मंगलवार, नवंबर 29, 2016

अहम ब्रह्मा!!

इतनी अफरा तरफी, हाहाकार, परेशानियाँ, व्यापार का अरबों का नुकसान, थमा सहमा कतारों में खड़ा भारत, पेटीएम का फायदा, पहले से बंद भारत को ही फिर और बंद करने की विपक्षियों की जुगत, भक्तों की भक्ति की परीक्षा (सब अव्वल नम्बर से पास कहलाये), अभक्तों की साफ साफ पहचान (कुछ जो सरेन्डर हो गये वो ग्रेस मार्क से पास माने गये, बाकी के सब फेल और स्पेशल केस में नीतिश गुड सैकेण्ड क्लास से पास घोषित).

संभाले नहीं संभलते हालात, नित बदलते नियम, अदूरदर्शिता और अहम ब्रह्मा की खुले आम नुमाईश, हड़बड़ी में लिए गये सभी स्वमेव फैसले, मगरमच्छीय आँसूं और हड़बड़ाहट में छपते नकली जैसे असली और असली जैसे नकली नोट और अंततः एक समझौता..सभी मित्रों और दलों के साथ...सब खुश हो जाओ..हम सब एक ही जमात के हैं फिर आपस में कैसा मनमुटाव. 

एक आम प्रोजेक्ट का नियम..ये प्रोजेक्ट मेरा है जब तक सब बढ़िया चल रहा है...और मेरा ही रहेगा अगर सफल हो गया तो....जैसे ही फेल होने लगो तो पूरी टीम को शामिल कर लो..कि ये प्रोजेक्ट सबका है..तीम एफर्ट से ही प्रोजेक्ट चलता है जैसा ज्ञान बांटने लगो, फिर फेल हो तो फेल..पास हो तो पास...मेरा क्या?


पूरा निचोड़:

१००० और ५०० के पुराने नोट बंद करके उसके बदले नये ५०० और २००० के नोट आ गये हैं. आपके पास अगर कालाधन है, जिस पर महिलाओं को रुपये २५०००० तक की छूट है तो उसे बैंक में जमा कर उस पर ५०% आयकर अदा कर दें तो बाकी का एकदम सफेद हो जायेगा. बाकी लोग पुराने बंद नोट अपने खाते में जमा कर दें और नये नोट में परिवर्तित कर लें.

इसमें बस एक लाईन और जोड देते कि पुराने ५०० और १००० के नोट ३१ दिसम्बर के बाद मान्य नहीं होंगे तो सारा टंटा ही खत्म हो जाता.

अब उस ५०% से गरीब कल्याण योजना चलाओ या बजट में से गरीब कल्याण योजना के लिए आवंटन घोषित करो, जो इसी टैक्स की रेवन्यू से घोषित होता है, क्या फरक पड़ता है? मगर दिल बहलाने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है. गरीब को भी अच्छा लगेगा और जो उन योजनाओं का संचालन करेगा, उसे भी. लुटेरे का धन था तो उसे लूट लेने में ग्लानी कैसी?

इतनी सी बात और ढोल मजीरा सारे जहाँ का.

और सीना तना रहे इस हेतु:

देखो, एक और आखिरी मौका दे दिया है उस ८ नवम्बर के आखिरी मौके के बाद. संभल जाओ वरना बाद में मैनें पकड़ा न तो छोडूँगा नहीं..८५% ले लूँगा?

अरे महाराज, जो काला है जो चोरी से छिपा कर रखा गया है और जिसे आप पकड़ रहे हैं, उसमें से १५% किस बात के लिए छोड़ रहे हैं??

काला धन छिपा कर रखने के लिए जो जगह लगी उसका किराया तो बनता है न जी..इसलिये!

बस, अंत में गालिब की जुबां:

थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ

-अब इन्तजार अगले तमाशे का!!


-समीर लाल ’समीर’
Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, नवंबर 27, 2016

वक्त के साथ हर सोच बदल जाती है...

मेरी एक गज़ल का शेर है:

कैसे जीना है किसी को ये बताना कैसा,
वक्त के साथ हर सोच बदल जाती है...
..जाने क्या बात है जो तुमसे बदल जाती है...

