अब जो किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बेटवा ना कीजो ऽऽऽऽ
अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो!!
अब के कर दिये हो, चलो कोई बात नहीं. अगली बार ऐसा मत करना माई बाप. भारी नौटंकी है बेटा होना भी. यह बात तो वो ही जान सकता है जो बेटा होता है. देखो तो क्या मजे हैं बेटियों के. १८ साल की हो गई मगर अम्मा बैठा कर खोपड़ी में तेल घिस रहीं हैं, बाल काढ़ रही हैं, चुटिया बनाई जा रही है और हमारे बाल रंगरुट की तरह इत्ते छोटे कटवा दिये गये कि न कँघी फसे और न अगले चार महिने कटवाना पड़े. घर में कुछ टूटे फूटे, कोई बदमाशी हो बस हमारे मथ्थे कि इसी ने की होगी. फिर क्या, पटक पटक कर पीटे जायें. पूछ भी नहीं सकते कि हम ही काहे पिटें हर बार? सिर्फ यही दोष है न कि बेटवा हैं, बिटिया नहीं.
बेटा होने का खमिजियाना बहुत भुगता-कोई इज्जत से बात ही नहीं करता. जा, जरा बाजार से धनिया ले आ. फलाने को बता आ. स्टेशन चला जा, चाचा आ रहे हैं, ले आ. ये सामान भारी है, तू उठा ले. हद है यार!!
जब देखो तब, सारा फेवर लड़की को. अरे बेटा, कुछ दिन तो आराम कर ले बेचारी, फिर तो पराये घर चले जाना है. उनके लिए खुद से क्रीम पावडर सब ला ला कर रखें और वो दिन भर सजें. सिर्फ इसलिये कि कब लड़के वालों को पसंद आ जाये और उसके हाथ पीले किये जायें. हम जरा इत्र भी लगा लें तो दे ठसाई. पढ़ने लिखने में तो दिल लगता नहीं. बस, इत्र फुलेल लगा कर शहर भर लड़कियों के पीछे आवरागर्दी करते घूमते हो. आगे से ऐसे नजर आये तो हाथ पैर तोड़ डालूंगा-जाओ पढ़ाई करो.
बिटिया को बीए करा के पढ़ाई से फुरसत और बड़े खुश कि गुड सेकेंड डिविजन पास हो गई. हम बी एस सी मे ७०% लाकर पिट रहे हैं कि नाक कटवा दी. अब बाबू के सिवा तो क्या नौकरी मिलेगी. अभी भी मौका है थोड़ा पढ़ कर काम्पटिशन में आ जाओ, जिन्दगी भर हमारी सीख याद रखोगे. पक गया मैं तो बेटा होकर.
जब कहीं पार्टी वगैरह में जाओ कोई देखने वाला नहीं. कौन देखेगा, कोई लड़की तो हैं नहीं.
-लड़का लड़की को देखे तो आवारा कहलाये और कोई लड़की देखे तो उनकी नजरे इनायत.
-लड़की चलते चलते टकरा जाये तो मुस्कराते हुए सॉरी और हम टकरा जाये तो ’सूरदास है क्या बे!! देख कर नहीं चल सकता.’
-उनके बिखरे बाल, सावन की घटा और हमारे बिखरे बाल, भिखारी लगता है कोई.
-उनके लिए हर कोई बस में जगह खाली करने को तैयार और हमें अच्छे खासे बैठे को उठा कर दस उलाहने कि जवान होकर बैठे हो और बुजुर्गों के लिए मन में कोई इज्जत है कि नहीं-कैसे संस्कार हैं तुम्हारे.
हद है भई इस दोहरी मानसिकता की. हमें तो बिटिया ही कीजो, नहीं तो ठीक नहीं होगा, बता दे रहे हैं एक जन्म पहले ही. कोई बहाना नहीं चलेगा कि देर से बताया.
ऑफिस में अगर लड़की हो तो बॉस तमीज से बात करे, कॉफी पर ले जाये और फटाफट प्रमोशन. सब बस मुस्कराते रहने का पुरुस्कार और हम डांट खा रहे हैं कि क्या ढ़ीट की तरह मुस्कराते रहते हो, शरम नहीं आती. एक तो काम समय पर नहीं करते और जब देखो तब चाय के लिए गायब. क्या करें महाराज, रोने लगें? बताओ?
अगर पति सही आईटम मिल जाये तो ऑफिस की भी जरुरत नहीं और आराम ही आराम. जब जो जी चाहे करो बाकी तो नौकर चाकर संभाल ही रहे हैं. आखिर पतिदेव आईटम जो हैं. जब मन हो सो कर उठो, चाय पिओ, नाश्ता करो और फिर ठर्रा कर बाजार घूमों, टीवी देखो, ब्लॉगिंग करो..फिर सोओ. रात के लिए क्या बनना है नौकर को बता दो, फुरसत!! क्या कमाल है, वाह. काश, हम लड़के भी यह कर पायें.
क्या क्या गिनवाऊँ, पूरी उपन्यास भर जायेगी मगर दर्द जरा भी कम न होगा. रो भी नहीं सकता, वो भी लड़कियों को ही सुहाता है. उससे भी उनके ही काम बनते हैं. हम रो दें तो सब हँसे कि कैसा लड़का है? लड़का हो कर रोता है. बंद कर नौटंकी. भर पाये महाराज!!
बस प्रभु, मेरी प्रार्थना सुन लो-अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो. हाँ मगर ध्यान रखना महाराज, रंग रुप देने में कोताहि न बरतना-इस बार तो लड़के थे, चला ले गये. लड़की होंगे तो तुम्हारी यह नौटंकीबाजी न चल पायेगी. जरा ध्यान रखना, वर्कमैनशिप का. उपर वाली फोटू को सुपरवाईजरी ड्राईंग मानना, विश्वकर्मा जी. १९/२० चलेगा-खर्चा पानी अलग से देख लेंगे.
ब्लॉगिंग स्पेशल: अगर लड़की होऊँ तो कुछ भी लिखूँ, डर नहीं रहेगा. अभी तो नारी शब्द लिखने में हाथ काँप जाते हैं. की-बोर्ड थरथरा जाता है. हार्ड डिस्क हैंग हो जाती है कि कहीं ऐसा वैसा न लिख जाये कि सब महिला ब्लॉगर तलवार खींच कर चली आयें. हालात ऐसे हो गये हैं कि नारियल तक लिखने में घबराहट होती है कि कहीं नारियल का ’यल’ पढ़ने से रह गया, तो लेने के देने पड़ जायेंगे. इस चक्कर में कई खराब नारियल खा गये मगर शिकायत नहीं लिखी अपने ब्लॉग पर.
बस प्रभु, अब सुन लो इत्ती अरज हमारी...
अगले जनम में बना देईयो हमका नारी..
चित्र साभार: गुगल ईमेज
गुरुवार, अगस्त 07, 2008
अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो...
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131 टिप्पणियां:
वाह, मजेदार पोस्ट है.
और हमारी दोस्ती तो जनम जनम की है, अगले जनम में भी हम गहरे दोस्त ही होंगे!
उपर वाली सुपरवाईजरी ड्राईंग की फोटू बात पर भगवान से अड़े रहना.
हा हा!! मैथली जी....
अगले जनम की भाषा में-आप बड़े वो हैं!! :)
बिल्कुल अड़े रहूँगा ड्राईंग के लिये. :)
’यल’ ...’यल’ ...’यल’ ...
" यल्लगार हो " मतलब नारियल वाला ...हा हा हा हा इत्ता हँसे कि बस्स !! --
आपका तो जवाब ही नहीँ समीर भाई !!!!
