एक मेरा प्रिय मित्र कहता है कि आजकल हास्य कुछ ज्यादा हो रहा है तो दूसरा कहता है कि चलो अच्छा है लेख छोटा लिखा. यह साईज पसंद आई, न ज्यादा लम्बा न ज्यादा छोटा. अन्य कहता है कि बड़ी जल्दी खत्म हो गया. सबको पढ़ कर इत्मिनान से आपको पढ़ने आये और आप तो शुरु हुये और खत्म हो गये. जैसे मुन्ना भाई के हॉस्टल का कमरा. अब आप बताओ, क्या करें. हास्य न लिखें कि छोटा न लिखें कि लंबा न लिखें, चिट्ठों पर न लिखें. हम तो अटक से गये हैं. हमें तो साजिश नजर आ रही है कि लोग लिखवाना ही बंद करवाना चाह रहे हैं. जो करो, उसमें मीन मेख. न ये करो न वो करो. क्या लालू समझे हो कि भूसा खायें और डकारे भी न!!
अरे हमारा भी तो कुछ मन करेगा सो करेंगे. तुम कुछ सोचो. अभी समझ नहीं पाये हो हमें. हम बहुत जबरी आईटम है-आईटम गर्ल नहीं राखी सावंत टाईप. मगर जब अपनी पर उतर आयें तो उससे से भी जमकर ठूमका लगाते हैं. लो अब रोना लेकर आये हैं...मन खुश हो जायेगा तुम्हारा कि बहुत हास्य हो गया. बहुत लम्बा हो गया. चलो सब से निजात...अब पढ़ो इसे..झेलो....टिपियाना जरुर...वरना हम बुरा मानते हैं और फिर और जम कर झिलायेंगे...हाईकु लिख मारेंगे ५१ कम से कम...बंद थोड़े करेंगे लिखना...... हा हा
बुरा मानने के चक्कर में कूछ न लिखें तो लगता है कि सबसे दूर होते जा रहे हैं. तब सोचा यही लिख दें कि कुछ नहीं लिख रहे हैं. सब तो हमारी तरह सत्यवादी होते नहीं. अगर हो जायें तो आधे से ज्यादा नेता यही कहते नजर आयें कि कुछ नहीं कर रहे हैं मगर देश चलता जा रहा है.
खैर, उतना भी निकम्मापन अभी हाबी नहीं हुआ है, तो सारी टूटी कवितायें आपकी सेवा में ऊडेल देता हूँ. शायद पूरी न लगें मगर अपने संदेश पूरे दे देंगी, यह मेरा आपसे वादा है. अगर संदेश मिले तो टिपपणी करके सूचित करना :)
लाचारी
रोटी के लिए
बच्चे की जिद
और वो बेबस लाचार माँ
उसे मारती है.
वो जानती है
भूख का दर्द
मार के दर्द में
कहीं खो जायेगा.
कुछ देर को ही सही
बच्चा रोते रोते
सो जायेगा.
पलायन
गाँव की कच्ची सड़कों पर
स्वच्छंद घूमता रामू!!
तेज रफ्तार भागती
कार की चपेट में आ
अपना एक पांव गवां कर
शहर की सड़कों पर चलना
सीख गया है....
फिर सोचता है
शहर की किस बात पर
गाँव का हर बालक आज
रीझ गया है.
महत्वाकांक्षा
सीमित डोर से बंधी पतंग
सामने असीमित आसमान
मुंडेर पर चढ़
कुछ तो ऊँची हुई उड़ान...
इस चाहत का अंजाम
बैसाखियों पर
लटकता बचपन
और
चेहरे पर बेबस मुस्कान!!
दहेज
मिट्टी के तेल की लाईन में
खड़े लोगों को देख
वो डर जाती है....
दहेज की वेदी पर बलि चढ़ी
उसे अपनी बड़ी बहन
बहुत याद आती है!!
शुद्ध
गाँव के खाने से
बहुत घबराता हूँ...
शहर में रहता हूँ, न!
विशुद्ध नहीं पचा पाता हूँ!!
आरक्षण
ऊँचे अंक लाने के बाद भी
वो प्रतिक्षा सूची में
खड़ा है....
आरक्षण का तमाचा
सीधा उसके गाल पर
पड़ा है....
इंसान
इंसान
अब रोशनी से
घबराता है....
रोशनी में
चेहरा जो साफ
नजर आता है....
कवितायें
देख कर हालत जहां की
संवेदनायें सब
सो गई हैं
और मेरे दिल से उठती
कवितायें अब
खो गई हैं.
