स्थान: तरकश चुनाव मैदान
शहर: अहमदाबाद
मौका: तीन सर्वश्रेष्ट उदयीमान चिट्ठाकारों का चुनाव २००६
प्रवचनकर्ता: स्वामी समीरानन्द उर्फ़ उडन तश्तरी उर्फ़ समीर लाल 'समीर' उर्फ़ समाजसेवी......
दृश्य: मैदान हिन्दी चिट्ठाकरों से खचाखच भरा हुआ है, पैर रखने तक की जगह नहीं. एक किनारे ११ स्टाल लगे हैं और सभी स्टालप्रभारी चिट्ठाकारों की आवाभगत में लगें हैं. चाय बांटीं जा रही है, समोसे खिलाये जा रहे हैं. पान और पान पराग की सामने ही व्यवस्था है तथा, स्टाल के पीछे शराब बांटी जा रही है और इनको इससे कोई मतलब नहीं कि गुजरात में शराबबंदी है, वैसे भी गुजरात में जब कोई बताये, तभी इसका एहसास होता है.
जगह जगह बैनर टंगे हैं. स्वामी जी की तस्वीर के साथ लिखा है "आप अपने मताधिकार का प्रयोग करें. उसका प्रयोग ही सही तीन सर्वश्रेष्ठ चुनने में मदद करेगा."
स्वामी समीरानन्द निर्धारित समय से मात्र ३ घंटे विलम्ब से एयरपोर्ट से सीधे, सर्किट हाउस ( वो मुन्ना भाई वाले सर्किट के घर से नहीं जो जगदीश भाई के सौजन्य से प्राप्त है, बल्कि डाक बंगले से) होते हुये अभी अभी मैदान में घुस रहे हैं, हर तरफ स्वामी जी का जयकारा लगाया जा रहा है. स्वामी जी के चेहरे पर मुस्कान और माथे पर चिंता की लकीरें और दिल मे भय व्याप्त है.
स्वामी जी ने मंच पर पुष्प सज्जित शैय्या नुमा कुर्सी पर अपनी आसनी धंसा दी है और लोग ताली बजा चुके हैं और स्वामी जी ताली के जवाब में अपना हाथ उठा कर आशिष प्रेषित कर चुके हैं. यहाँ तक का कार्यक्रम सम्पन्न हो चुका है. सभी निर्णायक मंडल के सदस्य अग्रिम पंक्ति में सोफे पर बैठे हैं और प्रायोजक संजय तरकश का साईन बोर्ड लिये मंच पर स्वामी जी आठ फुट की दूरी पर गद्दे पर अपने चेहरे पर चिर परिचीत मुस्कान चिपकाये और हाथ मे काफी का मग लिये बैठे हैं और तरकश के इंतजामअली पंकज व्यस्त दिखने के प्रयास में मैदान के चक्कर लगा रहे हैं. उनके सिर में दर्द है, इसलिये वह सफाई कर्मचारी को डांट रहे हैं.
चिट्ठाकार चुनाव को ले कर चितिंत नजर आ रहे हैं, समझ नहीं आ रहा कि बारह मे से किसे चुनें किसे छोडें. आपस में सब अपनी चिंता अंग्रेजी में व्यक्त कर रहे हैं कि वेरी कन्फ्युजिंग. स्वभाविक है, हिन्दी चिट्ठाकरों का सम्मेलन है तो अंग्रजी मे बात होना ही है.
प्रवचन शुरु होता है, स्वामी समीरानन्द बोलना शुरु करते हैं, और इस चुनाव की लंबावधी महत्ता पर भी प्रकाश डालते हुये एक घंटे का बखान करते हैं जिसमें गीता के भी काफी अंश हैं जो कि हर झगड़े झंझट मे होते हैं.
