बुधवार, फ़रवरी 16, 2011

मेरी कहानी....

बहुत कुछ दर्ज किया है इस अन्तर्जाल (इंटरनेट) पर इन बीते वर्षों में और अभी भी करता ही चला जा रहा हूँ. मैं रहूँ, न रहूँ -यह उपस्थित रहेगा सदियों तक. किसी न किसी रुप में. शायद फिर मिटा भी दिया जायें, कौन जानता है.

कभी मनचाहे तो कभी अनचाहे, उभर ही आयेंगे मेरे दर्ज विचार किसी न किसी स्क्रीन पर. तब भी देख सकोगी तुम इसे और वो भी मुझे देख सकेंगे जो मुझे देख खुश होंगे. अनजान और न चाहने वाले नजर अंदाज कर निकल जाने वालों की संख्या तब भी ज्यादा होगी मगर जब आज इस बात की परवाह नहीं की तो तब के लिए क्या करना. मतलब तो अपनों से है, तुम से है.

बस, यही सोचता हूँ अन्तर्जाल पर देख तो लोगी, पढ़ भी लोगी मगर वो अपनेपन का अहसास, वो महक, वो भार और भावुक हो मेरे लिखे को अपने सीने से चिपका मेरे होने को अहसासना और फिर नम आँखों धीरे से मुस्कराना और फिर छाती पर उसे रखे रखे ही सो जाना-जैसा मैं अक्सर करता हूँ अपने दादा जी की किताब को सलीके से सहलाते हुए, वो शायद न कर पाओ!!

इसी उधेड़बून में अन्तर्जाल से अपनी ही कृतियाँ लेकर किताबें छपवा ली हैं कुछ जस की तस तो कुछ एक अलग अंदाज में और कुछ प्रतियाँ रख छोड़ी हैं उस हल्की नीली लोहे की अलमारी में बंद करके ताकि वक्त की दीमक उन्हें चाट न जाये.

तुम्हारी अल्मारी की चाबी जतन से रखने की आदत मुझे तसल्ली देती है!!!!!!!

मेरी
कहानी लिखती नहीं,
ऊग आती है
खुद ब खुद,
एक जंगली झाड़ी सी.
न खाद की दरकार
और
न पानी की जरुरत.
वो
बढ़ चलती है अनगढ़ सी,
दिशा विहिन हवा के साथ,
हवा के रंग में
और
कहानी का नायक,
नायक नहीं महा नायक,
स्वयं एक कहानी
जैसे उसके पात्र,
सब अपने अपने आप में
पूरी एक कहानी.

मेरी
कहानी-
बढ़ती है हवा के साथ,
झूमती है,
लहलहाती है
और

फिर...
चढ़ना शुरु कर
अमरबेल की तरह
न जाने कैसे
एकाएक खत्म हो जाती है
अहसास कराती कि
कोई अमर नहीं होता.
कहानी भी नहीं.

-समीर लाल ’समीर’

 

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81 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

A beautiful and inspirational post for all the mortals on earth.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

तुम्हारी अल्मारी की चाबी जतन से रखने की आदत मुझे तसल्ली देती है!!!!!!!

---------
भावुक कर गयी पंक्ति..... बहुत सुंदर.....
सच में पन्नो में उतरे शब्दों की कहाँ बराबरी है...... ?

कविता रावत ने कहा…

मेरी
कहानी-
बढ़ती है हवा के साथ,
झूमती है,
लहलहाती है
और
अहसास कराती कि
कोई अमर नहीं होता.
... sach mein amar koi nahi par koi in ahsoson/vicharon ko apna samjhta hai to dil ko ek tasali to hoti hi hai ki kuch na kuch achha to kiya hai hamne... akhir yahi sab achha kiya rah jaana hai is dhara par..
sundar chintan mathan ke saath saarthak prastuti..

अजय कुमार झा ने कहा…

आपकी तो कहानी भी कविता की तरह प्रवाहमय है और कविता में भी कहानी का संदेश मिल जाता है क्योंकि संतुलन तो आपका जीवन ले कर आता है इनमें । बहुत सुंदर ........हमेशा की तरह ..शैली तो सन्नाट है ही आपकी

Satish Saxena ने कहा…


वाकई !
हमारे लिखे शब्द जिन्दा रहेंगे ! हम रहें या ना रहें ....
अपने मन की निश्छलता, परस्पर प्यार और स्नेह की झलक, इन शब्दों के जरिये वाकई जिन्दा रहेगी...
हमारी पहचान भी इन शब्दों में अमर रहेगी ...
हमारी रचनाएं काफी हैं ......
हमारे परिचय के लिए !
शुभकामनायें !

