जबलपुर आये बहुत दिन बीते. रोज इन्तजार करते थे कि कोई निमंत्रित करे. कहीं कुछ बोलने के लिये बुलवाये. कोई कविता सुने. मगर पत्थरों का शहर के नाम से मशहूर जबलपुर अपने को साबित करता रहा. कहते हैं सब टूट जाये, एक आस नहीं टूटना चाहिये. नहीं टूटी साहब और आखिर वो दिन आ ही गया और भाई पंकज स्वामी, अरे वही जबलपुर चौपाल वाले. नहीं जानते, जानेंगे भी कैसे, ब्लॉगवाणी पर अभी जो वो नहीं हैं. जल्द आ जायेंगे, ने निमंत्रित किया. अखबार में समाचार और नाम आया और साथ ही जानने वालों की बधाई. वाह भाई, अखबार में छप लिये और आख्यान देने जा रहे हो, का बोलोगे यार?? जरा हमें भी तो सुनाओ.
अपना मोहल्ला, जहाँ कभी बचपन में हॉफ पेन्ट पहन कर मिट्टी में खेले थे, वो काहे मानने लगे कि आप कुछ ऐसा जान गये हो जो वो नहीं जानते और आप उन्हें बता सकते हैं. हम भी झेंपे से चुपचाप बधाई लेकर शाम, अपने पूर्ण भारतीय होने को सत्यापित करते हुए पूरे ४५ मिनट विलम्ब से आयोजन स्थल पर पहुँचे. आनन्द आ गया. विवेचना रंगमण्डल ने इतना सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत किया कि शब्दों में बयान करके उसके आकार को बांधने में मैं अपने आपको पूर्णतः अक्षम पा रहा हूँ.
फिर भाई पंकज स्वामी का विश्व रंगमंच दिवस के, प्रगतिशील लेखक संघ के एवं ब्लॉग के विषय में आख्यान हुआ तथा उसके बाद हमें, यानि समीर लाल यानि उड़न तश्तरी को इस विधा के विषय मे बताने के लिये मंच पर निमंत्रित किया गया. कुछ बताया, ज्यादा निवेदन किया और भी ज्यादा आश्वासन दिया कि ब्लॉग खोलने एवं बनाने की हर मदद के लिये हम सब ब्लॉगर हर वक्त हाजिर हैं. अपने कार्ड भी लोगों में बांट दिये. गिरीश बिल्लोरे ’मुकुल’, पंकज स्वामी, महेन्द्र मिश्रा, विकास परिहार, जो सभी जबलपुर से ब्लॉगिंग करते हैं, इन सबको बिना इनकी पूर्वानुमति के सबकी मदद के लिये हाजिर करवा दिया. गिरीश भाई ने तो तुरन्त एक सेमिनार की घोषणा भी कर दी जिसमें विवेचना के एवं साथियों को ब्लॉग के विषय में जानकारी देने हम सब उपस्थित रहेंगे. घोषणा पर त्वरित प्रतिक्रिया करते हुए प्रख्यात हस्ती विवेचना रंगमंडल के निर्देशक श्री अरुण पाण्डे जी ने दिन भर के लिये पूरा का पूरा साईबर कैफे उपलब्ध कराने की घोषणा कर दी. हम उनके हृदय से आभारी हैं. अगले हफ्ते किसी दिन इस सेमिनार का आयोजन किया जायेगा और उस दिन संस्कारों की नगरी संस्कारधानी जबलपुर से नये शुरु हुए चिट्ठों की जानकारी आप तक पहुँचाई जायेगी. यह अपने आप में एक उपलब्धि है.
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में विवेचना रंगमण्डल के ही युवा कलाकारों की हृदय की वाणी कविता रुप में सुन कर मन प्रफुल्लित हो गया. कहीं से लगा ही नहीं कि यह नया नया लिखना शुरु कर रहे हैं और कई तो पहली बार पढ़ रहे थे. उनमें से ही, हालांकि कोई भी कमतर नहीं था, एक बालक नें मेरा तथा पूरी सभा का ध्यान विशेष रुप से आकर्षित किया. मैने उसकी तस्वीर भी ली और उसकी वह कविता भी, इस वादे के साथ कि इसे मैं अपने चिट्ठे क माध्यम से लोगों तक पहुँचाऊँगा.