...अगले जनम हमहु इही कहत रहे हैँ
" हमे भी बिटिया ही कीजो " ..
तब हम आपको और भी कई सारे राज़ हैँ उन का पर्दाफाश कर बतावेँगेँ...
और "बिटियोँ की एक्ज़्क्युज़ीव क्लब की सदस्यता " भी ,
गारण्टी दिलवा देँगेँ -
बहुत स्नेह के साथ,
इँतज़ार है..
अगली पोस्ट का,
अगले जनम का भी ..
(साधना भाभी जी से
परमीशन ले लीजो )
~~ लावण्या
इस तरह की फोटू मत ठेला कीजिये या कहीं ऐसा तो नही अगले जनम में ऐसा ही कोई फ्रेम लेने का पिलान है ;) दूसरे तरफ की घास हमेशा हरी होती है, नारी टाईप ब्लोग पढ़कर भी आप ये लिख रहे हैं, बड़े हिम्मती टाईप के नर हैं आप तो। चलो इसे पढ़कर पता चला कुछ तो फायदे हैं वरना तो हमें लगने लगा था कि मुसीबत ही मुसीबत है।
बेहद दर्दनाक पोस्ट है. अपना तो दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया पढ़कर. आपने तो इस एक पोस्ट में सम्पूर्ण अबला नर जाति के दिल के दर्द को निचोड़ के रख दिया.
वाह, क्या बात है। पूरा दर्द उड़ेल दिया। एक ऐतिहासिक पोस्ट।
- आनंद
भाई साहब, मान गये उस्ताद आपको। मानते तो शुरू से ही थे, लेकिन यह पोस्ट पढ़ने के बाद तो बस आपकी गुलामी लिखा लेने का मन हो रहा है।
दरअसल, नारी ब्लॉगों पर गुज़रते हुए अक्सर मुझे ये बातें कह देने का मन होता था, लेकिन डर जाता था कि कहीं यह ‘पोलिटिकली इनकरेक्ट’ न हो जाय, और नारीवादी दस्ता पिल न पड़े।
आपने हास्य शैली में जो खरी-खरी बातें रखी हैं, उससे मेरा मन हल्का हो गया। क्या शानदार कौशल है!
मन करता है आपका हाथ चूम लूँ और माथा भी। ...लेकिन अभी जल्दी नहीं है, आपके अगले जन्म का इन्तजार कर लेता हूँ।
सादर नमस्कार।
अगर लड़की होऊँ तो कुछ भी लिखूँ, डर नहीं रहेगा. अभी तो नारी शब्द लिखने में हाथ काँप जाते हैं. की-बोर्ड थरथरा जाता है. हार्ड डिस्क हैंग हो जाती है कि कहीं ऐसा वैसा न लिख जाये कि सब महिला ब्लॉगर तलवार खींच कर चली आयें.
ःःःःःःःःःःःःःःःःः
मजेदार, रोचकता से परिपूर्ण के साथ ही साथ सटीक एवं यथार्थ।
आदरणीय समीर जी,
एक स्वास में पूरी पोस्ट पढी। आप जान लें कि आज 8.08.08 है और शनि भारी है..छूटे हुए "यल" का यलगार न हो जाये :)
आपकी व्यंग्य लेखन की अपनी ही शैली है जिसका कायल ह्ये बिना नहीं रहा जा सकता..
***राजीव रंजन प्रसाद
आपने मेरी भी ग़लतफ़हमी दूर कर दी. धन्यवाद.
एकदम मौलिक किस्म का व्यंग्य. :)
:) ठीक ख्याल है आपका समीरा [आपका अगले जन्म में यही नाम होगा न ] क्यूंकि हमें तो अगले जन्म बिटिया ही कीजो :)
इतना दर्द बेटे के रूप में पीडा सहने का ..च च :) हे ईश्वर इनकी फरियाद सुन लेना अब :)
अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो.भले ही मौसी बनैयो प्रभुजी।
Sameerbhai
Hum to Ishwar se prarthana karte hain ki aapko kahde "Tathastu"
Harshad Jangla
Atlanta, USA
खूब मौज हो रही है दद्दा!
वैसे जो सैंपल या सुपरवाईजरी ड्राईंग की फोटू वाली बात आपने करी है वो तो गजब है.
आनंद आया!!
khoob maar aur daant khai hai magar ye khayal aaj tak nahi aaya ki sari musibat ki jad beta hona hai.aapne bata diya dhanyad aapko,aur han wo khrcha-pani wala jugad baith jaye to hume bhi bata dena thoda bahut hum bhi kar denge aur aap waali photu se 19-20 nahi 11-12 bhi chala lenge.mazedaar badhai ek baar fir badhiya post ki
आपके दुःख दर्द पढ़कर आंखों से आंशु बहने लगे
सुबक सुबक :(
भगवन इनकी जरुर सुन लेना
sameer bhai iswar sae prarthana haen ki agley janam mae mae aap ko sameera { aarey sameera reddy waali sameera nahin } didi yaa sameera bhabhi ya sameera behan hee bulaaun
दर्द बयान करने की कला कोई आपसे सीखें।
हम आपको अगले जनम का पहला प्रपोजल भेज रहे है ( फ़ोटॊ से १५/२५ भी चलेगा)काऊंट जरूर करना . आखिर लायलटी बोनस भी कोई चीज है जी :) सारे नाज नखरे उठायेगे दिन भर हमेशा सारे काम छोड कर आगे पीछे घूमते रहेगे २०१% गारंटी इस वात की , आखिर ख्याल भी तो रखना पडेगा ना इतनी हाई फ़ाई वस्तू को कोई और लाईन ना मारे :) कही हम स्लमान खान और विवेक की तरह यूस एन थ्रो मे ना प्रयुक्त कर लिये जाये :)
बड़ा ही मजेदार लेकिन असल में कड़वा सत्य लेख लिखा है.... अच्छा लगा आप ने बता दिया कि बेटा होने के क्या नुक्सान है, वरना हम तो अगले जनम में बेटा होने की दुआ कर रहे थे. आप का लेख पड़कर सच में लगा कि लड़की होना फायदेमंद है. हम खुशकिस्मत है कि बिटिया हुए और खूब प्यार पाया. पहले माँ बाबा का और अब पति भी बरसा रहे है. बस कुछ शारीरिक समस्याओं को छोड़ दिया जाए तो हम भी मानते हैं कि बेटा होना फायदे का सौदा है.
आप बड़े वो है ! :)
भरी बिरादरी में हमको रूसवा कर दिया ऊपर से ठसका ये कि पहली बार बताया लड़का होने का दर्द !
समीर जी ,
ना ना करते प्यार कर बैठे हैं आप । अब सावधान रहियेगा , आपकी पोस्ट का डीकंस्ट्रक्शन जल्द आ रहा है ।
पता नही क्यूँ , स्त्री का कहा या उसके बारे मे कुछ भी कहा ,,,स्वयमेव स्त्री विमर्श की ओर कैसे मुड़ जाता है ।शायद हमारी लर्निंग इतनी तगड़ी है कि यदा कदा समान्य बातों मे भी पर्याप्त सावधान रहने पर अपनी झलक दिखा देती है ।
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद !दो तीन बातें साफ हो गयीं । हमें भी कुछ सीखना चाहिये । परम्परागत "सीख" की भाषा मे न कह्ते हुए भी आपने कुछ सीखने को कह ही दिया सर जी !
सादर
सुजाता
इसे कहते हैं मुस्कराते हुए "बर्र" के छत्ते में हाथ डालना, बेहतरीन पोस्ट हमेशा की तरह… लेकिन "अप्रत्यक्ष" बमबारी के लिये तैयार रहियेगा, मेहरबानी करके "काले चश्मे" वाली तस्वीर भी हटा लीजिये, वरना… :) :) :) आप तो समझदार हैं ही गुरुजी…
बस प्रभु, अब सुन लो इत्ती अरज हमारी...
