कल अपनी एक फोटो ऑर्कुट और फेस बुक पर क्या चढ़ा दी कि हल्ला ही मच गया. दन दन कमेंट और ईमेल मय समझाईश कि इतना पीना ठीक नहीं.
अब कैसे समझाऊँ कि भईये, पीना तो हम खुद ही नहीं पसंद करते जब तक की भीषण मजबूरी न हो.
वैसे कई लोगों ने कहा कि इतनी सारी अकेले पियेंगे क्या? अब पहले तो यह जान लें कि एक बंदा तो तस्वीर खींचने वाला है ही जो इसी में से पीने वाला है और तीन फोटो में दायें बायें कट गये हैं और फोटू में फंसे हम अकेले.
वैसे भी साईज के हिसाब से या तो वो तीन ही आ लेते फोटो में या कि हम. उन तीन की फोटो का तो हम क्या करते सो अपनी धरे थे वो ही चिपका दिये.
हाँ, तो हम कह रहे थे कि हमें पीना यूँ तो पसंद नहीं मगर जब मजबूरी आन सामने ही खड़ी हो जाये तो क्या करें??
इन्हीं मजबूरियों को दर्शाते हुए एक रचना लिखी थी ताकि किसी को कन्फ्यूजन न रह जाये, वही फिर से सुना देते हैं ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये:
जब चाँद गगन में होता है
या तारे नभ में छाते हैं
जब मौसम की घुमड़ाई से
बादल भी पसरे जाते हैं
जब मौसम ठंडा होता है
या मुझको गर्मी लगती है
जब बारिश की ठंडी बूंदें
कुछ गीली गीली लगती हैं
तब ऐसे में बेबस होकर
मैं किसी तरह जी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
जब मिलन कोई अनोखा हो
या प्यार में मुझको धोखा हो
जब सन्नाटे का राज यहाँ
और कुत्ता कोई भौंका हो
जब साथ सखा कुछ मिल जायें
या एकाकी मन घबराये
जब उत्सव कोई मनता हो
या मातम कहीं भी छा जाये
तब ऐसे में मैं द्रवित हुआ
रो रो कर सिसिकी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
जब शोर गुल से सर फटता
या काटे समय नहीं कटता
जब मेरी कविता को सुनकर
खूब दाद उठाता हो श्रोता
जब भाव निकल कर आते हैं
और गीतों में ढल जाते हैं
जब उनकी धुन में बजने से
ये साज सभी घबराते हैं
तब ऐसे में मैं शरमा कर
बस होठों को सी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
जब पंछी सारे सोते हैं
या उल्लू बाग में रोते हैं
जब फूलों की खूशबू वाले
ये हवा के झोंके होते हैं
जब बिजली गुल हो जाती है
और नींद नहीं आ पाती है
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
तब ऐसे में मैं क्या करता
रख लम्बी चुप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
चिट्ठाकारी विशेष:
जब ढेरों टिप्पणी मिलती हैं
या मुश्किल उनकी गिनती है
जब कोई कहे अब मत लिखना
बस आपसे इतनी विनती है
जब माहौल कहीं गरमाता हो
या कोई मिलने आता हो
जब ब्लॉगर मीट में कोई हमें
ईमेल भेज बुलवाता हो.
तब ऐसे में मैं खुश होकर
बस प्यार की झप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
--समीर लाल 'समीर'
अब आप ही बताओ, कितना मजबूर हो जाता हूँ मैं!!
110 टिप्पणियां:
ये जो पीने की आदत आम हो गई,
तौबा-तौबा शराब बदनाम हो गई...
( वैसे गुरुदेव ये कौन से नंबर का जग है...इससे पहले कितने और ठिकाने लगाए जा चुके हैं...)
जय हिंद...
-आप कितने मजबूर है. आपके साथ मेरी सहानभूति है. अगली बैठक कब है, बताईये तो आऊँ. :)
ये परिशिष्ट भी फडकता हुआ है लगता है सामने की खाली होने के बाद अपने आप निःसृत हुयी है !