--समीर लाल 'समीर'
सोमवार, जून 04, 2007
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41 टिप्पणियां:
हद कर दी समीर भाई...इन्हें टूटी कवितायें कह रहें हैं...क्या क्या संदेश न दे डाले आपने. अब और कितनी पूरी कवितायें करेंगे, समझ नहीं आता कि आपकी पहुँच कहाँ तक है.
बहुत सुंदर.
-खालिद
बढि़या है। ये टूटी-फूटी कवितायें 'टूटी-फ्रूटी' की तरह मजेदार हैं। लिखने की मजबूरी भी क्या न करवाये! :)
शुक्रिया इन बढ़िया कविताओं के लिए!
पता नई कौन सी चक्की का आटा खाते हो, जो लिखते हो धांसू लिखते हो!
अच्छा है। टूटी-फूटी कवितायें टूटी-फ़्रूटी की तरह जायके दार हैं। यह भी अंदाज हुआ कि लिखने की मजबूरी क्या-क्या करवाती है।
भाइ बढिया कविताये पढवादी पर गंभीर बाते कर डाली अब जहा मे यू तो दुख बहुत है पर आप उसे भुलाने के लिये पढे जाते हो
चलो एक मै भी चिपका दू
अपने स्टाईल का
"कृर्कशा वधु ने सीता के
वन गमन का हवाला यो दिया
वन मे न जाती तो
तीन तीन सासो से कैसे निभाती सिया"
बेमुरव्वत (sorry बेमरम्मत) यानी कि तुम्हारी टूटी फ़ूटी कविताएं अच्छी लगीं ।
:) no comments...speechless
पलायन, दहेज और आरक्षण सबसे अच्छी लगी. :)
ये क्या? छोटा लिखने का नाम भी कर लिया और 8 कवितायें भी ठेल दीं!
समीरजी,
वाह कहने का मन नहीं है, आह निकल रही है। कविता की ताकत आह होती है, वाह वाली कविता बहुत लंबी नहीं जाती।
और लिखिये ऐसी कविताएं
आलोक पुराणिक
बहुत खुब.
जितने दाद दें कम हैं.
सभी बहुत अच्छी लगी.....एक भी शब्द अनावश्यक नहीं....सभी पूर्ण ....सार्थक....और आपके व्यक्तित्व को साफ झलकाती हुई....
बधाई !!
लम्बे-छोटे की चिंता मत कीजिए ... पढ़ने वाले पढ़ते रहेंगे । ईमानदारी से अपनी बात कहूँ तो पढ़ने-लिखने का दिल तो बहुत करता है, और थोडा़ बहुत कर भी लेती हूँ पर जितना चाहती हूँ उतना नहीं ... उसके लिए शायद सेवा-निवृत्त होने का इंतजार करना पडे़गा :) ।
"लाचारी" की लाचारी दिल छू गई.. सरल शब्दों में इतनी बडी़ बात ।
- सीमा
इन टूटी फूटी कविताओं में बहुत धार है, फिर भी 'लाचारी' मार्मिक है।
गुरुदेव! नमन स्वीकारें!
अब मैं आप पर टिपण्णी तो नही कर सकता, परंतु इतना जरूर कहूँगा कि यदि मैंने किसी एक कविता को अच्छा कहा तो दुसरे का अपमान हो जाएगा। सारी एक से बढकर एक हैं। इसी तरह प्रसाद बांटते रहें।
डा. रमा द्विवेदी SAID....
समीर जी, आपकी सभी कविताएं अपना संदेश बाखूबी दे रहीं हैं....बस "पलायान" को "पलायन"कर दीजिये...अगर यह टूटी फूटी कविताएं हैं आपकी सही सलामत कैसी होगीं?....हम तो कल्पना भी नही कर सकते... कितनों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा ;)बहुत बहुत बधाई......
आपकी टूटी कविताएं इतना जबर्दस्त संदेश दे रही है जितना कई बार पूरी कविताएँ भी नही दे पाती है।
डा. रमा द्विवेदी said...
समीर जी, आपकी सभी कविताएं अपना संदेश बाखूबी दे रहीं हैं....बस "पलायान" को "पलायन"कर दीजिये...अगर यह टूटी फूटी कविताएं हैं आपकी सही सलामत कैसी होगीं?....हम तो कल्पना भी नही कर सकते... कितनों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा ;)बहुत बहुत बधाई......