अगले जनम में बना देईयो हमका नारी..
" wah wah mjaa aa gya, bhgvan kre aapke mnokamna puree ho sir, "aameen" ab isko bddua na smejeyega, kyunke ye to aapke hee desire hai na so puree to honee hee chaheye na.................. very intersting post"
Regards
सुबह सुबह मजा़ आ गया.. बहुत खुब "बेटीयों" के भी क्या ठाठ है..
आपने नर के दर्द को बड़ी 'सावधानी' से उकेरा है. आपको बधाई.
हे नर तेरी यही कहानी
मन में हूक और आंखों में पानी
वैसे हम तो उपन्यास का इंतजार करेंगे....:-)
मैं तो बरसों से यही कहता आया था! बल्कि मैंने formally भगवान से request की है कि मुझे अगले जन्म में लड़की ही बनाना, बाकी मैं सब खुद देख लूंगा(लूंगी)।
बड़ी मस्त पोस्ट रही. बहुत दिनो बाद हँसाऊ पोस्ट आई है, आनन्द आया.
Nari ke bahane achchha vyangya kiya hai. Badhayi.
वाह , कमाल की रचना है,पहली बार बेटे का दर्द,
समझ में आया पर यकीनन अपनी अम्मा के संग इसे share करते
हुए हंसते हंसते लोटपोट हो गए.बच्चे आयें तो उन्हें भी सुनाउंगी -वैसे भी आप
मेरे favorite writers में हैं.....
बेजोड़,..........hahahahaha
अबला नर जीवन पर बढिया प्रकाश डाला है ,हमारी भी संवेदानायें आपके साथ हैं :)
वैसे इसका विलोम भी मज़ेदार होगा। अच्छा हुआ ऐश्वर्या की फोटो का जवाब आखिरी लाइन में मिल गया।
"आखिर पतिदेव आईटम जो हैं. जब मन हो सो कर उठो, चाय पिओ, नाश्ता करो और फिर ठर्रा कर बाजार घूमों, टीवी देखो, ब्लॉगिंग करो..फिर सोओ"
हम्म अभी से ख्वाब देखने शुरू कर दिए??
"अगर लड़की होऊँ तो कुछ भी लिखूँ, डर नहीं रहेगा. अभी तो नारी शब्द लिखने में हाथ काँप जाते हैं. की-बोर्ड थरथरा जाता है. हार्ड डिस्क हैंग हो जाती है कि कहीं ऐसा वैसा न लिख जाये कि सब महिला ब्लॉगर तलवार खींच कर चली आयें"
आख़िर नारी मुक्ति का ज़माना है!!! क्यों ना हावी हो हम?? :))
आपके साथ पूरी हमदर्दी है हमारी...
SAMEER JI AAPTO BAHUT DUKHI AATMAA SABIT HUE...
वाह वाह.
गजब की दर्द भरी दास्ताँ है.
अगले जन्म काहे इंतजार कर रहे है सर?
विज्ञानं बहुत तरक्की कर चुका है.
मैं तो इस विषय पर गंभीरता से सोचने भी लगा हूँ कि इसी जनम में.......
वाह समीर भाई क्या खूब लिखा है आपने काबिलेतारीफ एक बुकिंग मेरी भी करा देना अगले जनम के लिए लेकिन रंग रूप में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए पहले ही बोल देना आप हां हा हा हा
बहुत मजेदार
जब आप की अगले जनम की ऐस्वरया राय की अरजी मंजूर हो जाये तो हमे खबर करियेगा , हम अभिसेक बन कर आ रहे हैं - अगले जनम में ।
लाजवाब.जबरदस्त.
माफ़ कीजियेगा,आपकी पीड़ा ने हमें हंसा हंसा कर लोट पोट कर दिया.
पर सच है,मैंने तो अपने पति को कह दिया है कि आप कमाओ,मैं ऐश करुँगी.सही है,मैं तो जनम जनम तक बिटिया ही होना चाहूंगी.......कमाल के फायदे हैं इसके.......कहें तो कुछ फायदे और गिनवाऊं आपकी इस बलवती इच्छा को मजबूत करने के लिए ?चलिए आपकी शिफारिश उपरवाले से कर दूंगी,कि मनोकामना पूर्ण करें......पर आपको यह सपथ लेनी होगी कि अगले जनम में.......मोहे बिटिया न कीजो,हरगिज न कहेंगे............
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य.....साधुवाद.
Bahut hi mazedar post... Hamare dil ke pure dard ko samne la diya sameer ji aapne to.
हा हा..शुक्रवार की छुट्टी खूब गुज़री...लावण्यादी की बात पर गौर कीजिएगा..:) वैसे हमारे दोनो बेटों ने खूब मज़े से आपकी पोस्ट को सुना... शुक्रिया..
dar var lagna band ho gaya hai ka ji....?
वाह-२, हंसते हंसते लोट पोट हो गया, क्या लिखे हैं समीर जी, मज़ा आ गया! :D :D
जो बात आप ने हंसी हंसी में कही दरअसल सौलह आने सच है। आप ने बहुत ही खूबी से एक बहुत ही अहम मुद्दा सामने रक्खा है।
excellent post sir ji what an idea
हा हा हा.मज़ा आ गया.लडकों का दर्द सही पहचाना आपने.अगले जन्म में हम तो फ़िर से बिटिया ही बनना चाहेंगे,तब आप और हम सब सहेलियां मिल के लडकों की ऐसी तैसी करेंगे.क्यों,कैसा रहेगा?
अच्छा तुलनात्मक अध्ययन(दर्दे दिल)प्रस्तुत किया है.
अब क्या कहें समीरजी, नर बुद्धि जो है आपकी! अरे अर्जी ही गलत जगह भेजी है तो सुनवाई क्या खाक होगी? ऐसी अर्जियाँ भगवान को नहीं किसी देवी माँ को भेजते हैं। हमें पता है क्योंकि पिछले जन्म हमने भी भेजी थी। और परिणाम सामने है। प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? भगवान बेचारे के पास यदि यह सब करने की शक्ति(आह वही स्त्रीलिंग!)होती तो क्या स्वयं देवी न बन गए होते। तो मेरी मानिए, नए सिरे से अर्जी लिखिए, ऐसा न हो कि शक्तिविहीन भगवान यत्न करने लगें और आप न यहाँ के रहें न वहाँ के!
घुघूती बासूती
गुरुदेव आपके चरणों में महा सादर प्रणाम !
आज इस हरयाणवी नै पहलम बार इस तरिया
की इच्छा हुई सै ! आपका एक एक वाक्य
फ़िल्म पडोसन के मुकाबले का है ! आप म्हारे
गुरु ना होते तो आशीर्वाद देता , पर इब मेरी
तरफ़ से अभिवादन स्वीकार कीजिये ! ०८ /०८ /२००८
का यादगार तोहफा समझ कै एक बार फ़िर पढण
लाग रे सें !
समीर साहब
आपका अंदाज़ सचमुच निराला है.
चीज़ों को बिल्कुल ज़ुदा ढंग से
देखना साधारण बात नहीं है.
ये पोस्ट भी इसकी मिसाल है.
========================
डा.चन्द्रकुमार जैन
isi terah hansate rahiye :)
समीर जी , कभी सोचा नही था कि आप नर होने पर इत्ते दुखी हो रहे होंगे। इसका मतलब हम भाग्यशाली हैं जो नारी हुए। चलिए उदास मत रहिए मै भगवान से जरुर दुआ करुंगी कि वो आपकी मनोकामना पूरी करें । आमीन........
han bilkul sahi hai. bhut badhiya.
