जबलपुर में हमारे एक भूतपूर्व स्वर्गवासी मित्र श्री नारायण तिवारी जी रहते हैं. भूतपूर्व स्वर्गवासी सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है मगर वो उपर हो रहे समस्त क्रिया कलापों को इतने आत्म विश्वास और दृढ़ता से बताते हैं कि उनके पूर्व में स्वर्ग मे रहवास पर स्वतः ही विश्वास सा हो जाता है.
हमारे एक और मित्र हैं मुकेश पटेल. ईश्वर की ऐसी नजर कि अच्छे खासे खाते पीते घर का यह बालक अगर किसी भिखारी के बाजू से भी निकल रहा हो तो भिखारी उसे बुलाकर कुछ पैसे दे दे. चेहरे पर पूर्ण दीनता के परमानेन्ट भाव. मानो भुखमरी की चलती फिरती नुमाईश. भर पेट खाना खा कर भी निकले तो लगे कि न जाने कितने दिन से भूखा है. हँसता भी तो लगता कि जैसे रो रहा है.
सड़क पर क्रिकेट खेलते समय जब किसी के घर में गेंद चली जाये तो हम लोग मुकेश को ही भेजा करते थे गेंद लेने. उसे डांटना तो दूर, अगला गेंद के साथ मिठाई नाश्ता कराये बिना कभी विदा नहीं करता था. अपने चेहरे के चलते वह सतत एवं सर्वत्र दया का पात्र बना रहा. होली, दशहरे की चंदा टीम का भी वो हमेशा ही सरगना रहा और हर घर से चंदा मिलता रहा. अब तो उसका बड़ा व्यापार है. बैंक से लेकर इन्कमटैक्स वाले तक सब उस पर दया रखते हैं. आज तक किसी को घूस नहीं दी. बैंक वाले लोन देने के साथ साथ चाय पिला कर भेजते हैं. लोन की किश्त भरने जाते हैं तो बैंक निवेदन करने लगता है कि जल्दी नहीं है चाहें तो अगले महीने दे दीजियेगा. इन्कम टैक्स का क्लर्क भी बिना नाश्ता कराये उन्हें नहीं जाने देता.
जहाँ मुकेश को अपने उपर ईश्वर की इस विशेष अनुकम्पा पर अभिमान था वहीं हमारे भूतपूर्व स्वर्गवासी मित्र नारायण के पास इस स्थिति के लिये भी कथा कि मुकेश का चेहरा ऐसा क्यूँ है.
भू.पू.स्व. श्री नारायण बताते हैं कि वहाँ उपर कई फेक्टरियाँ हैं. भारत की अलग, अमरीका की अलग, चीन, अफ्रीका, जापान सब की अलग अलग. वहीं स्त्री पुरुषों का निर्माण होता है. सबके क्वालिटी कन्ट्रोल पूर्व निर्धारित हैं. अमरीकी गोरे, अफ्रिकी काले, भारत के भूरे आदि. सबकी भाव भंगीमा भी बाई डिफॉल्ट कैसी रहेगी, यह भी तय है. जैसे दोनों हाथ नीचे, पांव सीधे, मुँह बंद आदि. यह बाई डिफॉल्ट सेटिंग है, अब यदि किसी को हाथ उठाना है, तो उसे हरकत एवं प्रयास करना होगा और जैसे ही प्रयास बंद होगा, हाथ पुनः डिफॉल्ट अवस्था में आ जायेगा यानि फिर नीचे लटकने लगेगा.
ऐसा ही चेहरे की भाव भंगिमा के साथ होता है. बाई डिफॉल्ट आपके चेहरे पर कोई भाव नहीं होते. न खुश, न दुखी. विचार शून्य सा चेहरा. अब यदि आपको खुश होना है तो ओंठ फेलाईये, दांत दिखाईये और हा हा की आवाज करिये. इसे खुश हो कर हंसना कहते हैं. जैसे ही आप इसका प्रयास बंद कर देंगे पुनः डिफॉल्ट अवस्था को प्राप्त करेंगे अर्थात विचार शून्य सा चेहरा-बिना किसी भाव का.