अंत में प्रश्नोत्तर काल शुरू होता है. सारे चिट्ठाकार हालाकान हैं कि इतनी लम्बी १२ लोगों की जमात, जिसमे सभी उदयीमान हैं और सभी श्रेष्ठ हैं, किसे वोट दें किसे ना दें. एकाध तो पहचान का है उसे देना ही है, बाकि?? बड़ी परेशानी है.
पहला, दुसरा, तीसरा और..अनेकों मे अंतिम मात्र एक ही प्रश्न कि किसे और कैसे चुनें?? पूरा मैदान बस एक ही कौतुहल से गुंजायमान है- किसे और कैसे?? और फिर स्वामी समीरानन्द जी की जय हो, स्वामी जी हमें ज्ञान दो!! के नारे सुनाई दे रहे हैं.
स्वामी जी ने आँख बंद कर ली है और गहन सोच में डूबे हैं और धीरे से मुस्कराते हुये आँख खोलते हैं- और पहला ब्रह्म वाक्य:
"भक्तों, आप सबका सवाल और कौतुहल जायज है. बहुत मुश्किल है इन सभी श्रेष्ठों में श्रेष्ठतम का चुनाव करना. मगर जब मानव जीवन पाया है तो यह तो करना ही होगा. इसके बिना कोई गुजारा नहीं."
सारा मैदान फिर नारों से गुँज रहा है-स्वामी समीरानन्द जी की जय हो.
शिष्य गिरिराज हाथ उठाकर सभी से चुप रहने का संकेत कर रहे हैं. स्वामी जी मंद मंद मुस्करा रहे हैं. अब मंच के पीछे परदे के उस पार का टेबल लैंप भी जल गया है जो कि स्वामी समीरानन्द के सर के चारों ओर आभामंडल का निर्माण कर रहा है.
पुनः स्वामी समीरानन्द जी ने बोलने के लिये मुद्रा बना ली है. मैदान मे सुई पटक सन्नाटा छा गया है.(हिन्दी चिट्ठाकरों के लिये-सुई पटक सन्नाटा मतलब पिन ड्राप सायलेन्स, यह वैसी ही बात है जैसे हिन्दी फिल्मों में नायक नायिकाओं को डायलॉग रोमन में लिख कर दिये जाते हैं और आपेक्षित भाव निर्देशक अंग्रेजी में समझाता है)
स्वामी समीरानन्द बोलने की मुद्रा को बदलते हुये, अपने काबिल शिष्य गिरिराज की तरफ मुड़े और इशारे में कुछ आदेश दिया. शिष्य गिरिराज ने सहमति में सिर हिलाया और स्वामी जी का आदेश का पालन अपने शिष्यों के हवाले कर दिया. अब जब तक आदेश का पालन चल रहा है, तब तक शिष्य गिरिराज स्वामी समीरानन्द जी की अन्य सभाओं का स्लाईड शो लेपटाप और प्रोजेक्टर के माध्यम से परदे पर दिखा रहे हैं. स्वामी जी आँख बंद किये धीमे धीमे मुस्करा रहे हैं.
आदेश का पालन हो चुका है. शिष्य गिरिराज ने भी स्लाईड शो बंद कर दिया है. स्वामी जी ने आँखे खोल दी हैं. मंद मंद मुस्कान के बीच बोलने की मुद्रा स्पष्ट झलक रही है. मैदान मे पुनः सुई पटक सन्नाटा छा गया है.
स्वामी जी बोले, "भक्त चिठ्ठाकारों, अब आपको जो ग्यारह परचियां अभी अभी बांटी गई हैं, उन्हें हमारा प्रसाद मानें. आपका चिंतन देख मैं खुद भी चिंतित हो गया था. अब उसी के हल स्वरुप यह पर्चियां बांटी गई हैं. इनमें ग्यारह चिट्ठाकरों की अलग अलग परची है, उन्हें पुडिया बना लें, फिर उसमें से एक खींचें, जो नाम आये, उसे कास्य कलम पर लगा दें. अब वो पुडिया फेंक दें. फिर एक और पुडिया खींचें, और उसे रजत कलम पर जड़ दे"
एकाएक भक्त चिट्ठाकरों में हलचल मच गई है. स्वामी समीरानन्द की जय हो से सारा महौल गुंजाय मान है. भक्त चिट्ठाकरों की आंखे इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति से नम हैं. गले रौंधे हुये हैं.
