कविता का मौसम बस मुहाने पर ही है. गरमी तो वैसे भी कविता का पौधा सूख जाता है और बारिश के साथ लहलहा उठता है. सावन, बारिश, बरखा, मोर, मोरनी, झूला, छतरी, बदरी का आज भी, याने ए सी के जमाने में भी, बोलबाला बरकरार है.
यहाँ तो खैर शाम से ही बारिश हो रही है, तब ऐसे में एक कविता हमारी तरफ से. आज यू ट्यूब भी ट्राई कर लिया और पॉडकास्ट भी. अरविन्द मिश्र जी की भावनाओं का सम्मान करते हुए बिना गाये बस पढ़ दी है. :)
बारिशों के मौसम में, मेघ बन के छा जाओ
रात के अँधेरे में, चाँद बन के आ जाओ
भीड़ तो बहुत है पर, मन में इक उदासी है
याद बन के यादों में, याद ही बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है.
सावनी बयारों संग ये, सांस कसमसाती है
प्रीत इक बदरिया बन ,नित नभ पे छाती है
इस बरस तो बरखा का ,तुमहि से तकाजा है
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
खिल उठे हैं फूल फूल, भ्रमर गुनगुनाते हैं
रिम झिमी फुहारों की, सरगमें सुनाते हैं
उमड़ घुमड़ के घटा, भी तो यही कहती है
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है.
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
झूमती है ये धरा ,ओढ़ हरी ओढ़नी
किन्तु है पिपासित बस ,एक यही मोरनी
इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने
प्रीत बन चले आओ, प्रियतमा बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
--समीर लाल 'समीर'
यू ट्यूब:
जो यू ट्यूब न देख पायें (मेरे यू ए ई के साथी):
113 टिप्पणियां:
खिल उठे हैं फूल फूल, भ्रमर गुनगुनाते हैं
रिम झिमी फुहारों की, सरगमें सुनाते हैं
उमड़ घुमड़ के घटा, भी तो यही कहती है
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है.
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
बहुत सुंदर भाव..कविता बहुत अच्छी लगी समीर जी..प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई
बस जी मौसम आ ही गया समझिए,
दो चार दिन में मानसून आता ही है
फ़िर पावस गीत, कविताएं उमड़ घुमड़ कर आएंगी
काले बादलों जैसे दिल-ओ-दीमाग पर सबके छाएंगी
अब कोई बुलाए तब ना आए
रागनी तो ससुराल चली गयी।:)
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है'
यह आह्वान
यह भाव
यह कविता का मौसम
बहुत खूब
और फिर आपके आवाज में सुनना
आनन्द आ गया
पहली बारिश होते ही मैं अपनी मोटर साइकिल लेकर भींगने के लिए निकलने वाला हूं। फिलहाल तो आपकी कविता में प्रकट हुए अहसासों से भींग रहा हूं। दृश्य बड़ा अच्छा है।
सर जी!
कविता सुण तड़-तड़के आणंद भयोष
बस अब उसी का इंतजार है, पर अभी हम चाहते हैं कि कम से कम एक हफ्ते ठहर कर आए बारिश।
क्या बात है ! बहुत उम्दा समीर भाई..... कविता भी और पठन भी ...वाह !
मीत तुम चले आओ -बनारस की बेइंतिहा तपन में बरसात का यह आह्वान समझ रहा हूँ -
जो गए वे फिर कहाँ लौटे हैं ,फिर भी तूं इंतज़ार कर शायद !
बहुत उम्दा ,
बरसात की रिमझिमी शाम हो ,कुछ अपने बेहद करीबी दोस्त हों
..और शैम्पेन की बोतल खुली हो ....फिर तो जन्नत यहीं हैं न समीर भाई ...
