अब न वो ताज रहा, औ न उसके चाहने वाले !
सहम के आते हैं, इस मुल्क में, वो जो हैं, आने वाले !!
हमें तो याद हैं अब भी, इसके दिन जो पुराने वाले !
लो बुला लाते हैं फिर से, पल-छिन वो सुहाने वाले !!
जी हाँ, मैं उसी ताज की बात कर रहा हूँ जो मेरी प्रथम पाँच सितारा होटल की यात्रा का साक्षी रहा. अभी हालात जो भी हों..पाँच सितारा होटल में कदम रखने का अभियान यहीं से शुरु हुआ था. आज उसी को याद करते हुए यह संस्मरण:
Picture Taj Hotel, Mumbai |
पहली बार किसी फाईव स्टार होटल में घुसने का मौका था एक दोस्त के साथ.
तय हुआ था कि एक एक कॉफी पी जायेगी. एक कोई वहाँ बिल और १०% टिप देगा. बाहर आकर आधा आधा कर लेंगे. इसी बहाने फाईव स्टार घूम लेंगे,
छात्र जीवन था. बम्बई में पढ़ रहे थे. एक जिज्ञासा थी कि अंदर से कैसा रहता होगा फाईव स्टार. छोटे शहर के मध्यम वर्गीय परिवार से आये हर बालक के दिल में उस जमाने में ऐसी जिज्ञासायें कुलबुलाया करती थीं.
बम्बई से जब घर जाया करते थे तो वहाँ रह रहे मित्रों के सामने अमिताभ बच्चन वगैरह के नामों को इग्नोर करना बड़ा संतुष्टी देता था जैसे उनसे बम्बई में रोज मिलते हों और उनका कोई आकर्षण हममें शेष नहीं बचा है. यथार्थ ये था कि एक बार दर्शन तक नहीं हो पाये थे तब तक.
खैर बात फाईव स्टार की हो रही थी. होटल तय हुआ ताज. दोपहर से ही दो बार दाढ़ी खींची. सच कहता हूँ डबल शेव या तो उस दिन किया या अपनी शादी के दिन.. बस!!! सोचिये, दिलो दिमाग के लिए कितना बड़ा दिन रहा होगा.
अपनी सबसे बेहतरीन वाली सिल्क की गहरी नीली कमीज, जो अमिताभ नें मिस्टर नटवर लाल में पहनी थी, वो प्रेस करवाई. साथ में सफेद बेलबॉटम ३४ बॉटम वाला. जवानी का यही बहुत बड़ा पंगा है कि आदमी यह नहीं सोचता कि उस पर क्या फबता है. खुद का रंग रुप कैसा है. वो यह देखता है कि फैशन में क्या है. जब तक यह अच्छा बुरा समझने की समझ आती है, तब तक इसका असर होने की उमर जा चुकी होती है. दोनों तरफ लूजर.
४५ साल तक सिगरेट पीते रहे और फिर छोड़ कर ज्ञान बांटने लगे कि सिगरेट पीना अच्छा नहीं. मगर उससे होना क्या है, जितनी बैण्ड लंग्स की बजनी थी, बज चुकी. अब तो दुर्गति की गति को विराम देने वाली ही बात शेष है.
खैर, शाम हुई. हाई हील के चकाचक पॉलिश किये हुए जूते पहनें हम चले फाईव स्टार-द ताज!!!
चर्चगेट तक लोकल में गये और फिर वहाँ से टेक्सी में. ४-५ मिनट में पहूँच गये. दरबान नें दरवाजा खोला. ऐसा उतरे मानो घंटा भर के बैठे टेक्सी में चले आ रहे हैं. दरबान के सलाम को कोई जबाब नहीं. बड़े लोगों की यही स्टाईल होती है, हमें मालूम था.
सीधे हाथ हिलाते फुल कान्फिडेन्स दिखाने के चक्कर में संपूर्ण मूर्ख नजर आते (आज समझ आता है) लॉबी में. और सोफे पर बैठ लिए. मन में एक आशा भी थी कि शायद कोई फिल्म स्टार दिख जायें. नजर दौड़ाई चारों तरफ. लगा मानो सब हमें ही घूर रहे हैं. यह हमारे भीतर की हीन भावना देख रही थी शायद. मित्र नें वहीं से बैठे बैठे रेस्टॉरेन्ट का बोर्ड भांपा और हम दोनों चल दिये रेस्टॉरेन्ट की तरफ.
अन्दर मद्धम रोशनी, हल्का मधुर इन्सट्रूमेन्टल संगीत और हम दोनों एक टेबल छेक कर बैठ गये. मैने सोचा यहाँ तक आ ही गये हैं तो बाथरुम भी हो ही लें. बोर्ड भी दिख गया था, दोस्त को बोल कर चला गया.