एकाएक माईक पर तरकशी आयोजक संजय अपनी मधुर आवाज में घोषणा कर रहे हैं. लगा कि कोई गीत गाया जा रहा है. मगर वो कह रहे हैं कि जरुरी सूचना है जो कि उन तक भक्त चिट्ठाकरों के हुजूम ने पहुँचाई है. संजय कॉफी का मग हाथ में लिये बोल रहे हैं, "मित्रों, अप लोगों का उत्साह देखकर मन भर आया है. अभी अभी कई भक्त चिट्ठाकरों ने मुझ तक यह सूचना पहुंचाई है कि कनाडा के चिट्ठाकार समीर लाल 'उडन तश्तरी' का नाम इन पर्चियों में नहीं है. मै स्वामी समीरानन्द जी आग्रह करता हूँ कि वो इस भूल सुधार का मार्ग सुझायें."
इतना कह संजय बैठ गये हैं. निर्णायक मंडल के सदस्य एक दूसरे का चेहरा देख रहे हैं. पंकज अभी भी मैदान का चक्कर लगा रहे हैं. उनके सर में अभी भी दर्द है इसलिये अब वो पर्ची बनाने वाले दल को डांट रहे हैं.
स्वामी समीरानन्द जी मंद मंद मुस्कराये और बोले," कोई भी गल्ती ऐसी नहीं कि उसे सुधारा न जा सके." भक्त चिट्ठाकरों के सर श्रृद्धा से झुक गये हैं, वो स्वामी समीरानन्द का जयकारा लगा रहे हैं. शिष्य गिरिराज सभी को सांकेतिक भाषा में शांत रहने को कह रहे हैं.
स्वामी समीरानन्द आगे बोले, " अब जो गल्ती हो गई, हो गई. आप रजत और कास्य कलम पर तो वोट लगा ही चुके. अब आप सारी परचियां फेंक दें, और समीर लाल को स्वर्ण कलम के लिये वोट लगा दें. यही सच्चा प्रयाश्चित होगा और आपकी जीवन नैया को चिट्ठाजगत से पार लगवायेगा."
भक्त चिट्ठाकरों के सर पुनः श्रृद्धा से झुक गये हैं, वो स्वामी समीरानन्द का पुनः जयकारा लगा रहे हैं. निर्णायक मंडल के चहेरे पर खुशी लौट आई है. वो सब एक दूसरे से हाथ मिला रहे हैं. संजय भी अति प्रसन्न मुद्रा में स्वामी जी की दिव्य वाणी से प्रभावित हो स्वामी जी की तरफ ताक रहे हैं. पंकज एक कुर्सी पर बैठ गये हैं. उनके सिर का दर्द खत्म हो गया है. शिष्य गिरिराज लेपटप और प्रोजेक्टर नारंगी चादर में लपेट कर चलने की तैयारी कर रहे हैं. सब तरफ हर्ष का महौल है.
स्वामी समीरानन्द मंद मंद मुस्करा रहे हैं.
बुधवार, जनवरी 03, 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
19 टिप्पणियां:
गुरू समीरान्द जी की जय !!
