जरा हट के का भाग-२ ही समझो इसे.....
आज एक चिट्ठी आई. उसे देखकर बहुत पहले सुना चुटकुला याद आया.
एक सेठ जी मर गये. उनके तीनों बेटे उनकी अन्तिम यात्रा पर विचार करने लगे. एक ने कहा ट्रक बुलवा लेते हैं. दूसरे ने कहा मंहगा पडेगा. ठेला बुलवा लें. तीसरा बोला वो भी क्यूँ खर्च करना. कंधे पर पूरा रास्ता करा देते हैं. थोड़ा समय ही तो ज्यादा लगेगा. इतना सुनकर सेठ जी ने आँख खोली और कहा कि मेरी चप्प्ल ला दो, मैं खुद ही चला जाता हूँ.
चिट्ठी ही कुछ ऐसी थी. एक बीमा कम्पनी की. लिखा था कि अपने अंतिम संस्कार का बीमा करा लें. पहले बताया गया कि यहाँ अंतिम संस्कार में कम से कम ५००० से ६००० डालर का खर्च आता है और अक्सर तो १०००० डालर भी अगर जरा भी स्टेन्डर्ड का किया. जरा विचारिये कि जब तक आप का नम्बर आयेगा तब तक मुद्रा स्फिति की दर को देखते हुए यह २५००० डालर तक भी हो सकता है.
आगे बताया गया कि आप अपनी मनपसन्द का ताबूत चुनिये, डिजाईनर. जिसमें आप को आराम से रखा जायेगा. कई डिजाईन साथ में भेजे ताबूत सप्लायर के ब्रोचर में थे. सागौन, चीड़ और हाथी दाँत की नक्काशी से लेकर प्लेन एंड सिंपल तक. उसके अन्दर भी तकिया, गुदगुदा गद्दा और न जाने क्या क्या. उदाहरण के लिये यह देखिये अन्दर और बाहर की तस्वीर.
और:
फिर आपके साईज का सूट, जूते आदि जो आपको पहनाये जायेंगे पूरी बामिंग और मेकअप के साथ. मेकअप स्पेशलिस्ट मेकअप करेगी, वाह!! यह तो हमारी शादी में तक नहीं हुआ. खुद ही तैयार हो गये थे. मगर उस समय तो खुद से तैयार हो नहीं पायेंगे तो मौका भी है और मौके की नजाकत भी.
फिर अगर आपको गड़ाया जाना है तो प्लाट, उसकी खुदाई, उसकी पुराई, रेस्ट इन पीस का बोर्ड आदि आदि. अगर जलाया जाना है तो फर्नेस बुकिंग और ताबूत समेत उसमें ढकेले जाने की लेबर. सारे खर्चे गिनवाये गये. साथ ही आपको ले जाने के लिये ब्लैक लिमोजिन. अभी तक तो बैठे नहीं हैं उतनी लम्बी वाली गाड़ी मे. चलो, उसी बहाने सैर हो जायेगी. वैसे बैठे तो ट्रक में भी कितने लोग होते हैं?
हिट तो ये कि आप हिन्दु हैं और राख वापस चाहिये तो हंडिया का सेम्पल भी है और उसे लकड़ी के डिब्बे में रखकर, जिस पर बड़ी नक्काशी के साथ आपका नाम खोदा जायेगा और आपके परिवार को सौंप दिया जायेगा.
और:
इतने पर भी कहाँ शांति-फूल कौन से चढ़वायेंगे अपने उपर, वो भी आप ही चुनें. गुलाब से लेकर गैंदा तक सब च्वाइस उपलब्द्ध है.
अब जैसी आपकी पसंद वैसा बीमा का भाव तय होगा.
तब से रोज फोन करते हैं कि क्या सोचा?
क्या समझाऊँ उन्हें कि भाई, यह सब आप धरो. हम तो भारत के रहने वाले हैं. समय से कोशिश करके लौट जायेंगे. यह सब हमको नहीं शोभा देता. अपच हो जायेगी.
हमारे यहाँ तो दो बांस पर लद कर जाने का फैशन है, अब कंधा दर्द करे कि टूटे. यह उठाने वाला जाने और उस पर खर्चा भी उसी का. अपनी अंटी से तो खुद के लिये कम से कम इस काम पर खर्च करना हमारे यहाँ बुरा मानते है.
भाई, अमरीका/कनाडा वालों, आप लोगों की हर बात की तरह यह भी बात-है तो जरा हट के.
बुधवार, सितंबर 05, 2007
जाओ तो जरा स्टाईल से...