बनना जरूर नारी
पर बदन न पाना
अगले जनम में
इतना ज्यादा भारी।
वर्तमान का सिर्फ
10 प्रतिशत ही
काफी रहेगा मित्र
तब ही अच्छा
आयेगा आपका
छरहरा चित्र।
पंगेबाज को कहेंगे
कि वे एक आपका
भविष्यात्मक नारी (यल)
चित्र बनाकर एक
पंगा ले ही लें।
- अविनाश वाचस्पति
आपके दर्द से तो हम भी रो पड़े...हमारा कोई भाई नहीं है तो हमें नर और नारी दोनों दर्दों से रूबरू होना पड़ा!स्टेशन से चाचा को लिवा कर लाना फिर आकर उनके लिए रोटी बनाना....क्या क्या बताएं. अब हम भगवन से क्या प्रार्थना करें...गाय ढोर बना दे अगली बार प्रभु...
ओ हो! खुदा ने एक जनम में बेटा बनाया तो बिफऱ गए। एक भी न भाया।
उफ्, इतने सारे कमेन्ट्स पढ़ने के बाद मेरे पास कहने को कुछ नहीं बचा। पर एक बात कहूंगा। अभी ब्लॉग लेखन में आए हुए मुझे 10-15 दिन से ज्यादा नहीं हुआ है, पर मेरे लिखे हुए पर आपके कमेन्ट से पहले आपका चेहरा नजर आ जाता है, माफ कीजिएगा, कुछ-कुछ डॉन टाइप,(जो सबके ब्लॉग पर नजर रख रखता है,जैसे ब्लॉगवाणी पर कोई उड़न तश्तरी घूम रही हो! जैसे ये कहते हुए- ये बच्चे आजकल क्या लिख रहें है।)
आज आपको पढ़ते हुए मेरे मन से आपके डॉन वाली छवि टूट गई। अब मेरा डर दूर हो गया है ये जानकर कि इस आदमी के भीतर एक औरत जन्म लेने के लिए बेचैन है।
वाह समीर जी, पूरा दुख उड़ेल के रख दिया...क्या लिखा है आपने पर...पर एक बात है गूगल साभार वाले चित्र पर हमारी भी नजर है..19-20 चलेगा...तब तो अभी से आवेदन है हमारा...प्लीज ध्यान रखिएगा।
लड़की चलते चलते टकरा जाये तो मुस्कराते हुए सॉरी और हम टकरा जाये तो ’सूरदास है क्या बे!! देख कर नहीं चल सकता.’
हा हा हा हा हा हा …
पढ़कर कुछ ज्यादा ही आनन्द आ गया।
कई सज्जनों के शब्द देखे सब आपको टीप रहे हैं वो भी अभी से…
अगर आप बुरा न माने तो हम भी लाइन में खड़े हो जाये :)
याद रखिये हमारी बात अगर आप न माने तो भाभी जी के लिये विश्वकर्मा जी के यहाँ दरख्वास्त भेज दूंगा। कि अबकी बार भाभी जी को बेटवा बनाईये और इन्हे बिटिया और वही से जोड़ी फिक्स करके धरती पर उतारे।
:) :) :)
मजा आ गया।
bahutkhub
हा हा हा...पहली बार किसी ने इस अबला नर जाति का दर्द महसूस किया है. इसे कहते हैं हँसी हँसी में अपना दर्द बयां करना. . आभार
हा हा हा...पहली बार किसी ने इस अबला नर जाति का दर्द महसूस किया है. इसे कहते हैं हँसी हँसी में अपना दर्द बयां करना. . आभार
कितनी पीडा भोग रहे थे
मीत गहन अंधियारों में
ब्लॉग पे लाके दर्द आपने
बाँट दिया गलियारों में
गज़ब पोस्ट सच व्यंग जबलईपुर के समकालीन लड़कों की स्थिति
विश्व व्यापी कर के आनंद की अनुभूति करा दी भैया
"हद है भई इस दोहरी मानसिकता की. हमें तो बिटिया ही कीजो, नहीं तो ठीक नहीं होगा, बता दे रहे हैं एक जन्म पहले ही. कोई बहाना नहीं चलेगा कि देर से बताया."
क्या बात है मुझे मेरे विभागीय कार्यों में आपकी इसी पोस्ट का इंतज़ार था . घटते लिंगानुपात पर आपका ये बयान कोड करूंगा . सुबह पड़ लेता तो महाकौशल आर्ट कालेज में उद्धहरण भी दे देता जहाँ आज एक सेमीनार में बाल विकास परियोजना अधिकारी महिला बाल विकास ,की हैसियत से मुझे
वक्तव्य देना था :" महिला सशक्तिकरण पे इससे उम्दा बात और क्या होती" खैर फ़िर कभी ........
अंत में पुन: वाह...! वाह.....!! वाह...! वाह.....!! वाह...! वाह.....!! वाह...! वाह.....!!
समीर जी,आप का लेख पड कर आप के दुख के साथ साथ मुझे भी रोना आ गया,चलिये भगवान से कभी कुछ मागा नही अब माग लेते हे आप की ईच्छा पुरी करे, होसला रखे, भगवान के घर देर जरुर हे, अन्धेर नही, ओर यह फ़ोटू बडा ढुड के लगाया हे,धन्यवाद इस दुखी पोस्ट के लिये
वाह बहुत मजा आया 1 सांस मे पढ्ता गया ईतना रोचक लगा की क्या बताऊं।
अब तो आपले जनम मे लेखिका बनेंगे।
अब लडको के ईते सारे दूख गीनवा दीये की रोते रोते बच ही गया।
अहा ...अहा...
फिर लाए हैं आप कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाली पोस्ट ।
इधर साइड बार वाली तस्वीरों पर आज ही नज़र गई है। भतीजे स्मार्ट हैं। मैं इनमें से किसे दूल्हे राजा के रूप में देखूंगा ?
वाह वाह समीर जी
हर बार की तरह बेहतरीन
प्रभु
ऐसी पोस्ट सिर्फ़ आप और आप ही लिख सकते हैं...क्यूँ की ऐसा दिमाग और किसी के पास कहाँ? भाई विलक्षण बुद्धि है आप के पास...समीर जी तुस्सी ग्रेट हो...
नीरज
अरे वाह ,समीर भइया ,आपने इतना हँसाया की पढ़ते पढ़ते पेट में बल पड़ गए .सच ,हँसाना कोई आप से सीखे .आप कैसे ऐसा लिख लेते हैं ,मुझे तो आपके हास्य थेरपी की ख़ास जरुरत है
आपको पोस्ट पढ़कर हँसी तो आई.. मगर एक बात है जो मुझे परेशन कर रही है..
अगर ये पोस्ट आपके अलावा कोई और लिखता तो??????
बहुत-बहुत-बहुत अच्छी पोस्ट....मजा आ गया पढ़कर
नारियल लिख कर देखा। मेरे भी हाथ थरथराने लगे :)
BAHOOT-BAHOOT HI SUNDER DHANG SE LIKHA HAI, ANAND AA GAYA ,AGAR YE REQUEST AAPKI MAAN LI GAYEE TO PHIR SE RATIO ME BAHOOT ANTAR AA JAYEGA.
शायद अब पुरूष-कुटाई-केंद्र की महिलाओं को समझ आ जाय कि आप का दर्द कितना दर्दनाक है.....खैर , अगले जन्म के लिए अभी से Happy journey.