जब से पी लिया है तेरी निगाहों से मय को
जिन्दगी जीने का सबब मिल गया मुझको
वैसे आपने पी ही कहाँ है अभी ?
सब पात्र (सुपात्र, कुपात्र) तो भरे हुए हैं ।
पीछे दाँये कन्धे के पीछे जो व्यक्ति छिपा है वह बेशक पूरी बोतल खाली कर गया, उसे बधाई और आपको शुभकामनाएं ।
हा हा हा हा .........
आज तो मज़ा आ गया.......
मतलब.......आपभी मेरी तरह स्कॉच वाले ही हो.......
मज़ा आएगा तब तो...........
आपकी कविता बाँच कर तो मेरा भी दिल कर रहा है की आपको
कम्पनी दूँ , लेकिन कमबख्त घड़ी में अभी कुल सात बजे हैं ..वो भी सुबह के..........अगर शाम के होते तो कितना अच्छा होता..........
खैर...आपकी ख़िदमत में अर्ज़ किया है
मैं मयकदे की राह से हो कर गुज़र गया
यों तो सफ़र हयात का काफी तवील था
@तवील - लम्बा
हा हा हा हा .........
आज तो मज़ा आ गया.......
मतलब.......आपभी मेरी तरह स्कॉच वाले ही हो.......
मज़ा आएगा तब तो...........
आपकी कविता बाँच कर तो मेरा भी दिल कर रहा है की आपको
कम्पनी दूँ , लेकिन कमबख्त घड़ी में अभी कुल सात बजे हैं ..वो भी सुबह के..........अगर शाम के होते तो कितना अच्छा होता..........
खैर...आपकी ख़िदमत में अर्ज़ किया है
मैं मयकदे की राह से हो कर गुज़र गया
यों तो सफ़र हयात का काफी तवील था
@तवील - लम्बा
कविता प्रभावशाली है।
वैसे पीने की कोई मजबूरी नहीं होती पर फ़िर भी आपने गिनवा दी...
अपना मानना तो यह है कि ....
पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये....
अब तीन में से केवल आपका ही फ़ोटू आया ये आपके साईज की गलती नहीं ये तो कैमरे की मिस्टेक है, दूसरे प्रोफ़ेशनल कैमरे से फ़ोटू खींचना चाहिये था। :)
फेसबुक पर फोटो देखकर हम तो यही समझे थे कि ताऊ के खूंटे पर पढने के बाद आज आप भी देखा देखि पेट के कीड़े मारने में लग गए ! हमें क्या पता था कि इतनी सारी मजबूरियां है ! तब तो आप कर भी क्या सकते है सिवाय पीने के ! वैसे पीने का बहाना बनाने लिए पेट के कीड़े मारने वाला ताऊ का फार्मूला भी लाजबाब है |
हमने भी वही रिर्पोट दर्ज कर दी है।
हम तो आपको वैसे भी देख चुके है :)
पीनेवालों को तो पीने का बहाना चाहिए .. कोई कारण वारण नहीं होता .. खुशी में भी पीते हैं गम में भी .. पर पीकर कविता अच्छी लिख डाली .. बधाई !!
चाचा, हम तो जानते ही हैं. अब हमें न बताओ कि आपको पसंद नहीं. :)
पीने के कैसे कैसे बहाने गढ़ लिए ..पीना ही है तो ग़म पिए ...!!
बिलकुल समझ गये हम आपकी मजबूरी !
चिट्ठाकारी विशेष के क्या कहने ! कविताई गजब की है आपकी ।
आपका भी जवाब नहीं समीर जी , हर जवाब देते हैं लाजवाब तरीके से ।
आदरणीय समीरजी....
आपकी यह पोस्ट बहुत ही मजेदार लगी.... यह बात तो सही है कि फोटो में एक ही पहलु दिखाई दिया.... दुसरे का ग्लास भी फोटो में आ गया...ह ह ह हः .......
कविता बहुत अच्छी लगी..... और आपके प्यार से .... मैं अभिभूत हूँ....
सादर
महफूज़
waah jab itane karan ho pine ke to pina lajami hai!!!
wise p ne ke liye sikkim achchi jgah chale aiye 7 me albelaji ko bhi le aaiye!!!
