बुधवार, अगस्त 25, 2010

शीर्षक की तलाश!

 

एक किताब का शीर्षक तलाश रहा हूँ कि क्या रखूँ?

वैसे तो कुछ फार्मुले पता चले हैं बेस्ट सेलर बनाने के. कहते हैं इसके लिए शीर्षक का बहुत महत्व है. वही तो सबसे पहले आकर्षित करता है पाठक को किताब खरीदने के लिए.

मुझे समझाया गया कि शीर्षक कभी सीधा मत रखो वरना न तो किताब कोई खरीदेगा और न ही कोई आपको साहित्यकार मानेगा.

उदाहरण देते हुए उन अनुभवी सज्जन (साहित्यकार)(बेस्ट सेलर) ने बताया कि जैसे अगर उपन्यास का नाम मम्मी (Mummy) या बहन(Sister) रखो तो कौन खरीदेगा भला. शीर्षक को happening बनाओ. जैसे मम्मी की जगह लिखो, माई फादर्स वाईफ (My Father's Wife) और बहन की जगह माई मदर्स डॉटर (My Mother's Daughter).

पड़ोसन लिखने में वो बात कहाँ जो नेबर्स वाईफ लिखने में है.

याद आता है कि यूँ भी गुलाब लिख देने पर जेहन में अक्स लाल गुलाब का ही उभरता है मगर ’लाल गुलाब’ लिखने की बात अलग है. एकदम स्पष्ट.

अब चूँकि किताब तो छपवानी ही है और हिन्दी में भला क्या बेस्ट सेलर-दो चार बेच लो तो कम से कम अपने पेड प्रकाशक के तो बेस्ट सेलर हो ही लिए. विश्व के न सही, देश के ही सही, वरना प्रदेश, शहर, मोहल्ला, कहीं के तो हो ही लेंगे, तब क्यूँ न ऐसा ही कुछ भड़कीला शीर्षक तलाशा जाये. आखिर संतोषी जीव हैं.

वैसे बाँये हाथ से लिखता हूँ तो ख्याल आया था कि ऐसा कुछ रख दूँ: ’बाँये हाथ में लड़खड़ाती कलम’ या ’उल्टे हाथ में सीधी कलम’- कैसा रहेगा?

आप सोच रहे होगे कि भई, कहानी तो बताओ जिसका शीर्षक रखना है..कैसी बातें पूछते हैं आप? उनसे कुछ तो सीखो जो पुस्तक की प्रस्तावना या पुस्तक के बारे में दो शब्द (चार पन्नों में) तक बिना पुस्तक पढ़े या देखे लिख डालते हैं. मुद्दा इतना है कि आप उन्हें कितना जानते हैं.

तो कहानी- उसकी चिन्ता न करें. एक पैराग्राफ शीर्षक आधारित कहीं भी एडजस्ट करके जस्टीफाई कर देंगे, आप तो बस जरा तड़कता भड़कता शीर्षक बताओ और यह गज़ल पढ़ो. महावीर ब्लॉग पर कुछ समय पूर्व छप चुकी है.

अकेले चले हो किधर धीरे-धीरे
युं ही क्या कटेगा सफ़र धीरे-धीरे

दुआओं की खातिर किये थे जो सज़दे
सभी को दिखेगा असर धीरे-धीरे

पिलाई है तुमने जो आँखों से मदिरा
चढ़ेगी वो बन के ज़हर धीरे-धीरे

रहूँगी मैं ज़िंदा सजन बिन तुम्हारे
चलेगी ये सांसें मगर धीरे-धीरे

नहीं मैंने सोचा, जुदा तुमसे होकर
कि बरपेगा ऐसा क़हर धीरे-धीरे

उसे बोलते हैं नज़र का मिलाना
खुशी से मिली हो नज़र धीरे-धीरे

कभी तो कहो प्यार से बात मन की
बना लो मुझे हमसफ़र धीरे-धीरे

-समीर लाल ’समीर’