कहता आपको बार बार यह जन्नत बख्शे ,कभी हम भी हम प्याला बनें !
suna he 4 / jun tak hamare yaha mansun aa raha he
bas phir jor jor se bhigte huve aap ki uye kavita gane ka man bana raha hun
सावनी बयारों संग ये, सांस कसमसाती है
प्रीत इक बदरिया बन ,नित नभ पे छाती है
इस बरस तो बरखा का ,तुमहि से तकाजा है
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
Umda !
sameer ji bahut sundar kavita
you tube par sunne ke bad to or bhi prem ho gaya aap se hame
aap ne dil ka raz khol diya mere
aap ko tah dil se badhai is kavita ke liye
गिन-गिन के मात्राओं के साथ बरसाती गीत.. सही.. :)
रूमानी कविता और मदमस्त मौसम भी........."
वाह , बारिस का समा बांध दिया ।
एक प्रेयसी के शब्दों में सब के मन की बात कह दी ।
बारिस का सीन देखकर तो मन मयूर खिल उठा ।
लेकिन यहाँ तो अभी बेसब्री से इंतजार है जी ।
बहुत सुन्दर कविता.... आपकी आवाज़ से तो और भी रौनक आ गयी गुरु देव....
प्रेयसी बुलाती है... मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा था.... मुम्बई में कल की बारिश देख कर...
बहुत अच्छी कविता.... उड़न दद्दा की जय हो...
वाह! क्या बात है! क्या बात है!! क्या बात है!!!
मन मोह लेनेवाली रचना है !
सुंदर चित्र, अति सुन्दर पठन, सुन्दरतम पाठ.
झूमती है ये धरा ,ओढ़ हरी ओढ़नी
किन्तु है पिपासित बस ,एक यही मोरनी
इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने
प्रीत बन चले आओ, प्रियतमा बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
.......जाना ही पड़ेगा !
--
mansoorali hashmi
आपकी कविता ने यहाँ चलते लू के थाप्र्दों में ठंडक प्रदान की....लगा की बस बरखा तो आ ही गयी...
खूबसूरत शब्दों के साथ सुन्दर रचना..पढ़ना और सुनना दोनों ही अच्छा लगा...
वाह-वाह...!
आज तो आनन्द ही आ गया!
यहाँ भी बदरा छाये,
बरखा आये
और हमसे भी कुछ लिखवाये!
हम भी ब्लॉग पर लिखकर आपको पढ़वायें!
टिप्पणी करने तो आओगे ना!
गर्मी,लू और अंधड़ से परेसन हम लोगो को आपका कबिता एकदम बारिस में सराबोर कर दिया… आपका गनवा सुने हुये बहुत दिन हो गया.. वैसे भी ई कबिता कम गीत ज्यादा है..गाने का इंतजार रहेगा...
....कविताओं की रिमझिम ... झरने बहने ... का इंतजार है, समीर भाई !!!!
बारिशों के मौसम में, मेघ बन के छा जाओ
रात के अँधेरे में, चाँद बन के आ जाओ
वाह वाह! आनन्द आ गया!
आपके मधुर भाव आपके शब्दों में,शब्दों का अर्थ आपकी आवाज़ में फूटा पड़ रहा था । चाहें एक मुलेठी अधिक खानी पड़े पर गाईये अपनी ही आवाज में । उधार की आवाज़ में खालिस जज़्बा कहाँ से लायेंगे ?
अभी तो जी अपने यहां मौसम आने में समय लगेगा।
बहुत ही सुन्दर गीत है ! आपको बहुत बहुत बधाई !
ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में,यदि इस कविता की प्रेयसी का अर्थ धरा से लिया जाए,तो संदर्भ अधिक व्यापक हो उठता है।
प्रेयसी बुलाती है ...
प्रेयसी की पुकार को प्रिय अपने शब्दों में ढल रहा है
क्या बात है ...
कविता अच्छी लगी ...!!
"इस बरस तो बरखा का ,तुमहि से तकाजा है
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है"
ऐसा लग रहा है....अब आना ही पड़ेगा....
कुंवर जी,
यहाँ तो खैर शाम से ही बारिश हो रही है, तब ऐसे में एक कविता हमारी तरफ से....देखा, बारिश के मौसम में समीर जी का दिल भी बौराया है. अब जहाँ बारिश नहीं हो रही है, वे आपसे रश्क तो करेंगे ही.