अंदर जाते ही एक भद्र पुरुष सूटेड बूटेड मिल गये. नमस्ते हुई और हम आग्रही स्वभाव के, कह बैठे पहले आप हो लिजिये. वो कहने लगे नहीं सर, आप!! बाद में समझ आया कि वो तो वहाँ अटेडेन्ट था हमारी सेवा के लिए. हम खामखाँ ही फारमेल्टी में पड़ लिए. बाद में वो कितना हँसा होगा, सोचता हूँ तो आज भी शर्म से लाल टाईप स्थितियों में आ जाता हूँ.
वापस रेस्टॉरेन्ट में आये, तब तक हमारे मित्र, जरा स्मार्ट टाईप थे उस जमाने में, कॉफी का आर्डर दे चुके थे.
कॉफी आई तो आम ठेलों की तरह हमारा हाथ स्वतः ही वेटर की तरफ बढ़ गया आदतानुसार कप लेने के लिए और वो उसके लिए शायद तैयार न रहा होगा तो कॉफी का कप गिर गया हमारे सफेद बेलबॉटम पर. वो बेचारा घबरा गया. सॉरी सॉरी करने लगा. जल्दी से गीला टॉवेल ला कर पौंछा और दूसरी कॉफी ले आया. हम तो घबरा ही गये कि एक तो पैर जल गया, बेलबॉटम अलग नाश गया और उस पर से दो कॉफी के पैसे. मन ही मन जोड़ लिए. सोचे कि टिप नहीं देंगे और पैदल ही चर्चगेट चले जायेंगे तो हिसाब बराबर हो जायेगा. अबकी बारी उसे टेबल पर कप रख लेने दिये, तब उसे उठाये.
बाद में उसने फिर सॉरी कहा और बताया कि कॉफी इज ऑन द हाऊस. यानि बिल जीरो. आह!! मन में उस वेटर के प्रति श्रृद्धाभाव उमड़ पड़े. कोई और जगह होती तो पैर छू लेते मगर फाईव स्टार. टिप देने का सवाल नहीं था क्यूँकि नुकसान हुआ था सो अलग मगर जीरो का १०% भी तो जीरो ही हुआ. तब क्या दें?
चले आये रुम पर गुड नाईट करके उसे, दरबान को और टैक्सी वाले को. कॉफी का दाग तो खैर वाशिंग पाउडर निरमा के आगे क्या टिकता. ५० पैसे के पैकेट में बैलबॉटम फिर झकाझक सफेद.
फिर तो कईयों को फाईव स्टार घुमवाये. एक्सपिरियंस्ड होने के कारण हॉस्टल में हमारे जैसे शहरों और परिवेष से आये लोग अपना अनुभव बटोरने के लिए हमारा बिल पे करते चले गये.
अनुभव की बहुत कीमत होती है, हमने तभी जान लिया था.
111 टिप्पणियां:
आप के अनुभव को सलाम!
मजेदार है। अब तो होटल वाले भी जान गये होंगे कि आ गये मिस्टर १०% पर्सेन्ट!
यही यादेँ हैँ ...
हम भी ताज मेँ कुछ दिन/रात रुके हैँ -
(स्वर साम्राज्ञी लता दीदी मँगेशकर जी की मेहरबानी पर :)
वे अक्सर साल गिरह के दिन घर से दूर रहतीँ हैँ -
कभी पुणे तो कभी कोल्हापुर -
उस वर्ष ताज मेँ रहीँ और मेनेजमेन्ट ने ट्रीपल चोकलेट केक भी भिजवाया ..
आज बस यादेँ बाकी हैँ ..
और हमारे "ताज" को बेरहमी से विध्वँस करनेवालोँ के प्रति दिल मेँ गुस्सा ही गुस्सा है :-((..
आपका सँस्मरण "ए - वन" रहा समीर भाई ! :-)))
स स्नेह,
- लावण्या
हाँ ताज के प्रथम दर्शन हमने भी किये थे बचपन में ही, जब हमारे मौसा जी वहाँ ठहरे थे और हम उनसे मिलने गये थे। एक कप स्पंज केक खिलाया था उन्होंने हमें अपने रूम में, और उसका स्वाद अब भी नहीं भूलता।
pehli baar fivestar aayi aur coffe muft,e hui na udan ji wali baat,bahut hi achha anubhav raha,sher bahut khub.