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101 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

समीर लाल जी कभी -कभी तो फिल्म से ज्यादा उसके गाने चलते है अच्छी गज़ल है रदीफ़ को कायम रखा गया है मुबारक हो

Gyan Darpan ने कहा…

शीर्षक की काहे चिंता कर रह है आजकल तो बिना शीर्षक के ही किताब छप जाती है :)

अजय कुमार ने कहा…

’शीर्षक क्या हो ’ इसकी प्रतियोगिता हो जाये ,जीतने वाले को १०१ टिप्पणी का इनाम ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

कोई सेक्सी शीर्षक रखिए :) ‘धीरे-धीरे...’ कैसा रहेगा :) :)

वाणी गीत ने कहा…

दो शेर विशेष पसंद आये ...
@पिलाई है तुमने जो आँखों से मदिरा
चढ़ेगी वो बन के ज़हर धीरे-धीरे ...
धीरे से जो खिसका दिए हैं व्यंग्य प्याला ...
इसका जहर भी उतरेगा धीरे- धीरे ...:):)

@दुआओं की खातिर किये थे जो सज़दे
सभी को दिखेगा असर धीरे-धीरे ...

एक शेर लिख दूँ मैं भी उधार का ...
दुआएं हमने मांगी हसरतें निकली रकीबों की
असर उल्टा ही होता है दुआओं में बदनसीबों की ....

Udan Tashtari ने कहा…

प्रसाद साहेब:

धीरे धीरे...सेक्सी की जगह वल्गर न ठहरा दिया जाये..बड़ा डर सा लगता है. :)

निठल्ला ने कहा…

समीर जी, कहानी आप लिख दो, शीर्षक मैं ढूँढ देता हूँ फिर चाहें तो आप सलीम-जावेद की तरह लेखक युगल में हमारा नाम भी जोड़ देंगे तो कसम उड़ान झल्ले की हम ऊफ तक ना करेंगे ;)

रंजन ने कहा…

अपनी फेसबुक पर टांगने के लिए एक अच्छा शेर मिल गया...

नहीं मैंने सोचा, जुदा तुमसे होकर
कि बरपेगा ऐसा क़हर धीरे-धीरे...

वैसे "शीर्षक की तलाश" भी तो एक शीर्षक है...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

"इस कहानी की सुबह नहीं" कैसा रहेगा?
वैसे हमारे पास शीर्षक विशेषज्ञ भी है,जिन्होने भले ही कोई किताब नहीं रखी, लेकिन शीर्षक हजारों के दिए हैं।
अगर कोई समस्या हो तो नि:संकोच सम्पर्क करें।:)

संगीता पुरी ने कहा…

रचना से अधिक शीर्षक का महत्‍व है .. ब्‍लॉगिंग में भी लोग इसे स्‍वीकार करते हैं .. आज आपकी समस्‍या हल हो जानी चाहिए !!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

@ तो कहानी- उसकी चिन्ता न करें. एक पैराग्राफ शीर्षक आधारित कहीं भी एडजस्ट करके जस्टीफाई कर देंगे, आप तो बस जरा तड़कता भड़कता शीर्षक बताओ

हे राम!

@ युं ही क्या कटेगा सफ़र धीरे-धीरे
दुआओं की खातिर किये थे जो सज़दे
सभी को दिखेगा असर धीरे-धीरे
पिलाई है तुमने जो आँखों से मदिरा

चढ़ी उतरती नहीं - धीरे हो या तेज़।

उम्मतें ने कहा…

@ समीर लाल जी ,
बिना शीर्षक बड़ी 'मनोउन्मादकारी' कविता है !