आईये स्वागत करें रंगकर्मी भाई राजेश वर्मा ’बारी’ का, जो कि जबलपुर में ही रहते हैं:
देखिये उनकी कल्पनाशीलता:
"लकीरें"
हरे पत्तों से भरे, नन्हे से पौधों की, पत्तियों पर भी
होती हैं चिंता की लकीरें, के न जाने कब किसके
पैरों तले रौंदा जाऊँगा मैं.
हरे पत्तों से भरे, पेड़ों की पत्तियों पर भी,
होती हैं चिंता की लकीरें, के जाने कब, कौन
छांट डालेगा मेरी टहनियों को,
और काट डालेगा मेरे तनों को.
हरे पत्तों से भरे, वृक्षों के पत्तों पर भी,
होती हैं चिंता की लकीरें, के जाने कब,
मिटा दिया जायेगा मेरा नामों निशां,
किसी आदमी की चिता के लिये.
और न चाह कर भी, लिटाना होगा उसे, अपनी छाती पर मुझे
जिसने रौंदा था, मेरे हंसते खिलखिलाते बचपन को,
जिसने काटा था जवानी में मेरी छोटी छोटी डालियाँ और तनों को
जिसने उजाड़ दिया था मुझको बुढ़ापे में.
आखिर क्या बिगाड़ा था मैने उस इसां का
मैने तो लोगों को फूल दिये, फल दिये, पक्षियों को बसेरा दिया
राहगीरों को छाया दी, जीवन के लिये प्राण वायु दी.
हो सकता है यही मेरा अपराध रहा हो!!
पर फिर भी फक्र है मुझे अपने आप पर
के उस माटी का कर्ज चुका रहा हूँ मैं,
आज किसी इसां की देह जलाने के काम आ रहा हूँ मैं.
इन्हीं शब्दों के साथ इस मातृभूमि को नमन करता हूँ और
प्रार्थना करता हूँ, उस इसां की चिता की राख के वारिसों से
के मुझे अभी अपना अंतिम कर्ज चुकाना है,
इसलिये हो सके तो मेरी राख को गंगा में न बहाना
कर सको तो बस इतना करना, उस माटी में मिला देना तुम मुझे
हुआ था जिस माटी में मेरा जन्म,
हो सकता है मेरी राख से मेरा कोई अंकुर फूटे
जिसका बचपन, जवानी और बुढ़ापा तुम्हारे काम आये.
--राजेश वर्मा ’बारी’
और यह दर्शन करिये वहाँ उपलब्ध जबलपुर के चिट्ठाकार:
बांये से दांये:
गिरिश बिल्लौरे, समीर लाल, पकंज स्वामी, महेन्द्र मिश्रा.
बाकी आयोजन के डिटेल्स तो आप गिरीश बिल्लौरे जी की पोस्ट एवं महेन्द्र मिश्र जी की पोस्ट से सुन ही चुके हैं.