वाकई इन १५ दिनों के भीतर पूरी की पूरी सोच ही बदल गई. शब्दों और मुहावरों के मायने बदल गये हैं..जहाँ एक ओर लोग विमुद्रीकरण जैसे किलिष्ट शब्द का अर्थ समझ गये.. वहीं इसे एक नया ’नोटबंदी’ जैसा नाम मिला..मानों कि काले धन की बढ़ती आबादी को रोकने हेतु नोटों की नसबन्दी कर दी गई हो.

एक समय था जब कभी किसी के घर से एकाएक दहाड़ मार कर रोने की आवाज आती थी तो पूरा मोहल्ला जान जाता था कि कोई गमी हो गई है. सब इक्कठा होकर उनके गम में शरीक होते...ढ़ाढ़स बँधाते.. अब जब ऐसी आवाज आती है तो पूरे मोहल्ले में खुसपुसाहट के खिल्ली उड़ाने लगती है कि हम तो पहले से जानते थे कि खूब धन गड़ाये है घर में..लो मिट्टी हो गया..अब रोने के सिवाय कर भी क्या सकते हो!!

तब लोग सूटकेस, टिफिन और पानी की बोतल लेकर लम्बी यात्रा और देशाटन पर जाया करते थे- सब उन्हें शुभ यात्रा कह कर विदा करते. आज उसे ही, बैंक की लाईन में लगने जा रहा होगा, कह कर लोग अपनी चटकारी बातों का पात्र बना रहे है.

पहले बच्चे घर में इसलिए पिटा करते थे कि स्कूल नहीं गये..पिता का नाम डुबो कर मानेंगे और आज इसलिए पिट रहे हैं कि निक्कमें हैं स्कूल चले गये. इतना भी नहीं कि बैंक की लाईन में खड़े होकर पिता जी नोट बदलने में साहयता कर दें.

पहले बीबी जेब से पैसा निकाल कर बुरे वक्त के लिए बचा कर छिपाकर रखती थी और आम दिनों में पूछो तो कहती थी कि मेरे पास रुपया कहाँ से आयेगा..बैंक से निकालो और वही बीबी आज उसी छिपाये चरौंधे में निकाल कर रुपया लाकर दे रही है और पूछ रही है खाते में जमा तो हो जायेगा न?

कभी जिस बैंक से आये रिप्रेजेन्टेटिव को दूर से आता देखकर हम एकदम हकबका जाते थे कि ओह!! फिर आ गया..डिपाजिट मांगेगा और बच्चों से कहलवा देते थे कि बोल दो, पापा घर पर नहीं है ..आज उसी रिप्रेजेन्टेटिव को  हमारी कातर निगाहें चहु ओर खोज रही हैं कि दिख बस जाये तो नोट डिपाजिट करवा दें.

सबसे बड़ा बदलाव जो मुझे दिखाई पड़ रहा है वो इस बात में कि जब कहीं से ये फुसफुसाहट सुनाई देती थी कि ठिकाने लगा आये.. तो सीधे दिमाग में कौंधता था कि जरुर किसी लाश को ठिकाने लगा कर आया है बंदा..आज लाश की जगह १००० और ५०० के अमान्य नोट विराजमान हो गये हैं...उन्हें ही ठिकाने लगा कर आदमी ऐसी चैन की सांस भरता है मानो लाश ठिकाने लगा अया हो.. हालांकि लाश ठिकाने लगा आनें में भी कम ही चांस था कि पुलिस से बच पाते और वही हाल अब इन्कम टैक्स वालों से इस नोट ठिकाने लगा आने में है मगर तात्कालिक सुकून तो मिल ही जाता है..मानो कि आज रात इसबगोल खाकर सो जाये तो जीवन भर के लिए कब्जियत से निजात मिल जायेगी...यह तय है कि कल कब्जियत से आराम तो लगेगा मगर जो कल इसबगोल नहीं खाया तो परसों फिर वही हाल...

देखना अब यह है कि इस बड़े बदलाव से जिसने बातों के मायने बदल डाले...वो और क्या क्या बदलता है और कब तक के लिए...

कहीं परसों से फिर से काले धन का कब्ज देश के पेट में मरोड़ न देने लगे....

-समीर लाल ’समीर’

भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के २७ नवम्बर, २०१६ के अंक में


  
Indli - Hindi News, Blogs, Links

शनिवार, नवंबर 26, 2016

मेरा नया उपन्यास...

बहुत दिनों से परेशान था कि आखिर अपना नया उपन्यास किस विषय पर लिखूँ और उसको कौन सा फड़फड़ाता हुआ शीर्षक दूँ.

