यह तय बात है कि हर जीव
का सम्मान होना चाहिये, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. इससे भला कौन न सहमत होगा? अतः
पहले ही बता दूँ कि मैं मीटू हैशटैग (#MeToo)
के साथ हूँ जब तक की उसका इस्तेमाल अति के लिये
न हो और दोनों तरफ से हो. फिलहाल तो दिखता है कि मीटू सिर्फ लड़कियों के एकाधिकार
में है. अगर ऐसा ही चलता रहा ३७७ धारा के बाद भी तो दूसरी तरफ से सब एकजुट होकर
वीटू न शुरु कर दें, इस बात का डर है.
घंसु सुबह सुबह पान की
दुकान पर बैठे तिवारी जी की तरफ इशारा कर के सब आने जाने वालों को बता रहे थे कि
हीटू. तिवारी जी बोले अबे, वो मीटू होता है हैशटैग के साथ, हीटू नहीं.
घंसु तम्बाखु थूकते हुए
बोले कि हम भी जानते हैं कि वो मीटू होता है, मगर हम सबको बताना चाहते हैं कि हमको
प्रताड़ित करने वालों में आप भी थे. हम तो दलित हैं ही. दलित और गरीब को मीटू
हैशटैग नहीं लगाना पड़ता. वो तो जगजाहिर है कि ये प्रताड़ित हैं. इनको तो मात्र इतना
बताने के लिए हिम्मत जुटाना है कि कौन कौन इन्हें प्रता़ड़ित कर रहा है. मैं समझता
हूँ इसके लिए हीटू के हैशटैग से बेहतर और क्या हो सकता है?
तिवारी जी घंसु के एकाएक
प्रदर्शित ज्ञान और हिम्मत दोनों देखकर प्रभावित होने के बदले सन्न थे. सोच रहे थे
कि या इलाही बता इसे आखिर हुआ क्या है? मगर फिर भी अपनी सन्नाहट पर काबू करते हुए
उन्होंने घंसु से पूछा कि बता, मैने तुझे कब प्रताड़ित किया?
घंसु बोले कि जब हम ८ साल
के थे, तब आपने मुझे नीच कहते हुए मेरे पीछे चपत लगाई थी. तिवारी जी बोले कि अगर
तुमको उस बात का इतना ही बुरा लगा था तो तुम उस वक्त क्यूँ नहीं कुछ बोले जो आज ३०
साल बाद हीटू कर रहे हो?
घंसु मुस्कराते हुए बोले
कि तब एक तो हमें यह मालूम ही नहीं था कि आप गाली बक रहे हो. दूसरा, तब आपका भभका
था और आप हमारे स्कूल में अध्यापक थे. अगर उस वक्त विरोध करते तो आज जो इन्टर पास
हैं वो ५ वीं पास भी न हो पाते. आज जब आपका नाम मोहल्ले के सज्जनों में आता है मगर
हैसियत यह कि आप मेरा कुछ बिगाड़ सकने की पूरे अधिकार खो चुके हैं तो सोचा, अब सारे
काम निकल लिए हैं, तो मीटू से हिम्मत बटोर कर आप पर हीटू लगाया जाये.
वैसे भी सफेद कमीज पर ही
तो कीचड़ उछालने का मजा है, वरना तो कोई कीचड़ में लिपे पुते पर क्या कीचड़ उछालेगा?
तिवारी जी अब क्या करते?
बुढ़ापे में जब उनके पास इज्जत के सिवाय और कुछ नहीं बच रहा है तो उसको भी लुटता
कैसे देखें? उन्होंने घंसु से किनारे ले जाकर बातचीत की. घंसु को उसके अगले एक माह
की दारु का वादा करके उसे चुप कराया. अब घंसु नया सफेदपोश बंदा सोच रहा है जिस पर
हीटू की गोली चला सके.
घंसु हीटू हैशटैग वायरल
कर फिलहाल पी लूँ मोड में चले गये हैं मगर मोहल्ले के अन्य घंसु ( शेक्सपीयर ने
कहा है न कि नाम में क्या धरा है तो इधर घंसु का मतलब बाकी दलित या प्रताड़ित समझ
कर चलें) अपने अपने शिकार को जुबानी हैशटैग करने की फिराक में लगे हैं हीटू की
गोली के निशाने पर लेकर.
हिम्मत का एक स्वभाव है
कि अगर एक दिखाये तो बाकी में भी आ जाती है. वही शायद मीटू, हीटू जैसे अभियान को
हिम्मत दिला रहा हो भले ही बरसों बाद. कितने भी बरस बीत गये हों मगर यह तो ध्यान
रखना ही होगा कि जब जागो तब सवेरा.
अभियान अभियानों को जन्म
देता है. काश!! मीटू हीटू को कुछ इस तरह जन्म दे कि आम जनता भ्रष्टाचारी नेता के
खिलाफ हीटू के हैशटैग की गोली दागे और नेता यह कह कर पनाह माँगे कि आईंदा से आई
विल नेवर डू. याने कि आगे से कभी भ्रष्टाचार नहीं करुँगा, बस इस बार मुझे माफ कर
दो.
एक कोशिश करके यह हिम्मत
तो जुटाओ आम जन..कौन जाने कल यह सच हो जाये.
चरितार्थ करो यह कहावत कि
जब जागो तब सबेरा..
अब जाग भी जाओ!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह
सवेरे में रविवार अक्टूबर १४, २०१८
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-10-2018) को "कृपा करो अब मात" (चर्चा अंक-3125) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/10/2018 की बुलेटिन, अमर शहीद सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल जी को सादर नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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