बहुत खूब.
आज मेरी ये अंतिम टिप्पणियाँ हैं ब्लोग्वानी पर.
कुछ निजी कारणों से मुझे ब्रेक लेना पड़ रहा हैं .
लेकिन पता नही ये ब्रेक कितना लंबा होगा .
और आशा करता हूँ की आप मेरा आज अंतिम लेख जरूर पढोगे .
अलविदा .
संजीव राणा
हिन्दुस्तानी
waah sir adbhut rachna hai....kumar vishwas ki ye panktiyan yaad aa gayi...baansuri chali aao...honth ka nimantran hai...
प्रीत बन चले आओ, प्रियतमा बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
sunder........... maza aa gaya............
खूबसूरत और मोहक कविता............
सुन्दर और सुहाना मौसम के साथ साथ ख़ूबसूरत कविता ! वाह क्या बात है समीर जी! इस भावपूर्ण कविता के लिए बधाई!
"कविता का मौसम बस मुहाने पर ही है. गरमी तो वैसे भी कविता का पौधा सूख जाता है और बारिश के साथ लहलहा उठता है."
समीर भाई गर्मी के बाद शायद एक "में" लिखने से रह गया है ! ज़रा जांच लें !
बाकी बहुत उम्दा कविता है |
पिया मिलन पुराए !
प्रेयसी मन भाए !
हम भी टिपियाए ! आभार !
barkha ke ahsaas mein bhigo diya.
मौसम तो यहाँ भी खुशगवार हो रहा है.. बारिश भी लगातार.. आपको भी सावन की बहुत बधाई.. शहर के साथ साथ आपके ब्लॉग को भी सराबोर करे यह मॉनसून..
kawita padhne or sunne ke bad jo bat sabse pahale dimag men aai, wo thi --bahut sundar.
मौसम और जीवन
एक दूजे के लिए
.सावन में प्रेयसी की विरह वेदना ..एकदम परफेक्ट गीत है .और बहुत सुंदरता से सुनाया आपने
अभी बारिस का मौसम तो शुरू ही नहीं हुआ है
प्रभु हम तो ये गीत बारिश के लिए गा रहे हैं...आ जाये और वो भी ढंग से आ जाये तो अगले पिछले सभी पाप मिट जाएँ...वैसे कविता बहुत रोमांटिक है..कमर दर्द के बावजूद रोमांस के कीटाणु मरे नहीं...कमाल है.:))
नीरज
आपने तो वाकई में बारिश बुला दी... खूब बरसे और झमाझम बरसे बस बाढ़ न आये..
bahut badhiyaa
बारिशों के मौसम में, मेघ बन के छा जाओ
रात के अँधेरे में, चाँद बन के आ जाओ
..........बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर पेशकश है ,,,मनभावन और सुन्दर लगी ,,,लगा आसपास बारिश हो रही है ..बरसात पर कुछ यहाँ भी है सुझाव जरुर दे .प्रतीक्षा में
http://athaah.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
हमारे यहां से करीब एक महीने से लगातार बिना रुके बरसात हो रही है जी.... ओर इस गर्मी के मोसम मै भी सर्दी? रुम हिटर भी चालू...लेकिन कंपकाते हाथो से तारीफ़ जरुर करेगे आप की कविता की, बहुत सुंदर
bahut sundar tareke se apne apne bhavo ko es kavita me spast kiya hai apne. badahii
बहुत सुन्दर... बार बार सुना....
bahut badia asha hai ki aap ese tarah likhte rahenge apne apne vicharo ko es ka vita me bahut he sunder tarike se spast kiya
mausam aisa hai ki shbdon ki fuhaar bhi dil thanda kar rahi hai :)
अजी मेरे ख्याल में तो कविता, सविता, बबीता सबका मौसम ही आने वाला है;-)
(पत्नी मायके चली गई है)
राम-राम
बहुत सुंदर भाईसाहब...आपकी कविता,आपका वीडिया और उसमे आपकी आवाज़ और फिर आपके वो तरह तरह के चित्र.......सभी कुछ एकदम जबरदस्त है....