टीप :
मैंने तो 'मादक' लिखूंगा सोचा था पर आलेख से प्रभावित भी होना था :)

Ashish (Ashu) ने कहा…

ser ji...book ke liye bas aapna naam hi kabhi hai...hatho haath bikegi...:)

Ashish (Ashu) ने कहा…

ser ji...book ke liye bas aapna naam hi kabhi hai...hatho haath bikegi...:)

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

अकेले चले हो किधर धीरे-धीरे
युं ही क्या कटेगा सफ़र धीरे-धीरे
...
अच्छा, हमारे बिना सफ़र काट रहे हैं। तो शीर्षक हाजिर है: जाट बिन सफ़र।
अब देखना बेस्ट सेलर भी अपनी बगलें झाकेंगे।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

समीर बाबू,
जब “माँ” को माई फाद’र्स वाइफ और “बहन” को माइ मद’र्स डॉटर लिखले जा रहा है साहित्त जगत में, त आप भी धीरे धीरे को लपेट कर कछुए की चाल सीर्सक रख दीजिए..नहीं त तेज़ नहीं रख दीजिए…

कुमार राधारमण ने कहा…

शीर्षक के तौर पर "?" कैसा रहेगा?

शिक्षामित्र ने कहा…

ये वाला चलेगा क्या?:"!"

सुशीला पुरी ने कहा…

आपका भी जवाब नही !!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पिलाई है तुमने जो आँखों से मदिरा
चढ़ेगी वो बन के ज़हर धीरे-धीरे

बहुत खूबसूरत गज़ल है ...

किताब का कुछ भी शीर्षक रख लें ...उसमें आपका नाम ही काफी है ..

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

विषय अच्‍छा है विषय अभाव मे मैने भी एक बार विषय अभाव पर कविता लिख डाली थी।

sanu shukla ने कहा…

बहुत सुन्दर गजल है ....और हाँ भाईसाहब आपको वैवाहिक वर्षगांठ की बहुत बहुत शुभकामनायें (एक दिन की देरी के लिए माफ़ी चाहता हूँ ):-)

Majaal ने कहा…

सर बिना पैर, या पैर बिना सर,
लगेगा अजायब, बिकेगा असर.

seema gupta ने कहा…

नहीं मैंने सोचा, जुदा तुमसे होकर
कि बरपेगा ऐसा क़हर धीरे-धीरे

" बेहद पसंद आई ये पंक्तियाँ"

"रही बात शीर्षक की तो थोडा सा इन्तजार कीजिये, एक से एक शीर्षक मिलेंगे आपको फिर आपको फैसला करना मुश्किल होगा की कौन सा रखा जाए हा हा हा हा .."
regards

दीपक 'मशाल' ने कहा…

आप दोनों को बधाई... यूँ ही ये दिन, महीने, साल गुज़रते जाएँ.. आप दोनों प्यार में जीते जाएँ....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आप त कमाल करते हैं...कहाँ लुकाए बइठे थे कि आज आपका बिबाह बार्सिकी है...
बधाई हो बधाई!! भाभी जी को अलग से, हमरे ननिहाल की जो है!!!!

राजेश उत्‍साही ने कहा…

जो इस पोस्‍ट का है वही क्‍या बुरा है।

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

भाई , आजकल तो रफ़्तार का जमाना है , तो शीर्षक रख दीजिए " कैसे कटेगा सफ़र धीरे-धीरे" इससे उपयुक्त शीर्षक तो हमें मिला नहीं .....

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

भाई , आजकल तो रफ़्तार का जमाना है , तो शीर्षक रख दीजिए " कैसे कटेगा सफ़र धीरे-धीरे ? " इससे उपयुक्त शीर्षक तो हमें मिला नहीं .....

संजय भास्‍कर ने कहा…

ser ji...book ke liye bas aapna naam hi kaafi hai.

