रंगों की पहचान
के मामले में भारतीय पुरुष से ज्यादा निर्धन, दयनीय और निरीह प्राणी कोई नहीं होता. हम भारतीय पुरुषों को
बस गिने चुने रंग मालूम होते है जैसे नीला, पीला, लाल ,गुलाबी, भूरा, हरा, सफेद और काला आदि. ज्यादा स्मार्ट हुए तो नीला
और बैंगनी में फर्क कर लेंगे या काला और सिलेटी में. इसके आगे का काम लगभग से चल
जाता है जैसे हल्का, गाढ़ा या करीब
करीब हरा कह कर.
हुआ यूँ एक मित्र
के पास एक शो के दो पास रखे हैं और वो किसी वजह से शहर के बाहर जा रहा है, अतः मुझसे पूछा कि अगर आप और भाभी जाना चाहो तो
चले जाओ. एक तो हम नये नये और फ्री का पास मिल रहा हो तो क्यूँ मना करते. हाँ कर
दी. उसने अपने एक दोस्त का फोन नम्बर दे दिया और कहा कि जब ऑडिटोरियम जाने लगो तो
उसे फोन कर देना. वो टिकिट भिजवा देगा वहीं.
इण्डिया से नये
नये आये थे तो कमीज जो सबसे रंगीन सिलवा लाये थे, वही पहन कर निकले. ऑडिटोरियम के पास स्टेशन पर पहुँच कर फोन
लगाया तो मित्र के मित्र, जो कि कनेडियन थे,
ने कहा कि उनका लड़का ऑडिटोरियम की तरफ ही से
निकल रहा है, आप उसको पार्किंग
के सामने मिल जाना और टिकिट ले लेना. वैसे आप किस कलर की शर्ट पहने हैं, वो बता दिजिये तो मैं उसे मोबाईल पर इन्फार्म
कर देता हूँ वो आपको देख लेगा और हाथ हिला देगा.
अब हमारी रंगीन
कमीज फिरोजी. अंग्रेजी मे क्या बोलें?
बचाव का एक ही रास्ता था
कि हमने कह दिया कि आप चिन्ता न करें, आप हमें कार के बारे में बता दिजिये हम पहचान लेंगे.
पार्किंग में वो
कार ले जाता तो उसे जबरदस्ती पार्किंग चार्जेज लग जाते अतः पार्किंग के बाहर सड़क
पर मिलना ही तय पाया. उन्होंने बताया कि वो टील कलर की सेडान कार से आयेगा. आप हाथ हिला
देना.
फोन रख लगे सोचने
कि ये भला कौन सा रंग होता है? आने जाने वाली
कारों का ताँता लगा था और उनमें कम से कम पाँच तो ऐसे रंग रहे होंगे कारों के,
जिन्हें हमारी सीमित पहचान क्षमता कोई भी नाम
देने से इन्कार कर रही थी. एक होता तो बाकी पहचान कर उसे मान लेते टील. मगर यहाँ
तो अनजान रंगों की भीड़ चली जा रही थी. ऐसे में हाथ हिलाने लगे तो सब पागल ही
समझेंगे हर कार को हाथ हिलाता देख कर.
दस मिनट खड़े
सोचते रहे. अपनी कमीज के रंग का अंग्रेजी भी याद नहीं आ रहा था आखिरकार हार कर
बेवकूफ नजर आने से बेहतर विकल्प का सहारा लिया.
उन्हें फिर से
फोन लगाया और कहा कि एकाएक पत्नी की तबीयत खराब लगने लगी है. अतः तुरंत घर वापस
जाना होगा. आप अपने बेटे से कह दिजिये कि वो परेशान न हो और किसी को भी पास दे दे
या वेस्ट जाने दे.
पत्नी को बता
दिया कि उनका लड़का कहीं जरुरी काम में फंस गया है तो आ नहीं पा रहा है. लौटना
पड़ेगा.
घर आकर नेट पर
अधिक से अधिक रंगों के नाम अंग्रेजी में सीखे. फिरोजी मतलब टर्काईस जान गये. टील
रंग भी नेट पर देखा. खड़ी तो थी बिल्कुल उसी रंग की सेडान पार्किंग के सामने. मगर
अब क्या, वो तो पास फेंक कर ४ घंटे
पहले जा चुका होगा और शो भी खत्म हो चुका होगा.
अब तो मैं
मर्जेन्टा, टैन, बर्गेन्डी जैसे कठिन रंग भी पहचान जाता हूँ मगर
पत्नी की मूँह से सुना धानी रंग अभी पहचानना बाकी है. नेट पर मिल नहीं रहा और उससे
पूँछू तो फिर वो ही अहम!! कौन बेवकूफ नजर आना चाहेगा.
वैसे, कभी सोचता हूँ कि अगर रंग होते ही न तो क्या
होता?
दुनिया भले बेरंग
होती मगर रंग भेदियों की जमात से तो कितनों को मुक्ति मिल गई होती. लेकिन इन्सान
तो इन्सान है, तब झगड़ने का कोई
और मुद्दा निकाल लेता.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से
प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में:
http://epaper.subahsavere.news/c/18978937
8 टिप्पणियां:
रंग पर कविता याद आ गई -
सफेदी ..........मेरी कविता .......
लाल मिले जब पीले से -----केसरिया बन जाए,
केसरिया की छटा निराली ----पा- गगन इतराए,
लाल -धवल मिल बने गुलाबी ---- मदहोशी दिखलाए,
पीला मिले जब नीले से ---- हरियाली छा जाए ,
हरा रंग जब छाए धरती पर ---मन झूम-झूम जाए,
मन झूमे तो झूमे जीवन ---खुशहाली छा जाए,
काले संग जब लाल मिलाए --- लाली ही खो जाए,
लाली जब खोए जीवन से .......रंग धवल छा जाए ..........
मैं तो अभी भी हरा को नीला और नीला को हरा बोल-समझ लेता हूँ! कसम से!!
'कौन बेवकूफ नजर आना चाहेगा.'
- ये हुई न अक्लमंदी की बात!
सब रंगो की महिमा है ।।
कृपया मुझे भी पढ़े और अच्छा लगे तो follow करे ।। मेरा ब्लॉग againindian.blogspot.com
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-05-2017) को
"लजाती भोर" (चर्चा अंक-2631)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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