शुक्र है आपने ये तो नहीं कहा.."मैं पीता नहीं हूँ पिलाई गई है.."
जब पंछी सारे सोते हैं
या उल्लू बाग में रोते हैं
जब फूलों की खूशबू वाले
ये हवा के झोंके होते हैं
जब बिजली गुल हो जाती है
और नींद नहीं आ पाती है
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
तब ऐसे में मैं क्या करता
रख लम्बी चुप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
बधाई..कीडे मारने वाली दवाई पीने के बाद इतनी अच्छी रचना लिखने के लिये. असल मे ये कीडे मारने वाली दवाई का आफ़्टर-इफ़ेक्ट है क्या? फ़िर तो ताऊ सच ही कहता है.:)
रामराम.
लब्बोलुआब ये की-पी कर ही रहुंगा ,तूं क्या करेगा बे
मयखाने में इस कदर साकी ने, आज कहर बरपाया
मय तो खुद पी, मजबूरी जताई, औरो को तरसाया !
आज शाम को मैं भी लिखूंगा ऐसी ही एक कविता !
जब उनकी धुन में बजने से
ये साज सभी घबराते हैं
तब ऐसे में मैं शरमा कर
बस होठों को सी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
waah ye bahana behad pasand aaya,baaki itane bahane ho pine ke tab do peg bante hi hai.:):).
बहुत ही अच्छी रचना, आभार सुंदर लेखन के लिये ।
हमारे कॉलेज में तो लोग ये कहते हैं :
जब लड़की हमको ठुकराए,
जब नंबर शुन्य आ जाए,
जब परीक्षा नजदीक आ जाय,
जब जन्मदिन पर लात खाएं,
बस तभी इसे हाथ में लेता हूँ,
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ...
जय हो !!
बढ़िया पोस्ट..
प्रतीक माहेश्वरी
ताज़ा पोस्ट : धर्म से कमाई या कमाई का धर्म?
पिओजी जी भर के पिओ....लेमन टी पीना कोई गुनाह है क्या? :) :) :)
जब भाव निकल कर आते हैं
और गीतों में ढल जाते हैं
जब उनकी धुन में बजने से
ये साज सभी घबराते हैं....Bahut khoob Sir ji.
जब पीने से पहले ऐसे भाव आते हैं
तो पीने के बाद क्या आलम होता होगा.
कभी रंग रसिया तो कभी
रंग बालम होता होगा !!
जय हो गुरुदेव जय हो !
आपकी हर अदा निराली है !
जय हो गुरुदेव जय हो !
आपकी हर अदा निराली है !
बैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद.. मेल कराती मधुशाला...
सुन रुन-झुन... रुन-झुन...
... शिकायत सिर्फ इतनी है की दोनों तनहा पी रहे थे...
किशोर कुमार का गाना याद आ गया।
“पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए”
आपने भी जितने बहाने गिनाए हैं उनमें से ये या वो तो हमेशा मौजूद मिल ही जाएंगे।
बस ऐसे ही मस्त पीते रहिए और बिन्दास लिखते रहिए। हम भी झक्कास मजा लेने यहाँ आते ही रहेंगे। जय हो।
सही है गुरूदेव.. :)
वाह क्या बात है, आखिर तसवीर के माध्यम से क्या कहना चाह्ते है
waah....bahut badhiyaa
वैसे हमें इस शरबत विशेष के स्वाद का पता नही कि कैसा होता है। पर फोटो में शरबत विशेष के बडे छोटे गिलास को देखकर हमारा मन भी ललचा गया :)
nit naye bahane milte hai
kahata har koi aanevaala, madhushaala!!!!!!!
कविता अच्छी लिख डाली .. बधाई !!
कहते हैं जो पीते हैं वो प्रगतिशील होते हैं तो बंधु पीना जारी रखिए।
समीर जी, अभी तो आप के इन छोटे से गिलास से हाय तोबा मच गई, अजी जब यह बाबेरिया के एक लिटर के गिलास देखे गे तो.....