, देख लूं ....उड़नतश्तरी द्वारा सस्नेह -सतीश सक्सेना ,

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

यह कहानी नहीं जीवन दर्शन है...

पद्म सिंह ने कहा…

एक एक विचार, भावप्रवाह, एक रिश्ता कायम करते चलते हैं... इन रिश्तों का स्वाद ज़ुबान पर अनचाहे तिरता रहता है...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपके शब्दों का चयन बहुत शानदार है.

OM KASHYAP ने कहा…

sir ji
bahut acchi lagi aapki
kahani
sath de na de koi sani
aapki bahut bahut meharbani

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम्हारी अल्मारी की चाबी जतन से रखने की आदत मुझे तसल्ली देती है!!
is khyaal mein hi sabkuch hota hai

वाणी गीत ने कहा…

वो भी देख सकेंगे जो मुझे देखकर खुश होंगे ,नजरंदाज करनवालों की परवाह अभी नहीं तो तब क्या होगी ...

अमरबेल की तरह ख़त्म होती कहानी अहसास दिलाती है की कोई अमर नहीं होता ...

मुट्ठी बंदकर कर सोचती हूँ है कि कविता कहानी की तरह ये भी बस एक कल्पना हो ...मगर हर जीवन की यही हकीकत है !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

जी, बस गूगल सर्च जिंदाबाद रहना चाहिए !

संजय बेंगाणी ने कहा…

समझ नहीं पा रहा किस पंक्ति को टिप्पणी में चस्पा कर काम पूरा करूँ ;)

अल्मारी और चाबी वाली बात कमाल की कही...

निर्मला कपिला ने कहा…

कोई अमर नहीं होता.
कहानी भी नहीं.
बहुत भावनात्मक कहानी है । लेकिन कुछ कहानियाँ अमर हो जाती है---- लेकिन उन्हें चाबी नही चाहिये हवा मे घुल मिल कर ब्रह्मंड तक सदियों सुनी जाती हैं। शुभकामनायें।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

यादें सहेज कर रखे जाने के लिए ही होती हैं शायद..

Sushil Bakliwal ने कहा…

झरने की तरह झरता स्वाभाविक लेखन.

आशाप्रद अहसास के साथ सुरक्षित...

PAWAN VIJAY ने कहा…

भावमयिता केसाथ बहता प्रवाह युगों तक बना रहे कामना है

kshama ने कहा…

Aapne phir ekbaar nishabd kar diya!

Rahul Singh ने कहा…

शाश्‍वत कहानी की कविता और कविता की कहानी.

मेरे भाव ने कहा…

ईश्वर आपको दीर्घायु करे. आशावादी कलम से निराशा क्यों.

Deepak Saini ने कहा…

गुस्ताखी माफ,
लेकिन कुछ कहानी अमर हो जाती है
हमेशा की तरह अच्छी रचना

स्वाति ने कहा…

bhavuk kar dene wali post...

Arun sathi ने कहा…

सही कहा सरजी पर कहानी तो अमर है। बहुत सुंदर रचना, हमेशा की तरह। आभार।

Hasa ने कहा…

किस्से कहानियों की चाबी और किस्मत की चाबी एक ही बात है. ये भी सही है की सम्हाल कर वो ही रखेगी.
खुश रहो लिखने वालों और खुश रहो चाबी सम्हालने वालों.
मोतीरमानी

Girish Kumar Billore ने कहा…

अभी पाडकास्ट के लिये यंत्र मात्र देखा शाम को देखूंगा पोस्ट.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

क्या बात है महाराज आज काफी सेंटी लग रहे है ... ??

रूप ने कहा…

मेरी
कहानी-
बढ़ती है हवा के साथ,
झूमती है,
लहलहाती है
और

फिर...
चढ़ना शुरु कर
अमरबेल की तरह
न जाने कैसे
एकाएक खत्म हो जाती है
अहसास कराती कि
कोई अमर नहीं होता.
कहानी भी नहीं.