समीर जी,आप की रचनाएं पढकर मै सोच मे पड़ गया कि किस रचना को चुनूँ जो मुझे सबसे अच्छी लगी। लेकिन मै हार गया क्यूँकि आपकी सभी रचनाऎं एक से बड़ कर एक हैं। आप की ये रचनाएं मुझे बेमिसाल लगी। बहुत बहुत बधाई स्वीकारें।
समीर भाई मन खुश कर दिया आपने । आपकी इन क्षणिकाएँ में विचारों का पैनापन भी है और सरल प्रवाह भी । ऐसे रचनाएँ लिखते रहें ।
आपकी लेखनी से इतनी गंभीर कविताएं पहली बार पढ़ी। शानदार!
समीर जी आज कल आप पता नही क्या खा के लिख रहे हैं:):)
कमाल का लिखा है ....एक एक पंक्ति सुंदर है ...
इंसान
अब रोशनी से
घबराता है....
रोशनी में
चेहरा जो साफ
नजर आता है....
बहुत सही लिखा है आपने .....
आशा है जो कहीं खो गई, पुन: आपको मिल जायेगी
और साथ में जोड़ तोड़ से सम्बन्धित पुरजे लायेगी
फिर न रहेगी टीटी फ़ूटी, और निखर कर फिर चमकेगी
और अकविता को कविता की देहरी पर लेकर आयेगी
बहुत अच्छी टूटी कविताएँ हैं । जब टूटी इतनी जबर्दस्त हैं तो साबुत कैसी होंगी ?
घुघूती बासूती
समीर जी,
भूख का दर्द
मार के दर्द में
कहीं खो जायेगा.
अपना एक पांव गवां कर
शहर की सड़कों पर चलना
सीख गया है....
मुंडेर पर चढ़
कुछ तो ऊँची हुई उड़ान...
और मेरे दिल से उठती
कवितायें अब
खो गई हैं.
टूटा तो नहीं लेकिन हाँ तोड देने के लिये बहुत है, करारा प्रहार आपकी क्षणिकाओं में। बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
ये बहुत ही अच्छी रही.
सर ! एक एक कविता एक एक पोस्ट है एक साथ सब को पाकर खुशी हुई
चार लाईनो में सिमटी आठ जीवन का सच अस्सी पेजो मे भी ना समाये जो, साधु ! साधु !
संजय भाइ इतनी अच्छी कविताओ का सिला दाद से दे रहे हो....?
भाई दाद खाज खुजली के लिये फ़ोरन दाद काट लगाये या डा. को दिखाये ये देने की चीज नही हैऔर दोगे भी तो कोई लेगा नही
very nice an d realistic and best part very small like haiku
समीर जी ये छोटे-छोटे तीर बहुत गम्भीर, तीक्ष्ण और असरदार हैं। बधाई के साथ यूँ ही तीर चलाते रहियेगा।
गाँव के खाने से
बहुत घबराता हूँ...
शहर में रहता हूँ, न!
विशुद्ध नहीं पचा पाता हूँ!!
-------------
यह पंक्तिया बहुत अच्छी हैं -दीपक भारतदीप
वाह समीरे जी,
आजकल आप पाला बदल बदल कर खेल रहे हैं कभी कविता, कभी हास्य कविता और अब टूटी फ़ूटी के नाम पर एक बडा बम्पर मार दिया... मुबारक हो
समीर भाई,
बहुत मार्मिक और सही बिम्ब दर्शाती बेहतरीन कविता लिखने पर आपको बधाई !
जब एक कवि सोचता है तब शायद उसकी सोच का प्रभाव पूरे समाज पर पडकर बदलाव भी आ सकता है !
हर दमित, पीडीत के लिये मेरी सुहानुभूति व
आपके लिये,
शुभकामना
स स्नेह,
लावण्या
कम शब्दो में बहुत कुछ कह दिया आपने...:)
सुनीता(शानू)
लाजवाब !!!
लालाजी,
आपकी सभी छोटी कवितायें बहुत अच्छी लगीं ...बधाई
बहुत अच्छी कविताएँ हैं भाई. बधाई आपको.
बहुत अच्छी कवितायें, इनको आप टूटी हुई क्यो बता रहे थे..
खालिद भाई
आभार. गल्ती हो गई भाई जो टूटी कविता कह दिया. :)
अनूप जी
आप को टूटी फ्रूटी की तरह लगी, हम तर गये. बहुत धन्यवाद.
संजीत
बस पिसा पिसाया जो मिल जाये खा लेते हैं मगर है स्वादिष्ट,,,है न!! आओ कभी, तुम्हें भी खिलवायें. :)
अनूप जी पुनः
कोई मजबूरी नहीं..आपका स्नेह सब करवाता है.