उपन्यास लिखने वाले दो तरह के होते हैं, एक तो वो जो विषय का चुनाव कर के पूरा उपन्यास लिख मारते हैं और फिर उसे शीर्षक देते हैं और दूसरे वो जो पहले शीर्षक चुन लेते हैं और फिर उस शीर्षक के इर्द गिर्द कहानी और विषय बुनते हुए उपन्यास लिख लेते हैं.

लुगदी साहित्य, वो उपन्यास जो आप बस एवं रेल्वे स्टेशन पर धड्ड़ले से बिकता दिखते है, से जुड़े उपन्यासकार अक्सर ऐसा फड़कता हुआ शीर्षक पहले चुनते हैं जो बस और रेल में बैठे यात्री को दूर से ही आकर्षित कर ले और वो बिना उस उपन्यास को पलटाये उसे खरीद कर अपनी यात्रा का समय उसे पढ़ते हुए इत्मेनान से काट ले.

इन उपन्यासों की उम्र भी बस उस यात्रा तक ही सीमित रहती है, कोई उन्हें अपनी लायब्रेरी का हिस्सा नहीं बनाता. न तो उनका नया संस्करण आता है और न ही वो दोबारा बाजार में बिकने आती हैं. मेरठ में बैठा प्रकाशक नित ऐसा नया उपन्यास बाजार में उतारता हैं. इनके शीर्षक की बानगी देखिये – विधवा का सुहाग, मुजरिम हसीना, किराये की कोख, साधु और शैतान, पटरी पर रोमांस, रैनसम में जाली नोट.. आदि..उद्देश्य मात्र रोमांच और कौतुक पैदा करना..

दूसरी ओर ऐसे उपन्यासकार हैं जिन्हें जितनी बार भी पढ़ो, हर बार एक नया मायने, एक नई सीख...पूरा विषय पूर्णतः गंभीर...समझने योग्य.पीढी दर पीढी पढ़े जा रहे हैं. शीर्षक उतना महत्वपूर्ण नहीं जितनी की विषयवस्तु. ये आपकी लायब्रेरी का हिस्सा बनते हैं. आजीवन आपके साथ चलते हैं. प्रेमचन्द कब पुराने हुए भला और हर लायब्रेरी का हिस्सा बने रहे हैं और बने रहेंगे..शीर्षक देखो तो एकदम नीरस...गबन, गोदान, निर्मला...भला ये शीर्षक किसे आकर्षित करते...मगर किसी भी नये उपन्यास से ऊपर आज भी अपनी महत्ता बनाये हैं...

हम जैसे लोधड़ और नौसीखिया उपन्यासकार, अगर उपन्यासकार कहे जा सकें तो, इन दोनों श्रेणियों के बीच हमेशा टहलते रहते हैं कि कहीं से भी किसी भी तरह दाल गल जाये और एक उपन्यास निकल जाये.

हालांकि ऐसा नहीं है कि पहले उपन्यास लिखा नहीं..एक लिखा है मगर हाय रे किस्मत, वो बिना नया उपन्यास आये ही पुराना हो चला है. अब उसका कोई जिक्र भी नहीं करता. ५ साल भी तो गुजर गये उसको आये और आकर भुलाये. कौन पाँच साल पुरानी बात याद रखता है भला. वरना तो पिछले चुनाव में किये वादे नेताओं को कभी अगला चुनाव जीतने न देते.

इसी विषय और/ या शीर्षक की तलाश में जब हम भटक रहे थे कि तभी किसी ने कहा- अमां, नये नोट पुराने नोट का आजकल बाजर मे बड़ा चर्चा है, उस पर ही कुछ लिख डालो. नये लेखकों की चुटकी लेने वालों की कमी कभी नहीं होती, भले ही पाठकों का आभाव बना रहे.

सुझावदाता ने तो शायद चुटकी ली होगी मगर हम न जाने किस गुमान में उसे अपना प्रशंसक माने गंभीरता से इस विषय पर पिछले तीन चार दिन से इसी विचार में डूबे में संजिदा से दिखने लगे और तरह तरह से सोचते हुए कि नये नोट, पुराने नोट, काला धन, चुनाव, तिजोरी, तहखाना, व्यापारिक मित्रता, काला धन, कुटिलता, टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार..आदि आदि किन किन विषयों से गुजरते हुए...आज इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि चलो, एक फड़कता हुआ शीर्षक तो मिल ही गया..अब कहानी बुनेंगे..

