शनिवार, सितंबर 30, 2017

अनुभव क्या कुछ नहीं सिखा जाता!!

वक्त कितनी तेजी से बदलता है और वक्त के साथ ही मान्यतायें और परिभाषायें भी बदलती जाती हैं.
कभी तमाम सरकारी दफ्तरों में जब बापू यानि गाँधी जी की तस्वीरें लगाई गई थीं तब उसके पीछे सोच यह रही होगी कि अधिकारी एवं नेता गाँधी की तस्वीर को रोज देखेंगे और उनसे सादा जीवन एवं उच्च विचार के प्रेरणा लेते हुए देश को सर्वोपरि मानकर राष्ट्र की सेवा करेंगे.
जिस तरह आजकल फेसबुक पर थम्स अप का निशान देखर लोग समझ जाते हैं कि सामने वाले नें उनके लिखे को लाईक किया है ठीक वैसे ही बदलते परिवेश में सरकारी दफ्तरों में टंगी गाँधी जी की तस्वीर देख कर समझ जाते हैं कि यहाँ घूस ली जाती है. सीधे सीधे लिख देना कि रिश्वत दो और काम कराओ उचित नहीं लगता अतः वर्षों से इसी तस्वीर के नीचे बैठकर घूस लेते लेते लोगों को ऐसा अभ्यास करा डाला कि तस्वीर देखो और समझ जाओ. मुहावरा भी तो है कि एक तस्वीर हजारों शब्दों से ज्यादा बोलती है.
अभ्यास से क्या नहीं सिखाया जा सकता. एक बच्चे को भी पंजा दिखाओ तो वह यह थोड़े न समझता है कि कांग्रेस के लिए वोट मांग रहे हैं. पंजा देखते ही सहम जाता है कि जरुर कोई गल्ति की होगी और अब चांटा पड़ने वाला है. मां बाप ने ऐसा अभ्यास जो करा दिया है.
गाँधी जी तस्वीर देखकर जब लोग अब अभ्यस्त हो गये कि यहाँ रिश्वत ली जाती है,  तब एकाएक किसी को ख्याल आया होगा कि लोग सौ और पचास के नोट में घूस लेकर आते हैं जो दिखने में तो ज्यादा मगर होने में कम होते हैं अतः गाँधी जी के तस्वीर के साथ ५०० रुपये का नोट लाया जाये. ५०० के नोट आने पर शुरावाती दौर में बाजार की हालत यूँ हो गई थी कि कोई ५०० के नोट को ५०० का कहता ही नहीं था. सौ सौ के नोट को पांच सौ के नोट में बदलवाने के लिए लोग पूछा करते थे कि गाँधी हैं? सामने वाला पूछता कि कितने चाहिये? अगला कहता की एक पेटी (एक लाख) दे दो.. दो गड्डी गाँधी जी सौ सौ के १०५० नोट में आ जाते ५ प्रतिशत कमीशन पर और अगला झोले में लेकर गये सौ के नोटों के बदले जेब में दो गड्डी गाँधी लेकर निकल जाता. ये वाले गाँधी छिपने छिपाने में जगह कम घेरते. दिखने में कम, कीमत में दम की कहावत को चरितार्थ करते सभी रिश्वतखोरों और कालाबाजारियों के चहेते बन गये.
चाहने वालों ने इनकी ताकत को पहचाना और इनको फिर १००० के नोट पर भी उतारा. गाँधी खूब चले. छिप छिप कर चले. अँधेरी तिजोरियों में चले.
ज्यादा पापुलरिटी से नजर लग जाती है ऐसा बताते हैं. न जाने किस कलमूहे की नजर लगी कि जिस धन पर गाँधी होते वो काला धन कहलाने लगा. गाँधी वाले १००० और ५०० के नोट अवैध्य घोषित हो गये. जिस किसी के पास हों वो साबित करे कि ये काले वाले गाँधी नहीं गोरा वाले हैं. मानो पूरे देश की जनता को चोर घोषित करके जेल में भर दो फिर जो जो साबित करता जाये कि मैं चोर नहीं हूँ उसको छोड़ते चलो. हालांकि जनता भी इतनी चतुर निकली कि सबने साबित कर लिया कि हम चोर नहीं हैं और सब बाहर निकल आयेजितने नोट गाँधी के नाम पर छिपे थे, सब निकल कर सरकारी खजाने में चले आये.
मगर गाँधी का मोह कौन त्याग सका है? नये गाँधी और अधिक सज धज के साथ आये गुलाबी रंग में नहाये हुए पहले से भी दुगनी शक्ति के साथ २००० के नोट पर...जैसे कि नया निरमा आ गया हो जिसमें नींबू हो मिला, सफेदी की चमकार पहले से ज्यादा सफेद..
साथ में १००० और ५०० वाले गाँधी भी वापस बाजार की शोभा बढ़ाने नई सज धज के साथ तैयार हैं.
बस इस बार एक नई हिदायत और है कि दूसरी तरफ गाँधी जी चश्मा भी अलग से रख दिया है यह बताने के लिए..कि ठोक बजा कर चश्मा लगा कर देख लेना..कहीं कोई नकली नोट न टिका जाये.
अनुभव क्या कुछ नहीं सिखा जाता.
-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अक्टूबर १, २०१७ के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/22560425