बहूत उम्दा लेखन।
समीरजी क्या बात है, मज़ा आ गया, आपकी हास्य देखने की प्रवृत्ति का कोई जवाब नही
बेहतरीन
वाह, बहुत ही शानदार तरीके से आपने हास्य का पुट देकर
हम सभी पुरुष जाति के पीड़ित लोगों की कहानी लिख दी है,
अच्छा लगा की कोई तो है जो हम लोगों का हिमायती है..!!
आखिरी में लेख में ये भी लिख देना चाहिए था ताकि हम लोगों के
खिलाफ कोई महिला समिति धरना ना दे सके..
इस लेख में प्रकाशित सभी टिपण्णी केवल पुरुषों के द्वारा ही पढ़ी जाये,
पुरुष बचाओ समिति द्वारा पुरुष जनहित में जारी..!!
हा हा हा.. मजा आ गया पढ़कर..!!
भाई बहुत खूब. मजा आ गया.
बस प्रभु, अब सुन लो इत्ती अरज हमारी...
अगले जनम में बना देईयो हमका नारी..
पर चोखेरवालिओं ने देख लिया तो?
अभी १०० टिप्पणियां आती हैं। अरदास अप्रूव हो गयी तो अगले जनम में लाइन लग जायेगी अनंत तक टिपेरों की! गूगल का सर्वर ही बैठ जायेगा! :-)
बहुत अच्छी पोस्ट.
बहुत अच्छी पोस्ट.
bahut khub,, maze ki bat kahi apne,
आपने तो दर्द उड़ेल कर रख दिया है। अब तो हमें भी अगले जन्म के बारे में सोचना पड़ेगा :-)
समीर जी, आपके लेख और उसपर लिखी टिप्पणी बहुत ही मजेदार हैं. वाकई आप बहुत लोकप्रिय व्यंग्यकार हैं. आपकी लिखी काटें की बातें मन को अन्दर से हिला देती हैं. आप हर विषय में बहुत गहराई तक पहुच जातें हैं. चाहे विषय कोई भी हो.,
नारी का दुख तो नारी ज्यादा अच्छे से बता सकती है. और पुरुष का दर्द तो पुरुष ही बता सकता हैं.
और दूर के ढोल सुहावने तो होते ही है.
kya bat hai. Waise dekh lijiye bitiya ho kar bhi. Door ke dhol suhawne.
अभी कंपनि खोलने का काम रोक दीया हूं क्यो की मै पहले सोच रहा था की जो मै डोमेन खरीद के दूसरो को बेचूंगा उसमे से एक खूद के लीये ले कर
डोमेन होस्टींग का साईट खोल दूंगा (ईस तरह ये फ्री का हुवा मेरे लीये)
पर अब होस्टींग तो खरीद लीया है पर जीससे खरीदा है वह बोल रहा है की एक प्रीमीयम डोमेन चाहीये जीसमे मै ये पैकेज डालूंगा।
अब प्रीमीयम डोमेन लेने मे तो महीनो लग जाऎंगे क्यो की जीतने मेरे पास पैसे थे उनहे मैने उडा दीये।
उन्न हूं हूं.
अगर मै बीटीया होता तो काम आसान हो जाता।
"बस प्रभु, मेरी प्रार्थना सुन लो-अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो. हाँ मगर ध्यान रखना महाराज, रंग रुप देने में कोताहि न बरतना-इस बार तो लड़के थे, चला ले गये. लड़की होंगे तो तुम्हारी यह नौटंकीबाजी न चल पायेगी. जरा ध्यान रखना, वर्कमैनशिप का. उपर वाली फोटू को सुपरवाईजरी ड्राईंग मानना, विश्वकर्मा जी. १९/२० चलेगा-खर्चा पानी अलग से देख लेंगे"
वाह! भाई मजा आ गया पढ़कर- शम्भु चौधरी
हम सोच रहे जब ९९ हो जायेगी तब १०० वि टिपण्णी कर देगे पर रुका न गया ...वैसे हमारा भी coputar हंग हो गया था ..नारी लिख कर
समीर भाई ,एक बार फिर से इस पोस्ट ने घ्यान खींच ही लिया ---क्योंकि इस जैसी पोस्ट सदियों में कभी कभार ही होती है -यह शिल्प ,कथ्य ,तथ्य और शैली में बेजोड़ है -यह निबंध है या फिर व्यंग-कटाक्ष है या महज हास्य है -केवल एक ही कटेगरी इसे नही दी जा सकती है -यह वस्तुतः आल इन वन होकर एक अविस्मर्णीय रचना बन गयी है -मनुष्य जीवन के एक ऐसे पहलू को आप ने अपनी लेखकीय सजता से उकेर दिया है जो जाना समझा तो बहुत है पर अभी अनकहा ही रहा है -
मैं जौनपुर जिले के आसपास की एक कहावत का उल्लेख भी यहाँ करना चाहूंगा -जहाँ पहले पैदा हुए लडके को मां की तरफ़ से भी यह कटोक्ति /ताना सुनने को मिलता रहता है कि "पैलौठी के लड़के को तो जनमते ही मर जाना चाहिए " मतलब सबसे बड़ा अगर लड़का है तो उसे जीवन भर इतना अकथनीय दुःख मिलता जाता है कि मां तक उस पीडा को बर्दाश्त न कर पाने की अभिव्यक्ति स्वरुप उक्त ताना या कटोक्ति का वाचन करती रहती है -प्रकारांतर से बड़े लडके का जनम लेते ही मरना जीने से हर हाल बढियां है -
इन सारे दुःख दर्दों के बाद यदि कोई यह कह ही पङता है कि अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो तो शायद उसकी पीडा सहज ही समझी जा सकती है -मैं समीर जी का यह दुःख बंटाना चाहता हूँ क्योंकि मैं भी पैलौठी का हूँ ...
अब आगे क्या कहूं -अपनी आत्म व्यथा को समीर जी ने ऐसे हँसी मजाक में कह डाला है कि लोग बाग़ भी मजा/मजाक उड़ा रहें हैं जैसे वे सब नंबर दो ..तीन ..चार के हों ? हो हो हा हा ही ही ......आह !!
टिप्पणी लिखते हुए हँसी कंट्रोल नहीं हो रही है | पढ़ते वक्त तो होश ही नहीं था | मैं इतना हंस रहा था, आजू बाजू लोग उकस उकस कर देख रहे थे |
"उपर वाली फोटू को सुपरवाईजरी ड्राईंग मानना"
कोई न कोई तो अभिषेक बच्चन की ड्राइंग लेकर भी ऐसा ही कुछ मांगेगा :) बस "सलमान खानों" से बचना !
मैं भगवान होता तो इतना करुण क्रंदन सुनकर तुरंत तथास्तु कह देता... आपने जितनी बात की उतने तक तो फिर भी गनीमत थी... पर अब तो सुना है कि बच्चे पैदा करने का ठेका भी अपन पर ही आ लगा है... समीर जी, मैं भी अगले जन्म में दो चोटी या पोनी रखने को तैयार हूं... शकल सूरत का भी कोई प्री- प्रपोजल नही है... आजकल ब्लैक बूटियां चलन में हैं।..।
खबरी
9811852336
maza aa gaya ...bahut khub sir..
लड़कों के आपके कष्ट को देख कर पुरूष-विमर्श का जो प्लान था उसको क्रियान्वित करना पड़ेगा, अब ऐसा लगता है.
हा हाह हा !!
क्या ठेला है..
हमारी दुआएं आपके साथ हैं. आमीन :)
हँसी हँसी में क्या क्या कर जाते हैं आप, समीर जी. बहुत मजा आया.