कार्यक्रम की एक झलक देखें:
शुक्रवार, मार्च 28, 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
33 टिप्पणियां:
सही है। जहां हाफ़ पैंट पहन के खेले-कूदे वहां फ़ुल होके व्याख्यान देने का मजा ही कुछ और है। राजेश वर्मा की कविता बहुत उम्दा है। दिन भर के लिये कैफ़े उपलब्ध कराने वाले साथी बधाई के पात्र हैं। साधुवाद के भी।
राजेश वर्मा जी की कविता का विचार सुंदर है। वे अपनी कविताई में रंगमंच के साथ तरक्की करेंगे। ब्लॉगिंग सिखाने के लिए सेमिनार का विचार उत्तम है इसे कर ही डालिए। मेरा सुझाव है कि हिन्दी टाइपिंग के सभी टूल के होते हुए भी इनस्क्रिप्ट टाइपिंग के अलावा कोई अच्छा विकल्प नहीं है। इस से गति और सुंदरता बनी रहती है। सभी नए ब्लॉगरों को इसे पहले से सीख लेने का सुझाव दे दें तो उत्तम रहेगा। केवल पन्द्रह दिनों का अभ्यास पर्याप्त रहेगा।
आज सुबह सुबह जबलपुर शहर से संबंधित आपकी पोस्ट और दैनिक भास्कर मे कार्यक्रम का समाचार पढ़कर मुझे दुगुनी खुशी का एहसास हो रहा है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपके नेतृत्व मे जबलपुर संस्कार धानी मे हिन्दी ब्लागरो की संख्या दिनोदिन बढ़ती जावेगी . आपकी उपस्थिति से जबलपुर ब्लागर्स को नई दिशा प्राप्त हुई है .आप साधुवाद के पात्र है . इष्ट देव सांकृत्यायन के विचारो से सहमत हूँ उनके अनुसार कि वह दिन दूर नहीं जब पत्रिकाओं की जगह ब्लॉग और किताबों की जगह ई किताबें ले लेंगी. मुमकिन है की आने वाले दिनों में किताब की जगह साहित्य की भी सीडी ही बिकने लगे . आने वाले समय मे ई. किताबे समाज को एक नई दिशा और नई उर्जा प्रदान करेगी .
बहुत बधाइयाँ आपको ।
लेकिन देखिये भारत घूम -घूम कर आप की सेहत ढल गयी है कुछ उपाय कीजिये । कार्यक्रम का फोटो बडा अन्धियारा सा है कुछ बूझता नही उसमें ।
आपकी पोस्ट पढ़कर मज़ा आ गया। सेमीनार का दिन कौन सा तय हुआ है ? क्या आप भी वहाँ उपस्थित रहेंगे ? - आनंद
आप ब्लॉगिंग पर व्याख्यान देते रहें....
आप माने या नहीं माने लेकिन आप हिंदी ब्लॉगिंग के महानायक बनते जा रहे हैं
दांये बांये सब विवरण दे दिया, पर यह नहीं बताया कि ब्लॉगिंग का गुरुमन्त्र क्या दिया? क्या वह कार्ड में लिखा था। यदि हां, तो कृपया कार्ड का चित्र भी छापें।
समीर जी बहुत -बहुत बधाई ।
राजेश की कविता बहुत अच्छी लगी ।
समीर भाई,
ब्लागिंग के बारे में बहुत बढ़िया आयोजन हुआ. वैसे आप कलकत्ते आईये. एक सेमिनार यहाँ आयोजित कर लेंगे. कुछ गुरुमंत्र कलकत्ता वालों के लिए भी मिल जायेगा.
आयोजक ऐसे आयोजन के लिए बधाई के पात्र हैं.
आपके बारे में यह तो पता है कि आप भारत में है। लेकिन कार्यक्रमों में हिस्सा लेने संबंधी जानकारियां अब मिल रही हैं। कल ही अविनाश वाचस्पति जी ने कुछ फोटो भेजे थे जिनमें आप मौजूद थे। अपने देश में होने का गर्व अलग ही होता है और अपनी भूमि पर कार्यक्रम हों तो हम और चौड़े हो जाते हैं। अनूप जी ने सही कहा कि जहां हाफ पैंट पहन के खेले कूदे वहां फुल होके व्याख्यान देने का मजा ही कुछ और है। मुंबई पधारिए आपका स्वागत है समीर जी। मेरा नंबर 09819297548 है आपका नंबर बताएं आपसे बात करने की इच्छा है।
bahut badhaayi aapko saath hi rajesh ji ki kavita padhvaaney ke liye dhanyavaad.
आपको बहुत बहुत बधाई.. इस पोस्ट को पढ़कर हमारे भी दिल से आवाज़ आई कि इस बार रियाद जाने पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को ब्लॉगिग करने का सुझाव देंगे. राजेश जी की कविता पसन्द आई.
