जैसे की सबके एक दादाजी होते हैं, हमारे भी थे -दादा जी १००० एकड़ जमीन के मालिक थे..जमींदार
थे.. खेत लहलहाते थे..सारा गाँव दादा जी के खेतों में काम करता था. दादा जी का एक
भरा पूरा परिवार था..तीन भाई तो उनके खुद के थे.. खेत बंटा तो नहीं था शर्मो लिहाज
में मगर हर भाई के हिस्से था २५० एकड़..ज्वाईंट फैमली थी..कोई टेंशन न था.. आजू
-बाजू के गाँवों में धनाड्य
खानदान कहलाता था..
चारो भाईयों के औसतन ५ लड़के थे..एक तो धनाड्य
और उस पर से टैक्स फ्री कृषि आय..क्यूँ न होते पाँच पाँच लड़के..टीवी उस जमाने में
था नहीं..जो रात
देर तक लोग मूवी देखते और जागरण करते और गाँव के पास से देर रात दो ट्रेनें गुजरा
करती थीं..इतनी तेज आवाज होती कि कुंभकरण भी जाग जाये... अब जागे हुए हैं और टीवी है नहीं
तो मनोरंजन का साधन क्या हो...बस औसत ५ -५ बच्चे हो लिए.
पिता और चारों चाचा का भी वो ही हाल रहा. हालांकि
टीवी आ गया था तब तक मगर बस कृषि दर्शन और गीत माला तक सीमित था..रात वैसी ही
बेनूर..और रेलगाड़ी की विकास यात्रा ..दो की जगह पांच रेलें निकलनें लगी उसी रूट पर..और
वो भी तेज गति से धड़धड़ाती..
अब ये सारे ५० – ५० एकड़धारी...आने वाली नस्ल के
लिए..मात्र १० – १० एकड़ पर हेड छोड़ जाते मगर मंहगाई की मार..खेती का नुकसान..लोन
की ना मुआफी की बेईंसाफी..एक दो परिवारिक सदस्यों की आत्म हत्या से पूरी न हो पाई..और
कुछ खेत बेचना भी पड़ गया ..उस पर से दो चाचा के घरों में दो लड़कियाँ आ टपकी..दहेज,
ब्याह सब मिला कर ५० एकड़ खेत अलग से बिक गया..
परेशानी में आत्म हत्या अलग बात है और खानदान
की नाक अलग बात है..
सब ले दे कर जब तक हमने परिवार की सत्ता संभाली..हमारे
हाथ..२ एकड़ जमीन आई और एक बड़ा सा कर्जा जो बैंक को चुकाना था..
सच कहें तो वसीयत में हमें सुसाईड नोट सौंपा
गया..अब हमें बस इतना तय करना था कि इस पर अमल करें या टाल जायें कुछ दिनों के लिए.
विचारों की खेती भी काश कृषि आय मुक्त होती तो
और विचार करते मगर ऐसा प्रावधान कहाँ..अतः विचार रोक दिया और एकाएक देखते हैं कि
बची हुई दो एकड़ भी सरकार भूमि अधिग्रेहण कानून में हमसे छुड़ा कर ले गई..
मुआवजे की राशि के लिए बरसों चक्कर काटे और इस
बीच कृषि के लिए लिया गया कर्जा अपना आकार ब्याज चढ़ा चढ़ा कर इस तरह बढ़ाता रहा मानो
किसी बाला ने गुस्से में डायटिंग छोड़ दी हो और एकाएक मोटापे के राजमार्ग पर इस तरह
अग्रसर हो ली हो..कि चल, अब तू ही बढ़ ले!!
अंत में हमारे हासिल आया सरकारी मुआवजे का वो
कागज..जो कहता था कि आपका मुआवजा आपके लोन में एडजस्ट कर दिया गया है..और उसके बाद
बचा हुआ लोन..सरकार ने अपनी उदार कृषक नीति के तहत ५०% मुआफ कर दिया है.
कृप्या बकाया ५०% प्रतिशत लोन जो कि लगभग १२
लाख रुपये है, जल्द भुगतान करें अन्यथा इस पर २% प्रति माह की दर से ब्याज का
भुगतान करना होगा.
एक तरफ मुआफी का सकूं और फिर इतना बड़ा नया बकाया..
नित्य बढ़ता... अब मरें नहीं तो
क्या करें
शायद आत्म हत्या ही मुक्ति का मार्ग है अब.. किसान
की नियति!!
मुझे लगता है कि सरकार को अपना नियम बदल देना
चाहिये अब..
कृषि आय मात्र आयकर से मुक्ति नहीं, आपका इस
कठिन जीवन से मुक्ति का एक मात्र मार्ग है..
जय जवान..जय किसान..
कृषि अपनाओ..मुक्ति पाओ!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में तारीख ११ जून, २०१७ को प्रकाशित
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-06-2017) को
रविकर यदि छोटा दिखे, नहीं दूर से घूर; चर्चामंच 2644
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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