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बुधवार, सितंबर 27, 2017

अब सौंप दिया है जीवन का हर भार तुम्हारे हाथों में..




जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे पधारे सपत्निक भारत में. अहमदाबाद में उतरे अच्छा खासा सूट पहने और बस, हम खरीददार हैं..ग्राहक भगवान होता है यह हमारी संस्कृति है. अतः अपना सूट किनारे रखो और ग्राहक रूपी भगवान का आवरण धारण करो. बी रोमन इन रोम...शुरु हो लिया. इसीलिए अचकन कुर्ता पजामा पहने शिंजो आबे और सलवार सूट पहने उनकी पत्नी अवतरीत हुई आमजन के बीच. सेल्फी से लेकर पूरा फोटो सेशन कराया गया ताकि सनद रहे ओउर वक्त पर काम आवे.
सुना हम उनसे बुलेट ट्रेन खरीद रहे हैं..जो अहमदाबाद, देश की राजधानी, सॉरी देश के प्रधान मंत्री की राजधानी और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के बीच की ५०० किमी की दूरी २ घंटे में तय करेगी. बाकी की रेलें जो ५० किमी १२ घंटे में न तय कर पाने के अपराध बोध से ग्रसित ट्रेक से उतर कर आत्म हत्या करने पर उतारु हैं, उसी का अंजामे गुलिस्ता है उस पर सवार हजारों लोग मर जाते हैं और माननीय रेल मंत्री अपना पद खो देने को मजबूर हो जाते हैं. रेल मंत्री प्रभु, प्रभु न रहे..जो कभी एक ट्वीट पर मीलों दूर दवा और दूध देने हनुमान बने पहुँच जाते थे..हर दुख काहु का हरना...आज किनारे बैठा दिये गये और बिजली प्रदाता पियुष बिजली बन चमक रहे हैं रेल चलाने को..
शिंजो कुर्ता पायजामा पहने रोड़ शो का हिस्सा बना दिये गये हैं. एक जापान..जहाँ लंच का समय १ घंटे है तो है..उसे कोई १ घंटे १० मिनट नहीं करता...जिनको वर्कोह्लिक कहा जाता है याने जिन्हें काम करने का नशा है..वही तो उस देश के विकास का मॉडल है..उसे आप एक खुली कार में रोड शो करते गली गली ८ घंटे तक घुमा रहे हो कि यही वो बंदा है जो समय की कीमत समझता है विश्व में...हर मिनट का दाम जानता है..देख लो..इसी से हम बुलेट ट्रेन खरीद रहे हैं...ताकि समय की बचत की जा सके...
आमजन ऊँगली दांत तले दबाये सोच रहा है..कि अजब बंदा है..समय बचाने के गुर बताने के लिए इतनी समय की बर्बादी ...ये कोई बाबा तो नहीं! मोह माया त्यागने का प्रवचन देते हुए पूरी कोशिश यह कि मोह माया त्याग कर फेंकों मत..उसे मुझे सौंप दो ताकि मैं इस संदेश को प्रसार दे पाऊँ.
बाबा से पूछा तो बोले कि मेरी चमक दमक तो है ही तुमसे भाई..
याने अब सौंप दिया है जीवन का हर भार तुम्हारे हाथों में..तुम ठुकरा दो या प्यार करो!!
और भक्ति में निपुण हम अपना सर्वस्व लुटाये चले जाते हैं..


पल पल इंडिया अखबार में तारीख २७ सितम्बर २०१७ को:

http://palpalindia.com/2017/09/27/Art-culture-Prime-Minister-Shinzo-Ahmedabad-Sameer-Lal-have-now-handed-over-every-weight-of-life-in-your-hands-news-in-hindi-211273.html
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शनिवार, सितंबर 23, 2017

सब्र का बांध अभी टूटा नहीं है...