बहुत हंसाया मालिक।
हंस हंस के पेट फूल गया । सच्च इतनी अच्छी पोस्ट पहले कभी नहीं देखी। वाह वाह !!! :D
वोट डालने जब मैं निकला हुई मुझे हैरानी
एक ओर स्वामीजी,दूजी ओर भाईजी नामी
एक लिये है लैपटाप तो एक सुरा की बोतल
आज मजे लो, अब चुनाव की बातें सोचेंगे कल
वोट डालने जब मैं निकला हुई मुझे हैरानी
एक ओर स्वामीजी,दूजी ओर भाईजी नामी
एक लिये है लैपटाप तो एक सुरा की बोतल
आज मजे लो, अब चुनाव की बातें सोचेंगे कल
स्वामी समीरानन्द की जय ! आपके आदेश का पालन होगा गुरुवर। :)
परम आदरणीय, प्रात:स्मरणीय, पूज्यनीय, वंदनीय, आनंद दायक, सुखदायक, मंगलकारी,भवभयहारी श्री श्री एक करोड़ एक लाख एक हज़ार एक सौ आठ श्री श्री स्वामी समीरानंद जी महाराज को सादर नमन.
आपकी ज्ञानवर्धक हितोपदेशों की शब्दावलि हमारे चक्षुओं में एक दिव्य रोशनी भर कर अन्तर्मन को झंझोड़ कर कहने लगी कि बेटा उठ. इस संसार में सब नश्वर है. कुछ भी अगर शाश्वत है तो केवल तरकश और तरकश पर मौजूद बारह अवतार.
फिर उस शब्दावलि ने शौनकादि अट्ठासी हज़ार ॠषिओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि बारह में से नौ तो केवल मायाभ्रम हैं. उनकी ओर ध्यान मत दे. केवल तीन ही तो हैं जो त्रिमूर्ति की तरह तीनों लोकों में विद्यमान है. और तीनों का उद्गम तो एक ही है. एक ही शक्ति है जो विभिन्न रूपों में समय की पुकार के अनुसार चिट्ठाजगत में अवतरित होती है. जान ले कि न कोई पहले था, न है और न रहेगा. जो कुछ है शून्य है और इस शून्य को पार कराने का एकमात्र साधन है उड़न तश्तरी.
फिर सूतवचन की परिपाटी में दिव्य वाणी ने ्कहा सुन पुत्र. मैं तेरे हित में एक रहस्य प्रकाशित करने जा रहा हूँ जो कि देवों को भी दुर्लभ है. दुर्गा सप्तशती में वर्णित प्रधानिक रहस्यों से भी रहस्यमय और अनगिनत तिलस्मों के परे बारह तालों में बन्द यह रहस्य मैं तुझ पर अतिशय प्रेम के कारण प्रकाशित कर रहा हूँ
( हे मुनिश्रेष्ठ ! क्योंकि साधारण चिट्ठाकार आपके गूढ़ उपदेश को समझ [पाने में अक्षम हैं इसलिये मैं आपके दिव्य सन्देश में लीन गुप्त सारों को जनहित में बता रहा हूँ )
सुन ! जैसे आद्यशक्ति केवल एक ही है वैसे ही २००६ का सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकार होने का अधिकार तो केवल उड़नतश्तरी को ही है. इसी पर सवार होकर गीता ज्ञान से लेकर कुंडली जागरण और टिप्पणी का सही मार्ग प्राप्त कर सकता है. हां अब आगे की समझ अपने आप तलाश कर और बेझिझक और बेहिचक तरकश पर जाकर उड़न्तशतरी के हिस्से में स्व्र्णतीर चला आ. रजत और कांस्य के भ्रम में न पड़. उन्हें चाहे जिधर उठा कर रख दे,व्र पहुंचेंगे तो मेरे ही स्वरूपों पर.
हे महात्मने. आपकी दिव्य वाणी के सन्देशों की व्याख्या के लिये संभावनायें तो बहुत हैं परन्तु गॄहस्थी के झंझटों में पड़ा यह जीव इस वक्त तो विदा ही ले रहा है इस आशा के साथ कि आप भविष्य में भी हमें अपने अभूतपूर्व उपदेशों से गौरवान्वित करेंगे.
