक्र तो यह कि वह गोली पचा गया था...
badhiya , bachpan kee nadaaniyon ka jikr ...
डोली को पढ़ कर सुनाया वो हंसे जा रही है.
अब आप ये नही कह सकते कि ये डोली मेरी नही है. कहिये ...कहिये...एक बार कह कर तो देखिये.
ये गहरे रंग वालों को गोरा होने की इतनी चाह क्यों रहती है?
क्रीम खा ली,असर देखिये ना दुनिया की कालीख का असर आज तक भीतर नही हो पाया.
ऐसी ही प्यारी प्यारी बाते भी कर लिया करिये कभी कभी. हरदम धीर ,गंभीर उदासी भरी बाते.....????जे भी कोई बात है ! आज तो मजा आ गया.
kabhi batya nahin darr the kya
हा हा अच्छा हुआ...असली क्रीम नहीं खाई और गोरे नहीं हुए वर्ना....डॉली ही पल्ले बंध जाती...:)
फिर ये Made for each other वाली तस्वीर कहाँ से आती...
समीर भाई ... अब तो ये खुलासा कर ही दो ... साधना भाभी ही वो डौली है की नहीं ...?
हम जैसे काले लोगों का दर्द आपने बांटा अच्छा लगा
अफगान स्नो शायद तब कोई क्रीम मेल फिमेल नहीं होती थी जैसे अब फेयर एंड लवली लडको के लिए अलग है :) रोचक लगा गोरा होने का किस्सा ...
aisi yaaden aksar jindagi ka khalipan bher deti hai...kuch bhi bhulna ..khud ko bhulne jaisa,chaliye aapke sahare aisa bahut kuch dohrane ka man ho utha :)
बचपन में की गई ऐसी हरकतें जिन्दगी की अमिट यादों में शुमार हो जाती हैं।
बचपन के दिन, बचपन की यादों, बचपन की बातों जैसा कुछ भी नहीं। वह एक स्वपनिल संसार होता है और सदा स्वप्न ही होकर रह जाता है।
बहुत मजेदार संस्मरण ...क्या कहने बचपन के !
मजा आ गया..बालमन की उलझन....।
:)
साधना जी कह रही हैं कि आज भी राधाओं की कमी नहीं है।
घुघूती बासूती
बड़े होने पर आख़िर कहां चली जाती हैं ये डॉलियां...फेसबुक, गूगल, ऑरकुट ka passward ban key reh jatee hain bus
sameer bhaiya...aakhir ek gori ko aapne apna hi liya...:)
:)
आपकी ये डॉली उस डॉली से कम गोरी तो नहीं हैं। मुबारक हो।
डॉली की रीसेन्ट तस्वीर तो है नहीं सो अपनी सांट दे रहे हैं। यू के में हैं और तस्वीर भी यॉर्क मे ही कल खींची - अपनी पत्नी के साथ.
हा हा हा ! कैमरे ने बहुत कोओपरेट किया ।
वैसे रंगीन ब्लैक एंड वाईट तस्वीर घज्बे लग रही है भाई । :)
जम रही जोड़ी.
कल रोए आज हंसा भी देना :-)
हा हा हा , आप भी न चचा...:) :)
कितनी मासूम सी पोस्ट है :)
भाई बुरा ना मानना...पहले प्यार की बात ही कुछ और होती है...अभी तक याद है...शीर्षक सटीक है...आपकी स्वीकारोक्ति भी काबिल-ए-तारीफ है...फेयर एंड लवली के ज़माने में अफगान स्नो...और उसकी बोतल के ऊपर बड़े जुड़े वाली महिला की शक्ल...सब याद दिला दी आपने...आफ्टरआल बचपन के दिन भुलाने वाली चीज़ भी नहीं हैं...
आज का ज़माना होता तो कहते- डॉली क्यों गोरी, मैं क्यों काला :)
बालसुलभ भाव में कहा पर बात बहुत गहरी है.....
bahut mazedar sansmaran......
चचा ने बांचा के नईं
न बांचा होगा वरना टिपियाते ज़रूर
आपकी आपबीती सुनकर अपनी याद आ गयी.आपने तो हिम्मत करके छाप दी.
अभी मुझे मेरी श्रीमती जी को पहले बताना होगा फिर मैं भी लिखूंगा.
आप डाली पर नहीं डाली आप पर चढ़ बैठी है......नहीं तो इतने ज़माने के बाद !!!
बचपन की वो बाते तो दीवाना हमें कर जाए,
ये बात नहीं वो जो कहानी में गुज़र जाए,
हलकी* थी पे गहरे पे चढ़ी इतनी ज़्यादा. [* fair colored]
'डाली' ये नहीं वो कि चढ़े और उतर जाए.
http://aatm-manthan.com
बचपन के दिन भुला न देना ..ओह सारी पचपन के ...
अच्छी सूरत भी क्या बुरी शय है
जिसने 'डाली' बुरी नज़र 'डाली'
अब पता चला कि बचपन से ही आप 'रसिक' थे!
समीर जी सबके बचपन में एक गोरी डौली होती है क्या.... बहुत बढ़िया संस्मरण....
आपके लिखने का अंदाज तो बहुत ही सुन्दर है.पढ़कर बहुत मजा आया ..बहुत मजेदार संस्मरण .
बहुत खास बात रही होगी... अभी भी याद है...