कविता पाठ सुनकर पढने का आनन्द दुगुना हो गया..आभार.
वाह क्या बात है समीर जी! इस भावपूर्ण कविता के लिए बधाई!
कनाडा में बैठकर आपने हमें जो बरसात के रंग दिखाए उसे देखकर दिल कहता है कि दिल्ली जली जा रही है और आप वृष्टि जल की बातें करके जला रहे हैं... साहिर साहब का कलाम याद आ गया,
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज महल
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक.
ख़ैर मेरी ये बातें भी मज़ाक ही थीं... मज़ा आ गया आपकी कविता और आवाज़ की बारिश में भीग कर... एक हिदायत...ज़रा सम्भल कर चलेंगे, अभी अभी कमर का दर्द छूटा(?) है...
समीर जी,बहुत सुन्दर प्रस्तुति है। मन आनंदित हो गया....सावन का गीत सुनकर। आपका गीत सुनते सुनते कुछ पंक्तियां मन मे उमड़ पड़ी है---
सुन तुम्हारा प्रणय गीत, मन हमारा डोला है
सावनों की झड़ी ने, मन का ताला खोला है
सोचते हैं आज हम, काश! दिल लगा लेते,
फिर किसी फूल ने ,भँवरे से आज बोला है।
सावनी बयारों संग ये, सांस कसमसाती है
प्रीत इक बदरिया बन ,नित नभ पे छाती है
इस बरस तो बरखा का ,तुमहि से तकाजा है
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
बहुत खूब्! सुन्दर भावपूर्ण रचना.....
अरे कल टोरोंटो की बारिश ने तो जैसे मेरे हवाई जहाज को डगमगा ही दिया था, हजारो किलोमीटर की ऊंचाई पर बहुत हिलोरें मार रहा था.
फोटो बहुत सही डाला है.
कविता आपके मुख से सुनी तो बिलकुल अन्दर तक उतर गयी ....जय हो !!
फ़ोन करता हूँ जल्दी ही, बस अभी अभी US वीसा का काम निबटा कर आ रहा हूँ होटल में.
कनाडा में बारिश आ गयी और एक कविता उग आयी। अच्छी कविता सुनाने के लिए आभार।
शानदार
वाह, अब प्रेयसी बुलाएगी तो जाना तो पड़ेगा ही.....
समीर भाई बढ़िया कविता और कवि के स्वर में
काव्य पाठ
सदा आनद को द्वीगुणीत करता है
स --स्नेह
- लावण्या
कविता ..............कविता अच्छी है...
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
आज ही यहाँ मौसम की पहली फुहार पड़ी और आपकी कविता ने इस मौसम के हर पक्ष को उभार दिया...
बहुत ही सुन्दर मौसमानुकूल कविता
सर जी,
बुकमार्क कर लिया है, सुनेंगे जब बारिश हो रही होगी, तब।
आदरणीय समीर भाई साहब! सादर नमस्कार्। आज मै कविता पढ़कर भाव विव्हल हो गया। टिप्पणी भी करने बैठा था। विद्युत प्रवाह अवरुद्ध हो गया। भाव विभोर कर देने वाली कविता। वैसे किसान भी इस मौसम को प्रेयसी की तरह ही देखता है और अपनी क्षेत्रीय बोली मे गुनगुनाने लगता है इस तरह; आगे असाढ गिर गे पानी भीग गे ओरिया भीग गे छानी अरा ररा अर धर के तता धर ले नागर धर तुतारी। मतलब है अब आसाढ का महीना आ गया है छप्पर भीगने लगे हैन किसान अपने हल व बैल के साथ जुताई के लिये तत्पर है। अभार!