समीर जी आपके लेखन की सबसे ख़ास बात है की वह दूसरों को भी अनुभवी बना जाता है ! बहुत मजेदार और और कुछ सीख देने वाली पोस्ट -मुझे अपने मित्र के साथ का वह वाक़या याद आ गया जब पूरा पास्ता उनके पैंट पर गिर गया या उन्होंने गिरवा जाने दिया -फिर पास्ता मुफ्त और अगली बार का खाना भी मुफ्त !
वाह वाह! उस दिन के बाद कितनी बार काफी गिराई इस उम्मीद में कि कोई और वैसा ही वेटर मिलेगा :)
समीर जी आपके लेखन की सबसे ख़ास बात है की वह दूसरों को भी अनुभवी बना जाता है ! बहुत मजेदार और और कुछ सीख देने वाली पोस्ट -मुझे अपने मित्र के साथ का वह वाक़या याद आ गया जब पूरा पास्ता उनके पैंट पर गिर गया या उन्होंने गिरवा जाने दिया -फिर पास्ता मुफ्त और अगली बार का खाना भी मुफ्त !
समीर भाई, मज़ा आ गया पढ़कर! लड़कपन का वह भोलापन - क्या कहने!
लो बुला लाते हैं फिर से, पल-छिन वो सुहाने वाले..shukriyaa,slaam aapko,aapki kalam ko...
सच, कितना मजा आता है बीते दिनों और खास कर के किशोरावस्था की रोचक घटनाओं (या स्वयं के स्मार्टनेस?) को याद कर के। पर ये तो बतायें कि बेलबाटम पर कॉफी गिरवा लेने का ट्रिक कहाँ से सीखा था?
वैसे समीर जी, अपने गधा पचीसी में हमने भी बहुत सी बेवकूफियाँ की हैं।
sameer ji.....apka anubhaw/ sansmaran bahut achcha laga......ese kahne ka dang bhi bahur sunder laga
मज़ेदार किस्सा।
बहुत रोचक अंदाज में लिखा गया है यह मजेदार संस्मरण। पढकर बहुत अच्छा लगा।
बहुत बढ़िया सर..
मजेदार रहा आपका यह अनुभव ताज के साथ..मुफ़्त काफी की बात हमे भी याद रहेगी :)
समीर जी, मजा आगया ये अनुभवद पढ़कर.. लग रहा था..जैसे हम आपके साथ ही कॉफी पी रहे है.. आप छोटी-छोटी बा्ते भी इतनी सहजता से लिखते है.. दिल को छु जाती है.. बहुत अच्छा लगा..
पर ताज का क्या करें.. प्रसुन जोशी की नई कविता ’इस बार नहीं सूखने दूंगा दीवारों पर लगा खून......’... अंजाम देखते है..
rochak anubhav se pariochit karvane ka shukriya.....!
अचानक याद कर रहा हूं कि मैने किसी भी स्टार होटल में एक चवन्नी भी खर्च नहीं की है! सारे पैसे जो लिये हैं वो ढाबे वालों ने लिये हैं! :)
भाई जी, मैं गँवार मानुष..
अपनी कमाई से तो यह विलास और अनुभव संभव नहीं था..
पन, कई बार मेडिकल कम्पनियों के सौजन्य से पाँच सितारों में रूकने का अवसर मिला..
आई कुड्न्ट फ़ील एट होम..
सब कुछ जैसे कृत्रिम और दमघोंटू !
हँसते हँसते पढ़ा है, माफ करें. अच्छा अनुभव रहा.
अनुभव की बहुत कीमत होती है,
अच्छा लगा आपका यह अनुभव जानकर, पर क्या किया जाए अब इस ताज से एक कटु अनुभव भी जुड़ गया है.
---मीत
रोचक संस्मरण . हम तो गेटवे आफ इंडिया से निहार कर ही लौट आये थे . एक फोटो भी खिचवाया था ताज का . फाइव स्टार होटल के रेस्तरा मे जब ८० रु. की एक रोटी खाई तो आज तक हिसाब लगते है की ८० रु, के आटे म कितनी रोटी बनेगी .
aapka anubhav padhkar bahut achha laga...
dua karta hoon ki Taj ki purani rangat jald hi laut aayegi... :)
हाहाहा मजा आ गया पढ्कर !
घुघूती बासूती
स्टार होटलो से लेकर ढाबो तक की खाक छानी है है.. हमारे साथ ऐसा कई साल पहले हुआ था.. जब एक बड़े माल को देखकर ही भाग लिए थे.. आज उसमे शान से घुसते है.. पांडे जी चाहे इसे स्नोबरी समझे.. हमारे लिए सपनो को जीने जैसा है... आज भले सी सी डी या बारिसता में चले जाए कॉफी पीने लेकिन चाय की थाडी पर भी बैठकर चाय पीने में संकोच नही है.. मेक्डी के बर्गर में भी मज़ा आता है और दही पपड़ी खाने में भी वही मज़ा...