जय श्री हरे\इ. जय उड़नतश्तरी. जय श्री स्वामी समीरानंद
वहां चाहे जितनी पर्चियां हों, कलम तो एक पर ही चलनी है वह है टोरोंटो से कोई चिट्ठाकार, जिसका नाम है समीरलाल। वह न केवल २००६ का, पर हिन्दी चिट्ठेकारों में सबसे श्रेष्ट है। जिसका गद्य और पद्य दोनो में कोई मुकाबला नहीं, उसका बात रखने का ढ़ंग अनूठा है। कड़वी से कड़वी बात इतनी सहजता और मिठास से रखता है कि कोई बुरा नहीं मान सकता। हर चिट्ठे पर पहुंच कर, प्रत्येक का मनोबल बढ़ाना जो बाखूबी से समझता है
समीरानन्द महाराज को सादर नमन,
न तो इस पोस्ट में, और न ही टिप्पणियों में स्माईली का प्रयोग किया गया है |
अर्थात समीरानन्द्जी विनोद के मूड में नहीं हैं |
तरकश के घाट पर लगी चिट्ठाकारों की भीड,
समीरानन्द प्रवचन करें दुश्मन का बल क्षीण |
दुश्मन का बल क्षीण के अब तो सभी मौज मनावें,
ईस्वामी दस्तक उन्मुक्त आईना सब मिल गाना गावें |
कहे नीरज कविराय के भैया धन्य भाग्य हमारे,
ग्यान बांटने भक्तजनों को समीरानन्दजी पधारे |
स्वामी जी, इतना लंबा प्रवचन देंगे तो गद्दी तो पक्की समझो.....हमने तो समीरानंद का जयकारा कब का लगा दिया था....धन्य कर दिया महाराज आज दर्शन देके भक्त को.....जय हो
गुरु स्वामी समीरानंद की जय ! गुरु स्वामी समीरानंद अमर रहे !३..बार
धन्य हो मुनिवर. सुबह सुबह खुब हँसाया. बहुत खुब. बहुत खुब. बहुत खुब.
समीर भाई,
चुनाव में तीन स्थान इसी लिए ऱखने पड़े क्योकि हर व्यक्ति जानता है कि प्रथम स्थान पर आपके इलावा कोई और हो ही नहीं सकता। कल्पना हो या यथार्थ, गद्य हो या पद्य आपकी कलम से निकले सुनहरी शब्दों की आभा में आपकी स्वर्ण कलम सदैव चमकती है। जब ईश्वर ने ही आपको इस नियामत से बक्शा है तो हम लोगों की क्या बिसात जो उसकी मंशा में टांग फंसाएं। रजत और कास्य के बीच झूलते हम शेष जन तो बस यह सोच कर हैरान परेशान है कि आप ने इतनी देर से सन् 2006 में ही लिखना शुरू क्यों किया
Guruji man prasan ho gaya, swarg ke anand prapt ho gaye.
Aap india aakar bhakto ka uddhar karein.
It is like apne ghar ka deepak/chirag giving roshni to neighbor house.(Ref: Swadesh movie)
boh't umda likhte haiN aap...
यूँ तो चुनाव परिणामों की घोषणा रविवार, 7 जनवरी को की जाएगी, परंतु आप स्वर्ण पदक विजेता, वर्ष 2006 के सबसे उदीयमान चिट्ठाकार के रूप में मेरी बधाई अग्रिम रूप से स्वीकार कर लें। पूरी उम्मीद है कि इस पुरस्कार का वैसा कोई विपरीत असर चिट्ठा जगत में आपकी सक्रियता पर नहीं होगा, जैसा कि पूर्व में कुछ पुरस्कार विजेता चिट्ठाकारों पर हुआ था। :-)
कमाल है बंधु, ब्लाग व्यंग्य की जमीन भी तैयार करता है, आपने इसे साबित किया है. मेरी खूब-खूब शुभकामनाएं
जीत की हार्दिक बधाई ! इसी तरह अपनी लेखनी चलाते रहिए , सफलता सदा आपके कदम चूमेंगी !