जितना महत्वपूर्ण है ब्लाग लिखना , उससे ज्यादा महत्व है कि वह पढ़ा जाये , और फिर उस पर लोग टिप्पणियां करें . इस दृष्टि से उडनतश्तरी को १०० में से १०१ अंक मिलते हैं . बधाई . नारी पर एक रचना मेरी भी है ...
.नारी आज
विवेक रंजन श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र.
पैंट तो पहन लिया है तुमने,
पर उतारी नहीं है पैरों की पायल .
ओढ़ ली है
नारी प्रगति के नाम पर
पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर तुमने
बाहर की जबाबदारी
पर अब भी लदी हुई है पूर्ववत
तुम पर घर की जिम्मेदारी .
अच्छा लगता है जब तुम्हें देखता हूँ ,
पुरुष साथी को साथ बैठाये
स्कूटी या कार चलाते हुये
पर सोचता हूँ कि
तुम थक जाती होगी ,
क्योंकि
रोटियाँ तो तुमसे ही माँगते हैं बच्चे.
थके हारे क्लाँत पुरुष को
तुम्हारे ही अंक में मिलता है सुकून .
तुम्हें पंख लगाकर ,
कतर लिये हैं
फैशन की दुनिया ने
तुम्हारे कपड़े .
तुम अब भी आश्रित हो
पिता ,भाई,
पति,पुत्र
पर
छद्म रावणों
दुःशासन और दुर्योधनों की
आँखों से घिरी हुई,
महसूस करती हो हर तरफ
मर्यादा का शील हरण .
पर तुम बेबस हो .
इस बेबसी का हल है
मेरे पास .
पहनो शिक्षा का गहना ,
मत घोंटने दो
कोख में ही गला
अपनी अजन्मी बेटी का ,
संसद में अक्षम नहीं होगा
स्त्री आरक्षण का बिल
जब सक्षम होगी स्त्री .
और जब सक्षम होगी स्त्री
तब तुम
बाहर की दुनियाँ सम्भालो या नहीं
घर , बाहर ससम्मान जी सकोगी .
पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर .
आपकी इस पोस्ट की तो टिप्पणियों की शतक ही होने वाली है क्या बात है लगता है कि आपकी बात से बहुत लोग सहमत हैं । वैसे तो आपकी बात में दम है मेरे आफिस में काम करने वाले लड़के अक्सर ही कोई न कोई प्रिंट निकलवाने के चक्कर में मेरे चेम्ब्र में आते हैं रिक्वेस्ट के साथ कि सर ये एक प्रिंट नेट से निकाल दें फ्रेंड का है । और पिछले सात सालों में ये फ्रेंड कभी भी लड़का नहीं हुआ हर बार किसी लड़की का ही होता है जो घर बैठे बैठे आदेश दे देती है सोनू प्लीज नेट से मेरा एडमीशन कार्ड प्रिंट निकाल देना और हां घर जाते समय इधर से देते हुए चले जाना । अब इधर से की भी सुन लें सोनू जी का घर है पूर्व में तो इनका इधर से है पश्चिम में फिर भी सोनू जी कलकत्ते जाने के लिये दिल्ली से पहले मुम्बई जाते हैं फिर वहां से कलकत्ते जाते हैं । और हां उस प्रिंट के पैसे का तो भूल ही जाइये । अगर भूल से किसी लड़के का फोन आ जाए कि सोनू मेरा एक जरूरी प्रिंट निकालना है तो सोनू जी का जवाब होता है यार सर के कमरे में प्रिंटर रहता है मैं नहीं निकाल सकता तू कैफे से निकाल ले । लड़की का फोन आएगा सनी मेरे कम्प्यूटर में वायरस आ गया है क्या करूं । सनी का जवाब होता है आपको क्या करना है करूंगा तो मैं अभी आ रहा हूं और एक मुफ्त की विजिट करने निकल पड़ते हैं सनी महाशय । और कहीं लड़के का फोन आ जाए तो जवाब होगा वायरस आ गया है तो यहां लेकर आना होगा 300 रुपये चार्ज लगेगा उसमें मैं कुछ नहीं कर सकता वो सर को देना होता है । बताओ लड़को की नजर में सर को खडूस सिद्ध करना का पूरा इंतेजाम है । खेर ये तो लम्बी कहानी है ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी प्रार्थना सुने पर कहीं गलती से उसने पूरी नहीं सुनी तो क्या होगा ।
भगवान सबको बेटी ही किज्यो.. मोहे मत किज्यो .. कोई तो कनैया भी चाहिएगा. रासलीला करने को. :)
पहली बार आपके ब्लॉग से परिचय हुआ और आपकी विद्वता से भी. क्या शानदार पोस्ट की है आपने. दिल का दर्द बहार निकल आया.
आपकी पोस्ट से ये भी ज्ञान मिला कि आज नर अबला हो चूका है और नारी बला.
ऐसी अच्छी-अच्छी बातें लिखते रहिये.
शुभकामनाये
god kya kya sochte hain kaha kaha tak sochte hain
chaliye agli baar aap hamare saath aakar baithe dekhe ki kaisa lagt ahai
aur fir hum bhi aaram se burayi karenge milkar dusri jaati ki hahahaha
majak majak main baat kahna koi aapse seekhe
ज्ञान जी से सहमत हूँ...मैं 100 वाँ टिपेरा हूँ क्या...
Lo sir ji 100 numbari tiptipi :) Bahut shandaar.मजेदार हा हा!!
ओ जी लो। यह रहा शगुन का १०१! अब आप ये डिसाइड कर लो, यह आपके बिटिया जनम के उपलक्ष्य में है, या आइटम पति मिलने के :)
पुरूष मुक्ति संगठन और पत्नि प्रताडित संघ ,जबलपुर की ओर से १०१ वी टिप्पण्णी ग्रहण करे।
समीर जी, मेरी टिप्पणी आपके पोस्ट की १०१वीं टिप्पणी होगी। लेकिन सरकार मेरे दिल की बात आपने कनाडा में बैठकर अपनी जुबान से कह दी है। आप ठहरे घाट-घाट के पानी पिए, अनुभवी, तजरबेकार और न जाने क्या-क्या। लेकिन आपका दर्द अभी फूटा है। हम भी उसी दर्द से दो-चार हो रहे। बस में सीट की मारामारी बहुत तंग करत ीहै, लड़का बनाने से थोबड़े की टोपोग्रफी का असर ज्यादा नहीं हो रहा लेकिन ऊश्वर से प्रार्थना है कि ८४ लाख योनियों में अभ आगे के बाकी जितनी भी योनियां हमारी किस्मत मे बची हों, मादा ही बनाना। वैसै भी सेक्स-रेशियों कमं हो रहा है अपन के यहां।
मैंने आपका ब्लॉग पहली बार पढ़ा,और आपका कोई लेख भी,मुझे बेटवा न कीजो,यह हसय्वयंग पढ़ कर तो मैं आपकी लेखनी की कायल हो गई ,बहुत बहुत बहुत बढ़िया लिखा हैं आपने,बहुत ही अच्छा,मेरे पास शब्द नही हैं,धन्य्वाद .
मैंने आपका ब्लॉग पहली बार पढ़ा,और आपका कोई लेख भी,मुझे बेटवा न कीजो,यह हसय्वयंग पढ़ कर तो मैं आपकी लेखनी की कायल हो गई ,बहुत बहुत बहुत बढ़िया लिखा हैं आपने,बहुत ही अच्छा,मेरे पास शब्द नही हैं,धन्य्वाद .
बाप रे बाप...१०५ टिप्पणी! क्या गुरूदेव अकेले ही...:)
samir ji kya mauj ki mehfil sazi hai aapne.sajate rahiye hum aate rahenge.ajmate rahenge apko
समीर जी,
बहुत बढिया हास्य लेख और सारे पहलू उधेड डाले आपने...बिटवा होने के घाटे पर.. मजा आ गया
Apki post se jyada to pallavi trivedi kee aakhri line lotpot kar gai...
