कैद!!
कुछ सोच की
आसमानी सरहदें..
कुछ अनुभव के
नुकीले किनारे..
कुछ सामाजिक मर्यादाओं की
चहारदीवारियाँ..
कुछ कुटुम्बीय मान्यताऐं
मानिंद खेत की मेढ़ें..
कुछ व्यक्तिगत व्यवहारजनित
मान्यताऐं..
इन सबके भीतर
सिमटता हुआ
इक
मेरा जहाँ..
और
मैं
उस जहाँ को सोचता हूँ!!
-कैद में कौन कब खुश रहा है?
अहमियत!!
उपर से चौथी पंक्ति में
बायें से तीसरा शब्द
दायें से गिनों
तो पाँचवां
और नीचे से हिसाब लगायें
तो
सातवीं पंक्ति..
ये वो जगह है
जहाँ बहर टूटी है
और
गज़ल मुझसे रुठी है..
कितनी अहमियत है
हर स्थल की!!!
-समीर लाल 'समीर'
एक जरुरी सूचना: मेरी पुस्तक ’बिखरे मोती’ जीतने का सुनहरा मौका
आप कविता लिखते हैं और हिन्दी ब्लॉगरों के बीच ख़ास मुकाम बनाना चाहते हैं? आप कविता के अच्छे पाठक हैं, कविताओं की समालोचना में यक़ीन रखते हैं। तो हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के जून 2009 अंक में भाग लीजिए और उपहार स्वरूप ले जाइए मेरी नवीनतम प्रकाशित कविता-संग्रह 'बिखरे मोती' की एक प्रति। अंतिम तिथि- 15 जून 2009। अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें।
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समीर लाल का जीवन भी किसी उपन्यास से कम नहीं: विवेक रंजन श्रीवास्तव
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"देख लूँ तो चलूँ"-समीर लाल "समीर" : डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
समीर-सागर के मोती.. : खुशदीप
समीर जी की किताब- इतना पहले कभी नहीं हंसा.. : खुशदीप
विमोचित पुस्तक ' देख लूँ तो चलूँ ' महज यात्रा वृत्तांत न होकर उड़न तश्तरी समीर लाल समीर के अन्दर की उथल-पुथल, समाज के प्रति एक साहित्यकार के उत्तरदायित्व का सबूत है : विजय तिवारी ' किसलय'
ऐसी कौन सी जगह है जहाँ समीर का अबाध प्रवाह नहीं है : आचार्य डॉ हरि शंकर दुबे
मुझे समीर लाल एक शैलीकार लगते हैं : श्री ज्ञानरंजन जी
ज्ञानरंजन जी करेंगे समीर लाल की कृति ’ देख लूं तो चलूँ’ का अंतरिम विमोचन: गिरीष बिल्लोरे”मुकुल”
देख लूं तो चलूं का विमोचन समारोह: नुक्कड़
देह नाचती रहे - आँखे देखती रहें : ललित शर्मा
अपील
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
----------
89 टिप्पणियां:
Aapke simte jahan ki kasak...jitna aapko dukhi karti hai...utna hi bakiyon ko bhi...!!
वाह वाह प्रभु..भाई किसने कैद कर लिया हमारी उड़नतश्तरी को..मुझे तो पहले से ही शक था की ..अमेरिका की नजर है इस पर....मगर आप चिंता न करें..हम कुछ न कुछ इंतजान कर देते हैं...कैद से छूटने का...
और गुरूजी..इतनी गहरी गहरी बातें लिखोगे..तो कसम गज़लें रूठें न रूठें..हम जरूर रूठ जायेंगे...कुछ तो सोचो ..प्रभु हम बच्चों का..अभी नादाँ है..क्या इत्ता समझ लेंगे..
ये तोतु भेई आपने आपने बिलकुल भारीभरकम पला है...हमारे तोते तो इसके सामने ...गौरैया लगेंगे...जल्दी आइये ..ज्यादा छुट्टी नहीं मिलेगी..
aur han aapke mitthu miyan bahut khubsurat hain....p)
चलिए व्यस्तता की बीच भी अच्छी रचनाओं का प्रस्फुरण हो रहा है .
समीर भाई आप की उम्दा गज़ल पढकर बहुत खुशी हुई !
