वो सोचा करता था कि एक दिन जब जिन्दगी तो रोज रोज की भाग दौड़ से फुरसत पा लेगा, तब दिल्ली का अपना मकान बेच कर कहीं पहाड़ों में जा बसेगा. जहाँ घर के आसपास होंगे चीड़ देवदार के वृक्ष, चिड़ियों का चहचहाता संगीत, बरामदे में गरम चाय की प्याली लिए नीचे बहती नदी को निहारता वो. तब वह अपना उपन्यास लिखेगा. प्लॉट दिमाग में है बस लिखने का समय नहीं है.
कल ७७ वर्ष की अवस्था में अपोलो अस्पताल में उसने आखिरी सांस ली.
उपन्यास कभी शुरु नहीं हो पाया और प्लॉट बस प्लॉट ही रह गया. कौन जाने क्या प्लॉट था.
काश! वो जान पाता कि समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है.
काश! इन्तजार की बजाय उसने संतुलन के महत्व को समझा होता.
कठपुतलियाँ
चंद धागों में बँधी
इशारों पर
नाचती है,
झुकती हैं,
सलाम करती हैं.
और
जब कोई दर्शक नहीं होता
तो निढाल हो
पड़ी रहती है एक कोने में...
कर्तव्यों,
दायित्वों
और
सामाजिक नियमों
के
धागे में बँधा
नाचता, झुकता और सलाम करता..
अँधेरी घुप्प इस काली रात में
अपनी कमरे की कुर्सी पर
अकेला निढाल पड़ा
सोचता हूँ मैं..
-समीर लाल ’समीर’
यू ट्यूब पर सुनें:
मेरे यू ए ई के मित्रों के लिए:
या यहाँ पर क्लिक करके सुनें.
95 टिप्पणियां:
जिसके हाथ में डोर,
वही नचाता है कठपुतली
समर्थ है कितना वह
जो बनाता है कठपुतली
राम राम जी
उम्दा पोस्ट,सुनने का जुगाड़ करते हैं।
जीवन-दर्शन ,बस जरूरत है अपनी डोर अपने हाथ में लेने की ।
सच कह रहे हैं आप, जीवन एक कठपुतली ही है जिसकी डोर हमारे हाथ में नहीं है।
सभी परिस्थितियों में सन्तुलन बनाये रखना प्रसन्नता की चाबी है।
काश! वो जान पाता कि समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है.
काश! इन्तजार की बजाय उसने संतुलन के महत्व को समझा होता.
बढिया जीवन दर्शन .. लेकिन करें क्या .. डोर तो दूसरे के हाथ में है !!
दर्दनाक ! वाकई समीर भाई जीवन का कुछ भरोसा नहीं ...कब डोर ऊपर खींच ली जाये.. इस बढ़िया सन्देश के लिए आपको शुभकामनाये !
कठपुतलियाँ और उनका भविष्य!
--
शीर्षक तो यही अच्छा रहता!
--
लघुकथा बहुत मार्मिक है !
यदि इसे गद्य-गीत कहा जाये तो अतिश्योक्ति न होगी!
gaya vaqt haath aata nahi..
समय मिलता नहीं , निकालना पड़ता है ....यही सही है ...
कठपुतलियां हम सब हैं उस एक अदृश्य डोर से बंधी ...
खींचते मगर अपने आपको इस तरह रहना है हमेशा यहीं ..
कथा और कविता दोनों ही बहुत उम्दा
"....समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है."
सर्वथा सहमत. मेरा अपना अनुभव है कि जीवन का सर्वाधिक व्यस्त समय सबसे रचनात्मक समय होता है.
वाह-वाह, क्या खूब कठपुतली हैं आप। मगर मुझे स्वचालित से लगते हैं। सच्ची...।
waah sameer ji kyaa baat hai
---
गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
यह लघुकथा एक जीवन सन्देश है...जो काम करना है, उसे टालना नहीं चाहिए.. कठपुतलियों के माध्यम से ज़िंदगी की सच्चाई को कह दिया है...
समीर लाल जी आपकी यह रचना मेरे ख्याल से हर किसी को सोचने के लिए मजबूर जरूर करेगी | धन्यवाद आपका इस उम्दा व प्रेरक रचना के लिए | हर किसी को जीवन के महत्व को समझना चाहिए और जीवन का सच्चा महत्व परोपकार में है इसलिए ईमानदारी से हर किसी को सामर्थ्य के अनुसार किसी भी तरह से परोपकार जरूर करना चाहिए |
pata nahin is sach ko log samajh kyun nahi pate... jivan kahin bhi thaharta nahin hai ....