समीर जी, बहुत खुब रहा आप का विवरण,ओर कविता भी खुब रही ,हा लगता हे सारे फ़ोटू अन्धेरे मे लिये हे, या रात को खीचे हे,अगर लालटेन जला लेते तोभाई थोडे हम भी पास से देख लेते,आप के फ़ोटु को,खेर इन से ही काम चला लिया
शुक्रिया इस सचित्र विवरण का..
लो भई, हमरे गुरु तो जगतगुरु बनते जा रहे हैं,
बधाई बधाई आप सबको इस आयोजन के लिए!!
और दिन भर सायबर कैफ़े उपलब्ध करवाने वाले साहब की दिलेरी तो वाकई काबिलेतारीफ है!!!
राजेशजी की कविता कमाल की है!
इतनी सुंदर कविता पढ़वाने के लिये धन्यवाद।
पहली बार आपके ब्लाग पर पहुचा हू, अच्छा लगा. आता रहुन्गा.
राजेश वर्मा की कविता बहुत अच्छी है और सेमिनार का विचार अत्यन्त उत्तम है !
वाह जी वाह, आपकी तो मौज हो ही गई। अखबार में नाम आने की बहुत-२ बधाई। :)
और हाँ, अनूप जी सही कहे हैं, जहाँ बचपन बीता हो वहाँ बड़े होकर टशन में जाने का अपना ही मज़ा है! :D
अरे तो आप जबलपुर के हैं ...हरे भाई हम भी मध्यप्रदेश होशंगाबाद के ही हैं ...अच्छा है हम तो चाहते हैं आपका हर जगह यूँ ही स्वागत हो ...और युवाओं में कविता का प्रसार हो...
रंगकर्मी भाई राजेश वर्मा ’बारी’ को हमारी ओर से बधाई
समीर साहब,
जानदार पोस्ट इस बार भी.
पत्ती के ज़रिए बहुत पाते की बात कही है
दिल की ये आवाज़ सही,बिल्कुल सही है .
समीर भाई विवेचना की खूब खूब याद आई । जबलपुर में अपन ने भी विवेचना में कुछ वक्त बिताया है । नवीन दादा, अरूण भाई सभी बहुत याद आये । आपने जो ब्यौरा दिया है उससे लगा कि काश हम भी आयोजन में होते । पंकज भाई से एक निवेदन हमारी ओर से कीजिएगा--विवेचना के गीतों को रिकॉर्ड करके ब्लॉग पर चढ़ाएं । हम विकलता से प्रतीक्षारत हैं । कोई तकनीकी मदद दरकार हो तो आप मार्गदर्शन कर दीजिएगा । पर ये बात पंकज भाई को माननी ही होगी ।
युनूस भाई आपकी टिप्पणी पढ़ कर मैंने तुरंत अरुण पाण्डेय से बात की। वे भी आपकी टिप्पणी से बहुत उत्साहित हैं। उन्होंने तो उदयप्रकाश, भगवत रावत, ज्ञानेन्द्रपति की कवितों की वीडियो सीडी देने की बात की है। जैसे ही वे मुझे मिलेंगी उन्हें मैं अपलोड करने का प्रयास करुंगा। अरुण पाण्डेय भी चाहते हैं कि विवेचना जल्द ब्लाग पर आ जाए। हम लोगों ने मिल कर प्रयास शुरु कर दिए हैं।
बहूत बहूत बधाई हो अब तो आप ब्लोगर मास्टर बन गऎ हैं
समीर जी आप बहूत घूमतें हैं और बहूत मस्तमौला ईंसान हैं। उड्न तश्तरी से आप ऎसे ही भारत घूमते रहीये और एक दीन आप घूमक्कड नं १ हो जाऎंगे तो आपका नाम गीनीज बूक मे दर्ज हो जाएगा।
bhai sameer ji
namaskaar.
mujhe bhi vivechna aur pra.le. sangh dwara aayojit vishv rangmanch diwas ke aayojan men shareek hone ka awsar mila, rag manch / kavita/ abhinaya/ par to charcha hui lekin koi aisa nirnay nahi le paye jo rang manch ko majbooti de sake aur na hi jaisi ki apeksha thi ki aap bloging par kuchh sarthak prakash daal payen , shayad utna samay aapko mil nahi paya, waise bloging ka ek work shop hona chahiye tha jo vahan sambhaw hi nahin tha.