और ये सुफेद पक्षी तो काकाकौआ जैसा लग रहा है - वाह !
- लावण्या
achchhi rachna sameer ji.
-कैद में कौन कब खुश रहा है?
कैद मे खुश तो कोई नही पर कुछ कैद भी खुशनसीबो को ही मिलता है
atyant prabhavi rachana
बहर टूटी और बात नहीं तो ग़ज़ल न सही कविता तो हुई।
एक फिल्म का गाना याद आ रहा है.. कैद मांगी थी रिहाई तो नहीं मांगी थी.. तो कहने का गर्ज ये कि कैद भी रोमांटिक हुआ करती है। बहरहाल, दद्दा आपने पूछा कि दिखते नहीं कहां रहते हो.. सब कुशल है..। मंगल है। बस रोज़ी-रोटी के लिए पहले एक महीने बंगाल में रहा। चुनाव कवर करने के लिए वो भी गांवों में तो अंतरजाल से दूर ही रहा। ऐसे में ब्लॉग जगत से कट गया था। फिर, बजट के लिए दौरे पर हूं.. और कोई बात नहीं। कलम में बुहत स्याही बाकी है दद्दा.. अभी तो।
पहली बार सफ़ेद तोता देख रहा हूँ.....कहीं ये भी अपने देश का तो नहीं जो दूर देश में होने की वजह से अपनी रंगत गँवा चुका है....पशु-पक्षी भी आखिर जड़-प्रेमी होते हैं......क़ैद में रहना तो किसी को नहीं भाए, मगर ग़ज़ल आपसे रूठकर कहाँ जाए ??
साभार
हमसफ़र यादों का.......
शुक्रिया
आज तो आपने बहुत गहेरा लिख दिया न जाने कौन से सोते मर्म को जगा दिया.......
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी.......
और आपकी तस्वीर तो लाजवाब है.......
अक्षय-मन
टिप्पणी छोड़ मैं तो कविता लिखने की ट्राई मारता हूँ. ;)
तोता काफ़ी बड़ा है, एक बाज़ के आकार सा, लेकिन फोटो में बहुत प्यारा सा लग रहा है, आशा है वैसे भी प्यारा होगा। सफ़ेद तोता कभी नहीं देखा! :)
कभी कभी गजल सही मे रुठ भी जाती है पर आप जैसे हरफ़नमौला उसे मानने पर मजबूर कर देते हैं. उम्मीद है व्यस्तता के चलते हुये भी आपका आवागमन चलता रहेगा.
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
किताबों में कैद होने पर तो ग़ज़ल रूठेगी ही... हमने बस यों ही लिख दिया. आपकी दोनों रचनाएँ बहुत खूबसूरत हैं.
तोताराम तो सुन्दर है और रचनायें भी।
nice one..
वाह!!!!अद्भुत!!!इतना बढिया लिखा है और कहते है, गज़ल आपसे रूठी है!!!
एक लिन्क दे रही हूं समय निकाल कर देखें ज़रूर.
www.avojha.blogspot.com
समीर भाई सफेद तोता वो भी मेगा साईज का.. पहली बार देखा.. शानदार तोता है..
दोनों कविताऐं गहरे अर्थ लिये..
कुछ सोच की
आसमानी सरहदें..
कुछ अनुभव के
नुकीले किनारे..
इन सबके भीतर
सिमटता हुआ
इक
मेरा जहाँ..
और
मैं
उफ़ क्या लिखते हैं आप...
बहुत सुंदर भाव...
मीत
तोता राम भी आपकी तरह मस्त और हट्टे कट्टे लग रहे हैं...दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी कहीं हैं आपने...इतनी व्यस्तता के बावजूद कविता की सरिता बह रही है...और क्या चाहिए?
केनेडा का कार्यक्रम रद्द होने का मुझे आपसे अधिक अफ़सोस है...अगली बार सही...
नीरज
दोनों कविताएँ काफी अच्छी लगी. नीचे वाली ज्यादा अच्छी लगी. और यह भी अच्छा लगा कि आपकी साइडबार अब पोस्ट से डबल बडी हो गई है! :)
बहुत बड़े तोता राम है जी यह तो :)
कितनी अहिमयत है ...
बहुत पसंद आई ..
