इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं
गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है
इन पंक्तियों के रचयिता ओम प्रकाश आदित्य तो अब रहे नहीं..मगर कविता
कालजयी है..
आज की उत्तर प्रदेश में हुई चुनावी बयानबाजी ने इन पंक्तियों की याद
ताजा की जब उसमें गधों का जिक्र आया..गधों के बीच भी जब तक गधों का जिक्र न आये तब तक गधा
गधा नहीं होता..इन्सान सा नजर आता है..
बताते चलें कि यह गधों का स्वभाव नहीं...इन्सानों का
स्वभाव है.
गधों की भी कई नस्लें होती हैं..उनमें
से एक नस्ल
होती है जिसे जुमेराती कहते हैं...मात्र इस नस्ल को लेकर भगवान और खुदा दोनों एकमत हुए होंगे शायद कभी..और तब दोनों ने मिल कर सिर्फ इस नस्ल को यह वरदान दिया होगा कि वो शोहरत और बेईज्जती के बीच के अंतर को न समझ पायें..जूते और फूल माला सब उनके लिए एक समान हों....
अतः ये वाली सारी नस्ल अपनी मोटी चमड़ी और मोटी बुद्धि के साथ संसद के दोनों सदनों और विधानसभाओं से लेकर अनेकों स्थानों पर
विराजमान है..इन्हें इन्सानों से अलग पहचान देने हेतु नेता पुकारा गया है..दिखने
में इन्सान सा दिखने का वरदान भी मिल कर ही दिया है भगवान और खुदा ने..इसके बाद भगवान
और खुदा फिर कभी न मिले..ऐसा शास्त्र बताते हैं..एक दूसरे को
अलविदा कह गये...अतः बाकी के सारे गधे धोबी के साथ
साथ घाट घाट घूम रहे हैं...और इन्सान तो हर घट का पानी पिये अपने जुमेराती गधा न हो पाने
के मातम में डूबा ही है..
बस आज आगह करने को मन किया कि अगर ईश्वर कभी आपको
गधा बनाये तो प्रार्थना करना...जुमेराती बनाये..इत्ती च्वाईस तो मिलती ही है जब
पुनर्जन्म होता है...पुनर्जन्म में तो हर मजहब भरोसा धरता है..अतः इस
वयक्तव्य में सेक्यूलरवाद की महक न आयेगी किसी को.. मगर लोगों को पता नहीं होता...अतः
वो बस मायूस हो कर कह देते हैं कि अब गधा बना ही रहे हो तो कोई सा भी बना दो..
याद रखना इस मायूसी का अंजाम...फिर वही धोबी
मिलता है...घाट घाट घुमाने को..संसद के सपने न देखना..
इस हेतु यह लिखा कि जान जाओ :)
-समीर लाल ’समीर’
3 टिप्पणियां:
सुख-दुःख में समभाव आवश्यक है और गधे एक्सप्रेशनलेस होते है...हार-जीत से परे...रेस में कच्छ के बैसाखनंदन तेज़ लग हैं...वहाँ घास कम होती है न...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-02-2017) को
"गधों का गधा संसार" (चर्चा अंक-2598)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
खरी मगर सीधी बात।
एक टिप्पणी भेजें