और शीर्षक जो दिमाग में आया है वो है..

’तहखाने वाली तिजोरी के नये मालिक’

-अब इसके आसपास कहानी बुनना है..आप भी सोचें..

ये मालिक क्या २००० का नया गुलाबी नोट है या दो साल पहले आये नये साहेब जी या उनके खास खास मित्र....
अब ये तो उस सस्पेन्स भरे उपन्यास के पूरा होने पर ही खुलासा होगा..

तब तक आप अनुमान लगाये ...कौन नया और कौन पुराना!!

नये नोट और पुराने नोट का सिलसिला तो अनवरत है..बस, वजह अलग अलग है!!!




-समीर लाल ’समीर’
#जुगलबन्दी #व्यंग्य
Indli - Hindi News, Blogs, Links

बुधवार, नवंबर 23, 2016

हम भ्रष्टन के..भ्रष्ट हमारे: गीता सार

एक नया प्रयोग..गीता सार...आज के समय के लिए..


क्यूँ व्यर्थ परेशान होते हो, किससे व्यर्थ डरते हो
कौन तुम्हारा भ्रष्टाचार बंद करा सकता है...
भ्रष्टाचार न तो बंद किया जा सकता है
और न ही कभी बंद होगा. बस, स्वरुप बदल जाता है
(पहले १००० और ५०० में लेते थे, अब २००० हजार में ले लेना)

कल घूस नहीं मिली थी, बुरा हुआ.
आज भी कम मिली, बुरा हो रहा है.
कल भी शायद न ही मिले, वो भी बुरा होगा.
नोटबंदी और नोट बदली का दौर चल रहा है...
तनिक धीरज धरो...हे पार्थ,
वो कह रहे हैं न, बस पचास दिन मेरा साथ दो..दे दो!!
फिर उतनी ही जगह में डबल भर लेना.
१००० की जगह २००० का रखना.
           
इस धरा पर कुछ भी तो शाश्वत नहीं..आज यह सरकार है..
हम भ्रष्टन के..भ्रष्ट हमारे....का मंत्र कभी खाली नहीं जाता;;
अतः कल कोई और सरकार होगी..

वैसे भी तुम्हारा क्या गया, कोई मेहनत का पैसा तो था नहीं, जो तुम रो रहे हो...
माना कि इतने दिन छिपाये रखने की रिस्क ली मगर उसके बदले ऐश भी तो की, काहे दुखी होते हो.
(सोचो, छापा पड़ने के पहले ही सब साफ सफाई हो गई वरना क्या करते? इसी बात का उत्सव मनाओ..
अगर छापा पड़ जाता तो नौकरी से भी हाथ धो बैठते )

तुम्हें जो कुछ मिला, यहीं से मिला
जो कुछ भी आगे मिलना है, वो भी यहीं से मिलेगा.

पाजिटिव सोचो..आज नौकरी बची हुई है
वो कल भी बची ही रहेगी..
सब ठेकेदार आज भी हैं
वो सब के सब कल भी रहेंगे..
शायद चेहरे बदल जाये बस..
साधन खत्म नहीं किये हैं..बस, नोट खत्म किये हैं..
इन्तजार करो, नये छप रहे हैं..
साधन बने रहें तो नोट कल फिर छपकर तुम्हारे पास ही आयेंगे..

लेन देन एक व्यवहार है..और व्यवहार भी भला कभी बदलता है..
.
आज तुम अधिकारी हो, तुम ले लो.. कल कोई और होगा..वो ले लेगा और परसों कोई और.
कल तुम अधिकारी नहीं रहोगे
परसों तुम खुद भी नहीं रहोगे
यह जीवन पानी केरा बुदबुदा है...
और तुम इसे अमर मान बैठे हो और इसीलिए खुश हो मगन हो रहे हो.

बस यही खुशी तुम्हारे टेंशन का कारण है.
बस इसलिए तुम इतना दुखी हो...

कुछ नहीं बदलेगा..आज ये फरमान जारी हुआ है..कल नया कुछ होगा.
जिसे तुम बदलाव समझ रहे हो, वह मात्र तुमको तुम्हारी औकात बताने का तरीका है.
और खुद को खुदा साबित करने की जुगत...
आँख खोलो..जिसे तुम अपना मानते रहे और हर हर करते रहे- वो भी तुम्हारा नहीं निकला.