पिछले साल जब बिहार में शराब बंदी लागू की गई थी तब खबर आई थी कि जब्त की गई ९ लाख लीटर शराब जो पुलिस के माल खाने में रखी गई थी उसके निरक्षण हेतु जब बड़े अधिकारी निकले तो सारी बोतलें खाली मिली.
अव्वल तो थानों में जब्ति का सामान रखने की जगह का नाम ही ऐसा रखा गया है कि माल खाना नाम पढ़कर ही भूख लग आये. अच्छा भला आदमी तक न रोक पाये खुद को तब तो यह पुलिस वाले हैं जिनका खाना तो जग जाहिर है. जिस तरह से सच बोलने वाले नेता को नेता कौम अपने बीच से निकाल फेंकती है वैसे ही अखाऊ पुलिस वाले को लाईन अटैच कर दिया जाता है. कहावत है कि अच्छा खाने वाला खाकर डकारता नहीं है, सारा पचा जाता है. इसलिए अक्सर छोटी मोटी रिश्वत लेने वाला पटवारी १०० रुपये की रिश्वत लेता रंगे हाथ पकड़ा जाता है और नौकरी से हाथ धो बैठता है और मोटी रकम दबाने वाला बंदा ऐश काट रहा होता है.
दरअसल मोटी रकम खाने वाले को एक सुविधा यह भी रहती है कि अगर पकड़े गये तो खिला पिला कर मामला रफा दफा करने के लिए रकम हाथ में रहती है. अतः कारण बता दिया गया कि माल खाने से गायब शराब चूहे पी गये. जांच अधिकारी भी मान गये कि चूहे पी गये होंगे पक्का. एक अधिकारी ने नाम न बताये जाने की शर्त पर बताया कि यह चूहों की वही बाहुबली गैंग है जिसने एक बार फूड कार्पोरेशन का पूरा अनाज खा लिया था और एक बार कागज के वोटों के जमाने में विपक्षी नेता को पड़े वोट को चुन चुन कर कुतर डाला था और सरकार बनवाने में मदद की थी. इतनी पहुँच वाले चूहों पर भला कौन हाथ डाल सकता है अतः एक दलित चूहों के गुट के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें तड़ीपार जिलाबदर की सजा सुनाई गई.
फिर करोड़ों का चूहा मार पाऊडर नियमितमाल खानेके चारों तरफ छिड़का जाना तय पाया गया ताकि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो. छिड़काव जारी रहा नियमित और हवा का चलना भी, जो उसे नियमित अपने साथ उड़ा कर ले जाती है. ’माल खाना’ इस मामले में भी अपने नाम की लाज रखे हुए है.
एकाएक खबर आई कि बिहार में ३८९ करोड़ का बांध उदघाटन तक भी बंधा न रह पाया और उसके पहले ही बह निकला. मुख्यमंत्री अभी उदघाटन हेतु नहा धो कर निकलने को ही थे कि बांध को गंगा जी बहा निकली और न जाने कितनों को नहला गईं.
मामला गंभीर था. अतः जबाबदेही तय करना भी जरुरी था. कोई बोरवेल तो है नहीं कि बता दिया -अरे यहीं तो खोदी थी..अब दिख नहीं रही..शायद शरारती बच्चों ने खेलते हुए वापस पूर दी होगी और न ही राजीव गाँधी वाटर शेड़िंग मिशन है कि पानी पहाड़ से आया था..संग्रहित हुआ था..जमीन में चला गया था..सूरज निकला था..पानी आदतानुसार वाष्प बन कर उड़ गया था. करोंड़ो स्वाहा हो गये थे.
अतः जबाबदेही तय की गई. पुनः नाम न बताने के शर्त पर मिली जानकारी में वही बाहुबली चूहा गैंग जिम्मेदार पाई गई मगर समरथ को नहीं दोष गुसांई..अतः फंसा फिर वही दलित चूहों का गुट जिन्हें तड़ी पार कर दिया गया था.
रिपोर्ट में बताया गया कि जब इस चूहा गुट ने शराब पी थी तो नीट पी गये थे. पानी की व्यवस्था तो थाने पर थी नहीं और उस पर से दलित..फिर बिहार का गांव.. जलाशय पर लतिया दिये जाते अतः नीट पीने के बाद जब सजायाफ्ता जिलाबदर दलित चूहों का गुट गंगा जी किनारे जाकर बस गया तब लोगों ने समझा कि प्रयाश्चित के तौर पर शायद जीवन का बाकी समय गंगा के पवित्र सानिध्य में आकर गुजार देने हेतु बस गये हैं मगर दरअसल गंगा किनारे बसने का हेतु यह था कि अब पी गई शराब को पानी पी कर बैलेंस किया जाये. बहुतेरे साधु ऐसे ही दुश्कर्मों को बैलेंस करने गंगा के किनारे धूनी रमाये हैं.
ये चूहे जब गंगा किनारे बसे हैं तो रहवास की व्यवस्था भी करनी ही है. एकाएक गंगा जी पर बांध बँधने लगा..सीमेंट के खंभे और दीवारें खड़ी होने लगे और चूहे उन्हें खोद खोद कर बिल बना बना कर अपनी रहवास योजना को अंजाम देने लगे. मजबूत को पोला बनाना चूहों का स्वभाव है. चूहे और नेताओं का यह स्वभाव ही उन्हें एक दूसरे के इतना करीब लाता है. करीबी का अंजाम देखें कि नेताओं के जाने कितने इल्जाम चूहे अपने सिर पर उठाये बदनाम हुए हैं.  मजबूत बांध की नींव को बनते बनते ही यह चूहे पोला करते चले गये और बांध उदघाटन के पहले ही धाराशाही हो गया..
रिपोर्ट जारी हो गई है. दलित चूहों के गुट को आईएसआईएस का प्रशिक्षित आतंकवादी गुट घोषित कर देश से बाहर निकालने के आदेश जारी हो रहे हैं..वे पड़ोसी देश में भेज दिये जायेंगे..
तेरा तुझको अर्पण की तर्ज पर...
आम जनता सारा खेल समझ रही है मगर उसका सब्र का बांध अभी टूटा नहीं है...