"गहरी सम्वेदनाओं से भरी हुई पोस्ट..."
@उड़न तश्तरी उर्फ समीर जी
मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बन्ने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें
धन्यवाद
महक
@उड़न तश्तरी उर्फ समीर जी
मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बन्ने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें
धन्यवाद
महक
@उड़न तश्तरी उर्फ समीर जी
मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बन्ने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें
धन्यवाद
महक
sahi bas हम sab sochte ही rah jaate हैं aur kab dor kheench jaaye kaun jaane
प्रिय भाई,
आप ने इस तरह की लघु कथाएं, तस्वीरें, कबिताएं आदि पर अपनी कलम को दौड़ाकर जो कागजों पर उकेरा है, वह बहुत-बहुत सराहनीय है। मैं आप से उम्मीद करता हूं कि इस प्रक्रिया को आप सतत जारी रखेंगे। इस बार बस इतना ही---------। मैं आप के साथ सतत जुडऩा चाह रहा हूं लेकिन आप का संपर्क नहीं है।
जय प्रताप सिंह
अखबार से जुड़ा पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता
blog- ukaabthegreatbird.blogspot.com
mo.n.-09540374204
प्रिय भाई,
आप ने इस तरह की लघु कथाएं, तस्वीरें, कबिताएं आदि पर अपनी कलम को दौड़ाकर जो कागजों पर उकेरा है, वह बहुत-बहुत सराहनीय है। मैं आप से उम्मीद करता हूं कि इस प्रक्रिया को आप सतत जारी रखेंगे। इस बार बस इतना ही---------। मैं आप के साथ सतत जुडऩा चाह रहा हूं लेकिन आप का संपर्क नहीं है।
जय प्रताप सिंह
अखबार से जुड़ा पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता
मोबाइल नंबार-- 09540374204
blog-ukaabthegreatbird.blogspot.com
EMAIL- jaipratapsingh80
गुरुदेव,
आपसे सबसे पहले कमेंट में मैंने फिल्म आनंद का ज़िक्र किया था...गुरु-चेले की जोड़ी का...आज वही डॉयलॉग याद आ गया...
ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है जहांपनाह,
उसे न आप बदल सकते हैं और न मैं,
हम सब रंगमंच की कठपुतलियां हैं,
जिनकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों में बंधी है,
कब, कौन, कैसे उठेगा कोई नहीं बता सकता...
आप से आग्रह है, आनंद फिल्म के इस लिंक को भी ज़रूर देखिएगा...
http://www.youtube.com/watch?v=BIIRvKtd_e4
जय हिंद...
डरा दिये आप।
आज से उपन्यास लिखना प्रारम्भ।
मेरा मन ही मेरा दर्शक है, मैं उसके लिये ही चैतन्य रहूँगा।
हम सब कठपुलती हैं और डोर उस आस्मां वाले के हाथ में है बाबू मोशाय!
जीवन दर्शन दर्शाती रचना .
हम सबकी डोर ऊपर वाले के हाथ में बंधी है...
वाकई हम सब कठपुतली है.
अच्छी पोस्ट.
जीवन दर्शन करा दिया…………यही तो सच है।
mere kuch sawalon ke jawab de gayi aapki yeh rachna.
जीवन दर्शन करा दिया…………………यही तो ज़िन्दगी का सच है।
... बेहतरीन ... आवाज भी शानदार!!!
सच तो यह है कि इस कठपुतली की डोर हमारे ही हाथ में है। हां कब किसे अपना प्रदर्शन करना है यह वक्त तय करता है।
sir ..ye panktiyaan ..jeevan ka saaransh hai!
काश! वो जान पाता कि समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है....
सहमत.बढिया पोस्ट..
अले वाह, कित्ती प्यारी कठपुतली...मजा आ गया देखकर.
@ समीर अंकल जी,
आप तो बहुत प्यारे अंकल निकले. इससे पहली की मैं चिड़िया-टापू वाली अपनी चिड़िया दिखाऊँ, आपने अपनी वाली चिड़िया भेज दी...प्यारे-प्यार पंछी. इसके लिए आपको ढेर सारा प्यार व धन्यवाद. आज यह 'पाखी की दुनिया' में चूं-चूं कर रहा है...