Himanshu Mohan ने कहा…

"अनस्तित्व की अस्मिता"
से लेकर
"ख़ौफ़नाक मसाला"
तक कुछ भी चलेगा…
शीर्षक से भी पहले कलेवर पर टेढ़ी लाल पट्टी में छपा हो "1000 सेकण्ड का टॉक-टाइम फ़्री - हर तीन प्रतियों पर"
"कनाडा से जबलपुर तक-लाखों मैनेजर्स-इंजीनियर्स-मीडियापर्सन्स-इकॉनॉमिस्ट्स की पहली पसन्द!"
"आप समीर लाल से हस्ताक्षरित प्रति पा सकते हैं - गूगल-बज़ पर सीधे बात करने के सुनहरे अवसर के साथ"
"एक कॉल आएगी और आप के जीवन में कुछ ऐसा होगा जो पहले कभी नहीं हुआ - जिसे आप दिल से पूरा करना चाहते थे"
से लेकर और भी हज़ारों तरीक़े हैं कैम्पेन के - जिससे किताब बेच लेंगे हम लोग।
जैसे -
"श्री…ने इस किताब की बीस प्रतियाँ खरीद कर बाँटीं तो उन्हें अगली ही पोस्ट पर 75 टिप्पणियाँ मिलीं"
(जो नहीं बताया जाएगा - कि एक टिप्पणी ही 74 बार थी - "ठीक से टाइप किया करो")
"श्री…ने किताब का विज्ञापन अनदेखा कर दिया तो मन्दी के बहाने नौकरी से बाहर हुए"
"आख़िरी बार इस किताब को कलमाडी ने देखकर भी नहीं ख़रीदा था…" "डॉ यमयमसिंह ने किताब की 544 प्रातियाँ लेने का संकल्प लिया - हर किसी को विश्वास है उन पर - कोई अविश्वास नहीं"
------------------------
अब बताइये - शीर्षक अभी भी चाहिए?

SATYA ने कहा…

मैंने सुना है अगर किसी कविता का शीर्षक ना मिल रहा हो तो उस कविता की किसी सुन्दर पंक्ति को शीर्षक बनाया जा सकता है।

Unknown ने कहा…

आप अगर शीर्षक के लिए परेशान हो तो ...ये मजाक ही लगेगा ..तो ऐसा करिए शीर्षक बनाईये ..ऐ स्टोरी विडाउट एनी टाईटल......

रंजू भाटिया ने कहा…

युं ही क्या कटेगा सफ़र धीरे-धीरे....यही दे दे :)

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

शीर्षक
"बना लो हमसफ़र धीरे-धीरे"

rashmi ravija ने कहा…

दुआओं की खातिर किये थे जो सज़दे
सभी को दिखेगा असर धीरे-धीरे
बढ़िया ग़ज़ल है...
और शीर्षक की बात तो खूब कही....यहाँ ब्लॉग पर ही क्या कम माथापच्ची करनी पड़ती है..."शीर्षक कि तलाश " ही सबसे बढ़िया शीर्षक है.

बेनामी ने कहा…

shirshak ki chinta mat kijiye..uske bina bhi kaam chal jaayega.... :)

A Silent Silence : tanha marne ki bhi himmat nahi

Banned Area News : Hollywood bombshell Jessica Alba will star in the Spy Kids 4

shikha varshney ने कहा…

हा हा हा कभी किताब छपवाई तो नहीं पर हाँ सुना यही है कि शीर्षक टेडा हो तो ही बिकती है किताब :)

समयचक्र ने कहा…

आपकी पोस्ट पढ़कर यह ज्ञान मिला की शीर्षक कैसे लिखना चाहिए ..अजी साहब फ़िल्में तो ऐसे ही बिना शीर्षक के पहले बन जाती है .... नामकरण बाद में होता है .....
रोचक पोस्ट ..पढ़कर आनंद आ गया .... आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जमाने की चाल और ढाल को परख कर आपने बिल्कुल सही पोस्ट लगाई है!
--
रचना भी बहुत सटीक है!

neelima garg ने कहा…

interesting....

KK Yadav ने कहा…

बहुत खूब लिखा आपने...अब तो वाकई सोचना पड़ेगा.
________________
शब्द-सृजन की ओर पर ''तुम्हारी ख़ामोशी"

naresh singh ने कहा…

आज भी शीर्षक की चिंता .....! फेंक तो नहीं रहे है ?