कई बार जल्दीबाजी में, जब कन्टेनर रवाना होने को तैयार होता है और कुछ मेटेरियल की जगह बाकी है, तब कुछ लोग जल्दी जल्दी लाद दिये जाते हैं. वही डिफेक्टिव पीस कहलाते हैं. उन्हीं में से एक उदाहरण मुकेश हैं जिनकी हड़बड़ी में चेहरे की डिफॉल्ट सेटिंग दीनता वाली हो गई. उन्हें सामान्य दिखने के लिये प्रयास करना होगा और जैसे ही प्रयास बंद, पुनः डिफॉल्ट अवस्था यानि दीनता के भाव.
यह सारी बातें नारायण इतने आत्म विश्वास से बताते थे कि लगता था वो ही उस फेक्टरी के मैनेजर रहे होंगे जो इतनी विस्तार से पूरी कार्य प्रणाली और निर्माण प्रक्रिया की जानकारी है. तभी तो सब उन्हें भूतपूर्व स्वर्गवासी की उपाधि से नवाजते थे.
उनके ज्ञान का विस्तार देखते हुए एक बार हमने भी जिज्ञासावश प्रश्न किया कि नारायण भाई, आप तो कह रहे थे कि भारत के लिये त्वचा का रंग भूरा फिक्स है. फिर यहाँ गोरे और हमारे रंग के लोग कहाँ से आ गये?
भू.पू.स्व. नारायण जी ने तुरंत अपने संस्मराणत्मक अंदाज में कहना शुरु किया कि दरअसल भारत की फैक्टरी के सुपरवाईजर विश्वकर्मा जी बहुत जुगाड़ू टाइप के हैं. जब पेन्ट खत्म होने लगता है तो कभी तारपीन ज्यादा करवा देते है.
कभी अमरीकी फेक्टरी का और कभी अफ्रिकी फेक्टरी का बचा पेन्ट मार देते हैं मगर मिला जुला कर, जोड़तोड़ कर काम निकाल ही देते हैं. इसीलिये भारत में भी कुछ लोग गोरे पैदा हो जाते हैं और अगर अफ्रिका वाला ज्यादा पेन्ट मार लाये तो तुम्हारे जैसे. किन्तु बाकी ऐसा नहीं करते वो काम रोक देते हैं. इसीलिये अफ्रिका में कभी कोई गोरा नहीं पैदा होता और न अमरीका में काला. इसी से उनकी फैक्टरी भी मटेरियल के इन्तजार में कई कई दिन बंद रहती है तो प्रोडक्शन भी कम होता है. आज तक मटेरियल की कमी के कारण भारत वाली फेक्टरी में काम नहीं रुका. हर साल सबसे अनवरत संचालन का अवार्ड भी विश्वकर्मा जी को ही मिलता है. इसीलिये तो हमारे यहाँ सभी फेक्टरियों में उनकी पूजा होती है.
हम तो सन्न रह गये कि वाह रे विश्वकर्मा जी, आप तो अवार्ड पर अवार्ड लूट रहे हो, जगह जगह पूजे जा रहे हो और खमिजियाना भुगतें हम!! बहुत खूब!
नोट: इस आलेख का उद्देश्य मात्र हास्य-व्यंग्य है. यदि किसी वर्ग या समुदाय विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँची हो, तो मैं क्षमायाचना करता हूँ.
रविवार, सितंबर 30, 2007
भूतपूर्व स्वर्गवासी श्री......
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39 टिप्पणियां:
ओह, जब हमारा प्रोडक्शन हुआ तो फैक्टरी में नॉर्मल प्रोडक्शन हो रहा था. इसलिये सामान्य-सामान्य से बने.
काश अपन भी डिफेक्टिव पीस होते तो दया भाव से ब्लॉग पाठक और ढ़ेरों टिप्पणी टपकाने वाले मिल जाते! :)
समीर भैया, जे जबलपुर की माटी ही ऐसी रही के ऊ में डिफेक्टिव पीस बनत रहे ।
अब हम का बताएं, जबलईपुर में केत हें कि हर चीज की जुगाड़ सेट होत है । अब कोऊ ढूंढ सकत है कोऊ नईं । एक जबलपुरिया सौ हुसियार के बराबर होत है । काय सई कही ना ।
भोत सई कही बड्डे!
