आज सुबह जब नींद
खुली तो खिड़की से झांक कर देखा. सूरज अपने चरम
पर झिलमिल मोड में चमक रहा था. खुश हुए कि आज बड़े दिन बाद सही मौसम है. तैयार होकर जैसे ही बाहर निकले, लगा जैसे करेंट
लग गया हो. भाग कर वापस घर
में आये और ऐलेक्सा से पूछा कि क्या तापमान है? ऐलेक्सा अभी राजनिति नहीं सीख पाई है और न ही
गोदी मीडिया हुई है, अतः फिलहाल सच बोलती है. वैसे वो मशीन लर्निंग से लबरेज है, आसपास के माहौल से सीखती है अतः वो दिन दूर
नहीं जब वो भी यह सब सीख जायेगी कि कैसे लफ्फाजी करनी है बंदो को खुश रखने के लिए. उसने बताया कि
बाहर का तापमान -१८ डीग्री
सेल्सियस है मगर हवा के साथ -२५ डीग्री का
तापमान महसूस होगा. मेरी नजर के
सामने तो शाईनिंग इंडिया घूम गया. खिड़की से जो दिखाया
जा रहा है और जो बाहर सच में हालत हैं, कितना जमीन आसमान का फर्क.
एक सेकेंड को
बाहर निकले थे और तुरंत जान गये कि असलियत क्या है. खिड़की से देखा गया भ्रमित करने वाला नज़ारा आखिर
कितनी देर भ्रम में रखेगा. बाहर कदम रखते
हैं असलियत सामने आ ही जानी है. अतः अब सत्य जानकर पूरा तैयार हुए गर्म कपड़ों में और तब निकले सुरक्षित.
शाईनिंग इंडिया
की बात चली है तो शाईनिंग से याद आई ’बिल्ली छाप जूता शाईनिंग क्रीम’. सफेद रंग की होती
थी, जूते पर पॉलिश के
बाद उसे चमकदार बनाने के लिए लगाते थे, पता नहीं अब भारत में मिलती भी है कि नहीं? आजकल तो अधिकतर शाईनिंग जुमलों के जुबानी जमा
खर्च से हो रही है.
शक इसलिए हो रहा
है कि कल एक वीडियो में एक सांसद मोहदय को एक विधायक मोहदय की जूते से मरम्मत करते
देखा. आश्चर्य यह रहा कि जूता पड़ तो मस्त रहा था मगर चमक नहीं रहा था. सत्ता पक्ष में होते हुए इतनी विलासिता की तो
बनती है कि जूता सदा चमकता रहे, लहराये भले ही कम. जब जैकेट कुर्ता पजामा दिन में चार चार बार
बदल कर हर वक्त चमचमा सकता है तो जूता क्यूँ नहीं?
वीडियो को जब
बारीकी से देखा तो सांसद महोदय को जिस तरह जूता उतारने में समय लगा, उन्हें पीटने की
लिए कुर्ते की जेब में एक जूता अलग से लेकर चलना चाहिये ताकि उसका
सानिद्ध्य रहे और वक्त पर तुरंत काम आवे. ऐसा करते तो शायद दो तीन जूते और लगा लेते.
जूतम पैजार में
एक बात और पता चली कि इन सत्ताधारियों की गणित बड़ी कमजोर है. पहले ही उनके
आंकड़ों पर प्रश्न उठे हुए हैं जो अभी शान्त भी नहीं हुए हैं और वो कभी सेटेलाईट की
तस्वीरों को, तो कभी करांची
की पुरानी तस्वीरों को पेश कर कर के आंकड़े सिद्ध करवाने पर तुले है जबकि आंकड़ें
हैं क्या, वो ही अभी तक आपस में तय नहीं कर पाये हैं. कोई २०० कहता है, कोई ३०० तो कोई ३५० बताता फिर रहा है. वही हाल उन्होंने जूते बरसाने में किया जिसका
की जिन्दा फुटेज़ उपलब्ध है. वरिष्ट उठे थे
कहते हुए कि ७० जूता मारुँगा मगर फुटेज़ देखिये तो मारे सिर्फ ७.
एक पुरानी कहावत
है यू पी की कि ’हमसे बहस न
करियेगा वरना सौ जूता मारेंगे और गिनेंगे दस!!’ इनकी आदतानुसार
जैसे अब तक हुई हर पुरानी चीज को यह गलत साबित
कर देते हैं, वैसे ही इन्होंने इस
मुहावरे को भी सर के बल खड़ा कर दिया. मारा १ और गिने
१०. तब ही तो ७ जूते मारकर
गिने ७०. बाकी दूसरे वाले
आंकड़े ३०० पर भी अगर यही अनुपात लगा लें तो भी हमारे ४० शहीदों के बदले ३० कम तो
नहीं..मगर कोई ३०० तो
कन्फर्म करे?
खैर, जूते बाजी और
आंकड़े अपनी जगह मगर सही नमन उस बंदे को बनती है, जिसने जूते बाजी
होने के चन्द सेकेन्ड पहले ही भाँप लिया था कि काण्ड होने वाला है और वो अपने फोन
के कैमरे से वीडियो बनाने में जुट गया था.
काश कोई समझे और
उस बंदे को सही जगह पर मान सम्मान के साथ बैठाये. ताकि भविष्य में
हम किसी भी बड़े काण्ड होने के कुछ क्षण पहले ही सतर्क हो जायें. काण्ड रोक पायें
या न रोक पायें वो बाद की बात है, कम से कम वीडियो रिकार्डिंग तो हो ही जायेगी. दुश्मन का तो जो
होना हैं सो होगा, उसकी किसे फिकर? मगर सबूत मांगने
वालों को मूँह तोड़ जबाब तो दिया ही जा सकता है वीडियो दिखा कर.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे
में रविवार मार्च १०, २०१९ को: http://epaper.subahsavere.news/c/37446703
किंचित कारणों से अखबार में पूरा छपने से रह गया है)
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
4 टिप्पणियां:
सर जी बिल्कुल दुरुस्त कहा जी आपने। मज़ा आ गया। हमें आपके द्वारा सुनाया गया वो 350 फ़ीट लम्बे साँप और गप्पियों वाला जोक याद आ गया जिसमें आखिरी में साँप टेप से नाप कर कह दिया जाता है कि अब तो नप गया।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 92वां जन्मदिन - वी. शांता और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
Sir, thank you!
रोचक
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