जीवन में हर चोट एक सीख देती है..
यही जीवन का सार है...

जो इन चोटों से नहीं सीखा..
उसका सारा जीवन बेकार है...
तो हे पार्थ ..आज इस चोट से सीखो...

अब तुम अपने घूस के रुपये को सोने को समर्पित करते चलो..
कागज को कागज और सोने को सोना समझो..

यही इस जीवन का एक मात्र सर्वसिद्ध नियम है..
अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अपने सीए से भी शेयर करो
वह तुम जैसों के लिए धरती पर प्रभु का अवतार है..
प्रभु को दान देने से जीवन धन्य होता है..
उसकी शरण में जाओ..
वही तुम्हारी जीवन नैय्या पार लगवायेगा..

और जो मनुष्य इस नियम को जानता है
वो इस नोटबंदी और काला धन को ठिकाने लगाने की टेंशन से सर्वदा मुक्त है.
ॐ शांति...


-स्वामी समीर लाल 'समीर'

फोटो: गुगल साभार
Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, नवंबर 20, 2016

मशीन की व्यथा कथा:


इस दुनिया में बहुत सारे ऐसे काम होते हैं जो कितनी भी अच्छी तरह से सम्पन्न किये जायें वो थैन्कलेस ही होते हैं. उनकी किस्मत में कभी यशगान नहीं होता.
ऐसा ही हाल एटीएम का भी है.
कई बार तो एटीएम की हालत देखकर लगता है कि जिस तरह से मौत को यह वरदान प्राप्त है कि उस पर कभी कोई दोष नहीं आयेगा..दोषी कभी एक्सीडॆन्ट, कभी बीमारी तो कभी वक्त का खत्म हो जाना ही कहलायेगा जिसकी वजह से मौत आई...वैसे ही एटीएम को यह शाप मिला होगा कि चाहे गल्ती किसी की भी हो- बिजली चली जाये, नोट खत्म हो जायें, चूहा तार कुतर जाये..दोष एटीएम पर ही मढ़ा जायेगा.
नोट निकालने वाला हमेशा यही कहेगा..धत्त तेरी की...ये एटीएम भी न..चलता ही नहीं.
भले ही नोट निकालने वाला अपना पिन नम्बर गलत डाल रहा है और जब एटीएम अपने कर्तव्यपरायणता का परिचय देते हुए कार्डधारक को बताता है कि पिन मैच नहीं कर रहा...तो बजाये दिमाग पर जोर डाल कर सही पिन याद करने के, कार्डधारक उसी गलत पिन को पुनः ज्यादा जोर जोर से बटन पर ऊँगली मार मार के डालता है मानो एटीएम ने समझने में गल्ती कर दी हो...अब एटीएम करे भी तो क्या करे...गलत पिन पर पैसा दे दे तो लात खाये और न दे तो ...
अंततः जब अनेक गलत पिन झेल लेने के बाद, यह सोचकर कि कोई जेबकतरा तो तुम्हारा कार्ड उड़ाकर तुम्हारे पैसे निकालने की कोशिश तो नहीं कर रहा है, एटीएम बंदे का कार्ड जब्त करके उसे बैंक की शाखा से संपर्क करने को कहता है तो बंदा क्रोधित होकर एटीएम में फंसा कार्ड निकालने के लिए एटीएम को ऐसा पीटता और झकझोरता है मानों एटीएम डर के कहेगा- सॉरी सर, गल्ती से आपका कार्ड जब्त कर लिया था..ये लो आपका कार्ड और साथ में ये रहे आपके पैसे जो आप निकालने की कोशिश कर रहे थे और हाँ, ये १००० रुपये अलग रखिये बतौर मुआवजा क्यूँकि आपको मेरी वजह से इतनी तकलीफ हुई..
इतना तो समझो कि इस बेचारे एटीएम का क्या कसूर? तुम्हारी सुविधा और तुम्हारे धन की सुरक्षा के लिए ही तो ये सब उपाय किये हैं और तुम हो कि इसे पीट रहे हो.. इसे पूर्व जन्म में किसी पाप की एवज में शाप का परिणाम नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
हद तो तब हो गई जब हाल ही में एक एटीएम मशीन, जिस पर आऊट ऑफ आर्डर लिखा था, को एक बुजुर्ग से कुछ यूँ डाँट खाते देखा..कि पहले बैंक जाते थे तो बाबू मटरगश्ती करके हैरान करते थे, कभी चाय पीने गये हैं..कभी पान खाने..और अब मशीन का जमाना हुआ तो सोचा तुम विदेश से आये हो तो मुश्तैदी से काम करोगे मगर बस, चार दिन ठीकठाक से काम किया और अब तुमको भी वही हवा लग गई? हें..काम धाम करना नहीं और जब देखो तब ’आऊट ऑफ आर्डर’...अरे, और कुछ नहीं तो बड़े बुढ़ों का तो सम्मान करो.
मैंने मशीन पर नजर डाली तो ऐसा लगा मानो सर झुकाये बस अब सिसक कर बोलने को ही है कि हे मान्यवर, मैं तो आज भी आपकी सेवा करने को तत्पर हूँ मगर मैं नोट छापता नहीं, बस नोट बाँटता हूँ..पहले बैक मुझमें नोट तो डाले तब तो मैं आपको नोट दूँ...और सरकार है कि बड़े साईज के ऐसे नोट छाप लाई है कि बैंक चाह कर भी मुझमें नोट नहीं डाल पा रहा है...
अब किसकी गल्ती गिनायें..जब से आया हूँ, सभी बैंको को कतारमुक्त कराया. आपका धन आपके मुहल्ले के  नुक्कड़ पर खड़े हो कर २४x७ हर मौसम में आपको उपलब्ध कराया, तब किसी ने भी धन्यवाद न कहा और आज एक संकट काल से गुजर रहा हूँ तो पुनः वही दोषारोपण कि गल्ती मेरी है.
खैर, आप मुझे ही डाँट लिजिये..चाहे तो एकाध तमाचा भी जड़ दें..कम से कम आपका मन तो शान्त हो जायेगा..

