आज ज्ञान पान भंडार पर घंसू सुबह सुबह बड़ी चिंताजनक
मुद्रा में बैठे थे. दुकान के बाहर लगा बोर्ड ‘कृपया यहाँ ज्ञान न बांटे, यहाँ सभी
ज्ञानी हैं’ तो मानो सरकारी दफ्तर में लगी गांधी जी की तस्वीर हो जो कहने को तो ईमानदारी
और सच्ची लगन से देश सेवा का प्रतीक है मगर इसके ठीक उलटे अर्थ ऐसा माना जाता है कि
यहाँ बिना भेंट चढ़ाये कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं होगा. ‘ज्ञान पान भंडार‘ पर भी इसी
बोर्ड के चलते दिन भर ज्ञान सरिता बहती रहती है.
किसी ने एकाएक घंसू से उनकी चिंता का कारण पूछ लिया.
अंधा क्या चाहे दो आँखे. घंसू तो बैठे ही इसी इंतज़ार में थे कि कोई पूछे तो वो शुरू
हों.
अरे, ये प्रदुषण भी न..९०० का सूचकांक पार गया
है और लोग पटाखा फोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं. हालाँकि होता तो ३००-४०० भी खतरनाक
है मगर चलो, उत्ते की तो आदत हो गई है, तो हम चुप लगा जाते हैं मगर ९०० ..न भाई!!
इससे तो बेहतर है कि चिलम पी कर मरें, कम से कम आनंद तो आये और लगे हाथों शिव
भक्ति भी हो लेगी. सारे गंजेड़ी जब चिलम खींचते हैं तब बम बम तो ऐसा बोलते हैं की
मानो उनसे बड़ा शिव भक्त तो कोई और हो ही न. साथ ही उनको देख कर ऐसा लगता है कि देश
में भाईचारे की भावना को विस्तार देने के लिए उनसे बेहतर ब्रांड एम्बेसडर तो
अमिताभ बच्चन भी नहीं हो सकते. बम बम के जयकारे के साथ गोले में बैठे अगले बन्दे
को इतने प्यार से चिलम बढ़ाते है कि आदत न भी तो भी भाई चारे का मान रखने के लिए
बन्दा दम लगा ले.
खैर, चिन्तन प्रदुषण पर था. भूकंप, प्रदुषण, साइक्लोन
आदि विपदाओं की दुश्वारियों से ज्यादा एक खूबी यह रहती है कि वो अनपढ़ से अनपढ़
व्यक्ति को भी अपने विषय का महाज्ञाता बंना जाती है. रिक्शा चलाने वाला बंदा जिसका
जीरो बैलेंस खाता आजतक ऑपरेट ही इसलिए नहीं हुआ है क्युकि उसे दस्तखत करना भी नहीं
आता वो भी प्रदुषण सूचकांक के आंकलन से लेकर भूकंप के मेगनीटयूड की बात करने लग जाता
है. ऐसा अतिशय ज्ञान का विस्तार देखकर कई बार लगने लगता है कि समय समय पर ऐसी
विपदाओं को आते रहना चाहिये. ज्ञान बना रहेगा.
वैसे तो ईवीएम की धांधली से प्राप्त ज्ञान वीवीपीएटी
(वोट वैरिफिकेशन पेपर ऑडिट ट्रेल) मशीन और नोटबंदी एवं जीएसटी की कोख से गली गली में पैदा हुए कुकुरमुत्ता अर्थशास्त्री भी इन कदमों को
विपदाओं की श्रेणी में ले आते हैं. वैसे गहराई से सोचो तो है भी यह विपदाएं ही.
सोच उठती है कि इस ९०० सूचकांक वाले प्रदुषण के
उपाय तो फिर भी निकल आयेंगे. ओड इवन फेल हो गया तो क्या, शोध करने कुछ मंत्री
विदेश जाकर कुछ और रास्ते खोज ही लेंगे. न जाने क्यूँ देश की विकट समस्याओं के
रास्ते विदेश में निकलते हैं? इस बार पटाखे की बिक्री पर रोक लगी है, अगली बार फोड़ने
पर लगेगी. फिर उसके अगली बार सिर्फ बाबा के प्रदुषणरहित हवन सामग्री वाला धुंआ छोड़ने
वाले पटाखे चलाने की अनुमति मिलेगी. तुम भी खुश, हम भी खुश, बाबा भी खुश. आज का
लगाया प्रतिबंध का पत्थर कल के एक प्रदुषणरहित हवन सामग्री वाले धुंए के जगमगाते महल
का शिलान्यास है.
मगर असली चिंता का विषय है दिमागी प्रदुषण जो
एक सोची समझी साजिश के तहत समुदायों को विभाजित करने के लिए फैलाया जा रहा है. इस
प्रदूषण का निवारण फिर न तो भाईचारे के ब्रांड एम्बेसडरों की चिलम खींचती बम बम की
आवाजें कर पायेंगी और न ही हवन सामग्री का धुंआ छोड़ने वाले पटाखे और न ही कोई अदालाती
फरमान.
वक्त रहते अगर इस मानसिक प्रदुषण के विस्तार को
न रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदुषित मानसिकता ऐसा जीना दुभर कर देगी कि
उसके सामने यह ९०० पार का वायु प्रदुषण सूचकांक भी जन्नत सा नजर आयेगा.
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के रविवार
अक्टूबर २२, २०१७ के अंक में:
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1 टिप्पणी:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ११७ वीं जयंती पर अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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