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pallavi trivedi ने कहा…
आपके दर्द से तो हम भी रो पड़े...हमारा कोई भाई नहीं है तो हमें नर और नारी दोनों दर्दों से रूबरू होना पड़ा!स्टेशन से चाचा को लिवा कर लाना फिर आकर उनके लिए रोटी बनाना....क्या क्या बताएं. अब हम भगवन से क्या प्रार्थना करें...गाय ढोर बना दे अगली बार प्रभु...
8/08/2008 11:33:00 अपराह्न
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zindagee kee gambheerataa ko seedhe dhamg se kahane kaa aapakaa yah andaaz jahaan ek or muskuraane ko vivash karataa hai, vaheen doosaree or jeevan kee visangatiyon ko jaahir karataa hai. ham sabhee dohare maapadand rakhe huen hain. ve chaahe hamaare agraj hon yaa anuj.
khoobasooratee se baat kahane ke liye badhaaI
भाई,
एक सप्ताह के अन्तराल के पश्चात आपका यह आकलन पढ़ा. एक बेनाम अनुभूति को सहज अभिव्यक्ति देकर आपने कितने दिलों को छू कर उनमें भावनात्मक हलचल मचा दी है इसका आपको शायद अन्दाज़ा भी नहीं रहा होगा.
ज़िन्दगी की गलियों में बिखरे हुए विषयों को गंभीरता से उठाकर उन्हें हल्की गुदगुदी का कलेवर देकर परोसना, यह आपके ही बस की बात है.
सादर अभिवादन
kyaa khoob likhe ho janaab.
mubaarakabaad kabool faramaayen
एक एक शब्द में दर्द छलकाया है आपने... बस कभी जाम नहीं उठाया, नहीं तो आज हाथ से छोड़ता नहीं... आह! इस दोहरी मानसिकता को कोई तो समझे. लोग यहाँ भी इस यथार्थ को व्यंग समझे जा रहे हैं !
बहुत ही अच्छा लगा । हालाँकि मैं आज पहली बार आपके ब्लॉग पर यात्रा कर रहा हूँ । पर सच में इतना खुश हूँ इस रचना को पढनें के बाद की कम से कम उस समय में जब सरकार से लेकर भगवन और यहाँ तक कि क्षिक्षा प्रणाली तक इन लड़कियों के हव भाव पर फ़िदा है , ऐसी स्थिति में लडकों के समस्याओं को चित्रित कर लोगों को सोचनें के लिए विवस किया ।
धन्यवाद् !
हा हा
सच में मजेदार पोस्ट,साथ ही अनुपम सोच
मजा आ गया
माफ किजियेगा,पर आपका टॉपिक उड़ाने वाला हूँ।
समीरभाई
समय की मारामारी में आपकी ये पोस्ट पढ़ने से रह गई थी। अद्भुत कृति है सर। आज मेरे साथ मेरे न्यूजरूम के सारे साथियों ने भी पढ़ी। आपकी व्यथा के साथ हुलस-हुलस कर व्यथित होते रहे।
सबकी यही अरज कि अगले जमन मोहे बेटवा न कीजो।
और उस समय न्यूजरूम की अकेली लड़की बस मुस्कुरा रही थी।
Naariyal ka sandhi vigrhah :-
Nari + real !
Arthat jo real main na ho par real lage aur achhaa khasa aadmee bhee raghunath ho jaye. Hai ke nahi. Hum bhee isee chaakkar main raghunath ho gaye aur naariyal kisaan kee beti (violet) se sandhi kar baithe jiskee sandhee vigrah hona impossibil lag raha hai. Let me try. And if not wahat can I do ? Only cry.
बहुत सुंदर व्यंग है बधाई आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यबाद .....कृपया नियमित आगमन बनाए रखें
vah bahut hi majedar post laga. aapki vyangya me mujhe apni kahani dikhi.
समीर जी,
मुझे एक खुशगवार काम सौंपा गया था। जो मैंने पूरा कर लिया है। कृपया मेरे व्लॉग कच्चा चिट्ठा पर जायें वहॉं आपके लिये एक तोहफा है।
aap to bete hi bane rahen is me hi aapki v purushon ki bhalaaee hai, han,aapka pata subir ji ke blog se mila,main net par naya hun unko sandesh dene ki koshish nakam rahi ho ske to aage ka sandesh untak pahuncha den
सुबीर जी हिन्दयुग्म पर भी आपको देखा अच्छा काम कर रहें हैं आप पर जैसे केवल परमात्मा ही पूरण है हम सभी के ध्यान se कुछ छूट जाता है मई ख़ुद छंद का विद्यार्थी हूँ अगर बुरा न लगे तो इसे यूँ देखें
पहले मिसरे में बनकर के ,के खामखा याने भरती का लगता है भीड़ बनकर ही अगर चलता रहा तू भीड़ में
एक दिन हाँ देखना ख़ुद गुमशुदा हो जायेगा या जो आपने पास किया मी.सानी वो भी ठीक है मिसरा उला देख लें ,यश दीप
आपने सचमुच कमाल की बात लिखी है. मज़ा आ गया. बहुत ही सरल और सुबोध भाषा है आपकी. आज पहली बार आपके ब्लोग पे आया था. अच्छा लगा.
http://sameekshaamerikalamse.blogspot.com/2011/06/blog-post_16.html
main yahan se pahuncha aapke blog tak..kya shaandaar pakad hai aapki haasya-vyangya pe..aap itne bade hain mujhse..main kya kahun..
bas yahi hai ki mujhe pahle hi aana chahiye tha yahan..
:):)
:(:(
PRANAM.
बहुत खुल कर और खूब लिखा | पढ़कर अच्छा लगा | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
मुझे लडकी बना दे
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
वो सकून, वो , वो दर्द, कोई मुझे भी दिला दे,
कोई मुझे एक लड़की के कपडे ही पहना दे ||
मैं भी उसे अपने गर्भ में रखती , उसको महसूस करती
मेरी सांसो से साँस लेती , उस की बातो को महसूस करती
और नहीं तो कोई मुझे माँ का अस्तित्व ही समझा दे ||
हर दिन मैं उसका सपना अपनी उसका सपना देखती
वो दिन भी गिनती जब वो इस संसार को देखती
कब वो आये कब मुझे माँ बुलाये
कोई अपनी बेटी मुझे एक दिन के लिए उधार देदे
वो न हो सके तो मुझे माँ कहने का अधिकार देदे
मैं अब असे ही मानता हूँ आज उसका जनम हो गया
मेरा एक सपना सपने में ही आज झूठ सा सुच हो गया
उस को देख देख कर हँसती, फिर उसको सिने से लगा लेती
कितनी प्यारी गुडिया है , उसके माथे पर कला टिका लगा देती
हे असमान हे धरती आप ही मुझे महसूस कर व दो
कोई तो सुने मेरी पुकार मुझे एक लड़की बना दे ||
हे असमान हर नजरो से से कह दो मेरी पुकार
हर आदमी से कह दो मेरी ये सदा
हर मनुष्य से कह दो जो सोचते है मेरी बेटी को ?