शानदार , वाकई कहानी में दम है , समीर जी. बस इसे ख़त्म न होने दीजियेगा . ब्लाग पर पधारे. एक आग आपके इंतजार में है !

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय समीर लाल जी
नमस्कार !
....दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बहुत सुंदर ........हमेशा की तरह

बेनामी ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना.
ये तो बिल्कुल सही लिखा आपने.. ...."मैं रहूँ, न रहूँ -यह उपस्थित रहेगा सदियों तक. किसी न किसी रुप में. शायद फिर मिटा भी दिया जायें, कौन जानता है. कभी मनचाहे तो कभी अनचाहे, उभर ही आयेंगे मेरे दर्ज विचार किसी न किसी स्क्रीन पर".........

हम नहीं हमारी यादें ही रह जाएँगी.. और यादों को पुस्तक रूप में पढ़ने और महसूसने की जो अनुभूति है उसकी बराबरी इस अंतर्जाल की प्रस्तुति में कहाँ ! लेकिन एक बात तो है इस अंतर्जाल ने सम्पूर्ण विश्व को एक ऐसे सूत्र में बाँधने का कार्य किया है जिसकी वजह से हम दूर देशों में बैठ कर एक दूसरे से अन्जान हो कर भी रचनाओं के इतने करीब होते हैं कि लगता है मानो सब एक ही परिवार के सदस्य हैं. इतनी अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलती हैं इस बात के लिए अंतर्जाल की आभारी हूँ .

Khushdeep Sehgal ने कहा…

जब हम न होंगे,
जब हमारी ख़ाक़ पे तुम रुकोगे चलते-चलते,
अश्कों से भीगी चांदनी में,
इक सदा सी सुनोगे चलते-चलते,
वहीं पे कहीं हम तुम से मिलेंगे,
बन के कली, बन के सबा, बागा-ए-वफ़ा में,
रहे न रहे हम...

जय हिंद...

Shambhu Nath ने कहा…

अद्भुत...अप्रतिम....

Shambhu Nath ने कहा…

अद्भुत...अप्रतिम

shikha varshney ने कहा…

वो अपनेपन का अहसास, वो महक, वो भार और भावुक हो मेरे लिखे को अपने सीने से चिपका मेरे होने को अहसासना और फिर नम आँखों धीरे से मुस्कराना और फिर छाती पर उसे रखे रखे ही सो जाना-
कितना सच कहा है वाकई जो बात किताब में है वो अंतर्जाल में कहाँ ..
आखिरी पंक्ति तो बस ..कमाल कर गई.आपकी बयानगी का जबाब नहीं..
बहुत सुन्दर.

समय चक्र ने कहा…

बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...वाकई ब्लॉग के माध्यम से इतिहास तो लिखा जा रहा है भावी पीढी याद जरुर करेगी ...आभार

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर, दीमक ने भी तो पढनी होगी आप की किताबे, वेसे डर ही लगता हे, मै भी अपने कपडे ओर कीमती सुट बगेरा पलास्टिक के एक बेग मै रख के फ़िर एक अलमारी मे रख के आया हुं, पता नही उन्हे दीमक चट कर जाती हे या चोरी हो जाते हे, भगवान जाने

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मेरी कहानी के माध्यम से बहुतों के दिल की बात कह दी ....सच है किताब को हाथ में ले कर जो अपनेपन का एहसास होता है वो अंतरजाल पर पढने से नहीं ...भावुक करती पोस्ट ..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपकी लिखी कहानी कल पढ़ी, बहुत प्रभावित हुआ, एक पोस्ट लिख रहा हूँ, संभवतः अगले बुधवार आयेगी।

Satish Chandra Satyarthi ने कहा…

सच कहा आपने 'आपकी कहानियां उग आती हैं'... अभी बस पढ़ ही रहा हूँ 'देख लूं....' और पृष्ठ दर पृष्ठ यह महसूस होता है... कुछ भी जतन करके लिखा हुआ नही... एक निश्छल प्रवाह की तरह... न जबरन पिरोया हास्य.. न कृत्रिम भावुकता... बस ऐसा जैसे आप सामने बैठे बोले जा रहे हों...
अंतरजाल एक आभासी संसार है... किताबें मूर्त हैं... यह मानवीय स्वभाव है.. अच्छी चीजों को छूकर, सूंघकर, देखकर महसूस कर देखने की... आपकी किताब आपके पास होने का अहसास देती है.... आपको ढेरों शुभकामनाएं.. बस ऐसे ही लिखते रहें जैसे आप लिखते हैं....