समीर जी केद मै भी बहुत खुशी होती है, लेकिन केसी केद..... जब प्यार हुआ इस पिंजरे से तुम कहने लगे कि उड जाओ.....हम सभी भी तो इस केद मै खुश है,ओर जो इस पिंजरे से उड जाये उसे वाज झपटा मार कर खा जाता है.
बाकी आप की रुठी हुयी गजल बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद
अरे, गजल रूठी है तो क्या हुआ, कविता से तो काम चल रहा है।
लगे रहिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
तोताराम तो बड़े प्यारे हैं और रचना का तो कहना ही क्या !
o what a lovely parakeet and poetry as well!
ब्लॉगर दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi ने कहा…
बहर टूटी और बात नहीं तो ग़ज़ल न सही कविता तो हुई।
6/15/2009 08:28:00 पूर्वाह्न
main dwivedi ji ki baat se sahmat hun.
"chiya" god me baithe mere bete ne aapki "tote" waali foto dekhte hi pratikriya di.......:)
gajal to nahin bani lekin kavita achhi ban padi hai .
oh main chook gai ....kyonki main kavita me kuch kachhi hoon par aapka blog padhna bhata hai :)
समीर जी,बहुत बढिया रचना लिखी है।"कैद" कविता की अंतिम पंक्तियां आदमी की बेबसी को जाहिर करती है।जो आज ब्लोग जगत मे भी देखने को मिल रही है।
कुछ व्यक्तिगत व्यवहारजनित
मान्यताऐं..
इन सबके भीतर
सिमटता हुआ
इक
मेरा जहाँ..
और
मैं
उस जहाँ को सोचता हूँ!!
-कैद में कौन कब खुश रहा है?
बहुत सुन्दर लिखा है। वाह
vaah..sameer भाई........... gazal roothee है........... किस माध्यम से क्या कहा है........... मन की दर्द को क्या khoobsoorti से utaara है ....... मान गए ustaad जी........... दोनों kavitaaon में chupe gahre bhaav को samajhnaa और samjhaana aasaan नहीं था....... पर आपकी kalam ने ये कम कर दिया............. sajeev kavitaayen हैं दोनों
ख़ूबसूरत कविता है . अरे आपकी तोता के साथ भी अच्छी पटती है फोटो देखकर लग रहा है . बधाई हो
बहुत सुन्दर रचना .....
हर स्थल की अहमियत है और हर बात की।
हां रूठना और सधना तो लगा रहता है।
VAAKAI BLOG SANSAAR SOONA HAI.
samir ji gazal ki kya mazaal aapse rooth jaaye, kaan pakad kar seedha kar dijiye...ya fir mana hi lijiye.
doosri wali kavita khas taur se bahut acchi lagi.
aji hame to bina jeete hee apki kitab mil gayee kavita bahut bhavmay hai aabhar
bahut khoosurat,
ekdam jabardast...
mmmmmere paas ab shabd nahi hain tareef ke
ये वो जगह है
जहाँ बहर टूटी है
और
गज़ल मुझसे रुठी है..
कितनी अहमियत है
हर स्थल की!!!
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!!
घर की बात घर में ही रखिये! जो रूठा हो उसे मना लो!
आप तो कैद होने वाली चीज़ नहीं है, आपसी निरंतर उड़ान तो शायद ये तोता भी न भरता हो.
"अपनी-अपनी वुस -अते फिक्रो यकीं की बात है,
जिसने जो आलम बनाया वोह उसी का हो गया."
-m.hashmi
मुझे नहीं लगता है कि आपको कभी भी पूरी तरह समझ पाऊँगी.
प्रभाबशाली रचनाएँ
कैद में है बुलबुल, सय्याद मुस्कराये,
कहा भी न जाये चुप रहा भी न जाये।
समीर भाई! बहुत खूब।
आपकी यही अदाएँ तो मन को लुभाती है।
मैं तो फोटो ही देखती रह गई। कितना बढ़ियां कम्बीनेशन है।
अति सुंदर।
मैं तो फोटो ही देखती रह गई। कितना बढ़ियां कम्बीनेशन है।
अति सुंदर।
अपने राम को तो कविता बहुत दूर की चीज दिखती है ।
समीर भाई,
गजल बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद
श्री समीर जी,
मैं आपकी ब्लॉग प्रतिब्द्धिता का कायल हूँ। फुरसत मिली तो ब्लॉग है ही और नही है तो भी।
रचनाओं के लेकर इतना कुछ कहा गया है कि मुझे अपने विचार छोटे जान पड़ते हैं, फिर भी कहूंगा कि :-
कैद में कौन खुश रहा? एक ऐसा मन्त्र है जो फड़फड़ाने को मजबूर कर देता है, फिर कैद कहाँ?
