कायल एक ऐसी विकट और विराट चीज है जो कोई भी हो सकता है, कभी
भी हो सकता है, किसी भी बात से हो सकता है और किसी पर भी हो सकता है.
मैने देखा है कि कोई किसी की आवाज का कायल हो जाता है, कोई
किसी की सुन्दरता का, कोई किसी के लेखन का, कोई किसी के स्वभाव का, कोई किसी के
नेतृत्व का और यहाँ तक कि कोई किसी की मौलिकता पर ही कायल हो जाता है.
अब मौलिकता पर भी कायल सिर्फ शुद्ध मौलिकता की वजह से नहीं बल्कि
इसलिये कि वैसी मौलिकता और कहीं कम से कम उन्होंने नहीं देखी. कायल होने की और
करने की स्वतंत्रता सभी को हासिल है. जहाँ आप अपनी सूक्ष्म दृष्टि या बुद्धि की
कुशाग्रता की वजह से कुछ आंक कर कायल हो सकते हैं, वहीं आप अपने
दृष्टि दोष के कारण या मूढ़ता की वजह से भी कायल हो सकते है.
’कायलता’ की इसी स्वतंत्रता का तो मैं कायल हूँ.
भाई साहब, आपने लालू का नाम तो सुना होगा?
अरे, हम तो उनकी स्टाईल के कायल हैं.
याने कि इससे अर्थ निकलता है कि कायल होने के लिए यह जरुरी नहीं कि
आप किसी की बुद्धि के कायल हों, तो
वो उसकी कुशाग्रता के ही हों.. तब तो वह कुशाग्रता की कायलियत कहलाई. बुद्धि का
कायल होना बेवकूफी पर कायल होना भी अपने आप में समाहित करता है.
’कायल’ शब्द की यह व्यापकता भी कायल कर जाती है.
जब आप अपनी ओजपूर्ण रचना सुना कर फारिग हों तो सुना होगा, भाई
साहब, क्या आत्मविश्वास है आप में. हम तो कायल हो गये.
आप खुश हो गये?
अगर आप की रचना वाकई अच्छी होती तो वो रचना का कायल होता या फिर आपकी
ओजपूर्ण शैली अगर वाकई ओजस्वी होती, तो वो आपकी शैली का कायल होता. इन
दोनों बातों को छोड़ वो आपके आत्मविश्वास का कायल हुआ-सोचिये.
याने अगर इसका गुढ़ अर्थ निकालने के लिए अगर गहराई में उतरा जाये तो
आप जान पायेंगे कि न तो आपकी रचना इतनी प्रभावशाली है और न ही ओजपूर्ण शैली इतनी
ओजस्वी है कि उसका कायल हुआ जाये, उसके बावजूद भी आप पूरी ताकत से खड़े
अपनी रचना पूरी होने तक मंच और माईक संभाले रहे और मुस्कराते हुए मंच से उतर रहे
हैं तो इसे आपका आत्मविश्वास नहीं तो और क्या कहेंगे. वाकई, आपका
आत्मविश्वास कायल होने योग्य है. बस, इतना ही तो वो आपको बताना चाह रहा था.
’कायल’ शब्द के इसी सामर्थ्य पर तो मैं कायल हुआ जाता हूँ.
मैने कई शरीफों को गुण्डों के आतंक से और पिटने से बचने के चक्कर में
यह कहते सुना है कि भाई, हम तो आपके नाम के ही कायल हैं,
क्या
सिक्का जमाया है आपने एरिया में. ये लो, नाम के ही कायल हो गये और वो भी इसलिये
कि क्या सिक्का जमाया है.
ऐसी कायलता चमचागीरी में भी देखने में आती है अपना काम साधने के लिए.
कोई अपने गुरु के ज्ञान का, कोई चेले के चेलत्व का, कोई
इसका और कोई उसका कायल होते दिख ही जाता है. यहाँ तक की गुरु अपने गुरुत्व को
बचाने और चेले को सहजने के लिए भी चेलत्व का कायल हो लेता है. वो भी जानता है कि
अगर चेला ही नहीं रहा तो गुरु कैसा? एक दूसरे की पूरकता बनाये रखने के लिए
भी इस कायलता रुपी सेतु को टिकाये रखना अपरिहार्य हो जाता है.
कायल होना और कायल करना अक्सर एकाकीपन भी दूर करता है. कायल किये और
कायल हुए लोग एक दूसरे के करीब से आ जाते हैं, इस तरह से एक
गैंग जैसा संगठन बन जाता है और फिर सामूहिकता की ताकत को कौन नकार सकता है. अगर
कोई सामूहिकता की ताकत को नकार सके तो बताये, मैं उनकी
अल्पबुद्धि का आजीवन कायल रहूँगा.
मैं यह कतई सिद्ध करने की कोशिश में नहीं हूँ कि कायलता का कोई महत्व
नहीं है. बहुत महत्वपूर्ण है किसी बात का कायल हो जाना या किसी को कायल कर देना
किन्तु मेरा उद्देश्य मात्र यह है कि कायल होने या करने की महत्ता आंकते समय ये
जरुर देख और परख लें कि कौन, किस बात पर, किससे और
किसलिये कायल हुआ.
यूँ ही व्यर्थ खुश न हों मात्र किसी के कायल हो जाने पर या किसी को
कायल करके. वरना कोई आपकी खुशी का ही कायल न हो जाये.
हम तो खैर अब आदतन भी कायल हो जाते हैं चाहे कोई ताली बजाने बोले या
थाली बजाने या फिर बत्ती बुझाकर दिया जलाने! हम मि.कायल, इन सब से कायल हुए आदेशों
को पूरे धूमधाम से तामील करते हैं. \
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल ५, २०२० के अंक
में:
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1 टिप्पणी:
शायद सबसे आसान है, किसी का कायल हो जाना.
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