आदरणीय समीर भाई साहब! सादर नमस्कार्। आज मै कविता पढ़कर भाव विव्हल हो गया। टिप्पणी भी करने बैठा था। विद्युत प्रवाह अवरुद्ध हो गया। भाव विभोर कर देने वाली कविता। वैसे किसान भी इस मौसम को प्रेयसी की तरह ही देखता है और अपनी क्षेत्रीय बोली मे गुनगुनाने लगता है इस तरह; आगे असाढ गिर गे पानी भीग गे ओरिया भीग गे छानी अरा ररा अर धर के तता धर ले नागर धर तुतारी। मतलब है अब आसाढ का महीना आ गया है छप्पर भीगने लगे हैन किसान अपने हल व बैल के साथ जुताई के लिये तत्पर है। अभार!
बारिश में तो बाद में भीगेंगे अभी तो आपके शब्दों और आपके स्वर में भीग रहे हैं... सुंदर सचना !
ab garmi se to kavi man bhi sookh jata hai aur sawan dekh man bhi basant bahaar ke geet gaane lagta he to kya kiya jaye...lekin aapne is garmi me bhi itni mahnat kari jo kaabile tareef hai. badhayi.
Bahut khoob sir....
mausham ke agaman ka sandesh de diya aapne.
badhai :)
sach he ..aaya kavitao ka mousam.
fir ye rachna.. AAHHAA
वाह समीर जी बहुत ही अच्छी कविता की रचना की है। बधाई...
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है ।
सुन्दरतम् ।
Ham barish ka intzaar kar rahe hai .aapki kawita ne sandesa suna diya hai ki barish ab hamare ghar se bhi shayad adhik door nahi hai
ashok jamnani
आपकी कविता प्री मानसून की तरह लगी ... अच्छा लगा इसे पढ़कर
मैं जब तक आता हूं तबतक इतने लोग टिप्पणी कर चुके होते हैं औऱ सबको पड़ने के बाद लगता है कि अब मेरे पास कहने को कुछ बचा ही नहीं। ये नाचीज तो बस सुभानअल्ला कह सकता है।
शुक्रिया समीर जी .
कविता का मौसम हो या ना हो ,आपकी मीठी टिप्पणियों की फुहार तो हर मौसम में होती रहती है .सिर्फ मेरे ब्लॉग पर ,मेरी हर ग़ज़ल पर ही नहीं ;तक़रीबन हर ब्लॉग पर आपके कमेन्ट पढ़ने को मिल जाते हैं . ये आपकी ज़र्रानवाज़ी है
आपका कमर दर्द तो कमाल की उपमाओं से भरपूर लगा
;खासकर हम टेस्टर हो गए और वो गुजराती नारी वाला
सावन सी रचना। अद्बुत।
Bhai yahan mausm bada aashikana hai. baahar bhale phuhar ho par andar to jhamajham barish hai. dar lagata hai kahin doob n jaaun.
आज तो हमारा भी मन कविता पढ़ कर रोमांटिक हो गया है | बहुत सुन्दर भाव वाली कविता है |
अंकल जी, आप तो खूब अच्छी-अच्छी कवितायेँ लेकर आते हो...पर मेरी कविता कहाँ गई.
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'पाखी की दुनिया' में आज 'विश्व पर्यावरण दिवस' पर 'वृक्ष कहीं न कटने पायें' !
har kavita pahle se sundar hoti hai
याद बन के यादों में, याद ही बुलाती है
behad sundar line... :)
badhiya rachna hai ...
आईये जानें .... मैं कौन हूं!
आचार्य जी
वाह ...! बारिश का मौसम और किसी की याद ... गुनगुनाती है .... वो गीत याद आ गया " रिमझिम गिरे सावन .... " बहुत प्यारा गीत है ,, शायद आपने सुना भी होगा ...
न समीर जी, अगर आप इण्डिया में होते तो यहाँ के मौसम को देखकर आप यह पोस्ट लिखने की कत्तई हिम्म्त न करते। वैसे इसी बहाने आपकी एक अच्छी रचना हमें पढने को मिली, शुक्रिया।
--------
रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
warshaa aur kavitaa ka antarik sambndh hai . kewal nature hee nahee balke aadmee bhee warshaa ke saath jhoomtaa hai . iske manowaegyaanik aur darshnik kaaran hain . prstuti ke liye badhaaee
umda peshkash...rachnaa, awaaz aur graphics ka achchaa sangam
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी. सुनकर और अधिक मजा आया.