रंजना ने कहा…

सही कहा आपने....

इसलिए बहुत अच्छा किया जो छपवाकर इन्हें सहेज लिया...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अत्यंत भावपूर्ण पोस्ट, पोस्ट पढकर लगा जैसे कोमल मन को कहीं से किसी ने कुरेदा है, परिणाम स्वरूप एक और सुंदर कृति सामने आयेगी. शुभकामनाएं.

रामराम.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

nilesh mathur ने कहा…

तुम्हारी अल्मारी की चाबी जतन से रखने की आदत मुझे तसल्ली देती है!!!!!!!
भावुक कर दिया पंक्तियों ने, बहुत सुन्दर!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘ मैं रहूँ, न रहूँ...’
>
>
जाइये आप कहां जाएंगे.. ये ब्लाग तुम्हें खींच लाएगी:)

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ।
किताबें छपवाने का आइडिया बढ़िया रहा ।
अब गूगल पर निर्भरता खत्म ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

rachnatmk.....

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

आज तो इमोशनल हो गये समीर बाबू.. हमने भी एक बार लिखा था
देखना रोएगी, फ़रियाद करेगी दुनिया,
हम न होंगे तो हमें याद करेगी दुनिया,
अपने जीने की अदा भी है निराली सबसे,
अपने मरने का भी अंदाज़ निराला होगा!!
ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे,और आपका लेखन लोगों को प्रेरणा प्रदान करता रहे!!

Atul Shrivastava ने कहा…

मेरी कहानी लिखती नहीं उग आती है।

भावपूर्ण रचना।
वैसे यह कहानी न होकर जीवन का यथार्थ है।

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi kavita.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

....भावुक कर देने वाली पोस्ट।
....कोई अमर नहीं होता कहानी भी नहीं। ..ध्रुव सत्य।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

किताब को सीने पर रखकर सोने का ख्‍याल अंदर तक उतर गया।
*
सुंदर उड़ान।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Harmonium ki tarah surmayee post..

दिनेश शर्मा ने कहा…

ऎसी भावुकता ही सिद्ध करती है कि आप विशुद्ध साहित्यकार हैं। सुन्दरतम् ॥

विष्णु बैरागी ने कहा…

नश्‍वरता की अमर कहानी का सुन्‍दर दोहराव।

रानीविशाल ने कहा…

यही अटल सत्य है कि सदा के लिए कोई नहीं ....लेकिन फिर भी यही सच है इंसान चाहे अमर न हो उनके विचार अमर होते है जो सदियों तक उन्हें जिंदा रखते है कई और जिंदगियों के उद्देश्य के रूप में .
हमेशा ही की तरह बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती पोस्ट .

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

मेरे जैसे चुन्नू मुन्नू इन रचनाओं की तारीफ के लिए शब्द लायें तो कहाँ से ? आप ही बताएं ......
"अहसास कराती कि
कोई अमर नहीं होता.
कहानी भी नहीं......."

इन लाइनों ने थोडा डरा दिया .. .... मुझे डरा दिया क्योंकि मेरे जैसे छोटे मोटे विचारकों पर ये बात लागू हो सकती है ....... आप पर नहीं ...... हाँ ये डर तो सबको हो सकता है
(लम्बे समय से ब्लॉग पर ना आ पाने के लिए क्षमा चाहता हूँ )

आस्थावान ध्यान दें ~~~~~ स्वामी विवेकानंद की आवाज और सच

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

और हाँ ......आप ही के ब्लॉग से कोपी पेस्ट कर रह हूँ

"आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार. "

हमें = मेरे जैसे चुन्नू मुन्नू की बात कर रहा हूँ

..जब भी समय मिले जरूर आइयेगा ब्लॉग पर

सदा ने कहा…

मेरी
कहानी-
बढ़ती है हवा के साथ,
झूमती है,
लहलहाती है
और
अहसास कराती कि
कोई अमर नहीं होता.

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

यह तो खूब लिखा आपने....