वाह वाह वाह समीर जी…सुबह सुबह हंसा दिया आपने और मज़े की बात ये कि लेख अंत तक गम्भीर रहा…बहुत खूब्॥धन्यवाद
अच्छा हुआ सर स्व. नारायण तिवारी के बीच मे "दत्त" नही लगाया. वरना तो दिल बैठे जा रहा था, कि एक अनमोल रतन कहीं... :(
खैर लपेटे तो हमेशा की तरह खूब ही हैं. :) तो क्या कहें? वाह कहें!
जे चश्मा कहां से जुगाड़े भाई, जेम्स बांड के इंप्रूव्ड पीस लग रे हो।
हमेशा की तरह मजेदार :)
आपके भूतपूर्व स्वर्गवासी मित्र श्री नारायण तिवारी लगता है लाल बुझक्कड़ के खानदान से ताल्लुक रखते हैं। लाल बुझक्कड़ के पास भी हर सवाल का जवाब मौजूद रहता था। और, मुकेश पटेल की क्या बात है! कहते हैं जो ज्यादा तेजस्वी होती है, उसके चेहरे से दीनता टपकती है। लगता है हमारा भगवान भी कुछ ऐसे ही चेहरे का होगा।
भारत की आबदी व उलजलूल चहरों के लिए विश्वकर्माजी जिम्मेदार है, आज पता चल ही गया.
मनोरंजक, मजा आया.
श्रेष्ठ रचना. बाई डिफाल्ट....
बहुत आनंद आया पढकर ! वर्षा का गीत भी सुना अच्छा लगा !साधुवाद स्वीकारें !
फैक्ट्री के मालिक उनके गोपनीय राज को आम जनता तक पहुंचाने के लिये मानहानि का मुकदमा दायर करते हैं.
अफ़सोस कि अपन नार्मल प्रोडक्शन टाइमिंग मे थे!!
मस्त लिखा है!!
काला चशमा जंचता ए..:)
व्यंग्य के मामले में जवाब नहीं आपका, बहुत प्रभावशाली लिखा है, बहुत-बहुत बधाई !
माल चोखो है भाया....मुझको भाया...
स्वस्थ मनोरंजन.....अच्छा चरित्रांकन
समीर भाई सबसे पहले तो आप मेरे चिट्ठे पर टिप्पणी करने के बाद ये लिक्खना छोड़ दें कि अन्यथा मत लेना। ऐसा लिख कर आप मुझे शर्मिंदा कर देते हैं।
दूसरी बात मुझे आज पता चला कि आपका जुड़ाव जबल्पुर से है क्यों कि वर्तमान में मैं भी जबलपुर में ही हूं।
पर हाँ जबल्पुर की बात कुछ अलग है ये तो मनना ही पड़ेगा।
"काए बड्डे..........."
:) :) :) और :)
"बाई डिफॉल्ट आपके चेहरे पर कोई भाव नहीं होते. न खुश, न दुखी. विचार शून्य सा चेहरा. अब यदि आपको खुश होना है तो ओंठ फेलाईये, दांत दिखाईये और हा हा की आवाज करिये. इसे खुश हो कर हंसना कहते हैं. जैसे ही आप इसका प्रयास बंद कर देंगे पुनः डिफॉल्ट अवस्था को प्राप्त करेंगे अर्थात विचार शून्य सा चेहरा-बिना किसी भाव का"
बहुत सही कह रहे हो लालाजी...अच्छा लगा पढ़कर ....बधाई
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर। मज़ा आ गया।
Humesha ki tarah ekdam badhiya likha hai Sameer bhai aapne ..
Sne ke sath,
L
अजित वडनेरकर said...
वाह समीर भाई। मज़ा आ गया। भूतपूर्व स्वर्गीय.....पढ़कर। ऐन यही अंदाज़ पढ़ना चाहता था मैं। क्या कैरेक्टर ढूंढे हैं ? और उन्हें तराशा भी खूब है। बधाई । हमारी इच्छापू्र्ति के लिए आभार ....
बहुत बढ़िया लिखा है। मजा आ गया ।
घुघूती बासूती
समीर भाई,
हास्य- विनोद वह कला है, जो विरले को ही प्राप्त होता है. अपने मित्रों की ऐसी विनोदपूर्ण चर्चा आपने की कि मज़ा आ गया पढ़कर. हमेशा की तरह मजेदार रहा आपका यह पोस्ट भी, बहुत आनंद आया ! हास्य की ऐसी ही रचनाएँ श्रेष्ठता की परीधि में शुमार होती है, भाई वाह, क्या किरदार ढूँढा है आपने, वह भी भूतपूर्व स्वर्गवासी मित्र श्री नारायण तिवारी और, मुकेश पटेल की क्या बात है! लेख अंत तक गम्भीर रहा…बहुत खूब्॥धन्यवाद
मजेदार गुरुवर!