और इन सबके लिए मेहनत भी की है.. आप बड़े है या नही पर सपने ज़रूर बड़े होने चाहिए... आपकी वो चाहत ही थी जिसने आपको इस मकाम पर खड़ा किया है...
चलिए ताज से जुड़े किसी किस्से ने चेहरे पर मुस्कान लाई। अन्यथा इतने दिनों से ताज की बेनूरी सिर्फ पलके गीली कर रही है। खूबसूरत पलछिन बाँटने के लिए शुक्रिया।
आपके इस अनुभव ने चेहरे पर मुस्कान ला दी। अन्यथा इतने दिनों से ताज की बेनूरी देख सिर्फ पलके भीग रही थीं। युवावस्था के पलछिन बाँटने के लिए शुक्रिया..
सिल्क की शर्ट में तो नही पर हाँ देर रात २ बजे जाकर हमने खूब काफ़ी पी है ..... पहली बार गए जब हमारे एक सीनियर दोस्त को मोहबात का बुखार चढा हुआ था ओर वे" हाँ ओर ना के पारंपरिक दोरास्ते "पर थे वे दुखी मन से कहानी सुनाते ओर चायनीज सूप पीते ......उन दिनों हम शाकाहारी हुआ करते थे .....जब शौकीन बने तब तक उनकी "हाँ "हो चुकी थी .....
आपकी यादें पढकर अच्छा लगा। वो लड्कपन होता ही ऐसा हैं।
जवानी का यही बहुत बड़ा पंगा है कि आदमी यह नहीं सोचता कि उस पर क्या फबता है. खुद का रंग रुप कैसा है. वो यह देखता है कि फैशन में क्या है. जब तक यह अच्छा बुरा समझने की समझ आती है, तब तक इसका असर होने की उमर जा चुकी होती है. दोनों तरफ लूजर.
आपने तो दुखती रग पर हाथ रख दिया है....सच कहा है आपने ....बहुत सही संस्मरण....
नीरज
maja aa gaya
वाह मजा आगया ये अनुभव पढ़कर, कितने सुहाने दिन रहें होंगे वो,...उस दिन की यादों को आपने इस लेख मे जैसे जीवंत कर दिया है .....
Regards
पूरी पोस्ट मुस्कराते हुए पढी ! बेहद मनोरंजक और हम सब मध्यमवर्गीय लोगों की आप बीती ! मज़ा आगया आपकी सादगी पर !
मजेदार रहा यह लेख.
वैसे बंगलादेश भी बना रहा है एक ताज ( ताज महल डूपलीकेट ) फ़िर तो पुराने वाले को कौन देखेगा सब वहीं जायेंगे :)
bhai jiska mann pareshaan ho ,aapke blog par aa jaye-din mast ho jata hai.....kitne sahi bhaw aapne pesh kiye hain.
अब न वो ताज रहा, औ न उसके चाहने वाले !
सहम के आते हैं, इस मुल्क में, वो जो हैं, आने वाले !!
हमें तो याद हैं अब भी, इसके दिन जो पुराने वाले !
लो बुला लाते हैं फिर से, पल-छिन वो सुहाने वाले !!
क्या बात कह डाली लाल साहब आपने.
हँसते हँसाते भी सारे हिन्दोस्ताँ का दर्द बयाँ कर डाला. बहुत ख़ूब !
इसे कहते हैं असल "फ़ेस ऑफ़ द ट्रुथ".
उन्हें नहीं, जो हमारे प्यारे ब्लॉगिस्ताँ को "छद्म निर्भीकता" सिखाने के लिए पिछली मर्तबा आपकी पोस्ट "सट्टा" की टिप्पणियों में बीच में टपक पड़े और तमाम ब्लॉगिस्तान के मेम्बरान को एक दूसरे का चापलूस बता गए.
अरे भाई, जो हमें बनाना चाहते हैं (निर्भीक), वो पहले ख़ुद तो बने और सामने आएँ, ज़रा शाइस्तगी के साथ.
प्यारे लाल साहब,
तमाम ब्लॉगिस्तान की तरफ़ से उन कथित छिपे हुए "Face of the Truth" (वाएज़) के लिए ये शेर अर्ज़ है के --
हम तरबतर पै शैख़ नसीहत, न यूँ करें !
हम दामन निचोड़ दें, तो फ़रिश्ते, वूज़ू करें !!