Abhishek Ojha ने कहा…

सही है... असली चीज तो शीर्षक है बाकी तो दिखावा है :)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

इसका शीर्षक रखिये "a book without शीर्षक by S. लाल"

कसम ताऊ लठ्ठवाले की, झण्डे गा देगी.:)

रामराम.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

रख दीजिये; स्विस बैक साईट को हैक कर भारतीय चोरों का पैसा अपने बैंक में हस्तांतरित करने का नायाब नुख्सा !

रंजना ने कहा…

बात तो सही कहा आपने... शीर्षक ही तो किताब तक खींच ले जायेगा पाठक को...पैकिंग का जमाना है,बढ़िया होनी ही चाहिए..

ग़ज़ल लाजवाब है...हर शेर मनमोहक...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपतो किताब लिखो...आपकी किताब शीर्षक से नहीं नाम से बिकेगी...चाहो तो आजमा कर देख लो...सच्ची...वैसे " लाल समीर" नाम कैसा रहेगा...जब पीली आंधी , काली आंधी शीर्षक रखे जा सकते हैं तो लाल समीर क्यूँ नहीं...???लाल समीर याने लाल हवा...याने ख़ूनी क्रांति..
नीरज

दीपक 'मशाल' ने कहा…

वाह बहुत सही नाम सुझाया नीरज सर... इस तरह से बच्चों को इस किताब के लेखक का नाम भी आसानी से याद रह जाएगा.. वर्ना हम तो बहुत गालियों की भेंट चढाते थे लेखकों को कि अपनी किताब के शीर्षक में अपना नाम क्यों नहीं जोड़ते जिससे कि याद रख सकें उनका नाम.. १-१ नंबर में यही सवाल आते थे हिन्दी में.. :(

P.N. Subramanian ने कहा…

नाम में क्या रखा है! पर्चियां बनाकर लाटरी निकलवा लें अपनी पड़ोसन से.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम तो पुस्तक की प्रतीक्षा में हैं, जो भी होगा, दमदार होगा।

शारदा अरोरा ने कहा…

Shadee ki salgirah bahut bahut mubarak ho , kaisa kataa hai safar dheere dheere ..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

"प्रसाद साहेब:

धीरे धीरे...सेक्सी की जगह वल्गर न ठहरा दिया जाये..बड़ा डर सा लगता है. :)"

हम ने तो आप की कविता की पंक्ति से ये शब्द लिए जी :) अब ये वल्गर कैसे हो गए !!!!!

राजकुमार सोनी ने कहा…

आपको और भाभी को मेरी ओर से शुभकामना

जमाने के लिए जीने वालों को शीर्षक भी जमाना देता है.

एक शीर्षक हो सकता है-जमाने के हिसाब से जमाना

vikram7 ने कहा…

शीर्षक मिल जाए तो बताइयेगा,गजल अच्छी लगी

राजू रंजन प्रसाद ने कहा…

अच्छा व्यंग कर लेते हैं आप

राज भाटिय़ा ने कहा…

समीर जी फ़िर तो *फ़टा फ़ट*.... रख लो, किताब भी फ़टा फ़ट बिकेगी, वेसे ताऊ के पास कमी नही होगी......शुभकामनाये

Manish Kumar ने कहा…

लेख दिल को गुदगुदा गया !

सतीश पंचम ने कहा…

कविता अच्छी लगी।

शीर्षक वाली बात भी सच है कि जितना टेढ़ा मेढा़ होगा उतना ही ज्यादा बिकेगा :)

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

दुआओं की खातिर किये थे जो सज़दे
सभी को दिखेगा असर धीरे-धीरे
बहुत सुन्दर गज़ल है समीर जी.
शीर्षक सोचती हूं hmmmmmmmm..

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

आप की रचना 27 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com

आभार

अनामिका

Arvind Mishra ने कहा…

a great poem ....and for title ...thy neighbors wife ...??