-समीर लाल ’समीर’
Indli - Hindi News, Blogs, Links

गुरुवार, नवंबर 17, 2016

हम सोच रहे हैं क्यूँकि हम तकलीफ में नहीं..



साहेब के हाथ बहुत कड़क और मजबूत हैं..
एक बार मिला लो तो कई दिनों तक दुखते हैं..

ऐसे ही शिव सेना के बारे में सोचकर ख्याल आया...अब मिलाया है तो दुखना भी झेलो..
वैसे ही नई नीति को देख एक ख्याल और भी आया..

क्यूँ न अपनी ही बीबी से एक बार और शादी कर ली जाये घर में ही सादे समोरह में..और बैंक से २,५०,००० रुपये निकाल लायें..वरना तो कोई और रास्ता भी नहीं दिखता है ये ५० दिन काटने का..स्याही लगे हाथों ने इतनी तो औकात बनवा ही दी है कि एक सादा सा शादी का कार्ड छपवा लिया जाये...

एल सी डी स्क्रीन वाला कार्ड तो उन राजनेताओं को ही मुबारक हो जो बेशर्मी से ऐसे विपरीत वक्त में, ५०० करोड़ की शादी की नुमाईश लगा कर बैठे हैं और उनके साथी धन्ना सेठ उन्हें नवैद में लिफाफानशीं असली २००० रुपये की गड्डियाँ भेंट कर रहे हैं.., जब देश की ९८% जनता बैंको की कतारों में ४५०० रुपये बदलवाने के लिए कतारबद्ध, अपने ही मेहनत से कमाये धन को सफेद घोषित करने के लिए अपनी ऊँगली पर काला स्याही का धब्बा लगवाने को मजबूर है और हमारे आका कह रहे हैं कि कल से  इस सीमा को घटा कर ४५०० से २००० कर दिया गया है क्यूँकि इसका जमकर दुरुपयोग हो रहा है..किसने दुरुपयोग किया है महोदय इसका.. जरा इसकी जानकारी भी दे दी जाये तो बेहतर वरना ५०० करोड़ लाईन में लगकर तो नहीं ही न निकाले गये होंगे...

कल को यूँ न घोषणा कर दी जाये की रुपये २००० की जगह अगर रुपये १०००० निकालने हों तो ऊँगली की जगह चेहरे पर काली स्याही पुतवा कर ले सकते हैं..यह भी आमजन की सुविधा स्वरुप ही घोषित करियेगा मुस्कराते हुए...माननीय..

बस, यूँ ही सोच रहे हैं हम...और करें भी तो क्या करें सोचने के सिवाय??

आप  क्या सोच रहे हैं??