वाह समीर भाई, क्या बात है
ताज का पहला दर्शन, वो भी आपकी अपनी जुबानी
खट्टे मीठे पुराने अनुभव, फ़िर आज की कहानी
क्या बात है
आपका अनुभव इतने सुंदर शब्दों मैं बयान है की सब को अपना हि अनुभव लगेगा
मुझे भी कुछ कुछ ऐसा हि लगा था जब मैं पहली बार पाँच सितारा होटल मैं गया था
अरे वाह समीर जी इतने दिनों तक काहे छिपाए रहे कि वो अमिताभ आपसे ही मांग कर ले गये थे- "अपनी सबसे बेहतरीन वाली सिल्क की गहरी नीली कमीज, जो अमिताभ नें मिस्टर नटवर लाल में पहनी थी, वो प्रेस करवाई।"
ताज के सन्स्मरण लिखने की अदा अद्भुत रही. आभार.
रोचक संस्मरण .
सच कहा कि अनुभव कीमती होते हैं -
क्षति ग्रस्त ताज की तस्वीरों में आप ने उस काफी हाउस के हिस्से को भी जरुर तलाशा होगा जहाँ आप ने बैठ कर काफी पी थी.
बहुत ही मज़ेदार अनुभव रहा आपका,लेकिन पढ़ते हुए ऐसा लग रहा था जैसे हमारे सामने ही ये घटना रिपीट हो रही है......
समीर जी बहुत बहुत धन्यवाद ताज घुमाने के लिए और फ्री में कॉफी पीने का नुस्खा बताने के लिए अब जब भी कहीं फ्री काफी पीने का दिल किया करेगा तो जाया करेंगे हम भी किसी स्टार वाले में लेकिन आप तो पांच में गए हम देखेंगे कि कोई 10-12 स्टार वाला होटल होगा तो उसमें काफी पिएंगे वो भी एक दम मुफ़त गजब का आइडिया बाप मजा आओला वा अवी
धन्यवाद समीर जी कभी काफी पीनी हो तो बताना साथ लेकर चलूंगा
हा हा हा ......
आपके इस मजेदार संस्मरण aur nayaab prastutikaran ने खूब हंसाया... रोमांचित और आनंदित किया है.इसे बांटने के लिए बहुत बहुत आभार.
बहुत मजेदार रहा आपको पढ़ना.
कभी विचार आता है कि आपकी जिन्दगी कितने लफड़ों से होकर गुजरी है. हर जगह कुछ न कुछ पंगा. :)
अब न वो ताज रहा, औ न उसके चाहने वाले !
सहम के आते हैं, इस मुल्क में, वो जो हैं, आने वाले !!
हमें तो याद हैं अब भी, इसके दिन जो पुराने वाले !
लो बुला लाते हैं फिर से, पल-छिन वो सुहाने वाले !!
behad bhawuk aur satya shabdo ke sath shuruwat uske bad to aap apni lay mein aa gaye khoob hasaya aapne.. washroom wala kissa padh kar to bahut hansi aayi :-)
aap great hai sameer ji
एहसास अनजाना सा.....
achchi yaaden to sabke pas hoti hai lekin prastutikaran sabke pas nahi hota...behatarin prastuti...
क्या केने, क्या केने। क्या बात है। एकदम नयी लाते हैं जी आप तो, भले ही पुरानी सुनाते हों।
बहुत मजेदार अनुभव ! मुम्बई की हर विजिट का गवाह रहा ताज का रेस्टोरेंट ! यहाँ फ्लोर का खुलासा इज्जत के डर से नही करेंगे ! :)
असल में हर आम आदमी का सपना है ताज में जाना ! जिसे दरिंदो ने इतनी बुरी तरह घायल कर दिया ! लगता है जैसे अपना जिस्म छलनी हो गया हो !
राम राम !
laekhan mae nikhaar aata jaarahaa haen dino din . pura padna padaa !!! ek saath par badhiyaa lagaa . par yae anubahv sabko kabhie na kabhie aesae hii hota haen
बड़ा बढ़िया रहा आपका संस्मरण. पहली बार हवाई जहाज में चढ़ना हो या फाइव स्टार होटल... ऐसी यादें भूली नहीं जा सकती. हमारे साथ एक फायदा है हमने सब मुफ्त में किया है :-) तो पैसे वाली बात हटा लीजिये बाकी तो सेम ही हैं.
यादों की बारात....!!! मजेदार वाकया है, क्या खूब होता है बीती बातों को याद करना भी....!!!
खुद पर हस कर दूसरों को हंसाना बड़े जिगरे की बात है। उम्दा और मजेदार लेख के लिए क्या कहूं---- साधूवाद।
रही ताज की बात तो वह फिर शान से उठ खड़ा होगा, इस परिक्षा की अग्नि में तप कर।
बहुत ही उम्दा . वाह साब काँफी अपने ऊपर गिरा ली और टिप देने से बच गए. क्या गजब की स्कीम है सर .