जीवन का सच बता रहे है, समीर भाई ??
बहुत बढ़िया लगी आपकी दोनों ही रचनाएँ !
शुभकामनाएं !
Priya bhai, aap siddha rachanaakaar hain. Pahali hi laghukathaa is baat ko prmaanit karati hai. Vaishvik paristhitiyon me maanveeya vidambanaaon ka sadhaa huaa ankan aap karate hain. Aap ki tippani mere liye vishesh mahatva rakhati hai.
समीर जी, कठपुतलियों के बहाने जीवन का कटु सत्य बयान कर दिया आपने। बधाई।
................
नाग बाबा का कारनामा।
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?
इस रंगमंच पर तो सभी कठपुतलियाँ ही हैं समीर भाई ... हम सब की डोर भी पता नही किसके हाथ है ....
गहरी लघु-कथा और उत्तम रचना ...
हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.
पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......
अधिक पढने के लिए चटका (click) लगाएं
हमारीवाणी.कॉम
bahut gahree baat.......
aabhar.
कथा और कविता दोनों ही कुछ सोचने पर विवश करते हैं...
काश! इन्तजार की बजाय उसने संतुलन के महत्व को समझा होता........ बिलकुल सही कहा आपने...
काश! वो जान पाता कि समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है. ......... मुझे भी आपने एक तरह से नसीहत दे दी... अबसे मैं भी इस बात का ख्याल रखूँगा...
कविता दिल को छू गयी...
""समय और संतुलन"" ये तो जीवन के एक महत्वपूर्ण बिंदु हैं यहीं तो कुछ कर गुजरने के लिए जिम्मेदार होते हैं .... ... दार्शनिक भाव में बढ़िया रचना प्रस्तुति ..आभार
जिसने कठपुतली के रहस्य को जान कर मान लिया उसी ने वह पद प्राप्त किया है जिस पद को पाने के बाद कुछ भी पाना शेष नही रहता है।
GADYA HO YAA PADYA AAPKEE LEKHNI
KHOOB CHALTEE HAI.PADH KAR MUN
KHUSH HO JAATAA HAI.
उम्दा जीवन दर्शन !
काश! वो जान पाता कि समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है.
काश! इन्तजार की बजाय उसने संतुलन के महत्व को समझा होता.
बहुत सुन्दर जीवन दर्शन प्रस्तुत किया आपने |
आपकी कविता भी उम्दा है, इंसानी लाचारी को बखूबी व्यक्त कर रही है |
ज्यादातर लोग ऐसे ही उपन्यासकार जैसी जिंदगी जीते हैं । सारी जिंदगी सपने देखते रहते हैं भविष्य के । भविष्य तो कभी आता ही नहीं । हमेशा वर्तमान ही छाया रहता है ।
सही कहा --समय मिलता नहीं , निकालना पड़ता है ।
वाह सर, रिलैक्स फ़ील कर रहा हूं। सब मिलता जुलता है, इसका मतलब अभी सैंतीस साल हैं अपने पास।
कविता भी सोचने पर मजबूर करती है।
आभार।
सत्य का उदघाटन -कविता अच्छी लगी और सुनायी भी अपने अच्छी -शुक्रिया !
क्या पता,उपन्यास लिखने की बजाए जिन कामों में उनका वक्त बीता,वह कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण रहा हो!
मन को छू लेने वाली रचना. बहुत ही अची लगी. कुछ अपनी भी लगी.
१०-११ साल से Chicago में रहते हैं. अपना मकान बेच कर, पहाड़ो में उपन्यास लिखने तो नहीं जा रहे. पर हाँ चिकागो का माकन बेच कर कुछ ही महीनो में चंडीगढ़ जा रहे हैं. सपने पूरे करने हैं. सही समय का इंतजार करने की बजाये समय निकल कर ही जा रहे हैं.
तेज भागती दुनिया में व्यस्त जिंदगी का स्वाद कुछ जमा नहीं. अब कुछ बचपन के सपने याद आए हैं. आपकी रचना अपनी सी लगी.
बेतरीन और उम्दा रचना
आपकी लघु कथा ने बहुत कुछ सोचने को बाध्य किया ।
ये मज़ा और है, कि आपको रूबरू सुनें...
kitte din se yu nidhal pade soche hi ja rahe hain...kahin sakriye nazar nahi aa rahe hain...me dekh rahi hun :):)
कठपुतलियों के माध्यम से ज़िंदगी की सच्चाई को कह दिया है...