ऊपर की अपनी ही तस्वीर को देखकर फिर सोचा कि हम जैसों का विदेश में बैठकर सोचना वैसा ही तो है जैसा कि पाँच सितारा होटल के वातनुकुलित कमरे में बैठकर देश की गरीबी रेखा के नीचे रह रही आबादी के लिये नीतियाँ निर्धारित करना...और इत्मिनान से प्रेस काँफेंस में ऐसा कह देना कि..

इस घोषणा के बाद गरीब घर में आराम से चैन की नींद सोया है और अमीर कतार में खड़ा बिलबिला रहा है...


-समीर लाल ’समीर’          
Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, नवंबर 14, 2016

शहादत या ऑनर किलिंग..क्या है यह!!


सियापा और उसके सुर यूँ...इत्ती कम उम्र..बस १६ साल की उम्र..यह तो खेलने खाने की उम्र है, इस उम्र में भी भला कोई मरता है? सन २००० हजार की पैदाईश...सारा भविष्य उस पर ही टिका हुआ था..बहुत जतन उसे संभाला था..और एकाएक उसकी इस तरह हत्या..कि सब कुछ पल भर में नेस्तनाबूत हो गया..भविष्य के सारे सपने चकनाचूर..

इसे हॉनर किलिंग कहें या शहादत..

अगर पड़ोसी मुल्क को मूँह की चटा देने के लिए ही इस १००० के नोट का कत्ल हुआ है तो इसे शहादत मान कर इसकी मौत को शहीद का दर्जा मिलना चाहिये और इस तरह से शहीद हो जाने पर १ करोड़ का मुआवजा तो बनता ही है उस पालक का, जिसने इसे अब तक बड़े जतन से पाला और संभाला था.... अतः धोषणा करो..हे सत्यवादी आंदोलनकारी...,कि मैं हर उस परिवार को एक एक करोड़ रुपये देने की घोषणा करता हूँ जिसके पास उस हजार रुपये का नोट हैं, जो अभी अभी शहीद हुए है सीमा पार से आने वाले नकली नोटों से लड़ते हुए...ध्यान रहे कि इस मुआवजे के हकदार सिर्फ वो लोग होंगे जिनके नोट बदलने योग्य नहीं हैं..वो बेचारे कहाँ जायेंगे? जिनके नोट बदल दिये गये हैं वो इसे परिवार के अन्य सदस्य को उसकी शहादत की एवज में दी गई नौकरी मानें. अतः वे मुआवजे के हकदार नहीं होंगे. मुआवजा पाने के लिए नोट के धारक को, घोषणा पत्र समेत अन्य ऐसे सभी कागजत जमा करने होंगे जो  इस बात को साबित करते हों कि यह नोट बैंक में किसी भी हालत में बदले जाने योग्य नहीं है एवं खालिस काले हैं.

जान लिजिये आपकी यह घोषणा...आपको न सिर्फ पंजाब, गोवा और यूपी की गद्दी दिला जायेगी..बल्कि पूरे भारत की राजनीत को हिला जायेगी...किस्मत और कल को कौन जानता है? क्या पता इसी के चलते कल को आप प्रधान हो जायें...फिर ओबामा केयर का जो हश्र हुआ ट्रम्प के आने पर ..उसकी पुनरावृति आप इन नोटों को फिर से चलन में लाकर कर देना..कम से कम इस मामले में तो हम अमरीका के समकक्ष आ जायेंगे..है न सटीक बात?

वरना अगर यह हत्या, अपनी साख बचाने या उसमें इजाफा करने के लिए, अपने ही घर में रह रहे लोकल भ्रष्टाचारियों की कलई खोलकर, अपने ही आमजनों के सामने, अपने ही लोगों को अपराधी घोषित करने की मुहिम है..तो इसे ऑनर किलिंग का दर्जा दिया जाना चाहिए...तब यह सोचना होगा कि खाप पंचायत का फैसला मान्य होगा या अपनी संवेधानिक अदालत का..

बहुत दुविधा है.. हॉनर किलिंग..शहादत या कि बस, शरारत!!

यह एक संक्रमण काल है..मुद्रा का संक्रमण काल..

संकट तो है ही, कल को दूर भी हो जायेगा..संकट का तो स्वभाव ही आना जाना है..बस, हर बार संकट की परिभाषा बदल जाती है...

समीर लाल समीर
Indli - Hindi News, Blogs, Links