आईये जानें .... मन क्या है!
आचार्य जी
वाह अच्छी कविता...सर जी
विरह वेदना को आपने बेहद खूबसूरती से पिरोया है
wahwa....mazaa aa gaya sameer ji..
सावनी बयारों संग ये, सांस कसमसाती है
प्रीत इक बदरिया बन ,नित नभ पे छाती है
इस बरस तो बरखा का ,तुमहि से तकाजा है
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
sundar kaveta hai.
कविता सुनकर मजा आ गया.
बेहतरीन कविता. बारिश का मजा दे गई.
कानपुर में तो अभी हम गर्मी झेल रहे हैं. अच्छा हुआ जो आपके वहाँ बारिश हुई, जिसके फलस्वरूप एक अच्छी कविता बाहर आई.
इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने ---अति सुन्दर भावपूर्ण गीत.
अंकल जी, कविता भेजने के लिए आपको ढेर सारा प्यार व आभार. कित्ती प्यारी कविता लिखी है आपने...अब तो आपकी चाकलेट पक्की. कल 7 जून को 'पाखी कि दुनिया' में यह प्यारी सी कविता पढना ना भूलियेगा.
नमस्कार! कविता पढ़ी, अच्छी लगी! आपके ब्लोग पर आने पर हमेशा नया मिलता है जो प्रेरणा तो देता ही है प्रोत्साहित भी करता है!
हिमाचल प्रदेश विश्व्विद्यालय में अपने पढ़ाई के दिनों में बरसात में छाते गुम कर देता था फ़िर छाते रखने ही छोड़ दिये ! वर्षा होती तो भीगता मज़ा आता! सहपाठी पुछते भीगते क्यों हो? उनही दिनों एक पेरोडी लिखी आपकी नज़र कर रहा हूं-
भीगने का भी अपना एक लुत्फ़ है नादां,
वो अहमक क्या जाने जो छाते के नीचे चले !
बहुत खूब. इस मौसम में आपकी कविता ने क्या समां बाँधा है.
सावनी बयारों संग ये, सांस कसमसाती है
कल्ना हकीकत संग...लाजवाब
अर्से बाद इस ब्लॉग पर आया
अर्से बाद फिर वही सुकून पाया।
अच्छी कविता है।
राग मल्हार जैसा गीत, पढते पढते भीगा भीगा सा लगने लगा. वाचन भी शानदार लगा.
वाह वाह क्या खूब बिरहा सुनाया है ।
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है.
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है बहुत सुन्दर लिखा है आपने आपके लेखनी मे वाक़ई बहुत दम है
आज आपकी आवाज में कवितापाठ सुना । पढ़ने से ज्यादा सुनने में मजा आया ।
इस मेघगीत को पढकर मेघदूतम की याद आ गई।
लगा धरा कह रही हो बादल तुम बरस जाओ धरती बुलाती है।
Bahut Sundar kavya khud aapse sunkar aannad aagaya...dhanywaad.
लगता है आपके लिखने से ही मानसून आया है :) बहुत पसंद आई आपकी यह रचना
behad manbhawan rachana,baarish mein bhigo gayi,awesome.kuch gujre dino ki yaadein bhi umadghumad cha gayi:)
बहुत सुन्दर कविता !
ये बारिश गीत प्रेम रस में गहरे डूबी हुई है
bahut der se aya, par aa hi gaya
kya kavita hui hai
:)
aur ye to kamaal...
खिल उठे हैं फूल फूल, भ्रमर गुनगुनाते हैं
रिम झिमी फुहारों की, सरगमें सुनाते हैं
उमड़ घुमड़ के घटा, भी तो यही कहती है
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है.
प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है
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