शनिवार, जनवरी 27, 2018

इन्टरव्यू की सेल्फी के बहाने बजट की चर्चा

बजट न हुआ मानो कोई व्यंजन हो गया हो. व्यंजन भी कैसा जैसे कि खुरमा, कहीं कहीं उसे पारा भी कहते हैं -शक्कर पारा, नमक पारा. तीखा, नमकीन, सादा और मीठा, चारों तरह का बनाया जा सकता है. हमारे देश का मुख्य बावर्ची जानता है कि कब कैसा व्यंजन बनाना और परोसना है. पकवान बनाने में तो खैर उसे महारत हासिल है ही, इससे कौन न सहमत होगा? ऐसी चाय पिलावाई कि देश झूम उठा. आज तक आधा देश उस चाय की तासीर में डोल रहा है. नशा सा छा गया चाय से. सब बस उसी नशे में डूबे मदमस्त नाचे चले जा रहे हैं.
हल्का हल्का सुरुर उतरने को ही था कि एकाएक कुछ दिन पहले पकोड़ी छानने का रोजगार सुझा कर देश की बेरोजगारी समस्या का एकाएक १००% निदान कर दिया. कागज, कलम, दवात सब भूल जाओ. स्कूल, कालेज सब बेरोजगारी के रास्ते हैं. नये डिजिटल इण्डिया के जमाने में, जरुरत है तो एक कढ़ाही, झारा और चूल्हे की. हो गया इन्फ्रास्ट्रक्टर ऑफ शत प्रतिशत एम्लॉयड इण्डिया तैयार. किसी भी दफ्तर के नुक्कड़ पर गुमटी लगाओ और लगो छानने पकोड़े. लग गया रोजगार.
सारे सांसद से लेकर विधायक तक बढ़िया फार्मूला पा गये हैं. अब जब कोई भी अपने बच्चे की नौकरी न लगने की शिकायत करता है तो तुरंत सांसद महोदय यू ट्य़ूब के इन्टरव्यू का लिंक व्हाटसएप्प पर उसे भेज देते हैं कि हे मूर्ख!! सुन इसे..साहेब क्या कह रहे हैं. रोजगार तेरे मोहल्ले के नुक्कड़ पर माला लिये रेड कार्पेट बिछाये तेरा इन्तजार कर रहा है और तू यहाँ भटक रहा है. बच्चे की नौकरी मांगने आया अभिभावक माफी मांगने लगता है कि इत्ती ऊँची बात से अनभिज्ञ कैसे रह गया अब तक वो? वह सांसद महोदय के भेजे लिंक को बेटे को व्हाटसएप कर देता है. नौकरी न भी हो तो व्हाटसएप और फोन तो होता ही है..यू ट्यूब देखकर शायद नालायक रोजगार पा जाये. वरना कोई हाथ में पकड़ कर निवाला तो खिलायेगा नहीं. कुंआ खोद दिया है साहेब ने, घसीट कर तुमको कुँए तक ले भी आये हैं इस यूट्यूबी इन्टरव्यू के माध्यम से..पर पानी तो तुमको खुद ही पीना पड़ेगा..कुछ तो करो नालायक!! ऐसी ज्ञान सरिता हर युग में नहीं बहती. ७० साल में पहली बार ऐसा रोजगार का अवसर आया है, जब गली गली नुक्कड़ नुक्कड़ पर रोजगार ही रोजगार हैं. पकोड़ी छानो और सीना तानो!! कि अब मैं बेरोजगार नहीं रहा.
पूरे कार्यकाल में एक इन्टरव्यू दिया ..दिया कहना उचित न होगा..किया,,,किया भी ठीक नहीं लग रहा ..इन्टरव्यू की सेल्फी की..ये सही है आज कल के सेल्फी के जमाने में. सेल्फी की अच्छाई ये होती है कि आप मनमाफिक पोज बना सकते हो, पाऊट काढ़ सकते हो और बाकी के आएं बाएं वाले पोज डिलिट..बेस्ट वाले की डीपी..और सारे फॉलोवर बोलें..वाओ!! व्हाट ए सिल्फी सर जी!!
ओह!! तो पूरे कार्यकाल में टोटल एक इन्टरव्यू की सेल्फी ली..और देश में सदियों की नासूर समस्या रोजगार को जड़ से निपटा दिया. अच्छा है, बार बार इन्टरव्यू की सेल्फी नहीं लेते वरना तो अगले चुनाव में लड़ने के लिए कुछ बाकी ही न बचता कि अब क्या निपटायेंगे सिर्फ सच्चाई बोलने के कि अब बस देश बचा है, इस बार हम उसे निपटायेंगे. फिर न रहेगा बांस, न बजेगी बांसूरी!!
मौसम और उत्सव के हिसाब से चावल दाल, खिचड़ी, तहरी, पुलाव आदि का बनना तय होते हैं आमतौर पर. वैसे ही बजट के साथ भी है. ये वो व्यंजन है जिसका स्वाद आगामी चुनावों की दूरी से तय होता है. जीतने के तुरंत बाद अगला चुनाव पांच साल दूर होता है. तो पहले साल में इसे एकदम तीखा बनाया जाता है. शातिर ही झेल पायें वरना तो आँख से आसूं और माथे से पसीने छुड़वा दे. दूसरे साल में नमकीन, तीसरे साल में सादा कि भाये किसी को न भले, मगर रुलाये भी न, और चुनाव के ठीक पहले चौथे साल में एकदम मीठा. खाने वाला कह उठे कि ये हुई न बात!! ऐसे बावर्ची को तो बावर्ची कहना भी उसकी तौहीन होगी..हम तो उसे मास्टर शेफ पुकारेंगे. उसे भला कौन नहीं चुनना चाहेगा फिर से.
हर व्यंजन के अपने फायदे होते हैं, इसीलिए तो पकवान नाम है पहलवान के जैसा..तो बजट नामक व्यंजन का असर शारीरिक से ज्यादा मानसिक होता है बादाम की तरह. जैसे ही बजट परोसा जाता है पूरा राष्ट्र एकाएक अर्थशास्त्री सा हो जाता है. खुद के नाम की स्पेलिंग लिखने में पैन की निब तोड़ देने वाला शख्स भी पान की दुकान पर तम्बाखू धिसते हुए बतियाता है कि चला गया न नीचे सकल घरेलु उत्पाद..हम तबहि कहे थे कि ई जीएसटी और नोटबंदी जैसा उत्पात हड़बड़ी में न करो..मगर हमारी कोई सुने तब न..लेव!! देखो डेफिसिट..अब हमसे मत पूछना कि कैसे संभालें!! खुद रायता फैलाया हो, खुद समेटो!
एक ने ब़ई गंभीर मुद्रा में बताया कि इस बार के बजट में आम आदमी को राहत मिली है मगर जनता पिट गई!!
आश्चर्य लगा कि ऐसा कैसे? तब साफ हुआ कि आम आदमी से आशय आम आदमी पार्टी से था क्यूँकि इस बजट के बाद सभी चुनाव की तैयारी में जुट जायेंगे तो उनको जरा राहत मिल जायेगी.
जनता की किस्मत में तो खैर पिटना ही बदा है तो उसमें नया क्या!!
-समीर लाल समीर’  

दैनिक सुबह सवेरे भोपाल के रविवार जनवरी २८, २०१८ के अंक में प्रकाशित:
http://epaper.subahsavere.news/c/25742769

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