rahi baat rajesh verma kee to mainne rajesh par tippani dene ke uddeshy se hi ye kalam chalai hai.
wakai kush jaisi dhar, naag jaisi fufkaar aur teeron ki chubhan sa ehsaas kara gai rajesh ki kavita.. agar uski kalam aise hi sholey ugalti rahi to visangatiyan uska loha manengi.
use badhai aur aapko dhanywad aisi prastuti ke liye
vijay tiwari "kislay"
jabalpur
http://hindisahityasangam.blogspot.com/2008/03/mamta-ke-aanchal-men-phir-se-mujhe.html#links
Aap Sanskardhaani Aaye. Kamaal ho gaya. Bhopal ke baare meiN kyaa iraada hai, tashrif laaiye.
मेरे पूज्य विजय जीजाजी को फॉण्ट की प्राबलम्ब है.तभी मैंने http://www.google.com/transliterate/indic, में कट पेस्ट कर हिन्दी में बदलने की दृष्टता की है.
भाई समीर जी
नमस्कार .
मुझे भी विवेचना और पर .ले . संघ द्वारा आयोजित विश्व रंगमंच दिवस के आयोजन में शरीक होने का अवसर मिल , राग मंच / कविता / अभिनय / पर तो चर्चा हुई लेकिन कोई ऐसा निर्णय नही ले पाए जो रंग मंच को मजबूती दे सके और न ही जैसी की अपेक्षा थी की आप ब्लोगिंग पर कुछ सार्थक प्रकाश डाल पाएं , शायद उतना समय आपको मिल नही पाया , वैसे ब्लोगिंग का एक वर्क शॉप होना चाहिऐ था जो वहाँ संभव ही नहीं था .
रही बात राजेश वर्मा की तो मैंने राजेश पर टिपण्णी देने के उद्देश्य से ही ये कलम चलाई है
वाकई कुश जैसी धर नाग जैसी फुफकार और तीरों की चुभन सा एहसास कर गई राजेश की कविता . अगर उसकी कलम ऐसे ही शोले उगलती रही तो विसंगतियाँ उसका लोहा मानेंगी
उसे बधाई और आपको धन्यवाद ऐसी प्रस्तुति के लिए
विजय तिवारी "किसलय
जबलपुर
http://hindisahityasangam.blogspot.com/2008/03/mamta-ke-aanchal-men-phir-se-mujhe.html#links
यूनुस भाई
"अस्सलाम-वालेकुम"
दीगर अहवाल ये है कि उस दिन सभी रंग कर्मियों की खबर ली थी हमने
अरुण भाई ने मंच पर आकर ब्लागिंग के लिए सहयोग
देने सामग्री जुटाने का वादा कर ही दिया , वैसे अब जबलपुर
वो जबलपुर नहीं रहा , कुछेक की दुकाने है ,कुछ के शोपिंग मॉल
हैं , साहित्य के अड्डोँ के सारे बड्डे अब थक गए हैं , चेलों ने टेंट हाउस खोल लिए लिए हैं
दीमकों के लिए काफी इंतजामात हो रहे हैं....?
बाकी सब खैरियत है
खुदा-हाफिज़
मुकुल
girish jee ko aabhar/vishwa rangmanch diwas pa preshit meri tippani ko hindi font me convert karne ke liye.
aapki sakriyta ke liye punah aabhar.
""KISLAY
श्रद्धेय तिवारी जी
आप अपना शुभाशीष और स्नेह यूँ ही बनाये रखें एवं मार्गदर्शन करते रहें, यही कामना है.
सादर
समीर लाल
बहुत अच्छा रहा ये प्रोग्राम तो समीर जी... सहयोग देने वाले सभी को हमारी ओर से ढ़ेर सारी बधाई... कविता भी अपने आप में बहुत अच्छी है ...रचनाकार को भी बधाई... और आपको ये सब उपलब्ध कराने के लिये अनगिनत बधाई...
एक टिप्पणी भेजें