Rohit Singh ने कहा…

1.आर फॉर रेड..
2.राईट इन लेफ्ट.....

1.इसमें आपका नाम छुपा है
2.इसमें व्यक्तिव छुपा है

कहते हैं लोग मुझे दस दस कोस तक कॉपी राइटर

पेड किताब छपवानी हो तो बताइएगा....दिल्ली में ज्यादा कीमत लेकर छपवा दूंगा ....दो-तीन हजार कॉपी......ब्लैक व्हाईट....कवर कलर.....25 रुपये पर कॉपी...60 पेज ....जनरल साईज...बिकवा दूंगा 20 कॉपी..गिफ्ट करवा दूंगा 1000 कॉपी..बाकी आप लेकर चले जाइएगा......

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट।
शीर्षक से ही भावनाओं की गहराई का अह्सास होता है।

Asha Joglekar ने कहा…

किताब का शीर्षक गर्म हवा की तर्ज पर लाल हवा रख लीजिये ।
गज़ल बढिया है ।

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

आप तो सर जी किताब छपवायें, हम भी पढ़ लेंगे
धीरे धीरे।
आभार

बेनामी ने कहा…

नहीं मैंने सोचा, जुदा तुमसे होकर
कि बरपेगा ऐसा क़हर धीरे-धीरे
इसे कहते हैं प्रेम की पराकाष्ठा कि 'उनके' बिना हर पल कहर ढाता-सा लगने लगे.
'पिलाई है तुमने जो आँखों से मदिरा
चढ़ेगी वो बन के ज़हर धीरे-धीरे'
ये भी कोई बात हुई कभी जिनके बिना जीना कहर है तो 'आँखों' की मदिरा जहर लगने लगी? विरोधाभास!
हा हा हा
मैं तो 'इन्हें' कहती हूं -
चली चलूंगी साथ साथ तेरे फलक के पार भी
थाम कर अंगुली(हा हा हा हाथ नही) जो तू चले धीरे धीरे.
रुक ना सकेंगे फिर मेरे आंसूं
जो फिरेगा मेरे माथे पर तेरा हाथ धीरे धीरे'
शीर्षक?? कर लो बात.जब बिना शीर्षक मेरी अपनी जीवन की कहानी खूबसूरत मोड़ लेती रही और इतने प्यारे प्यारे पात्र जुड़ते गए कि 'लिखने वाले से ' कोई शिकायत नही रही तो आपको कोई शीर्षक क्या और क्यों बताऊँ? नही बताती.
ऐसिच हूं मैं तो .

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aapke blog ka jo naam hai, wahi har jagah fit rahega........

Udan tashtari.......:)

gajal ka to kya kahna...aap aapke mureed pahle se hain..!!

Devendra Gehlod ने कहा…

यह सच है शीर्षक का महत्व बहुत अधिक है यदि शीर्षक ही उबाऊ ह तो उसमे लिखे लेख पड़े भी नहीं जाते

डा० अमर कुमार ने कहा…


शीर्षक की तलाश!
स्वयँ " शीर्षक की तलाश! " ही इतना भड़काऊ है, किताब बेचने के वाँदे नहीं होंगे । अब देखिये मैं स्वयँ ही इतना सराबोर हो गया, कि मॉडरेशन की परवाह न करते हुये सुझाव देने को कूद पड़ा, मानते है कि नहीं ?
बकिया जिम्मा सँभालने को आपका नाम ही काफ़ी है !
कुछ कसर बची हो, तो थोड़ा दे दिवा कर कितबिया बैन करवा लीजिये, तीन महीने का इँतज़ार... उसके बाद इसे मारकेट में उछाल दीजिये, किताब तो क्या, इसकी फोटोकॉपी तक बिकेगी !
अगर अभी भी कुछ कसर हो, तो इसमें हिमाँशु स्वरूप जी का कोई एक सुझाव टाँक दीजिये, सब एक से बढ़ कर एक हैं ।
इस समय बिखरे मोती समेट रहा हूँ, ताऊ को बहुत बहुत धन्यवाद कि उनके निग़ाहे-करम से किताब मेरे बिस्तर की शोभा बढ़ा रही है, ई-मेल पर आपके लेखों की फ़ीड तीसरे दिन क्यों मिला करती है, भाई !
और कुछ ?