-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के रविवार २४ सितम्बर, २०१७ में: 
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गुरुवार, सितंबर 21, 2017

अपराधबोध से मुक्ति दिलाने ’कानूनी मान्यता’

मंत्री बनने के बाद सामाजिक व्यवस्था एवं उसके प्रभावविषय पर संगोष्ठी में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने कनाडा का दौरा किया.
आख्यान सुन कर पता चला कि समाज में कोई अपराध भावना से न ग्रसित हो इस हेतु कुछ बरस पहले सरकार ने राजमार्गों पर स्पीड लिमिट को १०० से बढ़ाकर १२० किमी प्रति घंटा करने का प्रस्ताव रखा. सरकार ने अपने सर्वेक्षण से जाना था कि ९० प्रतिशत लोग १२० पर गाड़ी चलाते हैं और पुलिस भी उस सीमा तक उनको नजर अंदाज कर जुर्माना नहीं लगाती. आम जन के बीच जब यह प्रस्ताव आया तो आमजन ने इसे नहीं स्वीकारा. उनका मानना था कि अगर स्पीड लिमिट बढ़ा कर १२० कर दी गई तो लोग १४० पर गाड़ी चलाने लगेंगे और यह पूरे समाज के लिए घातक सिद्ध होगा. सरकार ने समझा और स्पीड लिमिट यथावत १०० किमी प्रति घंटा जारी रखी.
दूसरे आख्यान में बताया कि लोग पार्क और पब्लिक प्लेस में बीयर पीते हैं जो कि गैर कानूनी है मगर लोग कोक की बोतल, चाय के गिलास आदि में फिर भी पीते ही हैं. पिकनिक मनाने निकले हैं अतः थोड़ा बहुत एन्जॉय करेंगे ही. सरकार ने अहसासा कि लोग आखिर पी रहे ही हैं मगर अपराध भाव से ग्रसित छिप छिपा कर अतः तय हुआ कि एक सीमा रेखा तक इसे कानूनी कर दिया जाये. लोग भी तैयार हो गये और अब तैयारी है पार्कों में सरकारी ट्रक से एक सीमित मात्रा में बीयर खरीद कर पीने को कानूनी मान्यता देने की.
ऐसे ही आख्यान सुनते सुनाते मंत्री जी ज्ञान चक्षु खुल गये. कनाडा आने का हेतु भी यही था.
भारत लौट कर उनके दिमाग में एक नुस्खा घूम रहा था कि एक बहुत बड़ा वर्ग जिसमें नेता से लेकर सरकारी अधिकारी सभी शामिल हैं, उन्हें घूसखोरी और भ्रष्टाचार जैसे अपराधबोध से कैसे मुक्त कराया जाये? भ्रष्टाचार से मुक्ति हो नहीं पा रही तो अपराध बोध से ही मुक्ति का कोई मार्ग खोजा जाये.
विदेश से सीखी सीख विशेष मायने रखती है. कमेटी बना दी गई है कि कैसे घूस शब्द को ही शब्दकोश से अलग कर दान में परिणत किया जाये एवं कार्यों एवं सेवा के आधार पर पाँच परसेन्ट दान सुनिश्चित किया जाये ताकि उतना दान लेना कानूनी रुप से मान्य कहलाये.
देने वाला भी दान दे कर धन्य और पाने वाला तो यूँ भी खुद को भगवान माने बैठा ही था मगर अब इत्मिनान से दान स्वीकार कर अपना आशीष प्रदान करेगा.
-समीर लाल समीर
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के शुक्रवार २२ सितम्बर, २०१७ में:


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