हम सब भी तो उस की कठपुतलियाँ ही है.....
हम सब भी तो कठपुतली ही हैं
बहुत सही कहा समीर जी , समय निकालना पडता है नहीं तो ये कभी भी नहीं आता !!
समय नहीं मिलता, निकलना पड़ता है. बिलकुल सच !
nice short story
एकदम सही बात है ... जीवन बस एक ही बार मिलता है ...
Kahani aur laghu katha dono achhe hain bahut..kahani khaskar achhi lagi
'पाखी की दुनिया' में आपकी कविता पढ़ी..वाकई बेजोड़...हमारी भी बधाई...
********************
'बाल-दुनिया' हेतु बच्चों से जुडी रचनाएँ, चित्र और बच्चों के बारे में जानकारियां आमंत्रित हैं. आप इसे hindi.literature@yahoo.com पर भेज सकते हैं.
दिल को छू गई दोनों रचनाएँ...क्या खूब लिखीं....
मैं भी हमेशा यही कहता हूँ..कि समय किसी के पास नहीं है..समय तो निकलना पड़ता है...
इसी सन्दर्भ में मेरी एक कविता का अंश प्रस्तुत है..समय की कीमत कब समझूंगा ,
समय निकल जाएगा तब।
समय सफलता कैसे देगा,
कोशिशें ना करता मैं।।
सामाजिक नियमों
के
धागे में बँधा
नाचता, झुकता और सलाम करता..
अँधेरी घुप्प इस काली रात में
अपनी कमरे की कुर्सी पर
अकेला निढाल पड़ा
सोचता हूँ मैं..
marmik rachna ,dil ko chhoo gayi .sach jeevan kathputali hi ki tarah chalti hai .umda
जीवन दर्शन लिए गंभीर कविता .
बहुत अच्छी है.
[यू ट्यूब आज कल चलता है यू ऐ ई में :)..ख़ास हम लोगों के लिए ऑडियो प्लयेर लगाया ,धन्यवाद.]
-कविता पाठ आप के स्वर में प्रभावी रहा.
आपके विचारों को सलाम............
बेहतरीन रचना...
Sach kha aapne jivan kathputli hi to ha par santuit krna hamara kam ha na...bahut2 badhai
सशक्त कथ्य के साथ
एक दमदार लघुकथा की प्रस्तुति!
--
अभी तक कहावत सुनी थी
कि मनुष्य कठपुतली के समान होता है,
पर आपकी कविता ने यह सिद्ध कर दिया!
--
अब तो आपकी उड़नतश्तरी का सफ़र
नियमित रूप से करना पड़ेगा!
सशक्त कथ्य के साथ
एक दमदार लघुकथा की प्रस्तुति!
--
अभी तक कहावत सुनी थी
कि मनुष्य कठपुतली के समान होता है,
पर आपकी कविता ने यह सिद्ध कर दिया!
--
अब तो आपकी उड़नतश्तरी का सफ़र
नियमित रूप से करना पड़ेगा!
ये जीवन है ,इस जीवन का यही है ,यही है रंग रूप … । सशक्त अभिव्यकित । सहज-सरल और अविरल प्रस्तुति । अच्छा हो यदि मिले बधाईयों को आपकी स्वीकारोक्ति । मजा आ गया ।
-आशुतोष मिश्र
बहुत खूब..आजकल कठपुतलियों को खूब नचा रहे हैं...
अँधेरी घुप्प इस काली रात में
अपनी कमरे की कुर्सी पर
अकेला निढाल पड़ा
सोचता हूँ मैं.. कि ब्लॉग की दुनिया पर कैसे राज करूँ..हा..हा..हा.. जस्ट जोकिंग.
दिल के तारों को झंकृत कर गयी कठपुतली . आवाज और अंदाज भी काबिले तारीफ़ . शुभकामनाएं ...
विचार मंच पर प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया .
आपका सवाल भी ठीक ही है - ' फिर किसे चुनें '
कठपुतलियों के बहाने आपने बहुत कुछ कह डाला।
………….