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Urmi ने कहा…

रहूँगी मैं ज़िंदा सजन बिन तुम्हारे
चलेगी ये सांसें मगर धीरे-धीरे
नहीं मैंने सोचा, जुदा तुमसे होकर
कि बरपेगा ऐसा क़हर धीरे-धीरे..
बहुत सुन्दर लगी ये पंक्तियाँ! शानदार और लाजवाब ग़ज़ल है! शीर्षक कुछ इस तरह से हो "धीरे धीरे..चलते रहे संग संग" ! वैसे आप जैसे महान लेखक का किताब जल्द जल्द से छप जाए और हमें पढने का मौका मिल जाए यही चाहती हूँ!

Urmi ने कहा…

आप दोनों को विवाह की वर्षगांठ पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

shirshak - raat akeli, chaand akela..........chalega?

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

शीर्षक नहीं जी नाम बिकता है फिर आप को काहे की चिंता बस नाम लिखते ही बेस्ट सेलर के लिए किताब हिट हो जाएगी. आप तो बस आमुख लिक डालिए देखिये कैसे प्रकाशक आपके पीछे हाथ धो कर पड़ जाते हैंकि आपको प्रकाशक चुनने के लिए पोस्ट देनी पड़ेगी.

ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

आता हूं, पढता हूं और खो जाता हूं।
इसलिये टिप्पणी न भी हो तो यह न समझें कि पढता ही नहीं।
हर बार कुछ नया और समझाइश भरा

Mahendra Arya ने कहा…

शीर्षकहीन किताब - ये कैसा रहेगा जनाब ?

ओशो रजनीश ने कहा…

बेहद पसंद आई ये पंक्तियाँ
http://oshotheone.blogspot.com/

ASHOK BAJAJ ने कहा…

वाह !!! क्या कविता है

" मंजिल की चाहत है " ,शीर्षक तुम्हारी ;
यकीनन मिलेगीं , मगर धीरे धीरे ;

---- अशोक बजाज

ज्योति सिंह ने कहा…

अकेले चले हो किधर धीरे-धीरे
युं ही क्या कटेगा सफ़र धीरे-धीरे

दुआओं की खातिर किये थे जो सज़दे
सभी को दिखेगा असर धीरे-धीरे
laazwaab ,aap itna behtar likhte hai ki shirhsak umda hi sochenge .

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

शीर्षक तो मुझे भी नहीं सूझ रहा....... सोच कर बताता हूँ........ बाहर होने की वजह से लेट हो गया...

ZEAL ने कहा…

.
sundar kavita..

title-

" Asar dheere-dheere"
.

अनिल ने कहा…

समीर जी मै आपकी बेबाक कलम का कायल हूं

Madhu chaurasia, journalist ने कहा…

लाजवाब कविता सर जी...

मैं बोलूंगी खुलकर ने कहा…

समीर जी, शब्दों की उड़ान भी क्या खूब है. शीर्षक से किताब का हाल जान लेते हैं लोग.

शरद कोकास ने कहा…

शीर्षक रखने की इस उधेडबुन से मै भी गुजर रहा हूँ इन दिनो ... गज़ल उम्दा है ।

#vpsinghrajput ने कहा…

अच्छी लगी।

Laxmi ने कहा…

किताब का विषय क्या है? शीर्षक तो उसी पर निर्भर है। ग़ज़ल अच्छी लगी।

Parul kanani ने कहा…

sir ..kya mushkil hai..yahan har koi salaah dene ko bekrar hai...ghazal..umda hai!