अरुण भाई
सही चिपकाये हो. तुम पढ़ लेते हो और फिर भी पंगा नहीं लेते तो हिम्मत बढ़ जाती है. :)
अनूप भार्गव जी
बेमरम्मत रुप में पसंद कर लिया...अबके मरम्मत करके लगायेंगे पक्का...आपका आशीष है सब.
पंकज
अब तक सदमे से उबर गये होगे और कुछ बोलने लगे होगे...बोलो न!! धन्यवाद कवितायें पसंद करने के लिये.
ज्ञानदत्त जी
बस आपके आदेशानुसार ही तो किया है! अच्छा लगा न!!
आलोक भाई
लिखूंगा भाई जरुर..आपका आदेश तो टाल ही नहीं सकता.धन्यवाद आपने सराहा. हिम्मत बढ़ी.
संजय भाई
जितनी भी दे दी,,,बहुत ज्यादा है. मजा आ गया कि आपने पसंद की और वो भी कविता.. :)
बेजी जी
आप आती है तो लिखना सफल हो जाता है, आते रहें, बहुत आभार हौसला अफजाई के लिये.
सीमा जी
आपने कह दिया ब चिंता खत्म. आपने लाचारी को पसंद किया..हमें लिखने के लिये दिशा मिली...आते रहिये जब कभी समय मिले.
अतुल भाई
बहुत आभार. आप आते रहें, हम सुनाते रहेंगे. :)
विकास
जरुर बांटते रहेंगे. जब युवा वर्ग की डिमांड हो तो कैसे न मानें!! :)
रमा जी
भूल सुधार आपके आदेशानुसार कर दिया था. ऐसे ही मार्गदर्शन और हौसला अफजाई करती रहें. :)
परमजीत जी
बहुत आभार कहता हूँ.आप जैसे सिद्ध कवि जब तारीफ कर देते हैं तो लिखना सार्थक हो जाता है.
मनीष भाई
आपके आये बिना तो हमें सूना लगता है. आपका आदेश है, जरुर लिखेंगे.
श्रीश भाई
आभार.आखिर आपको भी कविता झिलवा ही दी. हा हा.
रंजू जी
बस, वही रोज का रुखा सूखा खा रहे हैं मगर आप पढ़ने लगी है तो बात बदल गई है. :) आभार कि आप पधारीं.
राकेश भाई
बस स्नेह बनाये रखिये..मैं लिखता रहूँगा.
घुघूती जी
आपके स्नेह ने साबूत लिखने की इच्छा दृढ हो गई है. बहुत आभार.
राजीव भाई
आप आये. बड़ा अच्छा लगा. बस यूँ ही हौसला देते रहें. हमारी कोशिश बेहतर पेशकश की जारी रहेगी. :)
How Do We know:
आप नाम तो ज्ञात नहीं मगर आपने मेरा हौसला हमेशा बढ़ाया है. बहुत आभार.
संजीव भाई
यह आपका स्नेह बोल रहा है. दिल को छू लेने अभिव्यक्ति के लिये बहुत आभार. आते रहे और हौसला बढ़ाते रहें.
अरुण भाई
कितना चाहते हो ...बस यही सबूत है. यूँ ही चाहते रहो, यही परम पिता से कामना है.
रचना जी
आप आईं.आभार. बस यह सिलस्ला बनाये रखें, हम लिखते रहेंगे.
भावना जी
आपने हमेशा हौसला दिया है. भविष्य में भी आपसे हौसला मिलता रहेगा, यही आशा रहेगी.
दीपक भाई
बहुत आभार आपने पसंद किया.आया करिये.
मोहिन्द्र भाई
बस आप आदेश करते रहो, कौन सा पाला लेना है और स्नेह बनाये रहो, हम खेलते रहेंगे..वरना कहाँ संभव है. :)
लावन्या दीदी
आपका आशीश मिल गया, मेरा लिखना सफल हो गया. बस आसीष देती रहें, फिर देखिये आपके आदेश पर हम क्या नहीं करते. :) हमेशा आकांक्षी हूँ आपके स्नेह का.
सुनीता जी
बहुत आभार. आप आते रहें, हम सुनाते रहें.
गरिमा जी
आप आ गई, हम धन्य हुए. अब यह सिलसिला न टूटे, यही प्रार्थना है.
रितेश
तुम तो हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाते हो, बहुत आभार.
Isth Deo ji
आपका नाम ज्ञात न होने से मात्र प्रतीक इस्तेमाल किया है कॄप्या अन्यथा न लें. कविता पसंद करने का आभार.ऐसे ही हौसला देते रहें.
डॉक्टर मिश्र जी
डरते डरते कह दिया, गल्ती हो गई. आगे से नहीं कहेंगे, अब ठीक है? :) हा हा!!!
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