यहाँ आने से, मजे की तो गारंटी है. :)
वाकई बहुत बढिया व्य्ंग है। मजा आ गया। मुझे बहत देर तक हंसी आयेगी
दीपक भारतदीप
वाकई बहुत बढिया व्य्ंग है। मजा आ गया। मुझे बहत देर तक हंसी आयेगी
दीपक भारतदीप
समीर जी ,नमस्कार मैं बहुत शर्मिंदा हूँ जो आपको धन्यवाद नही दे सकी ! मैं जानती हूँ कि आप मेरे ब्लॉग को नियमित रूप से पढते हैं और अपने विचार ज़रूर व्यक्त करते हैं ! मुझको आपकी टिपण्णी का इंतज़ार रहता है ! मुझको इस बात की खुशी है कि आप इस बात का इंतज़ार किए बिना कि मैं जावाब दूँ या नहीं ,मेरी रचना पोस्ट होते ही उसको पढ़ लेते हैं ..मेरे तकरीबन हर पोस्ट में आपके कीमती विचार पढने को मिले ..आपने मेरा होंसला बढाया इसके लिए मैं आपकी शुक्रगुजार हूँ मैं भी ब्लोग्वानी पर आपको पढ़ती हूँ ..मैंने आपके लेखोंसे बहुत कुछ सीखा है ..एक बार आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!
क्या अभूत क्या भूतपूर्व है कितना सच है कितना भ्रम है
पोस्ट आपकी सच में पूछें दस ग्रंथों से थोड़ी कम है
सारे रस का रस निकाल कर खूब निचोड़ा मित्र आपने
गूँज रही जो बहुत देर से एक ठहाके की सरगम है
ब्लॉग्स पर ऐसा ही सहज,सरल और शुध्द मटेरियल चाहिये समीर भाई...आपके नाम सा ख़ालिस.मिलावट नई मांगता.दिग्गजों ने हिन्दी में ऐसन कछु रच दिया है कि मरदूद आम आदमी तो की औक़ात ही नाही कि का तो पढ़े और का समझे.आपकी क़लम की ताब बढ़ती जाए..दादा.(ये बड़ा रेसपेक्टफ़ुल्ली कह रहा हूँ)वो नहीं.का समझे.
दरअसल भारत की फैक्टरी के सुपरवाईजर विश्वकर्मा जी बहुत जुगाड़ू टाइप के हैं. जब पेन्ट खत्म होने लगता है तो कभी तारपीन ज्यादा करवा देते है.
-मतलब यह की भारत का मामला वहीं से जुगाडू टाईप का चल रहा है.
"इसी से उनकी फैक्टरी भी मटेरियल के इन्तजार में कई कई दिन बंद रहती है तो प्रोडक्शन भी कम होता है."
आपके हास्य में भी बड़ी गहराई है हमेशा की तरह वरना सस्ते जोक किसके इनबॉक्स और मोबाइल पर नहीं आते। अत्यन्त सुन्दर रचना। बाई डिफ़ॉल्ट "आज आपने फ़िर से बहुत अच्छा लिखा है"। अन्त में नोट लगाना वाकई में आवश्यक था।
बहुत रिसर्च करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि...दरअसल सारा जादू आपके व्यक्तित्व का है..आपको पढ़ना हमेशा मज़ेदार होता है...सच..कहूं तो किस्सागोई का आपका अंदाज ही निराला है..
http://www.gustakh.blogspot.com/
ये इस गुस्ताख़ मंजीत का ब्लॉग है, कभी भ्रमण करें।
वाह क्या बात है, भूतपूर्व स्वर्गवासी मित्र श्री नारायण तिवारी , क्या सम्बोधन किया है कमाल है ,आपकी लिखाई भी गज़्बै है.
समीर जी
आप कितना सारगर्भित लिखते हैं. कम नजर आते है...बधाई हो आपको मेरी और गुरु जी की.
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