Prem ने कहा…

बहुत दिनों बाद ,समय निकाल pआई हूँ ,हमेशा की तरह आपकी सभी रचनाएँ पढ़ कर बहुत अच्छा लगा । किताब का शीर्षक आखिर मिला ?हमें भी बताइयेगा । शुभकामनायों सहित ।

mehek ने कहा…

ab shirshak ke bare mein jyada nahi pata,magar haan tedha shirshak pathak ko akarshit jarur karta hai:),gazal behad khubsurat,chadta jaa raha hai nasha dhire dhire,agar isko sunder aawaz ki jhalar bhi hoti aur maza aata.

Anand Rathore ने कहा…

bazarwad mein har lekhak ki yahi haalat hai...lekin unhe sirf achchi rachna nahi chahiye bechna bhi hota hai... unki bhi majburi hai... fir bhi ..kabhi kabhi lagta hai HIGHT HAI SIR JI....

मेरे भाव ने कहा…

पिलाई है तुमने जो आँखों से मदिरा
चढ़ेगी वो बन के ज़हर धीरे-धीरे

बहुत खूबसूरत गज़ल है ...
appke liye shirshak likhna kya badi baat hai. kyon sabka imtahan liye jaa rahe hain ....

baddimag ने कहा…

begtrin kavita hai sameer ji
lage rahen

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

यूरेका.....यूरेका.....यूरेका.....समीर....मिल गया....मिल गया.....मिल गया.....शीर्षक मिल गया...."धीमे-धीमे बोलते शब्द"...."हौले-हौले अर्थ''....."इक ज़रा-सी आहट''...
"मंद-मंद समीर"...."उड़न-तश्तरी-दा तडका"......"शब्द नंगे नहीं होते"....."लौट जाओ ना अर्थ"....."मुझसे जो बाहर आकर.....!!"...हा.....हा....हा...हा....भूतनाथ की राय.....भूतनाथ की ही तरह......!!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

खैर आप जो भी ढूंढेंगे मजेदार ही ढूंढेंगे...सभी को इंतजार रहेगा.

मथुरा कलौनी ने कहा…

श्रीलाल शुक्‍ल ने अपने लेख 'शीर्षकों का शीर्षासन' में शीर्षक चुनने की सात तरकीबें बताई हैं।
अवश्‍य पढ़ें। पढ़कर शीर्षक तो खोज ही लेंगे, एक मजेदार लेख का आनंद मुफ्त

पंकज ने कहा…

आजकल शीर्षक(टाइटिल) से ज्यादा उपशीर्षक (सबटाइटिल) का महत्व है. किताबें हों या फिल्में, शीर्षक लंबा और उपशीर्षक उससे भी लंबा.

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुन्दर गजल---आर्दिक शुभकामनायें।

Aruna Kapoor ने कहा…

अकेले चले हो किधर धीरे-धीरे
युं ही क्या कटेगा सफ़र धीरे-धीरे

मजा आ गया समीरजी!.... किताब का नाम ' शिर्षक मिल गया..' कैसा रहेगा!

Sourabh ने कहा…

आपने जैसा कहा की आप बाएं हाथ से लिखते हो और सीधे दिमाग से सोचते हो, तो आपने बाएं और दायें दोनों तरफ के भार को संतुलित किया हुआ है. वैसे मैं जिस शीर्षक का सुझाव देना चाहता हूँ वो पूरी तरह से आपके व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति तो नहीं कर पा रहा है किन्तु कुछ हद तक ये आपके करीब का ही शब्द मुझे प्रतीत होता है... .. "सव्यसांची"

ePandit ने कहा…

"पड़ोसन लिखने में वो बात कहाँ जो नेबर्स वाईफ लिखने में है"
वाह क्या गुरुमन्त्र दिया है। किताब तो हम लिखते नहीं पर चिट्ठा पोस्ट का शीर्षक लिखने में काम आयेगा।

ऊपर नीरज जी की सलाह दुरुस्त है "लाल सलाम" की तर्ज पर "लाल समीर" रख लें।