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41 टिप्पणियां:
सही कहा है,,यहा तो बहुत ज्यादा जोश चढता है तो बस गाव भर को अपने जीते जी तेहरवी का खाना खिलाने और पंडित को गऊ दान करने से ज्यादा पंगा नही है..बाकी तो वजन रोकर उठाये या हस कर, ले जाने का काम तो अडोस पडोस और रिशतेदारो के गले ही पडता है जी ..
वैसे नीचे वाली हडिया अच्छी है ..आते समय एक पर मेरा नाम खुदवा कर लेते आना..
अरे बापरे, इत्ते चुनाव करने पडते है क्या जिन्दा रहते रहते ? तो फिर प्रस्थान करने के बाद कितने चुनाव करने पडते होंगे. सच कहता हूं, आप तो यहीं आ जाईये -- शास्त्री
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
आप भारत लौट आईये. इसी तर्ज पर यहाँ बिजनेस शुरू करते है.
मस्त अर्थी, जरूरी हुआ तो चार मुस्टंडे उठाने के लिए, और भी सारा इंतजाम, हरिद्वार के तक का. जीते जी ठेका दे दें, बेटों का क्या भरोसा, हम पर भरोसा करें.
अब का है ना समीर भाई, जैसा देस वैसा भेस।
और लौटने का तो मेरा मूलमंत्र याद रखो। जित्ता बोलोगे कि लौटेंगे लौटेंगे, उतना ही लौटने मे अड़चने आएंगी। चुपचाप अपनी बैलेन्स-शीट बनाओ, टारगेट डिसाइड करो, और उसके अनुसार लौटने का प्रबन्ध करो और एक दिन धोती लोटा उठाओ और निकल पड़ो।
लौटने का एक और टोटका है, अपने गाँव/शहर मे एक प्लॉट लो, फिर उसको हथियाने जाने के डर से चिंता करो, रात रात मे उठकर चिंतामग्न टहलो, फिर एक दिन बनवाने लौटो, यहाँ की आबोहवा मे रम जाओ, फिर लौटने मे पचास बहाने करो, बस थोड़े ही दिनो मे इधर के होने लग जाओगे।
एक पते की बात, उधर के तो कभी ना हो सकोगे, इधर का चांस काहे खो रहे हो। आ अब लौट चलें।
समीर जी,हम तो उन मे से हैं जैसा चिट्ठी मे लिखा है...भले ही सेठ ना हो...पर लगता है हमे तो अपने आप ही चल के जाना पड़ेगा :)
वैसे हमारे लिए तो अंतिम संस्कार का बीमा कराना ,एक नयी जानकारी है।
अभी अभी तो आए हैं जाने के बारे में क्यों सोचें ? जी ने की चिंताऎ क्या कम हैं जो मरने के बाद की भी टेंशनें पाल लें !:)
मेरा हस-हस के पेट दुख गया आप का आटोग्राफ़ मिलेगा ? आप का फ़ेन हू सारी पोस्ट पडता हू जी :)) बडा मज़ा आता है जी
आज के हालत देख के तो अइसन लगता है कि इहां भी कुछ साल बाद यही हालत हो जाएगी!!
टेंशन नक्को!!
आपका बुढापा इधर अहले वतन मे ही कटने वाला है, और...
:)
ना जी.. जुग जुग जीयो...
आप भी क्या-क्या लेकर आते है मान गये गुरूदेव...रोये या हँसे ये कैसी आरामदायक शवयात्रा है...:)
सुनीता(शानू)
आप समय रहते भारत चले आयें. यह तो नहीं कहूंगा कि समय रहते ऊपर चले जायें - वह ब्लॉगीय शिष्टाचार के खिलाफ होगा! पर मुझे अन्देशा है कि जब भारत में आप चला-चली की बेला का इंतजार करेंगे, तो परिदृष्य यहां भी वैसा ही होगा - बीमा कराने वाला. आपने मेरी शवयात्रा वाली पोस्ट तो पढ़ ली है न! :)
जीते हैं शान से मरते हैं शान से ............
भई वाह, सुना है कि पैसे देने पर टाप किलास हीरोईनें भी शोक संवेदना देती हैं।
हमारी अम्मा सुन लें तो अभी का अभी आपको उस देश से वापस आने का फतवा जारी कर दें "कऊन कऊन बातों के परचार करते है रहते हैं मुए !"
अरे ये तो बड़े कमाल की बात बताई आपने...
अब क्या कहें...कुछ अजीब सा मन हो गया ये सब देखकर तो...