सर फेस बुक में सर्च करो जरुर मिलेगी डॉली... :)
आमीन...
किसी भी कमी से पूरीत बालक से कई बार बडे लोग प्रायः ऐसी बेढब बात कर बैठते हैं बिना ये सोचें कि बालमन पर इसका क्या और कैसा प्रभाव पडेगा, फिर नतीजा प्रायः ऐसा ही निकलता है ।
हा हा हा ,मजा आ गया .बचपन की भोली बुद्धि जो करा दे वो कम है.
सूरत नही सीरत देखी जाती है,
इन शब्दों को अपने संस्मरण में लिख कर बचपन की नादानी को बहुत ही गरिमा प्रदान की है आपने, अप्रत्यक्ष मुस्कान के साथ ह्रदय प्रसन्न हो गया...
वाह समीर जी बहुत ही बढियाँ, आप के बचपन की ये बात बड़ी ही रोचक लगी| आपने भी गोरे होने के लिए बहुत से experiments किये..धाराप्रवाह शैली पढकर मन प्रसन्न हो गया|
Zabardast..aapne itne saral shabdon me apne bachpan k pyaar ki gehrai ka abhas kra dia.
bibidh blogs per bigar dino se udati is udan tastri ko dekh raha tha...aaj peecha karte karte us tak pahuncha...udan tastri per to bahut kuch hai..bacpan ke din bhula na dena... bhoola t nahi tah yaad jarur dila di apne.. bahut khoob chitran..sahaj tarike se..badhaiyee ke sath udan tastri ko amantrit kar raha hoon kabhi mere mehman banein... my unveil emotions..
bahut acchi..bachpan ke din bhoola to nahin tha ..yaadein taaja ho gayi... apne blog pe nimantran ke sath
पूत के पाव पालने मे ही रंग दिखाने लगे थे
समीर जी ,
अगर आपने प्रेम विवाह किया हो तो ये कहूंगा कि श्वेत वर्ण के प्रति आप का आग्रह / जूनून / शौक बालपन से अब तक बरकरार रहा ! श्रीमती लाल के अलावा आपने तो रोजी रोटी तक के लिये 'मुलुक' भी गोरों का चुना :)
यदि आपके विवाह में परिजनों का दखल / हस्तक्षेप / दिशा निर्देश / प्रायोजन , मौजूद रहा हो तो निश्चय ही आपकी संगिनी ढूंढते वक़्त उन्हें अफगान स्नो याद रहा होगा :)
समीर भाई हमारा बचपन का एक दोस्त चूना भी पुतवा चुका है:))))))))))) समझो कि तुम तो बच ही गये|
सुन्दर चित्र।
मुझे यकीन है कि डॉली से शादी न कर पाने का मलाल नहीं होगा!
ha ha ha
Main Chup rahoongi.
सबसे अच्छी बात ये लगी कि आपने बचपन की बात को बचपने की भाषा में ही बताया , पढ कर बचपन के दिलों की कई यादें मन के आइने में उभर आई ।
बचपन में मेरे बाल काफी लम्बे हुआ करते थे , एक बार मेरी पडोस मे रहने वाली उषा ने पूँछा तुम क्या करती हो , हमने यूँ ही कह दिया मिट्टी का तेल , थोडी देर बाद उसकी मम्मी उसको लेकर मेरी माँ के पास आई - बोली आपकी लडकी क्या उल्टा सीधा सेखा देती है , देखो उषा ने सर पे मिट्टी का तेल डाल लिया है .. ऐसी ही तो होती है बचपन की मधुर यादेँ
बचपन में हमेशा फेर एंड लोवली लगाने वाली बात याद आ गयी . मैंने तो फेर एंड लोवली और विको टर्मरिक बहुत लगाया , लेकिन बाद में समझ में आ गया की इन सबसे कुछ नहीं होता .
रेगार्ड्स--
गौरव श्रीवास्तव
बड़ी मजेदार कहानी....मैं तो एक सांस में पूरा पढ़ गई....
सुन्दर तस्वीर ...
गोरे काले का सही कम्बीनेशन :)
अजी आप तो हिंदी ब्लोगिंग के अमिताभ बच्चन हो !!!
kuch yaadein kitani masoom si hoti hai,magar kabhi chubhati baraf ke kil si aur phir pal mein pighal jati.kya khub kahi waah.
दिल के उजले कल्लू को ढेरों शुभकामनायें !!!
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
हृदय को छू गया आपका संस्मरण, छोटी छोटी बातों मे आपने उस जमाने की खूब तस्वीर बनाई है......और कई छुपे हुए सवालों को उठाया भी है....और शायद जवाब भी दिया है........आपको पढ़ना सार्थक अनुभव रहा
हाय हाय, लगा ही लिया होता अफगान स्नो,कुछ समय के लिये तो गोरे हो ही जाते । गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर डॉली मिले तो कह दीजियेगा ।
हाहा मजेदार.. क्या क्या करते हैं बच्चे भी! मस्त.. :)
ha ha ha ha "dolly" ki yaade'n aaj bhi taza hai yani ki !!!!!
regards
रोचक संस्मरण
Pooja Goswami to me
सही कहा आपने , बचपन के अपने अलग ही रंग होते.........
बहुत सुंदर प्रस्तुति॥
गौरा और काला का भेद शादी होंने के बाद पता चल जाता है| सुंदरता तो मन कि होती है |
Ha.....Ha.............Ha............!
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