अगले साल पुस्तक मेले में आने का मन है.
उत्साही लेखक विमोचन के लिए आग्रह करेंगे ऐसा मुझे लगता है. ऐसा लगने का कारण
अखबार वालों का अब मेरे नाम के साथ ’लेखक कनाडा निवासी वरिष्ट व्यंग्यकार हैं’
लिखना है. नाम के साथ वरिष्ट लगने लगे तो लिखना कम और ज्ञान ज्यादा बांटना चाहिये.
जगह जगह सम्मानित होना चाहिये. किताबों की समीक्षा करनी चाहिये. ऐसा मैं नहीं कह
रहा, इतिहास कहता है.
२० किताबों के विमोचन के लिए २० भाषण लिखना तो
बहुत ज्यादा काम हो जायेगा. इसलिये सोचता हूँ कि भाषण लिखकर पहले से धर लेते हैं..ताकि सनद रहे
और वक्त पर काम आये. कौन इतने ध्यान से
भाषण सुनता है, ध्यान तो दूर की बात है, सुनते ही कहाँ हैं? कि लोगों को पता चल
पायेगा कि यह तो बार बार वही भाषण पढ़े जा रहे हैं. लोग तो पिछले ३० सालों से वही
वही कविता सुना सुना कर १००० मंच लूटे चले जा रहे हैं और हर मंच से कमा रहे हैं. तो
हम तो मात्र २० के लिए तैयारी कर रहे हैं वो भी मुफ्त में बोलने की.
उपस्थित गणमान्य साथियों, वरिष्ट साहित्यकारों,
प्रकाशकों, लेखकों एवं लेखिकाओं (कवि कवित्रियों इसमें शामिल समझो खुद को)
आज इस पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मुझे
आमंत्रित करने और मंचासीन होने का सम्मान देने हेतु हृदय से आभारी हूँ. मैं इस पुस्तक
मेले का आभारी हूँ जिसकी वजह से मैं हर साल दिल्ली आता हूँ और इस तरह से सम्मानित
होता हूँ. एक सम्मान ही तो है जो मुझे जैसे वरिष्टों को साहित्य के क्षेत्र में
रोके हुए है वरना रुपया पैसा तो इसमें होता नहीं.
कई बार मैं सोचने को मजबूर हो जाता हूँ कि अगर
ये पुस्तक मेला न होता, अगर आप जैसा लेखक न होता, अगर आप जैसा प्रकाशक न होता तो
मेरा क्या होता? क्या मुझे कोई सम्मान देता? क्या मुझे कोई पहचानता? क्या मैं
दिल्ली आता? हर प्रश्न के उत्तर में एक ही जबाब अन्तर्मन में उठता है..शायद नहीं.
आज जब मुझे इस स्टॉल के सामने से गुजरते हुए पकड़
कर यह बताया गया कि आपको २ बजे विमोचन करना है किताब का. तो मैने पीछे चाय की
दुकान पर जाकर फटाफट पुस्तक पलटी. १५ रुपये की चाय जेब से खरीद कर..१८० पन्नों की १०
मिनट में पलटा डाली पूरी किताब.
लेखक की लेखन क्षमता अतुलनीय है. पहला पन्ना
पलटो और फिर रोक नहीं सकते खुद को आप. पलटते ही चले जाओगे आप (बिना पढ़े)..जब तक की
आखिरी पन्ने तक न पहुँच जाओ. इतना मजा आने लगेगा पन्ना पलटने में कि रुकना मुश्किल
हो जायेगा. पन्ना पलटने का भी एक अलग मजा है जब विषय वस्तु समझ न आये!! और उससे भी
ज्यादा तब...जब समझ आ जाये कि क्या पढ़ रहे हैं!!
आज के इस व्यस्त जीवन में, जब इन्सान सिर्फ भाग
रहा है तब यह पुस्तक एक विश्रामालय सी प्रतीत होती है. कुछ देर तो गुजारो मेरे
साथ..फिर चले जाना जीवन के साथ..का नारा लगाती है. कम से कम दस मिनट तो ऐसे गुजरे
जब मैं इत्मिनान से चाय पीता रहा और मेरी उँगलियाँ भागती रहीं पन्ने पलटने को.
मैं पढ़ रहा था और सोच रहा था कि कितनी अलग
दृष्टी है लेखक की बातों को देखने की और उन्हें समझने की. पीज़ा मे रोटी और उसकी
टॉपिंग में सब्जी खोज लेने की अनुपम क्षमता लेखक को एक अलग कतार में खड़ा कर देती
है. ऐसी दृष्टी और उसे शब्द देना..अद्भुत अनुभव है इस लेखन शैली से
गुजरना...गुजरना तो क्या..बह निकलना! प्रवाह भी तो कोई चीज है! कई किताबों में तो
इतना बहाव रहता है कि बिना खोले ही किताब का भव सागर पार हो जाते हैं.
लेखक से मेरा कोई व्यक्तिगत परिचय ज्यादा नहीं
रहा. सुबह यहीं स्टॉल के सामने पहली बार मुलाकात हुई मगर उन्होंने विमोचन का
निवेदन किया और फ्री में किताब देकर मन मोह लिया. कौन करता है आज के जमाने में
ऐसा? हमने साथ में सेल्फी खिंचवाई और उनने फेसबुक पर डाल भी दी है. हमारे पास डाटा
प्लान न होने के कारण हम शाम को डालेंगे. अभी रोमिंग में चल रहे हैं. लॉज में फ्री
वाई फाई है, वहाँ से कोशिश करेंगे.
जो पढ़ा उसी के आधार पर मैं इस पुस्तक को बहुत
उम्मीदों से विमोचित कर रहा हूँ. आशा करता हूँ कि आप भी इसे सर आँखों पर उठाओगे.
मूल्य थोड़ा ज्यादा तो है मगर आप अपनी पुस्तक छपवा कर वसूल करने की क्षमता रखते हो,
यह भी मुझे ज्ञात है. उसे बाद में वसूल कर लेना. हाल फिलहाल खरीद कर जरुर पढ़ें.
वरना लेखक और प्रकाशक को मुझे इस किताब की फ्री प्रतिलिपी देने का क्या फायदा!!
आज आप न खरींदेंगे तो कल हम किस पर बोलेंगे?
आज आपका पुस्तकें खरीदना हमारे भविष्य को
पुख्ता करता है. कौन जाने कल हम आपकी पुतक विमोचित कर रहे हों?
पुस्तक मेला बहुत से आयाम खोलता है और इसीलिये
मुझे इसका इन्तजार रहता है!! हो सकता है आने वाले वक्त में पाठक भी इस मेले का
हिस्सा बनें. वादा है तब हर पुस्तक के विमोचन के लिए अलग अलग भाषण दूँगा.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार
जनवरी १३, २०१९ को:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
4 टिप्पणियां:
A good humor in the tragedy of the trend publications. If authots like Premchand, Shakespeare, Tolstoy see this scenario, they might undergo cardiac arrest.
बहुत बढ़िया लिखा समीर भाई। आपने भी तो कितने ही आयाम खोल दिये हैं इस व्यंग्य के साथ!😊
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन शुभकामनायें प्रथम अंतरिक्ष यात्री को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
बढ़िया लिखा है। बधाई।
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