उम्दा रचना के लिये साधुवाद।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
भैया जी, आजकल रूठने-मनाने का दौर कुछ ज्यादा ही चल रहा है। ग़ज़ल भी रूठने लगी है।
खैर तब तक दूसरा दाँव आजमाइए। आप को कई मालूम हैं।
अच्छा लगा आपकी रचना क़ैद को पढ़ना
बहुत अच्छा ......
एक नई पत्रिका समकालीन ग़ज़ल देंखे
चिंतन का सार ऊड़ेल दिया है आपने इसमें। छोटी पर प्रभावशाली रचना।
न जाने कैसे कह रहे है आप ग़ज़ल आप से रूठ गई . दिन बा दिन आपकी ग़ज़ल परिपक्व हो रही है .
यहाँ कितने लोग-कितने लोगो से रुठे है ...और आप फ़कत गजल के रुठने पर लिख रहे है ।
अभी तो लोगो को मनाना होगा :)
प्रशंसा के लिए एक ही पंक्ति काफी है-
'कैद में कौन कब खुश रहा है?'
DEKHAN ME CHHOTAN LAGE GHAW KARE GAMBHI WAALI BAAT KO SARTHAK KIYAA HAI AAPNE ... WESE BHI MAIN AGAR KAHUN TO CHHOTI RACHANAAYE JAYDA BHV SAMETE RAHTI HAI ... JO MUJHE KHAS KAR LUBHAATI HAI... BAHOT HI KHUBSURATI SE AAPNE BAAT KAHI HAI ... BAHOT BAHOT BADHAAYEE SAHIB..
ARSH
ये वो जगह है
जहाँ बहर टूटी है
और
गज़ल मुझसे रुठी है..
कितनी अहमियत है
हर स्थल की!!!
.....Gajal ko itna bhav denge to wah ruthegi hi, yah to duniya ka rivaj hai.
_________________________
मेरे ब्लॉग "शब्द-शिखर" पर भी एक नजर डालें तथा पढें 'ईव-टीजिंग और ड्रेस कोड'' एवं अपनी राय दें.
gazab gazab ki baatein likhi hai aapne :)
hindyugm me kavita bheji hai...aapki pustak jeetne ka laalach aisa tha rok nahi paaya khud ko!!
न गजल आपसे रूठी है न आप गजल से दूर हें. सायद दूर होने का एहसास ही किसी व्यक्ति को उसके सबसे करीब लाने की पहली कड़ी होता है. बहुत सुन्दर रचना है.
कविताएं भी खूबसूरत है .हाथ पे बैठा पक्षी भी......किताब हमने पहले ही जीत ली है........
कुछ मान्यताओं और मर्यादाओं की कैद मिलना तो खुशनसीबी की बात है.
वर्ना आजकल सबसे ज्यादा कमी तो इन्ही की देखने में आती है.
रचना और तस्वीर दोनों बहुत अच्छे लगे.
शुक्रिया.
जीवन की गणित में
कुछ सवाल हल नहीं किये जाते।
वो होते है सिर्फ
जीने के लिए।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति। जबसे पढ़ा है तबसे मेड़ पर अटका हुआ हूँ।
रचना त्रिपाठी ने कहा… मैं तो फोटो ही देखती रह गई। कितना बढ़ियां कम्बीनेशन है।
आपकी रचना पढ़कर मन रूमानी हुआ... और रचना जी का कमेन्ट पढ़कर और भी मज़ा आया.... तोते का और आप का कितना बढ़ियां कम्बीनेशन है... है ना....
mera hausla badhaane ke liye dhanyawaad....... main apke dwara diye gaye comments ka shukraguzaar hoooon.....
sabse pahale aapko bahut-bahut dhanyavaaad. apka aashirvad aour margdarshan hamesha milta rahega ye ummeed hai.....