चलिये मस्ती किजिये खुब पिये ओर खुब कविताये लिये, वेसे मुझे यहां डा ने रोजाना एक बीयर पीने को बोला है, जब कि दिल मे पंचर हो गया है हमारे,
kya khub likha hai...
मजबूरी जो न कराये वो कम है
बस यही एक गम है :::::::)))))
Waah ! Waah ! Waah ! Kya baat kahi....
Peene wale ko peene ka bahana chahiye.....
Waise peete to bahut log hain,par ispar itna sundar kitne log likh payenge bhala...Itni sundar rachna pdhne ko mile to apni taraf se ek aadh baar peene kee ijajat to ham aur bhabhiji bhi de den...
अब क्या कहा जाए...
इस पर तो अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आता है...
उसकी बेटी ने उठा रखी है दुनिया सिर पर..
खैरियत गुजरी कि अंगूर के बेटा न हुआ।
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
तब ऐसे में मैं क्या करता
रख लम्बी चुप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
वाह वाह क्या बात है बहुत सुन्दर रचना औरसफाई भी शुभकामनायें
हम भी वो समाजसुधारक हैं जो हर हाल में जी लेते हैं
सच कहने का मौका होतो होठों को सी लेते हैं ..
मुह से निकाला नहीं आजतक शब्द मदिरा ...
हाँ मुफ्त की मिले तो थोड़ी सी पी लेते हैं ..
अपना नहीं है .. याद आया सो चिपका दिया .... वैसे टिपण्णी देने का में डर तो लग रहा था की कहीं आप फिर से पीने ना बैठ जाएँ .. (वैसे तो मुझे किसी के पीने पिलाने से कोई गुरेज नहीं है पर क्या करें हमारी भी मजबूरी है कि आजकल हम सौदी में पाए जाते हैं जहां पीना पिलाना जघन्य अपराध है )
aapki is rachna se shole ki mausi ji yaad aa gayi ,
kushi ho ya gam
har taraf paimane hai ,
raaste jaam ke anjaane hai
har taraf se ghere bahane hai ,
hum peete nahi ,
kasoor in halato ke hai ,
hum aapki majboori behtar samjhte hai .aaine bhi kabhi -2galat hote hai .
आपकी रचना पढ़ कर कालेज के ज़माने में क्लास बंक कर के देखी देव आनंद साहब की फिल्म 'शराबी' का गीत " सावन के महीने में...एक आग सी सीने में...लगती है तो पी लेता हूँ...दो चार घडी जी लेता हूँ..." याद आ गया...
बहुत खूब लिखा है जनाब...पीते रहें लिखते रहें...
नीरज
हम समझ गए जी, आप क्या कहना चाहते है... वही ना........
मुझे दुनिया वालो शराबी न समझो
मैं पीता नहीं हूं पिलाई गई है :)
waah bahut khoob lagi aapki yah majburi
वाह जितनी सुंदर आपकी कविता उतनी ही बढ़िया आपकी तस्वीर! बहुत बढ़िया फोटो आया है आपका! खैर पीते तो सभी हैं पर ज़्यादा पीना सेहत के लिए हानिकारक है!
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.....kya karen majburi nahi...majbooriyaaan hain...wo bhi itni saari...sab samajh gaye :)
अरे..... हाय.... हाय... ये.. मजबूरी
अरे.... हाय... हाय.. ये मजबूरी
अरे... हाय.. हाय ये मजबूरी
अरे.. हाय हाय ये मजबूरी
हाय हाय हाय ये मजबूरी
बीयर मे नशा नहीं होता और क्या पता ये फ़्रुइत बीयर ही हो ।
वाह समीर जी
मस्त गीत लिखा आपने
फोटो में भी कुछ बुरा नहीं है पर पता नहीं खींचने वाले ने कैसी खींची कि
आप थोड़े मोटे लग रहे हैं
ङ्राता जी यह क्या कह दिया
आपने पोस्ट के माध्यम से!