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
बड़े-बड़े ब्लॉगर छक गये इस बार।
आपने तो डरा ही दिया, बीती जाए उमरिया।
ऐसा लगा जैसे आप आइना दिखा रहे हैं...कर डालता हूँ जो करना है...
sahi kaha
"समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है"
एक ऐसा सच जिसे हम सब जानते हैं लेकिन फिर भी हर कोई व्यस्तता के दबाव में अपनी पसंदीदा चीजों को टालता रहता है फुर्सत मिलने की उम्मीद में. और ये फुर्सत तो कभी आती नहीं बस आता है तो बुलावा जिसको टाल पाने की कोई गुंजाइश ही नहीं .
कथा और कविता की जुगलबंदी से जो सन्देश आपने दिया है उसको शायद बार बार याद दिलाते रहने की जरुरत है हम सबको अपनेआपको.....
समीर लाल जी,
उम्दा पोस्ट, शुभकामनाये
इंसान ये सोच कर बैठा रह जाता है कि जो किस्मत में लिखा है वो उसे जरूर मिलेगा..लेकिन...जिंदगी की डोर तभी रफ्तार पकड़ती है जब हममें इच्छाशक्ति हो...सब अपने-अपने हिस्से का वक्त और किस्मत ले कर आते हैं...वक्त विताकर चले भी जाते हैं...लेकिन जाने के बाद भी कुछ अपने निशान हमेशा के लिए छोड़ दिलों पर जाते हैं..
अच्छी रचना सर...
वन्दे मातरम !!
आपके ब्लॉग को पढने का आपने सौभाग्य दिया सादर आभार. न जाने क्यों पर मै आपसे अधिकारपूर्ण निवेदन करना चाहता हूँ की मुझे और मेरे ब्लॉग को समय समय पर आप मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद देते रहें...
आपके ब्लॉग को पढ़कर आपसे जबरदस्त जुडाव का अनुभव मै कर रहा हूँ और विदेश में रहकर भी आपके अन्दर मौजूद "भारतीय" को शत शत प्रणाम करता हूँ !!
दादा की आवाज में आज 'कठपुतलियां' कविता सुनी.वाका वाका भी और उनकी पसंद के गाने भी.अब देख रही हूं दादा के सारे वीडियोज.
उनके चीकू से भी मिली.मैंने भी दो खरगोश (अब दुसरी को खरगोशनी लिख सकूं तोओओओ चलेगा?)पाले थे 'चीकू और चीनी'.फ्रीज़ के नीचे खुले ही बैठे रहते थे,मेरे स्कूल से आने पर जाने कैसे उन्हें मालूम पद जाता था कि मैं आ गाई दोनों पैरों पर खड़े हो जाते जब तक उनका सिर सहला कर उन्हें प्यार नही करती .खड़े ही रहते थे. ये भोले भले प्राणी भी हमें पहचान लेते हैं,तभी मालूम हुआ.उनके बच्चों के नाम मैंने रखे थे-निक्की,मिक्की,टिक्की और विक्की.
अपने नामों को इतना पहचानने लगे कि क्या मजाल निक्की को आवाज दो और दूसरा आ जाये.बीमार होने पर उन्हें जबरन दवा नही देनी पडती.हथेली पर रखिये गोली खा लेंगे और सीरप चाट लेंगे और भाग जायेंगे अपने ठिकाने पर. अकेला छोड़ कर जाने पर वो खाना पीना छोड़ देते थे.
बहुत प्यारी होती है इनकी दोस्ती दादा!
लघुकथा कम शब्दों में बहुत कुछ कहगई ।
काश! वो जान पाता कि समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है. काश! इन्तजार की बजाय उसने संतुलन के महत्व को समझा होता....................................सिर्फ व्यस्त आदमी ही सृजन कर सकता है ; २४ घंटे खाली बैठने वाला हर वक़्त खाली ही होता है ...............
बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद
सूचनाः
"साहित्य प्रेमी संघ" www.sahityapremisangh.com की आगामी पत्रिका हेतु आपकी इस साहित्यीक प्रविष्टि को चुना गया है।पत्रिका में आपके नाम और तस्वीर के साथ इस रचना को ससम्मान स्थान दिया जायेगा।आप चाहे तो अपना संक्षिप्त परिचय भी भेज दे।यह संदेश बस आपको सूचित करने हेतु है।हमारा कार्य है साहित्य की सुंदरतम रचनाओं को एक जगह संग्रहीत करना।यदि आपको कोई आपति हो तो हमे जरुर बताये।
भवदीय,
सम्पादकः
सत्यम शिवम
ईमेल:-contact@sahityapremisangh.com
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 22 अक्टूबर 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! .
एक टिप्पणी भेजें