वाह ताज! वाह समीर , बहुत मजेदार प्रस्तुती
क्या बात है!बहुत सुंदर धन्यवाद!http://pinturaut.blogspot.com/'http://janmaanas.blogspot.com/
समीर भाई,
ताजा पोस्ट उपलब्ध कराने के लिए अन्तर्मन से आभार । मेरे लिए आपको लगातार कष्ट उठाना ही पडेगा ।
आपकी इस पोस्ट ने मुझे मेरे ही घर में अजूबा बना दिया । शान्ति से पढ रहा था कि टायलेट वाला अंश पढकर जोर से हंसी छूट गई । मेरी पत्नी वीणा, मेरी सलहज मंजू, उसका बेटा तन्मय और मेरा सहयोग नवीन मुझे हैरत से देखने लगे - मानो चिडियाघर के किसी नए मेहमान को देख रहे हों । मैं खुद को, यत्नपूर्वक संयत रखता हूं लेकिन आपकी इस पोस्ट ने असंयत कर दिया और जब मैं ने यह अंश सबको सुनाया तो सब मेरे साथ, मेरी ही तरह बुक्का फाड कर हंसने लगे ।
हास-परिहास में आप बहुत बारीक बात कह जाते हैं । आपकी कलम को ईश्वर चिरन्तन और यशस्वी बनाए ।
वाह, ही ही ही, पढ़ते हुए खूब हंसी आई!! :D
और हाँ, अनुभव वाकई बेशकीमती होता है, यह बात आपने बिलकुल सोलह आने सच कही!! :)
aapkee mumbai main...aapke TAJ ke deedar kiye...aik aur mumbai aapko bula rahi hai...aaiye swaagt hai__tillanrichhariya.blogspot.com __par !
"जवानी का यही बहुत बड़ा पंगा है कि आदमी यह नहीं सोचता कि उस पर क्या फबता है. खुद का रंग रुप कैसा है"
maja aa gaya padh ke.
आपके लेखन की सबसे मज़ेदार बात ये होती है के आप इसमे सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते है..
आपने आपने अनुभव बाटें वो भी बहोत ही बेहतर प्रस्तुति के साथ बहोत खूब साहब ढेरो बधाई आपको....
अर्श
रोचक मज़ेदार किस्सा।
gajab paise bachae boss
समीर भाई आपकी तारीफ में क्या कहूं आपकी लेखनी और सक्रीयता को सलाम।
हमेशा की तरह बहुत बढ़िया रहा! इब्तिदा तो कमाल है!
क्या अनुभव है सर, मजा आ गया। वैसे आम कस्बाई युवकों का हाई-फाई शहरों में अनुभव तकरीबन इसी टाइप का होता है। सर मेरा ब्लाग ब्लागवाणी,चिट्ठाजगत पर रजिस्ट्रर्ड नहीं है, क्या करना होगा, मदद करें
मजा आ गया समीर जी आप का लेख पढ कर लगता है हम सब एक ही थेली के चटे बठे है, सभी ने कुछ ना कुछ गुल जरुर खिलाया है.उस समय कुछ मालिम नही होता, ओर अब उन बातो पर मजा आता है याद कर के.
धन्यवाद
राज ठाकरे मिले तो हमारी तरफ़ से उसे कुछ मत कहना.
Udan Tashtari
ताज मे आज भी कॉफी इज ऑन द हाऊस. हो सकती है अगर आप हिम्म्त जुटाकर तशरीफ फरमाये तो। और १०% टिप की बात से तो यह बात पुख्ता हो जाति है कि शेयर बाजार के गुण बच्चपन से ही आप मे विध्यमान है. मजेदार रहा आपका यह अनुभव।
उपेनजी, ऐसी कहावत है कि वास्तविक मुम्बई को देखनी हो तो रात को देखो (मुम्बई रात भर जगती है] विक्टोरिया मे बैठकर चोपाटी से निकलकर ओबेरॉय टॉवर होते हुये गेट वे ऑफ ईण्डीयॉ के सामने समुन्र्द किनारे पर बैठे-बैठे ताज- महल हॉटल कि रोशनी देखना आज भी सुहावना लगता है। मन करता है ताज के अन्दर कि स्वर्गिक विलासिता को देखा जाये। आज भले ही १०% के हीसाब से टिप ज्यादा बैठती हो। पर आज पुरे देश के लाड-प्यार कि आवश्यकता है हमारे ताज को,,
aanand aagaya padh kar...man se yahi aawaz nikal rahi hai -"wah taj"
-jaya
नमस्कार समीर भी,
इधर एक सेमीनार का आयोजन कर रहे हैं, इस कारण समय नहीं मिल पा रहा है ब्लॉग पर आने का. आज सुबह उठे और अपने तय कार्यक्रम के अनुसार समाचार-पत्र देखा................वाह!!!! आज आपकी उड़नतश्तरी "अमर उजाला" कानपुर के संस्करण में आपके ताज के अनुभव को दर्शा रही है.