मजबूर की पीठ पर तो दो लात जमाते हैं,
हमारे भारत में।
या तारे नभ में छाते हैं
जब मौसम की घुमड़ाई से
बादल भी पसरे जाते हैं
जब मौसम ठंडा होता है
या मुझको गर्मी लगती है
जब बारिश की ठंडी बूंदें
कुछ गीली गीली लगती हैं
तब ऐसे में बेबस होकर
मैं किसी तरह जी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
बहुत ही बेलॉस होकर लिखा है आपने!
बस ऐसे में पी लेता हूँ. --समीर लाल 'समीर' अब आप ही बताओ, कितना मजबूर हो जाता हूँ मैं!!
पियो मगर हिसाब से!
युवा बनों खिजाब से!!
जो टाइम पे पकड़ा गया वही चोर अब दाएँ कौन और बाएँ कौन ये किसे पता..वैसे सही है कारण तो आपके लाजमी है पीने के..हम भी आजमाएँगे नुक्क्से..
समीर जी, प्रणाम ,
आपकी पीने की जो वज़ह है वो जायज़ है,
ऐसी भावुक वज़ह पर हर एक को पीने की इजाज़त है, समीर जी आपकी इन पंक्तियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया है, ये मेरे ह्रदय की गहराइयों में उतर गयी हैं, पीने के बाद ईन्सान की सोयी हुई या मरी हुई भावनाएं फिर से जाग जाती है,
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती है ,
इन पंक्तियों में छुपी पीड़ा को मैं समझ सकता हूँ क्योँ की मैं भी अपने घर से दूर हूँ! समीर जी
बहुत बहुत शुभकामना! आपका अनुज
Mujhe to lagta hai ki aapne is kavita dwara blogging ke shuruwati daur mein apna parichay kara diya tha. Par aaj dobara padh kar bhi wahi anand aaya.
समझ में आ गई आपकी मज़बूरी :-)
पीने के भी कितने बहाने हैं। पियो तो जी भर के पियो, बहाने से क्यों पियो। एक ग्लानि मन में रहती है तो बहाने खुद-ब-खुद निकल आते हैं। सही है ना।
इसी तरह के वाकये पर कहा गया है
उनका खून, खून, हमारा खून पानी.
हम करें तो अपराध, वे करें तो नादानी.
आगे एक और----------------
देव पियें तो सोमरस, हम पियें तो शराब,
हम देखें तो मुजरा, वे करें तो रास.
---------------------------
आपके साथ यही हाल है, आपके साथ कोई है या नहीं इस बात का फर्क नहीं, खुद देखिये आपके जग भर पीने की भी तारीफ हो रही है, इनमें से किसी के बेटे जैसा कोई ऎसी फोटो जड़ देता तब???? कहीं ये संस्कृति, देशकाल के कारण तो नहीं?
बताईये आपको जो एलियन कहते हैं तो का झूठ कहते हैं का बीडी सिगरेट फ़ूंकते हैं तो कविता ठेलते हैं ...ई जग भर के कउन तो चीज पी रहे हैं तईयो
ठेल रहे हैं ..काहे का मजबूरी जी ..एक दम से टनाटन है ...ई मग में जो भरा हुआ था सेब का जूसे था न ....बताईये कौन तो कह रह था ...उडन जी मधुशाला का ब्लोगांतरण कर रहे हैं ..अरे जैसे रूपांतरण होता है न ओईसे ही ..
वाह जी समीर जी आपकी लगन और मेहनत देख हम तो गद गद हो गए आप यूँ ही पीते पिलाते रहे ...आपका ये जग यूँ ही भरा रहे ...दुआ है .....!!
ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा ......!!
अरे ! छोडो दादा ,पीने वाले को पीने का बहाना चाहिए
वैसे 'इतनी बुरी भी नही होती है शराब ,बस थोड़ी थोड़ी पिया करो '
कह तो सके की ये हिचकी शराब की नही है दोस्तों किसी ना किसी
ने मुझे याद किया है ,या मेरा ज़िक्र किया है .........'
और आपने से लगने लगे हैं आप
आपको हम याद करते हैं यकीन नही करेंगे न ?
पर ........सचमुच .....और आपका अपने शहर ,अपने अम्मा, बाबूजी
अपने बचपन को 'उस आर्टिकल' में यूँ याद करना......