AAPKI RACHNA BAHUT HI SUNDAR LAGI...
BADHAI........
सफ़ेद तोता?
आप की टूटी बहर की रचना तो बाद में पढ़ी तोताराम को देखते रहे ..
-कैद--एक कटाक्ष है
-अहमियत -सशक्त अभिव्यक्ति.
लाजवाब कविता दोनों की दोनों...
बिखरे मोती अभी कुछ दिनों पहले पहुँची है हमारे पास गुरू जी की कृपा से।
sunder mithumiya hai,magar sach kaid mein kaun khush raha hai,dikhawa bas reh gaya hai khushi ka.
सही है कितने बंध हमारे समाज के और परिवार के बनाये हुए । पर यही तो कभी बहुत प्यारे थे ।
मिठ्ठु तो नही लगते ये ।
-कैद में कौन कब खुश रहा है?
bahut khoob likha
sachche arthon main
ग़ज़ल रूठी, कुछ ज्यादती तो नहीं हुई
अब चाहिए तनिक सिचाई, फिर बंजार ज़मीं
हरियाली में तबदील होगी जरुर, कोई देर नहीं
फिक्र न करो, गुनगुनाते रहो,बस यूँही बस यूँही
सच कहा है आपने ...
पिंजरे की बुलबुल पिंजरे मे कब खुश रहती है ...
पंखों को बाँध , उड़ना भूल कर सलाखों मे
जीना कब सीखती है....
आप कहीं वन्यजीव संरक्षण कानून का उल्लंघन करके तो तोते नहीं सहला रहे हैं समीर साहब? पर सहला रहे हैं। बहुत अच्छे। आपकी दूसरी गजल बेहद पसंद आई।
...Tab to Totaram bhi apki boli bolne laga hoga...lajwab prastuti.
_____________________________
अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.
समीर जी,
आपके बिना ब्लोगजगत सूना लगता है...
आपको सुन्दर कविता की बधाई..
प्रकाश सिंह
अजी
आपसे कौन रुठ सके है जी।
खुदा गवाह है की हर अच्छी रचना कदखाने में ही सृजित हुई है....................
चन्द्र मोहन गुप्त
sundar kavita ,nice..
आपकी रचनाएँ अब केवल रचना नही लगती हमे,
कितने जज़्बात पिरोती है ये,
कभी कभी आँखों को भिगोती है ये,
सचमुच मे आप की लेखनी मे,
सच्चाई का अहसास होता है,
एक एक शब्द का भाव,
अपने मे बहुत ही खास होता है.
aapke tota ram bhi achchey lage....aur to 2nd wali kavita ka kya matlab hain.....pata hain hamne to counting bhi shuru kar di thi.... dimaag ka dahi ho gaya ....phir pata chala ye to bes uhi aapne likh diya..... but bahut acchi lagi
आपकी अद्भुत सृजनशीलता का कायल हूँ....वाकई आपकी रचना तमाम रंग बिखेरती है...साधुवाद.***
"यदुकुल" पर आपका स्वागत है....
आपको धन्यवाद। कैद में कौन खुश रहता है। कोई नहीं। पर कैलीफोर्निया में तो आप खुश रहे ही होंगे।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार वे पांच चीजे हैं जिन्हें हमारे यहाँ त्यागने की बात सुनते आये हैं हम. किन्तु पश्चिम मोह से छूट गया दीखता है.
आपको पढ़कर, Father's Day, Mother's Day...का मतलब और ठीक से समझ आता है. यहाँ तो हर रोज़ ही हरेक का होता आया है, क्यों वहां कम से कम एक दिन तो किसी के लिए रखना ही पड़ता है...
विश्वास और पक्का होने लगता है कि हम तो गंवार ही भले भाई...
नमस्कार समीर जी,
बहुत सुन्दर रचना है, सही बात है कैद में कौन खुश रहता है.
अति सुन्दर एवं संवेदनशील रचना ।
उपर से चौथी पंक्ति में
बायें से तीसरा शब्द
दायें से गिनों
तो पाँचवां
और नीचे से हिसाब लगायें
तो
सातवीं पंक्ति..
ये वो जगह है
जहाँ बहर टूटी है
और
गज़ल मुझसे रुठी है..
कितनी अहमियत है
हर स्थल की!!!
बेहतरीन ....
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