मन प्रसन्न हो गया..........तुंरत चाय पीकर ही कंप्यूटर खोल कर उड़नतश्तरी पर जा बैठे.........
अनुभव मजेदार है.................लगभग सबके साथ छात्र जीवन में ऐसे अनुभव होते हैं..........बस उनको शब्दों की चासनी में पागना (शकरपारे की तरह) आना चाहिए.................
माफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.
आज कुछ कलम घसीटी है.
आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. आपकी लेखनी की तहे दिल से प्रणाम.
वाह समीर जी वाह
हमेशा की तरह बहुत अच्छा। रस से भरपूर, पठनीय आलेख। यह आलेख अमर उजाला के संपादकीय पृष्ठ पर भी ब्लॉग कोना में प्रकाशित हुआ है। बधाई।
VERY INTERESTING EXPERIENCE.AP KA YAH EXPERIENCE AMAR UJALA AKHBAR MEN AJ BLOG KONE MEN BHI PRAKASHIT HUA HAI..BADHAI!!!!
अपके अनुभव से ही, अनुभव कर लिया है वरना अपने नसीब में कहां ।
waah taj, waah.
ताज का पहले दिन का अनुभव आपका जैसा रहा हो. पर उसका सबब मिलता रहा है ... क्या कहने!
http://sukhdeosahitya.blogspot.com/
ताज का पहले दिन का अनुभव आपका जैसा रहा हो. पर उसका सबब मिलता रहा है ... क्या कहने!
http://sukhdeosahitya.blogspot.com/
बहुत अच्छा काफी दिन हो गये आप वक्त है में नहीं आये
आपने पूछा था की विन्डो जीनीयन कैसे हटा सकते हैं आप यहां जा कर देख सकते हैं। बहुत बडी प्रक्रीया है हटाने की http://www.mydigitallife.info/2006/04/26/disable-and-remove-windows-genuine-advantage-notifications-nag-screen/
दूख के सिवा और कूछ नही मीलेगा। ना जाने ईतने सारे धमाके होने के बाद भी लोग क्यो चूप बैठे रहते हैं।
खूब लिखा है आपने. शायद पहली बार ऐसे होटलों में सब के अनुभव एक जैसे ही होते हैं...चाय न भी गिरे तो कुछ न कुछ तो गड़बड़ हो ही जाती है
सुन्दर,जीवंत और अनुभूत वर्णन।धन्यवाद
बंधुवर आपकी लेखनी में एक अलग आकर्सर्ण है आपके ब्लॉग के विषय में प्रकाशित हुआ कृपया इस लिंक पर http://www.amarujala.com/today/default.asp
लालाजी,
भई मजा आ गया आपका संस्मरण पढ़कर ...आपका लेखन इंसानी मन के नजदीक और एक लय में होता है...यही कारण है की वह पढ़ने वाले को अंत तक बाँध कर रखता है...बधाई एवं धन्यवाद
कस्बाई या छोटे शहर की झिझक बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है. यह कमोबेश हर पाठक को खींच ले जाती है उसके गुजश्तों यादों में जहाँ कहीं ना कहीं ऐसी ही कोई घटना दर्ज है.
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बाबा सहगल का प्रसिद्ध रैप याद आ गया इस पोस्ट को पढ़ कर...थोड़ा-सा गुनगुनाता हूँ-
मैं फाइव-स्टार होटल पहली बार गया
मैंने देखा पानी से भरा स्विमिंग-पूल
आया मैनेजर,बोला बैठिये प्लीज सर-सर-सर
आपकी सेवा में मैं हाजिर हूँ
फरमाइये,बोलिये,क्या आपको चाहिये
...ठंढ़ा-ठंढ़ा पानी ठंढ़ा-ठंढ़ा पानी
अनुभव की बहुत कीमत होती है, हमने तभी जान लिया था. हं.................म. पर आपके शेर बढिया हैं ।
अब न वो ताज रहा, औ न उसके चाहने वाले !
सहम के आते हैं, इस मुल्क में, वो जो हैं, आने वाले !!
हमें तो याद हैं अब भी, इसके दिन जो पुराने वाले !
लो बुला लाते हैं फिर से, पल-छिन वो सुहाने वाले !!
बहुत खूब .