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
बड़ी व्यथित (ही ही) कर जाती है आपकी यह मज्बूरी..मगर परिस्थितियों के सामने आप भी क्या कर सकते हैं...
ह्म्म दो पेग लगा कर सोचने वाली बात है यह तो...;-)
कविता मस्त है । जग तो अभी तक भरा हुआ है । जय हो ।
मै भी पीता हूं मगर रोज़ नही बस जिस दिन पानी गिरता है उस दिन पीता हूं या जिस दिन पानी नही गिरता उस दिन बस।इसके अलावा कभी नही,रोज़ तो हरगिज़ नही।
वैसे रायपुर के एक शायर थे रज़ा हैदरी जानी बाबू की गाई हुई कव्वाली छोड़ दे पीना छोड़ शराबी उन्होने ही लिखी थी।
काश हम बच्चो को इस पर टिपयाने की अनुमुती होती तो.....
bahut khoobsurat...
pine ki vajah khoob batayi hai...
अजी कोन किसी की मजबूरी समझता है :)
ग़ालिब छुटी शाराब पर अब भी कभी-कभी
पीता हूं रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
:)
बेहतरीन!!!!!
पीने वाले की मजबूरियां सब सामने ले आये |
शायद इसके अलावा कोई और वजह नहीं बचती पीने की |
इंशाल्लाह आप इसी तरह पिचर पे पिचर पिए जाएँ और यूँ ही लिखते जाएँ !!!!
बहुत खूब।
समीर जी,
बहुत अच्छी लगी कविता और अपने(पीने) लिये वजह भी तलाश लीं।
सच लिखा है कि कोई वजह नही होती यूँ पीने के लिये बिलावजह भी पिया जा सकता है और उस पर भीषण मजबूरी फिर तो क्या कहने... हम सभी मजबूर हो ही जाते है क्या करें रहमदिल जो ठहरे।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
खबरदार जो किसी ने समीर भाई को पियक्कड़ बोला। बेचारे अभी अभी तो शुरु किए थे, आपने तो रंग मे भंग डाल दी। भंग पर याद आया, समीर भाई! ये फोटोग्राफर भांग खाए था क्या? जो हमारी फोटो काट दिए? लगता है फोटोग्राफर ने कोई खुन्नस उतारी है आप पर, तभी तो जग (जो हमारे आगे पड़ा था), आपकी तरफ़ खिसका कर फोटो खींची है। ध्यान रखो, ऐसे फोटोग्राफर, चरित्र हनन मे एक्सपर्ट होते है।
नशा शराब में होता तो नाचती बोतल
नशे में कोन नहीं, है मुझे बताओ जरा
लोग कहते हैं मै ..................
समीर बाबु आपकी कविता पढ़ कर बस एक ही बात याद आती है की पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिए ;)
बहुत अच्छा लिखा है आप ने हुज़ूर
बहुत बहुत आभार ...........
कविता बहुत पसंद आई ..अभी तो पी भी नहीं की इतना हंगामा हो गया...:)
तुस्सी एप्पल जूस पीन्दे पये हो!
मैंने पढ़कर झप्पी ले ली मेरी फोटो तो कट गई हा हा हा . इस मसले में आपका प्रतिउत्तर काबिले तारीफ है .... वह समीर भाई आपका जबाब नहीं ....
बड़ी हसीन मजबूरी है जी :)
बस इतना बता दीजिये यह कविता पीने के पहले लिखी थी या बाद में .. ताकि ..हम भी कुछ..।
itna sab dekhte hue to aapka peena jayaj hi kaha jayega.........lage rahuye.
तब ऐसे में बेबस होकर
मैं किसी तरह जी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
वाह वाह वाह !!!
ha! ha! ha!
-aap ne to itne sare karan bata diye!
-Hasy ras bhi khoob bikherati hai aap ki kalam!
भरे हुए मग और पीने वाला दोनों लाजवाब. कविता भी.