जगदीश भाई
बस हास्य विनोद ही उद्देश्य भी था इस पोस्ट का. आपने सफल कर दिया लिखना हँस करके. आपके स्नेह का आभारी हूँ.
राकेश भाई
आपकी टिप्पणी ने चार चाँद लगा दिये इस पोस्ट पर. गुप्त सारों को जनहित में बताकर आपने पूरे ब्लाग जगत को लाभांवित किया है. सब नतमस्तक हैं. बहुत बहुत आभार. बस यही स्नेह मिलता र्हे. लेखनी चलती रहेगी, यह वादा है. :)
पंडित जी
आप हमारे गुरुत्व को हमेशा ही धनी बनाते आये हैं, आपका स्नेह बनाये रखें.
उन्मुक्त जी
यह आपका बड़प्पन है, जो आप ऐसा सोचते हैं. आपकी तारीफ से मनोबल बढ़ता है, कृप्या यूँ हीं मनोबल बढ़ाते रहें, आभार.
नीरज भाई
अरे, आप तो बहुत बेहतरीन कुंडली रचते हैं, हमारी कुंड़ली की दुकान तो इसके आगे अब बंद ही समझो, जो आपने शुरु कर दी तो.. :)
बिल्कुल पूरे मूड में लिखी है, मगर प्रवचन के वक्त जरा हंसता कम हूँ, अब ले लो स्माईली :) :)
बहुत शुक्रिया.
तरुण भाई
आपने जयकारा लगाया तभी तय हो गया कि स्वर्ण कलम तो अब आ ही गया.
बहुत शुक्रिया और आगे भी जयकारा जारी रखें, बडा सिद्ध है, भाई.
आशीष भाई
आप तो चिट्ठे पर आ जाते हैं, वो यूँ ही अमर हो जाता है. इसी तरह आवागमन जारी रखें. बहुत शुक्रिया.
संजय भाई
बस उद्देश्य पूरा हुआ. कोशिश थी आप रात में हँसते हँसते सोयें मगर थोडी देर हो गई और आप कॉफी पीकर सो गये थे. चलिये सुबह ही सही. बहुत धन्यवाद हौसला अफजाई के लिये.
रत्ना जी
आपने तो जो कहा वो कर भी दिया और आप अपना मत भी हमें ही दे आईं, ऐसा लगता है. बहुत बहुत आभार. ऐसे ही स्नेह बनाये रखें. और अब ज्यादा परेशान न हों, धीरे धीरे यह लेखन शुरु करने की देरी समय के साथ ही पुरानी हो जायेगी. :) :) वैसे भी शायद इसीलिये मुनीर साहब का कलाम मुझे बहुत पसंद है:
"हमेशा देर कर देता हूँ मैं........."
बहुत शुक्रिया.
गुमनाम मित्र
आने को तो आज आ जायें, मगर जायेंगे कहाँ प्रवचन देने. कुछ नाम पता बता देते तो ठहरने और खाने की भी बंदोबस्ती हो जाती और मन निश्चिंत रहता इतनी लंबी यात्रा में. बहुत शुक्रिया निमंत्रण के लिये और पधारने के लिये. इंतजार लगवा दिया आपने.
indscribe भाईजान
बहुत शुक्रिया. हम तो आपकी गज़लों के चयन के शुरु से ही कायल हैं.
महावीर जी
अरे, आपका तो आशिर्वाद ही हमारी लेखनी को सफल बनाता है. आपका मेरे ब्लाग तक आना ही मेरे लिये सौभाग्य है. ऐसा ही आशीष देते रहें.
सृजन शिल्पी जी
आप तो अंतर्यामी हैं. सब पहले ही जान गये. वादा रहा, लेखन उसी उत्साह से जारी रहेगा. बस आप अपना आवागमन बनाये रखें और उत्साहवर्धन करते रहें.
अविनाश भाई
शुभकामओं के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
मनीष भाई
बहुत बहुत धन्यवाद, मनीष भाई. आदेश का पालन होगा. :)
एक टिप्पणी भेजें