बहुत बढिया अनुभव बाँटा है जी।सच है पहली बार कहीं भी जाओ तो तो किसी अनुभवी को साथ जरूर ले जाना चाहिए।आज आप की पोस्ट पढ कर यही सीखा।धन्यवाद।
yaadgar hai aapki lekhni
चलिए आपके पैसे तो बच गए ..सुंदर लिखा आपने घटनाओं को( सब देख रहें हैं की यह कंप्यूटर के आगे बैठी क्यों मुस्कुरा रही है )
चलिए आपके पैसे तो बच गए ..सुंदर लिखा आपने घटनाओं को( सब देख रहें हैं की यह कंप्यूटर के आगे बैठी क्यों मुस्कुरा रही है )
sameer ji kuch naya likhiye na...
New post - एहसास अनजाना सा.....
वो दिन याद आ गया जब बिना सितारा वाली एक होटल मैं खाना खाने के बाद हाथ धोने के लिए आये एक बाऊल मैं निम्बू पानी को पीते-पीते रह गया था| हा हा हा !!!!! मजेदार अनुभव बाटने के लिए धन्यवाद्
Rochak anubhav aapke nirale andaaj me.
बहुत ही रोचक संस्मरण है। कमाल की प्रस्तुति और ढेर सारी टिप्पणियां मुफ्त में पढ़ने को। हर तरह से मज़ा आगया।
बहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण...
चलिए आपने तो किसी five star hotel में पहली बार जाने का अनुभव हासिल कर लिया, मुझे तो अभी करना है. टीबी आपका ये अनुभव काम आएगा
देखा नही तो क्या हुआ धरोहर थी उसे महसूस किया है जो अब नही है यहाँ उसके जाने का अफ़सोस है हमें यो तो उसी सूरते हाल मे आ जाएगा पर इंतजार करना ये तबाही का मंजर है
देखा नही तो क्या हुआ धरोहर थी उसे महसूस किया है जो अब नही है यहाँ उसके जाने का अफ़सोस है हमें यो तो उसी सूरते हाल मे आ जाएगा पर इंतजार करना ये तबाही का मंजर है
बहुत ही शानदार है सर... ताज के हर पहलू से रूबरु करा दिया आपने। मैने आजतक फ़ाइव स्टार होटल नहीं देखा है। लेकिन आपके लेख ने एक फ़ाइव स्टार होटल की सैर भी करवा दी। बेहद शानदार है।
बहुत ही शानदार है सर... ताज के हर पहलू से रूबरु करा दिया आपने। मैने कभी फ़ाइव स्टार होटल नहीं देखा है, लेकिन आपके लेख ने फ़ाइव स्टार के दर्शन भी करा दिये। बेहद शानदार है...
आप ने युवा चित्त मे कुलबुलाते नकल की लालसा का अच्छा चित्र खीचा है !!
वैसे इतने चोचले वाले फ़ाइव स्टार मे घुमने वालो को जरा गौर से देखे तो आप अपने को उससे ज्यादा ही पायेंगे !!क्या है ना गिफ़्ट ज्यादा खराब हो तो पैकिंग जबरदस्त करनी पडती है !
वाहवा.... बंधु जी, क्या बात है.... बेहतरीन रचना... आनंद आ गया. बधाई...
par aap hain kahan..?
koi phone-von ?
105................hum bhi aapkai hi dost hai....kasai laga yah tu bataeyaga
bahut umda sameer ji. aapki lekhni ki sabse behtarin baat yehi hai, baat havi rehti hai, batane wala nahi. aur jab aadmi baat ka maza le utha hai to phir batane wale ki tarif karta hai. phir kahoonga effortless writing hai. anand aata hai.
आपका पेपर पर पढ़ा था, अब यहॉं पढ़ना जरूरी तो नही है :)
हमें तो याद हैं अब भी, इसके दिन जो पुराने वाले
लो बुला लाते हैं फिर से, पल-छिन वो सुहाने वाले
वाह समीर भाई आपने तो वो याद जगा दी के आनन्द आ गया. सच ५ सितारा ताज कितनी सुन्दर थी और क्या गत कर गए नालायक लोग.
hote hote mazedaar ho gaya ye anubhav...hume intezaar hai kab mauka milega taaj mein jaane kaa..
aur kaun kehta hai taj ke din beet gaye...
अब न वो ताज रहा, औ न उसके चाहने वाले !
सहम के आते हैं, इस मुल्क में, वो जो हैं, आने वाले !!
हमें तो याद हैं अब भी, इसके दिन जो पुराने वाले !
लो बुला लाते हैं फिर से, पल-छिन वो सुहाने वाले !!
काश ये जख्म जल्दी भरे, मैं अपने रब से यही दुआ करता हूँ |
maja aaya. aapke anubhav se shikh v mili
thank you very nice
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