जैसे दुनिया जगती है
सूरज नभ की शोभा बनता
कही क्षितिज में बादल सा
पवन थपेड़ों के संग झूमा
रात हुई तो तारों संग
चंदा सा खुश रहता हूँ
बस ऐसे ही पी लेता हूँ
कमाल का "खुलासा" है!!!
ज़नाब, बीयर नीट है या ---
दूसरी बात, आप पी रहे हैं, या पिला रहे हैं ?
तीसरी बात, कोई ऐसा मौका भी है, जब आप नही पीते ?
बहरहाल, कविता पढ़ते पढ़ते , हमें भी नशा होने लगा है।
हा हा हा ! मजेदार रहा ये प्रकरण।
सुबह देख कर गया था भरी थी
शाम को भी भरी थी
अरे! रात होने को आई अभी तक भरी है!!
--समीर भैया दिखाते रहेंगे कि पीयेंगे भी?
जितने भी कारक बतलाये
हम भी उनमे पी लेते हैं
पर जम के खुशी तब होती है
जब फ़ोकट में पी लेते हैं :):)
पियो और जियो!
अथातो पियक्कड़ जिज्ञासा
कविता बहुत नशीली है :-)
समीर जी
मैं तो यही कहूँगा
हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो समीर जी ने पी ली है........
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है.......
मुन्ना भाई ब्लाग चर्चा मे आपका इंतजार कर रयेले हैं. जल्दीईच पधारने का और आपकी राय भी देने का.
मैं आपका इंतजार कर रयेला है.
जब मेरी कविता को सुनकर
खूब दाद उठाता हो श्रोता
thiik kaha aapne
aaj aap khoob pijiye
hum aapki kavita ke khoob dil se daad dete hai.
uniqe rachna ..manbhavan
or aapko kasmiri rasoi ka vijeta hone ki bahot bahot bandhaiii
जब पंछी सारे सोते हैं
या उल्लू बाग में रोते हैं
जब फूलों की खूशबू वाले
ये हवा के झोंके होते हैं
जब बिजली गुल हो जाती है
और नींद नहीं आ पाती है
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
तब ऐसे में मैं क्या करता
रख लम्बी चुप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
वाह क्या खूबसूरत लिखा है. आनंद आगया.
तबियत फ़डक गई. लाजवाब है जी.
बहुत गजब की पोस्ट लिखी, पढकर परम आनंद आगया।
हैप्पी ब्लागिंग।
101 Comments ....WOW !! ;-)
& why not ? It is your post Sameer bhai , had to happen ..
what I wanna know is, "who was the designated driver " ?
Great poem..as usual too ..>>
Keep writing ...>> Be happy !!
Cheers .......Hic Hic Hooray ...
warmest rgds,
- L
कह देना था-
ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज-ओ-अभ्र-ओ-शबे-माहताब में
पहली बार आपकी रचनाएं पढ़ने का अवसर मिला । सच कहता हूं,बहुत अच्छा लगा और बहुत कुछ सीखने को मिला और आशा है सीखता रहूंगा ।
समीर भाई ... गज़ब की फोट है .... और कमाल का लिखा है ...... कमेन्ट तो आपकी पोस्ट पर इतने सारे और हर रंग के हैं ...... कुछ अलग लिखूं तो क्या लिखूं .....
बहुत अच्छी और मजेदार कविता
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना ।।
छोडो बेकार की बातों में कहीं ............
समीर जी बहुत अच्छे लग रहें है आप, नजर उतरवा लीजिएगा ........
सुन्दर कविता है, keep it up.......
अजी समीर साहब....!
क्या बात है...!...पर मेरी मुश्किल यह है कि मैंने इसे सुबह सुबह पढ़ लिया...और याद आया बहुत पहले से सुना गीत...:
जिसकी बेटी ने उठा रखी है सर पर दुनिया;
ये तो अच्छा हुआ अंगूर के बेटा न हुआ...
बस ऐसे मैं पी लेता हूँ
बॉस,
आपके चरण ईमेल करें प्लीज़ जल्द-अस-जल्द।
#छोड़_दे_पीना_छोड़_शराबी
शराब के प्रचार प्रसार में शायर, कवियो, और अन्य फोकटियो का बहुत योगदान है
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