______________________________
'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !

Rajeysha ने कहा…

अच्‍छा है आदरणीय, कम से कम आपको ये भी पता है कि‍ कभी गूगल वाले सब कुछ मि‍टा भी सकते हैं।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है समय की साथ सब कुछ ख़त्म हो जाता है ... सिकंदर और रोम नहीं रहे तो फिर हम तो एक कहानी हैं ... अज लोग पढेंगे कल भूल जायेंगे ...
समीर भाई ... दिल से लिखी है ये कहानी भी ....
आशा है वापसी का साफत अछा रहा होगे ...घर जैसा आनद कहीं नहीं है ..

केवल राम ने कहा…

कल से पढ़ रहा था बार बार ...कहने को क्या कहूँ ...बस आँखें नम हैं ....भावुक करता है आपका लेखन कभी कभी ..और सच है की यह जिन्दगी मिलती है ..कभी ..कभी

shohdah ने कहा…

meri rachna ki sarahna karne ke liye dhanyavad .aap sabhi hindi bloggers ke liye prernastrot hai..........acchi rachna.

कुमार राधारमण ने कहा…

असहमति का कोई कारण नहीं।

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बहुत ही सटीक लिखी गयी अभिव्यक्ति... मेरी कहानी खुद-ब-उग आती है....

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

अपने कृतित्व में आप सदा रहेंगे ,और फ़ोटो भी तो !फिर आएँगे यहीं ,नवीन रूप धरकर, जो कुछ रह गया है वह पूरा करने !

Sunil Kumar ने कहा…

तुम्हारी अल्मारी की चाबी जतन से रखने की आदत मुझे तसल्ली देती है...

आत्मीय संबंधों को दर्शाती सुन्दर रचना . बधाई

शिक्षामित्र ने कहा…

सम्यक चिंतन।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत बढ़िया लगा पढकर ... एक सूफियाना अंदाज़ है ...

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

खूबसूरत यादों को कौन नहीं सहेजना चाहता है।
अच्‍छे लगा आपके भावों से होकर गुजरना।

---------
ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

Unknown ने कहा…

नायक नहीं महा नायक,

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

aapki rachnadharmita stutya hai ..
gady aur pady dono lajawab.

बेनामी ने कहा…

तुम्हारी अल्मारी की चाबी जतन से रखने की आदत मुझे तसल्ली देती है!!!!!!!

kya baat keh di aapne sameer ji...uff.....im speechless......!!!!

i dont kno....there's something about this line i cant stop thinking about....tooooooo toooo good.....amazing

aur vo nazm bhi....bohot khoobsurat hai....shaam ban gayi sir...

PS kayi din se soch rahi thi internet ko hindi mein kya kahenge......thanks :P

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

दोनो सही हैं - चाहे नेट की रस्सी पर टांगो, चाहे किताब की बाइण्डिंग में सहेजो!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

चढ़ना शुरु कर
अमरबेल की तरह
न जाने कैसे
एकाएक खत्म हो जाती है
अहसास कराती कि
कोई अमर नहीं होता
कहानी भी नहीं

मन के भावों की खूबसूरत अभ्व्यिक्ति।
सचमुच, सब कुछ नश्वर है यहां।

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma ने कहा…

धन्यवाद

अनिल ने कहा…

आपकी लेखनी अद्भुत है.....

Akhileshwar Pandey ने कहा…

जीना-मरना,मरना-जीना
है किसके वश में जानी
जो आया है,वो जायेगा
है बात सभी ने ये मानी

Asha Joglekar ने कहा…

भाव जैसे उमड उमड आ रहे है इस बेहद सुंदर कविता (कहानी) में । बहुत दिनों के बाद अब फिर ब्लॉग जगत में घूम रही हूँ । आपके उडन तश्तरी ने तो बादलों में पहुंचा दिया ।

Pratik Maheshwari ने कहा…

सत्य वचन समीरजी..
हम रहें ना रहें.. हमारे विचार अब अंतरजाल पर हमेशा रहेंगे..

रूप ने कहा…

कहानी लिखती नहीं,
ऊग आती है
खुद ब खुद,
एक जंगली झाड़ी सी.
न खाद की दरकार
और
न पानी की जरुरत.
वो
बढ़ चलती है अनगढ़ सी,
दिशा विहिन हवा के साथ,
हवा के रंग में

समीर जी इन पंक्तियों के लिए आपको कोटिश; बधाई, धन्यवाद भी की कहीं न कहीं यह मेरी भी सोच से मेल खाती है !