कोई तो मुझे इन को बंद करने का अधिकार दिला दो
ये न हो सके तो मुझे इस धरती से उठा दो
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
मुझे लडकी बना दे
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
वो सकून, वो , वो दर्द, कोई मुझे भी दिला दे,
कोई मुझे एक लड़की के कपडे ही पहना दे ||
मैं भी उसे अपने गर्भ में रखती , उसको महसूस करती
मेरी सांसो से साँस लेती , उस की बातो को महसूस करती
और नहीं तो कोई मुझे माँ का अस्तित्व ही समझा दे ||
हर दिन मैं उसका सपना अपनी उसका सपना देखती
वो दिन भी गिनती जब वो इस संसार को देखती
कब वो आये कब मुझे माँ बुलाये
कोई अपनी बेटी मुझे एक दिन के लिए उधार देदे
वो न हो सके तो मुझे माँ कहने का अधिकार देदे
मैं अब असे ही मानता हूँ आज उसका जनम हो गया
मेरा एक सपना सपने में ही आज झूठ सा सुच हो गया
उस को देख देख कर हँसती, फिर उसको सिने से लगा लेती
कितनी प्यारी गुडिया है , उसके माथे पर कला टिका लगा देती
हे असमान हे धरती आप ही मुझे महसूस कर व दो
कोई तो सुने मेरी पुकार मुझे एक लड़की बना दे ||
हे असमान हर नजरो से से कह दो मेरी पुकार
हर आदमी से कह दो मेरी ये सदा
हर मनुष्य से कह दो जो सोचते है मेरी बेटी को ?
कोई तो मुझे इन को बंद करने का अधिकार दिला दो
ये न हो सके तो मुझे इस धरती से उठा दो
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
मुझे लडकी बना दे
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
वो सकून, वो , वो दर्द, कोई मुझे भी दिला दे,
कोई मुझे एक लड़की के कपडे ही पहना दे ||
मैं भी उसे अपने गर्भ में रखती , उसको महसूस करती
मेरी सांसो से साँस लेती , उस की बातो को महसूस करती
और नहीं तो कोई मुझे माँ का अस्तित्व ही समझा दे ||
हर दिन मैं उसका सपना अपनी उसका सपना देखती
वो दिन भी गिनती जब वो इस संसार को देखती
कब वो आये कब मुझे माँ बुलाये
कोई अपनी बेटी मुझे एक दिन के लिए उधार देदे
वो न हो सके तो मुझे माँ कहने का अधिकार देदे
मैं अब असे ही मानता हूँ आज उसका जनम हो गया
मेरा एक सपना सपने में ही आज झूठ सा सुच हो गया
उस को देख देख कर हँसती, फिर उसको सिने से लगा लेती
कितनी प्यारी गुडिया है , उसके माथे पर कला टिका लगा देती
हे असमान हे धरती आप ही मुझे महसूस कर व दो
कोई तो सुने मेरी पुकार मुझे एक लड़की बना दे ||
हे असमान हर नजरो से से कह दो मेरी पुकार
हर आदमी से कह दो मेरी ये सदा
हर मनुष्य से कह दो जो सोचते है मेरी बेटी को ?
कोई तो मुझे इन को बंद करने का अधिकार दिला दो
ये न हो सके तो मुझे इस धरती से उठा दो
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
मुझे लडकी बना दे
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
वो सकून, वो , वो दर्द, कोई मुझे भी दिला दे,
कोई मुझे एक लड़की के कपडे ही पहना दे ||
मैं भी उसे अपने गर्भ में रखती , उसको महसूस करती
मेरी सांसो से साँस लेती , उस की बातो को महसूस करती
और नहीं तो कोई मुझे माँ का अस्तित्व ही समझा दे ||
हर दिन मैं उसका सपना अपनी उसका सपना देखती
वो दिन भी गिनती जब वो इस संसार को देखती
कब वो आये कब मुझे माँ बुलाये
कोई अपनी बेटी मुझे एक दिन के लिए उधार देदे
वो न हो सके तो मुझे माँ कहने का अधिकार देदे
मैं अब असे ही मानता हूँ आज उसका जनम हो गया
मेरा एक सपना सपने में ही आज झूठ सा सुच हो गया
उस को देख देख कर हँसती, फिर उसको सिने से लगा लेती
कितनी प्यारी गुडिया है , उसके माथे पर कला टिका लगा देती
हे असमान हे धरती आप ही मुझे महसूस कर व दो
कोई तो सुने मेरी पुकार मुझे एक लड़की बना दे ||
हे असमान हर नजरो से से कह दो मेरी पुकार
हर आदमी से कह दो मेरी ये सदा
हर मनुष्य से कह दो जो सोचते है मेरी बेटी को ?
कोई तो मुझे इन को बंद करने का अधिकार दिला दो
ये न हो सके तो मुझे इस धरती से उठा दो
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
मुझे लडकी बना दे
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
वो सकून, वो , वो दर्द, कोई मुझे भी दिला दे,
कोई मुझे एक लड़की के कपडे ही पहना दे ||
मैं भी उसे अपने गर्भ में रखती , उसको महसूस करती
मेरी सांसो से साँस लेती , उस की बातो को महसूस करती
और नहीं तो कोई मुझे माँ का अस्तित्व ही समझा दे ||
हर दिन मैं उसका सपना अपनी उसका सपना देखती
वो दिन भी गिनती जब वो इस संसार को देखती
कब वो आये कब मुझे माँ बुलाये
कोई अपनी बेटी मुझे एक दिन के लिए उधार देदे
वो न हो सके तो मुझे माँ कहने का अधिकार देदे
मैं अब असे ही मानता हूँ आज उसका जनम हो गया
मेरा एक सपना सपने में ही आज झूठ सा सुच हो गया
उस को देख देख कर हँसती, फिर उसको सिने से लगा लेती
कितनी प्यारी गुडिया है , उसके माथे पर कला टिका लगा देती
हे असमान हे धरती आप ही मुझे महसूस कर व दो
कोई तो सुने मेरी पुकार मुझे एक लड़की बना दे ||
हे असमान हर नजरो से से कह दो मेरी पुकार
हर आदमी से कह दो मेरी ये सदा
हर मनुष्य से कह दो जो सोचते है मेरी बेटी को ?
कोई तो मुझे इन को बंद करने का अधिकार दिला दो
ये न हो सके तो मुझे इस धरती से उठा दो
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
मुझे लडकी बना दे
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
वो सकून, वो , वो दर्द, कोई मुझे भी दिला दे,
कोई मुझे एक लड़की के कपडे ही पहना दे ||
मैं भी उसे अपने गर्भ में रखती , उसको महसूस करती
मेरी सांसो से साँस लेती , उस की बातो को महसूस करती
और नहीं तो कोई मुझे माँ का अस्तित्व ही समझा दे ||
हर दिन मैं उसका सपना अपनी उसका सपना देखती
वो दिन भी गिनती जब वो इस संसार को देखती
कब वो आये कब मुझे माँ बुलाये
कोई अपनी बेटी मुझे एक दिन के लिए उधार देदे
वो न हो सके तो मुझे माँ कहने का अधिकार देदे
मैं अब असे ही मानता हूँ आज उसका जनम हो गया
मेरा एक सपना सपने में ही आज झूठ सा सुच हो गया
उस को देख देख कर हँसती, फिर उसको सिने से लगा लेती
कितनी प्यारी गुडिया है , उसके माथे पर कला टिका लगा देती
हे असमान हे धरती आप ही मुझे महसूस कर व दो
कोई तो सुने मेरी पुकार मुझे एक लड़की बना दे ||
हे असमान हर नजरो से से कह दो मेरी पुकार
हर आदमी से कह दो मेरी ये सदा
हर मनुष्य से कह दो जो सोचते है मेरी बेटी को ?
कोई तो मुझे इन को बंद करने का अधिकार दिला दो
ये न हो सके तो मुझे इस धरती से उठा दो
काश उपर वाला मुझे लडकी बना दे
और फिर मुझे एक लड़की की माँ बना दे |
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