पैकेज मे तेरवी क जिक्र नही है, बीमा कम्पनी वालो को ये भी एड करना चाहिये
वाह, इससे तो एक नई तरीक़े की आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिलेगा। लोग मरने के लिए इंडिया आया करेंगे। :)
समीर भाई,
जब ज़िंदा रहने में इतनी मारामारी है, तो मरने के बाद क्यों ताबूत के बारे में सोचा जाए.वैसे मरना हर किसी के लिए दुखद एहसास से कम नहीं होता, किंतु कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हे
ग़म नहीं होता. कुल मिलकर यह भी ज़रा हट के है. वैसे जो मैनें महसूस किया है , क़ि आप जब भी
लिखते हैं ज़रा हट के लिखते हैं. एक अच्छे और कुशल रचनाकार की सफलता की यही कसौटी होती है.
आपके लेखन में जीवन की सच्चाई प्रतिबिंबित होती है. साथ ही नई -नई जानकारियाँ भी, बधाई...../
समीर भाई
आप तो लौट ही जाओ..आपको तो रोज ही गांव पुकारता है. कब तक यूँ ही रुके रह सकते हो. जाओ, जाओ. हम रह लेंगे.
-खालिद
जियो कैसे भी मगर मरो शान से :)
याद रखिये, ताबूत चाहे जितना खूबसूरत हो, इसका ढक्कन खुदा बाप तो नहीं खोलने वाला। खोलनेवाला तो होगा कोई जाही हवास टाइप का पुरातत्वेत्ता :)
आखीर आपकी उड़न तश्तरी हमारे ब्लाग पर उतर हीं आई ।इसमें कोई संदेह नहीण कि आप हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लागरो में से एक है ।आशा है आप आगे भी आते रहेंगे और मुझे अपने मार्ग दर्शन से और अच्छा लिखने को प्रोत्साहित करते रहेंगे ।
इतना सुकून जीने से मिल पायेगा नहीं
बस ये ही बात सोच कर लो मैं भी मर गया
बहुत खूब लालाजी मजा आ गया ...हँसाने में आपका जबाब नहीं...ईश्वर आपको स्वस्थ रखे और लंबी उम्र दे.....बधाई
जोरदार
संजय बेंगाणी का परामर्श बुरा नहीं है। promotional offer में यह भी कर दिया जाए कि दो काठी कफ़न लेने वालों को एक फ्री दी जाएगी। अपना लोगो बना कर नारद के साथ साथ हर ब्लाग्स पर लगवा देना। लोगो वाले ब्लागर्स को खास अर्थी-पैकेज में रियायत दी जाए।
क्या बात है बताइये बाज़ार भी वहां तक पहुंच गया.जब अन्त समय आएगा तो आपको मेल कर दूंगा...
मरने की अदा भी यह निराली है :)
आप भी रोज़ नई बात ले ही आते हैं अपने लेखन में
हंसने- हँसाने का कोई मौका चुके न कभी :)
आप भी जब लिखते है तो मजा ही आ जाता है।
Ati aanandit udvaelit karatee post
:) बहुत खूब.... आपके लिखने अन्दाज़...कहाँ कोई पा सकता है.....अपनी इस तरह की पोस्ट लिखते हुए जाने क्यों आपकी इस पोस्ट की याद नहीं आई...नहीं तो कुछ मस्ती के गुण चुरा ले जाते:)
:) बहुत खूब.... आपके लिखने अन्दाज़...कहाँ कोई पा सकता है.....अपनी इस तरह की पोस्ट लिखते हुए जाने क्यों आपकी इस पोस्ट की याद नहीं आई...नहीं तो कुछ मस्ती के गुण चुरा ले जाते:)
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार o9-08 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... लंबे ब्रेक के बाद .
आपके लिखने का ढंग निराला है....पढ़ कर इतना अच्छा लगा कि मेरा तो अभी के अभी मरने का दिल करने लगा है
....तो अब यह बाजारवाद मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ेगा....या फिर ऐसे खर्चीले ऑफर देकर जीते जी मार डालेगा...महंगाई के इस दौर में मरना तो जीने से भी महंगा होता जा रहा है.....साधारण आदमी तो अफोर्ड ही नहीं कर पायेगा....
इतनी सुंदर सुविधा कि मरने को दिल करे :))
Ye to gazab mamla hai
कमाल है....ऐसा भी होता है।
सादर
जीयो प्यार से मरो शान से...
क्या अदा क्या जलवे हैं यारों
वो कहते हैं ………मौत को भी भुना डालो
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